बारानी या वर्षा आधारित क्षेत्रों में टिकाऊ कृषि उत्पादन के लिए जल सबसे महत्वपूर्ण संसाधन है। आमतौर पर खेतों में वर्षा जल बिना किसी उपयोग के बहकर निकल जाता है। इस प्रकार जल के बहाव के साथ ही मृदा की ऊपरी परत भी बह जाती है इस समस्या के समाधान के लिए भाकृअनुप – केंद्रीय बरनी कृषि अनुसंधान संस्थान (क्रीडा), हैदराबाद द्वारा क्षेत्र विशेष की जल संचयन प्रौद्योगिकी का मानकीकरण किया गया। साथ ही खेत के तालाब के तौर पर इस प्रौद्योगिकी को पूरे देश में बढ़ावा दिया जा रहा है। इसके तहत खेत के निचले हिस्से में तालाब बनाए जाते हैं। खेत के जल बहाव को नालियों की सहायता से तालाब तक पहुँचाया जाता है। हल्की मृदा में छोटे गड्ढे वाले तालाब जल संचयन के लिए उपयुक्त होते हैं।
क्रीडा द्वारा पूरे देश में सूखे से निपटने के लिए खेत के तालाब को प्रोत्साहित किया जा रहा है। वर्ष 2008 में टिकाऊ ग्रामीण आजीविका सुरक्षा पर एनएआईपी प्रोजेक्ट के तहत आंध्रप्रदेश के आदिलाबाद जिले के सिथागोथि गाँव में क्रीडा की टीम द्वारा उपरोक्त प्रौद्योगिकी को प्रयोग में लाया गया। वर्ष भर इस क्षेत्र में 1050 मि. मी. वर्षा होती है। इससे जल संचयन की अच्छी संभावना है। हितधारक किसान के खेत में ढलान को देखते हुए एक तालाब (17 मीटर लंबा, 17 मीटर चौड़ा तथा 4.5 मीटर गहरा) खोदने की बात की गई। प्रारंभ में किसान श्री नामदेव और उनके भाइयों ने इसका विरोध किया। उनको आंशका यह थी कि वे अपने खेत का कुछ हिस्सा तालाब के नाम पर गंवा देंगे। विशेषज्ञों द्वारा खेत तालाब की खूबियाँ बताये जाने पर किसान आश्वस्त हुए। इसके बाद उन्होंने अपने खेत में तालाब खोदे जाने की अनुमति दी।
तालाब तैयार होने के बाद वर्ष 2008 में अच्छी वर्षा हुई जिससे तालाब पूरा भर गया। इससे उत्साहित होकर किसानों ने आधे एकड़ में टमाटर के खेत की सिंचाई के लिए एक डीजल पपिंग सेट किराए पर लिया। तालाब के जल स्तर को देखते हुए केवीके, आदिलाबाद के स्टाफ ने 2000 मछली के जीरों को मच्छली पालन के लिए तालाब में डाला। समय पर टमाटर भी तैयार हो गया और उसका बाजार मूल्य 25 रूपये प्रति किग्रा. प्राप्त हुआ। श्री नामदेव द्वारा टमाटर की कुल चार तुड़ाई करने पर उन्हें 20,000 रूपये का लाभ प्राप्त हुआ। नवम्बर 2008 तक तालाब में 2 मीटर जल स्तर मौजूद था। इससे उत्साहित होकर किसान ने एक एकड़ खेत में चने की बुआई की। अच्छी बढ़त वाली आधी मछलियों की बिक्री से 30,000 रूपये की कमाई हुई। साल भर के अंदर चने की फसल लेने से पहले ही तालाब निर्माण की लागत वसूल हो गई।
बढ़ी हुई आय से श्री नामदेव ने अपने सारे कर्ज चुका दिया। इससे उनका आत्मविश्वास और सामाजिक प्रतिष्ठा पुन: लौट आई। उनके बच्चे भी स्कूल जाने लगे। वर्तमान में उन्हें क्षेत्र का एक सफल किसान माना जाता है। उनकी सफलता से प्रेरणा लेने के लिए पड़ोसी गांवों के किसान उनके खेती के मॉडल को देखने आते रहते हैं।
इस सफलता गाथा के देश के बारानी क्षेत्रों में क्रीडा के प्रौद्योगिकीय सहयोग द्वारा आसानी से दुहराया जा सकता है।
लेखन: राजीव कुमार सिंह, विनोद कुमार सिंह, एस.एस. राठौर, प्रवीण कुमार उपाध्याय और कपिला शेखावत
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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