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बिहार में जौ की खेती

जौ

जौ बिहार राज्य की एक प्रमुख धान्य रबी फसल है। इसकी खेती अधिकांशतः असिंचित क्षेत्रों में की जाती है।जौ

बीज दर

असिंचित - 100 किलोग्राम /हे0। सिंचित - 75-80 किलोग्राम/हे0।

उर्वरक की मात्रा

असिंचित-30 कि0ग्रा0 नेत्रजन, 20 कि0ग्रा0 फास्फोरस एवं 20 कि.ग्रा. पोटाश/हे0। सिंचित-60 कि0ग्रा0 नेत्रजन, 30 कि0ग्रा0 फास्फोरस एवं 20 कि0ग्रा0 पोटाश/हे0।

उन्नत प्रभेद

विभिन्न परिस्थितियों में जौ की उन्नत प्रभेद इस प्रकार हैं

पारिस्थिति

उन्नत प्रभेद

परिपक्वता अवधि

(दिन)

औसत उपज

(क्वि0/हे0)

असिंचित अवस्था (25 अक्टूबर से

15 नवम्बर)

रत्ना, के. 125, आजाद,

बी.आर. 31

130-135

15-20

सिंचित अवस्था

(10 से 30 नवम्बर)

ज्योति, डी.एल. 36,

रंजीत, बी. आर 32, रत्ना

125-130

30-35

प्रयोग विधि

असिंचित अवस्था में खाद की पूरी मात्रा उपयुक्त उर्वरकों के द्वारा बोआई से पूर्व अंतिम जूताई के समय दें। सिंचित स्थिति में नेत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बोने के समय प्रयोग करें तथा नेत्रजन की शेष आधी मात्रा प्रथम सिंचाई के समय खडी फसल में उपरिवेशित करें।

जल प्रबंधन एवं सिंचाई

फसल के क्रांतिक अवस्थाओं खासकर कल्ले निकलते समय खेत में पर्याप्त नमी होना चाहिए। सिंचित अवस्था में दो बार सिंचाई करें। प्रथम सिंचाई 30-35 दिन बाद एवं द्वितीय सिंचाई बोने के 55-60 दिनों बाद करे।

निकाई-गुराई एवं खरपतवार नियंत्रण

अच्छी उपज प्राप्त करने के लिये खेत को खरपतवारों से मुक्त रखें। पंक्तियों में बोयी गयी फसल में 'वीडर' या 'हैण्ड' हो के द्वारा निकाई-गुराई करें। रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिये गेहूँ की खेती में बतायी गयी खरपतवार प्रबंधन की विधियों को अपनायें।

कटनी

फसल के पक जाने पर कटनी कर लें ।

जौ के प्रमुख कीट एवं रोग तथा प्रबंधन

प्रमुख कीट

रोग तथा प्रबंधन

लाही(रिओपालोसिफम मैडिस)

 

यह कीट पीला, हरा, काला अथवा भूरे रंग का मुलायम, पंखयुक्त एवं पंखविहीन होता है। वयस्क एवं शिशु दोनों ही पत्तियों, टहनियों एवं तनों से रस चूसते हैं जिससे पौधे सूख जाते हैं। कीट मधु जैसा पदार्थ भी छोड़ता है जिसपर काले रंग के फफूँद उग जाते हैं जिससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है।

कीट का प्रबंधन

1.  फसल की समय पर बुआई करें।

2.  उर्वरको का संतुलित प्रयोग करें।

3.  फास्फेटिक उर्वरक का अधिक मात्रा में उपयोग करने पर इसकी संख्या  घटती है।

4.  मित्र कीटो का संरक्षण करें।

5.  खेत में पीले रंग के टिन के चदरे पर चिपचिपा पदार्थ लगाकर लकड़ी के सहारे खेत में गाड़ दें। उड़ते माहू इसमें चिपककर मर जाऐंगे।

6.  नीम आधारित कीटनाशी का 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बना कर फसल पर छिड़काव करें।

7.  ऑक्सीडेमेटॉन मिथाइल 25 प्रतिशत घोल का 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बना कर फसल पर छिड़काव करें।

 

अनावृत कलिका रोग (कवर्ड स्मट ऑफ़ बार्ली)उस्टिला नुडा

 

यह एक अन्तरबीज जनित रोग है। इस रोग में बालियों में दानों के स्थान पर काला धूल भर जाता है तथा हवा से झड़ने के बाद वह स्वस्थ बालियों को भी आक्रांत करता है। यह ढ़का हुआ होता है एवं उड़ता नहीं है।

कीट का प्रबंधन

  1. कार्बेन्डाजीम फफूंदनाशी 2 ग्राम प्रति किग्राo बीज की दर से उपचार कर ही बुआई करें I
  2. फसल चक्र अपनाये।
  3. स्वस्थ एवं स्वच्छ बीज की बुआई करें।
  4. बीज को 4-5 घंटे पानी में रखकर पक्के फर्श पर कड़ी धूप में सूखायें।

 

 

 

स्रोत व सामग्रीदाता: कृषि विभाग, बिहार सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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