भारत एक कृषि प्रधान देश है और यहाँ की लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से खेती पर निर्भर है। भारत की कुल भूमि के 47 प्रतिशत हिस्से (143 मिलियन हैक्टर) पर खेती की जाती है। कृषि की दृष्टि से मृदा लवणता वैश्विक स्तर पर एक गंभीर समस्या है। शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों में जहाँ लवणों के निक्षालन हेतु पर्याप्त वर्षा का अभाव रहता है वहां लवणता विकराल समस्या बनी रहती है। हमारे देश में लवणग्रस्त क्षेत्रों का विस्तार विभिन्न तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल आदि में फैला हुआ है तथा इनका क्षेत्रफल लगभग 6.73 मिलियन हैक्टर है। कुल लवण प्रभावित मृदाओं का लगभग 56 प्रतिशत क्षारीयता एवं 44 प्रतिशत लवणीयता के अन्तर्गत आता है। क्षारीयता की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित, सिंधु-गंगा का उपजाऊ मैदानी क्षेत्र है।
लवण प्रभावित मृदाओं को सामान्यतः दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-क्षारीय मृदा जिसे कल्लर या ऊसर कहते हैं और लवणीय मृदा जिसे सेम या लोनी भी कहते हैं। इन मृदाओं को अलग-अलग प्रदेशों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। क्षारीयता प्रभावित भूमि को उत्तर प्रदेश, बिहार एवं मध्य प्रदेश में ऊसर या रेह कहा जाता है जबकि पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान में कल्लर, राकर, बरां, बरीं आदि नामों से जाना जाता है। क्षारीय एवं लवणीय मृदाओं को संतृप्त घोल की वैद्युत चालकता, विनिमययोग्य सोडियम की मात्रा एवं मृदा पीएच मान के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है (तालिका 2)।
तालिका 1: भारत के विभिन्न राज्यों में लवणग्रस्त मृदाओं का क्षेत्रफल (हैक्टर)
राज्य |
लवणीय मृदाएं |
क्षारीय मृदाएं |
कुल लवणग्रस्त मृदाएं
|
गुजरात |
1680570 |
541430 |
2222000 |
उत्तर प्रदेश |
21989 |
1346971 |
1368960 |
महाराष्ट्र |
184089 |
422670 |
606759 |
पश्चिम बंगाल |
441272 |
0 |
44.1272 |
राजस्थान |
195571 |
374942 |
374942 |
तमिलनाडु |
13231 |
354784 |
368015 |
आंध्र प्रदेश |
775981 |
196609 |
274207 |
हरियाणा |
49157 |
183399 |
232556 |
बिहार |
47301 |
105852 |
153153 |
पंजाब |
0 |
151717 |
151717 |
कर्नाटक |
1893 |
148136 |
150029 |
उड़ीसा |
147138 |
0 |
1471.38 |
मध्य प्रदेश |
0 |
139720 |
139720 |
अण्डमान एवं निकोबार |
77000 |
0 |
77000 |
केरल |
20000 |
O |
20000 |
कुल योग |
2956809 |
3770659 |
6727468 |
स्त्रोत-राष्ट्रीय दूर संवेदी संस्थान एवं सहयोगी 1996 मैपिंग साल्ट अफ़क्टेड सोइल्स ऑफ इण्डिय7 हैदराबाद
क्षारीय मृदाओं के संतृप्त घोल में सोडियम के कार्बोनेट तथा बाईकार्बोनेट लवणों की अधिकता पायी जाती है। इन मृदाओं की धनायन विनिमय क्षमता का 15 प्रतिशत से ज्यादा सोडियम सतृप्त होता है। जो मृदा संरचना एवं इसकी भौतिक स्थिति को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। उच्च सोडियम विनियम अनुपात मृदा की पोषक तत्व प्रदान करने की क्षमता को भी प्रभावित करता है परिणामस्वरूप, फसल वृद्धि एवं उत्पादकता सार्थक रूप से प्रभावित होती है। क्षारीय मृदा में सतह से कुछ सेंमी. नीचे नमी होने के बावजूद उपरी सतह शुष्क एवं कठोर बन जाती है तथा निर्जलीकरण के पश्चात् उपरी 1–2 सेंमी. सतह में दरारें पड़ जाती हैं। इन मृदाओं में उच्च मृदा पीएच मान के प्रभाव से पोषक तत्व असंतुलन, वायु संचार एवं जल की उपलब्धता कम हो जाती है जिससे पौधों की वृद्धि एवं उत्पादन में सार्थक रूप से कमी आती है।
लवणीय मृदाओं में सोडियम, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम एवं उनके क्लोराइड एवं सल्फेट अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। लवणीय मृदा प्रायः जलभराव की समस्या से भी ग्रसित होती है जिसे जलग्रस्त लवणीय मृदा कहते हैं। सामान्यतौर पर लवणीय मृदा में उपरी सतह पर सफेद पपडी बन जाती है। घुलनशील लवण मृदा में जल संचालन के साथ उपरी सतहों में आ जाते है जहाँ जल के वाष्पीकरण के पश्चात् यह संचित होते रहते हैं। लवणता पादप वृद्धि को परासरणी दबाव (ओसमोटिक) और आयन विषाक्तता के माध्यम से प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है। लवण तनाव के दौरान परासरणीय समायोजन के लिए ऊर्जा का अतिरिक्त व्यय पादप विकास में कमी का कारण होता है, जिससे पौधों के विकास एवं उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
पंजाब और हरियाणा में क्षारीय मृदा सुधार की प्रगति काफी अच्छी है जबकि उत्तर प्रदेश में सुधार की गति अत्यन्त धीमी है। देश के विभिन्न राज्यों में अब तक लगभग 50 हजार हैक्टर लवणीय एवं 18 लाख हैक्टर क्षारीय मृदाओं का सुधार किया जा चुका है जिसमें सामान्य भूमि के समान फसलोत्पादन हो रहा है। क्षारीयता एवं लवणता से प्रभावित प्रमुख राज्यों में हुई भूमि सुधार की प्रगति का विवरण तालिका 3 में दिखाया गया है | अथक प्रयासों के बाद भी उत्तर प्रदेश में मात्र 6.35 लाख हैक्टर क्षारीय भूमि का सुधार हुआ है जो राज्य की कुल समस्याग्रस्त मृदाओं का आधे से भी कम है। देश में अभी 38 लाख हैक्टर भूमि ऊसर पड़ी है जिसे सुधार कर खेती योग्य बनाने का प्रयास किया जा रहा है। अब तक सुधारी गई क्षारीय एवं लवणीय मृदाओं से प्रतिवर्ष लगभग 150 लाख टन खाद्यान्नों का उत्पादन हो। रहा है और 2500 लाख मानव श्रम दिवस रोजगार सृजन हुआ है।
फसलों में लवण सहनशीलता लवणीय मृदाओं में फसलों को उनकी सहनशीलता एवं पादप संरचना अनुकूलन के अनुसार तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
फसलों की जड़ों के सिरों तथा नवीन पत्तियों में परासरणी दाब त्वरित रूप से कोशिका की वृद्धि को रोकता है, जिससे रंध्र (स्टोमैटा) बंद हो जाते हैं एवं पौधे में जल की उपलब्धता बनी रहती है। यह क्रियाविधि पत्तियों की बढ़वार को कम करती है तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारा होने वाले जल-ह्यस को भी कम करता है जिससे दाना बनते समय पादप तंत्र में जल उपल्ब्ध रहता है।
तालिका2 लवणीय, क्षारीय एवं लवणीय-क्षारीय मृदाओं का वर्गीकरण
मृदा का प्रकार |
वैधुत चालकता(डेसीसीमन्स/मीटर) |
विनिमययोग्य सोडियम(प्रतिशत) |
पीएच मान
|
लवणीय मृदा |
>4.0 |
<15 |
<8.5 |
क्षारीय एवं ऊसर मृदा |
<4.0 |
>15 |
>8.5 |
लवणीय-क्षारीय मृदा |
>4.0 |
>15 |
<8.5 |
राज्य |
सुधरी क्षारीय मृदा(हैक्टर) |
सुधरी जलग्रस्त लवणीय मृदा(हैक्टर) |
कुल सुधरी लवणग्रस्त मृदाएं (हैक्टर) |
आंध्र प्रदेश |
0 |
500 |
500 |
अण्डमान एवं निकोबार |
0 |
0 |
0 |
बिहार |
O |
6000 |
6000 |
गुजरात |
38300 |
33000 |
41300 |
हरियाणा |
303000 |
6300 |
3309300 |
कर्नाटक |
2900 |
500 |
3400 |
केरल |
O |
200 |
200 |
महाराष्ट्र |
0 |
3000 |
3000 |
मध्य प्रदेश |
100 |
13050 |
3150 |
उड़ीसा |
O |
4000 |
4000 |
पंजाब |
797000 |
4250 |
801250 |
राजस्थान |
22400 |
400 |
38 |
तमिलनाडु |
5100 |
3000 |
8100 |
उत्तर प्रदेश |
635000 |
50 |
635050 |
पश्चिम बंगाल |
0 |
50 |
50 |
कुल |
1803800 |
49900 |
1853700 |
जड़ों द्वारा सोडियम बहिष्करण एक ऐसी प्रक्रिया है जो पत्तियों में इसके जमाव को विषाक्त स्तर से कम रखती है तथा पौधों को मरने से जैविक एवं शस्य विधियों की संस्तुति की जाती है। लवण प्रभावित भूमि के सुधार के लिए उपयोग में लाए जाने वाले अन्य तरीके जैसे जल निकासी द्वारा लवण निक्षालन, मृदा बचाती है। जिन फसलों की पत्तियों में सोडियम बहिष्करण की प्रक्रिया अनुपस्थित रहती है उनमें कुछ सतह पर एकत्रित लवणों का खुरचना इत्यादि मंहगे एवं आर्थिक रूप से कम व्यावहारिक तरीके हैं। इन क्षेत्रों की दिनों या सप्ताहों के उपरान्त पौधों में सोडियम सांद्रता विषाक्त स्तर पर पहुँच जाती है तथा पतियाँ प्रौढ़ावस्था से पूर्व मर जाती है।
पत्तियों की पर्णमध्योतक कोशिका द्रव्यों में सोडियम एवं क्लोराइड की सांद्रता को विषाक्त स्तर से कम रखने के लिए कुछ पौधों में आयन विभागीकरण प्रक्रिया द्वारा इन अवयवों की सांद्रता को उत्तकों में सहनशीलता स्तर पर रखा जाता है।
स्त्रोत : कृषि किरन,गजेन्द्र, राजेन्द्र कुमार यादव, हनुमान सहाय जाट, प्रबोध चन्द्र शर्मा एवं दिनेश कुमार शर्मा भाकृअनुप-केन्द्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल (हरियाणा)
अंतिम बार संशोधित : 2/20/2023
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