अरहर
यह अरहर की हानिकारक कीटों में से एक प्रमुख कीट है। मादाएं अपने जीवनकाल में अंडे पौधों के सभी भागों पर देती हैं लेकिन अंडे देने के लिए ज्यादातर कोमल पत्तियों तथा फूलों को प्राथमिकता देती है। सूंडी पीले – हरे से गुलाबी, भूरे, संतरी तथा काले रंग के पैटर्न में विभिन्न प्रकार के होते है। अधिकतम 3 दिनों के अंदर अण्डों से नवजात सूंडी निकलती है। ये सूंडी कोमल पत्तियों, फूलों व फली को खाती हैं। फली छेदक अपनी परिपक्वता से पहले 30 – 40 फलियों को नुकसान पहुँचाती हैं।
प्रबंधन
बुवाई से पहले
- गर्मियों में भूमि की गहरी जुताई तथा ट्राईकोडर्मा व राइजेबियम से उपचारित कर बीजों की बुवाई करनी चाहिए।
बुवाई के समय
- प्रदेशीय संस्तुत कीट प्रतिरोधी प्रजातियों के बीजों की बुवाई करनी चाहिए।
- ज्वार, मक्का आदि के साथ अंत: फसल पद्धति तथा किनारों पर गेंदा उगाना चाहिए।
- सन्तुलित व संस्तुत मात्रा में खाद व पानी का उपयोग करना चाहिए।
वनस्पति और पुष्पीकरण के समय
- निरिक्षण के लिए खेतों में फेरोमोन ट्रैप 5/हे. की दर से लगाने चाहिए। इनके अभाव की स्थिति में रात के समय खेतों प्रकाश प्रपच या पैट्रोमेक्स लैम्प का प्रयोग करना चाहिए।
- कीट भक्षी पक्षियों बैठने के लिए T आकार की खुंटीयाँ (अड्डे) 20 -25/हे. की दर से खेत में लगानी चाहिए।
- नीम (2 प्रतिशत), नीम बीज कर्नेल 5 प्रतिशत @ 50 ग्रा./ली., एजाडिरैक्टिन 0.03 प्रतिशत 2.0 मि.ली./ली. उपयोग करनी चाहिए।
- एचएएनपीवी @250 – एलई का छिड़काव ग्रसित पौधों पर लगाना चाहिए।
- स्वीकृत कीटनाशकों जैसे मोनोक्रोटोफ़ॉस 36 प्रतिशत एसएल 1.0 मि.ली./ली. अथवा क्लोरेन्ट्रानिलीप्रोल 18.5 प्रतिशत एससी 0.15 मि.ली. की दर से छिड़काव करना चाहिए।
चना
यह चने की विनाशकारी कीटों में से एक है। मादाएं अंडे देने के लिए मुख्यतः फूल और फल सहित पौधे के सभी भागों को चुनती है। सूंडी हरे, पीले, गुलाबी और लाल – भूरे से लगभग काले सिर आमतौर पर हल्के भूरे रंग की होती हैं। सूंडी कोमल पत्रक, फूलों की कलियों और कोमल फलियों को खाती हैं। बाद सूंडी बीज को फली के अंदर रहते हुए खाती हैं।
प्रबंधन
बुवाई से पहले
- गहरी जुताई, समय पर बुवाई और फसल परिपक्वता के आधार पर प्रजातियों की बुवाई करनी चाहिए।
बुवाई के समय
- कीट प्रतिरोधी प्रजातियों के बीजों का क्षेत्रों के हिसाब से बुवाई करनी चाहिए।
- धनियाँ एवं अलसी के साथ अंत: फसल पद्धति से खेती करनी चाहिए।
- संतुलित व संस्तुत मात्रा में खाद व पानी का उपयोग करना चाहिए।
वनस्पति और पुष्पीकरण के समय
- फली छेदक कीट की निगरानी हेतु 5 फेरोमान ट्रैप प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए।
- कीट भक्षी पक्षियों को बैठने के लिए T आकार की खूँटियाँ 20 – 25 प्रति हे. की दर से खेत लगानी चाहिए।
- नीम बीज का सत नीम और करंज के तेल का उपयोग करनी चाहिए।
- एचएएनपीवी @450 – LE (2 x 1012 पीओ बी) + 1 प्रतिशत टीनोपोल का प्रयोग करनी चाहिए।
मूंग व उड़द
यह कीट मूंग तथा उड़द सहित बहुत सी फसलों का एक मुख्य हानिकारक कीट है। इस कीट की सूंडी मुलायम पत्तियों, कलियों, पुष्प तथा फलियों को खाती हैं। फसली छेदक की एक सूंडी अपने जीवन काल में 30 – 40 फलियों को खा जाती है। मादाएं अपने जीवन काल में 1200 – 1400 अंडे प्राय: पौधों के शीर्ष भागों पर देती है, परंतु ये पुष्पों के उपर अंडे देने के लिए प्राथमिकता देती हैं। सूंडी का रंग पीले – हरे से गुलाबी, संतरी, भूरा तथा मटमैला – काला छोटी फलियों को पूर्णत: खा लेती है जबकि वयस्क सूंडी केवल बीजों को खाती हैं।
प्रबंधन
बुवाई से पहले
- गर्मी में भूमि की गहरी जुताई करनी चाहिए, जिससे भूमि में उपस्थित कीट कोषक नष्ट हो जाये।
बुवाई के समय
- कीट या रोग प्रतिरोधी या बहु प्रतिरोधी प्रजातियाँ लगाना चाहिए।
- ज्वार या मक्का के साथ अन्यथा अन्य स्वीकृत अंत: फसल लगानी चाहीए।
- संतुलित व संस्तुत मात्रा में खाद व पानी का उपयोग करना चाहिए।
वनस्पति और पुष्पीकरण के समय
- T आकार की खूँटियाँ कीट भक्षी पक्षियों के बैठने के लिए 20/हे. की दर से लगानी चाहिए जिससे कीट भक्षी पक्षी कीट की सूंडी को खाकर नष्ट कर सकें।
- हानिकारक कीटों की सही जानकारी तथा नियंत्रण के लिए समय – समय पर खेत का निरिक्षण करना चाहिए तथा फली छेदक गंध पप्रंच 5/हे. की दर से लगाने चाहिए।
- 5 प्रतिशत नीम आधारित कीटनाशक या नीम तेल 3000 ppm या एचएनपीवी 1.0 मिली/ली. कीट की प्रारंभिक अवस्था में छिड़काव करना चाहिए।
- स्वीकृत कीटनाशकों का प्रदेशों के आधार पर क्लोरेंट्रानिलीप्रोल 20 एससी @ 0.15 मिली./ली. का छिड़काव करना चाहिए।
मसूर
वयस्क मादाएं, फूल और फल सहित पौधों के सभी भागों में अंडे देती है। लेकिन ज्यादातर अंडे पत्रक के तली में देती हैं। पूर्ण विकसित सूंडी 40 मि. मी. लंबे व हरे रंग के होते है। इनके शरीर पर बहुत सारी हल्के और गहरी रेखाएं पायी जाती है। सूंडी थोड़े समय के लिए कोमल पत्रक, फूलों की कलियों और फलियाँ को खाती है, बाद में ये विकसित बीजों को पूर्णरूप से खा जाती है तथा उस समय इसके शरीर का आधा हिस्सा फली के बाहर होता है।
प्रबंधन
बुवाई से पहले
- गर्मी में भूमि कि गहरी जुताई कर समय पर फसल परिपक्वता के आधार पर बुवाई कर फसल का बचाव किया जा सकता है।
बुवाई के समय
- कीट या रोग प्रतिरोधी या बहु प्रतिरोधी प्रजातियाँ लगाना चाहिए।
- धनियाँ, सरसों और मक्का के साथ अंत: फसल लगानी चाहिए।
- संतुलित व संस्तुत मात्रा में खाद व पानी का उपयोग करना चाहिए।
वनस्पति और पुष्पीकरण के समय
समय – समय पर खेतों की निरीक्षण करनी चाहिए तथा 5 फेरोमोन ट्रैप प्रति5. कपास हेक्टेयर का प्रयोग करनी चाहिए।
- परजीवी और शिकारी पक्षियों को आकर्षित करने के लिए T आकार के खूंटों (20/हे.) का प्रयोग करनी चाहिए।
- स्वीकृत कीटनाशकों का प्रदेशों के आधार पर जैसे डेल्टामिथ्रिन 380 ग्रा./हेक्टेयर की दर से छिड़काव करनी चाहिए।
ये कीट बहु पौध भक्षी है तथा बिना बीटी कपास पर आक्रमण कर सर्वाधिक हानि पहुँचाता हैं। यह जुलाई से अक्टूबर एवं फरवरी से अप्रैल तक सक्रिय रहता है। सूंडी लंबी हरे भूरे रंग की होती हैं तथा इनके शरीर पर बराबर की तरफ स्लेटी पीले रंग की पट्टियाँ होती हैं। मादाएं अंडे प्राय: पौधे के मुलायम भागों पर देती है, शुरूआत में सूंडियां पत्तियों को फिर पुष्प, स्कैवर, टिंडो एवं बीजों को खाती हैं तथा पूरी तरह से कपास को नष्ट कर देती है।
प्रबंधन
बुवाई से पहले
- गहरी जुताई तथा उचित फसल चक्र (ज्वार, अरहर, बाजरा) के साथ अन्यथा प्रदेशीय स्वीकृत रिफ्यूजिया के साथ खेती करनी चाहिए।
बुवाई के समय
- कीट प्रतिरोधी देशी किस्में अन्यथा प्रदेशीय स्वीकृत बीटी प्रजातियाँ लगानी चाहिए।
- जंगली बैगन व काँवा के सैट अंत: फसल पद्धति तथा किनारों पर मक्का एवं लोबिया मित्र कीटों को बढ़ावा व गेंदे की फूल फली छेदक के निरिक्षण के लिए लगानी चाहिए।
- संतुलित व संस्तुत मात्रा में खाद व पानी उपयोग करना चाहिए।
वनस्पति और पुष्पीकरण के समय
- ब्राकोन, ब्रीविकोर्निस या किलोनस ब्लैकब्रुनी या टेलिनोमस हिलियोपिडाई या कर्सिलिया इलोटा क्जाट या कम्पोलिटिस क्लोरिडे सूंडी परजीवियों का संरक्षण करनी चाहिए।
- कीटों के निगरानी हेतु 8 – 10 फेरोमोन ट्रैप फसल के उपर 1 – 2 फुट की ऊँचाई पर लगानी चाहिए।
- नीम के बीज का सत 5 प्रतिशत की दर से या नीम तेल 2 प्रतिशत की दर से अथवा प्रदेशीय स्वीकृत कीटनाशकों जैसे क्यूनालफ़ॉस 20 प्रतिशत एएफ @ 2 मि. ली./हे. कार्बेनिल 50 डब्ल्यूपी 400 – 500 मि. ली./ हे. क्लोरेट्रानिलीप्रोल 20 एससी @ 0.15 मिली./ ली. या प्रोफेनोफ़ॉस 50 ईसी @ 2 मिली./ली. का उपयोग करनी चाहिए।
स्त्रोत: राष्ट्रीय समेकित नाशीजीव प्रबंधन अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली