आज खाद्यानों की कमी के कारणों का विशलेषण करें तो हमें पता चलेगा कि फसलों में विभिन्न नाशक द्वारा लगभग 1,07,000 करोड़ रूपये के बराबर की वार्षिक हानि होती है। जिसमें अकेले खरपतवारों के कारण 37% हानि होती है जबकि कीड़ों से 22% व बीमारियों से 29% होती है। खरपतवार हमारी भूमि से पानी को भी अवशोषित कर लेते हैं, जिसका जहाँ 5 सिंचाई की आवश्यकता होती है वहां किसान को ज्यादा पानी देना पड़ता है, इसलिए समय पर खरपतवार नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है।
खरीफ फसलों का भारतीय कृषि व् देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाये रखने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। खरीफ फसलों की उत्पादकता 1458 कि.ग्रा./हे. है जो कि देश की रबी फसलों की उत्पादकता (2005 कि.ग्रा./हे.) से काफी पीछे है। खरीफ फसलों में महत्वपूर्ण फसलें धान, मक्का, मूंगफली, तिल, अरहर तथा सोयाबीन इत्यादि है। इन फसलों में धान मुख्य खाद्य फसल है जो कि पूरे देश में उगाई जाती है और विश्व भर में इसकी अग्रणी खपत है। खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में उत्पादकता में कमी के अनेक कारण है। इस मौसम में सिंचाई की कमी तथा कभी पानी की अधिकता का फसलों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा मौसम अधिक शुष्कता तथा तापमान में लगातार उतार-चढ़ाव खरपतवारों, कीड़ों तथा बीमारियों को न्यौता देता है। जिसके कारण फसलों को सुरक्षित रखना किसान के लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी हो जाती है|
खरीफ की फसलों में मुख्यतः तीन पराक्र के खरपतवार पाए जाते हैं|
घास वर्ग खरपतवारों की पत्तियों पतली और लंबी होती हैं तथा इन पत्तियों के अंदर समानांतर धारियां पाई जाती है। ये एक बीजीय पौधे होते है, जैसे-सांवा (इकाईनोक्लोवा कोलोनेम या इकाईनोक्लोवा कुसगेली) कोदों (इल्युसिन इंडिका) मकर (डैक्टाइलोक्टेनियम इजिप्टयम(, दूब (साइनोडोन डैक्टाइलोन), वनचरी (सोरगम हैल्पैन्स), गिनिया घास (पानिकम डिकोटोमाईफलोरम)|
इस प्रकार के खरपतवारों की पत्तियां प्रायः चौड़ी होती हैं तथा ये आधिकतर दो बीज पत्रीय पौधे होते हैं-साठी (द्रायन्थेमा पोर्टुलकास्द्रम(, कनकवा (कोमेलिना बैंगालेंसिस), कोंदरा ( डाइजेरा अर्वेसिंम) , भांगद (कैनाबिस सटाइव), कंटीली चौलाई( अमरेंथस स्पाईनोसम), मकोय (सोलेनम नाइग्रम) बड़ी दुधी (युफोर्बिया हिरुटा), हजार दाना (फाईल्थैस निरुरी) जल भंगरा (एक्लिप्टा एल्बा), पुनर्णवा ( बोरहेविया डिफयुजा) और गाजर घास (पार्थीनियम हिस्टोफोरस)।
इस समूह के खरपतवारों की पत्त्तियाँ लंबी तथा किनारे वाला ठोस होता है। जड़ों में गांठें (राइजोम) पायी जाती हैं, जो जड़ों में भोजन को इकट्ठा करके नये पौधों को जन्म देने में सहायता करते हैं जैसे (साइप्रस इरिया, साइप्रस रोंट्ड्स आदि)
खरीफ फसलों में रबी मौसम की फसलों की तुलना में खरपतवारों के प्रकोप से अधिक क्षति होती है। सामान्यतः खरपतवार फसलों को प्राप्त होने वाली 47% फास्फोरस, 50% पोटाश, 39% कैल्शियम और 34 मैग्नीशियम तक का उपयोग कर लेते हैं। इसके साथ-साथ खरपतवार फसलों के लिए नुकसानदायक रोगों और कीटों को भी आश्रय देकर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। इसके आलावा कुछ जहरीले खरपतवार जैसे गाजर घास (पार्थनियम) धतुरा, गोखरू, कांटेदार चौलाई आदि न केवल फार्म उत्पाद की गुणवत्ता को घटाते हैं बल्कि मनुष्यों ओर पशुओं के स्वास्थ्य के प्रति खतरा उत्पन्न करते हैं|
खरपतवारों द्वारा फसल में होने वाली क्षति की सीमा, फसल, मौसम तथा खरपतवारों के प्रकार तथा उनकी संख्या पर निर्भर करती है। अतः सभी फसलों में खरपतवारों की उपस्थिति के कारण समान क्षति नहीं होती। विभिन्न क्षेत्रों में शोध कार्य करने के बाद खरीफ मौसम की मुख्य फसलों में खरपतवारों के प्रकोप से औसतन उपज में होने वाले नुकसान (%) दिया गया है।
फसल |
क्रांतिक अवस्था |
उपज में हानि (%) |
धान(सीधी बोवाई) |
20-45 |
20-90 |
धान (रोपाई) |
30-45 |
15-40 |
मक्का |
15-45 |
40-60 |
अरहर |
15-60 |
20-40 |
मुंग |
15-30 |
25-50 |
उड़द |
15-30 |
30-50 |
सोयाबीन |
20-45 |
20-60 |
मूंगफली |
40-60 |
40-50 |
गन्ना |
30-120 |
20-30 |
भिन्डी |
15-30 |
40-50 |
तोरी-राई |
15-30 |
50-60 |
खरपतवारों के प्रकोप के कारण होने वाली हानि की सीमा कई बातों पर निर्भर करती है। फसलों में किसी भी अवस्था में खरपतवार नियंत्रण करना समान रूप से आर्थिक दृष्टि से लाभकारी नहीं होता है। इसीलिए प्रत्येक फसल के लिए खरपतवारों की उपस्थिति के कारण सर्वाधिक हानि होने की अवधि निर्धारित की गई है। इस अवस्था/अवधि को क्रांतिक अवस्था कहते हैं। अतः समय पर खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रत्येक फसल के लिए क्रांतिक अवस्था तथा खरपतवार नियंत्रण न करने पर होने वाली क्षति की सीमा भी दी गई है|
किसान खरपतवारों को अपनी फसलों में विभिन्न विधियों जैसे कर्षण, यांत्रिकी, रसायनों तथा विधि आदि का प्रयोग करके नियंत्रण कर सकते हैं। लेकिन पारम्परिक विधियों के द्वारा खरपतवारों का नियंत्रण करने पर लागत तथा समय अधिक लगता है। इसीलिए रसायनों के द्वारा खरपतवार जल्दी व प्रभावशाली ढंग से नियंत्रित किये जाते हैं और यह विधि आर्थिक दृष्टि से लाभकारी भी है। लेकिन शोध कार्यों द्वारा प्रमाणित कुछ निम्नलिखित सस्य क्रियाएँ भी खरपतवारों के प्रकोप को कम करने में लाभदायक पाई गई है|
इस तकनीक के अंतर्गत विभिन्न मोटाई की पारदर्शी पोलिथाईलिन शीट (50-100 मिलीमाईक्रोन) को समतल नमीयुक्त मिट्टी की ऊपरी सतह पर फसल की बोवाई के पहले मई के महीने में 4-6 सप्ताह तक फैलाकर मिट्टी की ऊपरी सतह का तापमान बाह्य तापमान की तुलना में 8-120 से. ज्यादा किया जाता है। इससे मिट्टी की ऊपरी सतह में जमा खरपतवारों की बीजों के अंकुरण होने की शक्ति कम या निष्क्रिय हो जाती है। इसके आलावा कुछ हानिकारक कीड़े, सूत्रकृमि अन्य नाशक भी नष्ट हो जाते हैं। यह तकनीक पौधशाला में पौध तैयार करते समय खरपतवारों को नियंत्रित करने में बहुत ही प्रभावशाली है।
इस तकनीक में खेत में केवल बोवाई के लिए ही विशेष मशीन (जीरो टिलेज मशीन) द्वारा खाद तथा बीज को डाला जाता है। उससे पहले खेत में कोई क्रिया नहीं की जाती है। यह तकनीक गेहूँ की फसल में प्रयोग की जाती है। तकनीक से किसानों को लगभग 2500 रूपये प्रति हेक्टेयर कम लागत आई है और इससे गुल्ली डंडा नामक खरपतवार की संख्या कम होती है|
खरीफ मौसम की कुछ फसलों में प्रयोग किये जाने वाली शाकनाशी/रसायनों की विस्तृत जानकारी दी गई है। रसायनों में से फसल के अनुसार किसी एक रसायन का चुनाव करके खरपतवारों को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है|
मुख्य फसलों में खरपतवारों नियंत्रण के लिए सिफारिश किये गये रसायनों की विस्तृत जानकारी
फसल |
रसायन का तकनीकी नाम |
मात्रा (ग्राम सक्रिय तत्व) हेक्टेयर |
प्रयोग का समय |
धान (नर्सरी) |
प्रोटिलाक्लोर |
|
बोवाई के 1 दिन बाद |
धान(सीधी बोवाई) |
ब्युटालाक्लोर |
|
रोपाई/बोवाई के एक से दो दिन के अंदर |
धान (रोपाई) |
प्रोटिलाक्लोर |
|
रोपाई/बोवाई के एक से दो दिन के अंदर |
|
पाईराजो स्लोयुरोन |
|
10 ऐ 20 दिन पर |
मक्का |
एट्राजीन +पैंडीमिथालिन |
|
बोवाई के 1 दिन बाद |
गन्ना |
एट्राजीन |
|
बोवाई के 1 दिन बाद |
सोयाबीन |
क्लोरीमूरोन |
|
बोवाई के 15-20 दिन अंदर |
मूंगफली/भिन्डी/अरहर/ मुंग/उड़द/तोरी/राई |
पैंडीमिथालिन |
|
बोवाई के 1 दिन बाद |
कुछ खरपतवारनाशियों की खरपतवारों को नियंत्रण करने की प्रभावशीलता का आंकलन करने से पता चला कि धान की फसल में नये शाकनाशी पाई राजो सलफयूरान इथईल की दो मात्राओं (20 और 25 ग्राम प्रति हेक्टेयर) का प्रभाव सीधी बोवाई द्वारा तथा रोपित विधि द्वारा लगाये गये धान में देखा गया। शोध कार्य में पाया गया है कि इस शाकनाशी का धान की रोपाई या बोवाई के 10-20 दिन के अंदर 20 से 25 ग्राम मात्रा/हेक्टेयर प्रयोग करके सभी खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है|
धान की फसल को उगाने तथा खरपतवार नियंत्रण के लिए विभिन्न उपचारों का खरपतवारों तथा धान की पैदावार पर प्रभाव
उपचार |
खरपतवारों की संख्या (प्रति वर्ग मी.) |
धन के पौधों की लंबाई (से.मी.) |
दोनों की उपज (टन.हेक्टेयर |
फसल लगाने के तरीके |
|
|
|
धान की सीधी बोवाई द्वारा |
52 |
96 |
3.38 |
धान रोपित विधि द्वारा |
34 |
106 |
3.81 |
एल.एस.डी |
2.0 |
4.61 |
0.37 |
पाईराजो सल्फ्यूरान इथाइल 20 ग्राम/हेक्टेयर बोवाई के 10 दिन बाद |
40 |
95 |
3.37 |
पाईराजो सल्फ्यूरान इथाइल 25 ग्राम/हेक्टेयर बोवाई के 10 दिन बाद |
45 |
97 |
4.09 |
पाईराजो सल्फ्यूरान इथाइल 25 ग्राम/हेक्टेयर बोवाई के 20 दिन बाद |
35 |
103 |
4.19 |
पाईराजो सल्फ्यूरान इथाइल 25 ग्राम/हेक्टेयर बोवाई के 20 दिन बाद |
31 |
107 |
3.68 |
ब्यूटाकलोर 31(1000 ग्राम हे48क्टेयर बोवाई और रोपाई के तुरंत बाद) |
48 |
98 |
1.96 |
खतपतवार ग्रसित |
84 |
99 |
|
खरपतवार नियंत्रण (2 निराई/गुड़ाई) |
24 |
109 |
4.41 |
एल.एस.डी |
2.86 |
2.51 |
0.27 |
स्त्रोत एवं सामग्रीदाता: कृषि विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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