1. संग्रहण से पहले तालाब को धूप में सुखाएँ व तैयार करें
मत्स्यपालन के लिए तालाब तैयार करना पहला अनिवार्य कदम है। जमीन की गंदगी को दूर करने के लिए टिलिंग, जुताई एवं धूप में सुखायें। इसके बाद, कीट तथा परभक्षी जीव हटाएँ। तालाब के जल तथा मिट्टी में PH तथा पोषकों की एकदम उचित सान्द्रता को बनाये रखने के लिए चूना, कार्बनिक खाद तथा अकार्बनिक खाद डालें।
2. गाँव की सुविधाओं तथा मत्स्यपालन के बीच प्रतिरोधक क्षेत्र कायम करना
मछली पकड़ने, लाने व ले जाने के स्थलों तथा अन्य लोक-सुविधाओं तक के लोगों की आवाजाही को सुलभ बनाकर, झींगे के दो खेतों के बीच उचित दूरी सुनिश्चित की जा सकती है। दो छोटे खेतों के बीच कम-से-कम 20 मीटर की दूरी रखा जाना चाहिए। बड़े खेतों के लिए, यह दूरी 100 से 150 मीटर तक होनी चाहिए। इसके अलावा, खेतों तक लोगों के पहुँचने के लिए वहाँ खाली स्थान की व्यवस्था की जानी चाहिए।
3. अपशिष्ट स्थिरीकरण तालाबों एवं बाहरी नहरों में, समुद्री शैवाल, सदाबहार पौधे (मैंग्रोव) और सीपी उगाना
झींगे के खेतों से दूषित पानी की निकासी स्वच्छ जल में करने के बजाय उसका उपयोग द्वितीयक खेती विशेष रूप से मसेल, समुद्री घास एवं फिन फिशर बढ़ाने के लिए किया जाना चाहिए। इससे पानी की गुणवत्ता बढ़ाने, कार्बनिक भार को कम करने और किसानों को अतिरिक्त फसल प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
4. नियमित अंतराल पर मिट्टी तथा व्यर्थ जल की गुणवत्ता की जाँच करें
जल की गुणवत्ता की यथेष्ट स्थिति बनाये रखने के लिए नियमित अंतराल पर मिट्टी तथा जल के मानदण्डों की नियमित जाँच की जानी चाहिए। पानी बदलते समय, पानी की गुणवत्ता में बहुत अधिक बदलाव न हों, इस बात के लिए विशेष सावधानी बरतें, क्योंकि इससे जीवों पर ज़ोर पड़ता है। घुलनशील ऑक्सीजन की सान्द्रता सुबह जल्दी मापें। यह सुनिश्चित करें कि जल स्रोत प्रदूषण मुक्त हों।
5. अण्डों से लार्वा निकलने के बाद अच्छी गुणवत्ता के झींगे का उपयोयग करें
केवल पंजीकृत अण्डा प्रदाय केन्द्र से ही स्वस्थ एवं रोग-मुक्त बीज का उपयोग करें। बीजों के स्वास्थ्य की स्थिति जाँचने के लिए पीसीआर जैसी मानक विधियों का ही पालन करें। प्राकृतिक स्रोतों से इकट्ठा किये गये बीज का उपयोग नहीं करें। ये खुले जल में प्रजातियों की विविधता को प्रभावित करेंगे।
6. परा लार्वा को कम घनत्व पर भण्डारण करें
तालाब में प्रदूषण उत्पन्न होने से भण्डारण के घनत्व पर प्रभाव पड़ता है। भण्डारण के अधिक घनत्व से, बढ़ाये जा रहे जीवों पर भी ज़ोर पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। हमेशा न्यूनतम घनत्व वाले भण्डारण की सिफारिश की जाती है। इसके अंतर्गत पारम्परिक तालाब में 6 प्रति वर्गमीटर एवं बडे तालाबों में 10 प्रति वर्ग मीटर के घनत्व सीमा को आदर्श माना जाता है।
1. मैंग्रोव के क्षेत्र में झींगे का खेत नहीं बनाएँ
मैंग्रोव, मछलियों की अधिक महत्त्वपूर्ण किस्मों के फलने-फूलने के जगह होते हैं। वे मिट्टी तथा उस स्थान को पोषक तत्त्व बाँधने में मदद करते हैं। वे चक्रवात निरोधक का भी कार्य करते हैं। वे कई प्रदूषक तत्त्वों को रोकने के लिए प्राकृतिक जैविक फिल्टर भी होते हैं। किसी मैंग्रोव के क्षेत्र में कभी भी झींगा पालने नहीं करें क्योंकि यह स्थानीय समुदाय के लिए भविष्य में कई समस्याएँ पैदा कर सकता है।
2. प्रतिबंधित दवा,रसायनों एवं एंटीबायोटिक्स का उपयोग न करें
संतुलित पोषण तथा तालाब के अच्छे प्रबन्ध द्वारा झींगे को स्वस्थ रखें तथा बीमारियों से बचाएँ। यह इस बात से कहीं बेहतर है कि पहले लापरवाही कर बीमारी होने दें, फिर दवाइयों, रसायनों एवं एंटीबायोटिक्स द्वारा उपचार करें। इनमें से कुछ पदार्थ, जीव के माँस में इकट्ठा हो सकती है तथा खाने वाले के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकती हैं। झींगे की खेती में एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल अनिवार्य रूप से प्रतिबंधित है। उसका उपयोग किसी भी परिस्थिति में नहीं करें।
3. झींगे के खेत में भण्डारण के लिए प्राकृतिक परा - लार्वा इकट्ठा नहीं करें
जंगल से इकट्ठा किये गये बीजों का झींगे के तालाबों में भण्डारण नहीं करें। जंगली बीज का संग्रहण, खुले जल में फिन तथा शेलफिश की जैव-विविधता को प्रभावित करता है। प्राकृतिक बीज, बीमारी का वाहक भी हो सकता है। इससे अण्डवृद्धि के स्थान पर इकट्ठे किये गये स्वस्थ बीज संक्रमित हो सकते हैं।
4. कृषि कार्य वाले खेत को झींगे के खेत में परिवर्तित नहीं करें
कृषि कार्य वाले क्षेत्र का उपयोग झींगे की खेती के लिए नहीं करें- यह प्रतिबंधित है। तटीय क्षेत्र प्रबन्ध योजना बनाते समय, विभिन्न उद्देश्यों के लिए उचित भूमि की पहचान के लिए विभिन्न सर्वेक्षण किये जाने चाहिए। केवल किनारे की जमीन जो कृषि कार्य के लिए उपयुक्त न हों, झींगे की खेती के लिए आवंटित की जानी चाहिए।
5. झींगे की खेती के लिए भूजल का इस्तेमाल नहीं करें
तटीय क्षेत्रों में भूजल मूल्यवान स्रोत है। इसे कभी भी झींगे की खेती के लिए नहीं निकालें- यह कड़ाई से प्रतिबंधित है। झींगे के खेतों से प्रदूषण तथा जमीन व पेयजल के स्रोतों का क्षारपन उत्पन्न होने से भी बचाया जाना चाहिए। साथ ही, अनिवार्य रूप से कृषि भूमि, गाँव और स्वच्छ जल के कुँओं के बीच कुछ खाली स्थान रखें।
6. तालाबों का दूषित जल कभी भी सीधे खुले जल में नहीं छोडें
झींगे के खेतों के दूषित जल को खाड़ी या नदी के मुहाने से समुद्र में छोड़ने से पहले उपचारित करें। झींगे के खेतों में दूषित पानी की गुणवत्ता के लिए बनाये गये मानकों का पालन किया जाना चाहिए। खुले जल की गन्दगी को रोकने के लिए बनाये गये मानकों की नियमित निगरानी की जानी चाहिए। बड़े खेत (50 हेक्टेयर से अधिक) में प्रवाह उपचार प्रणाली स्थापित किया जाना जरूरी है।
स्रोत: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय, काँके, राँची- 834006
केन्द्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधना संस्थान, कोचीन
सेंट्रल इंस्टिट्यूट ऑफ फ्रेशवॉटर एक्वाकल्चर, भुवनेश्वर, उड़ीसा
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस भाग में अधिक फसलोत्पादन के लिए लवणग्रस्त मृदा स...
इस भाग में वैशाली जिले की राजापाकड़ प्रखंड की महिल...
इस पृष्ठ में अनुसूचित जाति कल्याण से सम्बंधित अनुस...
इस पृष्ठ में अदरक की वैज्ञानिक खेती की विस्तृत जान...