कतला एक सबसे तेज बढ़ने वाली मछली है यह गंगा नदीय तट की प्रमुख प्रजाति है। भारत में इसका फैलाव आंध्रप्रदेश की गोदावरी नदीं तथा कृष्णा व कावेरी नदियों तक है। भारत में असम, बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश में सामान्यतया कतला के नाम से, उड़ीसा में भाखुर, पंजाब में थरला, आंध्र में बीचा, मद्रास मे थोथा के नाम से जानी जाती है।
शरीर गहरा, उत्कृष्ट सिर, पेट की अपेक्षा पीठ पर अधिक उभार, सिर बड़ा, मुंह चैड़ा तथा उपर की ओर मुड़ा हुआ, पेट ओंठ, शरीर ऊपरी ओर से धूसर तथा पाष्र्व व पेट रूपहला तथा सुनहरा, पंख काले होते हैं।
यह मुख्यतः जल के सतह से अपना भोजन प्राप्त करती है। जन्तु प्लवक इसका प्रमुख भोजन है। 10 मिली मीटर की कतला (फाई) केवल युनीसेलुलर, एलगी, प्रोटोजोअन, रोटीफर खाती है तथा 10 से 16.5 मिली मीटर की फ्राई मुख्य रूप से जन्तुप्लवक खाती है, लेकिन इसके भोजन में यदाकदा कीड़ों के लार्वे, सूक्ष्म शैवाल तथा जलीय धास पात एवं सड़ी गली वनस्पति के छाटे टुकड़ों का भी समावेश हाते है।
लंबाई 1.8 मीटर व वजन 60 किलो ग्राम।
कतला मछली 3 वर्ष में लैगिकं परिपक्वता प्राप्त कर लेती है। मादा मछली में मार्च माह से तथा नर में अप्रैल माह से परिपक्वता प्रारंभ होकर जून माह तक पूर्ण परिपक्व हो जाते है। यह प्राकृतिक नदीय वातावरण में प्रजनन करती है। वर्षा ऋतु इसका मुख्य प्रजनन काल है।
इसकी अण्ड जनन क्षमता 80,000 से 1,50,000 अण्डे प्रतिकिलो ग्राम होती है, सामान्यतः कतला मछली में 1.25 लाख प्रति किलो ग्राम अण्डे देने की क्षमता होती है। कतला के अण्डे गोलाकार, पारदर्षी हल्के लाल रंग के लगभग 2 से 2.5 मि.मी. ब्यास के जा निषेचिन होने पर पानी में फलू कर 4.4 से 5 मि.मी. तक हो जाते है, हेचिंग होने पर हेचलिंग 4 से 5 मि.मी. लंबाई के पारदर्शी होते है।
भारतीय प्रमुख शफर मछलियो मे कतला मछली शीध्र बढ़ने वाली मछली है, सघन मत्स्य पालन में इसका महत्वपूर्ण स्थान है, तथा प्रदेश के जलाषयो एवं छोटे तालाबों मे पालने योग्य है। एक वर्ष के पालन में यह 1 से 1.5 किलोग्राम तक वजन की हो जाती है। यह खाने में अत्यंत स्वादिष्ट तथा बाज़ारों में ऊँचे दाम पर बिकती है।
स्त्रोत: कृषि, सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 1/23/2023
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