महिला अतिप्राचीन काल से कृषि एवं संबंधित कार्यकलापों में केन्द्रीय भूमिका निभा रही है। खाद्य उत्पादन, संसाधन, स्थानीय जनन द्रव्य का परिरक्षण और सामान्यत: अपने परिवारों की खाद्य एवं आहार आवश्यकता और जीविका में उनकी भूमिका को प्रमाणित एवं मान्यता दी गई है। इस के साथ ही महिला मात्सियकी में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जबकि मत्स्यन बड़े पैमाने में पुरुष प्रदान है। पश्च प्रग्रहण कार्यकलापों में महिलाओं के विशेष सहयोग को देखा गया है। ज्यादातर मत्स्यन समुदायों में अवतरण केन्द्रों में मत्स्य अवतरण के बाद, मछुवामहिलाएं भिन्न कार्यकलाप जैसे छंटाई, भंडारण, विपणन, अतिशिकार आदि का संसाधन को अपने हाथ में लेती है। कुछ देशों में महिलाएं भी प्रग्रहण में सक्रिय है सामान्यत: देशीया जालों से उथल जल में हाथ से चुनाना या मत्स्यन करना। भारत में हम देख सकते है महिलाएं द्वारा झींगा फ्राई एवं कवच मत्स्य का एकत्र करना। भारत में यंत्रीकृत एवं मोटरीकृत मत्स्यन में महिलाओं का शामिल होना नगण्य है। मुख्यत: वे छोटे पैमाने पर मत्स्यन जैसे मोलस्क का एकत्रण जैसे तटीय क्षेत्र में खंड एवं क्रस्टोशियन्स। भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में, महिला नदी, झील, जलाशय और नलों आदि से छोटे डोंगियों की प्रयुक्ति से मत्स्यों के शिकार में शामिल है। वे मत्स्यन के समय डोंगियों के चालक में भी पुरुष की सहायता करती है। मछुवा महिला चर्मावृत्त नौका में मत्स्यन में सहायता करती। जलकृषि में महिला की भूमिका सुप्रसिद्ध है। कुछ देशों में छोटे पैमाने के मत्स्यन जहाजों का परिचालन महिलाओं द्वारा किया जाता हैं। एफ.ए.ओ (2010) आकलन किया कि मत्स्यन से संबंधित कार्यकलापों में पुरुष से ज्यादा महिलाएं शामिल है।
भारत में, मात्स्यिकी क्षेत्र को अधिक महत्व इस तथ्य से दिया जाता है कि मत्स्य एवं मत्स्यन उत्पादन निर्यात अर्जन के मुख्य सहायक है और यह जनसंख्या के आहार का एक मुख्य हिस्सा बन रहा है। यह मत्स्यन परिवार को प्रोटीन का महत्वपूर्ण स्त्रोत भी है। यह मछुवारों के लिए रोजगार एवं आय का संभवित स्त्रोत भी हैं। भारत में मछुवा महिला मत्स्यन परिचालन में सक्रिय रूप में शामिल नहीं है लेकिन उनका योगदान पूर्व एवं पश्च प्रग्रहण परिचालन में सुस्पष्ट रूप से महत्वपूर्ण है। वे पूर्व-प्रग्रहण परिचालन में करीब 25 निर्यात बाजार में 60% और घरेलू विपणन में 40% का योगदान देते हैं। 1.2 मिलियन कार्यदल में करीब 0.5 मिलियन महिला समुद्री मात्स्यिकी के पूर्व एवं पश्च प्रग्रहण में नियोजित है (देहदराय, 2005) ।
जबकि यह सेक्टर परम्परागत लघु उद्योग से मोटरीकृत में परिवर्तन होने के कारण, इस सेक्टर में महिलाएं अपने परम्परागत रोजगार के कुछ अवसरों को खो रहे है। अवतरण बंदरगाह एवं अवतरण केन्द्रों में केंद्रीकृत हुए है और यह मत्स्यन गाँवों से दूर में होने के कारण, मछुवामहिला की पहुंच से दूर होते है। इस के अलावा महिलाएं अन्य संसाधनों तक पहुंच जैसे पूंजी, अपने खुद में उद्यम की पहल और अपने रोजगार अवसरों को विविधता दृष्टिकोण से भी प्रतिकूल परिस्थिति को रखती है। डी, एफ आर पी.पी एच एफ पी, 1998 । घरेलू बाजार में उनकी प्रधानता जारी है लेकिन यह परिचालन का स्तर छोटा होने के कारण प्रमुख सौदे ज्यादातर पुरुषों द्वारा संचालित किए जाते है।
अत: सकारात्मक रूप में अपने परिवार एवं समुदाय के लिए उनके योगदान हेतु मछुवामहिलाओं के लिए वैकल्पिक जीविका विकल्प की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। यह प्रपत्र इस क्षेत्र के भीतर मछुवामहिला को प्राप्त कुछ विकल्पों की चर्चा करता है।
जाल निर्माण के लिए सांश्लेषित रस्सी एवं जाल निर्माण का यंत्रीकरण के आगमन से पहले परम्परागत रूप में महिला जाल निर्माण एवं मरम्मत में सक्रिय भूमिका निभाई। महिला आज भी जाल मरम्मत या निर्माण प्रक्रिया में व्यक्तिगत या समूहों में भाग ले सकती है। निश्चित प्रकार के जाल जैसे फंदे एवं छोटे क्लोम जालों की तैयारी महिलाओं द्वारा आसानी से की जाती है। महिला मत्स्यन के लिए प्रयुक्त यान एवं गिआर दोनों के परीक्षण एवं मरम्मत में भी भाग ले सकती है।
मछुवामहिला पश्च प्रग्रहण प्रक्रियों जैसे छंटना, बर्फन, मत्स्यों का श्रेणीकरण में सक्रिय रूप में शामिल है। महिला समुद्री खाद्य संयंत्र के निचले स्तर में संपूर्ण कार्यदल निर्माण से निर्यात उन्मुक्त समुद्री खाद्य संसाधन में भी महिला प्रबल है।
समुदाय स्तर संसाधन जो मछुवामहिला कर रही है यह कई ज्यादातर पश्तों द्वारा सौंपी परम्परागत ज्ञान आधारित है। प्रचुर मत्स्य को सूर्य में शुष्कित या बाद में विपणन के लिए अभिसाधित की जाती है। संसाधन के क्षेत्र में प्रौद्योगिकियाँ उन्नत हुई है और मछुवामहिला के रोजगार एवं आय प्रजनन के लिए उपयुक्त का हस्तान्तरण किया जाना चाहिए। मछुवा महिला को वैज्ञानिक संसाधन, गुणता नियंत्रण और मत्स्य से मूल्यवर्धित उत्पादों का उत्पादन के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है। यह प्रौद्योगिकियों सामान्य मत्स्य अचार, मत्स्य कटलेट, मत्स्य फिंगर, मत्स्य बॉल, मत्स्य बर्गर, मत्स्य वेफर, मत्स्य चाटनी चूर्ण, सूप पाउडर और शुष्कित मत्स्यन उत्पाद की तैयारी और अधिक सुविज्ञ जैसे पाकने के लिए तैयार एवं खाने के लिए तैयार का उत्पादन हो सकते हैं कुछ रद्दी मत्स्य एवं झींगा ट्राल उपपकड़ जातियों स्थानीय बाजार में अच्छे कीमत को प्राप्त नहीं करते और इन्हें कीमा एवं अन्य कीमा आधारित मूल्यवर्धित उत्पादों की तैयारी के लिए प्रभावी रूप से प्रयुक्त किया जा सकता है। भिन्न उत्पादों के साथ मत्स्य स्टॉल एवं आउटलेट की स्थापना एक अच्छा उपलब्ध विकल्प हो सकता है, लेकिन उपयुक्त स्तर का निवेश एवं सहायता की आवश्यकता होती है।
तथापि ऐसे किसी यूनिट की आर्थिक व्यवहार्यता का उत्तरदायित्व के साथ उसका प्रबंधन दोनों के कार्यकलापों पर आधारित होता है। किसी क्रियाकलाप नियोजित से पहले उत्पाद की मांग एवं कच्ची सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित करने की अति आवश्यकता है। प्रणाली बद्ध एवं निरंतर बाजार अनुसंधान के साथ एक उचित विपणन नेटवर्क को स्थापित किया जाना चाहिए। यह अति आवश्यक है उत्पाद की नियमित आपूर्ति उचित गुणता जाँच को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। उचित सम्पत्ति अनुरक्षित किया जाना और पेशेवर प्रबंधन अनिवार्य है।
मत्स्य परीक्षण की सबसे पुरानी एवं बिना खर्च की पद्धति शुष्कन है। जिस का व्यवहार अति प्राचीन काल से मत्स्य शिकार की प्रबलता में प्रयुक्त किया जाता है। मुख्यत: शुष्कन के लिए अल्पवसा मत्स्यों को प्राथमिकता दी जाती है। भारत के ज्यादातर तटीय राज्यों में शुष्क मत्स्य उत्पादन एवं विपणन में मुख्यत: महिलाएं कार्यरत होती हैं। परम्परागत रूप से समुद्रतट शुष्कन सभी प्रकार के मत्स्यों के लिए व्यवहारित किया जाता है। इस समय उभारे प्लटफ़ार्म, रैक्स या यंत्रीकृत शुष्कक की प्रयुक्ति द्वारा स्वास्थ्यकर शुष्कन किया जा सकता है। महिलाएं अच्छी गुणता के उत्पाद के शुष्क मत्स्य उत्पादन के लिए स्वास्थ्यकर एवं प्रभावी पद्धतियों की प्रयुक्ति कर सकती है। यह उच्च कीमत को प्राप्त कर सकता है।
समुद्री मत्स्य एवं कवच मत्स्य का विपणन महिलाओं का प्रभाव क्षेत्र था, यह कोंकन (नीनावे एवं दीवन 2005), आंध्रा प्रदेश, तमिलनाडू,केरल एवं अन्य तटीय राज्य जैसे क्षेत्रों में आज भी जारी है। स्वच्छ जल क्षेत्र में, विपणन पुरुषों द्वारा बड़ी मात्रा में किया जाता है। घर-घर जाकर बेचना सामान्य पद्धति है उसके बाद रोड के किनारे और दलाल के रूप में बिक्री करना (धावन एवं कौर, 2005) । मत्स्य अवतरण केन्द्रों में कुछ महिलाएं नीलामकर्ता के रूप कार्य करते और अपने मत्स्य को दूसरे परचूनिया या अन्य सुपर मर्केट या एनी दलाल को बेचते है। यह महिलाएं बड़ी मात्रा में यह कार्यकलाप को करने के लिए ज्यादातर संपदा की कमी की बाधा को रखते हैं।
जलकृषि मत्स्य एवं अन्य जलीय जीवों की खेती है जो सीधे जल की उत्पादकता की वृद्धि करती। समुद्री शिकार अवतरण में स्थिरता से, अत: स्थालीय शिकार और अत: स्थलीय एवं तटीय जलकृषि और कुछ हद तक मेरीकल्चर से मत्स्य उत्पादन को वृद्धि करने की गुंजाइश है। तमिलनाडू एवं आंध्रा प्रदेश जैसे राज्यों में झींगा खेती में महिला पहले से ही मजदूर दल के रूप में योगदान दे रही है और तालाब की तैयारी बीज एकत्रण, विजलन और प्रग्रहण के दौरान झींगों को हाथ से चुनना (गोपालकृष्णन, 1996) में सक्रियता से शामिल हो रही है। महिलाओं को तालाब जैसे जल निकायों में अत: स्थलीय जलकृषि करने के लिए प्रोत्याहित किया जाना चाहिए। जलकृषि के लिए विशेष कार्यकलाप है जैसे नए प्रौद्योगिकियों द्वारा बीज उत्पादन जैसे प्रेरित प्रजनन जहां महिलाओं को उपयुक्त प्रशिक्षण दिया जा सकता है और बीज उत्पादन केन्द्रों को प्रारंभ किया जा सकता है। संभावित रोजगार अवसर उपलब्ध करने जलकृषि में अच्छी गुणता के बीजों की उपलब्धता एक प्रमुख बाधा है। तटीय जलकृषि में झींगा व्यापक रूप में खेती किया जाता है। इस उद्योग की मांग को पूरा करने के लिए झींगा स्फुटनशालाओं का प्रारंभ करने की गुंजाइश काफी ज्यादा है। मछुवा महिलाओं को स्फुटनशालाओं के परिचालन एवं अनुरक्षण में अल्पतम कुशलता प्रदान की जा सकती है और यह रोजगार एवं आय का व्यवहार्य स्त्रोत हो सकता है।
स्वच्छ जल मत्स्य जैसे कार्प (शफरी) खेती के लिए अच्छी संभावना रखते और मछुवा महिला को रोजगार अवसर उपलब्ध करा सकते। मिश्र पालन एवं बहु पालन छोटे घर के पिछवडे के तालाब या टैंक में भी व्यवहार किया जा सकता है। यह संपूर्ण वर्ष में आय उपलब्ध करा सकता है। वे वायु श्वसन मत्स्यों जैसे सिंगी, मगुर और मुराल्स का पालन भी कर सकते है, यह प्रतिकूल भौतिक स्थिति जैसे अल्प जल एवं कम आहार क उपलब्धता में भी जीवित रह सकते है। इन्हें बाजार में जीवित स्थिति में बेचा जा सकता है। खुला समुद्र मेरीकल्चर का भी व्यवहार किया जा सकता है लेकिन इसके लिए उच्च स्तर की प्रौद्योगिकी एवं निवेश की आवश्यकता होती है।
मत्स्य खेती को जलकृषि, मवेशी (गाय-बैल) मुर्गा,-मुर्गी, सूअर एवं बत्तक पालन के साथ समेकित किया जा सकता है। यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य एवं उपलब्ध स्थान एवं जल की प्रभावी प्रयुक्ति पाया गया। इसे उत्तर पूर्वी राज्यों में व्यवहार किया जाता है और केरल एवं अन्य राज्यों में लोकप्रिय भी है। यह ज्यादातर स्थानों में धीरे से समाप्त हो रहा है लेकिन आज भी व्यवहार्य रोजगार विकल्प को रखता है। यह आय के साथ-साथ परिवार का सामान्य कल्याण उपलब्ध करता है। प्रेरित प्रजनन और बीज उत्पादन, तालाब की तैयारी, खाद बनाना, जंगली बीजों की पहचान, भंडार और चारा देने का उचित प्रशिक्षण मत्स्य खेती में उनकी कुशलता के विकास के लिए सहायक हो सकती है। कई एशिया देश, भारत में भी चावल मत्स्य खेती की जाती है। झींगा/झींगी खेती के साथ धान खेती को समेकित करने से धान से अतिरिक्त आय उपलब्ध हो सकता है।
अलंकारी मत्स्य खेती अधिक संभवना को रखती क्योंकि यह घरेलू एवं निर्यात बाजार दोनों में अधिक मांग रखते हैं। आज विश्व बाजार 25 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है जिसमें भारत का हिस्सा बहुत ही अल्प है। जबकि भारत में सौओ विदेशज एवं देशीय अलंकारी मत्स्य किस्मों से धन्य है जिसे विमोहित स्थिति के अधीन उत्पन्न किया जा सकता है। भारत में ज्यादातर उत्पादन घरेलू बाजार को जाता है। प्रजनन की दिक्कत का स्तर अल्प से उच्च हो सकता है। लेकिन ज्यादातर विदेशज जातियों को आसानी से उत्पन्न किया जा सकता है। बहुत छोटे पैमाने में इस उद्यम को घर के पिछवडे के उद्यम के रूप में प्रारंभ किया जा सकता है। इसके प्रमुख फायदे हैं कि यह कार्यकलाप महिला अनुकूल है। प्रजनन तकनीक, चारा देना जननशक्ति, जल विनियम दर, विपणन आदि क्षेत्र में क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। अगर बड़े बाजारों तक व्यापार फैलाने और परिचालन के स्तर की वृद्धि के लिए उचित संगरोध के साथ गुणता का अनुरक्षण अनिवार्य है।
मोती बहुत कीमती हैं और यह संपूर्ण विश्व में अत्यधिक मांग रखते है। समुद्री एवं स्वच्छजल दोनों शुक्तियाँ मोती का उत्पन्न करते है। मोती उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी केन्द्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, कोचिन द्वारा विकसित की गई। समुद्री शुक्तियाँ जैसे पीक्टडा फुकटा, पी. मरगरी टीफेरा अधिक आर्थिक महत्व को रखते क्योंकि यह उच्च मूल्य की मोतियों को उत्पन्न करते। कुछ महत्वपूर्ण स्वच्छ जल मोती जातियाँ लामेलीडेंस मरजीनलीस, एल. कोरीएनस और पेरेसिया कोरुगठा शामिल है। मोती खेती एवं मोती उत्पादन उच्च कौशल का कार्यकलाप है क्योंकि शुक्तियाँ का आरोपण एवं पश्च परिचालन के दौरान अत्यधिक सावधानी ली जाती है। मोती उत्पादन में कौशल विकास के लिए महिला की अंतर्निष्ठ सहनशीलता को काम में लगाया जा सकता है।
हरा मसल पेरना विरीडीस, भूरा मसल पी. इंडिका और आप खाद्य शुक्ति जैसे क्रसोसट्रीया मद्रासेन्सीस पत्तरी तटीय क्षेत्रों में फ़ैले हैं। इसे लागत प्रभावी रूप में नदीमुखों में खेती की जा सकती है। इसकी प्रौद्योकिगी बहुत सरल है और प्रकृतिक संपदा की प्रयुक्ति द्वारा कम कीमती है। मछुवा महिला स्वसहायता समूह अल्पतम निवेश से इसे प्रारंभ कर सकते है। विभाग ने खाद्य शुक्ति की खेती के लिए एक लागत प्रभावी पद्धति ‘राक एंड रन’ को विकसित किया। यह केरल एवं तमिलनाडू के उथल नदी मुख, समुद्रतल और पश्चजल के लिए उपयुक्त है (पिल्ले, 2007) ।
समुद्री शैवाल जैसे ग्रसीलशीय जाति का भी पालन किया जा सकता है। तमिलनाडू में कई मछुवा घर समुद्रीशैवाल के पालन में शामिल है और उनके उत्पन्न से अच्छी प्राप्ति कर रहे है। रोपण के अधीन अन्य जातियां है केल्प, लामीनरीय जाति, जिसे खाद्य, उर्वरक एवं दवाओं के रूप में प्रयुक्त किया जाता है (राज्यलक्ष्मी, 2005) ।
समुद्री एवं नदीमुख केकड़ा दोनों के लिए मांग में वृद्धि से, केकड़ा स्थूलकरण एक उभरता जलकृषि उद्यम हो सकता है। झींगा खेती की तुलना में कम समय एवं पूंजी निवेश की आवश्यकता होने के कारण, इसे मछुवामहिला समूह द्वारा किया जा सकता है। जंगल से बीजों को एकत्रित और जल निकायों में नियत कोष या पिंजरों में पालित किया जा सकता है। कीचड़ केकड़ा (स्केला सेरेटा, एस. ट्रान्कूयूबरीका) और समुद्री केकड़ों (पोरटूमस पेलजीक्स, पी. सनगुएनोलेन्ट्स) का घरेलू एवं निर्यात बाजार दोनों में अधिक मांग है क्योंकि स्वादिष्ठ रूचि पोषणिक होते और जीवित वस्तु के रूप में निर्यात किया जा सकता है। केकड़ा स्थूलकरण के लिए तुलनात्मक रूप में अवसंरचना की लागत अल्प होती और अच्छा लाभ होता है। झींगा खेती के लिए आदर्श नहीं होने पर इसे केकड़ा खेती/स्थूलकरण के लिए प्रभावी रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है।
पिंजरा पालन एक उभरती प्रौद्योगिकी है। यह सामाजिक फायदा रखती जिसमें भूमिहीन जनता को पिंजरा जलकृषि में वास एवं रोजगार प्राप्त कर सकते (कोस्टा पीरस, 2000) । बड़े स्तर का पिंजरा पालन अधिक पूंजी एवं मजदूरी रखता और मछुवा महिला के लिए आदर्श नहीं होता। छोटे स्तर का पिंजरा जलकृषि गरीब मछुवामहिला के लिए यह एक अपनाएं जानेवाली प्रौद्योगिकी है। केरल में करीमीन को पिंजरों में पालन करने का प्रयास किया गया और इसे भिन्न उष्णकटिबंधी रखने वाले भिन्न मत्स्य जातियों के साथ समेकित किया जा सकता है।
अन्य ग्रामीण कृषि आधारित उद्योगों का विविधीकरण मत्स्य आधारित उद्योगों के अलावा, मछुवामहिलाएं अन्य-कृषि आधारित कार्यकलापों को भी उत्पन्न कर सकती है। तटीय क्षेत्र नारियल ताड़ से भरे हुए है और नारियल आधारित उत्पादों को उत्पन्न एवं विपणित किया जा सकता है। इस में शामिल है संवेष्ठित नारियल जल, नारियल पपड़ी, कयर उत्पाद आदि। नारियल छिलके को आसानी से नजदीकी जल निकायों में उन्हें रखकर शिथिल किया जा सकता है। नारियल छिल्के की प्रयुक्ति से हस्त शिल्प भी बनाए जा सकते है।
मछुवा महिलाएं कई बाधाओं के अधीन कार्य करती, इसमें से कुछ पहले ही उल्लेखित किए गए। समाज में होने वाले लिंग असमानताएं समुदाय में भी प्रदर्शित होते है। वे संपदा की पहुंच से सीमित होती और ज्यादातर पुरुष के पास मालिकना होता हैं (खेडकर, 2005) । शिक्षा का स्तर अल्प है और नए प्रौद्योगिकियों में कुशलता प्राप्त के संबंध में यह एक प्रतिकूल परिस्थिति है। इस के बावजूद समुद्री खाद्य संसाधन क्षेत्र में यह मजदूरी दल का एक बड़ा हिस्सा है, उनकी स्थिति एवं कार्य पर्यावरण बहुत संतोषजनक नहीं है। वे समुदाय द्वारा सामना किए जा रहे समग्र गरीबी द्वारा प्रभावित है। परिवार के स्तर पर आज भी पुरुष निर्णय करने का अधिकार रखता है और यह उद्योग के स्तर पर निर्णय में प्रदर्शित होता है। इस के अलावा, सामान्यत: कर्ज की पहुंच एवं विशेषकर संस्थागत कर्ज विशेषकर बहुत अल्प है।
अन्य बाधा है कच्ची सामग्री की खरीदी या अपने व्यापार के उत्पादों को बेचने के लिए बाहर जाने में झिझक। महिला की गति को प्रतिबंधित एवं परिसीमित किया गया है और वे अक्सर दूर स्थानों से कच्ची सामग्री के एकत्रण के लिए अपने पति एवं अन्य परिवार के सदस्यों पर आधारित होती है। मत्स्य विपणन में कार्यरत मछुवामहिला के संबंध में, मूल अवसंरचनात्मक सुविधाएं जैसे शौचालय, बाजार में एक प्रमुख समस्या है। हमारे मत्स्य बाजारों के सामान्य लक्ष्ण हैं उभारे प्लाटफ़ार्म , उचित अपवहन और रद्दी निपटान सुविधाएं आदि की कमी। उत्पादन प्रक्रिया का केन्द्रीयकरण के कारण सामान्यत: विपणन का कार्य अधिक मुश्किल उत्पन्न करता क्योंकि मत्स्य, की खरीद के लिए अधिक दूरी तक उन्हें यात्रा करना पड़ता है (गोपाल, 2005) । मत्स्य विपणन में कार्यरत मछुवामहिला द्वारा अक्सर स्वास्थ्य की समस्याएं रिपोर्ट की जाती है।
इन उद्यम में स्वंय अन्य बाधाएं निहित होती हैं। प्रारंभ से ही परिचालन का स्तर एवं प्रबंधन पेशावर होना चाहिए अगर यह पिछवडे का कार्य होने पर, भी उद्यम की सँभालता पर जोर होना चाहिए, यह अवलोकित किया गया कि प्रारंभिक जोश कम होने के बाद यह उद्यम धीरे-धीरे क्षीण हो जाता है। उद्यम विकास में वित्तीय प्रबंधन, लेखा और पुस्तक रखना आदि में उचित प्रशिक्षण भी अनिवार्य तथ्य है।
मछुवा महिला अपने परिवार एवं समुदाय के संपूर्ण विकास के लिए मछुवारे जैसा ही समाज को योगदान देने के लिए सक्षम है। जब महिलाओं के परम्परागत जीविका विकल्प कम हो रहे है, नए अवसर खुल रहे है। इन में से कुछ में अधिक कौशल विकास नहीं होता लेकिन अन्य के लिए क्षमता निर्माण आवश्यक होती। सर्वजनिक संस्थान एवं सरकार आवश्यकता के अनुसार काम करना चाहिए और मछुवा महिला को कौशल प्रदान एवं संसाधन उपलब्ध करना चाहिए, जिसे की वे अपने आप उद्यम की जिम्मेदारी लेगी। उन्हें छोटे समूह एवं कार्यकलाप झुंड में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि जोखिम को बाँट सके (निकिता एवं अन्य) और उद्यम को आर्थिक रूप से व्यवहार्य प्रौद्योगिकियों को अपनाने और उत्तम प्राप्ति की जारी के लिए मछुवा महिलाओं को सज्जित किया जाना चाहिए। मछुवा महिला विशेष जीविका विकल्प की समस्या के लिए एक उपयुक्त नीति ढाँचे का विकास करना भी अनिवार्य है।
स्त्रोत: कृषि विभाग, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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