हल में वर्षों में भारतीय मत्स्यपालन गतिशील रूप से एक विकासशील क्षेत्र बन गया है जिससे कई ने अवसर पैदा हो रहा है। पिछले ढाई दशकों में सात गुना वृद्धि अर्थात 1980 में 0.37 मिलियन टन के मुकाबले वर्तमान में बढ़कर 2.84 मिलियन टन हो गया है जिससे मत्स्य पालन एक भरोसेमंद क्षेत्र के रूप हो गया है जिससे मत्स्य पालन एक भरोसेमंद क्षेत्र के रूप में उभर कर सामने आया है। देश के कुल उत्पादन का 95 प्रतिशत तक हिस्सा बरकरार रख कार्प ने देश के मीठे पानी के मत्स्यपालन उत्पादन पर प्रमुख बरकरार रखा है। भारत मूल रूप से एक कार्प देश है एवं मत्स्य उत्पादन में दोनों देशी और विदेशी कार्प देश है एवं मत्स्य उत्पादन में दोनों देशी और विदेशी कार्प अर्थात कतला (कतला कतला), रोहू (लेबिओ रोहित), मृगल (सीरहन मृगल) 1.8 मिलियन टन के रूप में योगदान करते हैं एवं तीन विदेशी कार्प अर्थात सिल्वर कार्प (हाहाईपफोथेलमिक्स मोलिट्रिक्स), ग्रास कार्प (टीनोफोरिगोडोन आईडीईला) और कॉमन कारप दूसरी सबसे महत्वपूर्ण मछलियाँ हैं। इस क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण इनपुट मत्स्य बीज हैं जो पूरे देश में विभिन्न हैचरी से उपलब्ध कराया जा रहा है।
मत्स्य बीज की गुणवत्तों को बनाये रखने के लिए यह जरूरी है कि अच्छी तरह से प्रजनक पालन मछलियों के स्टॉक की अदला बदली और पुनपूर्ति करना महत्वपूर्ण है। यह मुख्य रूप से हैचरी में मछलियों में होने वाले अंत: प्रजनन की समस्या से बचने के लिए किया जाता है। हाल ही में हैचरी प्रजनित बीजों की ख़राब वृद्धि मत्स्य पालन समुदायों में एक वास्तविक चिंता रही है। यह बताया गया है कि अंत: प्रजनन का कारण कई पीढ़ियों से हैचरी में एक ही स्टॉक बनाये रखने एवं निकट संबंधित मछलियों में प्रजनन के कारण होता है। अनुवांशिक रूप से अंत: प्रजनन हिमोजिगोसिटी की ओर ले जाता है। लगभग सभी व्यक्तियों में एक हानिकारक असामान्य (रिसेसिव) जीन होते हैं, जो विषम अवस्था में छिपे रहते हैं। संबंधित व्यक्तियों में सामान्य जीनों को साझा करने की संभावना बनी रहती हैं और माता – पिता के बीच निकटता में वृद्धि होने से हानिकारक असामान्य जीनों की जोड़ी की संभावना बढ़ जाती है। जिसके कारण विकास, रोग प्रतिरोध और उत्तरजीविता मी कमी के साथ जनसंख्या में अंत: प्रजनन की स्थिति पैदा हो जाती है। स्टॉक की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए प्राथमिक रणनीति प्रजनक स्टॉक मछलियों का आदान प्रदान करना है। लेकिन परिवहन की बोझिल प्रक्रिया और परिवहन के दौरान प्रजनक मछलियों की होने वाली मृत्यु मछलियों के स्टॉक का वीर्य का संरक्षण करना और भारत के विभिन्न हैचरी में उपयोग कर मछलियों के नस्ल में सुधार करना है। इस प्रकार हैचरी प्रबंधकों को गुणवत्ता के बारे में आश्वासन दिया जा सकता है और 10 मिलीलीटर कार्प के हिमांक संरक्षित मिल्ट से 1 – 2 लाख बीज का उत्पादन कर आसानी के परिवहन किया जा सकता है इसके अलावा, छोटे प्रक्षेत्रों में प्रजनन के दौरान नर प्रजनन मछलियों की अनुपलब्धता हेमशा पायी जाती है। हैचरी मालिक/प्रबंधक प्रक्षेत्र में अधिक मादा मछली पालन कर सकते हैं और इस तरह सीमित प्रक्षेत्र से संरक्षित मिल्ट का उपयोग कर मत्स्य बीज का आधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। इसी प्रकार की रणनीति ने देश में पशुओं के क्षेत्र में चमत्कार और क्रांति ला दी है। इसके अलावा, संरक्षित मिल्ट का उपयोग से बीज उत्पादक स्तरों पर अनुवांशिक उन्नयन के क्षेत्र पर गुणक प्रभाव होगा क्योंकि यह प्रभाव मछली पालन के लिए लाभकारी होता है और अंतत: देश के मत्स्य बीज उत्पादकों के आय को दोगुना करने में भी मददगार साबित होगा।
जनन कोष के संरक्षण की भूमिका का महत्व मत्स्य बीज उत्पादन एवं प्रजनन मछलियों के जीन संबंधी प्रबंधन में बढ़ता जा रहा है। मछलियों के वीर्य के संरक्षण की तकनीकी मुख्यतः स्थापित की गई हैं। जनन कोष में शुक्राणु को कई सप्ताह तक संरक्षित कर ज्यादा अंडों का निषेचन करने में मदद मिल सकती है। जनन कोष को हिमोक संरक्षण करके जीन संसाधन को लम्बे समय तक संचय कर सकते हैं। अभी तक मीठा जल एवं खारा जल की 350 से अधिक प्रजातियों के जनन कोष की संरक्षण में काफी हद तक सफलता प्राप्त कर ली गई है। लेकिन आज तक टिकाऊ अंडों एवं भ्रूण का हिमीकरण की तकनीक का सफल प्रदर्शन नहीं किया जा सका है।
सभी संरक्षण तकनीकी का मुख्य उद्देश्य भण्डारण के तापक्रम को कम करके जनन कोष के संरक्षण की अवधि को बढ़ाना एवं इसके चयापचयी भार को कम करना है। इस विधि का व्यापक उपयोग जीव विज्ञा, जैव चिकित्सा प्रौद्योगिकी और संरक्षण में किया जा सकता है। जर्म प्लाज्मा के हिमांक संरक्षण में शुक्राणु अंडा एवं भ्रूण का भण्डारण शामिल है और सीधे पशु प्रजनन कार्यक्रम में योगदान देता है जर्म प्लाज्मा हिमांक संरक्षण विलुप्त और लुप्तप्राय: मत्स्य प्रजातियों की जीनोम का संचयन के लिए एक्स सीटू संरक्षण में भी सहायता करता है। हिमांक संरक्षण का उपयोग कर जर्मप्लाज्मा बैंक की स्थापना भविष्य में संरक्षण एवं मौजूद आबादी में योगदान दे सकता है। सही संचयन तकनीकी एवं संचयन स्थिति में जनन कोष का संरक्षण हजारों वर्षों तक किया जा सकता है। चयनित जनन कोष को कुछ अवधि तक जीवित रखने के लिए संचयन की आवश्यकता पड़ती है संचय लघु अवधि (गैर – क्रायोजेनिक) या दीर्घकालिक संचयन (हिमांक संरक्षण) हो सकता है।
मिल्ट नमूनों को दोनों तरह के संरक्षण के लिए थोड़ी हाइपरटोनिक इलेक्ट्रोलाइट मीडियम में तनुकृत किया जाता है जिसे एक्सटेंडर कहा जाता है। कुछ व्यावहारिक एक्सटेंडर तालिका 1 में दिखाया गया है।
शून्य तापक्रम या शीतल अवस्था में जनन कोष का संरक्षण 3 – 4 दिनों तक बिना हिमांक संरक्षण के किया जा सकता है जिसे अल्प अवधि संचयन तकनीक कहते हैं। कृत्रिम गर्भाधान और नियंत्रित प्रजनन कार्यक्रमों के दौरान मछली के नर जनन कोषों का सर्वोत्तम उपयोग का एक सिद्ध तरीकों में 1 – 2 दिनों के लिए वीर्य का अल्प अवधि संचयन का उपयोग करना है। मिल्ट (वीर्य) का अल्प अवधि संचयन का उपयोग करना है। मिल्ट (वीर्य) नमूनों को एक्सटेंडर के साथ तनुकृत कर बर्फ के साथ थर्मोकोल चेम्बर या रेफ्रीजरेटर में भण्डारण किया जाता है। यह विभिन्न नर और मादागुणों के विभिन्न सिब प्रजनन को डिजाईन करने के लिए उपयोगी है। मछलियों के मिल्ट को का तनुकृत करने के विभिन्न एक्सटेंडर उपलब्ध (तालिका 1) हैं। एक्सटेंडर – सी का उपयोग अल्प अवधि संचयन तकनीक के लिए अधिक आसान और प्रभावी पाया गया है। अच्छे परिणाम के लिए संरक्षित मिल्ट नमूनों को अंडे के साथ वीर्यरोपण के पूर्व कमरे के तापक्रम में लाया जाता है। जहाँ तरल नाइट्रोजन की उपलब्धता एक समस्या है वहां अल्प अवधि संरक्षण विधि बहुत ही आसान है। सीफा में इस विधि का उपयोग कर 4 डिग्री से तापक्रम में कतला का नर जनन कोष का दूरदराज स्थान जैसे की अंदमान निकोबार द्वीप समूह से ओडिशा तक सफलतापूर्वक परिवहन किया गया\ एक कतला मादा से एकत्रित अंडे के के साथ निषेचन करने पर 70 प्रतिशत निषेचन और 40 प्रतिशत हैचलिंग प्राप्त किया जा सका है। सीआईएएफ में किये गये अध्ययन से पता चला है कि कृत्रिम निषेचन से पहले भारतीय प्रमुख कार्प वीर्य को 4 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अठारह घंटे के लिए सफलतापूर्वक संरक्षित किया जा सकता है।
तालिका 1: एक्सटेंडर का संघटक
एक्सटेंडर |
संघटक |
ए |
सोडियम क्लोराइड – 400 मिली ग्राम, कैल्सियम क्लोराइड – 23 मिग्रा. पोटेशियम क्लोराइड – 38 मिग्रा सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट – 100 मिग्रा. सोडियम डाई हाइड्रोजन फॉस्फेट 41 मिग्रा. मैग्नीशियम सलफेट – 23 मिग्रा. को 100 मिली डिस्टिल्ड वाटर में घोलें। |
बी |
सोडियम क्लोराइड – 600 मिली ग्राम, कैल्सियम क्लोराइड – 23 मिग्रा. पोटेशियम क्लोराइड – 38 मिग्रा सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट – 100 मिग्रा. सोडियम डाई हाइड्रोजन फॉस्फेट 41 मिग्रा. मैग्नीशियम सलफेट – 23 मिग्रा. को 100 मिली डिस्टिल्ड वाटर में घोलें। |
सी |
सोडियम क्लोराइड – 750 मिली ग्राम, कैल्सियम क्लोराइड – 20 मिग्रा. पोटेशियम क्लोराइड – 30 मिग्रा सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट – 20 मिग्रा. को 100 मिली डिस्टिल्ड वाटर में घोलें। |
जीवन क्षमता को लम्बे समय तक बनाये रखने के लिए जनन कोष का संरक्षण हिमांक संरक्षण (क्रायोप्रिजर्वेशन) के माध्यम से किया जा सकता है। शुक्राणु को वर्षों तक तरल नाइट्रोजन में संग्रहित किया जा सकता है जहाँ इस तापमान में एक जीवित कोशिका के सभी जैव रासायनिक क्रियाकलाप लगभग रूक जाते हैं। सही क्रायोप्रिजर्वेशन की संचयन तकनीकी एवं संचयन स्थिति में जनन कोष का संरक्षण हजारों वर्षों तक किया जा सकता है। वीर्य को एक्सटेंडर के साथ तनुकृत किया जाता है और क्रायोप्रोटेक्टेंट के साथ मिलाया जाता है। क्रायोप्रोटेक्टेंट एक रसायन है जो फ्रीजिंग के दौरान द्रुतशीतन नुकसान से कोशिकाओं को सुरक्षित रखता है।
जनन कोश संचयन की तकनीक मछली के प्रजनकों को निम्नलिखित तरीकों से मददगार साबित हो सकती हैं।
कार्प शुक्राणु के हिमांक संरक्षण के सामान्य प्रोटोकॉल को चित्र में दर्शाया गया है और नीचे वर्णित किया गया है:-
पहला कदम शुक्राणुओं को एकत्रित करना है। आम तौर पर शुक्राणु स्वस्थ नर मछलियों से स्ट्रिपिंग विधि द्वारा एकत्र किया जाते है भारतीय प्रमुख कार्प के स्वस्थ नर मछलियों को कार्प पिट्यूरी घोल @ 2 – 3 ml/ किग्रा. या सिंथेटिक हर्मोंन @ 0.1 – 0.2 मिली ग्राम/किलो ग्राम शरीर के वजन के अनुसार प्रेरित किया जाना चाहिए और 3 – 4 घंटे के उत्प्रेरणा के बाद वीर्य का संग्रह किया जा है। वीर्य को किटाणुरहित की गई सेंट्रीफ्यूजड ट्यूबों में एकत्रित किया जाना चाहिए और रेफ्रीजरेटर में रखा जाना चाहिए। नमूना मूत्र और मल से मुक्त होना चाहिए। सामान्य वीर्य नमूनों का प्रसंस्करण इसके संग्रह के समय से एक घंटे के भीतर किया जाना चाहिए। यह आवश्यक है कि संरक्षण के पूर्व संग्रहित मिल्ट का गुणवत्ता मूल्यांकन किया जाए। यदि संग्रहित किये गये मिल्ट की गुणवत्ता ठीक है, तो ही आगे की प्रक्रिया कर्ण, अन्यथा नये नर प्रजनक मछलियों से ताजा वीर्य का संग्रहण करें। मिल्ट का गुणवत्ता मूल्यांकन के लिए वीर्य का रंग, मात्रा, घनत्व, पिएच, शुक्राणुओं की गतिशीलता, शुक्राणुओं की संख्या, स्पेर्मटोक्रीट मान आदि को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
गैर – प्रेरित कार्प मछलियाँ 0.5 से 1.0 मिली लिटर वीर्य प्रति किलोग्राम शारीरिक वहजन के अनुसार देती है जबकि प्रेरित नर मछली 6 – 10 मिली लिटर वीर्य देती है। यह एक महत्वपूर्ण पूर्ण पहलू है जिसे हिमांक संरक्षण से पहले ध्यान देना चाहिए क्योंकि कम मात्रा में मिल्ट की प्राप्ति नर मछलियों की परिपक्वता की स्थिति का संकेत देता है शुक्राणु गतिशीलता को वीर्य मिल्ट का सबसे सरल और सबसे विश्वसनीय संकेतक बताया गया है। एक कार्प वीर्य का नमूना जिसमें स्पर्मटोक्रीट वेल्यू 70 से कम नहीं, शुक्राणुओं की संख्या 1.5 – 2.3 x 109 संख्या प्रति मिली शुक्राणुओं की गतिशीलता 90 प्रतिशत से अधिक हो तो गुणवत्ता नमूना माना जाता है।
एक्सटेंडर आम तौर पर उम्मीदवार प्रजातियों के सेमिनल प्लाज्मा के भौतिक – रचनात्मक संरचना के साथ संगत होने के लिए डिज़ाइन किये जाते हैं जो शुक्राणु को गैर गतिशीलता लेकिन व्यवहार्य अवस्था में बनाये रखने के लिए बनाये जाए हैं। क्रायोप्रोटेक्टेंट एक रसायन है जो कोशिका को शीतलक ठंड और विगलन प्रक्रिया के दौरान होने वाले नुकसान को कम करता है। क्रायोप्रोटेक्टेंट को दो व्यापक श्रेणियों में बांटा गया है क्रायोप्रोटेक्टेंट जो की कोशिकाओं को पार करने में सक्षम हैं उसे पारगम्य क्रायोप्रोटेक्टेंट के रूप में जाना जाता है। जैसे डाईमिथाइल सल्फाक्साइड (डिएमएसओ), मेथनॉल और गिल्सराल। क्रायोप्रोटेक्टेंट जो की कोशिकाओं को पार करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं उन्हें गैर – पारगम्य क्रायोप्रोटेक्टेंट के रूप में जाना जाता है जैसे शर्करा अर्थात ग्लूकोज या सूक्रोज, पॉलीमर जैसे डेक्सट्रान, दूध और अंडे प्रोटीन आदि। तालिका 1 में वर्णित एक्सटेंडर सी के रासायनिक घटकों को सटीक रूप से तौलकर और दोहरा आसुत जल (डिस्टिल्ड वाटर) में मिलाकर एक्सटेंडर तैयार किया जाता है। इस प्रोटोकॉल में क्रायोप्रोटेक्टेंट के प्रयोग डीएमएसओ है जो लगातार अच्छा परिणाम देता है। क्रायोप्रोटेक्टेंट को सीधे वीर्य नमूने में मिश्रित नहीं करना चाहिए। इसे पहले एक्सोथर्मल प्रतिक्रिया के कारण रेफ्रीजरेटर में रखा जाता है। इस घोल को डायलुएंट कहा जाता है। डायलुएंट के साथ वीर्य को मिलाते समय समतापीय स्थिति बनाये रखना बहुत महत्वपूर्ण है। डायलुएंट के साथ वीर्य के मिश्रण को मिलाने और फ्रीजिंग प्रक्रिया शुरू करने के बीच के समय अंतराल को संतुलन समय कहा जाता है। भारतीय प्रमुख कार्प के वीर्य के लिए यह आम तौर पर 30 - 45 मिनट है। संतुलन के दौरान क्रायोप्रोटेक्टेंट विषाक्तता का समय संतुलन की अवधि और तापमान पर भी निर्भर करता है।
कार्प शुक्राणुओं के लिए एक त्वरित फ्रीजिंग प्रोटोकॉल का उपयोग किया जाता है क्योंकि यह थर्मलशौक और अंत:कोशिका में बर्फ बनने की क्रिया को कम करता है। प्रोग्रामिंग योग्य शीतलन कक्ष द्वारा सीलबंद विसोट्यूब को – 15 डिग्री सेल्सियस/मिनट के कूलिंग तापमान पर ठंडा किया जाना आवश्यक होता है। - 60 डिग्री सेल्सियस तापमान पर पहुँचने के बाद विसोट्यूब से जमे हुए वीर्य के नमूनों को भण्डारण हेतु बिना देरी किये क्रायोकेन में रखे तरल नाइट्रोजन में भण्डारण किया जाता है।
विगलन क्रायोप्रोटोकॉल एक महत्वपूर्ण कदम है, जहाँ अगर इष्टतम स्थितियों का पालन नहीं करने से विगलन के दौरान संरक्षित कोशिकाओं में बर्फ गठन रिक्रिस्टालाइजेसन की वजह से होता है। कार्प शुक्राणु के मामले में तेजी से विगलन बेहतर होता है क्योंकि धीमी गति से विगलन होने से छोटी अंत: कोशिका क्रिस्टल का पूनर्योजक हो सकता है जो कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है। वर्तमान प्रोटोकॉल में गर्म पानी (37 डिग्री सेल्सियस) में क्रायोमिल्ट नमूनों का विगलन किया जाता हैं। विसोट्यूब एवं फ्रेंच स्ट्रा क्रमशः 65 – 70 सेकेंड का समय नर्म तरल पदार्थ बनने में लगता है। फ्रोजन मिल्ट के तरल होने के बाद अनिषेचित अंडों के साथ इसे मिलाने से पहले लगभग 5 सेकेंड के लिए निषेचित पात्र में विसोट्यूव से वीर्य को निकाल कर रखना महत्वपूर्ण होता है। यह प्रक्रिया दोनों जनन कोष को कमरे के तापमान पर एक आइसोथथर्मल स्थिति में लाने के लिए किया जाता है। क्रायो वीर्य के साथ निषेचित अंडे को मीठे पानी में 5 – 10 बार धोकर साफ किया जाता है और अत्यधिक क्रोयोप्रोटेक्टेंट को बाहर निकालने के लिए जल प्रवाह अंड सेवन कक्ष में रखा जाता है।
अनुवांशिक विविधता को संरक्षित करने के लिए शुक्राणु क्रायोबैंकिंग कैप्टिवीटी में मछलियों के प्रजनन के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है। शुक्राणु का क्रायोबैकिंग लागत श्रम एवं सुरक्षा के संदर्भ में कैप्टिवीटी में मत्स्य प्रजनन के काफी फायदे हैं। चूंकि समय के साथ बीमारी या अनुवांशिक बहाव से होने वाले नुकसान को जोखिम के बिना विभिन्न पीढ़ियों के हजारों नमूनों को कम से कम स्थान में इस तकनीक से भण्डारण किया जा सकता है। इसके अलावा, फ्रोजेन नमूनों को परिवहन और प्रबंधन अपेक्षाकृत सरल है एवं इसका पुन: मूल रूप में वापसी का योजना करने में अधिक लचीलेपन की अनुमति देता है। मत्स्य पालन और संरक्षण हेतु वर्तमान में शुक्राणुओं के हिमांक संरक्षण (क्रायोप्रिजेर्वेसन) के लिए सामान्य प्रौद्योगिकियां रूस (एनाइयेव, 1998) और यूरोप के साथ ही उतरी और दक्षिण अमेरिका (हार्वे, 1998) के कई शुक्राणु बैंकों में उपयोग किया जा रहा है। हाल ही में केंद्रीय मीठा जल जीवपालन अनुसंधान संस्थान, भुवनेश्वर द्वारा 2009 – 10 के दौरान भारत में चार मत्स्य वीर्य क्रायोबैंक स्थापित किये गये। इन मत्स्य वीर्य क्रायो बैंक (2 आंध्र प्रदेश में और 2 उड़ीसा में) का उपयोग भारतीय प्रमुख कार्प (कतला, लेबिओ रोहिता, सिरहनस मृगला) के नस्ल उन्नयन और अच्छी गुणवत्ता वाले प्रजनक मछली के विकास के उद्देश्य से किया जा रहा है। 2009 – 10 के दौरान दस हैचरी में स्टॉक उन्नयन के लिए इन बैंकों के क्रायोमिल्ट का उपयोग किया गया था। स्थानीय हैचरियों के मादा मछलियों जिसमें कार्प मछली में अंत प्रजनन का दबाव एवं धीमी गति से वृद्धि दर्ज की गई थी। उससे प्राप्त अंडों का निषेचन स्वस्थ नर मछलियों के हिमीकृत शुक्राणु का उपयोग करके 40 प्रतिशत से अधिक हैचलिंग के प्राप्ति की गई। इस तकनीक को लागू करने से कई हैचरी में प्रजनन मछली की स्थिति में वृद्धि संभव हो पाई। हैचरी तक कार्प की क्रायोमिल्ट को ले जाने में आसानी हुई और प्रजनक मछलियों का उत्पादन सफलतापूर्वक किया गया है इसके अलावा भविष्य के प्रजनक स्टॉक के विकास हेतु प्रक्षेत्र के जर्म प्लाज्मा को बदल दिया जाता है। वर्तमान में इन राज्यों में मछली वीर्य क्रायो बैंक के जरिये कार्प मछलियों के हिमांक सरंक्षित वीर्य का उपयोग कर एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसी तरह, कार्प स्टोन उन्नयन के उद्देश्य से भाकृअनुप – सीफा की तकनीकी सहायता से भारत एवं विदेशों में मत्स्य वीर्य क्रायोबैंक की स्थापना की गई है।
अच्छी तरह से प्रदर्शित किया गया है की संग्रहित मिल्ट द्वारा उत्पादित कार्प बीज, ताजा मिल्ट द्वारा उत्पादित बीज से किसी भी तुलना में निम्न नहीं है। संरक्षित मिल्ट द्वारा विकसित स्टॉक के विकास, प्रजनन की प्रतिक्रिया और अंडजनन क्षमता, ताजा मिल्ट के साथ तुलनीय है। इस प्रकार हिमांक संरक्षित वीर्य या मिल्ट द्वारा मछलियों की नस्ल का अनुवांशिक उन्नयन, जल कृषि में नील क्रांति को प्राप्त करने में एक अहम भूमिका अदा करेगा।
लेखन: धनंजय कुमार वर्मा एवं पद्यामन राउत राय
अंतिम बार संशोधित : 3/4/2020
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