অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए विधिक सेवाऐं

असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए विधिक सेवाऐं

पृष्ठभूमि

भारतीय अर्थ व्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता यह है कि कामगारों की एक बहुत बड़ी संख्या  असंगठित क्षेत्र  में काम कर रही है। भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2007-2008 एवं 2009-2010 के नेशनल सैंपल सर्वे अनओर्गेनाइज्ड सेक्टर ने अनुमान लगाया है कि कुल कामगारों का 93-94% असंगठित क्षेत्र  में कार्य कर रहा है। सकल घरेलू उत्पाद में इसकी भागीदारी 50% से अधिक  है। असंगठित कामगारों की अधिक संख्या  (लगभग 52 प्रतिशत) कृषि क्षेत्र  में कार्य कर रही है, दूसरे बड़े क्षेत्र  में निर्माण, लघु उद्योग, ठेकेदारों द्वारा बड़े उद्योगों में नियोजित कामगार,घरेलू कामगार, ऐसे कामगार जो जंगलों की पैदावार पर निर्भर हैं, मछली पालन एवं स्वतः रोजगार जैसे रिक्शा खींचना, आटो चलाना, कुली आदि शामिल हैं।

असंगठित क्षेत्र की खास बात यह है कि वहां ज्यादातर श्रम कानून लागू नहीं होते है। इसमें काम करने वालों की दशा दयनीय है। न वे सुनिश्चित रोजगार पाते हैं, न उनको सही वेतन मिलता है और न ही उन्हें कोई कल्याणकारी सुविधाएँ  उपलब्ध  होती हैं। इस क्षेत्र  में रोजगार हमेशा नहीं होता एवं इसलिए काम की कोई गारंटी नहीं होती।

वह एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं क्योंकि काम की स्थिरता नहीं होती एवं अक्सर उनके बच्चों की पढाई भी छूट जाती है। शहरों में वह झुग्गी में रहते हैं जहां घर एवं शौच का प्रबंध  नहीं होता है। स्वास्थ्य सेवा एवं प्रसूति लाभ जो संगठित क्षेत्र  में उपलब्ध  हैं उनके लिए नहीं हैं। कर्मकार प्रतिकर अधिनियम 1923, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम 1948, प्रसूति प्रसुविधा  अधिनियम 1961, औद्योगिक उपवाद अधिनियम 1947, उपदानसंदाय अधिनियम  1972, कर्मचारी भविष्य-निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम 1952 आदि में अधिनियमित  विधियाँ वृद्धावस्था, स्वास्थ्य सेवा एवं सहायता, मृत्यु विवाह तथा दुर्घटना आदि की दशा में भी इन पर लागू नहीं होतीं। इन सारे तथ्यों का मतलब है कि आम तौर से शोषित जीवन जीने के लिए ये मजबूर हो जाते है।

मौजूदा विधि ढांचा

हालांकि जहां असंगठित क्षेत्र  में नियोजन की श्रेणियां बड़ी संख्या  में हैं, कार्य वातावरण हेतु प्रदान किये जाने वाले विधान  इत्यादि केवल कुछ श्रेणियों में ही लागू किये गए हैं जैसे-

  • डॉक कर्मकार नियोजन का विनियमन) अधिनियम  1948
  • बीड़ी एवं सिगार कर्मकार (नियोजन की शर्तें) 1966
  • अंतर्राज्यिक प्रवासी कर्मकार (नियोजन का विनियमन और सेवा शर्त अधिनियम ) 1979
  • सिनेमा कर्मकार एवं सिनेमा थिएटर कर्मकार नियोजन का विनियमन अधिनियम नियम 1984
  • भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा-शर्त विनियमन) अधिनियम ,1996
  • हस्त चालित खनिक नियोजन प्रतिषेध एवं उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013

असंगठित कामगारों के सभी वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने हेतु केंद्र सरकार ने प्रभावशाली कानून असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के नाम से लागू किया है। भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा-शर्त विनियमन) अधिनियम, 1996 तथा असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के अंतर्गत कर्मकारों के हितों के लिए विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के समुचित प्रचार की आवश्यकता है।

विधिक सेवा प्रदान करने हेतु योजना

यहाँ ऊपर वर्णित विधानों का अधिनियमन, कामगारों के जीवन में कुछ सराहनीय परिवर्तन लाता हुआ प्रतीत नहीं होता है जिसके निम्नलिखित कारण हैं -

  1. सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 वैधानिक  तौर से योजना को लागू करने की कोई प्रक्रिया विहित नहीं करता है एवं ऐसा लगता है कि योग्य कामगारों को योजना के लाभ के लिए संबंधित प्राधिकरणों  के इनकार के विरुद्ध  स्वीकृति नहीं है।
  2. बहुत कम राज्यों ने सामजिक सुरक्षा बोर्ड बनाए हैं एवं अधिनियम  की धारा 14 के अंतर्गत नियम बनाये हैं। नतीजा यह है कि कई राज्यों में कल्याण योजना नहीं चलायी जा रही है एवं जहां योजनायें हैं वहां उन पर नजर रखने वाला कोई नहीं है। समानतः सारे राज्यों में भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा-शर्त विनियमन) अधिनियम, 1996 के अन्तर्गत भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड नही बनाये गये हैं एवं फलस्वरूप कोई सुरक्षा योजना भी इन कामगारों के लिए नहीं है।
  3. हालांकि कई राज्यों में भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा-शर्त विनियमन) अधिनियम, 1996 के अंतर्गत कर लिया जा रहा है, कर का उपयोग कामगारों के हित के लिए कम किया जा रहा है। उसका कारण कामगारों का कम पंजीकरण या पंजीकृत कामगारों के हितों का कम निस्तारण है।
  4. योजना एवं हितों का पर्याप्त प्रचार भी नहीं किया गया है। असंगठित क्षेत्र  के कामगार सामान्यतः अनपढ़ और संगठित न होने के कारण ज्यादातर योजना से अवगत नहीं है।
  5. कामगार सुविधा  केंद्र जैसा कि सामजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 में बताया गया है किसी भी राज्य द्वारा नहीं बनाये गए हैं।
  6. नियोक्ता या ठेकेदार पर किसी भी योजना के अंतर्गत कामगारों का पंजीकरण कराने की जिम्मेदारी अधिरोपित  नहीं है।
  7. प्रत्येक योजना के लिए अलग से पंजीकरण कराना पड़ता है जिसके कारण जरूरत पड़ने पर कामगारों को समस्त योजनाओं का हित प्राप्त करने में दिक्कत होती है। कामगार को स्वयं आवेदन देकर पंजीकृत होना पड़ता है और वे इसके लिए अक्षम हैं क्योंकि उन्हें जानकारी नहीं है और प्रक्रिया भी जटिल है।
  8. इन योजनाओं का पंजीकरण सामान्यतः सहज सुलभ नही है और इसी कारण अधिकांश कामगार प्रवासी होने के कारण इस योजना का लाभ उठाने मे असमर्थ रहते हैं और फलस्वरूप इस योजना के अंतर्गत पंजीकरण कराने में अनिच्छुक रहते हैं।

विधिक सेवा संस्थाएं लागू करने वाले प्राधिकरण  एवं लाभार्थियों के बीच की दूरी को कम करने में एक पुल का काम कर सकती हैं। इसी उद्देश्य को घ्यान में रखते हुए, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण  ने नालसा की केंद्रीय प्राधिकरण  की बैठक जो 08.12.2010 को हुई थी, में एक योजना को अपनाया है जो राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (असंगठित क्षेत्र  में कामगारों को विधिक  सेवा) योजना, 2010 है।

जरूरतमंद कामगारों के हितों के लिए कानून बनने के कई वर्षों के बाद भी इन्हें उनका फल  प्राप्त नहीं हुआ है व यह समस्या विकट है जिसके कारण तथा इस क्षेत्र  में अधिक घ्यान देने की आवश्यकता है। वर्तमान संशोधित  योजना इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही है।

अर्द्ध-विधिक स्वयंसेवी, विधिक सेवा क्लीनिक, फ्रंट  ऑफिस, पैनल अधिवक्ता और प्रतिधारक  अधिवक्ता जैसे शब्दों का अर्थ वही रहेगा जैसा कि  राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण  (निःशुल्क और सक्षम विधि ) विनिमयन, 2010 और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण  विधिक  सहायता क्लिनिकद्ध विनिमयन, 2011 के तहत परिभाषित है।

योजना का नाम

यह योजना नालसा असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए विधिक सेवाऐं योजना, 2015 कही जाएगी।

योजना का उद्देश्य

  1. सभी असंगठित कामगारों तक आवश्यक विधिक सेवाओं को संस्थागत बनाना।
  2. सरकारी प्राधिकरण  से सहयोग कर तथा जनहित याचिका द्वारा विधान /क्रियान्वयन में दूरी को समाप्त करना।
  3. राज्य सरकार तथा जिला प्रशासन की व्यवस्था का इस्तेमाल सभी वर्गों के असंगठित कामगारों की पहचान कराना व उन्हें पंजीकृत कराना तथा सभी सरकारी योजनाओं के लाभों को योग्य लाभार्थियों तक पहुँचाना।
  4. नियोक्ताओं को वैधानिक  प्रावधानों  तथा कामगारों को कार्य हेतु अच्छा वातावरण, आजीविका एवं सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता के प्रति जागरूक करना।
  5. कामगारों में वर्तमान विधान  एवं योजनाओं के अंतर्गत उनकी पात्रता  के बारे में सूचना फैलाना ।
  6. असंगठित क्षेत्रों  के सभी वर्गों के कामगारों की अनेक वर्ग के लिए उपलब्ध  योजनाओं के अंतर्गत संबंधित प्राधिकरण  में उनके पंजीकरण के लिए सहायता एवं सलाह देना।
  7. कामगारों को योजना के लाभों को प्राप्त करने में सहायता देना जिनके लिए वे अपनी जरुरत/ योग्यता के अनुसार पंजीकृत हैं।

मार्गदर्शक सिद्धांत

सभी विधिक संस्थानों द्वारा असंगठित कामगारों के लिए योजना लागू करते समय निम्नलिखित सिद्धांत को ध्यान में रखा जाएगा।

  1. भारतीय संविधान की प्रस्तावना सभी नागरिकों के लिए प्रतिष्ठा व अवसर की समानता सुनिश्चित करती है तथा उनके गौरव का सम्मान करते हुए उनके बीच भाई-चारे को बढ़ती है। अनुच्छेद 42 में आदेशित है कि राज्य कार्य के लिए न्यायोचित एवं मानवीय स्थिति तथा मातृत्व लाभों को सुरक्षित रखने हेतु प्रावधान  बनाएगी। अनुच्छेद 43 द्वारा, राज्य सभी कामगारों के लिए काम, निर्वाह मजदूरी, उचित जीवन स्तर सुनिश्चित करते हुए कार्य स्थिति तथा पूर्ण मनोरंजन, अवकाश, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अवसर सुरक्षित करेगी।
  2. प्रत्येक नागरिक के गौरव को बनाये रखने का उद्देश्य वचन तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक कि एक कामगार का गौरव सुनिश्चित नहीं किया जाता।
  3. असंगठित क्षेत्र  समाज के उपेक्षित क्षेत्रों में से एक है तथा वे देश के नागरिक होने के कारण काम का अधिकार, न्यायोचित एवं मानवीय कार्य व्यवस्था, निर्वाह, मजदूरी, मातृत्व लाभ तथा उचित जीवन स्तर के समान रूप से हकदार हैं। विधिक सेवा प्राधिकरणों  के लिए यह वैधानिक  आदेश है कि वह संवैधानिक सुनिश्चितताओं को वास्तव में उपलब्ध  कराये।विधिक सेवा प्राधिकरणों  को प्रशासनिक निष्क्रियता के प्रतिहित प्रहरी के रूप में कार्य करना होगा।
  4. सरकार द्वारा विधानों /अथवा योजनाओं आदि के रूप में किये गए कल्याण कार्यों में उद्धष्टि लाभार्थियों अथवा पीड़ितों को उनके अधिकारों व योग्यताओं को हासिल करने के लिए व्यवस्था का इस्तेमाल करने की जरुरत है। असंगठित क्षेत्र  के कामगार समाज के वंचित एवं असुरक्षित क्षेत्र  से संबंध रखते हैं तथा वे व्यवस्था का इस्तेमाल करने में सक्षम नहीं होते हैं। विधिक सेवा प्राधिकरण  का यह कर्तव्य है कि वह न्याय प्राप्ति तक उनकी पहुंच स्थापित करने मे सहायता करे।
  5. असंगठित क्षेत्र  के कामगारों के वर्गों की बड़ी संख्या, प्रत्येक वर्ग में बहुत बड़ी जनसंख्या तथा बड़े भौगोलिक क्षेत्र  में उनके फैलाव के कारण उन तक विधिक सेवा पहुंचाने के लिए परियोजनाबद्ध कार्यक्रम की आवश्यकता है। उन्हें उनके संवैधानिक अधिकारों की प्राप्ति के योग्य बनाने के लिए एक संस्थागत व्यवस्था, वचनबद्ध कार्यबल तथा लगातार प्रयासों को लम्बे समय तक करने की जरुरत है।

कार्य योजना

विशेष सेलों की स्थापना व कार्य

इस क्षेत्र  में कामगारों को उपयोगी विधिक सेवा प्रदान करने के लिए प्रत्येक राज्य का विधिक सेवा प्राधिकरण  एक विशेष सेल बनाएगा जो अलग से केवल इसी सेवा पर नजर रखेगा। सेल में एक पैनल अधिवक्ता जो श्रम विधि में विशेष अनुभव रखता हो, एक सलाहकार जिसके पास आवश्यक योग्यता संबंधित क्षेत्र में कार्य का अनुभव हो, जहां तक संभव हो, किसी एन.जी.ओ. का प्रतिनिधि जिसका इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य हो, होंगे तथा ऐसी संख्या में अर्धविधिक स्वयंसेवी होंगे जैसा कि राज्य प्राधिकरण  निर्धारित  करे।

विशेष सेल के निम्न कार्य होंगे -

  1. संगठित कामगारों के लिए सेमिनार प्रशिक्षण कार्यक्रम, कानूनी अभिज्ञता / साक्षरता कार्यक्रम आयोजित करना एवं चलाना।
  2. असंगठित कामगारों को योजनाओं का लाभ दिलाने व पंजीकरण के संबंध में सरकारी प्राधिकरणों  के साथ सहयोग करना।
  3. असंगठित कामगारों को योजनाओं के हित प्राप्त करने हेतु पफार्म भरवाने में सहायता प्रदान करना एवं पंजीकरण पफार्म भरने एवं योजनाओं के अन्तर्गत लाभ उपलब्ध  कराने में सहायता।
  4. असंगठित क्षेत्र के कामगारों को उनके दावे में कानूनी सलाह व कानूनी सहायता देना जो उन्होंने किसी न्यायालय या प्राधिकरण  में संस्थित किया हो।
  5. अन्य कोई कार्य जो राज्य प्राधिकरण उनके लिए नियत करे।

 

विशेष सेल सदस्य सचिव की सलाह या राज्य प्राधिकरण द्वारा नामांकित किसी दूसरे अधिकारी  की सलाह से काम करेगा तथा सौंपे गये कार्यों की प्रगति की एक आवधिक  रिपोर्ट विशेष सेल द्वारा फाइल की जायेगी।

सेल के सदस्यों को उनके द्वारा किये गए कार्यों का मानदेय दिया जाएगा जो राज्य प्राधिकरण  द्वारा तय किया जाएगा।

असंगठित कामगारों की पहचान

  1. विधिक सेवा संस्था का पहला काम उनके क्षेत्र  में असंगठित कामगारों की संख्या  एवं उनके वर्गों का राज्यों के सामाजिक कल्याण विभाग एवं श्रम विभाग के पास उपलब्ध आंकड़ों से पता लगाना है। आवश्यकता पड़ने पर स्वयं या विधि विद्यार्थियों या उस क्षेत्र के एन.जी.ओ. की सहायता से सर्वेक्षण किया जा सकता है ।
  2. पहचान करने की विधि में, विशेष कोशिश इस बात की भी की जाए कि कहीं कोई बाल श्रमिक या बंधुआ  मजदूर हो तो उसकी भी पहचान की जाए एवं अगर इन प्रतिबंधित  वर्गों का कोई कामगार पाया जाए तो विधिक सेवा प्राधिकरण  उसे संबंधित प्राधिकरण  को सूचित करे एवं उनके बचाव में सहायता करे, उन्हें रिहा कराने एवं उनके पुनर्वास हेतु पहल करे जैसा कि बंधित  श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम, 1976, बालक श्रम प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986 तथा किशोर न्याय अधिनियम, 2000 में उपबंधित  किया गया है।
  3. राज्य प्राधिकरण  क्षेत्र, आबादी एवं दूसरे अंश के आधार  पर सारे वर्गों की पहचान के लिए एक समय सीमा बांध सकती है।

कार्य की शर्तें एवं न्यूनतम मजदूरी

राज्य एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, राज्य एवं जिला प्रशासन के सहयोग एवं स्थानीय एन.जी.ओ. की मदद से काम की शर्तें एवं वैधानिक  नियम एवं न्यूनतम मजदूरी निश्चित कर सकती है जो विशेषतः असंगठित कामगारों के वर्गों, घरेलू कामगारों के लिए, होगा।एवं अगर आवश्यक हो तो राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण  उसे प्रकाशित कराने हेतु आवश्यक कदम उठा सकता है।

राज्य सामजिक सुरक्षा बोर्ड तथा भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड का गठन

जहां भी सामजिक सुरक्षा बोर्ड तथा भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड नहीं बनाया गया है। वहां राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, राज्य सरकार की सहायता ले, अगर आवश्यक हो तो, माननीय कार्यपालक अध्यक्ष के अनुमोदन से संबंधित उच्च न्यायालय मे जनहित याचिका प्रस्तुत करने के द्वारा इन बोर्डों को जितना जल्दी से जल्दी हो बनायेंगी।

कर का उपयोग

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण  भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेगी कि उनके द्वारा लिए गए कर सावधि जमा में न पड़े रहकर वास्तव में जरूरतमंद कामगारों के हित में उपलब्ध  योजना अनुसार काम में लाए जाए। राज्य प्राधिकरण बोर्ड से आवश्यक सूचना प्राप्त करेगी, कामगारों को हित के लिए आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित करेगी एवं तत्पश्चात बोर्ड के सहयोग से उन हितों को प्रदान कराएगी। अगर किसी कामगार को संदेय किसी हित से इंकार किया जाता है तो तत्संबंध मे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, विशेष सेल के माघ्यम से असंगठित कामगारों के लिए कानूनी अभियोजन कर सकेगी।

कानून के अधीन  सरकारी योजनायें

विधिक सेवा प्राधिकरण  उनके राज्य में चल रही असंगठित क्षेत्रों  की योजनाओं को प्रकाशित कराने के लिए राज्य सरकारों को कहेगी एवं अगर आवश्यक हुआ तो यह कार्य माननीय कार्यपालक अध्यक्ष की सहमति से जनहित याचिका द्वारा भी कराया जा सकेगा।

कानूनी जागरूकता

  1. प्रत्येक वर्ग के असंगठित कामगारों की पहचान के बाद, भिन्न-भिन्न योजनाओं की जानकारी के लिए कानूनी जागरूकता कार्यक्रम का प्रबंध  किया जाए एवं सामाजिक सुरक्षा उपाय जो इन वर्षों के लिए हैं उनके संबंध मे जागरूकता पफैलायी जाये। विशेष सेल, असंगठित कामगारों के लिए कानूनी साक्षरता शिविर लगाएगा जो उनके कार्य के स्थान या समुदाय भवन में होगा।
  2. सभी राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ऐसी पुस्तिकाएं/पर्चे प्रकाशित करेंगी जिसमें उपलब्ध योजनाओं, उनके लिए योग्यता मानदंड एवं कामगारों की जरूरतों के अनुसार हितों की प्राप्ति के लिए पंजीकरण के तरीके का ब्योरा दिया गया होगा। पुस्तिकाएं/ पर्चे की प्रतियां स्वागत कक्ष, विधिक सेवा क्लिनिक, विशेष सेल स्थल पर उपलब्ध  रहेंगी एवं इन्हें कानूनी जागरूकता/साक्षरता कार्यक्रम में बांटा जाएगा।
  3. उपरोक्त जानकारी से संबंधित सूचना दूरदर्शन, आकाशवाणी व क्षेत्रीय रेडियो के माघ्यम से भी प्रसारित की जायेगी।
  4. राज्य के श्रम एवं समाज कल्याण विभाग से निवेदन किया जाना चाहिए कि विधिक सेवा संस्थाओं एवं विशेष सेल के सदस्यों के टेलीफोन नंबरों व हेल्पलाइन नम्बरों को प्रकाशित करे।

अर्धविधिक स्वयंसेवीगण का विशेष प्रशिक्षण

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण अर्धविधिक स्वयंसेवी गण के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करेगी जिसमें असंगठित कामगारों के वर्गों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जायेगा जो उस क्षेत्र  में कार्य कर रहे हों तथा वे लाभ जिन्हें वे सरकारी योजनाओं से प्राप्त कर सकते हैं। अर्धविधिक स्वयंसेवी गण को अन्य प्रशिक्षणों के साथ-साथ कामगारों को शिक्षित करने, उनके हितों को पहचानने, जरूरतमंद कामगारों को उक्त लाभ उपलब्ध कराने में प्राधिकरण  से संपर्क स्थापित करने का भी प्रशिक्षण दिया जाए।

कामगार सहायता केंद्र

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण  राज्य के श्रम विभाग से 2008 अधिनियम  की धारा 9 के अंतर्गत दिए गए कामगारों के लिए सहायता केंद्र स्थापित करने के लिए सहयोग करेगा। वे विधिक सेवा क्लीनिक भी स्थापित कर सकते हैं जिन्हें इन केन्द्रों से जुड़े विशेष रूप से प्रशिक्षित   अर्धविधिक स्वयंसेवी गण/ एन.जी.ओ. चलाएंगे।

उपयुक्त कार्य वातावरण

कुछ कानून जैसे भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (सेवा शर्त) अधिनियम  तथा बीड़ी एवं सिगार कर्मकार नियोजन की शर्ते अधिनियम  में उक्त क्षेत्रों  में नियुक्त सभी कामगारों के लिए न्यूनतम कार्य शर्तों के निबंध्न का प्रावधान  है। उन क्षेत्रों  में भी जहां कानूनी प्रावधान  नहीं है, वहां उचित मजदूरी तथा मानवीय कार्य शर्तों की जरुरत के महत्व को अनदेखा नही किया जा सकता। राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण  विधिविद्यार्थियों व उपयुक्त एन.जी.ओ. के साथ मिलकर अभियान चला सकती है ताकि असंगठित क्षेत्र  के कामगारों को नियोक्ता द्वारा न्यायोचित कार्य वातावरण प्रदान किया जाना सुनिश्चित हो सके। इस उद्देश्य के लिए प्रावधनित सभी कानूनों का पालन किया जाए।

नियोक्ताओं के लिए सेमिनार

राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण  तथा असंगठित क्षेत्र  के लिए गठित विशेष सेल, नियोक्ताओं को उनके कानूनी कर्तव्यों तथा कामगारों की वास्तविक जरूरतों को पूरा करने के प्रति जागरूक बनाने के लिए सेमिनार / गोष्ठी आयोजित करेगी।

पुनर्वास योजनायें

कई कानूनों में जैसे हस्तचालित खनिक नियोजन प्रतिषेध व उनका पुनर्वास अधिनियम,2013 की धारा 13 में कामगारों के पुनर्वास का वर्णन है। राज्य विधिक सेवा प्रधिकरण सम्बन्ध राज्य प्राधिकरण  के साथ समन्वय से या तो स्वयं अथवा एन.जी.ओ. के सहयोग से उक्त अधिनियम  के प्रावधानों  के अनुसार पूर्व हस्तचालित खनिकों के लिए पुनर्वास योजना बनाने के लिए सहयोग करेगा।

कानूनी सहायता एवं कानूनी प्रतिनिधित्व

असंगठित कामगारों के लिए गठित विशेष सेल, सभी असंगठित कामगारों के लिए विधि क प्रतिनिधित्व के माघ्यम से किसी न्यायालय अथवा प्राधिकरण, जैसी आवश्यकता हो, के समक्ष परामर्श, विधिक  सहायता व कानूनी सेवा उपलब्ध  करायेगा।

स्रोत: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, नालसा, भारत सरकार

 

अंतिम बार संशोधित : 5/22/2023



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate