भारतीय अर्थ व्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता यह है कि कामगारों की एक बहुत बड़ी संख्या असंगठित क्षेत्र में काम कर रही है। भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2007-2008 एवं 2009-2010 के नेशनल सैंपल सर्वे अनओर्गेनाइज्ड सेक्टर ने अनुमान लगाया है कि कुल कामगारों का 93-94% असंगठित क्षेत्र में कार्य कर रहा है। सकल घरेलू उत्पाद में इसकी भागीदारी 50% से अधिक है। असंगठित कामगारों की अधिक संख्या (लगभग 52 प्रतिशत) कृषि क्षेत्र में कार्य कर रही है, दूसरे बड़े क्षेत्र में निर्माण, लघु उद्योग, ठेकेदारों द्वारा बड़े उद्योगों में नियोजित कामगार,घरेलू कामगार, ऐसे कामगार जो जंगलों की पैदावार पर निर्भर हैं, मछली पालन एवं स्वतः रोजगार जैसे रिक्शा खींचना, आटो चलाना, कुली आदि शामिल हैं।
असंगठित क्षेत्र की खास बात यह है कि वहां ज्यादातर श्रम कानून लागू नहीं होते है। इसमें काम करने वालों की दशा दयनीय है। न वे सुनिश्चित रोजगार पाते हैं, न उनको सही वेतन मिलता है और न ही उन्हें कोई कल्याणकारी सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। इस क्षेत्र में रोजगार हमेशा नहीं होता एवं इसलिए काम की कोई गारंटी नहीं होती।
वह एक जगह से दूसरी जगह जाते रहते हैं क्योंकि काम की स्थिरता नहीं होती एवं अक्सर उनके बच्चों की पढाई भी छूट जाती है। शहरों में वह झुग्गी में रहते हैं जहां घर एवं शौच का प्रबंध नहीं होता है। स्वास्थ्य सेवा एवं प्रसूति लाभ जो संगठित क्षेत्र में उपलब्ध हैं उनके लिए नहीं हैं। कर्मकार प्रतिकर अधिनियम 1923, कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम 1948, प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम 1961, औद्योगिक उपवाद अधिनियम 1947, उपदानसंदाय अधिनियम 1972, कर्मचारी भविष्य-निधि और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम 1952 आदि में अधिनियमित विधियाँ वृद्धावस्था, स्वास्थ्य सेवा एवं सहायता, मृत्यु विवाह तथा दुर्घटना आदि की दशा में भी इन पर लागू नहीं होतीं। इन सारे तथ्यों का मतलब है कि आम तौर से शोषित जीवन जीने के लिए ये मजबूर हो जाते है।
हालांकि जहां असंगठित क्षेत्र में नियोजन की श्रेणियां बड़ी संख्या में हैं, कार्य वातावरण हेतु प्रदान किये जाने वाले विधान इत्यादि केवल कुछ श्रेणियों में ही लागू किये गए हैं जैसे-
असंगठित कामगारों के सभी वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने हेतु केंद्र सरकार ने प्रभावशाली कानून असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के नाम से लागू किया है। भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (नियोजन तथा सेवा-शर्त विनियमन) अधिनियम, 1996 तथा असंगठित कर्मकार सामाजिक सुरक्षा अधिनियम, 2008 के अंतर्गत कर्मकारों के हितों के लिए विभिन्न सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के समुचित प्रचार की आवश्यकता है।
यहाँ ऊपर वर्णित विधानों का अधिनियमन, कामगारों के जीवन में कुछ सराहनीय परिवर्तन लाता हुआ प्रतीत नहीं होता है जिसके निम्नलिखित कारण हैं -
विधिक सेवा संस्थाएं लागू करने वाले प्राधिकरण एवं लाभार्थियों के बीच की दूरी को कम करने में एक पुल का काम कर सकती हैं। इसी उद्देश्य को घ्यान में रखते हुए, राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ने नालसा की केंद्रीय प्राधिकरण की बैठक जो 08.12.2010 को हुई थी, में एक योजना को अपनाया है जो राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (असंगठित क्षेत्र में कामगारों को विधिक सेवा) योजना, 2010 है।
जरूरतमंद कामगारों के हितों के लिए कानून बनने के कई वर्षों के बाद भी इन्हें उनका फल प्राप्त नहीं हुआ है व यह समस्या विकट है जिसके कारण तथा इस क्षेत्र में अधिक घ्यान देने की आवश्यकता है। वर्तमान संशोधित योजना इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ही है।
अर्द्ध-विधिक स्वयंसेवी, विधिक सेवा क्लीनिक, फ्रंट ऑफिस, पैनल अधिवक्ता और प्रतिधारक अधिवक्ता जैसे शब्दों का अर्थ वही रहेगा जैसा कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (निःशुल्क और सक्षम विधि ) विनिमयन, 2010 और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण विधिक सहायता क्लिनिकद्ध विनिमयन, 2011 के तहत परिभाषित है।
यह योजना नालसा असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए विधिक सेवाऐं योजना, 2015 कही जाएगी।
सभी विधिक संस्थानों द्वारा असंगठित कामगारों के लिए योजना लागू करते समय निम्नलिखित सिद्धांत को ध्यान में रखा जाएगा।
कार्य योजना
इस क्षेत्र में कामगारों को उपयोगी विधिक सेवा प्रदान करने के लिए प्रत्येक राज्य का विधिक सेवा प्राधिकरण एक विशेष सेल बनाएगा जो अलग से केवल इसी सेवा पर नजर रखेगा। सेल में एक पैनल अधिवक्ता जो श्रम विधि में विशेष अनुभव रखता हो, एक सलाहकार जिसके पास आवश्यक योग्यता संबंधित क्षेत्र में कार्य का अनुभव हो, जहां तक संभव हो, किसी एन.जी.ओ. का प्रतिनिधि जिसका इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य हो, होंगे तथा ऐसी संख्या में अर्धविधिक स्वयंसेवी होंगे जैसा कि राज्य प्राधिकरण निर्धारित करे।
विशेष सेल के निम्न कार्य होंगे -
विशेष सेल सदस्य सचिव की सलाह या राज्य प्राधिकरण द्वारा नामांकित किसी दूसरे अधिकारी की सलाह से काम करेगा तथा सौंपे गये कार्यों की प्रगति की एक आवधिक रिपोर्ट विशेष सेल द्वारा फाइल की जायेगी।
सेल के सदस्यों को उनके द्वारा किये गए कार्यों का मानदेय दिया जाएगा जो राज्य प्राधिकरण द्वारा तय किया जाएगा।
राज्य एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, राज्य एवं जिला प्रशासन के सहयोग एवं स्थानीय एन.जी.ओ. की मदद से काम की शर्तें एवं वैधानिक नियम एवं न्यूनतम मजदूरी निश्चित कर सकती है जो विशेषतः असंगठित कामगारों के वर्गों, घरेलू कामगारों के लिए, होगा।एवं अगर आवश्यक हो तो राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण उसे प्रकाशित कराने हेतु आवश्यक कदम उठा सकता है।
जहां भी सामजिक सुरक्षा बोर्ड तथा भवन एवं सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड नहीं बनाया गया है। वहां राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, राज्य सरकार की सहायता ले, अगर आवश्यक हो तो, माननीय कार्यपालक अध्यक्ष के अनुमोदन से संबंधित उच्च न्यायालय मे जनहित याचिका प्रस्तुत करने के द्वारा इन बोर्डों को जितना जल्दी से जल्दी हो बनायेंगी।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेगी कि उनके द्वारा लिए गए कर सावधि जमा में न पड़े रहकर वास्तव में जरूरतमंद कामगारों के हित में उपलब्ध योजना अनुसार काम में लाए जाए। राज्य प्राधिकरण बोर्ड से आवश्यक सूचना प्राप्त करेगी, कामगारों को हित के लिए आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित करेगी एवं तत्पश्चात बोर्ड के सहयोग से उन हितों को प्रदान कराएगी। अगर किसी कामगार को संदेय किसी हित से इंकार किया जाता है तो तत्संबंध मे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, विशेष सेल के माघ्यम से असंगठित कामगारों के लिए कानूनी अभियोजन कर सकेगी।
विधिक सेवा प्राधिकरण उनके राज्य में चल रही असंगठित क्षेत्रों की योजनाओं को प्रकाशित कराने के लिए राज्य सरकारों को कहेगी एवं अगर आवश्यक हुआ तो यह कार्य माननीय कार्यपालक अध्यक्ष की सहमति से जनहित याचिका द्वारा भी कराया जा सकेगा।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण अर्धविधिक स्वयंसेवी गण के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करेगी जिसमें असंगठित कामगारों के वर्गों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखा जायेगा जो उस क्षेत्र में कार्य कर रहे हों तथा वे लाभ जिन्हें वे सरकारी योजनाओं से प्राप्त कर सकते हैं। अर्धविधिक स्वयंसेवी गण को अन्य प्रशिक्षणों के साथ-साथ कामगारों को शिक्षित करने, उनके हितों को पहचानने, जरूरतमंद कामगारों को उक्त लाभ उपलब्ध कराने में प्राधिकरण से संपर्क स्थापित करने का भी प्रशिक्षण दिया जाए।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण राज्य के श्रम विभाग से 2008 अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत दिए गए कामगारों के लिए सहायता केंद्र स्थापित करने के लिए सहयोग करेगा। वे विधिक सेवा क्लीनिक भी स्थापित कर सकते हैं जिन्हें इन केन्द्रों से जुड़े विशेष रूप से प्रशिक्षित अर्धविधिक स्वयंसेवी गण/ एन.जी.ओ. चलाएंगे।
कुछ कानून जैसे भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार (सेवा शर्त) अधिनियम तथा बीड़ी एवं सिगार कर्मकार नियोजन की शर्ते अधिनियम में उक्त क्षेत्रों में नियुक्त सभी कामगारों के लिए न्यूनतम कार्य शर्तों के निबंध्न का प्रावधान है। उन क्षेत्रों में भी जहां कानूनी प्रावधान नहीं है, वहां उचित मजदूरी तथा मानवीय कार्य शर्तों की जरुरत के महत्व को अनदेखा नही किया जा सकता। राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण विधिविद्यार्थियों व उपयुक्त एन.जी.ओ. के साथ मिलकर अभियान चला सकती है ताकि असंगठित क्षेत्र के कामगारों को नियोक्ता द्वारा न्यायोचित कार्य वातावरण प्रदान किया जाना सुनिश्चित हो सके। इस उद्देश्य के लिए प्रावधनित सभी कानूनों का पालन किया जाए।
नियोक्ताओं के लिए सेमिनार
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण तथा असंगठित क्षेत्र के लिए गठित विशेष सेल, नियोक्ताओं को उनके कानूनी कर्तव्यों तथा कामगारों की वास्तविक जरूरतों को पूरा करने के प्रति जागरूक बनाने के लिए सेमिनार / गोष्ठी आयोजित करेगी।
कई कानूनों में जैसे हस्तचालित खनिक नियोजन प्रतिषेध व उनका पुनर्वास अधिनियम,2013 की धारा 13 में कामगारों के पुनर्वास का वर्णन है। राज्य विधिक सेवा प्रधिकरण सम्बन्ध राज्य प्राधिकरण के साथ समन्वय से या तो स्वयं अथवा एन.जी.ओ. के सहयोग से उक्त अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार पूर्व हस्तचालित खनिकों के लिए पुनर्वास योजना बनाने के लिए सहयोग करेगा।
असंगठित कामगारों के लिए गठित विशेष सेल, सभी असंगठित कामगारों के लिए विधि क प्रतिनिधित्व के माघ्यम से किसी न्यायालय अथवा प्राधिकरण, जैसी आवश्यकता हो, के समक्ष परामर्श, विधिक सहायता व कानूनी सेवा उपलब्ध करायेगा।
स्रोत: राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, नालसा, भारत सरकार
अंतिम बार संशोधित : 5/22/2023
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