शिक्षु अधिनियम, 1961 को शिक्षुओं के प्रशिक्षण कार्यक्रम विनियमित और नियंत्रित करने के लिए तथा इससे संबंधित मामलों के लिए लागू किया गया था। पद ‘शिक्षु’ का अर्थ है ‘वह व्यथक्ति जो प्रशिक्षुता की संविदा के पालन हेतु शिक्षुता प्रशिक्षण प्राप्ति करता है।’ जबकि ‘शिक्षुता प्रशिक्षण’ का अर्थ है शिक्षुता की संविदा के पालन में और निर्धारित शर्तों और निबंधनों के अधीन एक उद्योग या प्रतिष्ठान में प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम, जो शिक्षुओं की विभिन्नो श्रेणियों के लिए भिन्न हो सकता है।
इस अधिनियम सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं की ओर से यह अनिवार्य बनाता है, जिनके पास अधिनियम में बताई गई अपेक्षित प्रशिक्षण मूल संरचना है कि वे अधिनियम के अंतर्गत शामिल उद्योगों के 254 उद्योग समूहों में शिक्षुओं को शामिल करें। इस अधिनियम के प्रावधान निम्नलिखित पर लागू नहीं होंगे। -
(i) ऐसा कोई क्षेत्र या कोई उद्योग जो आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा केन्द्रीय सरकार में आता है जब तक कि उस क्षेत्र या उद्योग को एक क्षेत्र या उद्योग के रूप में, जिस पर कथित प्रावधान उक्तत तिथि से लागू होंगे, जैसा अधिसूचना में उल्लेोख किया गया है; और
(ii) आधिकारिक राजपत्र में केन्द्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित शिक्षुओं को प्रशिक्षण देने की ऐसी कोई विशेष शिक्षुता योजना।
श्रम मंत्रालय का रोजगार एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय केंद्र सरकार के प्रतिष्ठानों और विभागों में व्यापार शिक्षुओं के संदर्भ में अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी है। इस प्रयोजन के लिए शिक्षुता प्रशिक्षण के छ: क्षेत्रीय निदेशालय हैं जो कोलकाता, मुम्बई, चेन्नई, हैदराबाद, कानपुर और फरीदाबाद में स्थित हैं। जबकि राज्य शिक्षुता सलाहकार राज्य सरकार के प्रतिष्ठानों/विभागों और निजी प्रतिष्ठानों में व्यापार शिक्षुओं के संदर्भ में अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी है
इसके अलावा, मानव संसाधन विकास (एचआरडी) का उच्चतर शिक्षा विभाग स्नातक, तकनीशियन और तकनीशियन (व्यावसायिक) शिक्षु के संदर्भ में अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी है। यह कार्य कानपुर, कोलकाता, मुम्बुई और चेन्निई में स्थित चार शिक्षुता प्रशिक्षण मंडल द्वारा किया जाता है
अधिनियम के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं:-
केन्द्रीय शिक्षुता परिषद (सीएसी) की स्थांपना एक शीर्ष संवैधानिक त्रिपक्षीय निकाय के रूप में सरकार को प्रशिक्षुता प्रशिक्षण योजना (एटीएस) के संदर्भ में मानक निर्धारित करने तथा नीतियां बनाने पर सलाह देने के लिए की गई है। केन्द्रीय श्रम और रोजगार मंत्री इसके अध्यक्ष तथा राज्य शिक्षा मंत्री, केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय इस परिषद के उपाध्यक्ष हैं।
किसी व्यक्ति को एक शिक्षु के रूप में तब तक एक निर्दिष्टं व्यापार में शिक्षुता प्रशिक्षण के लिए नहीं भेजा जाएगा जब तक कि वह व्यक्ति या यदि वह एक अल्पवयस्क है तो उसके अभिभावक नियोक्ताए के साथ शिक्षुता की संविदा में संलग्न नहीं है।
प्रत्येक नियोक्ता पर एक शिक्षु के संबंध में निम्नलिखित बाध्यताएं होंगी, नामत -
(i) इस अधिनियम के प्रावधानों और इसके तहत बनाए गए नियमों के अनुसार उसे व्यापार में प्रशिक्षण सहित शिक्षुता प्रदान करना।
(ii) यह सुनिश्चित करना कि एक व्याक्ति जिसके पास व्यापार में निर्धारित योग्यताएं हैं, उसे शिक्षुता के प्रशिक्षण का प्रभारी बनाया गया है;
(iii) पर्याप्त अनुदेशात्माक कर्मचारी प्रदान करना, उक्त योग्यता, शिक्षुताओं के व्यापार परीक्षण की सुविधाएं तथा सैद्धांतिक एवं व्याहारिक प्रशिक्षण देने के लिए जैसा निर्धारित किया गया है; और
(iv) शिक्षुता की सुविधा के तहत उसकी बाध्यताएं निभाना।
शिक्षुता प्रशिक्षण पाने वाले प्रत्येक व्यापार शिक्षु के पास निम्नलिखित बाध्यताएं होनी चाहिए, नामत -
नियोक्ता द्वारा शिक्षुता प्रशिक्षण अवधि के दौरान प्रत्येक शिक्षु को कम से कम 1 जनवरी, 1970 को नियोक्ता द्वारा प्रदान की जा रही दर या न्यूदनतम निर्धारित दर से उक्त स्टाइपैंड का भुगतान किया जाएगा, जो उक्त शिक्षु की श्रेणी के लिए लागू होता है, इनमें से जो भी अधिक हो, जिसे शिक्षुता की संविदा में निर्दिष्ट किया गया हो और इस प्रकार निर्दिष्ट स्टाइपैंड का भुगतान उक्त अंतरालों पर किया जाएगा तथा यह निर्धारित शर्तों के अधीन होगा। तथापि एक शिक्षु को उसके नियोक्ता द्वारा किसी कार्य के हिस्से के आधार पर भुगतान नहीं किया जाएगा, जिसके लिए उसे किसी आउटपुट बोनस या अन्य किसी प्रोत्साहन योजना में भाग लेना हो।
एक कार्यशाला में व्यावहारिक प्रशिक्षण पाते हुए एक शिक्षु के कार्य के सप्ताह और दैनिक घण्टे निर्धारित अनुसार होंगे। किसी शिक्षु को अधिक कार्य करने की अनुमति तब तक नहीं दी जाएगी, जब तक उसे शिक्षुता सलाहकार का अनुमोदन प्राप्ति नहीं हो, इसके द्वारा उक्त अनुमोदन नहीं दिया जाएगा यदि उसे यह संतुष्टि नहीं है कि उक्त ओवर टाइम शिक्षु को प्रशिक्षण के हित में है या इसमें कोई सावर्जनिक हित है। एक शिक्षु को उक्त् अवकाश की पात्रता होगी, जैसा निर्धारित किया गया है और उक्त अवकाश प्रतिष्ठान में मनाए जाते हैं, जिसमें उसे प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
अंतिम बार संशोधित : 2/6/2023
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