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श्रम से संबंधित कानून

भूमिका

समाज के लाभवंचित और साधनहीन वर्ग जनसंख्‍या का वह हिस्‍सा हैं जिन्‍हें अपनी योग्‍यता जानने और उसका उपयोग करने त‍था इस तरह एक स्‍तरीय जीवन जीने का अवसर नहीं मिलता। आज की विकसित होती अर्थव्‍य‍वस्‍था में ये लोग पीछे छूट गए हैं और इन्‍हें विशेष देख रेख एवं ध्‍यान देने की जरूरत है। उन्‍हें बुनियादी शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य देख रेख की सेवाएं प्रदान करके अधिकार सम्‍पन्‍न किया जाना चाहिए ताकि वे अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थितियों में सुधार ला सकें।

इस संबंध में राष्‍ट्र के समक्ष चुनौती के रूप में खड़ी सबसे बड़ी समस्‍या है बाल श्रम की। सरकार इस समस्‍या से निपटने के लिए अनेक सकारात्‍मक उपाय करती आ रही है। हमारे संविधान में भी ऐसे प्रावधान है जिनका लक्ष्‍य बच्‍चों के संरक्षण है -

शिक्षा का अधिकार

राज्‍य 6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्‍चों को नि:शुल्‍क और अनिवार्य शिक्षा इस रूप में प्रदान करेगी जो राज्‍य कानून द्वारा निर्धारित करें।

कारखानों इत्‍यादि में बच्‍चों को रोजगार में लगाने पर प्रतिबंध

चौदह वर्ष से कम उम्र को कोई बच्‍चा किसी कारखाने या खान के काम में या किसी खतरनाक रोज़गार में नहीं लगाया जाएगा।

इन सांविधानिक प्रावधानों के अनुरूप, सरकार ने अनेक सांविधिक प्रावधान और विकास योजनाएं बनाई है। उदाहरणार्थ, राष्‍ट्रीय बाल श्रम परियोजना (एनसीएलपी) योजना केन्‍द्रीय क्षेत्र की एक योजना है जिसका लक्ष्‍य पहचाने गए खतरनाक व्‍यवसायों एवं प्रक्रियाओं में काम कर रहे बच्‍चों को हटाना और विशेष स्‍कूलों में पुनर्वास करके तथा अन्‍तत: औपचारिक शिक्षा प्रणाली के जरिए मख्‍य धारा में लाना है।

इसके साथ ही, नोएडा में वी. वी. गिरी राष्‍ट्रीय श्रम संस्‍थान में राष्‍ट्रीय बाल श्रम संसाधन केन्‍द्र (एनआरसीसीएल) स्‍थापित किया गया है। इसका मुख्‍य उद्देश्‍य है भारत में बाल श्रम को क्रमिक रूप से समाप्‍त करने के लिए अनुसंधान, प्रशिक्षण, तकनीकी सहायता, आन्‍दोलन, मीडिया प्रबंधन, प्रलेखन, प्रकाशन एवं विभिन्‍न लक्ष्‍य समूहों को प्रचार-प्रसार के जरिए बाल श्रम के क्षेत्र में राष्‍ट्रीय एवं राज्‍य सरकारों, गैर सरकारी संगठनों, नीति निर्माताओं एवं अन्‍य सामाजिक समूहों की सहायता करना।

तथापि, समस्‍या की व्‍यापकता और विस्‍तार तथा इस बात को ध्‍यान में रखते हुए कि यह गरीबी और निरक्षरता से पूरी तरह जुड़ी है, इसका उन्‍मूलन करने के लिए समाज के सभी वर्गों द्वारा सम्मिलित प्रयास किए जाने की जरूरत होगी।

बाल श्रम (प्रतिबंध एवं विनियमन) अधिनियम, 1986

बाल श्रम (उन्‍मूलन और विनियमन) अधिनियम, 1986 चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों को कारखानों, खानों और खतरनाक कामों में लगाने से रोकने और कुछ अन्‍य रोज़गारों में उनके काम की स्थितियों को विनियमित करने के लिए अधिनियमित किया गया था। इस अधिनियम के अनुसार, कोई बच्‍चा अनुसूची के भाग क में निर्धारित व्‍यवसायों में अथवा ऐसी कार्यशाला में जहां अनुसूची के भाग ख में निर्धारित प्रक्रियाएं चलाई जाती है, लगाया नहीं जाएगा, बशर्ते कि इस अधिनियम का कोई प्रावधान ऐसी कार्यशाला पर लागू नहीं होगा जहां कोई प्रक्रिया उसके स्‍वामी द्वारा अपने परिवार की मदद से चलाई जा रही हो अथवा ऐसे स्‍कूल पर जो सरकार द्वारा स्‍थापित हो या सहायता प्राप्‍त हो अथवा मान्‍यता प्राप्‍त हो। साथ ही केन्‍द्र सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित करके अधिनियम की अनुसूची में व्‍यवसायों और प्रक्रियाओं को शामिल करने के प्रयोजनार्थ केन्‍द्र सरकार को सलाह देने के लिए 'बाल श्रम तकनीकी सलाहकार समिति' गठित कर सकती है।

श्रम मंत्रालय में केंन्‍द्रीय औद्योगिक संबंध तंत्र (सीआईआरएम) इस अधिनियम को लागू करने के लिए जिम्‍मेदार है। सीआईआरएम मंत्रालय का सम्‍बद्ध कार्यालय है और इसे मुख्‍य श्रम आयुक्‍त (केन्‍द्रीय) सीएलसी (सी) संगठन के नाम से भी जाना जाता है। सीआईआरएम के प्रमुख आयुक्‍त (केन्‍द्रीय) है। इसके अतिरिक्‍त, मौजूदा विनियमों के कार्यान्‍वयन की समीक्षा करने और कामकाजी बच्‍चों के कल्‍याण हेतु उपायों का सुझाव देने के लिए मंत्रालय के अंतर्गत केन्‍द्रीय बाल श्रम सलाहकार बोर्ड भी गठित किया गया है।

इस अधिनियम के मुख्‍य प्रावधान निम्‍नानुसार है-

  1. किसी भी बच्‍चे को किसी भी स्‍थापना में, ऐसी स्‍थापना अथवा ऐसी श्रेणी की स्‍थापना हेतु निर्धारित घण्‍टों से अधिक न तो काम करना होगा अथवा न काम करने की अनुमति दी जाएगी। प्रत्‍येक दिन काम की अवधि इस तरह नियत की जाए कि कोई अवधि तीन घण्‍टे से अधिक न हो और कोई बच्‍चा तीन घण्‍टे से अधिक काम नहीं करेगा एवं इसके बाद उसे कम से कम एक घण्‍टा आराम करने के लिए समयान्‍तराल दिया जाएगा।
  2. किसी भी बच्‍चे को समयोपरि कार्य नहीं करना होगा और न ही इसकी अनुमति दी जाएगी। किसी भी बच्‍चे को किसी भी ऐसे दिन ऐसी स्‍थापना में कार्य नहीं करना होगा या अनुमति नहीं दी जाएगी जिस दिन वह पहले ही किसी स्‍थापना में कार्य करता रहा हो।
  3. किसी स्‍थापना में कार्य कर रहे प्रत्‍येक बच्‍चे को हर हफ्ते एक पूरे दिन की छुट्टी दी जाएगी, ऐसा दिन जो‍ नियोक्‍ता द्वारा स्‍थापना में स्‍थायी रूप से सामने दिखाई देने वाले नोटिस पर निर्दिष्‍ट किया जाए और इस प्रकार निर्दिष्‍ट छुट्टी के दिन को नियोक्‍ता द्वारा तीन माह में एक बार से अधिक नहीं बदला जाएगा।

प्रत्‍येक नियोक्‍ता किसी स्‍थापना में नियोजित या काम करने के लिए अनुमत बच्‍चों के संबंध में ऐसा रजिस्‍टर बनाकर रखेगा जो काम के घण्‍टों के दौरान या कार्य किए जाने के दौरान निरीक्षक द्वारा निरीक्षण किए जाने के लिए उपलब्‍ध हो और जिसमें यह सूचना दिखाई गई हो -

(i)नियोजित या काम करने के लिए अनुमता बच्‍चे का नाम और जन्‍म तिथि;

(ii) ऐसे प्रत्‍येक बच्‍चे के काम के घण्‍टे और अवधि और विश्राम का समयान्‍तराल जिसका वह हकदार है;

(iii) ऐसे किसी बच्‍चे का कार्य का स्‍वरूप; और

(iv)यथानिर्धारित अन्‍य ब्‍यौरा।

संबंधित सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना प्रकाशित करके ऐसी स्‍थापना या स्‍थापनाओं की श्रेणी में नियोजित या काम करने के लिए अनुमत बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य और सुरक्षा के लिए नियम बना सकती है।

जो व्‍यक्ति इस अधिनियम के प्रावधानों का उल्‍लंघन करते हुए किसी बच्‍चे को नियोजित या काम करने की अनुमति देता है, कारावास या जुर्माने या दोनों के दण्‍ड का भागी होगा।

कोई भी व्‍यक्ति, पुलिस अधिकारी या निरीक्षण इस अधिनियम के तहत किए गए अपराध की शिकायत सक्षम न्‍यायालय में दाखिला कर सकता है। इस अधिनियम के अंतर्गत हुए किसी अपराध की सुनवाई मेट्रोपोलिटन मजिस्‍ट्रेट या प्रथम श्रेणी मजिस्‍ट्रेट से अवर न्‍यायालय नहीं करेगा।

बंधुआ श्रम व्‍यवस्‍था (उन्‍मूलन) अधिनियम, 1976

बंधुआ मज़दूरी प्रथा (उन्‍मूलन) अधिनियम, 1976 बंधुआ मज़दूरी की प्रथा उन्‍मूलन हेतु अधिनियमित किया गया था ताकि जनसंख्‍या के कमज़ोर वर्गों के आर्थिक और वास्‍तविक शोषण को रोका जा सके और उनसे जुड़े एवं अनुषंगी मामलों के संबंध में कार्रवाई की जा सके। इसने सभी बंधुआ मज़दूरों को एकपक्षीय रूप से बंधन से मुक्‍त कर दिया और साथ ही उनके कर्जो को भी परिसमप्‍त कर दिया। इसने बंधुआ प्रथा को कानून द्वारा दण्‍डनीय संज्ञेय अपराध माना।

यह कानून श्रम मंत्रालय और संबंधित राज्‍य सरकारों द्वारा प्रशासित और कार्यान्वित किया जा रहा है। राज्‍य सरकारों के प्रयासों की अनुपूर्ति करने के लिए मंत्रालय द्वारा बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास की एक केन्‍द्रीय प्रायोजित योजना स्‍कीम शुरू की गई थी। इस योजना के अंतर्गत, राज्‍य सरकारों को बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास के लिए समतुल्‍य अनुदानों (50:50) के आधार पर केन्‍द्रीय सहायता मुहैया कराई जाती है।

अधिनियम के मुख्‍य प्रावधान इस प्रकार हैं:-

(i) बंधुआ मजदूर प्रणाली को समाप्‍त किया जाए और प्रत्‍येक बंधुआ मजदूर को मुक्‍त किया जाए तथा बंधुआ मजदूरी की किसी बाध्‍यता से मुक्‍त किया जाए।

(ii) ऐसी कोई भी रीति-रिवाज़ करार या कोई अन्‍य लिखत जिसके कारण किसी व्‍यक्ति को बंधुआ मज़दूरी जैसी कोई सेवा प्रदान करनी होती थी, अब निरस्‍त कर दिया गया है।

(iii)इस अधिनियम के लागू होने से एकदम पहले कोई बंधुआ ऋण या ऐसे बंधुआ ऋण के किसी हिस्‍से का भुगतान करने की बंधुआ मज़दूर की हरेक देनदारी समाप्‍त हो गई मान ली जाएगी।

(iv)किसी भी बंधुआ मज़दूर की समस्‍त सम्‍पत्ति जो इस अधिनियम के लागू होने से एकदम पूर्व किसी गिरवी प्रभार, ग्रहणाधिकार या बंधुआ ऋण के संबंध में किसी अन्‍य रूप में भारग्रस्‍त हो, जहां तक बंधुआ ऋण से सम्‍बद्ध है, मुक्‍त मानी जाएगी और ऐसी गिरवी, प्रभार, प्रभार, ग्रहणाधिकार या अन्‍य बोझ से मुक्‍त हो जाएगी।

(v)इस अधिनियम के अंतर्गत कोई बंधुआ मज़दूरी करने की मज़बूरी से स्‍वतंत्र और मुक्‍त किए गए किसी भी व्‍यक्ति को उसके घर या अन्‍य आवासीय परिसर जिसमें वह रह रहा/रही हो, बेदखल नहीं किया जाएगा।

(vi) कोई भी उधारदाता किसी बंधुआ ऋण के प्रति कोई अदायगी स्‍वीकृत नहीं करेगा जो इस अधिनियम के प्रावधानों के कारण समाप्‍त हो गया हो या समाप्‍त मान लिया गया हो या पूर्ण शोधन मान लिया गया हो।

(vii)राज्‍य सरकार जिला मजिस्‍ट्रेट को ऐसी शक्तियां प्रदान कर सकती है और ऐसे कर्तव्‍य अधिरोपित कर सकती है जो यह सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी हो कि इस अधिनियम के प्रावधानों का उचित अनुपालन हो।

(viii) इस प्रकार प्राधिकृत जिला मजिस्‍ट्रेट और उसके द्वारा विनिर्दिष्‍ट अधिकारी ऐसे बंधुआ मज़दूरों के आर्थिक हितों की सुरक्षा और संरक्षण करके मुक्‍त हुए बंधुआ मज़दूरों के कल्‍याण का संवर्धन करेंगे।

(ix)प्रत्‍येक राज्‍य सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना के ज़रिए प्रत्‍येक जिले और प्रत्‍येक उपमण्‍डल में इतनी सतर्कता समितियां, जिनहें वह उपयुक्‍त समझे, गठित करेगी।

प्रत्‍येक सतर्कता समिति के कार्य इस प्रकार है :-

(i)इस अधिनियम के प्रावधानों और उनके तहत बनाए गए किसी नियम को उपयुक्‍त ढंग से कार्यान्वित करना सुनिश्चित करने के लिए किए गए प्रयासों और कार्रवाई के संबंध में जिला मजिस्‍ट्रेट या उसके द्वारा विनिर्दिष्‍ट अधिकारी को सलाह देना;

(ii)मुक्‍त हुए बंधुआ मज़दूरों के आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास की व्‍यवस्‍था करना;

(iii)मुक्‍त हुए बंधुआ मज़दूरों को पर्याप्‍त ऋण सुविधा उपलब्‍ध कराने की दृष्टि से ग्रामीण बैंकों और सहकारी समितियों के कार्य को समन्वित करना;

(iv)उन अपराधों की संख्‍या पर नज़र रखना जिसका संज्ञान इस अधिनियम के तहत किया गया है;

(v)एक सर्वेक्षण करना ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्‍या इस अधिनियम के तहत कोई अपराध किया गया है;

(vi)किसी बंधुआ ऋण की पूरी या आंशिक राशि अथवा कोई अन्‍य ऋण, जिसके बारे में ऐसे व्‍यक्ति द्वारा बंधुआ ऋण होने का दावा किया गया हो, की वसूली के लिए मुक्‍त हुए बंधुआ मज़दूर या उसके परिवार के किसी सदस्‍य या उस पर आश्रित किसी अन्‍य व्‍यक्ति पर किए गए मुकदमे में प्रतिवाद करना।

(vii) इस अधिनियम के प्रवृत्त होने के बाद, कोई व्‍यक्ति यदि किसी को बंधुआ मज़दूरी करने के लिए विवरण करता है तो उसे कारावास और जुर्माने का दण्‍ड भुगतान होगा। इसी प्रकार, यदि कोई बंधुआ ऋण अग्रिम में देता है, वह भी दण्‍ड का भागी होगा।

(viii)अधिनियम के तहत प्रत्‍येक अपराध संज्ञेय और ज़मानती है और ऐसे अपराधों पर अदालती कार्रवाई के लिए कार्रवाई मजिस्‍ट्रेट को न्‍यायिक मजिस्‍ट्रेट की शक्तियां दिया जाना ज़रूरी होगा।

स्रोत: भारत सरकार का राष्ट्रीय पोर्टल

अंतिम बार संशोधित : 2/13/2023



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