समान वेतन अधिनियम, 1976 आज की उदारीकृत परिस्थितियों में महिलाएं भारतीय श्रम शक्ति का अभिन्न हिस्सा बन चुकी हैं। ऐसे माहौल में, महिला के रोजगार का स्तर बहुत महत्व रखता है और यह अनेक कारकों पर निर्भर करता है। इनमें सर्व प्रथम कौशल विकास के लिए शिक्षा एवं अन्य अवसरों का समान रूप से उपलब्ध होना है। इसके लिए महिलाओं की अधिकारिता के साथ-साथ उनके बीच उनके कानूनी अधिकारों और कर्त्तव्यों के बारे में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है। यह सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं।
यह ऐसे कई कार्यक्रम चला रही है जिनका उद्देश्य महिलाओं को शिक्षा एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण की सुविधा देना है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है श्रम मंत्रालय में रोजगार और प्रशिक्षण महानिदेशालय (डीजीई एण्ड टी) के अंतर्गत शुरू किया गया 'महिला व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम'। इस कार्यक्रम में कौशल प्रशिक्षण सुविधाओं में उनकी सहभागिता को बढ़ाकर उद्योग जगत (मुख्यतया संगठित क्षेत्र) में महिलाओं को अर्ध कुशल, कुशल और अति कुशल कामगारों के रूप में बढ़ावा देने का प्रयास किया गया है। इस कार्यक्रम में, डीजीई एण्ड टी मुख्यालय में एक अलग महिला प्रशिक्षण स्कंध'' स्थापित किया गया है जो देश में महिलाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने से संबंधित दीर्घावधिक नीतियां तैयार करने एवं उनका पालन करने के लिए जिम्मेदार है। साथ ही इस कार्यक्रम के एक भाग के रूप में, केन्द्रीय क्षेत्र में, देश भर के विभिन्न भागों में एक राष्ट्रीय और दस क्षेत्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान स्थापित किए गए हैं। जबकि राज्य क्षेत्र में, राज्य सरकारों के प्रशासनिक नियंत्रण मे विशिष्ट 'महिला औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (डब्ल्यूआईटीआई)' को नेटवर्क स्थापित किया गया है। ये संस्थान महिलाओं को बुनियादी कौशल प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।
साथ ही सरकार महिला कामगारों के लिए काम का अनुकूल माहौल बनाने के भी प्रयास कर रही है। इस प्रयोजनार्थ, मंत्रालय में महिला श्रमिकों के लिए एक अलग सेल स्थापित किया गया है जो कामकाजी महिलाओं की स्थितियों पर ध्यान केन्द्रित करेगा और उनमें सुधार लाएगा। इस सेल के कार्य निम्नलिखित हैं :-
समान पारिश्रामिक अधिनियम, 1976 का लक्ष्य पुरुष और महिला कामगारों को समान पारिश्रामिक का भुगतान तथा रोजगार के मामले और उससे जुड़े अथवा आनुषंगिक मामलों में महिलाओं के विरुद्ध लिंग के आधार पर कोई भेदभाव रोकना है। इस अधिनियम के अनुसार 'पारिश्रामिक' शब्द का अर्थ है ' मूल मजदूरी अथवा वेतन और कोई अतिरिक्त आय जो कुछ भी देय है, नकद अथवा वस्तु के रूप में किसी व्यक्ति को जो रोजगार के लिए नियोजित है अथवा सं. रोजगार का कार्य छिपा है, यदि रोजगार की संविदा की शर्त, व्यक्त अथवा अंतर्निहित है, पूरी की गई थीं'' इस अधिनियम में :-
(i) जो मामले महिलाओं को विशेष व्यवहार होने वाले किसी कानून की अपेक्षाओं के अनुरूप महिलाओं के रोजगार की शर्तों और दशाओं को प्रभावित करने वाले मामलो; अथवा
(ii) किसी बच्चे के जन्म अथवा प्रत्याशित जन्म से संबंध में, अथवा सेवानिवृत्ति, विवाह अथवा मृत्यु के संबंध में किए गए किसी उपबंध में महिलाओं को प्रदत्त किसी विशेष व्यवहार पर कुछ भी लागू नहीं होगा।
(iii) श्रम मंत्रालय में केंद्रीय औद्योगिक संबंध मशीनरी (सीआईआरएम) इस अधिनियम के प्रवर्तन के लिए जिम्मेदार है। सीआईआरएम इस मंत्रालय का संबद्ध कार्यालय है और इसे मुख्य श्रम आयुक्त (केंद्रीय) [सीएलसी(सी)] संगठन के नाम से जाना जाता है। सीआईआरएम की अध्यक्षता मुख्य श्रम आयुक्त (केंद्रीय) करते हैं।
इस अधिनियम के मुख्य उपबंध ये हैं :-
कोई नियोजक किसी संस्थान में उसके द्वारा किसी कामगार को वही कार्य अथवा उसी प्रकृति के कार्य के निष्पादन हेतु ऐसे संस्थान में उसके द्वारा विपरीत लिंग के कामगारों को दिए गए पारिश्रामिक से कम अनुकूल दरों (चाहे नकद अथवा वस्तु में देय हो) के पारिश्रामिक का भुगतान नहीं करेगा/करेगी। यह भी कि कोई नियोजक इस अधिनियम के उपबंधों के अनुपालन के प्रयोजनार्थ किसी कामगार के पारिश्रामिक की दर कम नहीं करेगा।
कोई नियोजक इसी कार्य अथवा इसी तरह की प्रकृति के कार्य हेतु भर्ती करते समय अथवा भर्ती के पश्चात पदोन्नति, प्रशिक्षण अथवा स्थानांतरण जैसी सेवा की किसी शर्त में महिलाओं के विरुद्ध कोई भेदभाव नहीं करेगा सिवाय जहां ऐसे कार्य में महिलाओं का नियोजन प्रवृत्त समय में किसी कानून के अंतर्गत निषिद्ध अथवा प्रतिबंधित है।
प्रत्येक नियोजक उसके द्वारा नियोजित कामगारों के संबंध में ऐसे रजिस्टरों और अन्य दस्तावेज़ों का निर्धारित तरीके से रखरखाव करेगा।
यदि कोई नियोजक :-
(i) इस अधिनियम के उपबंधों के उल्लंघन में कोई भर्ती करता है;
(ii) उसी कार्य अथवा उसी प्रकृति के कार्य हेतु पुरुष और महिला कामगारों को असमान दरों पर पारिश्रामिक का भुगतान करता है; और
(iii)इस अधिनियम के उपबंधों के उल्लंघन में पुरुष और महिला कामगारों के बीच कोई भेदभाव करता है; अथवा
(iv) समुचित सरकार द्वारा दिए गए किसी अनुदेश का पालन नहीं करना अथवा करने में असफल रहता है तो वह जुर्माना अथवा जेल या दोनों से दंडनीय है।
जहां इस अधिनियम के अंतर्गत किसी कंपनी द्वारा कोई अपराध किया गया तो प्रत्येक व्यक्ति जो अपराध के समय प्रभारी था और कंपनी के व्यवसाय संचालन हेतु कंपनी के प्रति जवाबदेह था के साथ-साथ कंपनी को इस अपराध के लिए अभियुक्त माना जाएगा और उसके विरुद्ध कार्रवाई की जा सकती है और तदनुसार दंड दिया जाएगा।
स्रोत: भारत सरकार का श्रम व रोजगार मंत्रालयअंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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