पलामू प्रखण्ड या पालामऊ भारतीय राज्य झारखंड का एक जिला है। जिले का मुख्यालय कोयल नदी पर स्थित डाल्टेनगंज में है। इस जिले का क्षेत्रफल - 5043.8 वर्ग कि.मी. है। यह जिला अक्षांश - 23*50’ - 24*8’ उत्तर और देशांतर - 83*55’ - 84*30’ पूर्व में अवस्थित है। डाल्टेनगंज का नाम कर्नल डाल्टन पर पड़ा है जो 1861 में छोटानागपुर के कमिश्नर रहे थे। राजधानी रांची से डाल्टेनगंज की दूरी लगभग 165 कि.मी. है। यह जिला उत्त्तर में सोन नदी से घिरा हुआ है जो इसे बिहार के रोहतास और औरंगाबाद जिलों से अलग करता है, वहीँ पूर्व में चतरा और हज़ारीबाघ ; दक्षिण में लातेहार और पश्चिम में गढ़वा और छत्तीसगढ़ राज्य से घिरा हुआ है।
पुराने डाल्टेनगंज जिला तीन भाग में बांटा गया है :
पलामू, गढ़वा एवं लातेहार
इस जिले के प्रखंड - मेदिनीनगर, चैनपुर, रायगढ़, सतबरवा, लेस्लीगंज, पांकी, पाटन, पंडवा, नावाबाजार, विश्रामपुर, पांडू, उंटारी, मोहम्मदगंज, हैदरनगर, हुसैनाबाद, छतरपुर, नौडीहा, हरिहरगंज और पिपरा।
इस प्रखंड का जनसमुदाय मुख्यतः जनजातीय है जिनमें खेरवार, चेरो, मुंडा, उरांव, बिरजिया और बिरहोर शामिल हैं। पलामू के जनजातीय समुदाय पवित्र वनों की पूजा करते हैं, वे करम वृक्ष को पवित्र मानते हैं और वर्ष में एक बार करमा पूजा के अवसर पर उसकी आराधना करते हैं। हाथी, कछुआ, सांप आदि अनेक जीव-जंतुओं की भी पूजा होती है। इन प्राचीन मान्यताओं के कारण सदियों से यहां की जैविक विविधता पोषित होती आ रही है।
खेरवार
ये अपने-आपको सूर्यवंशी क्षत्रिय मानते हैं और अपना उद्गम अयोध्या से बताते हैं। करुसा वैवस्वत मनु का छठा बेटा था। उसके वंशजों को खरवार कहते हैं।
ऐतरेय अरण्यक
इनमें चेरों का काफी गुणगान हुआ है, यद्यपि वे वैदिक कर्मकांड में विश्वास नहीं रखते थे। चेरो अपना उद्गम ऋषि च्यवन से मानते हैं।
मुंडा
ये खेरवारों से ही निकली जनजाति है। रामायण में उसके दक्षिण की ओर पलायन का उल्लेख है। महाभारत में मुंडों ने कौरवों का साथ दिया था और वे भीष्म की सेना में लड़े थे।
जिले की जानकारी |
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स्त्रोत |
कुल क्षेत्रफल (वर्ग कि.मी.) |
5043.8 (वर्ग कि.मी.) |
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कुल गाँव |
1918 |
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बसे हुए गाँव 2001 |
1910 |
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निर्जन गाँव 2001 |
8 |
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कुल घर |
252319 |
census 2001 |
कुल ग्रामीण घर |
237337 |
census 2001 |
कुल शहरी घर |
14982 |
census 2001 |
ग्राम पंचायतों की संख्या |
283 |
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प्रखंडों की संख्या |
20 |
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पलामू नाम कहाँ से लिया गया है, इसका कोई जिक्र तो नहीं है, किन्तु कुछ जगह पर पाए गए सूचनाओं के अनुसार ‘पाला’ अर्थात बर्फ से जमा हुआ और ‘मू’ यानि मृत से लिया गया शब्द है जिसका मतलब हुआ बर्फ के कारण मृत। इस जिले के कुछ भाग जाड़े के मौसम में बिलकुल निर्जन हो जाते है। अन्य एक कहानी है यह है की इस जिले का नाम असल में द्रविड़ियन काल से है।
जनसँख्या |
नंबर |
प्रतिशत |
स्त्रोत |
कुल जनसँख्या |
1936319 |
100 |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
ग्रामीण जनसँख्या |
1710612 |
88.35 |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
शहरी जनसँख्या |
225693 |
11.65 |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
पुरुष जनसँख्या |
1003876 |
51.84 |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
महिला जनसँख्या |
932443 |
48.16 |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
अनुसूचित जाति की जनसँख्या |
423642 |
27.55 |
जनगणना 2011 |
अनुसूचित जनजाति की जनसँख्या |
138960 |
9.03 |
जनगणना 2011 |
जनसँख्या – अन्य |
- |
- |
- |
जनसंख्या घनत्व (प्रति वर्ग किलोमीटर) |
381 |
- |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
जनसंख्या वृद्धि दशक का प्रतिशत (1991 - 2001) |
25.94 |
- |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
विधानसभा क्षेत्रों की संख्या |
5 (डाल्टेनगंज, पांकी, छतरपुर, हुसैनाबाद और बिश्रामपुर) |
बसे हुए घर |
नंबर |
प्रतिशत |
बिजली की सुविधा वाले घर |
- |
34.5 (DLHS-3) |
साफ़ पानी की उपलब्धता वाले घर |
- |
99.83 (DLHS-3) |
कुल गांवों की संख्या जहाँ पक्के रोड है |
- |
23.57 गाँव |
श्रमिक |
पुरुष |
महिला |
कुल |
कुल श्रमिक |
349538 |
183468 |
533006 |
मुख्य श्रमिक |
245317 |
55179 |
300496 |
सीमान्त श्रमिक |
104221 |
128289 |
232510 |
किसान |
127082 |
54523 |
181605 |
कृषि श्रमिक |
- |
- |
254389 |
बीपीएल जनसँख्या |
- |
- |
187512 (79%) census 2001 |
लिंग अनुपात |
- |
- |
947 |
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संसाधन |
कुल |
वन भूमि (हेक्टेयर) |
140776.41 |
शुद्ध बुवाई क्षेत्र (हेक्टेयर) |
89791 |
परती भूमि (हेक्टेयर) |
84953 |
खेती के लिए अनुपयुक्त ज़मीन (हेक्टेयर) |
48692.68 |
पशुपालन |
नंबर |
पशु अस्पताल |
8 |
पशु औषधालय |
8 |
ऐ.आई. सेंटरों की कुल संख्या |
25 |
शिक्षा |
नंबर |
प्रतिशत |
स्त्रोत |
कुल शिक्षित |
1061012 |
65.5 |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
पुरुष साक्षरता दर |
649639 |
76.27 |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
महिला साक्षरता दर |
419366 |
53.87 |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
पुरुष साक्षरता दर (ग्रामीण) |
549922 |
62.10 |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
महिला साक्षरता दर (ग्रामीण) |
349343 |
42.33 |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
पुरुष साक्षरता दर (शहरी) |
91717 |
77.44 |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
महिला साक्षरता दर (शहरी) |
70023 |
65.28 |
जनगणना 2011 प्रोविजनल डाटा |
अनुसूचित जाति साक्षरता |
113155 |
26.71 |
जनगणना 2001 |
अनुसूचित जनजाति साक्षरता |
47885 |
34.46 |
जनगणना 2001 |
प्रशासनिक इकाई |
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पुलिस स्टेशन की कुल संख्या |
14 |
वार्षिक वर्षा (मि.मि.) |
1335 (मि.मि.) |
कुल रेलवे स्टेशन |
29 |
कुल निबंधित वाहन |
- |
डाकघरों की कुल संख्या |
200 |
कुल टेलीफोन लाइन |
299 |
प्रमुख समाचारपत्र |
प्रभात खबर, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, आज, सन्मार्ग- सभी हिंदी हिंदुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, द पायनियर – सभी अंग्रेजी |
बैंकों की कुल संख्या |
60 वाणिज्यिक बैंक; 33 सहकारी वाणिज्यिक बैंक |
पलामू जैविक विविधता की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। पेड़-पौधों की दृष्टि से पलामू अत्यंत समृद्ध है। यहां लगभग ९७० प्रकार के पेड़-पौधे हैं, जिनमें शामिल हैं १३९ जड़ी-बूटियां। पलामू के प्रमुख वनस्पतियों में शामिल हैं साल, पलाश, महुआ, आम, आंवला और बांस। बांस हाथी और गौर समेत अनेक तृणभक्षियों का मुख्य आहार है।
साल झारखंड राज्य का प्रतीक वृक्ष है। झारखंड राज्य का प्रतीक पुष्प पलाश है। पलाश गर्मियों में फूलता है और तब उसके बड़े आकार के लाल फूलों से सारा जंगल लाल हो उठता है, मानो जंगल में आग लग गई हो। इसीलिए पलाश को जंगल की ज्वाला के नाम से भी जाना जाता है। उसके अन्य नाम हैं टेसू और ढाक।
पलामू में निम्नलिखित प्रकार के वन पाए जाते हैं:
शुष्क मिश्रित वन
पहाड़ियों की खुली चोटियों में और पहाड़ों के दक्षिण और पश्चिम भागों में जहां कम बारिश होती है, ऐसे पेड़-पौधे पाए जाते हैं जो शुष्क जलवायु को बर्दाश्त कर सकते हैं। मैदानों में बेल वृक्ष के वन हैं। इन वनों में अन्य प्रकार के वृक्ष कम ही होते हैं। यह झूम खेती के कारण है। इन मिश्रित वनों में साल के पेड़ लगभग नहीं होते। चूंकि पेड़ों की डालें बार-बार काटी जाती हैं और अति चराई और आग का खतरा बराबर बना रहता है, इसलिए पेड़ बौने और मुड़े-तुड़े होते हैं और उनकी ऊंचाई ६-७ मीटर से अधिक नहीं होती।
साल वन
तीन प्रकार के साल वन पलामू में मौजूद हैं।
शुष्क साल वन
मैदानों, नीची पहाड़ियों और पहाड़ों के पूर्वी और उत्तरी भागों में मिलते हैं। यद्यपि इन वनों में साल वृक्ष का आधिपत्य है, फिर भी वृक्ष २५ मीटर से अधिक ऊंचाई नहीं प्राप्त करते।
नम साल वन
पहाड़ों की निचली ढलानों, विशेषकर कोयल नदी के दक्षिण में स्थित बरेसांद वनखंड की घाटियों में मिलते हैं। इन वनों में साल अच्छी तरह बढ़ता है और ३५ मीटर से अधिक ऊंचा होता है। इन वनों के बीच में जगह-जगह खाली स्थान नजर आते हैं। यहां पहले खेत हुआ करते थे।
पठारी इलाकों का साल वन
नेत्रहाट पठार में 1,000 मीटर की ऊंचाई पर मिलता है। यहां केवल साल वृक्षों के विस्तृत वन हैं। यह वन मूल वन के काटे जाने के बाद उग आया वन है।
नम मिश्रित वन
इस प्रकार के वन घाटियों के निचले भागों और बड़ी नदियों के मोड़ों के पासवाले समतल इलाकों में मिलते हैं। यहां सब मिट्टी में अतिरिक्त नमी रहती है जो गर्मियों के दिनों भी बनी रहती है। यहां वृक्षों की घटा पूर्ण होती है इसलिए जमीन तक अधिक रोशनी नहीं पहुंचती, जिससे जमीन पर घास कम होती है।
पलामू में दो दुर्ग हैं जो वर्तमान समय में कुछ जर्जर हो चुके है, लेकिन ये आज भी इस क्षेत्र की शान हैं और पर्यटकों के लिए प्रमुख आकर्षण केंद्र भी। इन किलों को 'पुराना किला' और 'नया किला' कहा जाता है। ये दुर्ग चीरो राजवंश के राजाओं की देन हैं। इस किले को राजा मेदीनी राय ने बनवाया था। यह दुर्ग चेरोवंशीय साम्राज्य के वैभवशाली इतिहास का प्रतीक है।
पलामू के मुख्यालय मेदिनीनगर (डाल्टनगंज) के दक्षिण दिशा में कोयल नदी के तट पर अवस्थित शाहपुर किला पलामू इतिहास के सैकड़ों वर्षों की स्मृतियों को समेटे बद्हाल अवस्था में खड़ा है। स्थानीय लोग इस किले को 'चलानी किला' भी कहतें हैं। इतिहास के अनुसार इसका निर्माण 1766-1770 के आसपास चेरोवंशीय राजा गोपाल राय ने करवाया था और चेरो सत्ता के अवसान काल के दौरान पलामू का सम्राज्य को यहीं से संचालित किया जाता था। सन् 1771 में पलामू किला पर अंग्रेजों के आक्रमण और नियंत्रणाधीन होने के बाद शाहपुर किला ही राजा का निवास स्थान बना।
कहा जाता है कि इस किले से सुरंग के रुप में एक गुप्त मार्ग पलामू किला तक जाता था। इस किले में चेरो वंश के अंतिम शासक राजा चुड़ामन राय और उनकी पत्नी चंद्रावती देवी की प्रतिमा स्थापित की गई है। शाहपुर मुख्य मार्ग पर स्थित इस किले से कोयल नदी समेत मेदिनीनगर क्षेत्र के मनोहारी प्राकृतिक दृश्य को देखा जा सकता है। कुछ वर्ष पूर्व इस किले को पुरातात्विक महत्व का घोषित किया गया हैं।
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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