यदि आप एक शिक्षक हैं, तो आपको भी यह चिंता सताती होगी कि क्या आपके छात्र आपके द्वारा किये प्रयासों से वाकई में कुछ सीख रहें है कि नहीं। इस बात का कुछ अनुमान छात्रों की भाव भंगिमा और कक्षा में उनकी भागीदारी से लगाया जा सकता है, लेकिन यह भी हो सकता है कि जब आप बाद में परीक्षा लें, तो पायें कि छात्रों का अधिगम अपर्याप्त है अथवा ख़राब है अथवा कुछ ही छात्रों ने आपकी आशानुसार प्रगति की है। अपने परिश्रम का अपेक्षित परिणाम ना पाकर, शायद आप हताश और निराश महसूस कर सकते हैं। इस स्थिति में सुधार के लिए अक्सर काफी देर हो चुकी होती है अधिकांशत: यह भी होता है कि यदि कक्षा बाद के उपविषयों पर पहुँच चुकी है तो बाद के विषय भी महसूस हो सकता है कि आपके छात्र, अपने स्वयं के अधिगम की जिम्मेदारी नहीं ले रहें और न और आपको उन्हें इस ओर प्रयास करने के लिए किसी न किसी तरह धकेलना पढ़ रहा है।
स्वयं को इस निरंतर तनाव से बचाने के लिए आप क्या कर सकते हैं? संसार भर में यह जाना जा रहा है कि शिक्षक को इस निराशा से बचाने का और अपने शिक्षण को बेहतर करने में उसकी मदद करने का एक तरीका है, रचनात्मक आकलन। लेकिन यह नई प्रणाली जिसे भारत में सी. सी. ई. (सतत एवं समग्र मूल्यांकन) के नाम से जाना जाता है, को अक्सर गलत समझ लिया जाता है। वर्तमान में सी. सी. ई छात्रों की मदद उस तरह से नहीं कर पा रहा है जैसे कि इसे करना चाहिए। प्रचलित आकलनों से सी. सी. ई. भावार्थ और क्रियान्वयन तरीकों में भिन्न हैं, और इस पुस्तिका मेम्ह्म सीखेगें की आकलन को लग तरह से कर छात्रों और शिक्षक कि मदद कैसे की जा सकती है। सी. सी. ई. पद्धति वास्तविक रूप में कक्षा कक्ष की स्थिति में अमूल परिवर्तन करने में मदद करता है अर्थात स्थिति में रह कर उसमें सुधार लाना। यह शिक्षक का बोझ और तनाव कम करने में भी मदद करता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो शिक्षण अधिगम के साथ चलती है और यही कारण है कि “सतत” शब्द उसका महत्वपूर्ण भाग है। हम पहले इस भाग पर चर्चा करेगें और फिर समग्र पर आयेंगे। यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि सतत आकलन का अर्थ छात्रों की बार – बार परीक्षा लेना मात्र नहीं है। प्रचलित तरीके से परीक्षा लेना अक्सर छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए ही बेहद बोझिल और तनावपूर्ण होता है। सी. सी. ई. अधिगम में केवल तभी मददगार हो सकता है, जब छात्रों और शिक्षकों दोनों के लिए ही कक्षा कक्ष के तनाव एवं बोझ में कमी ला कर शिक्षण – अधिगम को भयविहीन के साथ – साथ सुरक्षित भी बनाया जा सके।
आकलन में निरंतर को समझने के लिए एक ऐसे डाक्टर के बारे में विचार करें, जो मरीज का इलाज लंबे समय से कर रहा है। डॉक्टर मरीज की स्थिति का निदान पहचान कर उसे दवाई देता है, लेकिन साथ ही साथ वह समय - समय पर जांचता भी रहता है कि इलाज कारगर है या नहीं। निदान स्वरुप, यदि अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते तो इलाज प्रणाली को बदल देता है। शिक्षक के पास बीमार मरीज तो नहीं होते, जिनकी स्थिति में सुधार की आवश्यकता हो, लेकिन उसे भिन्न – भिन्न अधिगम आवश्यकताओं और रुचि वाले छात्रों की साथ काम करना होता है। अपने कार्य में समायोजन के लिए उसे भी मोटे तौर पर डॉक्टर जैसे ही निदान तरीकों का प्रयोग करना होता है। वह समय समय पर जाँचता है कि उसका शिक्षण कितना प्रभावी हैं और अधिगम में कितनी और क्या कमी है। यह बेहद विचारशील और रचनात्मक प्रक्रिया है, क्योंकि इसमें अधिसंख्या छात्र शामिल हैं जो सीखने के भिन्न स्तरों पर है, और शिक्षक के हर कार्य/कोशिश पर अलग तरह से प्रतिक्रिया अथवा व्यवहार करते हैं। अंत: आवश्यक है कि अपने छात्रों के बारे में अपने पूर्वज्ञान का प्रयोग करके शिक्षक लगातार सतर्क जाँच करता रहें। सी. सी. ई. की अवधारणा है कि शिक्षक एक ऐसा विचारशील कार्यकर्ता है जो लगातार छात्रों से हो रहे संवाद पर विचार करता रहता है।
सबसे पहले हम सी. सी. ई. और आकलन से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण शब्दावली और गलत धारणाओं की चर्चा करेंगे –
किसी को भी अच्छा छात्र बनाने में व्यक्तित्व को बहुत से आयामों का योगदान होता है। सी. सी. ई. को जो समग्र भाग है वह सुझाव देता हैं कि शिक्षक छात्रों के अधिगम (सीखने) को संपूर्ण दृष्टि से उनके निजी और सामाजिक गुणों से जोड़कर देखें। कक्षा में छात्रों की सामान्य/नियमित गतिविधियों का निरंतर आंकलन (जो विशेषकर अवलोकन द्वारा किया जाना है) में इन आयामों (सामाजिक एवं निजी/व्यक्तित्व) को भी शामिल करना चाहिए। यही वो सभी आयाम हैं जो सी. सी. ई. को समग्र बनाता है।
हालाँकि, यहाँ यह पहचानना, महत्वपूर्ण है कि इनमें से बहुत से गुण ऐसे हैं जिनकी जाँच थोड़े, समय में नहीं किया जा सकती तो कुछ ऐसे भी हैं जिनकों ठोस प्रमाण के आधार पर रिकार्ड नहीं किया जा सकता है। उत्साह, सहयोग, धैर्य, एकाग्रता, रुचि एवं प्रोत्साहन, दूसरों का सहयोग करना और एक दूसरे के पार्टी संवेदनशील होना इत्यादी कुछ ऐसे गुण है जिनका अवलोकन कई महीनों की ही किया जा सकता है और तब भी इन्हें ठोस प्रमाण सहित दूसरों को नहीं दिखाया जा सकता। शिक्षक इन गुणों का अवलोकन छात्र के संपूर्ण व्यक्तित्व को समझने और यह जानने के लिए कर सकता है कि इनका छात्र के विकास में क्या योगदान है। व्यक्तित्व के आयामों की परख के लिए औपचारिक परिक्षण के निर्माण बेहद कठिन हैं। इन आयामों में प्रगति की जाँच के लिए अधिकांशत: अनौपचारिक तरीके ही अपनाने चाहिए। इसके लिए भयहीन माहौल में मित्रवत तरीके से किया गया। स्व मूल्यांकन और सहपाठी मूल्यांकन ही उपयोगी है।
गणित का हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण योगदान है। यह न केवल रोजाना की गतिविधियों में सहायक होता है, बल्कि इससे तर्क शक्ति, अमूर्त चिंतन व कल्पना शक्ति का भी विकास होता है। यह जीवन को समृद्ध करता है तथा सोच में नये आयाम भी प्रदान करता है अमूर्त सिद्धांतों के विकास के संघर्ष के दौरान यह विद्यार्थियों को तर्क – वितर्क करने और उन्हें समझने की शक्ति प्रदान करता है तथा विभिन्न अवधारणाओं में अंत: संबंधों को देखने की क्षमता प्रदान करता है। यह विकसित समझा हमें अन्य विषयों में भी अमूर्त विचारों के साथ कार्य करने में सहायक होती है। यह समझ हमें पैटर्नों और मानचित्रों को समझने और बेहतर उपयोग करने, आकार व मापों की सराहना करने तथा ठोस आकृतियों में समानताओं का अवलोकन करने में भी सहायक होती है।
एन. सी. एफ. – 2005 के अनुसार, उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित शिक्षण का मुख्य उद्देश्य दैनिक जीवन की कई समस्याओं को समझने तथा उन्हें हल करने करने के लिए तरीके प्रदान करना है। अंकगणित से बीजगणित की ओर संक्रमण इसका एक उदहारण है। प्राथमिक स्तर पर प्राप्त की गई दक्षताओं तथा अवधारणाओं का दृढ़ीकरण भी इस स्तर पर होना आवश्यक है। लेकिन इसमें बच्चों की रुचि को जोड़ना तथा समस्याओं के हल करने में सफलता का भाव प्रदान करना महत्वपूर्ण है।
उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित एक मुख्य चुनौती है। इसकी दोहरी प्रकृति, एक जीवन के अनुभवों के अत्यधिक समीप होना तथा दूसरी अमूर्तता से निपटना। बच्चे प्राय: केवल विचारों के सन्दर्भ में काम करने में सक्षम नहीं होते हैं। उन्हें उनके जीवन से जुड़े हुए अनुभवों और परिस्थितियों के सन्दर्भ की आवश्यकता होती है। ताकि वे उन विचारों का अर्थ निकाल सकें। इस स्तर पर हमारे सम्मुख एक चुनौती है कि बच्चों को किस प्रकार सन्दर्भों से जोड़ते हुए धीरे – धीरे इस निर्भरता से दूर करें। ताकि किसी विशेष परिस्थिती में उपस्थित सिद्धांतों की पहचान करने में सक्षमता के साथ – साथ वे केवल उस परिस्थिति पर निर्भर या परिस्थिति तक ही सीमित न रह जाए। जब बच्चे माध्यमिक विद्यालयों में आगे बढ़ेंगे, तो अति आवश्यक जो जाता है कि बच्चा इन सिद्धांतों का नये संदर्भों में प्रयोग कर पाने में सक्षम हो सके।
गणित सीखना, न सिर्फ प्रणालियों का प्रयोग, सही उत्तर निकालना और सही तरीके का प्रयोग है, बल्कि पैर्टन को पहचानना व उनके बीच तर्क पूर्ण संबंधों का पता लगाना है। उच्च प्राथमिक स्तर पर गणितीय कक्षाओं को निम्न बिन्दुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए –
गणित में बहुत सी अवधारणा अमूर्त हैं। उइन्हें बच्चों के लिए किस प्रकार से अर्थपूर्ण बनाया जाए, यह अध्यापकों के लिए लगातार एक चुनौती होती है। प्रारंभिक स्तर पर, जहाँ पर बच्चे अभी तक अपनी समझ से अमूर्तता दर्शाने के लिए पूरी तरह से सक्षम नहीं हुए हैं, गणितीय अवधारणाओं को कई तरीकों से पढ़ाना अर्थपूर्ण लगता है गणितीय विचारों को मूर्त सामग्रियों द्वारा दर्शाए जाने पर बल दिए जाने की आवश्यकता है। यहाँ पर आगे बढ़ते रहने की यानि बहुआयामी विधियों कि ओर बदलाव की आवश्यकता है, जिसमें बोलचाल की भाषा, मूर्त सामग्री, चित्र, वास्तविक जीवन संदर्भ और लिखित चिन्हों का उपयोग शामिल है। ऐसी सारी युक्तियाँ गणितीय सोच को विकसित करने में सहायक होंगी। आकलन की योजनाओं को समझने के लिए, जिनको सीखने के साथ - साथ नियोजित किया जा सकता है, कुछ एक उदहारण दिए गये हैं। यह अनुकरणीय सामग्री अध्यापकों को कक्षा के वातावरण में एक अंतदृष्टि प्रदान करेगी जहाँ पर आकलन को सीखने की प्रक्रियाओं के एक अभिन्न अंग के रूप में दर्शाने की कोशिश की गई है।
यह बात महत्वपूर्ण व ध्यान देने योग्य है कि एक अध्यापक ज्यादातर उन सब बातों का आकलन करेगा जो उसको लगता है कि उसके शिक्षण द्वारा बच्चे सीख गये होंगे। पढ़ाने से पूर्व, अध्यापक के लिए यह विचार करना महत्वपूर्ण है कि विद्यार्थियों से पाठ या शिक्षण द्वारा क्या सीखने की आशा है। हर उदहारण में, हमने ऐसा दर्शाने का प्रयत्न किया है
उदहारण 1
चर्चा बिन्दु : क्षेत्रफल एवं परिधि
समय : कम से कम एक साथ दो कलांश
1) ज्यामितीय आकृतियों, विशेष कर आयत के क्षेत्रफल और परिधि (परिमाप) की समझ का आकलन करना।
2) विद्यार्थियों में यह अनुभूति लाना कि समान क्षेत्रफल वाले आयातों की परिधि (परिमाप) असमान हो सकती है।
कक्षा – छ :
गतिविधि/ कार्य की शुरूआत करने से पहले, शिक्षक ने सीखने - सिखाने का वातारण बनाने के लिए छात्रों से उनके अधिगम अनुभव संबंधी प्रश्न पूछें, जैसे कि,
यह सुनिश्चित हो जाने के बाद कि. विभिन्न आकृतियों के क्षेत्रफल और परिधि की गणना से छात्रा भली भांति परिचित हैं, शिक्षक ने समूहों में यह गतिविधि करने का निश्चय किया।
शिक्षक कक्षा को चार चार बच्चों के समूह में बांटेंगे। किये जाने वाले कार्य का ब्यौरा शिक्षक देगा, जैसे कि, प्रत्येक समूह दिए गये वर्गांकित से 24 वर्ग इकाई क्षेत्रफल के जितने भी संभव आयत है बनाएगा। वर्गांकित कागज से भी संभव आयत काटने के बाद, प्रत्येक आयत की परिधि ज्ञात करेगा, और यह पता लगाएगा कि अधिकतम परिधि किस आयत की है।
एक बार सभी छात्रों को कार्य का विवरण समझाने के बाद शिक्षक छात्रों के प्रश्नों पर ध्यान देगा, जैसे कि, हम आयत के क्षेत्रफल की जाँच कैसे करेंगे? शिक्षक अन्य छात्रों की कुछ प्रश्नों का जबाव देने की अनुमति दे सकते हैं और अतिरिक्त प्रश्न पूंछ कर उनका निवारण भी कर सकते हैं। समस्त जिज्ञासाओं के समाधान के बाद समूह कार्य प्रारंभ होता है। अब जबकि छात्र दिए गये कार्य को करने में व्यस्त हैं, शिक्षक कक्षा में घूम - घूम कर समूहों का अवलोकन करता हैं और उनकी कार्यप्रणाली पर निम्न बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित करता है व लिखता है।
1. कार्य के बारे में समूह में चर्चा।
2. कार्य कैसे किये जाए संबंधी निर्णय।
3. 24 वर्ग इकाई के क्षेत्रफल वाले संभावित विभिन्न आयतों को ढूँढने/बनाने का तरीका/तरीके।
4. समूह के सदस्यों का एक दूसरे से सीखना।
5. समूह के कार्य करने का तरीका – निर्णय पर पहुँचने, इकट्ठे काम करना और एक दूसरे की की मदद करना।
ये सारे अवलोकन बिन्दु सतत आकलन का हिस्सा बनेंगे।
जब भी कोई समूह किसी कार्य पर अटक जाता है, तो शिक्षक उन्हें केवल कुछ संकेत/सुझाव देता है, ताकि वे कार्य के लिए आवश्यक तरीके स्वयं सोच सकें। जैसे – जैसे समूह कार्य आगे बढ़ता है, वैसे – वैसे किये जा रहे कार्य पर अन्य प्रश्न सामने आते हैं, जैसे कि काटे गये आयत का क्षेत्रफल व परिधि (परिमाप) कैसे लिखें।
छात्र: हमे आयत काट लिए हैं। अब हम परिधि (परिमाप) कैसे लिखें। शिक्षक अन्य समूहों को उनका अपना तरीका बताने और दिखाने की अनुमति देते हैं कि उन्होंने यह कैसे किया।
अन्य छात्र: हमने तो परिधि और क्षेत्रफल को आयत के ऊपर लिख दिया है। इस तरह से शिक्षक छात्रों के अनुभवों पर आधारित समस्या समाधान को प्रोत्साहित करते हैं।
आखिर में छात्र कार्य पूरा कर लेते हैं और, ज्यादातर समूह शिक्षक को बताते है कि उन्होंने काम पूरा कर है। शिक्षक प्रत्येक समूह को आमंत्रित करता है कि वह कक्षा के सामने अपने कार्य को प्रस्तुत करें। कार्य प्रस्तुति के लिए, शिक्षक समूह के प्रत्येक सदस्य को प्रस्तुती में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करता है। शिक्षक ऐसे प्रश्न करता है जो छात्रों की समझ और उनके कार्य को और अच्छे से आकलन करने में उनकी मदद करें। शिक्षक अन्य छात्रों को भी प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करता है।
संभावित आयतों की संख्या जानने का सबसे अच्छा तरीका क्या है और क्यों? |
शिक्षक उत्तरों का सूक्ष्म विश्लेषण सकते हैं, और अन्य समूहों को चर्चा में भाग लेने की अनुमति दे सकते हैं। |
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सहपाठी आकलन के लिए अन्य समूह से : इस समय शिक्षक अन्य समूहों को उत्तर देने की अनुमति देती है। (24 वर्ग इकाई क्षेत्रफल के संभावित आयतों की संख्या पर एक लघु चर्चा हो सकती है)।
क्षेत्रफल तथा परिधि के बीच के संबंधों और क्षेत्रफल एवं परिधि की अवधारणाओं की समझ और इस समझ को नई परिस्थिति में लागू करने की बच्चों की क्षमताओं के अधिक गहराई से जानने में यह आकलन शिक्षक की मदद करेगा।
प्रश्न |
उत्तरों का आकलन (अधिगम के लिए) |
आपके द्वारा काटे गये प्रत्येक आयत का क्षेत्रफल क्या है? |
यह जांचना की छात्रा दिया गया कार्य समझ पाए हैं या नहीं। |
सभी आयतों में अपने क्षेत्रफल को समान कैसे रखा? |
जवाब स्पष्ट रूप से दर्शायेगा कि सामान क्षेत्रफल के विभिन्न आयातों को बनाने के लिए समूह ने कौन सा तरीका अपनाया। |
आपका समूह क्षेत्रफल के कितने आयतों को काट सका? (जैसे कि 24 वर्ग इकाई) |
यह सुनिश्चित करना कि छात्रों को सही जानकारी मिली है और उन्होंने सब ही संभावनाओं की जाँच कर ली है। |
क्या आप बिना बनाये, 24 वर्ग इकाई क्षेत्रफल वाले सभी संभव आयतों के बारे में सोच पाते हैं? यह कैसे किया? |
यदि विद्यार्थी इस प्रश्न का उत्तर नहीं सोच पाते हैं तो अध्यापक उन्हें यह पूछकर संकेत दे सकते हैं कि क्या 24 के गुणन खंड यहाँ पर कुछ मदद कर सकते हैं। |
आकलन करना कि क्या छात्र शब्द समस्याओं को उनके रैखिक समीकरणों में बदल सकते हैं।
रमा गणित की शिक्षिका हैं। वह कक्षा 7 को बीजगणित पढ़ाती हैं। उन्होंने निम्न समस्या श्यामपट्ट पर लिखीं।
राघव के दादाजी की आयु 60 वर्ष है, जो कि राघव की उम्र के आठ गुना से चार अधिक है। राघव की उम्र क्या है?
शिक्षिका छात्रों द्वारा सीखी हुई अवधारणाओं के अधिगम स्तर तथा उनके पूर्व ज्ञान का आकलन करना चाहती है। साथ ही वैयक्तिक और विशेष आवश्यकता, यदि कोई है, तो उसको भी पहचानना चाहती हैं। ऐसा वह चर्चा के माध्यम से करना चाहती है।
उनहोंने छात्रों से प्रश्न पूछे, जैसे की बीजीय व्यजंक क्या होते हैं? यह किसी समीकरण से कैसे भिन्न होते हैं? आप, X में से यह 10 के बराबर हो जाता है, को गणित की भाषा में कैसे लिखेंगे? उन्होंने छात्रों को इस प्रकार के प्रश्नों के उत्तर ढूंढने के लिए प्रोत्साहित किया।
जब छात्र इस कार्य को करने में व्यस्त थे तो शिक्षिका ने अवलोकन किया कि कौन गंभीरता से उत्तर खोजने का प्रयास कर रहा है? क्या वह किसी सामग्री के मदद ले रहा है? क्या वह अपनी किसी दोस्त से चर्चा करके उससे उत्तर पाने का प्रयत्न कर रही है? इत्यादि।
शिक्षिका ने कक्षा में निम्न चर्चा कराई। दायें ओर शिक्षक और छात्रों के दृष्टिकोण का सार दिया गया।
चर्चा |
आकलन बिन्दु |
उन्होंने छात्रों को दी गई समस्या के विश्लेषण करने के लिए कहा। लगभग सभी छात्रों ने उत्तर दिया। 1) दादा जी की उम्र 60 वर्ष है 2) उन्हें राघव की उम्र ज्ञात करनी है। |
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शिक्षिका – राघव की उम्र का कैसे पता लगाया जाए? अमीना: सबसे पहले हमें समस्या को रैखिक समीकरण में बदलना होगा। शिक्षिका : रैखिक समीकरण क्या है? |
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अमीना (चुप रहती है) राजेश : 60 + 4 = 64 एक समीकरण है। राजेश : क्योंकि इसमें बराबर का निशान, संख्या एवं अंकगणितीय संक्रिया है। भावना : लेकिन इसमें चर राशि तो नहीं है और फिर राघव की 64 साल तो नहीं हो सकती क्योंकि दादाजी राघव से बड़े हैं। |
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शिक्षिक : चर से आपका क्या मतलब है? भावना : अंग्रेजी के उस अक्षर का उपयोग जो किसी अनजान मूल्य के लिए प्रयुक्त हुआ हो। यहाँ राघव के उम्र का पता नहीं है इसलिए इसे x के रूपों में लिया जा सकता है। |
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अधिकतर बच्चे भावना से सहमत थे। शिक्षक (राजेश से) : क्या तुम अपना समीकरण ठीक कर सकते हो राजेश : कोई उत्तर नहीं |
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सुधीर : यह है x + 4 = 60 शिक्षक : ध्यानपूर्वक पढ़िए, क्या इस शब्द समस्या में कोई और सूचना दी गई है? भावना : हाँ है। इसमें बताया गया है, राघव की आयु से आठ गुणा। सुधीर : इसलिए समीकरण बनेगा x + 4 x 8 = 60 |
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शिक्षक : आप ऐसा क्यों सोचते हो? सुधीर : क्योंकि यह समानता का चिन्ह है, अंकों, अंकगणितीय संक्रिया एक चर के साथ है। उसने फिर कहा : मैंने प्रश्न में दिए गये अंकों के अनुक्रम को समझा शिक्षक : क्या आप बता सकते हो कैसे? सुधीर : प्रश्न में ‘4’ पहले स्थान पर लिखा है, इसलिए उसने समीकरण में पहले 4 को जोड़ा क्योंकि आठ गुणा बाद में आता है, इसलिए उसने आठ से बाद में गुणा किया। पूजा : नहीं, यह ऐसे होगा x + 4 + 8 = 60 |
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शिक्षक (दोनों से) : ठीक हैं, अब अपने समीकरण को शब्द समस्या में बदलो और देखो क्या यह इस प्रश्न से मेल खाता है जो मैंने आपको दिया है। सुधीर : (कुछ रूककर) : मैं राघव की आयु को 4 x 8 में जोड़ रहा हूँ। पूजा : मेरे विचार से यह 4 + x + 8 = 60 होगा। शिक्षक : अपने समीकरण को शाब्दिक रूप से देखने का प्रयास करो जाँच करो। पूजा : (कोई उत्तर नहीं) शिक्षक : और कौन इसे कर सकता है? हामिद : मेरे विचार से यह 4 + x + 8 = 60 है। शिक्षक : अब इसे शाब्दिक रूप में बदल जाँच करो। हामिद : मैं इसमें राघव की आयु के आठ गुणा में चार जमा कर रहा हूँ जो दादा जी की आयु के बराबर है। |
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एक इकाई अथवा पाठ की समाप्ति के बाद, इस तरह की तकनीक का उपयोग करते हुए शिक्षक एक कार्य, जैसे कि गतिविधि, मौखिक परीक्षा, क्विज अथवा लिखित परीक्षा का चयन यह जानने के लिए कर सकते हैं कि बच्चे ने उस अवधारणा के बारे में क्या सीखा। इसका प्रयोग बच्चों की विशेषताओं एवं अधिगम स्तर में कमी के औपचारिक आलेख के लिए भी हो सकता है। औपचारिक आलेख का विवरण व इसे किस प्रकार से करना है सेक्शन 3 में रखा दिया गया है।
आकलन को समझने के लिए निम्न पक्षों पर ध्यान देना भी आवश्यक है।
अधिगम का आकलन वह विधि है जो हमें विद्यार्थियों द्वारा सीखें गये ज्ञान, कौशल व अभिवृत्ति का विवरण बताने में सहायता करता है। यह विधि अध्यापक केन्द्रित है तथा इसमें विद्यार्थियों की भूमिका नगण्य है। अध्यापक सीखने – सिखाने की गतिविधियाँ का निर्माण करता है कि विद्यार्थियों द्वारा क्या सीख लिया गया है तथा क्या सीखना बाकी है।
अधिगम के लिए आकलन प्राथमिक रूप से विद्यार्थियों द्वारा अध्यापकों के निर्देश तथा सहयोग में किया जाता है। इसे रचनात्मक आकलन के एक भाग के रूप में देखा जाना चाहिए। इस प्रक्रिया में विद्यार्थी को उपयोगी सुझाव देने पर अधिक बल है और अंक और ग्रेड देने पर कम बल है। आधारभूत रूप से अध्यापक सीखने की प्रक्रिया और आकलन का निर्माण करता है ताकि विद्यार्थी को सीखने की प्रतिपुष्टि की जा सके। अंतत: अध्यापक यह निर्णय लेता हैं कि क्या सीखा जा चुका है और क्या बाकि है, विद्यार्थी को भी यह अंतर्दृष्टि प्राप्त हो जाती है कि अभी क्या सीखना बाकी है।
यह निदान आधारित आकलन से जुड़ा है व इसका निर्माण मूलत: सहपाठी द्वारा अधिगम पर बल देने पर है। आकलन के इस रूप से स्वयं आकलन व सहपाठी आकलन के बहुत सारे अवसर प्राप्त होते हैं। इस विधि में अध्यापक और विद्यार्थी मिलकर, सीखने – सिखाने की प्रक्रिया, आकलन और सीखने की प्रगति के प्रारूप बनाते हैं।
अधिगम के लिए आकलन और अधिगम के रूप आकलन की गतिविधियाँ को सीखने – सिखाने की प्रक्रिया का अभिन्न अंग बनाना चाहिए ताकि ये पारस्परिक प्रतिपुष्टि का श्रोत बन सके व विद्यार्थियों को दोबारा सोचने व दोबारा सीखने का अवसर मिल सके।
अधिगम में आकलन खोज या प्रश्न पूछने को सीखने – सिखाने की प्रक्रिया के केंद्र में रखता है। यह अध्यापन के केंद्र बिन्दु को सही उत्तर से हटाकर सोचने पर बाध्य करने वाले प्रश्नों की ओर मोड़ता है। सी पूरी प्रक्रिया में विद्यार्थी, जो कि अधिगम के केंद्र पर है, स्वयं अधिगम का परिवेक्षण व आकलन करता है और उस पर विचार करता है तथा अध्यापक एक मार्गदर्शक और सलाहकार के रूप में कार्य करता है।
सतत आकलन में नियमित रूप से छात्रों के कार्य पर ग्रेड अथवा अंक देने का सुझाव नहीं है क्योंकि ऐसा करने का अर्थ है कि किसी एक समय पर (जैसा कि परीक्षा में किया जाता हैं) छात्रों के अधिगम (सीखने) को मूल्य देना जबकि छात्रों की समझ तो निरंतर विकसित होती रहती है। यह तो अधिगम में सुधार के लिए सहायक भी नहीं है। शिक्षण के बीच में अधिगम आकलन के लिए शिक्षक कार्य, प्रश्नों, लघु प्रश्नोत्तरी इत्यादि का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन इसका उद्देश्य केवल छात्रों को सहायता और प्रतिपुष्टि देना ही होना चाहिए। ऐसा सुझाव है कि नियमित प्रतिपुष्टि में कोई अंक अथवा ग्रेड न दिए जाए। इसके बजाए बच्चे को शिक्षक से केवल सुझाव मिलने चाहिए ताकि वह देख सके कि उसे कहाँ किस क्षेत्र में अधिक मेहनत अथवा ध्यान करने की आवश्यकता हैं, उदहारण के लिए आपके अपने आंकड़े फिर से देखने की जरूरत है। आप अपने सहपाठियों के कार्य को भी देख सकते है ताकि यह पता चल जाए कि आप कुछ गलती कर रहे हैं। आपका निष्कर्ष सही है, पर अपने यह दर्शाया नहीं कि आप इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे। (इसे कहते है केवल टिप्पणी द्वारा अंक देना) वास्तव में यह बच्चे की मदद करता है यह समझने में कि उसने क्या अच्छा किया है और उसे कहाँ सुधार की जरूरत है।
किसी छात्र को बुद्धिमानी और विचारशील मानव के रूप में आदर देने का एक तरीका है, उसे खुद के अधिगम (सीखने) का आकलन करने का अवसर देना। छात्रों को उनके स्वयं के अधिगम (सीखने) की जिम्मेदारी कभी न देकर हम उनके साथ बहुत अन्याय करते हैं। लेकिन स्वयं की प्रगति का असली आकलन तो केवल तभी हो सकता है जब व्यक्ति भय और दबाव से संपूर्णता मुक्त हो। हमें एक ऐसी स्थिति तक पहुँचने का प्रयास करना होगा, जहाँ कोई भी बच्चे बिना किसी डर, शर्म अथवा स्वयं के ठिगने प्रतिबिंब के बिना विश्वास के साथ शिक्षक को कह सके मुझे यह अवधारणा ठीक से समझ नहीं आई है। क्या आप इसे अच्छी तरह समझने में मेरी मदद कर सकते हैं? अथवा कुछ इसी प्रकार के विश्वास के साथ कह सके, मुझे लगता है कि मैंने इसे अच्छी तरह सीख लिया है, इतना अच्छी तरह कि मैं अपने कक्षा के साथियों को भी समझा सकता हूँ।
जब कक्षा में बहुत से छात्र हो तो आपको उनका आकलन करने के लिए रचनात्मक तरीके खोजने होंगे। अच्छी तरह से बनाई गई कार्य पत्रिकाएं, खुली पुस्तक आधारित चुनौतीपूर्ण कार्य योजनाएँ और उनको पूरा करने के लिए पर्याप्त समय (उदहारण स्वरुप गृहकार्य के रूप में) वैयक्तिक अथवा सामूहिक ऐसी परियोजनाएं जहाँ काम की गुणवत्ता से छात्रों के प्रयासों और उपलब्धी का पता चले – यह सब उत्साहित करने वाली संभावनाएं है। ज्यादातर तो ख़राब नमूने क्रियान्वयन और समझदारी के बजाये स्मृति पर जोर देने वाले, बंद पुस्तक वाले और समय की सीमाओं में उपलब्धी का परिक्षण करने वाले हैं। बाहरी परीक्षा बोर्डों द्वारा संचालित परीक्षाओं में यह सब (बेकार डिजाईन को छोड़कर) होता है, शायद यह बड़ी व्यवस्था की सीमा है। लेकिन शिक्षक अथवा विद्यालयों द्वारा ली जाने वाली कक्षा कक्ष की परीक्षाएं तो इन सीमाओं से मुक्त हो ही सकती हैं। अपने छात्रों को अच्छे से जानने का एक और सरल तरीका है, प्रतिदिन चाहे थोड़े ही समय के लिए चर्चा और संवाद की अनुमति देना। चर्चा इस से हटकर भी हो सकती है कि इस हफ्ते कक्षा में क्या कराया गया। यह कोई मौखिक परीक्षा तो नहीं है। यदि ऐसा हो जाए तो यह तो छात्रों के लिए तनाव का स्रोत हो जायेगा। इसके पीछे सोच यह है कि छात्रों की मौखिक परीक्षा न ली जाए जिससे उनको तनाव हो। मुख्य विषय के आसपास इस चर्चा को स्वतंत्र रखा जा सकता है, ताकि सभी छात्रों से वैध उत्तर मिल सके, हालाँकि इस प्रक्रिया में भी सभी को अपनी बात रखने का अवसर शायद न मिले। समय के साथ चुप, रहने वाले छात्रों को प्रात्साहित करने का प्रयास किया जा सकता है, ताकि वे भी कुछ प्रश्न पूछ सकें। जल्द ही आप यह समझ लेंगे कि हर बच्चा कहाँ है और यह आपकी विस्तृत रिपोर्ट को समृद्ध ही करेगा। ध्यान देने वाला मुद्दा है कि अपने छात्रों से सही उत्तर मात्र लेने के अलावा भी उनके कई क्षमताएं और आयाम है और शिक्षक होने के नाते आपको इनका पता लगाने के तरीके खोजने होगे। विषय का आनंद उठाना, योग्यता की स्वयं जानकारी, मौखिक अभिव्यक्ति, दूसरों को समझाना, धैर्यपूर्वक समस्या हल करना, कक्षा कक्ष में व्यवहार इन सभी आयामों पर आयामों पर प्रतिवेदन छात्र की तस्वीर में बहुत सारी संपन्नता/संपूर्णता ला सकती है। तुलनात्मक मूल्यांकन की यहाँ कोई जरूरत नहीं है हालाँकि जब भी आप किसी भी चीज का आकलन करते हो तो आपके मन में हमेशा एक मानक रहता है। यही तो अंतर है उसमें जिसे हम नियमाधारित और कसौटी आधारित परिक्षण कहते हैं। क्या हम कोई कसौटी विकसित कर सकते हैं (पूर्वं निरधारित नियम के बजाए) जिससे तुलना करके हम छात्रों का मूल्यांकन कर सकें ताकि हमें यह ना कहना पड़े कि, वह गणित में अपनी कक्षा के 54% छात्रों से बेहतर हैं, क्योंकि ऐसा कह देना बहुत उपयोगी नहीं होगा। निश्चित रूप से हम ऐसा कर सकते हैं।
कृपया ध्यान दें कि इनमें से एक अथवा अधिक किसी एक स्थिति में ज्यादा उचित हो। सभी को प्रत्येक स्थिति में प्रयोग नहीं किया जा सकता।
परंपरागत मूल्यांकन व्यवस्था लगभग पूरी तरह योगात्मक मूल्यांकन पर आधारित है, जिसे सत्रांत परीक्षा, मासिक परीक्षा, और इकाई परीक्षा द्वारा किया जाता है। इन परीक्षाओं का ध्यान इस बार पर होता है कि निश्चित अनुदेशन कालांश में, पूरा किये गये पाठ्यक्रम के निश्चित भाग, में छात्र ने कितनी प्रगति की। इसे योगात्मक कहा जाता था क्योंकि यह अनुदेशन के पूरा होने के बाद होता है, और यह शिक्षण अधिगम की सक्रिय प्रक्रिया से जुड़ा नहीं है।
यहाँ महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि छात्र के अधिगम की जाँच, किसी प्रकार के पूर्व निर्धारित मानकों को आधार पर की जाती है, जिन्हें पाठ्यक्रम अथवा अधिगम स्तर अनुरूप अपेक्षाओ अथवा अधिगम कालांश के आधार पर बनाया गया हो। इस प्रक्रिया में बच्चे की उपलब्धि का मूल्य निर्धारण कर उसे प्रगति पत्रक के रूपों में बच्चे, अथवा अभिभावक को दे दिया जाता है। इस प्रकार का मूल्यांकन परंपरागत परीक्षाओं में किया जाता रहा है। सी.सी.ई. की मूल भावना की आवश्यकता है कि इस तरह की प्रक्रिया में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किये जाएं।
ग्रेड निम्न तरीके से दिए जा सकते हैं –
बच्चे की शैक्षणिक उपलब्धि को पंच बिन्दु पैमाने A+, A, B, C, और D पर ग्रेड किया जा सकता है।
शैक्षणिक पैमाने की ग्रेडिंग :
D : निर्धारित अवधारणाओं/ज्ञान के बारे में बच्चे की मूल समझ कमजोर है और उसे अपने अधिगम में सुधार के लिए मदद और अतिरिक्त समय की आश्यकता हैं।
C : निर्धारित अवधारणाओं/ ज्ञान के प्रति बच्चे में मूलभूत समझ विकसित हो गई है, पर अभी भी उसे और काम करने की आवश्यकता हैं।
B : निर्धारित अवधारणाओं और ज्ञान की संतोषजनक समझ बच्चे में हैं।
A : निर्धारित ज्ञान/अवधारणाओं को बच्चे ने बहुत अच्छी तरह से समझा है।
A+: इस कालांश में करवाए गये कुछ विषयों के प्रति बच्चे ने अतिरिक्त रुचि, प्रतिभा अथवा रचनात्मकता दर्शायी है।
ग्रेड देते वक्त यदि शिक्षक इस प्रकार की टिप्पणियाँ दे तो यह बहुताधिक उपयोगी होगा। छात्र की पूर्णांकों संक्रियाओं की मूल समझ कमजोर है और उसे इसमें अतिरिक्त मदद की आवश्यकता है। बच्चे ने रैखिक समीकरणों की बेहद अच्छी समझ का प्रदर्शन किया है। क्षेत्रफल और परिधि संबंधी प्रश्नों को हल करने में बच्चे की विशेष रुचि है। इस प्रकार के कथन ऐ सा कहने से तो बेहतर ही हैं कि बच्चा बहुत ही रचनात्मक है, जो शायद अधिगम के सभी आयामों पर लागू भी न होता है। इस प्रकार की टिप्पणियों से अन्य शिक्षकों अथवा अभिभावकों को भी मदद मिलेगी कि वे बच्चे की मदद विशिष्ट विषय में विशेष तरीकें से करें जैसी उसको जरूरत है। इस सबके बिना योगात्मक आकलन केवल निर्णय सुनाने के स्तर तक सिमट कर रह जाता है, जो शायद त्रुटिपूर्ण, पक्षपातपूर्ण अथवा सब पर समान रूप से लागू, जैसे वक्तव्य होते हैं। यदि किसी बच्चे को मोटे तौर पर D ग्रेड मात्र दे दिया जाए, उसके बारे में बिना कोई विशिष्ट जानकारी दिए तो यह तो उसे ख़राब उपलब्धि वाला चिन्हित करने जैसे हुआ, जो उसे उसकी शक्तियों/अच्छाईयों पर पुनर्विचार करने के लिए उत्साहित करने में नाकाम होने के साथ साथ उसे अपनी कमजोरियों को सुधारने का अवसर भी नहीं देता है। इससे बच्चे के आत्मविश्वास, अधिगम उत्साह और सार्वजनिक छवि पर गंभीर चोट पहुँच सकती हैं। दूसरे हाथ पर, जिस बच्चे को केवल A ग्रेड मिला है, उसके संबन्ध में धारणा बन सकती है कि वह उपलब्धी के हर स्तर पर अच्छा है और इससे शायद वह अति विश्वास की ओर कालांश के मूल्यांकन तक ही प्रमाणित रहता है, और अच्छे अथवा ख़राब ग्रेड बच्चों के सम्पूर्ण विकास कालांश तक वैध नहीं रह सकते है। उसकी उपलब्धी और अधिगम स्तर में साल भर के दौरान बहुत से उतार चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं।
1. असाधारण प्रयास – मूल्यांकन कालांश के दौरान छात्र ने सामान्य प्रयास किया।
2. सामान्य प्रयास – मूल्यांकन कालांश के दौरान छात्र ने सामान्य प्रयास किया।
3. अधिक प्रयास की आवश्यकता हैं।
उदाहरण 1
1. ऐसी आकृति बनाओ जिसकी परिधि 10 इकाई हो (8 इकाई केवल कठिनाई स्तर को कम करने के लिए)
2. 10 इकाई की परिधिवाली कितनी भिन्न आकृतियाँ आप बना सकते हैं? यदि कहीं अटक रहें हैं तो वर्गाकार कागज का प्रयोग करके देखें।
इस प्रकार के कार्य प्रश्नों द्वारा बच्चे की गणितीय मॉडल बनाने की क्षमता की परीक्षा होता है, और मॉडल के आधार पर, (कठिनाई के भिन्न स्तरों पर आधारित) निष्कर्षों तक पहुँचने की क्षमता का पता लग सकता है।
उदहारण 2
समान आकार के 6 वर्ग काटें, जिनकी भुजा एक इकाई हो। निम्न प्रश्नों के उत्तर खोजें, (उपरोक्त वर्गों का उपयोग कर के, यदि आवश्यकता हो तो वर्गाकार कागज का इस्तेमाल भी किया जा सकता है)
I. 6 इकाई वर्गों का प्रयोग करके आप कितनी भिन्न आकृतियाँ बना सकते हैं? इन आकृतियों का क्षेत्रफल क्या होगा?
II. 6 इकाई वर्गों द्वारा बाने गई आकृतियों में से क्या आप निम्नतम परिधि वाली आकृति पहचान सकते हैं?
III. 6 इकाई वर्गों से बनी आकृतियों में से क्या आप निम्नतम परिधि वाली आकृति पहचान सकते हैं?
IV. अधिकतम और न्यूनतम परिधि वाली आकृतियों की परिधि इतनी क्यों हैं?
यदि आप उपरोक्त कार्यों का अवलोकन करें तो पायेंगे कि इस प्रकार के कार्य न केवल अवधारणाओं की समझ (इस मामले में परिधि की अवधारणा) का ही प्रमाण देते हैं बल्कि रचनात्मक, विश्लेषण कौशल इत्यादि के बारे में भी बताते हैं।
इस के कार्य भिन्न छात्रों की अवधारणा की समझ के स्तर को पहचानने में शिक्षक की मदद करते हैं। वह छात्र जो प्रश्न (iv) का उत्तर सफलता पूर्वक दे पाते हैं उनके बारे में कहा जा सकते हैं कि उन्होंने परिधि की अवधारणा को बहुत अच्छे से समझ लिया है और वह इसे भिन्न परिस्थितियों में लागू अथवा उपयोग कर सकते हैं।
उदाहरण 3
कार्य (क) : 11 से विभाजित होने वाली संख्याओं (उदहारण के लिए 11, 22,33,44,55.......) का परिक्षण करें और परखें कि क्या निम्न कथन सत्य है?
11 से विभाजित होने वाले संख्याओं के सभी अंक सामान होते हैं।
उत्तर: .................
11 से विभाजित होने वाली एक संख्या लिखें जो आपके उत्तर को सिद्ध करती हो। इसी कार्य का अतिरिक्त चुनौती वाला रूप अपने उत्तर को सिद्ध करने वाली एक संख्या लिखें।
उत्तर:.................
कार्य (ख) : 11 से विभाजित होने वाली संख्याओं (उदाहरण के लिए 110, 121, 132, ....176, 187, 198............) का परिक्षण करें और जांचे कि क्या निम्न कथन सही हैं:
11 से विभाजित होने वाली संख्या अक अंतिम अंक, अपने से पहले अंक से छोटा होता है।
उत्तर :.............
11 से विभाजित होने वाली संख्या लिखिए जो आपके उत्तर को सिद्ध करती हो (इस कार्य को और चुनौतीपूर्ण बनाया जा सकता है: आपके उत्तर को सिद्ध करने वाली एक संख्या लिखिए।)
उत्तर :...............
उपरोक्त उदाहरण के. पी. मोहनन और तारा मोहनन की पुस्तक “Answering Science Talent) से लिया गये हैं जो उपलब्ध है http://www.iiserpune.ac.in/- mohanan/education/htm)
सतत आकलन का तत्पर्य, वर्तमान अधिगम में सुधार और उसके बारे में जानकारी प्राप्त करना है, अत: यह आवश्यक नहीं है कि समस्त अधिगम के प्रमाण बहुतायत में एकत्रित किए जाये। उन्हें शिक्षक के अलावा अन्य व्यक्तियों को भी दिखाने की आवश्यकता नहीं है। फिर भी कुछ प्रतिवेदनों को छात्रों की अपनी यादों (उदहारण के लिए कार्य पुस्तिका में लेखन कार्य, कलाकृति, लिखित परीक्षा में उपलब्धि इत्यादि) के लिए रखा जा सकता हैं। अधिगम के कुछ प्रमाणों को शिक्षक भी अपनी निजी रिकार्ड/संकलन में रखना चाह सकता है ताकि उसे समय – समय पर छात्र की प्रगति के बारे में पता चला सके। इससे उसे कुछ समय के बाद मूल्यांकन करने में, छात्रों, अभिभावकों अथवा विद्यालय के साथ प्रगति साझा करने में मदद मिलेगी।
बच्चे का नाम |
अधिगम के प्रमाण |
वैयक्तिक सामाजिक गुणों और कौशलों पर गुणात्मक टिप्पणीयां |
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लिखित परीक्षा |
गतिविधियों अथवा कार्य योजना पर प्रतिवेदन |
रचनात्मक कार्य जैसे कि नमूने और पैर्टन बनाना |
परियोजना कार्य |
क्षेत्र भ्रमण की रिपोर्ट |
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अधिगम कौशलों की एक सूची यहाँ पर सुझाई गई है : स्वतंत्र कार्य, पहल ग्रहकार्य पूरा करना (कार्य संबंधी आदतें) जानकारी का प्रयोग, अन्य लोगों के साथ सहयोग, द्वंद सुलझाना, कक्षा में भागीदारी समस्या समाधान, और कार्य सुधार के लिए उद्देश्य निर्धारण,
शिक्षक इनमें से कुछ को अथवा इसी तरह के मानकों का चयन कर सकते हैं, जिन पर वह छात्रों के कौशलों को दर्ज करना चाहते हैं।
बच्चे की प्रगति के बारे में दूसरों को कैसे बताया जाए? हम यहाँ पर इस बारे में कुछ सुझाव दे रहे हैं, पर अंतिम निर्णय का अधिकार केवल शिक्षक और विद्यालय का होगा।
ध्यान में रखना आवश्यक है कि बच्चे की सामान्य विशेषताएं/ क्षमताएँ (उदहारण के लिए भाषा क्षमता, समझना, एकाग्रता निर्माण करना, आलोचनात्मक परख, नवाचारी उत्तर देना इत्यादि) और अभिरोचियाँ (जैसे की उत्साह, रुचि, कार्यनिष्ठा, सहयोग भावना इत्यादि) को कुछ दिनों, अथवा हफ्तों में कुछ गतिविधियों के माध्यम से परखा नहीं जा सकता। क्षमताएँ और अभिरूचियों बदल जाती हैं और इनका प्रभाव धीरे – धीरे कुछ महीनों अथवा सालों में होता है, और इसका प्रमाण कभी - कभी मिलता है। इनमें से कुछ की जाँच करना तो बहुत ही मुश्किल होगा, अत: व्यक्तित्व के हर पहलु पर बच्चे की जाँच करना फलदायी नहीं होगा और इसका परिणाम भी शायद त्रुटीपूर्ण अथवा अर्थहीन हो। बहुत बार विद्यालयों में बच्चों के गुणों को प्रगति पत्र सूचीबद्ध मानकों की लंबी संख्या के सामने चिन्हित किया जाता है, (अक्सर बिना पर्याप्त सोच, विचार पर प्रमाण के)
सामाजिक, निजी गुणों पर ग्रेड नहीं दिया जाने चाहिए। कभी – कभी निजी गुणों पर भी ग्रेड दे दिए जाते हैं। ऐसा करना अपर्याप्त होगा क्योंकि इस प्रकार के गुणों (जैसे कि आपसी सहयोग अथवा सहानुभूति) को सटीक रूप से न तो परिभाषित ही किया जा सकता है, और ना ही किसी व्यक्ति में पहचाना ही जा सकता है। इस प्रकार के गुणों पर एक बच्चे को A ग्रेड देना और किसी दूसरे को B देना बहुत मुश्किल काम है क्योंकि इस अंतर का कोई ठोस आधार नहीं हो सकता हैं।
हम लोग को कार्य आधारित छोटे अधिगम समूहों में बाँटने में शायद सफल जो सकते हैं, पर मानवों और मानवीय गतिविधियों जैसे कि भागीदारी, सहयोग, पूछताछ, और यहाँ तक कि दयालुता को भी ख़राब होता है, क्योंकि यह मानवीय गुणों, मूल्यों और विशेषताओं को मापन योग्य बनाने की कवायद है।
शिक्षक का एक ऐसी डायरी रखना मददगार हो सकता है, जिसका प्रत्येक पन्ना एक छात्र को समर्पित हो। जब भी किसी छात्र के बारे में कुछ विशेष बात देखे या महसूस करे तो वह उसे डायरी में उस छात्र के पन्ने पर दर्ज कर सकते हैं। यदि वह ऐसा नहीं करते हैं तो लंबा समय बीतने के बाद वह इसे भूल भी सकते हैं। जब भी किसी छात्र की रिपोर्ट (प्रतिवेदन) बनानी हो तो शिक्षक अन्य शिक्षक साथियों के साथ डायरी से भी सहायता ले सकते हैं। सभी शिक्षक सामूहिक रूप से निर्णय ले सकते हैं कि वह छात्रों के व्यक्तित्व को किन मानकों पर दर्ज करेंगे और वह छात्रों को संपूर्णता: से कैसे देखेंगे। इस रिपोर्टिंग प्रतिवेदन के लिए महत्वपूर्ण बिन्दु सहपाठी आकलन से भी लिए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए पूरी कक्षा से पूछा जा सकता है कि कौन सा छात्र सबसे ज्यादा सहयोगी, दयालू, उत्साही, संवेदनशील इत्यादि है। यह फीडबैक (प्रतिपूष्टि) लिखित रूप से भी ली जा सकती है और यदि बहुत से छात्रों की राय में इन मानकों पर सहमति दिखाई देती है तो इसे रिपोर्ट भी किया जा सकता है। यदि शिक्षक को व्यक्तित्व संबंधी आयामों पर कुछ भी ऐसा नहीं मिलता है जिसे रिपोर्ट किया जा सके तो वह उसे खाली भी छोड़ सकते हैं।
विषय/उपविषय (उदाहरण) |
ज्ञान |
समझ |
लागू करना |
टिप्पणी/अधिगम में सुधार/बढ़ोतरी करने के लिए किये गये प्रयास |
पूर्णांक
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परिभाषाएं, तथ्यों, प्रक्रियाओं/एल्गोरिथम इत्यादि |
व्याख्याएं, विधियों, एल्गोरिथम में छीपे कारणों की खोज इत्यादि |
दैनिक जीवन के भिन्न परिवेश में ज्ञान को लागू करने की क्षमता |
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ग्रेड पैमाना –
S - लक्षित ज्ञान/अवधारणाओं पर बच्चे की मूल समझ कमजोर है और उसे अतिरिक्त समय, और उपचारात्मक उपायों के द्वारा अपने अधिगम में सुधार की आवश्यकता हैं।
C – लक्षित ज्ञान/अवधारणाओं पर बच्चे की मूल समझ तो है, पर उसे अभी भी अधिक काम करने की ज़रूरत है।
B – लक्षित ज्ञान/अवधारणाओं पर बच्चे ने संतोषजनक समझ प्राप्त की है।
A - लक्षित ज्ञान/अवधारणाओं पर बच्चे ने बहुत अच्छी समझ प्राप्त की है।
A+- इस कालांश में कराए गये कुछ विषयों पर बच्चे ने अतिरिक्त प्रतिभा, रुचि अथवा रचनात्मक दर्शायी है।
प्रयास पैमाना
स्तर 1 – समन्योधिक/अत्याधिक अच्छे प्रयास : मूल्यांकन कालांश में बच्चे/छात्र ने अत्यधिक अच्छा/समन्योधिक प्रयास किये हैं।
स्तर 2 – सामान्य प्रयास : मूल्यांकन कालांश ने छात्र ने सामान्य प्रयास किया हैं।
स्तर 3 - अधिक प्रयास की आवश्यकता हैं : बच्चे को अधिक प्रयास के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
ध्यान दिया जाएँ कि योग्यताओं और अभिवृत्तियों के, लिए कोई ग्रेड नहीं दिया गये हैं। रिपोर्टिंग कालांश में शिक्षक को जो भी महत्वपूर्ण लगता है वह उसे दर्ज कर सकते हैं।
रिपोर्ट तैयार करने के बाद जरूरी है कि शिक्षक इसे बच्चे और अभिभावकों के साथ बांटे और अपने फीडबैक पर उनसे संवाद करे। ऐसा करना महत्वपूर्ण है और इसे सावधानीपूर्वक रचनात्मक और सकारात्मक तरीके से किया जाना चाहिए ताकि यह बच्चे की आत्म छवि अथवा आत्मविश्वास को नुकसान न पहुंचाए। नियमित रूप से भी बहुत से शिक्षक बच्चे को अनौपचारिक फीडबैक उसी समय दे देते हैं जब बच्चा अधिगम गतिविधि कर रहा होता हैं। फीडबैक के द्वारा हमें बच्चे को दूसरों के बजाए खुद से प्रतिस्पर्धा के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है। तुलना का आधार होना चाहिए – मैं कल अथवा सप्ताह पहले कहाँ था और आज कहाँ हूँ? बच्चों के तुलना विनाशक होती हैं और यह इस भावना की और भीं ले जाती है मैं किसी काम का नहीं हूँ। इसके विपरीत यदि किसी बच्चे ने बहुत अच्छा किया है तो उस पर और अच्छा करने के लिए शिक्षकों एवं अभिभावकों का दबाव हो सकता है, और इसमें उसमें अपने साथियों से श्रेष्ठ होने का भाव भी आ सकता हैं। यदि बच्चे अधिगम/सीखने/व्यवहार की किसी कमी की ओर इशारा ही करना है तो ऐसा सभी बच्चों के सामने करने के बजाए एकांत में, प्यार से करना बेहतर होता। बड़ो की ही तरह बच्चे भी अपनी गलतियों को सुधारना चाहने हैं, पर वह भी अपनी सार्वजनिक छवि के बारे में भी सचेत होते है।
अभिभावकों में सबसे ज्यादा यह जानने की चाह रहती है कि उनका बच्चा विद्यालय में कैसा कर रहा है। शिक्षकों को अक्सर लगता है कि कुछ टिप्पणियों जैसे कि – अच्छा कर सकता है, अच्छा ख़राब और प्रयास की आवश्यकता है इत्यादि के माध्यम से उनहोंने प्रभावी तरीके से अपनी बात अभिभावकों तक पहुँचा दी है। इस प्रकार के कथनों से स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती है कि बच्चे की योग्यता के बारे में गलत धारणा बर सकती है, जो कि अभिभावक को बच्चे की कठिनाइयों अथवा शक्तियों को समझने में उसकी किसी भी प्रकार की मदद करने में मुश्किल पैदा कर सकती हैं। यदि फीडबैक को समृद्ध और मददगार होना है तो सुझाव यह है कि शिक्षक सरल भाषा का प्रयोग यह बताने में करें –
योगात्मक आकलन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है अधिगम का सतत पर्यवेक्षण यह पता लगाने के लिए कि क्या शिक्षण का अपेक्षित प्रभाव पड़ भी रहा है कि नहीं। इसी लिए विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के संदर्भ में पहली आवश्यकता होगी उनकी जरूरतों के प्रति संवेदनशील अधिगम स्थिति का निर्माण। इसके बाद ही शिक्षक आकलन कर पायेंगें कि क्या बच्चा उनसे पर्याप्त रूप से लाभान्वित हो रहा है कि नहीं।
इस प्रकार के हर बच्चे की आवश्यकता अलग हो सकती है, इसलिए, शिक्षकों को विशेष अधिगम आवश्यकता को समझने और अधिगम बाधाओं को ध्यानपूर्वक पहचानने की जरूरत है। इसके बाद ही शिक्षक यह निर्णय कर पायेंगे कि बच्चे को सीखने के लिए किस प्रकार की मदद की आवश्यकता है। हो सकता है कि विशेष चुनौतियों का संदर्भ हो पहुँच, संवाद, चलना फिरना, शारीरिक/ भावनात्मक परेशानी। इस परिस्थिति में भी अधिगम संभव है। इसलिए, शिक्षक को समानुभूति का उपयोग करना जरूरी है ताकि वह खुद बच्चे की की जगह रखकर यह आकलन कर पाए कि क्या बच्चा समझ रहा है कि नहीं और क्या वह अपनी आवश्यकता के बारे में सही प्रकार से बता भी पा रहा है कि नहीं। शिक्षकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि अधिगम अवसरों को भिन्न तरीकों से और भिन्न कठिनाई स्तरों पर उपलब्ध कराया जाए ताकि योग्यता और आवश्यकताओं के भिन्न स्तरों को संबोधित किया जा सके। बहुत सी अधिगम स्थितियों में कुछ सुधार या बदलाव की जरूरत भी होगी ताकि बच्चा की इनमें भागीदारी हो सके। मानव करूणा और स्नेह के अभाव में बच्चे की मदद करना मुश्किल होगा। इसीलिए, शिक्षक को विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए रचनात्मक रूप से सोच कर बहुविधि अधिगम अवसर देने होंगे ताकि उनकी भागीदारी भिन्न तरीकों से और उनके उत्तर भी भिन्न प्रकारों से लिए जा सके।
नियमित मूल्यांकन में कुछ सामान्य तकनीकों को अपनाकर विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की मदद की जा सकती है। इनमें से कुछ निम्न है –
शिक्षकों के व्यवसायिक विकास हेतु आयोजित सेवाकालीन प्रशिक्षण के दौरान शिक्षाविदों को निम्न बिन्दुओं को ध्यान देने की आवश्यकता है।
सी. सी. ई. इस मान्यता पर आधारित है कि सीखना – सिखाना एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो कि बच्चे और उसके सहपाठी तथा शिक्षक के बीच बातचीत/चर्चा पर निर्भर करती है। शिक्षक ही वह व्यक्ति है जो कक्षा में बच्चों के साथ सबसे अधिक समय व्यतीत करते हैं। इसलिए बच्चे के सीखने की जरूरत, स्तर तथा प्रगति को आंकने के लिए शिक्षक ही सबसे उपयुक्त व्यक्ति है। यदि संरचनावादी आकलन में कोई रिकोर्ड रखना है, तो शिक्षिका को केवल सूचित कर दिया जाए, उसके बाद यह उन पर निर्भर है कि वह कौन सा रिकार्ड रखना चाहती हैं। प्रत्येक कक्षा का रिकार्ड जैसे – लेखन कार्य, चार्ट्स, ग्राफ्स, मॉडल्स, प्रोजेक्ट्स, पोर्टफोलियो, रिपोर्ट्स, द्रोइंग्स इत्यादि, दूसरे लोगों जैसे अभिभावकों आदि के साथ यदि जरूरत पड़े तो साझा किया जाए। विद्यालय की एक नीति हो कि शिक्षक क्या रिपोर्ट करें? लेकिन शिक्षक पर इस बात के लिए दबाव न डाला जाए कि वह अपनी प्रत्येक कक्षा तथा प्रत्येक गतिविधियों की निरंतर रिकार्डिंग तथा रिपोर्टिंग।
इसके लिए शिक्षा अधिकारीयों तथा विद्यालय निरीक्षकों द्वारा शिक्षकों की स्वायत्तता को सम्मान दिया जाना जरूरी है। सतत और समग्र मूल्यांकन के लिए जरूरी है कि कक्षा का वातावरण शिक्षक तथा बच्चों दोनों के लिए भयरहित हो। प्रशासक शिक्षकों को कक्षा में सीखने – सिखाने की प्रक्रिया के दौरान बच्चों से बातचीत और आकलन के लिए उत्साहित करें न कि पूरा सिखाने के बाद। वे कक्षा में चल रही सीखने – सिखाने की प्रक्रिया के लिए शिक्षकों को अपना फीडबैक दें, जिसके कुछ उदहारण पहले दिए जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त निम्नलिखित प्रयास किए जा सकते हैं-
1. चार से पांच दिवसीय एक मुश्त लघु प्रशिक्षण कार्यक्रम की योजना जहाँ तक संभव हो छुट्टीयों में बनाई जाए ताकि बच्चों और शिक्षकों का अधिगम में लगने वाला समय प्रशिक्षण में न लगे।
2. प्रशासकों के लिए यह जानना जरूरी है कि विद्यालय में बच्चे के सीखने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षकों के साथ उनकी लगातार/ नियमित बातचीत से ही अनेक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
3. समय – सारिणी में लचीलापन बहुत जरूरी है। शिक्षकों ने प्रशिक्षण कार्यक्रम में जो सीखा है, उन सभी विचारों को कक्षा में करके देखने में समय – सारिणी का लचीलापन सहायक होगा। यह लचीलापन पूरे स्कूल समय के भीतर ही होना चाहिए।
4. शिक्षकों को सरलता से उपलब्ध स्थानीय संसाधनों के इस्तेमाल, बच्चों को कक्षा के बाहर ले जाकर सीखना इत्यादि के लिए प्रोत्साहित करें, जो कि कई बार प्रधानाध्यापकों द्वारा नहीं किया जाता है।
5. शिक्षकों द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्राप्त जानकारी प्रधानाध्यापक तथा अन्य शैक्षिक अधिकारीयों जैसे – बी. आर. सी. के साथ बांटी जानी चाहिए। इसमें सभी को अपने विभिन्न विषय क्षेत्रों में समय – समय पर आये शिक्षण पद्धति के बदलावों की समझ बनाने तथा अपने ज्ञान और जानकारी को संबंद्ध करने में मदद मिलेगी।
6. शिक्षकों को यह आजादी हो कि वे बच्चों की जरूरत के अनुसार पाठ्यक्रम को पढाएं। उदाहरण के लिए अधिकांश विद्यालयों में शिक्षकों को पाठ एक कर्म से पढ़ाने होते हैं जो कि स्कूल सुझाता है। इस संबंध में शिक्षकों को स्वतंत्रता हो कि वे बच्चों की जरूरतों के अनुसार पढ़ाने में लचीलापन ला सकें।
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