एड्स या एक्वायर्ड इम्यून डिफीशिएंसी सिंड्राम एक ऐसी स्थिति है जो (एचआईवी) से होती है जो कि शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को धीरे-धीरे करके समाप्त कर देता है| एक्वायर्ड इम्यून डिफीशिएंसी सिंड्राम (एड्स) हयूमन इम्यूनो डिफीशिएंसी वाइरस (एचआईवी) से होता है जो रोगों से लड़ने की शरीर की प्रतिरोध क्षमता को धीरे-धीरे करके नष्ट कर देता है| जब शरीर की प्रर्तिरोध प्रणाली काफी कुछ समाप्त हो जाती है तो व्यक्ति संक्रमणों का मुकाबला नहीं कर पाता और उसे सामान्य एवं असमान्य, दोनों प्रकार के रोग होने लगते हैं जिससे बैक्टीरिया और वायरस जैसे सूक्ष्म जीवी पैदा होते हैं| एड्स के संकेत उस समय मौजूद प्रमुख संक्रमण के प्रकार पर निर्भर करते हैं और इसलिए अलग-अलग हो सकते हैं|
इम्यूनो डिफीशिएंसी वाइरस एचआईवी एड्स पैदा करने वाला वाइरस है जो एक विशेष प्रकार की श्वेत रक्त कोषिका में प्रवेश करके अपना असर दिखता अहि| कोषिका के भीतर यह कोषिका के अंगों पर पलता है और उसी की सामग्री को प्रजनन के लिए इस्तेमाल करता है| इससे कोषिका नष्ट हो जाती है| यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि शरीर का संक्रमण से बचाने का सामान्य कार्य करने हेतु पर्याप्त कोषिकाएँ नहीं रह जाती|
एचआईवी संक्रमित व्यक्ति के शरीर के अंदर काफी मात्रा में रक्त, वीर्य और योनि स्राव में पाया जाता है| हालाँकि इसके पसीने, लार, मूत्र, और माँ के दूध में होने के प्रमाण भी मिलें हैं, पर इनमें इसकी मात्रा नाम मात्र की होती है|
एचआईवी निम्मलिखित के माध्यम से फैलता है:
माँ के दूध द्वारा माँ से बच्चे को संक्रमण होने की संभावना बहुत ही कम होती है| अतः यह सलाह दी जाती है कि एचआईवी से ग्रस्त माँ को बच्चे को दूध पिलाना चाहिए क्योंकि भारत जैसे विकाशील देशों में बोतल से दूध पिलाना बच्चे को दस्त आदि जैसे अन्य संक्रमणों का काफी खतरा होता है| माँ का दूध बच्चे को अनेक संक्रमणों से बचाता है और उसकी रोग-प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है|
हालाँकि कोई भी व्यक्ति एचआईवी का शिकार बन सकता है, पर कई ऐसे उच्च-जोखिम वाले समूह हैं जिनमें एचआईवी/एड्स के रोगी अधिक पाए जाते हैं| इसका कारण उनका उच्च जोखिम उठाने वाला व्यवहार है| इन उच्च जोखिम वाले समूहों में पर स्त्री या पर-पुरुष से सम्बन्ध रखने वाले व्यक्ति (व्यवसायिक यौनकर्मी और उनके ग्राहक), समलैंगिक नसों के माध्यम से नशीली दवा लेने वाले, रक्त चढ़वाने वाले लोग और यौन रूप से संचारित संक्रमणों (एसटीआईज) से ग्रस्त लोग शामिल हैं|
एचआईवी/एड्स सिफिलिस और सूजाक जैसा यौन-संचारित संक्रमण भी है| एसटीआईज और एचआईवी/एड्स के रोगविज्ञान सम्बन्धी संकेत – जैसे कि सामान्य जोखिम उठाने वाला व्यवहार समान हैं पर एसटीआईज साथ ही एचआईवी के संचरण को प्रेरित करते हैं| एसटीआईज और एचआईवी के बीच सम्बन्ध का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि यदि किसी व्यक्ति को एसटीआई हो तो उसके एचआइवी-ग्रस्त होने संभावना दस गुना बढ़ जाती है|यह बात घाव का अल्सर वाले एसटीआई के बारे में ही नहीं, बल्कि बिना अल्सर वाले एसटीआई के बारे में भी सच है| बिना घाव वाले एसटीआई में सूजन मेम्बरेन या झिल्ली की छिद्रता को बढ़ा देती है और इस तरह एचआइवी के लिए शरीर में प्रवेश करना आसान हो जाता है|
एचआइवी केवल कुछ तरीको से ही फैल सकता है| इसलिए रोकथाम आसानी से की जा सकती है| एचआईवी अंत्यंत कमजोर विषाणु है और शरीर के तरल या ऊतक के बाहर यह ज्यादा समय तक जिन्दा नहीं रह सकता और यह यह बिना छिद्र हुए त्वचा में प्रवेश नहीं कर सकता | इसलिए एचआइवी हाथ मिलाने, गले लगाने, लिपटने, चूमने, सहलाने, साथ मिल कर खाने, एक ही शौचालय के प्रयोग, एक ही बर्तन में खाने, एचआइवी-संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आना, खाना खाने य पेय पीने, सक्रमित व्यक्ति ही देखरेख करने, उसके कपड़ों या बिस्तर का उपयोग करने, उसके साथ तैरने, या रक्तदान करने से नहीं फैलता| यह मच्छरों या कीड़े मकोड़ों के काटने से भीं नहीं फैलता|
उक्त कारणों से किसी को एचआइवी हुआ हो ऐसा कोई मामला भी तक देखने में नहीं आया है|
एचआइवी शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को तब तक कमजोर बनाता रहता है जब तक कि वह रोगों से लड़ने के काबिल नहीं रह जाती| शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली रोगों से हमारी हिफाजत करती है| अपने इस युद्ध में रोग प्रणाली एक “सिपाही” का उपयोग करती है जिसे श्वेत रक्त कोषिका कहते हैं| हर व्यक्ति के रक्त में करोड़ों श्वेत रक्त कोशिकाएं होती हैं| ये कोशिकाएं बाहर से आक्रमण करने वालों को भीतर आने से रोकती है| अगर उन्हें कोई शत्रु दिखाई देता है तो श्वेत रक्त कोशिकाओं की पूरी सेना रसायनों के साथ मिलकर उन पर आक्रमण कर देती है|
एचआइवी कैसे काम करता है
शोधकर्ताओं का मानना है कि की एचआइवी इन कोशिकाओं के भीतर घुस कर उन्हें पूरी तरह नष्ट कर देता है जिससे रोग-प्रतिरक्षा प्रणाली पूरी तरह से ध्वस्त हो जाती है| भीतर घुसने के बाद एचआइवी कोशिकाओं को, अपने को बहुगुणित करने वाली, एक फैक्ट्री में तब्दोल कर देता है और धीरे-धीरे और श्वेत रक्त कोशिकाओं पर हमला करता है| इस दौरान रोग-प्रतिरक्षा प्रणाली एचआइवी और दूसरे संक्रमणों से लड़ती रहती है| कुछ वर्ष के बाद वह कमजोर पड़ जाती है और एचआइवी से हार मान लेती है| श्वेत रक्त कोषिकाओं की संख्या घंटने लगती है| निमोनिया, मेनिनजाइटिस, कैंसर और टीबी जैसे रोग इस अवसर का फायदा उठाने हैं और शरीर की रोग-प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देते हैं इसलिए उन्हे अवसरवादी संक्रमण और कैंसर कहा जाता है|
एचआइवी संक्रमण की एक ऐसी अवस्था है जब रोग-प्रतिरक्षा प्रणाली बहुत ही कमजोर हो जाती है| एड्स को रोगियों को बार-बार गंभीर बीमारियाँ होती हैं| संक्रमण को इस अवस्था तक पहुचने में 8 से 10 वर्ष तक लग सकते हैं| एचआइवी और एड्स के लक्षण अलग-अलग लोगों में अलग-अलग होते हैं ऐसा इसलिए होता है कि:
वयस्क लोगों में एड्स के विकास को चार वर्गों में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार है:
क) आरंभिक संक्रमण
संक्रमण के कुछ समय बाद ही अधिकतर लोगों को कोई छोटी-मोटी बीमारी होती है| यह फ्लू से थोड़ी बड़ी बीमारी के समय भी संक्रमित व्यक्ति अपने को कुछ स्वस्थ सा महसूस करता है| संक्रमण के 3-6 महीने के बाद एचआईवी जाँच से यह पता चल जाता है कि व्यक्ति “एचआइवी पाजिटिव” इसके बाद अधिकतर लोगों में लबें समय तक एचआइवी के लक्षण और संकेत दिखाई पड़ते हैं| पर जहाँ एक ओर ये लोग अपने को स्वास्थ्य महसूस कर रहे होते है, वहीँ दूसरी ओर उनकी शरीर में एचआईवी में वृद्धि होती रहती है और वे ऊपर बताई गई किसी पद्धति से दूसरों को संक्रमित कर सकते हैं |
ख) एसिम्टामैटिक (उपगामी) वाहक की अवस्था
संक्रमित व्यक्ति स्वस्थ महसूस कर सकता है, पर वह इस अवस्था के दौरान दूसरों को संक्रमित कर सकता है| आरंभिक प्रयोगशाला जांचे. एक विशेष प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाओं में कमी को दर्शा सकती है| एक बार संक्रमित हो जाने के बाद व्यक्ति जीवन भर संक्रमण का वाहक बना रहता है क्योकि इसका कोई ईलाज आज तक उपलब्ध नहीं हो पाया है|
ग) एड्स सम्बन्धी जटिलताएँ
6 महीने से लेकर कई वर्षों तक संक्रमित रहने के बाद व्यक्ति में एड्स के आरंभिक लक्षण प्रकट होने लगते हैं जो इस प्रकार है:
कृपया इस बात का ध्यान रखें कि ये संकेत और लक्षण अन्य चिकित्सीय स्थितियों में भी हो सकते हैं, इसलिए इनकी उपस्थिति से अपने आप ही या नहीं समझ लेना चाहिए कि व्यक्ति को एचआईवी या एड्स है|
घ) एड्स
एचआइवी संक्रमण की या अंतिम अवस्था है| विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वयस्कों में एड्स की परिभाषा के अनुसार या शरीर की स्वाभाविक प्रतिरक्षा में कमी के ज्ञात कारणों के आभाव में एक से कम एक गौण संकेत के साथ जुड़े दो न्यूनतम प्रमुख संकेतों की उपस्थति है|
प्रमुख लक्षण
इन संकेतों और लक्षणो के अलावा एड्स की विशेषता है, कई अवसरवादी संक्रमण जैसे कि टीबी, कैंसर, मैंनिनजाइटिस, निमोनिया और अन्य फंगल एवं वाइरल संक्रमण| अतः संक्रमित व्यक्ति या तो प्रमुखतः एड्स के या अवसरवादी संक्रमणों के या दोनों के लक्षण प्रकट कर्ता है| एचआईवी-ग्रस्त बच्चों में ये लक्षण छः महीने की आयु में प्रकट होते हैं| पर जाँच द्वारा तब तक उनको एचआईवी होने का पता नहीं लगाया जा सकता जब तक कि वे 18 महीने के नहीं हो जाते|
गौण लक्षण
सामान्य कापोसीज सार्कोमा (भ्रूण-आबुर्द) या क्रिप्टोकोक्सल मैनिन्जइटिस अपने आप में एड्स के निदान के लिए पर्याप्त है|
एचआइवी की जानकारी पाकर लोग अक्सर यह जानना चाहते हैं कि कहीं वे भी एचआइवी से संक्रमित तो नहीं है| वे आपसे एचआईवी के लक्षणों के बारे में पुछ सकते हैं| एचआइवी के अधिकतर लक्षण अन्य चिकित्सीय स्थितियों जैसे होते हैं| अतः केवल संकेतों और लक्षणों के आधार पर एचआईवी/एड्स का निदान संभव नहीं होता| एचआईवी संक्रमण की पृष्टि करने का एकमात्र तरीका है एचआईवी की प्रयोगशाला जाँच|
एलिसा जाँच और डायग्नोस्टिक एचआईवी जाँच एंटीबाडीज का, एचआईवी के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया का पता लगाया जाता है, न कि स्वयं वायरस का| क्योकि शरीर जाँच में प्रकट होने के लिए पर्याप्त एंटीबाडीज बनाने में समय लगाता है, इसलिए एचआईवी संक्रमण की उपस्थिति में जाचं 6 महीने में पाजिटिव बन पाती है| संक्रमण और जाँच के पाजिटिव बनने के बीच की इस अवधि को “विंडो पीरियड” कहते हैं| “विंडो पीरियड” विशेष रूप से खतरनाक होता है क्योंकि व्यक्ति जाँच में तो ‘नेगिटिव’ होता है पर सामान्य तरीकों से वह दूसरों को संक्रमित करने में पूरी तरह से सक्षम होता है|
अत्यंत संवेदनपूर्ण होने के कारण एलिसा जाँच हमेशा संक्रमित व्यक्ति में एंटीबाडीज का पता लगा लेती है| कभी-कभी जाँच से ऐसी दूसरी चीजों का पता नही चल पाता जो दिखते तो एचआइवी एंटीबाडीज की तरह हैं, पर वास्तव में होते नहीं हैं| इसी तरह दूसरी जाचें भी गलत परिणाम दे सकती हैं| अतः गलत निदान से बचने के लिए या सलाह दी जाती हैं कि एक पाजिटिव जाँच की पुष्टि दूसरी जाँच से करें| बेहतर हो की यह जाँच किसी अन्य स्थान से कराई जाए| आरंभिक जाँच और एक पाजिटिव होने की पुष्टि करने वाली जाँच के बाद किसी व्यक्ति को एचआइवी पाजिटिव कहा जा सकता है| दुबारा जाचं के बिना निदान की कभी पुष्टि नहीं की जानी चाहिए|
एक बार यदि किसी व्यक्ति को एचआइवी संक्रमण जो जाये तो यह तय है कि वह रोग की अंतिम अवस्था तक पहुंचेगा| एड्स के संक्रमित आधे लोगों को लगभग 9 वर्ष के भीतर एड्स हो जाता है, और बाकी आधे लोगों को उसके बाद होता है| इस समय एचआइवी/एड्स का कोई इलाज नहीं है|
भारत और अन्य देशों में कई वैज्ञानिक एड्स की वैक्सीन तैयार करने के लिए कार्य कर रहें हैं, पर इसमें कुछ वर्ष और लग जायेंगे| तब तक हमें इस जानलेवा संक्रमण की रोकथाम पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए|
जहाँ एचआइवी संक्रमण और एड्स का इलाज नही हो सकता, वहाँ इस रोग से सम्बन्धित अवसरवादी संक्रमणों का उपचार हो सकता है| एचआइवी से ग्रस्त व्यक्ति को यह बात समझ लेनी चाहिए कि इस रोग के दौरान उसको जितने भी संक्रमण होते हैं उनका सामान्यतः उपचार किया जा सकता है| अवसरवादी संक्रमणों (टी.बी. कैंसर, आदि) का शुरू में ही उपचार कर लेना बहुत आवश्यक है क्योंकि इससे उनके स्वास्थ्य में गिरावट को रोकथाम की जा सकती है, और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है|पर यह बात याद रखनी चाहिए कि रोग के अंतिम चरण में अवसरवादी संक्रमण ही व्यक्ति को बीमार करते हैं और अंतः उसकी मृत्यु का कारण बनते हैं|
शिक्षा एचआइवी/एड्स की रोकथाम की सर्वोत्तम पद्धति है|
एचआइवी/एड्स के बारे में सिखने की जरुरत हर किसी को है –
कारण यह कि
एड्स किसी को भी ही सकता है चाहे उसकी जाति, लिंग और रंग कुछ भी हो| कई ऐसे लोगों को भी एचआइवी सेरो-पाजिटिव पाया गया है उच्च जोखिम वाले समूहों में नहीं आते जैसे कि प्रसवपूर्व देखरेख के लिए स्वस्थ्य केन्द्र जाने वाली गर्भवती गृहिणियां(एचआइवी संक्रमण वाले लोग अपने शरीर में अपने खून में एचआइवी के विरुद्ध एंटी-बाडीज दिखाई देते हैं, उसे सेरो-पाजिटिव कहते हैं)
हममें से कई अनजाने ही एचआईवी संक्रमण के खतरे में हो सकते हैं| किन्तु जो उच्च जोखिम वाला व्यवहार अपनाते हैं, उन्हें एचआईवी होने की संभावना दूसरों से ज्यादा होती है| उदाहरण के लिए:
एड्स शिक्षा तभी बेहतर ढंग से कारगर हो सकती ही जब पुर समुदाय इस रोग के बारे में जानकारी प्राप्त कर ले और सुरक्षित जीवन शैली को प्रोत्साहित करे| हर किसी को यह बात जाननी होगी कि एचआईवी किस तरह से नहीं फैलता ताकि वे व्यर्थ खतरों के बारे में चिंतित होकर समय न गवाएँ और दूसरों को दुख न पहुंचाएं|
एचआईवी के सम्पर्क में आने का खतरा निष्ठापूर्ण सम्बन्ध की पारस्परिक सहमति के दायरे से बाहर निकल कर असुरक्षित यौन कार्य से पैदा होता है| यह उससे पैदा नहीं होता कि यौन कार्य ”कौन” कर रहा है- यानी वह विवाहित, मित्र, अजनबी पुरुष के साथ यौन सम्पर्क करने वाला, यौन कर्मी और ग्राहक, अच्छा या बुरा, वृद्ध या युवा, समृद्ध या निर्धन कोई भी हो सकता है|
एचआईवी/एड्स के व्यापक फैलाव के साथ एसटीआईज की रोकथाम एवं नियत्रण के कार्य को प्राथमिकता देना जरुरी हो गया है, न केवल इसलिए कि एचआईवी/एड्स मुख्यतः एक यौन रूप से संचरित संक्रमण है, बल्कि इसलिए भी की एसटीआईज की रोकथाम के लिए उठाए गए सभी कदम एचआईवी संक्रमण की रोकथाम के लिए भी काफी प्रभावी होते हैं, क्योंकि दोनों ही रोगों का माध्यम यौन सम्पर्क है| सभी एसटीआईज की रोकथाम और आरंभ में ही उपचार से एचआईवी के संचरण में कमी आती है| आइए एसटीआईज के सम्बन्ध में कुछ बुनियादी तथ्यों पर गौर करें|
क. एसटीआईज की रोकथाम के लिए
ख. एसटीआईज के सामान्य लक्षण
आपको आम लोगों को या बताना चाहिए कि यदि उनमें उक्त में से कोई भी लक्षण हैं तो उन्हें तत्काल आपसे या किसी अन्य स्वास्थ्य कर्मी से सम्पर्क करना चाहिए जो अपने निकट के आधुनिक चिकित्सक के पास उसे भेज सकें|
ग. उपचार में विलंब खतरनाक हो सकता है
यदि एसटीआईज का तत्काल उपचार न किया जाए तो वे फैल कर शरीर के अन्य भागों को क्षति पहुंचा सकते हैं|
गर्भवती महिलाओं में एसटीआईज शिशुओं को संक्रमित कर सकते हैं जिससे उनके विकलांग होने और मरने का खतरा हो सकता है|
घ. एसटीआईज को छिपाएं नहीं
आपको आम लोगों को या सलाह देनी चाहिए कि एसटीआईज का उपचार कराने में वे शर्म या अपराध की भावना मन में लाएँ और किसी योग्य डॉक्टर से ही अपना इलाज कराएँ|
ङ. ‘अयोग्य’ डॉक्टर के इलाज का कोई लाभ नहीं होता
आपको आम लोगों को उक्त तथ्यों की जानकारी देनी चाहिए और उनकी गोपनीयता को बननाए रखना चाहिए| सुरक्षित यौन कार्य का अर्थ है, एचआईवी के खतरे के बिना यौन कार्य करना| सुरक्षित यौन कार्य का अर्थ है कंडोम का इस्तेमाल करके, लिपटकर, चुबन द्वारा, और अन्य प्रकार से यौन सम्बन्ध बना कर लिंग प्रवेश वाले यौन सम्पर्क के खतरे को कम करना|
बहुत से लोगों को कंडोम के बारे में एक बड़ा रहस्य मालूम नहीं है, और वह यह कि कंडोम के साथ यौन सम्पर्क समान रूप से आनंददायी, उतेजनापूर्ण और संवेदनशील हो सकता है (एक स्वास्थ्यकर्मी के रूप में आपका एक महत्वपूर्ण कार्य है- लोगों को इस तथ्य का विश्वास दिलाना)
उचित रूप से कंडोम का इस्तेमाल करने पर एसटीआईज और एचआईवी का खतरा कम हो जाता है| पर कंडोम भी 100% सुरक्षित नहीं है क्योंकि यौन कार्य के दौरान वह फट भी सकता है|
कंडोम सम्बन्धी समझ: क्या करें और क्या न करें -
1. क्या-क्या करें
2. क्या –क्या न करें
3. क्या आप जानते हैं?
कौन-सा यौन कार्य एचाआईवी संचरण की दृष्टि से सबसे खतरनाक है: असुरक्षित गुदा संभोग, योनि संभोग या मुख संभोग?
योनि संभोग और मुख संभोग की तुलना में बिना कंडोम के गुदा संभोग करना सबसे जोखिमपूर्ण है| इसका कारण यह है कि मल द्वार की त्वचा कमजोर हॉट है और आसानी से फट सकती है जिससे खून द्वारा संकमण फैल सकता है|
विश्वभर में एचआईवी के फैलने का सर्वाधिक सामान्य माध्यम योनि संभोग है| बचाव या आपसी समझ के बगैर किसी भी प्रकार का यौन कार्य एचआईवी की दृष्टि से खतरनाक होता है, हालाँकि कंडोमों का सही इस्तेमाल कर इस खतरे को कम किया जा सकता है|
कंडोम कहाँ मिलते हैं, कंडोमों के बारे में लोगों को समझने से पहले यह पता लगाएँ कि आपको क्षेत्र में लोगों को कंडोम कहाँ से प्राप्त हो सकते हैं (सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र, परिवार नियोंजन केन्द्र, दवा-विक्रेता, पान वाले, गैर-सरकारी संस्थाएँ, आदि) सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों से कंडोम मुफ्त प्राप्त किये जा सकते हैं|
हमारे समाज में यौन कार्य या यौन जीवन के बारे में बात करना वर्जित माना जाता है| पर एसटीआई/एचआईवी/एड्स जैसे यौन संचरित रोगों के बढ़ते हुए रुझान को देखते हुए, स्वाथ्य कर्मी के रूप में आपके लिए यह आवश्यक है कि अपने समुदाय या क्षेत्र में इस पर खुल कर विचार-विमर्श करें|
सुरक्षित यौन कार्य पर विचार-विमर्श आरंभ करने का एक तरीका यह है कि आप अपने श्रोताओं को सहज बनाएँ औए उन्हें इन जानलेवा रोगों के फैलाव से सम्बन्धित तथ्यों की जानकारी दें| उन्हें समझाएँ कि एसटीआई और एचआईवी/एड्स के बारे में ज्ञान और जागरूकता होना क्यों इतना महत्वपूर्ण है| आपसे में या वयस्कों, किशोर-किशोरियों और पति या पत्नी के साथ इन मुददों पर खुल कर बात कनरे की जरुरत का महत्व समझाएँ|
क. सुरक्षित यौन जीवन के बारे में बातचीत के लिए कुछ और सुझाव
यह तथ्य है कि भारत में नशीली दवाओं का उपयोग किया जाता है| आपको चाहे ऐसा लगे कि आपके समुदाय में या कोई समस्या नहीं है तभी भी एड्स की चर्चा करते समय इस पर बात अवश्य करें, कारण यह किः
क. अपने समुदाय को निम्नलिखित बाते बताएं
लोगों को यह समझाएँ कि शरीर के बाहर एचआईवी को मारने में ब्लीच काफी असरकारी होता ही, पर शरीर के भीतर यह काम नहीं करेगा| उन्हें कभी भी ब्लीच का घोल नहीं पीना चाहिए| इससे उलटे वे बीमार पड़ जाएँगे औए एचआईवी का संक्रमण भी दूर नहीं होगा |
ख. सुईयों और सिरिंजों की सफाई
सुईयों और सिरिंजों की सफाई के दो उत्तम तरीके हैं
क) ब्लीच का उपयोग
ख) सुई को उबलना
इन दोनों पद्धतियों का उपयोग करने से पहले उपयोग के तत्काल बाद साफ, ठंडे पानी से सुई या सिरिंज को धो लें| इससे जमने से पहले ही खून बह जायेगा और सुई या सिरिंज की सफाई हो जाएगी|
यदि ब्लीच उपलब्ध हो तो
उबालना
यदि सिरिंज कांच की बनी है तो सीरिज और सुई को ठन्डे पानी में रखें फिर पानी को 20 मिनट तक उबालें| इससे सिरिंज विसंक्रमित हो जाएगी| प्लास्टिक की सिरिंजों को उबाला जा सकता|
याद रखें-
ग. नशे की लत औए नशा करने वालों के प्रति क्या दृष्टिकोण अपनाएं
स्वास्थ्य देखरेख या खून चढ़ाने से एचआईवी होने का खतरा तब होता है जब बुनियादी सुरक्षा उपायों को नहीं अपनाया जाता (क्योंकि आप अक्सर यह नहीं जानते कि किसको एचआईवी, हैपिटाइटिस या कोई दूसरा संक्रमणकारी रोग है, इसलिए आपको हर रोगी के मामले में सुरक्षा नियमों का पालन करना चाहिए|)
अपने समुदाय के लोगों को यह बात समझाएँ कि वे सुई लगाने, सर्जरी, नाक या कान छेदने, दंत चिकित्सा कार्य, खतना करने, गोदना गुदवाने आदि के लिए केवल विसंक्रमित उपकरणों का इस्तेमाल ही करें|
खून चढ़ाना
भारत में कानून द्वारा या अनिवार्य बना दिया गया है की खून चढ़ाने से पहले खून के नमूनों की एचआईवी और हैपिटाइटिस आदि के लिए जाँच की जाए| इसलिए रक्त केवल पंजीकृत रक्त बैंक से ही खरीदना चाहिए|
एचआईवी से संक्रमित माँ गर्भावस्था या प्रसव के दौरान अपना संक्रमण अपने अजन्में बच्चे को दे सकती है| एचआईवी से ग्रस्त माताओं द्वारा जने गए शिशुओं के एक तिहाई से आधे तक के एचआईवी से संक्रमित होने की संभावना रहती है|
सभी एचआईवी-ग्रस्त माताओं को प्रेरित करें कि यदि वे गर्भवती हैं या गर्भ धारण करना चाहती हैं तो परामर्श अवश्य ले लें|
हालाँकि एक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता के रूप में एचआईवी ग्रस्त माँ को बच्चे न करने की सलाह दे कर “एचआईवी को रोकना” चाहेंगे, पर फिर भी यह चुनाव तो माता को ही करना होगा| उसे अपना फैसला लेने में मदद करें| एचआईवी-ग्रस्त माता से शिशु के लिए पैदा होने वाले खतरों की स्पष्ट जानकारी दी जानी चाहिए|
जो महिला गर्भवती नहीं होना चाहती उसे जन्म-नियंत्रण पद्धतियों के बारे में बताया जाना चाहिए|
संक्रमित माता से अजन्मे बच्चे को एचआईवी संचरण के खतरे का कम करने के लिए दवाएं उपलब्ध कराती हैं, और एचआईवी-ग्रस्त गर्भवती माता को वही उपचार कराने की सलाह दी जानी चाहि ए| किन्तु या बात याद रखनी चाहिए ये दवाएं खतरे को केवल कम करती हैं, एचआईवी संक्रमण को दूर नहीं करतीं|
एचआईवी के फैलाव को रोकने का सर्वोत्तम तरीका यह है कि लोगों से इस विषय पर सार्वजानिक स्थान पर और व्यक्तिगत स्तर पर चर्चा करवाएं| हर व्यक्ति को यह फैसला लेना होगा कि वह क्या रोकथामकारी उपाय अपनाने जा रहा है| जब सभी ओर से, और विशेषकर मित्रों से लोगों को जानकारी और सलाह मिलती है तो उनके अपना व्यवहार बदलने की संभावना अधिक होती है|
आपको लोगों को यह समझाना होगा कि हर किसी को खतरा हो सकता है- यह महत्वपूर्ण नहीं कि आप कौन हैं, महत्वपूर्ण यह है कि आप क्या हैं| लोगों को कुछ इस तरह की कहानियाँ सुनाएँ
श्रीमती क -----का केवल अपने पति से यौन सम्पर्क है| वे कभी, भी कंडोम का उपयोग नहीं करते| उसका पति जब शहर से बाहर जाता है तो व्यावसायिक यौन कर्मियों के साथ यौन-सम्पर्क करता है|
------ने, जो एक अधिकारी है, अपनी प्रेमिका के साथ यौन-सम्पर्क किया| पर उसकी प्रेमिका ने किसी और से सम्बन्ध बना लिए| अब वह नई फ्रेंड की तलाश में है|
ग ----- को नशीली दवा लेने के लत है| पर वह कभी दूसरों द्वारा इस्तेमाल सुई का उपयोग नहीं करता और केवल अपनी पत्नी के साथ ही उसका यौन-सम्पर्क है|
घ----- जबी मात्र 16 वर्ष है उसके कई स्त्रियों के साथ यौन-सम्बन्ध बन चुके हैं, हालाँकि उसके माता-पिता को इसकी जानकारी नहीं है|
च ---- जो गाँव में रहता है, एक सड़क दुर्घटना में बुरी तरह से घायल हो गया था| उसे खून चढ़ाया गया था|
अब लोगों से यह “अनुमान” लगाने को कहें कि कौन से मामले में एचआईवी संक्रमण होने की ज्यादा सभावना है| उन्हें समझाएँ कि उक्त में से किसी भी व्यक्ति को एचआईवी संक्रमण हो सकता है| यह कहना मुश्किल है कि किसके संक्रमित होने की संभावना ज्यादा है, या सभी लोगों के संक्रमित होने की संभावना है|
किसी व्यक्ति पर दवाब डाल कर उसकी एचआईवी जाँच करना न तो उस व्यक्ति के लिए और न ही सार्वजानिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायी है| एचआईवी जाँच के लिए दबाव डालने की बजाय सुरक्षित जीवन शैली अपनाने के लिए दबाव डालना अधिक सहायतापूर्ण होता है|
एचआईवी की जाँच तभी की जानी चाहिए जब:
एचआईवी जाँच लोगों को बेहतर देखरेख प्राप्त करने में मदद तो मिलती है, इससे उन्हें कष्ट भी पहुँचता है| एचआईवी जाचं का उपयोग उन लोगों को नियंत्रित और अलग करने के लिए किया जाता है, जो :उच्च खतरे वाले समूह” के अंतर्गत आते है| व्यक्ति की सहमति के बिना उसके द्वारा एचआईवी को समझे बिना पाजिटिव होने पर कोई सहायता की व्यवस्था के बिना जाँच करना काफी सामान्य बात है|
जब किसी को पता चलता है कि उसे एचआईवी है तो वह निराश और असहाय हो जाता है| उसे इस प्रकार के संदेह हो सकते हैं: डॉक्टर मेरा इलाज नहीं करेगा, मेरी स्थिति को गुप्त नहीं रखा जायेगा, परिवार और समुदाय के लोग दुव्यर्वहार करेंगे, या शायद मुझे जेल तक में डाल दिया जायेगा|
एक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के रूप में आपको उन्हें इन भय और समस्याओं से बचाना है|
क. स्वास्थ्य कार्यकर्ता के रूप में आपकी जिम्मेदारियां
ख. एचआईवी और एड्स से ग्रस्त व्यक्ति के लिए क्या-क्या करें
क्योंकि एचआईवी संक्रमण का कोई इलाज नहीं है, इसलिए आप लोगों को अपने जीवन से जितना अधिक हो सके प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं|
ग. सकारात्मक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करें
एचआईवी और एड्स के रोगियों को देखरेख और सहानुभूति की जरूरत होती है| उन्हें दूसरे लोगों जैसा ही होना चाहिए, हम सभी की तरह| आप रोगी की परवाह करते हैं, यह दर्शा कर आप एचआईवी.एड्स से ग्रस्त व्यक्ति के जीवन के सकारात्मक पक्ष को देखने के लिए प्रेरित कर सकते हैं| सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ आशा की भावना किसी भी व्यक्ति को अधिक स्वस्थ और मजबूत बनाती है|
लोगों के दिमाग को पढ़ने की कोशिश न करें! लोगों को, जो भी वे बताना चाहते हैं, बताने दें|
घ. भावनाओं की आवाज सुनें
व्यक्ति जो कहा चाहता है उसे सुनें|
हमेशा सलाह देने या जवाब देने की जरूरत नहीं है क्योंकि कुछ सवाल ऐसे भी हो सकते हैं जिनका जबाब शायद आप न दें पाएं|
एचआईवी/एड्स के रोगी कभी धार्मिक परामर्शदाताओं या पेशेवर परामर्शदाताओं से बात करना चाहेंगे| उनके लिए इसकी व्यवस्था करें|
हालाँकि एचआईवी/एड्स के रोगियों को सहायता प्रदान करना आपका काम है, पर यदि वे इसके लिए तैयार नहीं हैं तो जबरदस्ती न करें| रोग को और अधिक फैलने से रोकने में ही आपके द्वारा दिया गया प्रोत्साहन सर्वाधिक महत्वपूर्ण है|
कभी-कभी एचआईवी/एड्स के रोगी अपने परिवार, आप या सहायता करने वाले अन्य लोगों पर गुस्सा कर सकते हैं| यदि ऐसा होता है तो यह सुनने की कोशिश करें कि व्यक्ति कहना क्या चाहता है इसे दिल पर न लें और न ही|
ङ. सहायता समूह
एचआईवी के साथ जीवन बिताना क्या होता है यह वे लोग ही समझ सकते हैं जिन्हें एचआईवी है| यदि आप अपने क्षेत्र में एक से अधिक एचआईवी रोगियों को जानते हैं तो उनसे पूछें कि क्या वे एक दूसरे से मिलाना चाहते हैं| हर किसी की गोपनीयता के सम्बन्ध में अत्यधिक सावधानी बरतें! ये लोग अनौपचारिक रूप से या नियमित सहायता समूहों के रूप में मिल सकते हैं| बहुत से देशों में ऐसे एचआईवी सहायता समूह हैं जो नियमित रूप से अपनी बैठकें कर रोग के लक्षणों और उपचार पर चर्चा करते हैं, एक दूसरे को भावनात्मक सहारा देते हैं, भेदभाव से लड़ने में मदद करते हैं, एक दूसरे की व्यावहारिक जरूरतों को पूरा करते है, एक दूसरे को सामान्य लोगों को शिक्षित करते हैं,और अधिकारों और सेवाओं की मांग करते हैं, आदि|
भेदभाव के विरुद्ध शिक्षा सबसे बड़ा हथियार है| स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को एचआईवी के बारे में फैली मिथ्या धारणाओं को दूर करना चाहिए और लोगों को अपने डर और पूर्वाग्रह पर विजय पाने में मदद करनी चाहिए| पर उन्हें यह संदेश अवश्य दें कि गोरी की सामान्य दैनिक देखभाल और सम्पर्क से एचआईवी होने का कोई खतरा नहीं है|
एचआईवी से ग्रस्त लोगों, उनके समर्थकों और उन लोगों – जिन्हें एचआईवी होने का खतरा है –के विरुद्ध किसी भी प्रकार के भेदभाव पर नजर रखें| इससे गंभीरता से निबटें|
भेदभाव न केवल इन लोगों के लिए नुकसानदेह है बल्कि यह सार्वजानिक स्वास्थ्य के लिए भी खतरा है, इससे यह भी हो सकता है कि एचआईवी की रोगी किसी के सामने न आएँ| इससे न तो उन्हें देखरेख उपलब्ध हो पाएगी और न ही एचआईवी के बारे में जानकारी मिल पाएगी|
भेदभाव के खिलाफ आप निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं:
भारत में भेदभाव के शिकार बनने वाले एचआईवी के रोगियों की मदद के लिए कोई कानून नहीं है| पर ये बुनियादी मानव अधिकार हर किसी को प्राप्त है|
निष्पक्ष, समान और देखनेपूर्ण उपचार का अधिकार
कार्य करने, जीने, जहाँ तक संभव हो सके, कहीं भी जाने का अधिकार (यदि किसी को कष्ट नहीं पहुँच रहा तो)
अच्छी स्वास्थ्य देखरेख का अधिकार| किसी को भी उत्पीड़ित या परेशान नहीं किया जाना चाहिए|
एचआईवी/एड्स के अधिकतर संकेत और लक्षण ऐसे हैं जो अन्य बीमारियों के मामले में नहीं देखे जाते| अतः केवल लक्षणों और संकेतों के आधार पर एचआईवी/एड्स का निदान नहीं किया जा सकता|
अतः हमेशा खून की जाँच द्वारा पुष्टि जरुरत होती है|
यदि लोग आपके पास अपने रोग-लक्षणों के सम्बन्ध में बात करने आते हैं तो उन्हें प्रोत्साहित करें|
यदि आपको पास पुस्तिका में पहले बताए गए लक्षणों या समझ न आने वाले लक्षणों के साथ या फिर एचआईवी/एड्स होने का संदेह ले कर कोई व्यक्ति आता है तो_
यदि इन लक्षणों में कोई लक्षण बच्चे में प्रकट होते हैं और उनका कोई दूसरा कारण नजर नहीं आता, या उसके एचआईवी पाजिटिव होने का संदेह है तो-
जो बच्चा एचआईवी पाजिटिव है-
आज तारीख में एचआईवी/एड्स का कोई इलाज नहीं है|
अभी हे एचआईवी/एड्स से सम्बन्धित लक्षणों और संक्रमणों का उपचार कर सकते हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि एक ऐसी जीवन शैली को प्रोत्साहित कर सकते हैं जो लोगों को स्वस्थ और सुरक्षित रहने में मदद कर सके| आपको एचआईवी के रोगियों को यह बताना चाहिए की जब भी उनमें कोई रोग लक्षण प्रकट हो या उन्हें कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या हो तो वे आपसे या अपने डॉक्टर से मिलें|
एचआईवी/एड्स के रोगियों को बताएँ कि “चमत्कार इलाज” पर पैसा, समय और शक्ति बर्बाद करना बेकार है क्योंकि अभी तक दुनिया में एचआईवी/एड्स का कोई इलाज उपलब्ध नहीं है|
क. एंट्री-रेट्रोवायरल उपचार
लक्षणों का उपचार
कष्टदायी रोग लक्षणों का उपचार वैसी ही करें जैसे कि उन लोगों के रोग लक्षणों का किया जाता है जो एचआईवी से ग्रस्त नहीं होते|
दस्त: नमक और पानी का घोल, मुखसेव्य पुनर्जलन घोल (ओरल रिहाइड्रेशन सौल्युशन), घर में बने पेय जैसे कि चाय, मांड, दाल का पानी, कांजी आदि दे कर रोगी के निर्जलीकरण (डिहाइड्रेशन) को रोकें| एंटीबायोटिक या दस्त रोकने वाली दवाएं न दें| सफाई रखने और सुरक्षित पेय जल पीने को कहें|
बुखार: पैरासिटामोल/एस्पिरिन और तरल पदार्थ दें, जरुरत पड़ने पर ठंडा कपड़ा बदन पर रखें दें|
सिरदर्द/बदन दर्द: पैरासिटामोल एस्पिरिन या कोई अन्य दर्दनाक दवा दें|
सर्दी-जुकाम: गले को आराम पहुंचाने के लिए शहद/नीबू दें, वाष्प दें और तुलसी के पत्तों की जाये पिलाएं|
त्वचा पर खुजली: एंटीथिसस्टामिनिक्स दें, आराम देने वाले लोशन जैसे की कैलामाइन लगाएं|
वजन में कमी: रोगी को भूख न लगे तब भी खाना खाने को प्रोत्साहित करें| उसे दिन में कई बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में खाने को कहें| उसे कैलरी वाला प्रोटीनयुक्त आहार लेने को कहें जैसे कि दाल, मुंगफली,आदि| दस्त और वजन घटने के कारणों का साथ-साथ उपचार करें|
यीस्ट संक्रमण: सिरके के पानी साथ डूश या घुली हुई कुटकी (जनशियन) का उपयोग करें| सफाई पर ध्यान देने के एंटीबायोटिक न लेने को कहें|
मानसिक भ्रम : रोगी को जीवन में बुनियादी चीजों का उर ध्यान रखने को कहें| रोगी को स्पष्ट रूप से बोलना चाहिए और आवश्यक जानकारी को दुहराना चाहिए|
सामान्य सलाह: एचआईवी पाजिटिव व्यक्ति से संतुलित और नियमित जीवन जीने के लिए कहें, यह महत्वपूर्ण यह कि वह पर्याप्त आराम करें, कसरत करें, स्वस्थ खुराक लें और सबसे महत्वपूर्ण यह कि अधिक संक्रमण के खतरे से बचें|
संक्रमणों का उपचार
एचआईवी और एड्स के रोगियों को होने वाले कई संक्रमणों –टीबी, निमोनिया, खांसी,दस्त आदि के उपचार के लिए असरदार दवाएं उपलब्ध हैं|
यदि आपको पहले से किसी संक्रमण का उपचार करने का अनुभव हो और रोगी में वैसा ही संक्रमण दिखाई दे तो उसका उपचार कर दें, अन्यथा रोगी को विस्तृत जाँच एवं उपचार के लिए किसी विशेषज्ञ डॉक्टर के पास भेजें|
दर्द, बुखार, जलन-खुजली और अन्य रोगों के किये पारंपरिक घरेलू उपचार भी सहायक हो सकते हैं| पर ये उपचार लेने रोगियों से कहें कि वे अपने रोग लक्षण डॉक्टर को भी दिखाएँ |
जब आप दवा देते हैं तो उसके इतर-प्रभाव |(साइड इफैक्टस) भी बताएँ औए यह भी समझाएँ कि ऐसे में क्या करना चाहिए|
संक्रमणों को बने न रहने दें| जब रोग-प्रतिरक्षण प्रणाली कमजोर होती है छोटी समस्याएँ भी तेजी से बड़ी समस्याएँ में तब्दील हो जाती हैं| एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति यदि अपनी अच्छी देखरेख करे तो वह सामाजिक रूप से उपयोगी जीवन जी सकता है|
इसमें निम्नलिखित व्यवहार अपनाना शामिल है” पोषक आहार लेना, सफाई-बरतना, स्वास्थ्य की उचित और समय पर देखरेख, पर्याप्त आराम और कसरत, हो काम जारी रखना और आत्मनिर्भर रहना तथा अच्छा है सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना| ये सभी बातें वैसे तो सभी के लिए अच्छी सलाह हैं, पर एचआईवी के रोगियों के लिए ये विशेष रूप से महत्व रखती है|
स्वस्थ जीवन शैली अपनाने पर बल देते समय स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता को इस बात से अवगत होना चाहिए कि ऐसा करना कितना कठिन होता है, और जब कोई व्यक्ति आपके द्वारा कही गई बात का पालन नहीं कर पायेगा तो कैसा महसूस करेगा| इस बात पर बल दें कि इस दिशा में एक कदम उठाना भी कितना महत्वपूर्ण है, पर रोगी की बीमारी के लिए किसी को दोष न दें| कोई भी उसके बीमार पड़ने को रोक नहीं सकता|
एचआईवी के रोगियों को वैसी तो कोई विशेष खुराक लेने की सलाह नहीं दी जाती, पर यह जरूरी है की रोगी संतुलित और पोषक आहार लें| संतुलित आहार का मतलब है जो खाना विटामिन, मिनरल, उर्जा, प्रोटीन और रोग से लड़ने की शक्ति प्रदान करे| एचआईवी पाजिटिव लोगों को निम्न बातों का पालन करने को कहें:
एचआईवी के रोगियों को संक्रमण होने का खतरा क्योंकि ज्यादा होता है, इसलिए उन्हें सफाई आदि के मामलों में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत होती है| इसके साथ ही उन्हें इस बात की सावधानी भी रखनी होती है कि वे एचआईवी के विषाणु को दूसरों तक न पहुँचने दें| अतः उन्हें बताएं कि:
रोग-लक्षणों वाले संक्रमित लोगों की जिनका घर में उपचार नहीं किया जा सकता-अस्पताल या स्वास्थ्य केंद्र में देखरेख जरुरी है|
दुसरे लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए यह जरूरी नहीं कि एड्स के रोगी को अलग रखा जाए| पर कभी-कबी एड्स के रोगी को दूसरों से अलग रखने की जरूरत होती है ताकि उन्हें आसपास के संक्रमण से बचाया जा सके|
सुरक्षित स्वास्थ्य देखरेख के नियम
सुरक्षित स्वास्थ्य देखरेख के नियम स्वास्थ्य देखरेख कार्यकर्ताओं और रोगियों, दोनों का बचाव करते है| क्योंकि आप यह नहीं जानते कि कौन एचआईवी, हैपिटाइटिस, आदि से ग्रस्त है, इसलिए हर रोगी के मामले में सावधानी बरतें|
२. उपयोग की गई सुइयों का इस प्रकार निबटान करें, ऊन्हें धातु के डिब्बे में रखें और जब वह भर जाये तो उसे जमीन में गाड़ दें|
3. हाथों में दस्ताने पहनें| किसी तरल को छूने के बाद तत्काल साबुन-पानी से हाथ धो लें|
4. रोगी की देखभाल के बाद साबुन और पानी से हाथ धोएं| प्रसव या ऐसे ही दूसरे कार्यों के दौरान जब रक्त से सम्पर्क होता है, चेहरे पर मास्क और ऐप्रन पहनें |
5. इस्तेमाल सुई अपने शरीर पर न चुभोएँ| यदि काम के दौरान कोई खतरा हो तो आप “पोस्ट एक्सपोजर प्रोफिलेक्किसस” के अंग के रूप मने एंटी-रेट्रोवायरल उपचार प्राप्त कर सकते हैं|
6. बहे हुए खून, मल और पेशाब को संक्रमित करने के लिए ब्लीच का इस्तेमाल करें| इसके बाद उसको कागज में लपेट कर शौचालय में बहा दें|
7. खून या गीले कपड़ों को सावधानी से धोएं| एचआईवी को मारने के लिए कपड़ों को या तो ब्लीच की घोल में डुबो कर रखें या उन्हें उबालें| सभी कपड़ों को धोने के लिए साबुन और डिटर्जेट का इस्तेमाल करें|
8. संक्रमित कूड़े को लपेट कर कूड़ेदान में फेंकें|
हर किसी की एक न एक दिन मृत्यु होती है| व्यावहारिक और भावनात्मक मुद्दों का सामना करने के लिए रोगी और परिवार को सहायता की जरूरत होती है| उनकी पूरी से सहायता करें और अगर जरुरत पड़े तो धार्मिक नेताओं की मदद लें | मृत्यु के मामले में अलग-अलग धर्मों के लोगों की पद्धतियाँ अलग-अलग होती हैं| इस बात का ध्यान रखें|
मृत्यु-संस्कार
सभी शवों (मृत शरीरों) के मामले में रोग-संक्रमण सम्बन्धी सावधानियां बरतनी चाहिए क्योंकि इसका पता लगाना कठिन है कि कौन सा मृत व्यक्ति एचआईवी या ने अन्य छूत के रोगों से संक्रमित था| इसका मतलब था दस्ताने पहनना और रक्त तरलों से बचना|
इस बात को ध्यान में रखें की मृत्यु से जुड़ें धार्मिक रीति-रिवाज लोगों को मृत्य पर सांत्वना देते हैं| अगर किसी व्यक्ति की एचआईवी की वजह से मृत्यु हुई हो तो इसका अर्थ नहीं कि रीति-रिवाजों का पालन नहीं करना चाहिए|
स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को संक्रमित व्यक्ति की अनुमति लेकर सहयोगियों के रूप में ऐसे व्यक्तियों को शामिल करना चाहिए जिन पर लोग विश्वास कर सकें|
स्रोत:- वोलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया , जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची|
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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