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आर्थ्राइटस

यह एक व्यापक अर्थ रखने वाला शब्द और जोड़ों से संबंधित हर बीमारी इसके दायरे में आती है।

रूमेटिज्म

रूमेटिज्म एक ऐसा शब्द है जिसे आम आदमी जोड़ों, हड्डियों तथा कोमल ऊतकों के दर्द और जकड़न के लिए इस्तेमाल करता है।करता है।कोमल ऊतकों का मतलब है त्वचा व हड्डियों के बीच मौजूद ऊतक (अवत्वचीय ऊतक, मांसपेशियां, नसें, अस्थिबंध, प्रवारनी या फेशिया, स्नेह- पूटी या बेसे इत्यादि ) इस तरह, आर्थ्राइटस एक तरह का रूमेटिज्म है।

लगभग सौ से ज्यादा तरह के आर्थ्राइटस है और हरेक का अलग उपचार है जो उपचार एक किस्म के लिए गलत हो सकता है।इसलिए, अपने डॉक्टर के परामर्श के बिना कभी दवा नहीं लेनी चाहिए।

कुछ सामान्य आर्थ्राइटस

ओस्टियोआथ्रइटिस आर्थ्राइटस की सबसे आम किस्म है।यह प्राय: प्रौढ़ वय लोगों को होता है।अन्य आम किस्में हैं – रूमेटाइड आर्थ्राइटस , गाऊट, एंकिलोजिंग स्पौंडीलाइटिस, सिस्टेमेटिक ल्यूपस इरिथिमेटोसस (एसएलई) इत्यादि।

ओस्टियोआथ्रइटिस (ओए) तथा रूमेटाइड आर्थ्राइटस (आरए) में अंतर

‘ओए’ आम तौर पर वृद्ध लोगों में पाया जाता है और मुख्यत: उम्र के साथ शरीर के जर्जर होते जाने के कारण होता है।इससे सबसे ज्यादा घुटने प्रभावित होते हैं।पुट्ठे, रीढ़ और हाथ अन्य प्रभावित होने वाले जोड़ हैं।ओए जोड़ों के अलावा अन्य अंगों को प्रभावित नहीं करता।यह व्यक्ति की उम्र को भी कम नहीं करता।

दूसरी ओर, रूमेटाइड आर्थ्राइटस अपेक्षाकृत युवा लोगों, आम तौर से जीवन के तीसरे और पांचवे दशक के दौरान, प्रभावित करता है।लेकिन, ‘आरए’ किसी भी उम्र में हो सकता है।जोड़ों के अलावा, आरए फेफड़ों, आँखों, त्वचा तथा स्नायुओं इत्यादि को प्रभावित कर सकता है।यह एक गंभीर बीमारी है इसमें किसी विशेषज्ञ की निगरानी में रोग को तेजी से काबू में लाने वाले सक्रिय उपचार की जरूरत पड़ती है।

कारण तौर पर आर्थ्राइटस के कारण का पता नहीं लगता।आर्थ्राइटस के आम रूपों का भोजन, पौष्टिकता की अधिकता या कमी, या अन्य किसी संक्रमण से कोई संबंध नहीं होता।गलत भोजन से गाऊट का दौरा पड़ सकता है।लोगों में यह गलत धारणा फैली हुई है की आर्थ्राइटस एक पारिवारिक रोग है।आर्थ्राइटस के ज्यादातर मामलों में यह बात सच नहीं होती।

उपचार

आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों से ज्यादातर आर्थ्राइटस उपचार योग्य हैं, लेकिन साध्य नहीं।यानी उन्हें नियंत्रित किया जा सकता है, पूरी तरह ठीक नहीं।ज्यादातर आर्थ्राइटस मधुमेह (ब्लड शुगर), उच्च रक्तचाप, दमा, मिरगी इत्यादि की तरह दीर्घकालिक अवस्थाओं की तरह ही, आर्थ्राइटस का उपचार भी दीर्घकालिक आवस्थाओं का शब्द के पारंपारिक आर्थों में इलाज संभव नहीं यानी उनसे पूरी तरह मुक्त नहीं हुआ जा सकता।लेकिन, आर्थ्राइटस सहित इन सभी रोगों में उपचार से ऐसी दीर्घकालिक अवधियाँ आ सकती हैं जब रोग से राहत हो और उसका कोई लक्षण भी दिखाई न दे।

आर्थ्राइटस  और एलोपैथी

किसी भी चिकित्सा पद्धति में, चाहे एलोपैथी हो, आयुर्वेदिक या होम्योपैथी, आर्थ्राइटस सहित अन्य दीर्घकालिक रोगों का कोई इलाज नहीं है।लेकिन, आधुनिक दवाओं से आर्थ्राइटस को इस हद तक नियंत्रित किया जा सकता है की व्यक्ति को सामान्य जीवन जीने में कोई कठिनाई न आए।आर्थ्राइटस के केवल कुछ रोगियों में ही शारीरिक आसमर्थता पैदा करने वाली विकृतियाँ विकसित होती हैं।परिष्कृत ओर्थोपेडिक ( विकलांगता विज्ञान ) सर्जिकल तकनीकों से आपरेशन के द्वारा उन विकृतियों पर काबू पाया जा सकता है।

आर्थ्राइटस के बारे में कुछ और तथ्य

ओस्टियोआर्थ्राइटस अलग- अलग जोड़ों में अलग अलग गति से बढ़ता है।ठीक वैसे जैसे मोतियाबिंद एक के मुकाबले दूसरी आँख में तेजी से बढ़ सकता है।

आधुनिक चिकित्सशात्र भोजन के मामले में ‘ठंडे या गर्म’ पदार्थों के बीच कोई अंतर नहीं करता है।दही, चावल, मसालों, चर्बीदार भोजन इत्यादि से आर्थ्राइटस पर कोई फर्क नहीं पड़ता है इसलि, गर्म या ठंडे पदार्थों से संबंधित अंधविश्वासों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है अगर कोई विशेष पदार्थों किसी व्यक्ति को रास नहीं आता,  तो वह उसे छोड़ सकता है।

हाँ, गाऊट में जरूर भोजन का असर पड़ता है।रोगियों को कम प्यूरिन वाला भोजन लेने, शराब, लाल मांस, बीन्स, मशरूम वैगरह से परहेज करने की सलाह दी जाती है।

रूमेटाइड आर्थ्राइटस जैसे कुछ आर्थ्राइटस लम्बे समय तक निष्क्रिय रहने पर बढ़ जाते हैं।उठने पर रोगी को शरीर में अकड़न, चेहरे पर सूजन और जोड़ों व अंगूलियों में दर्द महसूस हो सकती है।कुछ रोगियों का आर्थ्राइटस ठंडे मौसम में बढ़ जाता है और कुछ का मानसून या गर्मियों में, कुछ लोगों को मौसम का बदलाव आसानी से सहन नहीं हो पाता।लेकिन, तापमान या जलवायु परिवर्तन वास्तव में आर्थ्राइटस को न बढ़ाता है और न ही कम करता है।जिन रोगियों को किसी खास तरह के वातावरण में परेशानी होती है, उन्हें वैसे वातावरण से दूर रहने की सलाह की जाती है।

रोगियों के लिए पाबंदियां

रीढ़ या पुट्ठों जैसे कुछ भागों के आर्थ्राइटस में शरीर की मुद्रा में परिवर्तन करने की जरूरत हो सकती है।लेकिन बाकि मामलों में इस तरह की कोई पाबंदी नहीं।

फर्श पर बैठना, घुटनों के जोड़ों में तनाव पैदा करता है।घुटनों के आर्थ्राइटस से पीड़ित रोगियों को ऊकडू बैठने, फर्श पर चौकड़ी मार कर बैठने, नीचे सोफे या सैटी पर बैठने से जहाँ तक संभव हो बचना चाहिए।घुटनों के आर्थ्राइटस में सीढ़ियाँ चढ़ने और भारतीय किस्म के शौचालय में बैठने से भी बचने की कोशिश करनी चाहिए।

आर्थ्राइटस  के ज्यादातर रोगी तर्कसंगत सीमाओं में घूम सकते हैं, व्यायाम और जॉगिंग कर सकते हैं।इससे जोड़ों में और जर्जरता नहीं आती।वास्तव में, समतल सतह पर तेज- तेज घूमने से आम स्वास्थ्य में सुधार आता है, वजन को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है, हृदय का व्यायाम हो जाता है और मांसपेशियां मजबूत होती है।

आर्थ्राइटस  के लिए औषधियां

मलेरिया और आर्थ्राइटस , दोनों का उपचार करने के लिए क्लोरोक्विन या हाइद्रोक्सी क्लोरोक्विन जैसी मलेरिया प्रतिरोधी दवाएँ दी जाती हैं।कुछ तरह के कैंसरों के इलाज के लिए मिथोट्रेक्सेट का प्रयोग किया जाता है।रूमेटाइड आथ्राइतिस के लिए भी आमतौर पर मिथोट्रेक्सेट का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन कम मात्रा में।यह इस बात का एक और उदहारण है कि एक ही दवा को कई रोगों का उपचार के लिए प्रयोग किया जा सकता है।व्यक्ति को दर्द निवारक दवाएँ लेने में सावधानी बरतनी चाहिए।इसी तरह, अपने दवाएँ लेना भी नुकसान देह हो सकता है।

आर्थ्राइटस और ओस्टोयोपोरोसिस में अंतर

आर्थ्राइटस  में जोड़ों में सूजन आती है, जबकि ओस्टोयोपोरोसिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें हड्डियाँ कमजोर हो जाती है और आसानी से फ्रेक्चर हो जाता है।ओस्टोयोपोरोसिस आम तौर पर बड़ी उम्र में होता हो, जबकि रूमेटाइड आर्थ्राइटस , एसएलई जैसे आथ्राइड आम तौर पर 50 की उम्र के पहले शुरू हो जाते हैं।रूमेटाइड अथ्राइटिस जैसे कुछ अथ्राइडॉ में शरीर के कई अंग, जैसे त्वचा, आँखें, आंत मूत्रमार्ग, हृदय फेफड़े, स्नायु इत्यादी भी प्रभावित होते हैं।कई बार प्रभाव जोड़ों पर बाद में प्रकट होता है और आँख पर पहले।

रूमेटाइड फैक्टर और रूमेटाइड आर्थ्राइटस (आरए)

आरए के होने को खून की जाँच के द्वारा सुनिश्चित किया जाता है।आरए के रोगियों में से केवल 70 – 80 प्रतिशत में ही रूमेटाइड फैक्टर मौजूद होता है ऐसे रोगियों को सिरो – पोजेटिव आरए रोगी कहा जाता है।जिन रोगियों के खून में रूमेटाइड फैक्टर नहीं पाया जाता, उन्हें सिरो – नेगेटिव आरए की संज्ञा दी जाती है।दोनों तरह के रोगियों के लिए उपचार सामान ही होता है।लेकिन आरए के अलावा कुछ अन्य रोगों और स्वस्थ प्रौढ़ लोगों के एक छोटे से हिस्से में भी रूमेटाइड फैक्टर पाया जाता है।इसलिए, मात्र रूमेटाइड फैक्टर की मौजदूगी की यह अर्थ नहीं की आरए का निदान हो गया।

ईएसआर

ईएसआर शरीर में सूजन को मापने के लिए गई खून की एक जाँच है।आर्थ्राइटस , विशेषकर रूमेटाइड आर्थ्राइटस से शरीर में ईएसआर का स्तर बढ़ जाता है।लेकिन, ईएसआर का स्तर केवल आर्थ्राइटस में ही नहीं बढ़ता।ऐसा संक्रमणों, धूम्रपान, वृद्धावस्था, खसरे इत्यादि के कारण भी हो है।कुछ लोगों में ईएसआर का स्तर आर्थ्राइटस के स्तर से बेमेल हो सकता है।कुछ में जोड़ों के रोग के नियंतित्र होने के बावजूद, ईएसआर के स्तर ऊंचा हो सकता है और कुछ में आर्थ्राइटस के सक्रिय होने के बावजूद नीचा।जाँच के लिए निर्देश देने और उस के नतीजों की व्याख्या करने के लिए डॉक्टर ही एक मात्र उपयुक्त व्यक्ति है।

व्यायाम और आर्थ्राइटस

सभी प्रकार के आर्थ्राइटस में हल्के-फुल्के व्यायाम की इजाजत होती है।घुटनों के आर्थ्राइटस के लिए, साईकिल चलाना सबसे अच्छा व्यायाम है।लेकिन, उसके गंभीर अवस्था में होने पर, व्यायाम करने और स्वयं को थकाने से बचना चाहिए।

आमतौर पर योग आर्थ्राइटस पर कोई बुरा असर नहीं डालता और अन्य दवाओं के साथ उसे जारी रखा जा सकता है।लेकिन कुछ यौगिक मुद्राओं में जोड़ों पर अधिक तनाव आ सकता है।कोई भी व्यायाम या योग करने से पहले, फिजियोथेरेपिस्ट/फिजिकल मेडिसन विशेषज्ञ से परामर्श करना बेहतर होता है।

कैल्शियम लेना

कैल्सियम हड्डियों के लिए लाभकारी होता है।आर्थ्राइटस की ज्यादातर किस्मों में इसे बिना किसी नुकसान के डर के लिया जा सकता है।

चिकित्सा (थेरेपी)

गंभीर आर्थ्राइटस की स्थिति में कोल्ड कम्प्रेशन एप्लीकेशन को अच्छा माना जाता है, और दीर्घकालिक मामलों में हीट थेरेपी लाभदायक हो सकती है।

केवल कुछ किस्म के आर्थ्राइटस में ही स्टीरोइड्स की जरूरत होती है और वह भी उपचार के शुरू में कुछ ही वक्त के लिए।आर्थ्राइटस की स्थिति और डॉक्टर तय करते है कि किसी रोगी को स्टिरोइड्स के विवेकपूर्ण प्रयोग से उनके अनेकों सहगामी प्रभावों से बचा जा सकता है।

उपचार के लिए चिकित्सा विशेषज्ञ

एक रूमेटोलोजिस्ट मांसपेशियों हड्डियों की बीमारियों का विशेषज्ञ होता है और इन बीमारियों में जोड़ों की बीमरियों यानी आर्थ्राइटस भी शामिल है।उसे आर्थ्राइटस के चिकित्सीय उपचार का अनुभव होता है।आर्थ्राइटस की ज्यादातर किस्मों को केवल दवाओं से ही नियंत्रित किया जा  सकता है कुछ ही आर्थ्राइटस हैं जिनमें सर्जन के हस्तक्षेप की जरूरत पड़ती है।हड्डियों / जोड़ों के आपरेशनों में विशेषज्ञता रखने वाले सर्जनों को आर्थोपेडिक सर्जन कहा जाता है।आर्थ्राइटस के ज्यादातर रोगियों को रूमेटोलोजिस्ट की जरूरत बार-बार पड़ती है और आर्थोपेडिक सर्जन की कभी – कभार।

आर्थ्राइटस  की देखभाल के लिए विशेषज्ञों के एक दल की जरूरत होती है।इस दल में रूमेटोलोजिस्ट के अलावा फिजोयोथेरेपिस्ट, अक्यूपेशनल थेरेपिस्ट, फिजियाट्रिस्ट ( शारीरिक औषधि व पुनर्वास विशेषज्ञ ), आर्थोपेडिक सर्जन तथा परामर्शदाता होता हैं।

संभव है की भविष्य में भारतीय रूमेटोलोजी एसोसिएशन का अपना वेबसाइट हो।तब तक आर्थ्राइटस फाउंडेशन, यूएसए के वेबासाइट www.arthritis.org से संबंधित सूचनाएं हासिल की जा सकती हैं।

स्त्रोत: हेल्पेज इंडिया/ वोलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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