इस आसन में शरीर की आकृति फन उठाए हुए भुजंग अर्थात सर्प जैसी बनती है इसीलिए इसको भुजंगासन या सर्पासन (संस्कृत: भुजङ्गसन) कहा जाता है।
भुजंगा, जिसे इंग्लिश में कोबरा कहते है और चूंकि यह दिखने में फन फैलाए एक सांप जैसा पॉस्चर बनता है इसलिए इसका नाम भुजंगासन रखा गया है। इसके लिए पेट के बल जमीन पर लेट जाएं। अब दोनों हाथ के सहारे शरीर के कमर से ऊपरी हिस्से को ऊपर की तरफ उठाएं, लेकिन कोहनी आपकी मुड़ी होनी चाहिए। हथेली खुली और जमीन पर फैली हो। अब शरीर के बाकी हिस्से को बिना हिलाए-डुलाए चेहरे को बिल्कुल ऊपर की ओर करें। कुछ समय के लिए इस पॉस्चर को यूं ही रखें।
इस आसन से रीढ़ की हड्डी सशक्त होती है। और पीठ में लचीलापन आता है। यह आसन फेफड़ों की शुद्धि के लिए भी बहुत अच्छा है और जिन लोगों का गला खराब रहने की, दमे की, पुरानी खाँसी अथवा फेंफड़ों संबंधी अन्य कोई बीमारी हो, उनको यह आसन करना चाहिए। इस आसन से पित्ताशय की क्रियाशीलता बढ़ती है और पाचन-प्रणाली की कोमल पेशियाँ मजबूत बनती है। इससे पेट की चर्बी घटाने में भी मदद मिलती है और आयु बढ़ने के कारण से पेट के नीचे के हिस्से की पेशियों को ढीला होने से रोकने में सहायता मिलती है। इससे बाजुओं में शक्ति मिलती है। पीठ में स्थित इड़ा और पिंगला नाडि़यों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। विशेषकर, मस्तिष्क से निकलने वाले ज्ञानतंतु बलवान बनते है। पीठ की हड्डियों में रहने वाली तमाम खराबियाँ दूर होती है। कब्ज दूर होता है। तथा बवाशीर मे भी लाभ देता है।
10. फिर गर्दन को तानते हुए सिर को धीरे-धीरे अधिक से अधिक पीछे की ओर उठाने की कोशिश कीजिए। आखें ऊपर की तरफ होनी चाहिए।
11. सर्पासन पूरा तब होगा जब आप के शरीर का कमर से ऊपर का भाग सिर, गर्दन और सीना सांप के फन के तरह ऊंचा उठ जाएंगे।
12. पीठ पर नीचे की ओर कूल्हे और कमर के जोड़ पर ज्यादा खिंचाव या जोर मालूम पडऩे लगेगा। ऐसी स्थिति में ऊपर की तरफ देखते हुए कुछ सेकेंड तक सांस को रोकिए।
13. इसके बाद सांस छोड़ते हुए पहले नाभि के ऊपर का भाग, फिर सीने को और माथे को जमीन पर टिकाएं तथा बाएं गाल को जमीन पर लगाते हुए शरीर को ढीला छोड़ दीजिए।
14. इस स्थिति में कुछ देर रुककर दोबारा इस क्रिया को कीजिए। सर्पासन को शुरूआत में 3 बार कीजिए और बाद में इसको बढाकर 5 बार कीजिए। इस आसन को करने से पहले सिर को पीछे ले जाकर 2 से 3 सेकेंड तक रुकिए और इसके अभ्यास के बाद 10 से 15 सेकेंड तक रुकिए।
15. एक ही बार में साँस नहीं भरेंगे बल्कि आसन करते हुए धीरे-धीरे साँस भरेंगे| धीरे-धीरे साँस भरना शुरू करें और पहले सिर को उठाइए, गर्दन को पीछे की ओर मोड़ें|
16. इसी तरह साँस भरते जाएँ| पीठ की माँसपेशियों का बल लगाते हुए आप कंधे भी उठाइए, हथेलियों पर थोड़ा दबाव रखते हुए छाती और नाभि तक का भार उठाना चाहिए|
17. हर स्थिति में नाभि को ज़मीन से 30 सेंटीमीटर ही ऊपर उठना चाहिए| ज़्यादा नहीं अन्यथा कमर भी उठ जाएगी|
18. इस स्थिति में आम तौर पर कोहनी सीधी नहीं होगी| ऐसा बलपूर्वक करना भी नहीं चाहिए अन्यथा कंधे ऊपर की ओर उठ जाएँगे| बल्कि अंत की अवस्था में कंधे पीधे की ओर खींचना चाहिए और आकाश की ओर देखना चाहिए|
19. इस अवस्था में साँस रुकी रहेगी और कमर के निचले भाग पर खिंचाव आएगा जिसे आप महसूस कर पाएँगे| इस स्थिति में आप कुछ पल यानी 3-4 सेंकेंड तक ही रुक पाएँगे|
20. धीरे-धीरे साँस छोड़ते हुए पहले नाभि ज़मीन से स्पर्श करेंगे, फिर छाती, उसके बाद कंधा और सबसे अंत में माथा ज़मीन को स्पर्श करेगा|
21. साँस को सामान्य कर लें और यथाशक्ति आप इसे पाँच बार दोहरा सकते हैं| हर क्रम के बाद थोड़ा विश्राम भी कर सकते हैं|
10. रक्त संचार को तेज करता है।
11. कब्ज़, अपच और वायु विकार दूर होते हैं भूख बढ़ती है।
12. शरीर में शक्ति और स्फूर्ति को संचार करता है।
13. स्त्री गर्भाशय को पुष्ट करता है।
14. इस आसन से रीढ़ की हड्डी सशक्त होती है। और पीठ में लचीलापन आता है।
15. यह आसन फेफड़ों की शुद्धि के लिए भी बहुत अच्छा है और जिन लोगों का गला खराब रहने की, दमे की, पुरानी खाँसी अथवा फेंफड़ों संबंधी अन्य कोई बीमारी हो, उनको यह आसन करना चाहिए।
16. इस आसन से पित्ताशय की क्रियाशीलता बढ़ती है और पाचन-प्रणाली की कोमल पेशियाँ मजबूत बनती है।
17. इससे पेट की चर्बी घटाने में भी मदद मिलती है और आयु बढ़ने के कारण से पेट के नीचे के हिस्से की पेशियों को ढीला होने से रोकने में सहायता मिलती है।
18. इससे बाजुओं में शक्ति मिलती है। पीठ में स्थित इड़ा और पिंगला नाडि़यों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। विशेषकर, मस्तिष्क से निकलने वाले ज्ञानतंतु बलवान बनते है।
19. पीठ की हड्डियों में रहने वाली तमाम खराबियाँ दूर होती है।
20. कब्ज दूर होता है। तथा बवाशीर मे भी लाभ देता है।
21. कमर दर्द को दूर करने में रामबाण है भुजंगासन| स्लिप डिस्क को ठीक करने में भी सहायक है|
22. रीढ़ में कड़ापन दूर करता है| इस प्रकार मस्तिष्क और शरीर के बीच बेहतर समन्वय बना रहता है| मस्तिष्क से आने वाली तरंगे शरीर के हर अंग में बिना रुकावट के पहुँचती हैं|
23. रीढ़, कमर और पीठ की माँसपेशियों में खिंचाव आने से मस्तिष्क और शरीर में रक्त का संचार भी अच्छे ढंग से होने लगता है|
24. यह आसन स्त्रियों की सुन्दरता को बढ़ाता है।
25. आँतों में चिपके हुए मल स्वयमेव बाहर निकल जाते हैं ।
26. माइग्रेन का दर्द कम करता है सर्पासन
भुजंगासन का अभ्यास जब पूरा हो जाए तभी तिर्यक भुजंगासन करना चाहिए|
स्रोत: योग विज्ञान, विकिपीडिया |
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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