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बच्चों के लक्षय बंधन के लिए विकासीय कार्यकलाप

बच्चों के लक्षय बंधन के लिए विकासीय कार्यकलाप

  1. लक्ष्य बंधन
    1. लक्ष्य बंधन का महत्व
    2. सामान्य मद
    3. लक्ष्य बंधन में सुधार के कार्यकलाप
    4. इनमें से कोई एक कार्यकलाप का प्रयास करें
  2. स्थान निर्धारण
    1. स्थान – निर्धारण का महत्व
    2. सामान्य मद
    3. स्थान निर्धारण में सुधार लाने के लिए कार्यकलाप
  3. ट्रेकिंग
    1. भूमिका
    2. खोज/ट्रेकिंग का महत्व
    3. सामान्य बातें
    4. ट्रैकिंग सुधारने के कार्यकलाप
  4. नेत्र संपर्क
    1. भूमिका
    2. नेत्र संपर्क का महत्व
    3. सामान्य मदें
    4. नेत्र संपर्क सुधारने के कार्यकलाप
    5. इन कार्यकलापों में से अब एक पर प्रयत्न करें
    6. प्रयास जारी रखें
  5. स्व – जागरूकता
    1. भूमिका
    2. स्व- जागरूकता का महत्व
    3. सामान्य मदें
    4. स्व- जागरूकता सुधारने के कार्यकलाप
  6. अनुसरण
    1. अनुकरण का महत्व
    2. अनुकरण कौशलों को सुधारने के लिए कार्यकलाप
  7. दृष्टि विचलन
    1. भूमिका
    2. दृष्टि विचलन का महत्व
    3. दृष्टि विचलन की क्रिया में सुधार
  8. आँख – हाथ समन्वयन
    1. भूमिका
    2. ख – हाथ समन्वयन का महत्व
    3. आँख – हाथ समन्वयन पर टिप्पणी
    4. आँख – हाथ समन्वयन में सुधार के कार्यकलाप
    5. पहुँचने, पकड़ने और हाथ से परिचालन में सुधार करने के कार्यकलाप
  9. पर्यावरण के प्रति जागरूकता
    1. भूमिका
    2. पर्यावरण के प्रति जागरूकता का महत्व
    3. पर्यावरण के प्रति जागरूकता में सुधार के कार्यकलाप

लक्ष्य बंधन

दृष्टि विकास में सबसे पहला कौशल वस्तु पर नजर ठहराया या लक्ष्य बंधन है। लक्ष्य बंधन की योग्यता सिलसिलेवार घटती है। बच्चा पहले प्रकाश को देखता है, बाद में मानव चेहरों की ओर देखता है और अंत में उस वस्तु को बच्चा पैदा होने के साथ ही प्रकाश पर फोकस करने योग्य होता है। जन्म के समय बच्चे की योग्यता केवल दृष्टि फ़ोकसिंग पर ही होती है। प्रकाश पर दृष्टि फोकस करने की योग्यता का लोप सूचित करता है कि दृष्टि कौशल हासिल करने में देरी होगी। बच्चे के फ़ोकसिंग में समस्याएं होने के कई कारण हो सकते हैं।

लक्ष्य बंधन का महत्व

  • यह प्राथमिक दृष्टि कौशल है।
  • यह बच्चे को वस्तुओं के गुणों को समझने में काफी हद तक सहायता करता है।
  • यह बच्चे में ध्यान केंद्रीकृत करने/बच्चे में लंबे समय तक ध्यान देने के गुण पैदा करने में मदद देता है।
  • यह दृष्टि की मील का पत्थर है और बाद में आने वाले गुणों जैसे खोज, नेत्र संपर्क आदि के विकास में सहायता प्रदान करता है।

सामान्य मद

  • जितनी देर तक संभव हो उतनी देर तक बच्चे का ध्यान किसी वस्तु पर टिकने देने का प्रयत्न करें।
  • जब बच्चा कभी – कभार घूरने लगता हो तो उसे बहुत अधिक धक्का न दें। यह आम बात है कि ये किसी विशिष्ट वस्तु को लंबे समय तक देखा जाता रहे तो बेजारी आ जाना स्वाभाविक है।
  • बच्चे का ध्यान आकर्षित करने के लिए तरह – तरह की चीजें रखें, क्योंकि एक ही वस्तु को देखते – देखते वह आसानी से बेजार हो जाता है।
  • यदि बच्चा वस्तु से अधिक चेहरे को ही देखने में ज्यादा दिलचस्पी लेता हो तो उससे लगातार बात करना जारी रखें और वस्तु को चेहरे के पास ले जाएँ, और तब बच्चे की दृष्टि क्षेत्र  दृष्टि क्षेत्र से अपने चेहरे को थोड़ा सा नीचे झुका लें।

लक्ष्य बंधन में सुधार के कार्यकलाप

आरंभ करें

  • अँधेरे कमरे में इन कायर्कलापों को आरंभ करने के प्रयास करें. जब बच्चा अपना ध्यान फोकस कर पाता है तब कार्यकलापों हल्के प्रकाश वाले कमरे में करें और तब अंत में सामान्य प्रकाश में।
  • परस्पर विरोधी रंग जैसे नीला और पीला, सफेद एवं काला बच्चे के ध्यान को हल्के रंगों की अपेक्षा ज्यादा आकर्षित करते हैं। अत: तब बच्चे के सभी कार्यकलापों में जैसे बीएड शीट्स, फ्लोर मैट्स, वाल पेपर्स, बर्तन और यहाँ तक बच्चे के कपड़ों के रंग भी गहरे परस्पर विरोधी रंगों को हों।
  • बच्चे को हल्के रंग के खिलौने पर या चमकदार हल्के रंग की वस्तु पर ध्यान केन्द्रित करने दें, खिलौने को पारस्परिक विरोधी रंग पृष्ठभूमि के विपरीत प्रस्तुत करें। यदि खिलौना चमकदार लाल रंग का हो तब बैक ग्राउंड शेड की तरह सफ़ेद या हल्के पेस्टल शेडों का उपयोग करें।
  • बच्चों में दिलचस्पी पैदा करने वाले रंगों की जोड़ी सफेद और काला काम्बिनेशन होता है। बीएड कवर्स बिल्कुल सफेद और उस पर सजने वाली अन्य वस्तुयें चमकदार काले रंग की हो। यहाँ तक की बाथरूम और किचन में भी ऐसे टाइलों को लगायें जो परस्पर विरोधी रंगों के हों।
  • सादे बैक ग्राउंड या ऐसी दिवार चुनें जिस पर चमकदार रंगों के चित्र/पोस्टर्स आदि टंगाये जा सकें।
  • कुछ बच्चे अपने काम करने की जगह के उस क्षेत्र को बहुत पसंद करेंगे यदि वह खूब प्रकाशवान और रंग – बिरंगे लाईटों से सजा हो, बनिस्पत कमरे की अन्य जगहों के।

इनमें से कोई एक कार्यकलाप का प्रयास करें

  • बच्चे के सामने झिलमिलाता रंगीन टार्च लाईट रखें।
  • पहले दो प्राथमिक रंगों काले और सफेद रंग का प्रयोग करें और तब कई रंगों के कंबिनेशन का।
  • जब बच्चा टार्च लाईट की ओर देखता हो तो उसके चेहरे, हाथों और पैरों पर रोशनी फेंके।
  • उपर्युक्त कार्यकलाप के अनुक्रम में दिवार पर रोशनी डालें और तब रोशनी आड़ी और खड़ी घुमाएं।
  • तेज रोशनी के आसानी से उपलब्ध स्रोत बाइसिकल रिफलेक्टर्स हैं और विभिन्न रंगों के ग्लोस पेपर दिखाते हुए इन्हें और भी दिलचस्पी बनाया जा सकता है।
  • बच्चे के चेहरे के पास लगभग एक हाथ की दूरी पर आकर्षक दिखने वाले खिलौने को पकड़ रखें और धीरे – धीरे उसे बाजुओं की ओर घुमाएँ।
  • बच्चे को बैठाकर उसके सामने एक आईना रख दें।
  • दलारे  एक चमकदार रंग के खड़खड़ा जो आवाज करता हो और इधर – उधर घूमता हो,
  • घर की खिडकियों पर सेलोफेन या एसिटेट के कागज़ चिपका दें।
  • बच्चे के सोने की जगह पर छत में चाँद – तारों की शक्ल में फ्लोरेसेंट चिपकाया जा सकता है।
  • बच्चे के अतराफ़ नियोन लेसें लगायी जाएँ ताकि बच्चे का ध्यान बना रहा सके।
  • टार्च की जगह पर घर में उपलब्ध मोमबत्तियों, लालटेन और मटका दीयों का उपयोग किया जा सकता है। लेकिन, इस कार्यकलाप को आरंभ करने से पहले सभी सुरक्षा उपायों का प्रबंध कर लिया जाना चाहिए।
  • कार्यकलाप आरंभ करने से पहले बच्चे के बिस्तर के आर – पार इलास्टिक की डोरी बांध कर रंगीन कागजों, सजावटी पेपरों, खड़खड़ा, न टूटने वाले आइनों को लटका दें।
  • इलास्टिक की डोरी पर फ्लोरेसेंट गोलों को बांधा जा सकता है।
  • सीपियों से बनाये गये चमकदार रंगीन खिलौने और चमकदार रंगीन वस्तुओं का भी प्रयोग किया जा सकता है।
  • बच्चे का ध्यान आकर्षित करने का प्रयत्न करते समय, सादे डिज़ाइनों के बड़े खिलौने और बाद में छोटी वस्तुओं का प्रयोग किया जा सकता है।
  • कार्यकलाप पर बच्चे का ध्यान केंद्रित करवाने के लिए हाथ की बड़ी और चमकदार कठपुतलियां बहुत उपयोगी होती है।

स्थान निर्धारण

प्रेरक स्रोत की अवस्थिति का पता लगाने की योग्यता की स्थान निर्धारण कहलाता है। यहाँ दृष्टि स्थान – निर्धारण की दृष्टिगत अवस्थिति की योग्यता है। दृष्टि विकास में यह मौलिक कौशलों में से एक है। सामान्य रूप से बढ़ते शिशुओं में लगभग 2 – 3  माह की आयु में इसका विकास आरंभ होता है। एक माह की आयु तक बच्चा नाममात्र के लिए प्रेरक के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करता है, परंतु जैसे – जैसे बुद्धि परिपक्व होती जाती है बच्चा प्रकाश की दिशा में आँखें और सिर घुमाने लगता है। चूंकि बच्चे के 2 – 2  ½ महीनों की आयु में अपने सिर की चेष्टाओं के बीच काफी समन्वयन हो जाता है। फ़ोकसिंग या लक्ष्य बंधन के नाम से जाने, जाने वाले किसी दृष्टि प्रेरक या प्रकाश की ओर घुरना, एक कौशल है जो रखपाल से कहती है कि देखो, बच्चा अपने पर्यावरण में प्रेरक के प्रति जागरूक है। जब बच्चा प्रकाश के स्रोत की ओर घूम रहा होता है रो हम जान जाते है कि वह पर्यावरण में दिलचस्पी रखता है। वह अपने चरों ओंर होने घटनाओं में भाग लेना चाहता है।

स्थान – निर्धारण का महत्व

  • यह पहला संकेत है कि बच्चा अपने वातावरण में दिलचस्पी दिखा रहा है।
  • यह बच्चे की खिलौने तक पहुँचने और उसे कसकर पकड़ लेने के लिए प्रारंभिक पहल है।
  • स्थान निर्धारण उन उपलब्धताओं में से एक है जो एक ही समय में दृश्य, श्रव्य और स्पर्श संवेदनों की सक्रिय प्रतिभागिता की मांग करता है।

सामान्य मद

  • प्रयत्न करें कि बच्चा स्थान – निर्धारण में सक्रिय रूप से भाग ले। अगर वह कुछ कठिनाई महसूस कर रहा हो तो उसे कुछ शारीरिक मार्गदर्शन दें।
  • खाद्य पदार्थों, निप्पल, बोतल आदि वस्तुओं का स्थान निर्धारण खाने पीने  के दौरान किया जा सकता है।
  • यह देखें कि कार्यकलाप करते – करते बच्चा या बोर न हो जाये। कार्यकलापों में भिन्नता लाने का प्रयत्न करें।

स्थान निर्धारण में सुधार लाने के लिए कार्यकलाप

  • विभिन्न दिशाओं और कोणों से बच्चे की ओर जलती हुई रंगीन टार्च फेंकने का प्रयत्न करें।
  • ऊपर का कार्यकलाप करते समय बच्चे के साथ बातचीत जारी रखें, क्योंकि इससे बच्चा रोशनी की दिशा को बेहतर ढंग से समझेगा। जब भी वह रोशनी का स्रोत जानने का प्रयास करें हर बार उसे प्रोत्साहित करें।
  • विभिन्न दिशाओं में ध्वनि पैदा करने के लिए खिलौनों, खड़खडों, और घाटियों आदि का उपयोग करें और ध्वनि का स्रोत जानने के लिए बच्चे को प्रोत्साहित करें।
  • पहले इन कार्यकलापों को बच्चे के बाजुओं की ओर से तथा बाद में ऊपर और नीचे तथा अंत में विभिन्न दिशाओं और दूरियों से शुरू करने का प्रयत्न करें। बच्चा खड़ी खोज से पहले बाजू से बाजू की खोज का ज्ञान हासिल कर लेगा।
  • जब बच्चे को उठाकर कमरे में जाएँ तो पहले बिजली जलाएं और उससे ऊपर देखने के लिए कहकर बिजली के स्रोत की ओर देखने कहें।
  • बच्चे को अंधेरे में खेलने दें। अचानक खिड़की या दरवाजे पर लगे पर्दे को उठा दें और उससे पूंछे की रोशनी किस दिशा से आ रही है।

ट्रेकिंग

भूमिका

ट्रेकिंग या खोज से तात्पर्य है किसी वस्तु का दोनों ही घूमती आँखों से पीछा करना। ट्रेकिंग के कौशल को हासिल करने के लिए बच्चे में दो और अन्य कौशलों में प्रवीणता होनी चाहिए। ये कौशल हैं सिर का नियंत्रण और अच्छा दृष्टि लक्ष्य-बंधन। बच्चे को गतिमान खिलौने या वस्तु को देखते रहने में दिलचस्पी होनी चाहिए। जब बच्चे  की दृष्टि को परिपक्वता हासिल हो जाती है, पहले वह गतिमान वस्तुओं को आड़ी रेखा में और फिर खाड़ी रेखा में,  और अंत में वृत्ताकार पथ में देखने के काबिल हो जाता है। बच्चे को ये सब योग्यताएं क्रमश: 2, 3, और 4 माह की उम्र में हासिल कर लेनी चाहिए। खोज या ट्रैक की यह योग्यता बच्चे को ऐसे पर्यावरण को खोजने के लिए अवसर प्रदान करती है जो तत्काल उसकी दृष्टि के सामने उपलब्ध नहीं है। और गतिमान मनुष्य का पीछा करने तथा मानव चेहरों पर नजर रखने की योग्यता बच्चे के संचार और सामाजिक पारस्परिक क्रिया की पहली सीढ़ी की ओर इंगित करती है। प्रौढ़ लोगों के साथ उसका नेत्र संपर्क भी साथ ही साथ विकसित होता है। संभवत: बच्चा फ़ोकसिंग और सिर ठहरने के मौलिक कौशलों के अभाव से ग्रस्त हो तो वह वस्तुओं की खोज नहीं पाएगा।

खोज/ट्रेकिंग का महत्व

  • यह बच्चे की दोनों आँखों के समन्वित विकास में मदद करता है।
  • यह बच्चे को अपने अतराफ़ घटने वाली बातों को समझने तथा उनकी अपेक्षा करने में सहयता प्रदान करता है।
  • यह स्वयं की गति या चाल तथा खुले में रखी वस्तुओं के महत्व  को समझने में सहायता प्रदान करता है।
  • यह समझौते के कौशलों का विकास करता है।

सामान्य बातें

  • जब बच्चा कुछ क्षणों तक के लिए भी लक्ष्य बंधन निभाने के योग्य नहीं हो जाता तब तक ट्रैकिंग/ खोज कार्यकलाप नहीं किए जाएँ।
  • कदम दर कदर आगे बढ़ने का प्रयास करें क्योंकि पहले बच्चा एक ओर से दूसरी ओर तक और तब ऊपर – नीचे ट्रैकिंग करना सीखता है।

ट्रैकिंग सुधारने के कार्यकलाप

  • थोड़े से तरकीब के साथ फ़ोकसिंग के तमाम कार्यकलापों को अम्ल में लाया जा सकता है ताकि बच्चा खोज करना सीखे। जब बच्चा टार्च की किरण पर या किसी अन्य प्रकाश स्रोत पर दृष्टि ठहराने के काबिल हो जाता है तब धीरे – धीरे वस्तु को बाएं और दायें बाजुओं में घुमाएँ।
  • खिड़की की सिल पर सीरियल लैम्पों की एक लड़ी लगायें लैंप एक दूसरे के बाद कर्म से जलते हैं, ताकि बच्चा रोशनी की ट्रैक के प्रति प्रोत्साहित हो।
  • जब माँ कमरे में इधर – उधर फिरती हो तो उसे बच्चे को लगातार आवाज देना या उसके साथ बातचीत करते रहना चाहिए, ताकि बच्चे घूमती हुई माँ का पीछा करने में दिलचस्पी लें।
  • फ्लोरेसेंट लाईट और साउंड सिस्टम की खिलौना – कारें, बच्चे को पीछा करने में प्रोत्साहित करती है जो बहुत ही प्रभावशाली कदम है।
  • एक सिक्का या चमकदार रंगों वाला गोला कमरे में लुढ़ाकइये ताकि बच्चा अपनी नजरों से उसका पीछा करें।
  • कांच की गोलियां जो रंग – बिरंगी होती हैं उन्हें कमरे के भीतर फैलाएं ताकि बच्चा उनकी आवाज और रंग से उनका पीछा कर सके।
  • साबुन के पानी से बुलबुले फूंके ताकि बच्चा उन्हें पकड़ने में दिलचस्पी लें। यह कार्यकलाप दिन के उजाले में करें, क्योंकि बुलबुला प्रकाश या रोशनी की परावर्तित करता है।
  • दूसरा रूचिकर कार्यकलाप है – एक एलास्टिक के साथ डिस्कोबाल को लटका दें और एक चमकदार किरण इस गोले के ऊपर फेंके ताकि बच्चा गोले की दिशा का पीछा कर सके।
  • खींचने वाला खिलौना या डोरी से खींचने वाले रेल इस उद्देश्य में सहायता दें सकते हैं।
  • दुकानों में उपलब्ध जादूई छड़ी (फाइबर ऑप्टिक्स से बनी) मद्धम प्रकाश वाले कमरे में चलाये जा सकते हैं, ताकि बच्चा ट्रैकिंग में दिलचस्पी लें।
  • पटाखों  तथा फूलझड़ियों को गोल – गोल घुमाएँ ताकि उसके प्रकाश आदि को देखने में बच्चा दिलचस्पी लें।
  • अक्वेरियम में घूमती मछलियों या बच्चे के साथ तब में घूमती नकली मछली खिलौने बच्चे को उन्हें देखने या उन्हें पकड़ने के लिए प्रेरित करते हैं वह उन तक पहूँचता है।
  • एक कागज पर बड़े ब्रश के साथ तक रंगीन लकीर खींचे ताकि बच्चा उसे समझ सके।
  • अपने हाथों को रंग – बिरंगे रंगों से रंग दें और उन्हें बच्चे के सामने चलायें ताकि बच्चा उँगलियों की गति को ट्रैक करें।
  • बच्चे से ट्रैकिंग करवाने के लिए यो – यो घर में बनाएं या बने बनाये यो – यो बाजार से खरीदकर उन्हें रंग – बिरंगे चमकदार रंगीन कागजों के अंदर लपेट दें और नीचे चलायें।
  • गोले को बौउन्सिंग या नीचे – ऊपर फेकें ताकि यह एक दिलचस्पी कार्यकलाप बन जाये।

नेत्र संपर्क

भूमिका

समाजीकरण में मौलिक संचार है। सक्रिय और प्रभावी संचार के लिए दो व्यक्तियों, जो आपस में परस्पर संचार कर रहे हों, के बीच में नेत्र संपर्क स्थापित होना चाहिए। बच्चे का अपनी माँ के साथ सक्रिय पारस्परिक क्रिया के लिए नेत्र संपर्क स्थापित होना पहला कदम है। माँ की मुस्कुराहट बच्चे पर प्रबलक की तरह काम करती है और इस तरह यह इसी परिस्थिति में बच्चे की प्रतिक्रियों को निश्चित करती है।

नेत्र संपर्क का महत्व

  • यह मौलिक संचार कौशलों को सीखने में मदद करता है।
  • यह लोगों का साथ अर्थपूर्ण बातचीत करने में मदद करता है।
  • यह दूसरों का ध्यान आकर्षित करने में मदद करता है।
  • यह नकल और अपनी पहचान बनाने के कौशलों के विकास में मदद करता है जो मित्र बनाने और अच्छे सामाजिक कौशलों के विकास के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है।
  • यह पुनर्निवेश प्रौढ़ों तथा अतराफ़ के अन्य लोगों से प्रतिक्रियाएं करवाने के आधार पर कौशलों को सुधारने में भी मदद करता है।
  • यह बच्चे को अपने रखपाल के साथ गहरे सामाजिक और संवेदनशील बंधन को स्थापित करने में सहायता करता है जो बच्चे को उसके भावी जीवन के व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है।

सामान्य मदें

आरंभ में बच्चा लंबे अरसे तक दृष्टि संपर्क करने योग्य नहीं होता। यदि बच्चा समय – समय पर नजर इधर – उधर करता हो या दूर तक देखता हो तो यह सामान्य बात ही है।

  • यदि बच्चा आपके चेहरे के अलावा किसी अन्य चीज को देखना चाहता हो तो उसके साथ  अन्तर्वाता/बातचीत आरंभ करने से पहले अपने चेहरे के पास उस वस्तु को रखने का प्रयास करें।
  • किये जाने वाले कार्यकलापों के दिन – प्रतिदिन किये जाने वाले कार्यकलापों के साथ मिलाकर करें जैसे खाना खिलाते समय या स्नान करवाते समय।
  • बच्चे को बेकार या सुस्ताता हुआ बैठने न दें। उसके जागते रहने की सारी अवधि के दौरान करते रहें।
  • यदि आपको कुछ काम करना हो तो बच्चे को ऐ से स्थान पर बैठाएं, जहाँ से वह आपको देख सके और यह सुनिश्चित कर लें कि आप जो कुछ काम कर रहे हैं उसे बच्चे को समझाने भी जा रहे हैं।

नेत्र संपर्क सुधारने के कार्यकलाप

  • बच्चे को ऐसी स्थिति में लिटायें या बैठाएं जहाँ पर अन्य पर्यावरणात्मक प्रेरक उसे विचलित न कर सके।
  • बच्चे के सिर की स्थिति सीधी रखने का ही प्रयास करें।
  • बच्चे के चेहरे को अपने चेहरे के करीब लें आयें।
  • बच्चे का ध्यान आकर्षित करने के लिए बहुत सारे मौखिक संकेत दें।

इन कार्यकलापों में से अब एक पर प्रयत्न करें

  • अपने बच्चे के साथ बातचीत करते समय बड़ी चमकदार लाल बिंदी लगायें, चमकदार रंग की लिपस्टिक लगायें और आँखों की गहराई को बढ़ाने के लिए काजल लगायें।
  • चमकदार कार्टून मुखौटा पहनकर बच्चे के साथ छुपा – छुपी के खेल खेलें
  • बच्चे का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने चेहरे को चमकदार और आकर्षक रंगों से सजाएँ।
  • बच्चे से बातचीत करते समय अलग – अलग आवाजों में बातचीत करें और चेहरे  पर भिन्न – भिन्न भाव जाहिर करें।
  • सर्कस के जोकर की तरह बड़ी लाल नाक लगायें।
  • रंगीन फैंसी बड़े फ्रेम का चश्मा पहने जो स्थानीय मेलों में मिलते हैं।
  • पंखों, चमकदार फैंसी घास – फूस या रंग – बिरंगे नकली बालों को पहने।
  • कुछ चमकदार पाउडर अपने चेहरे पर छिड़के\ ऐसी दिशा में बैठें कि आपके चेहरे पर पर रोशनी पड़ती रहे, जिससे झिलमिल चमक हो।
  • जब बच्चा आपके चेहरे की ओर देखने लगता है तो धीरे से अपने सिर को मौखिक संकेत देते हुए बाजुओं की ओर बढ़ाएं ताकि बच्चा फिर भी आपके चेहरे को ही ताकता रहे।
  • बच्चे को अपनी गोद में बिठाकर खेल के समय को और भी दिलचस्पी बनाये। बच्चे को अपनी गोद में ऐसी बिठाएं कि उसके व रखपाल के एक दूसरे के चेहरे आमने – सामने हों और बच्चे के हाथों को पकड़ रखे या उसे गले लगाकर गोलमोल घुमाएँ। जब वह आपसे नजरें दूर उठाता है तो उसे उतार देने का स्वांग भरें। नर्सरी के कुछ गाने गाएँ और बच्चे को गाने की धुन के साथ घुमाते रहें।
  • यदि आपके बाल लंबे हों तो उनसे अपना चेहरा ढांपे तथा अपनी आँखों और चेहरे को उँगलियों से छिपायें।
  • बच्चे का ध्यान आकर्षित करने के लिए मुस्कुराते हुए उससे बातचीत करते रहें।बातचीत करते समय बीच – बीच में कुछ अंतराल दें परंतु लंबे समय तक नहीं, क्योंकि प्राकृतिक कौतूहल उसे ध्वनि प्रेरक की की ओर देखने के लिए प्रेरणा प्रदान करें जो कि अकस्मात ही रूक गई है।

प्रयास जारी रखें

  • हमेशा बच्चे को ऐसी स्थिति में रखें कि रखपाल और बच्चे की ऑंखें एक दूसरे के समकक्ष हो।
  • ऐसा प्रोत्साहन दें कि क्षण भर के लिए भी बच्चा रखपाल के चेहरे से हट न पाए।
  • बच्चा कार्यकलाप के प्रति सुसंगत रूप से प्रतिक्रिया न कर पाए।
  • हो सकता है कि पहले प्रयास में बच्चा कार्यकलाप के प्रति सम्मत प्रतिक्रियाएं व्यक्त न करे, इसलिए कार्यकलाप को बार – बार दोहराते जाएँ।

स्व – जागरूकता

भूमिका

स्व- जागरूकता अपने आप का बोध या अपने शरीर की जागरूकता है। शरीर का प्रतिक हमारी स्व- जागरूकता का अंश होता है। जब बच्चा अपने शरीर के अंगों जैसे – उँगलियों और पोरों के बारे में जानने लगता है तब वह स्व जगरूकता को हासिल करना आरंभ करता है। उसे यह अनुभूति करनी पड़ती है कि उसके शरीर में विभिन्न अंग हैं और उनका एक – दूसरे के साथ संबंध है तथा यह कि खिलौनों और अन्य व्यक्तियों की तरह वे गूम नहीं होते। जब बच्चा अपने शरीर के अंगों की और देखना शुरू करता है उसे यह बोध होने लगता है कि वह उनका, विभिन्न उद्देश्यपूर्ण कार्यकलापों के लिए उपयोग कर सकता है। सामान्य बच्चा तीन महीनों की आयु में ही अपने हाथों की ओर देख सकता है, जो स्व – जगरूकता के विकास का पहला मील का पत्थर, उपलब्धि पड़ाव होता है। जब बच्चा स्वतंत्र रूप से इन कार्यकलापों को दृष्टि के कारण, करने योग्य नहीं होता तब वह अपने आप को पर्यावरण को सफलतापूर्वक जान नहीं पाता। बच्चा न तो अपने आप खेलने में रुचि दिखाता है और न ही अन्य बच्चों के वर्ग के साथ खेलने में दिलचस्पी दिखाता है।

स्व- जागरूकता का महत्व

  • उसका अपना शरीर और उसके विभिन्न अंग।
  • उसके शरीर के अंग एक दूसरे के जानने में मदद करती है।
  • विभिन्न प्रकार से चलते – फिरते समय वह अपने शरीर से क्या कर सकता है।
  • उसका शरीर अन्यों से अलग हो।
  • अन्य बातों का एक दूसरे  के साथ संबंध कैसा है।
  • अन्य लोग कैसे हैं और उसके बारे में वे क्या महसूस करते हैं।
  • वह रोते, बातचीत करते या अपने हाथों का प्रयोग करते हुए संस्कार के लोगों या वहाँ की चीजों को कैसे प्रभावित कर सकता है।

सामान्य मदें

  • बच्चे को उठाकर घर भर में घुमाते रहिए और उसे भिन्न भिन्न परिस्थितियों का अनुभव उठाने दें।
  • तुकबंदी के गीत या गाने गाते हुए उसके साथ खेलें। उसे उछालते हुए या गोद में उठाकर घुमाते हुए गाने दोहराते रहें।

स्व- जागरूकता सुधारने के कार्यकलाप

  • उसके पैरों, हाथों पर हवा फूंके ताकि वह अपने शरीर के अंगों के बारे में जागरूकता विकसित कर सके।
  • अपनी उँगलियों से उसके सारे शरीर में गुदगुदी करें।
  • स्नान कराते, कपड़े पहनाते, खाना खिलते आदि समयों में मौखिक हिदायतें देते रहें।
  • बेबी ब्रशों, रूई रोल, घर में उपलब्ध विभिन्न सामग्रियों जैसे मखमल, सिल्क, ऊन आदि नर्म चीजों से उसके सारे शरीर पर ब्रश करते रहें।
  • खेल – खेल में बच्चे के पंजों को, हाथों, मुंह आदि तक ले जाएँ ताकि बच्चा अपने स्वयं के शरीर को महसूस करें।
  • उसके अपने हाथों से उसके शरीर के अंगों को छुआते और साथ ही साथ शरीर पर घुमाते रहें।
  • बच्चे के शरीर पर सुगंधित बेबी तेल या बेबी टाक से मसाज करें ताकि वह दबाव का अंतर जान ले।
  • उसके हाथों और पैरों में रंगीन रिब्बन और पाजेब बांधे।
  • उसे चमकदार और रंग – बिरंगे व परस्पर विरोधी रंगों की चूड़ियों, पहुँची, कंगन पहनाएं।
  • उसके पैरों की उँगलियों के बीच टार्च की रौशनी डालें।
  • बच्ची का हाथ अपने हाथ के पास रखें और कहें कि तुम्हारी नन्हें हाथ बहुत सुंदर हाँ और अचानक अपने हाथों के अंदर उसके हाथों को बंद करके पूंछे कि उसके हाथ कहाँ हैं।
  • उसे कपड़े पहनाते समय बताते जाएँ कि शर्त/पैंट के अंदर उसका कौन सा अंग हैं।
  • बच्ची का चेहरा ढक दें या उसके पैरों को ब्लैंककेट के ढंक दें और आवरण हटाकर बताएं कि उसके अंग का कौन – सा अंग ओढे हैं, इस बात का बंतगढ़ बनायें। जब बच्ची आईने के सामने खाड़ी होकर अपनी ओर देख रही हो इसी कार्यकलाप का पुन: दोहराएँ।
  • बच्ची के चेहरे गहरे मेक-अप से संवारे या अन्य चमकदार हैट, बड़े रिमवाले चश्मे, बड़ी और चमकदार रिबन, रबड़ बैंड या हेअर बैंड या तमाम मदों का उपयोग करते हुए उसे आईने के सामने बिठाएं। उन वस्तुओं का नाम लेते हुए उसके गालों और पेट को सहलाएं।
  • शरीर के कुछ अंग पर पानी छिड़के और इस क्रिया के बाद उसकी प्रतिक्रिया देखें। यदि वह इससे आनंदित होता हो तो उसके शरीर के अन्य अंगों पर भी पानी छिड़कते रहें, यदि उसे यह पसंद नहीं तो कार्यकलाप रोक दें।
  • स्नान करवाते समय साबुन, तेल पानी आदि लगाते समय शरीर के अंगों के नाम लें।
  • बच्चे के सामने, उसके खाते, खेलते, बनाव- सिंगार और अन्य नेमी कार्यकलाप करते समय एक दर्पण लटका दें। दर्पण में देखने के लिए उसे मौखिक आदेश दें\

टिप्पणी – अपने हाथों के प्रति जागरूक होने और उनका उपयोग स्व-जागरूकता के विकास के लिए करते समय और आँख और हाथ के लिए समन्वयन अगले अध्याय में इस पर विस्तार से चर्चा होगी।

अनुसरण

अनुकरण का महत्व

  • अनुकरण बच्चे को प्रभावशाली रूप से बातचीत के लिए सहायता प्रदान करता है।
  • यह बच्चे को स्वीकृत सामाजिक चेष्टाओं को सीखने और उनका अर्थ जानने में मदद करता है।
  • यह बच्चे को पर्यावरण/वातावरण से निपटने के कुछ उपाय सीखने में मदद करता है।
  • यह भाषा विकास का मूलाधार है।

अनुकरण कौशलों को सुधारने के लिए कार्यकलाप

  • आपके कृत्यों का अनुकरण करने के लिए बच्चे को प्रोत्साहन मिलना चाहिए, अत: बच्चे को अपने करीब यानी अपनी गोद में इस प्रकार बिठाएं कि आप दोनों के चेहरे आमने – सामने हों और तब चेहरे पर विभिन्न भाव ले आयें। बच्चे से दिलचस्पी बातचीत जारी रखें।
  • कहानी सुनाना या पढ़कर कहानी सुनाना और पशु – पक्षियों की आवाजें निकालने का प्रयत्न करना और प्रत्येक मनोभाव के लिए उचित मुखाकृतियाँ बनाना बहुत ही उपयोगी हो सकते हैं। बीच – बीच में रूक रूककर बच्चे से पूछें कि शेर कैसे दहाड़ता है या पक्षी कैसे उड़ गया, आदि।
  • गाना गाते हुए क्रियाएं या चेष्टाएँ करने से बच्चा सरल रूप से अनुकरण को सीख व समझ जाता है।
  • आईने के सामने खड़े होकर किये जाने वाले कार्यकलाप बच्चे के लिए बहुत ही लाभदायक होते हैं, क्योंकि आपके भावों के अनुकरण का प्रयास का स्वयं करता है, अत: बच्चे के लिए इससे बढ़कर अन्य कोई उपाय नहीं है।
  • बच्चा जब भूखा या प्यासा हो तो उससे चेष्टा करते हुए और जबरनी तौर से पूंछे कि वह क्या खाना या पीना चाहता है।
  • आप घर में प्रवेश करते हर बार बच्चे को गुड मार्निंग या हैलो या नमस्ते करें कि वह भी आपका अनुकरण करे। उसके गुडमोर्निंग कहने के हर प्रयास को प्रोत्साहित करें।

दृष्टि विचलन

भूमिका

एक वस्तु को देखने और फिर अपना ध्यान दूसरी वस्तु पर लगाकर उसे देखने की क्रिया या योग्यता को ही दृष्टि बदलना कहते हैं। जिस बच्चे के लक्ष्य बंधन, ट्रैकिंग और नेत्र संपर्क अच्छे हों आमतौर से इस दृष्टि बदलने के इस कौशल को आसानी से हासिल कर लेता है। परंतु ऐसे बच्चे जिन्हें इस योग्यता को हासिल करने में समस्याएं आयी थी उन्हें दृष्टि बदलने में समस्या हो सकती है। बड़ों के साथ बातचीत या संप्रेषण करने और वातावरण में तत्काल होने वाले परिवर्तनों को समझने के लिए दृष्टि बदलने का कौशल बच्चे के लिए महत्वपूर्ण है। बच्चे को एक वस्तु से दूसरी वस्तु पर नजर हटाने जो केवल एक ही दृष्टि क्षेत्र में नहीं, बल्कि दूर से पास की वस्तु पर भी नजर डालनी होती है। नजर उठाकर देखने या दृष्टि बदलना हासिल करने के लिए स्कैनिंग और ट्रैकिंग मौलिक कौशल है।

दृष्टि विचलन का महत्व

  • किसी की आँख में देखते हुए बातचीत करना, बातचीत को बोरींग बना देता है, इसलिए बातचीत करते समय व्यक्ति के शरीर के एक भाग से दूसरे भाग पर हमारी दृष्टि जाती है या हम एक व्यक्ति को देखते हुए स्वत: ही दूसरे व्यक्ति को भी देखने लगते हैं।
  • देखना और अर्थपूर्ण हो जाता है।
  • दृष्टि विचलन के द्वारा दो वस्तुओं की तुलना भी की जाती है।
  • दृष्टि विचलन की क्रिया हमें वातावरण के प्रति सजग और जागरूक व सतर्क बनाती है और परिवर्तनों को तत्काल देखने के लिए प्रेरित करती है जिससे कि हम क्रिया करने तैयार हो जाते है।
  • यह बच्चे को चित्र से बैकग्राउंड में अंतर समझने में मदद करता है यह गहरे प्रत्यक्ष बोध के आरंभिक विकास को सूचित करता है।

दृष्टि विचलन की क्रिया में सुधार

  • ऐसे कार्यकलाप से शुरू करें जिसमें बच्चे को आराम हो, ऐसा खिलौना लें जिसमें बच्चे की दिलचस्पी हो। खिलौने को अपने चेहरे के पास रखकर खिलौने के बारे में बच्चे से बातचीत करें और जब वह आपके चेहरे और खिलौने की ओर देखने लगता हो तो धीरे – धीरे खिलौने को दूर हटाते जाएँ परंतु बच्चे की देखने की गति नजर रखें, न तो एकदम बहुत ही धीरे जाएँ और न बहुत तेज। आप में बच्चे की दिलचस्पी बढ़ाने के लिए खिलौने का वर्णन करते समय और जब उसे आप अपने चेहरे के पास से दूर हटाते हों तो अपनी जंगली का उपयोग करें।
  • बच्चे के हाथ लेकर पहले एक हाथ से और बाद में दोनों हाथों से ड्रम बजाएं। धीरे – धीरे उसका एक हाथ ड्रम पर से हटाकर घंटी की ओर ले जाएँ और बदल – बदलकर घंटी और ड्रम बजाने के लिए कहें। माता/पिता भी यही कार्यकलाप कर सकते हैं। मुंह से आवाजें निकालते हुए बच्चे को बारी – बारी से घंटी और ड्रम की ओर देखने के लिए प्रोत्साहित करें।
  • जब बच्चे के साथ दो लोग बात कर रहे हों तो त्रिकोणीय आकार में बैठने की व्यवस्था करें ताकि बच्चा अन्य दोनों को आसानी से देख सके। जब आप दोनों बच्चे से बात कर रहे हों तो उसे शारीरिक और मौखिक रूप से तत्पर रहे और बारी – बारी से आप दोनों को देखते रहने कहें।
  • एक से दूसरे व्यक्ति की ओर गेंद फेंकने या फेंको और पकड़ो का खेल इस तरह खेलें कि बच्चा निरंतर दृष्टि बदलता रहे।
  • दिवार के किसी बिन्दु पर टार्च जलाएं और बाद में दूसरे बिन्दु पर और देखें कि क्या बच्चा एक स्थान से दूसरे स्थान पर परिवर्तित होती लाईट को देखता है। इसी उद्देश्य के लिए दो टार्चों का उपयोग भी किया जा सकता है।
  • दो कार्डों पर दो चित्र बनाएं और एक कार्ड को बच्चे के पास और दूसरे को दिवार पर लगाकर बच्चे से उन दोनों की तुलना करने और उन्हें देखने के लिए कहें।
  • कमरे में बत्ती बुझा दें और अपने चेहरे के पास एक टार्च जलाएँ। टार्च स्विच ऑफ करने के बाद बिजली की बत्ती जलाएँ। इस कार्यकलाप को लगातार करते रहें ताकि बच्चा प्रेरक को बारी – बारी से देखना सीखेगा और अपनी दृष्टि को एक से दूसरे की ओर बदलता रहेगा।

आँख – हाथ समन्वयन

भूमिका

यह आँखों और हाथों को समन्वयात्मक रूप से उपयोग में लाने की योग्यता है। सबसे पूर्व का कौशल था किसी वस्तु की ओर देखते हुए उसके पास तक हाथ द्वारा पहुँचना। बच्चे में वस्तु पर फोकस, ट्रैक करने की और गुरुत्वाकर्षण के विरूद्ध अपना हाथ बढ़ाने की योग्यता होनी चाहिए। आँख – हाथ समन्वयन एक पेचीदा कौशल है, जिसके संघटक वस्तु की ओर, उस तक पहुँचने, उसे पकड़ लेने के लिए देखते रहते हैं। बच्चे को चार महीनों की आयु तक हाथों को हिलाते रहने की प्रक्रिया के साथ वस्तु तक पहुँच ही जाना चाहिए। इस कार्यकलाप की नींव उसके लगभग तीन महीने की आयु हासिल हो जाने के साथ ही डाल दी जाती है। जब वह अपने हाथों की ओर देखने लगती है।

ख – हाथ समन्वयन का महत्व

  • यह कार्यकलाप बच्चे को अपने भावी जीवन में कई दिनोंदिन कार्यों को करने में स्वयं सहायता कौशलों की तरह मदद प्रदान करता है।
  • वस्तुओं तक पहुँच और उन्हें पकड़कर में उसकी बनावट, तापक्रम और अन्य भौतिक गुणों की अनुभूति हासिल करते हैं।
  • यह  बेहतरीन चालक कौशलों के विकास में सहायता करता है (विभिन्न कार्यकलापों  के लिए हाथों और उँगलियों का प्रयोग करते हुए।
  • यह संज्ञानात्मक विकास के लिए अग्रगामी है।
सामान्य मद
  • इस खंड को दो उपखंडों में बांटा गया है। पहुँचने और पकड़ने के विकास से पहले जैसे हाथों की जागरूकता हासिल करनी होती है, उन्हें क्रम दिया जाता है। परंतु कार्यकलाप साथ – साथ ही शुरू किये जा सकते हैं।

आँख – हाथ समन्वयन पर टिप्पणी

आँख – हाथ समन्वयन बच्चे के विकास के संवेदनशील चालक पैटर्न का एक ज्वंलत उदहारण है। विशिष्ट चालक प्रतिक्रिया को कार्यान्वित करने यह सम्पूर्ण संवेदनशील प्रणाली के महत्व पर जोर देता है।

आँख हाथ समन्वयन में विभिन्न संघटक होते हैं, जिनके नाम निम्नानुसार हैं –

  • हाथ की जागरूकता
  • पहुँच
  • पकड़ना
  • छोड़ना
  • द्विपक्षीय हाथ समन्वयन

मनुष्य के दैनिक जीवन के लगभग सभी कार्यकलापों को करने के लिए आंख – हाथ समन्वयन की आवश्यकता होती है। उदाहरणार्थ, सजने – सँवारने के लिए, बटन लगाने, जूतों की डोरियाँ बाँधने, पैंट- शर्ट को नीचे – ऊपर खींचने, कंघी करने, पैंट की जिपिंग आदि करने जैसे कार्यकलापों को करने के लिए हमें अच्छे आँख – हाथ समन्वयन की आवश्यकता होती है।

खेल और फुर्सत के कार्यकलापों में से कुछ प्रारंभिक कौशल जो आँख – हाथ समन्वयन का आधार बनती हैं, बेहतरीन चालक गति के कौशल होते हैं जैसे – गेंद  फेंकने हाथ मिलाना, ठोंकना, गिरा देना, निचोड़ना, इशारा करना, मुंह  चलाना, अकड़ कर चलना, ऊँगली चूसते रहना, घसीटे मारना, बर्तनों को भरना व खाली करना आदि।

आँख – हाथ समन्वयन में सुधार के कार्यकलाप

  • बच्चे के हाथों को तेल, या पाउडर या बेबी लोशन से मालिश करें।
  • उसके हाथों पर हवा फूंके और इस तरह हवा की गति को उसे महसूस होने दें।
  • जब आप उससे बात कर रहे हों या उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रहे हों तो अपना चेहरे के पास अपने हाथ लायें। उसे आपके चेहरे की रूपरेखाओं को महसूस होने दें।
  • विभिन्न आकृतियों, आकारों, साइजों, बनावटों और रंगों की वस्तुयें उसके हाथों में देते रहने का प्रयत्न करते रहें।
  • बच्चे के हाथों को चमकदार रंगीन रिब्बन, चूड़ी, कागज, पहुँचियां आदि बांधे।
  • पहुँचियां बनाने के लिए सेलोफेन जैसी रंगीन अपरावर्ती सामग्रियों का प्रयोग करें।
  • साधारण एक के बाद एक लगे काले और सफेद मनको की पहुंची बच्चे में आकर्षण पैदा करती हैं।
  • चमकदार नेल पेंट या पारंपरिक मेहंदी हाथों में लगाने से बच्चे में प्ररेणा पैदा होगी और वह अपने हाथों की ओर देखेगा।
  • बच्चे की उँगलियों में खिलौने लगी अंगूठियों पहनाकर बच्चे के खेल के समय को अधिक दिलचस्प बनाया जा सकता है।
  • बच्चे की हथेलियों पर मजेदार कार्टूनों की आकृतियाँ चमकदार पेंट से बनाएं या स्केचेस खीचें।
  • बच्चे के दोनों हाथों उसकी आँखों के सामने ले जाएँ।
  • उसे हाथों में फ्लोरेसेंट की हाथ – घड़ियाँ पहनाएं या रेडियम के मानकों से बनी पहुँचियां पहनाएं।
  • घर में इस्तेमाल की हर वस्तु को उसे छूने व जानने दें।
  • कार्यकलाप करते समय ही गाने गाएं या हाथों और भुजाओं या बगलों में गुदगुदी करें।
  • उसकी उँगलियों पर रंगीन टार्च की रोशनी डालें या उसकी उँगलियों को रोशनी के ऊपर रखकर उसकी दिलचस्पी का परिक्षण करें।
  • घर पर ऊन या किसी अन्य सामग्री से बने चमकदार रंगों वाला ग्लोव उसके हाथों में देने का प्रयत्न करें।
  • गाना गाते समय दोनों हाथों से तालियाँ बजाना जरूर सिखाया जाना चाहिए।
  • गेंद या फुग्गे पर उसके दोनों हाथ फेरें और अपने हाथों से गुजरते कपं को उसे महसूस करने दे।

पहुँचने, पकड़ने और हाथ से परिचालन में सुधार करने के कार्यकलाप

  • बच्चे के झूले या खेल के कमरे में उसकी पहुँच के भीतर में चमकदार रंगीन सजावट के कागज लगायें।
  • बच्चे के झूले के पास रंग- बिरंगे और भिन्न – भिन्न आवाजें करने वाले खड़खड़े खिलौने इलास्टिक की डोरी से बांध कर रहे।
  • एक बड़ा प्लास्टिक का डिब्बा लेकर उसे विभिन्न रंगों के गोलों, विभिन्न आकारों के ब्लाक्स आदि से भर दें तो यह एक दिलचस्पी स्पर्शनीय, श्रव्य तथा दृष्टि कार्यकलाप होगा।
  • बच्चे के कमरे को घंटादानों, छोटी कागजी पवन चक्कियों, घंटियों आदि से दिलचस्प बनाएं, इन्हें डोर कर्टेनों, खिड़की के पटों के पास लटका कर देखें कि काया वह  उन तक पहुँचने के प्रयास करता है।
  • सभी उम्र के बच्चों के लिए विभिन्न रंगों, आकारों और आकृतियों के फुग्गे (ब्लून्स) और गेंदें सबसे उत्तम खिलौने होते हैं। इनमें अनाज के दानों के टुकड़े या परावर्ती कागज के टुकड़े भरे जा सकते हैं ताकि, दूसरी दिशा से उन पर रोशनी डाली जाये तो वे और भी रंगीन और आकर्षक दिखाई दें।
  • साइकिल के हार्नों पर चमकदार कार्टून चित्र चिपकाकर उन्हें दिलचस्प बनाया जा सकता है। श्रव्य प्रेरणा के कारण बच्चे उन्हें बजाने के लिए उन तक पहुँचना पसंद करते हैं।
  • जाली वाली छोटी थैलियाँ लेकर उनमें सीपियाँ, सिक्के, घंटियाँ, गेंदे, गोलियां, रंगीन कागज आदि भर कर बच्चे की पहुँच के भीतर के स्थान पर लटका दें।
  • एक बड़ा कोट हैंगर लेकर उसे रंग – बिरंगी सामग्री से लपेट दें और चमकदार और रंग – बिरंगे तथा ध्वनी उत्पादक खिलौने जैसे घंटियाँ, घंटानाद आदि एलास्टिक की डोरी से लटका कर बच्चे के झूले या उसके कमरे में लटका दें।
  • विभिन्न सामग्रियों के पैचेस कपबोर्डो और दरवाजें पर लगा दें ताकि बच्चा विभिन्न स्पर्शीय अनुभूतियों के बारे में सीखने योग्य हो जाये।
  • बच्चे को स्क्रूदार ढक्कनों वाली बोतलें और बर्तन दें और देखें की वह उन्हें बंद या खोल सकता है।
  • दरवाजों के नॉब्स और टैप्स बच्चों के पसंदीदा खेल हैं।
  • मिट्टी के खेल, पानी के खेल, पानी में कपड़ें डुबाना और उन्हें ऐंठना आदि तमामपानी के खेल बच्चों के लिए अच्छे खेल होंगे।
  • बच्चे से ब्लाकों को ज़माने व गिराने कहें।
  • बच्चे को पहले ऐसे कार्यकलाप करने दें, जो आपके लिए निरर्थक हों, जैसे – कागज को फाड़ना, मरोड़ना, कागजों के

टुकड़े बनाकर हवा में में फूंकने/ उड़ाने दें। इन तमाम कार्यकलापों को करने से बच्चे खेल के द्वारा हाथ ही क्रियाएं सीखते हैं।

  • बच्चे के घर के बर्तन, डिब्बे, पुराने थैलियाँ, बिस्कुट के डिब्बों आदि के अंदर – बाहर देखने खोजने दें।
  • बच्चे को रंगीन पानी या पेंटों में हाथ डूबाकर अपनी नोट बुक कर छापा करने दें

पर्यावरण के प्रति जागरूकता

भूमिका

बच्चे के जीवन के प्रथम कुछ महीनों के दौरान उसके अतराफ़ का वातावरण है जो माँ की गरम प्रेम से लिपटकर या माता – पिता के नाजुक स्पर्श तक ही तक ही प्रतिबंधित रहता है। जैसे – जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है वह भिन्न- भिन्न वातावरणीय घटकों के सम्मुख आ जाता है। माँ की सुरक्षित भुजाओं से आगे बच्चे को मधुर अनुभव होने चाहिए। तापक्रम, ध्वनि, बिजली, अंतरिक्ष, समुदाय के अन्य सदस्यगण, पशु पक्षी, प्रकृति आदि तमाम एक नया वातावरण प्रदान करते हैं। दृष्टि क्षति से ग्रस्त बचे को पर्यावरण को जानने के लिए अधिक समय की जरूरत होती है। बच्चा अपने परिचित वातावरण में अपने- आपको जितना सुरक्षित महसूस करता है उतना अपरिचित वातावरण में नहीं करता है। माता – पिता को उसमे अतराफ लोगों और पर्यावरण के साथ एक सकारात्मक संकल्पना स्थापित करने के लिए उसकी सहायता करने की आवश्यकता होती है।

पर्यावरण के प्रति जागरूकता का महत्व

  • यह पर्यावरण को प्रभावशाली रूप से जानने में मदद करती है।
  • यह बच्चे को उसके अतराफ़ की वस्तुओं के अर्थ जानने में मदद करती है।
  • यह बच्चे को पर्यावरण के अतराफ निर्भयता से रहने के लिए मदद करती है।
  • यह बच्चे को उसके अतराफ़ की चीजों के साथ अपने- आपके संबंध को स्थापित और दर्शाने में मदद करती है।

पर्यावरण के प्रति जागरूकता में सुधार के कार्यकलाप

  • बच्चे को विभिन्न प्रकार के खिलौनों से खेलने दें। घर में उपलब्ध हर चीज बच्चे के के लिए खिलौना हो सकती है।
  • बच्चे के बाँहों में उठाकर खुले वातावरण में खेलें। बच्चे को ऊपर – नीचे उछालें, गोद में लेकर उसे अपने शरीर से लिपटायें बाहों में भरकर उसे गोल –गोल घुमाएँ। बच्चे को विभिन्न प्रकार के प्रेरकों का अनुभव होने दें।
  • झूलों, दलारों, डोलनों आदि को खेल के समय के सर्वोत्तम कार्यकलाप समझें जो बच्चे को अपने अतराफ़ के खुले वातावरण के संबंध में अपने – आप के लिए संकल्पनाओं का निर्माण कर लेता है।
  • बच्चे को कोमल, सख्त, सपाट, खुरदरा, चिपकू, सूखा, गिला जैसे विभिन्न बनावटों को छूने और अनुभव करने दें। ये सब बच्चे के द्वारा खाने, पीने, नहाने आदि के दौरान किये जा सकते हैं।
  • बच्चे को पर्यावरण में उपस्थित छोटी और बड़ी वस्तुओं में दिलचस्पी लेने दें उअर उसे बड़ी गेंद/छोटी गेंद आदि का अंतर सिखाएं।
  • बच्चे को लगातार बाग़ – बगीचों और अन्य क्षेत्रों को ले जाएँ जहाँ बच्चों के मनोरंजन के ढेरों अवसर होते हैं।
  • हाई – वे/ राजमार्ग पर ले जाते समय बच्चे को तेज गति से चलती गाड़ियों को दिखाएँ।
  • उसे ऊँचाइयों, सीढ़ियों, झूमा – झूमी, फिसलनों आदि का अनुभव कराएँ। ये बच्चे के साथ उसके अपने मन माफिक काम करने के सर्वोत्तम मार्ग है।
  • जब बच्चा किसी चीज को गिरा देता है तो उससे कहें कि वही उसे ढूंढ निकालें।
  • बच्चा घर पर ही हर चीज को सर्वोत्तम ढंग से ही करता है इसलिए उसे घर के वातावरण से बहुत अच्छी तरह परिचित कराएँ।

स्त्रोत: सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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