बच्चे के विकास की गति
- विकास की गति जन्म लेने के बाद शरू हो जाती है
- उम्र के अनुसार ही शरीर और दिमाग का विकास होता है
- बच्चे के विकास की शुरुआत तो माँ के पेट से होने लगता है, गर्भ टिकने के बाद शुरू के तीन महीनों में बच्चे का तेजी से विकास होता है।
- जन्म से लेकर तीन साल तक बच्चे का विकास होता है
- बच्चे के विकास पर ध्यान देने के लिए जरूरी है की हर महीने उसका वजन लिया जाय ।
- वजन अगर बढ़ रहा है तो ठीक है अगर नहीं तो उसके खान-पान पर अधिक ध्यान देने की जरूरत पड़ेगी।
- विकास की गति का अपना ढंग है।
हम देखें के विकास की यह गति कैसे होती है
एक
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औसत उम्र एक महीना
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शारीरिक विकास थोड़ी देर के लिए पेट के बल बैठता है और सिर उपर की ओर उठता है
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मानसिक विकास की सी तरफ ऑंखें घुमा कर देखता है, थोड़ा-थोड़ा मुस्कुराता है
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दो महीना
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हाथ पैर थोड़ा-थोड़ा हिलाता है
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मुस्कुराता है अपनी माँ को पहचानता है
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तीन महीना
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अपना सिर उपर की ओर उठा पता है
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की सी खास चीज को देख कर हिलने डुलने लगता है बोलने की कोशिश हुंकारी भरता है
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दो
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औसत उम्र पांच से छ महीना
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शारीरिक विकास करवट लेता है सिर की घुमाता है सहारा पाकर बैठना पेट के बल घिसकना
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भाषा का विकास जोर जोर से आवाज निकालता है
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सामाजिक विकास परिवार के सदस्यों को पहचानना नये व्यक्ति को देख कर रोना
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तीन
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औसत उम्र छ से नवां महीना
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शारीरिक विकास बिना समझे बैठ पाता है घुटने के बल चलता है दो तीन दांत निकल आते हैं
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भाषा का विकास बिना समझे कुछ जाने शब्दों को बोलता है उसके सामने बोलने से वह भी कह शब्द निकाल देता है
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सामाजिक विकास पहचान और बिना जाने पहचान व्यक्तियों में फरक करना
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नवां से बारह महीना
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खड़ा हो पाता है पांच-छ दांत निकल आती है चलने की कोशिश करना
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बोलने की कोशिश में गति
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चीजों को गौर से देखना
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बारह से अठारह महीना
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बिना सहारे के चल पाता है बारह से अठारह दांत निकल आती हैं
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बोलने पर समझना जैसे माँ, दूध, बाबा, दीदी
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चीजों को हाथों से पकड़ता है कोई उससे चीजें चीन नहीं सकता
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डेढ़ से दो साल
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दौड़ सकता है सोलह–अठारह दांत निकल आती है
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कई बार शब्द बोल पाता है। छोटे-छोटे वाक्य भी
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बच्चों का ध्यान अपनी तरफ ही ज्यादा रहता है खेलने के लिए साथी खिलौना
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दो से तीन साल
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खेलना-कूदना सीढ़ियां चढ़ लेना
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बातचीत कर लेना पूरा वाक्य बोल पाता है
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दूसरों के साथ खेलना चीजों को समझने कई कोशिश करना
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ध्यान दें: सभी बच्चों का विकास एक समान नहीं होता है। उपर दी गयी बातें सामान्य है, एक तरह से विकास गति को जानने में मदद मिलेगा।
बच्चों के विकास पर ध्यान दिए जाने वाले बिंदु
बच्चों के विकास के लिए नीचे दी गयी बातों पर ध्यान देना होता है
(क) खान – पान
- जब बच्चा माँ के पेट में पल रहा होता है तो अपना भोजन माँ के शरीर से पाता है
- माँ के लिए जरूरी है की वह सेहत ठीक रखने वाली पौष्टिक आहार ले, नहीं तो बीमार बच्चा पैदा होगा जिसका वजन भी कम होगा।
- हमारी सामाजिक रीतियाँ इतनी बुरी है की महिलाओं, की शोरियों ओर लड़की यों को सही भोजन नहीं मिलता है, इसलिए हमारे बच्चे-लड़के-लड़की यां और बीमार रहते हैं।
- अच्छे भोजन की कमी से की शोरियों और महिलाओं में खून की कमी रहती है
- जरूरी है की लड़का-लड़की में भेद भाव न रखा जाय सबको बराबर ढंग से पौष्टिक भोजन मिले ताकी परिवार के सभी लोग स्वस्थ्य रहें।
- गर्भावस्था में तो महिलाएं सही भोजन मिलना चाहिए ताकी वह स्वस्थ्य बच्चा पैदा कर सके।
- बच्चे का जन्म के तुरत बाद स्तनपान कराना चाहिए। माँ के स्तनों में खूब दूध आए इसके लिए जरूरी है की माँ का भोजन सही हो
- बच्चे का स्वस्थ्य माँ के भोजन पर ही टिका रहता है।
(ख) लाड-दुलार
- अगर परिवार के सभी लोग और आस-पडोस के लोग अगर बच्चे को पूरा लाड़-प्यार देते हैं तो उसका सामाजिक विकास ठीक ढंग से होगा।
- अगर उसे लाड़-दुलार नहीं मिलता तो वह दुखी महसूस करता है, कुछ भी उत्साह से नहीं करता है।
(ग़) सुरक्षा
- बच्चे के सही विकास के लिए जरूरी है की वह अपने को सुरक्षित महसूस करें
- वह महसूस करे की लोग उसका ध्यान रखते हैं
- उसके पुकारने पर लोग जवाब देते है
- उसको लगे की लोग उससे प्यार करते हैं।
बच्चे को परिवार और समाज का एक व्यक्ति समझना
- उसकी पसंद और नपसंद का ख्याल रखना
- उसे दूसरे बच्चों से उंचा या नीचा नहीं समझना
- जब वह कोई नयी चीज समझता है या करता है तो उसे शाबासी देना, उसकी तारीफ करना।
- तारीफ करने से उसका उत्साह बढ़ता है
- उसकी आवश्यकता को पूरा करना
- बच्चों को स्वाभाविक रूप से काम करने देना
- उस पर की सी तरह का दबाव न पड़े
- उससे यह न कहना की यह करना यह न करना
- हाँ, खतरे में न पड़े इसका ध्यान देना
- बच्चे का स्वाभविक विकास रहे इसके लिए जरूरी है की बच्चा खेल-कूद में भाग लें
- खेल –खेल में बच्चा नयी चीजें सीखता है।
- उसे समाज का एक जवाबदेह सदस्य बनने में मदद मिलती है
- उनका दूसरों के साथ मेल-जोल बढ़ता है
- उसके बोलचाल और भाषा में विकास होता है।
हमारा विश्वास, हमारी परंपरा और माँ-बच्चे का स्वास्थ्य
- सभी समाज में कुछ मान्यताएं होती हैं, कुछ संस्कार, कुछ विश्वास।
- उनमे से कुछ अच्छे होते हैं तो कुछ बुरे और हानिकारक भी।
- यह बातें माँ और बच्चे की देख भाल, सेहत और स्वास्थ्य पर भी लागु होती है।
- हमारे विश्वाश,हमारे संस्कार चार तरह के होते हैं
- वे जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है
- वे जो न लाभदायक हैं न हानिकारक
- वे जो खतरनाक और हानिकारक है
- ऐसे विश्वास जो अब तक साबित नहीं हुए हैं वे हमारे लिए लाभदायक हैं या हानिकारक
- हमारे लिए जरूरी है कि हम पहचाने और जाने की कौन से विश्वास लाभदायक है।
- हमें लोगों के साथ लाभदायक विश्वाशों के साथ काम शुरू करना है ।
- अंध विश्वास एक दिन में खतम नहीं होता, समाज के लोगों के साथ उनपर काफी चर्चा करनी पड्ती है।
गर्भवती महिला का खान-पान
- कुछ लोगों का विश्वास है कि जब बच्चा पेट में पल रहा हो तो गर्भ के समय अधिक मात्रा में भोजन लेने से पेट का बच्चा बहुत बड़ा और भारी हो जाएगा जिससे प्रसव के समय कठिनाई होगी।
- कुछ लोगों का यह बिश्वास है की ज्यादा भोजन से पेट पर दबाव पड़ेगा इसलिए पेट में पल रहे बच्चे का विकास नहीं होगा।
सच तो यह है कि पेट में पल रहे बच्चे का विकास माँ के भोजन पर ही टिका रहता है
- अगर माँ अधिक मात्रा में भोजन नहीं लेगी तो बच्चे का विकास नहीं होगा
- केवल भोजन का अधिक होना ही ज्रिरी नहीं है। जरूरी है की भोजन में अनाज के साथ-साथ दालें, मूंगफली, दूसरी तरह की फलियाँ जैसे – सोयाबीन, दूध, दही, अंडा वगैरह भी लें।
- भोजन अगर पोषण देने वाला नहीं होगा तो जन्म ने के समय के समय बच्चे का वजन कम होगा। वह बराबर बीमार रहेगा।
यही बात प्रसव के बाद भी लागू होगा। माँ के स्तनों में पूरा दूध बने इसके लिए जरूरी है की माँ के भोजन में पोषण हों और उसकी मात्रा भी अधिक हो।
*कुछ और लोगों का विश्वास है कि प्रसव के बाद माँ को पानी पिलाने घाव सुखने में देर लगती है।
यह सब खतरनाक अन्धविश्वास है
- माँ को पानी नहीं मिलने पर उसे तकलीफ होती है
- पानी की कमी से स्तनों में दूध नहीं बनता
- चाहिए तो यह की माँ का पानी के साथ दूसरी तरल चीजें भी पिलानी चाहिए जैसे फलों और सब्जियों का जूस (रस), दूध छाछ इत्यदि।
- कुछ लोगों का विश्वास है की बच्चे को खीस (कोलेस्ताम) पिलाने बच्चा बीमार हो जाएगा।
- खीस प्रसव के बाद स्तनों से पीला, चिपचिपा बहाव होता है।
- सच तो यह है कि खीस अमृत समान है। यह बच्चों को बहुत सारी बीमारियों से बचाता है।
- हर माँ का प्रसव के तुरत बाद अपना स्तन बच्चे के मुंह से लगा दें ताकी वह जी भर कर खीस पीए और रोगों से बचें।
- हमारे समाज में अन्न प्राशन का रिवाज है। यह बहुत अच्छा रिवाज है। अक्सरहां पांच से सात महीने पर पूजा-पाठ के साथ बच्चे को अन्न खिलाया जाता है।
- लेकिन कभी-कभी काफी लोग एक दिन अनाज खिलाने के बाद एक साल या उससे ज्यादा समय तक कुछ नहीं खिलते हैं, केवल दूध देते हैं।
- उनका विश्वास है कि छोटा बच्चा अनाज नहीं पचा पाएगा
- सच तो यह कि बच्चे के चार महीना को होते ही पतला दाल, उबला आलू या दूसरी सब्जी को मसल कर खिलाना चाहिए।
- धीरे-धीरे छ महीने पर उसे खिचड़ी जैसी चीज खिलानी चाहिए
- हाँ दूध तो दो साल तक नियमित रूप से पिलानी चाहिए, केवल माँ का दूध-बोतल या डिब्बा का दूध नहीं।
- यदि बाहर के दूध पिलाने की आवश्यकता पढ़े तब गाय या बकरी का दूध पिलाना चाहिए।
दस्त के समय खाना और पानी देने से दस्त बन्द हो जाएगा
- सच तो यह है कि दस्त में शरीर में पानी की कमी होती है उसे पूरा करने हेतु ओ.आर.एस. का घोल पिलाएं। हल्का खाना दें।
- कहीं-कहीं अपच या पेट की गड़बड़ी की हालत में माँ बच्चे को स्तन पान नहीं करती-यह गलत विचार है
सच तो यह है कि स्तनपान के जरिए बच्चे माँ की बीमारी से प्रभावित नहीं होते।
-बीमारी की अवस्था में सावधानी से स्तन पान कराएं
- बुखार के दौरान शिशु को नहलाया नहीं जाता – यह भी हानिकारक अंध विश्वास है
बुखार से शिशु के शरीर का तापमान बढ़ जाता है, सिर धोने और भींगे कपड़े से बदन पोंछने से बुखार कम होता है।
यदि बुखार में कंपकपी हो टब शरीर पर पानी देना ठीक नहीं है। हानि हो सकती है।
बुखार होने पर कमरा की खिड़की को खोल कर रखें
- बुखार होने पर खाने पर रोक नहीं लगाना चाहिए आसानी से पचने वाला भोजन – रोटी, दाल, फल, दूध दिया जाना चाहिए। भोजन कमजोरी को कम करेगा।
शिशुओं का वजन नहीं कराने का रिवाज गलत है
- यह मानना भी गलत है की वजन कराने से शिशु का बढ़ना रुक जाएगा।
- सच तो यह है की समय-समय पर शिशु का वजन कराना आवश्यक है।
- इससे शिशु के बढ़ने या कमजोर होने की जानकारी मिलती है।
- यदि वजन घटता है तब डाक्टर से सलाह लें
- रोग होने पर झाड-फूंक कराने या ताबीज बांधने के विश्वास का कोई माने नहीं है।
- झाड-फूंक कराने या ताबीज बांधने के साथ पर रोग का इलाज आवश्यक है
- रोग होने पर डाक्टर की सलाह के अनुसार परहेज कराएं तथा दवा खिलाएं। बच्चे को पीलिया होने पर गले में काठ की माला पहनाना भी एक विश्वास या अंध विश्वास है।
- सच तो यह है की लीवर की गडबडी से पीलिया रोग होता है। एस रोग में काठ की माला पहलाने से कोई लाभ नहीं होता।
- बीमारी के इलाज कराने पर ही बीमारी दूर होगी। विभिन्न प्रकार की बिमारियों में शिशु के शरीर को दागना एक हानिकारक अंध विश्वास है। जिसका पालन ठीक नहीं है।
- कुछ जगहों में एक प्रकार की पत्ती को पीस कर शरीर के विभिन्न स्थानों पर लगाया जाता है जिससे चमड़ा जल जाता है।
इससे शिशु को कष्ट के सिवाय लाभ नहीं होता है। कुछ लोगों का मानना है की कुछ खाने के पदार्थ गरम तथा कुछ ठंढा होता है। बीमारी में दोनों प्रकार चीजों से शिशु को रोका जाता है। यह गलत मानना है।
- आम खाने से फोड़े नहीं होते हैं
- दही को ठंडा मानते हैं। और खाने से परहेज करते है – बात ऐसी नहीं है। दही का सम्बन्ध सर्दी जुकाम से नहीं रहता है।
- विटामिन सी के ली खट्टे फल या फलों का रस का सेवन करना आवश्यक है इन सब को खाने से रोकना नहीं चाहिए।
- सावधानी इस बात की रहे की खाने में अधिक तेल/घी, मिर्च एवं मसाले का व्यवहार नहीं हो। आहार पोष्टिक तथा शीघ्र पचने वाला हो। ध्यान रहे संस्कार एवं विश्वास का प्रभाव जीवन पर पड़ता है। हमारा व्यवहार बदल जाता है। अंध विश्वाश को दूर करने का प्रयास होना चाहिए।
संतान यदि बेटा-बेटी दोनों है तब
- बेटी को भी बेटा की तरह प्यार दें।
- दोनों के खान-पान में भेद भाव नहीं करें।
- दोनों को शिक्षा का समान अवसर प्रदान करें।
स्त्रोत: संसर्ग, ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान