नवजात शिशु में सीखने की प्रवृत्ति प्रबल होती है जैसे रोता हुआ शिशु माँ के पदचाप या आवाज सुनकर रोना बंद कर देता है
अधिगम के विभिन्न क्रिया तंत्रों की सहायता से यह पता लगाया गया है कि शिशु में व्यवहार अर्जन की क्षमता विद्यमान होती है यथा
(i) प्राचीन अनुबंधन : दो उद्दीपकों के समसामयिक रूप से साथ- साथ घटित होने के कारण तटस्थ (घंटी) की उपस्थिति में भी वही अनुक्रिया (लार स्राव) होती है जो अनानुबंधित उद्दीपक (भोजन) की उपस्थिति में होती है । रेनरेप पावलॉव ने पाया कि कालिक निकटता के परिणामस्वरूप कुछ प्रयासों के पश्चात दोनों के बीच अनुबंधन स्थापित हो गया (पावलॉव, 1927) । शिशु अधिगम के संदर्भ में, अनानुबंधित अनुक्रिया दूध पीना को उत्पन्न करने वाली उद्दीपकों (माँ का दूध) के साथ तटस्थ उद्दीपक (स्पर्श) यदि कालिक निकटता के साथ प्रस्तुत होता है तो कुछ प्रयासों के बाद, अनुबंधित उद्दीपक स्वत: वही अनुक्रिया उत्पन्न करने लगता है जो अनानुबंधित (माँ का दूध) उद्दीपक की प्रस्तुती के बाद होता रहा है । नीचे प्राचीन अनुबंधन का प्रारूप प्रस्तुत किया गया है ।
अनानुबंधित उद्दीपक |
अनानुबंधित अनुक्रिया |
(माँ का दूध) |
(दूध पीना) |
अनुबंधित उद्दीपक |
अनुबंधित अनुक्रिया |
(ललाट पर स्पर्श) |
(दूध पीना) |
नवजात शिशु में यद्यपि अनुबंधन द्वारा सीखने की क्षमता होती है। तथापि अनानुबंधित उद्दीपकों का जीवन मूल्य युक्त (संतोषदायी) होना आवश्यक है। कुछ अनूक्रियाओं का अनुबंधन प्रारंभ में जटिल होता है जैसे ‘भय’। इसकी अनुक्रिया “पलायन” हेतु शिशु को माता – पिता पर ही निर्भर होना पड़ता है क्योंकी वह शारीरिक रूप से अक्षम होने के कारण पलायन स्वत: नहीं कर पाता है। इसके अतिरिक्त, परिस्थितियों का बी प्रभाव पड़ता है जैसे – रोता हुआ शिशु माँ का पदचाप सुनकर, रोना बंद कर देता है और अंगूठा चूसने लगता है।
(ii) नैमित्तिक अनुबंधन : व्यवहार प्रबलनकारी उद्दीपक की प्राप्ति की निमित्त घटित होता है – यथा:
अनुक्रिया |
प्रबलनकारी उद्दीपक |
अनुक्रिया के घटित होने की |
(सिर घुमाना/या चूसना) |
(मीठा पानी) |
बारम्बारता समृद्ध |
|
उद्दीपक |
अनुक्रिया साहचर्य निर्मित |
नवजात शिशु इस क्रियातंत्र द्वारा सीमित व्यवहारों का ही अर्जन कर पाते हैं जैसे सिर घुमाना एवं चूसना। अध्ययनों से स्पष्ट होता है की शिशु में मीठे पानी की ओर सिर घुमाने की अनुक्रिया व्यक्त किया (सेक्यूलैंड एवं लिप्सिटू, 1966; लिप्सिट एवं वर्नर, 1981) परंतु आयु वृद्धि के साथ- साथ बच्चा इस विधि द्वारा विस्तृत व्यवहारों के प्रति अनुक्रिया करना सीख लता है, जैसे – बच्चा जब माता- पिता की ओर टकटकी लगाकर देखता है। उसे देखकर माता- पिता मुस्कराते हैं, शिशु उन्हें फिर देखता है तत्पश्चात मुस्कुराता है। इस प्रकार वह एक नया व्यवहार मुस्कुराना सीख लेता है। परन्तु यदि शिशु का परिवेश प्रतिकूल एवं अव्यवस्थित है तो वहाँ विकास संबंधी अनके समस्याएँ पायी जाती हैं जैसे; शिशु में बौद्धिक मंदता, विषाद आदि (सिन्नेटी एवं एवर 1986; सेलिगमैन, 1975) तथा मस्तिष्क में प्रकार्यात्मक दोष भी शिशुओं की जीवन रक्षक अनूक्रियाओं के अधिगम को बाधित करते हैं जैसे मृत्यु सिंड्रोम प्राय: शिशु की मृत्यु का कारण बन जाता है (काटन, 1990; विल्सन एवं निडिच, 1991)।
स्रोत: जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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