आयु वृद्धि के साथ शरीर की मांसपेशी तथा मेदा (चर्बी) की बनावट में भी परिवर्तन होते हैं । गर्भकाल के अंतिम सप्ताह से जन्मोपरांत के 9 महीनों तक मांसपेशियों का विकास तीव्र गति से होता है। इससे शिशु के शारीरिक तापमान को बनाए रखने में सहायता मिलती है। दूसरे वर्ष से, शिशु पतला/छरहरा होने लगता है।
यह संरूप बाल्यावस्था के मध्य तक चलता रहता है। 8 वर्ष की आयु तक लड़कों की तुलना में लड़कियों की भुजाओं, टांगों एवं धड़ का भाग अधिक भारी हो जाता है । यही क्रम किशोरावस्था तक जारी रहता है । इसके विपरीत किशोरावस्था में लड़कों की भुजाओं और टांगों की चर्बी में कमी आ जाती है ( टैनर एवं ह्वाइट हाउस,1975) । मेंदा (चर्बी) की अपेक्षा, मांसपेशियों के विकास के संरूप में भिन्नता पायी जाती है । ये शैशवावस्था एवं बाल्यावस्था में धीमी गति तथा किशोरावस्था में तीव्रगति से विकसित होती है । यद्यपि वय: संधि में लड़के- लड़कियों की मांसपेशियों में वृद्धि तीव्र होती है तथापि लड़कों के कंकाल एवं ह्रदय की मांसपेशियों में तीव्रतम वृद्धि पायी जाती है । फेफड़ों की क्षमता में भी तीव्र वृद्धि होती है । इसलिए लड़कों में लड़कियों की अपेक्षा, लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या तथा फेफड़ों से मांसपेशियों तक आक्सीजन संवहन की क्षमता अधिक पायी जाती है ।
वृद्धि के स्तर पर वैयक्तिक भिन्नता पायी जाती है । इसलिए शरीरिक परिपक्वता के मापन के लिए प्रमाणीकृत मापकों का निर्माण किया गया है, जिनसे शारीरिक वृद्धि में वैयक्तिक भिन्नता का अध्ययन संभव हो सका है । कंकाल की आयु के आधार पर शरीरिक परिपक्वता का अध्ययन किया जा सकना संभव है । भ्रूण की हड्डी अत्यंत लचीली होती है, इसे कार्टिलेज कहा जाता है । छठे सप्ताह से कार्टिलेज कठोर होकर हड्डी के रूप में परिवर्तित होने लगता है । किशोरावस्था तक यह परिवर्तन क्रमश: जारी रहता है तब तक हड्डियाँ अपना अधिक आकार पप्राप्त नहीं कर लेती है । जन्म से पूर्व से बाल्यावस्था तक एपीफाइसीस ( हड्डियों का वृद्धि केंद्र) हड्डियों को कठोर बनाने की क्रिया जारी रखता है । लम्बी हड्डियों में एपीफाइसीस केंद्र दो स्थानों पर प्रकट होता है । विकास के साथ ये केंद्र स्वत: मिट जाते हैं ।
हड्डियों के एक्सरे द्वारा भी कंकाल की आयु की जानकारी प्राप्त की जा सकती है । दांतों के विकास के आधार पर भी कंकाल के विकास की गति का अनुमान लगाया जा सकता है जिन बच्चों में दांत जल्दी आते हैं उनमें शारीरिक परिपक्वता शीघ्र आती ( माट एवं अन्य, 1990) । लड़कों की तुलना में लड़कियों के विकास की गति तीव्र होती है ।
जन्म से 2 वर्ष की आयु तक खोपड़ी में वृद्धि तीव्र गति से होती है, क्योंकी इस अवधि में मस्तिष्क का विकास त्वरित गति से होता है । जन्म के समय खोपड़ी की हड्डियों में 6 रिक्त भाग होते हैं जिन्हें हल्का धब्बा कहा जाता है । यह भाग माँ की गर्भ नली से शिशु को बाहर आने में सहायक होता है । कालान्तर में यह हिस्सा समाप्त होने लगता है तथा एक दुसरे से सम्बद्ध होकर सटर्स ल निर्माण करते हैं जो हड्डियों की वृद्धि के साथ – साथ खोपड़ी के विस्तार में सहायक होते हैं । वय: संधि के बाद जब वृद्धि पूरी हो जाती है, तो ये समाप्त हो जाते हैं ।
शारीरिक वृद्धि में असह्कालिक प्रक्रिया निहित होती है । अथार्त शरीर के विभिन्न अंगों की परिपक्वता अवधि भिन्न- भिन्न एवं प्रत्येक अंगे निजी समयबद्ध रूप रेखा के अनुरूप विकसित होते हैं । शरीर के वाह्य तथा आन्तरिक अंगों का विकास एक संरूप का अनुसरण करते हैं । विकास की गति शैशवावस्था में तीव्र, बाल्यावस्था में धीमी तथा किशोरावस्था में पुन: तीव्र होती है । परंतु इसमें अपवाद भी पाया जाता है । यह क्रम बाल्यावस्था तक चलता है, परन्तु किशोरावस्था में विकास की गति तीव्रतम हो जाती है । इसके विपरीत लिम्फ का विकास शैशवावस्था एवं बाल्यावस्था में तीव्र गति से होता हुआ किशोरावस्था की पूर्व ही अभीष्ट स्तर को प्राप्त कर लेता है, पुन: अवनति पायी जाती है । संक्रामक रोगों के प्रतिरोध एवं पोषण तत्वों के अवशोषण में लिम्फ की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है, अत: इसका उपयुक्त विकास, बच्चे के स्वस्थ जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है ( सिल्ड्स, 1972)।
स्रोत: जेवियर समाज सेवा संस्थान, राँची
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस लेख में उन अंगों और ऊतकों के प्रकार बताये गए है...
इस लेख में जीवित दाता संबंधित प्रत्यारोपण के बारे ...
इस लेख में उन अंगों और ऊतकों के प्रकार बताये गए है...
इस लेख में प्रत्यारोपण सम्बंधित कानूनी और नैतिक मु...