हम जानते हैं कि किडनी शरीर के अधिक पानी, नमक और अन्य क्षार को पेशाब द्वारा दूर करके शरीर में इन पदार्थो का संतुलन बनाने का महत्वपूर्ण कार्य करती है। किडनी फेल्योर में यह नियंत्रण का कार्य ठीक तरह से नहीं होता है। परिणामस्वरूप किडनी फेल्योर के मरीजों में पानी, नमक, पोटैशियमयुक्त खाध्य पदार्थ आदि सामान्य मात्र में लेने पर भी कई बार गंभीर समस्या उत्पन्न हो सकती है। किडनी फेल्योर के मरीजों में कम कार्यक्षम किडनी को अधिक बोझ से बचाने के लिए तथा शरीर में पानी, नमक और क्षारयुक्त पदार्थ कि उचित मात्रा बनाये रखने के लिये आहार में जरुरी परिवर्तन करना आवश्यक है। क्रोनिक किडनी फेल्योर के सफल उपचार में आहार के इस महत्व को ध्यान में रखकर यहाँ आहार संबंधी विस्तृत जानकारी और मार्गदर्शन देना उचित समझा गया है। लेकिन आपको अपने डॉक्टर के परामर्श अनुसार आहार निश्चित करना अनिवार्य है।
शरीर के तापमान, विकास, दैनिक गतिविधियों और शरीर के वजन को बनाये रखने के लिए पर्याप्त कैलोरी की आवश्यकता होती है। मुख्यतः कैलोरी की आपूर्ति वसा और कार्बोहाइड्रेट से की जाती है।
सामान्यतः 35 -40 कैलोरी/किलोग्राम की आवश्यकता क्रोनिक किडनी डिजीज (सी. के. डी.) के मरीज को प्रतिदिन होती है। अगर कैलोरी का सेवन अपर्याप्त हो तो शरीर में कैलोरी प्रदान करने के लिए शरीर द्वारा प्रोटीन का इस्तेमाल किया जाता है। प्रोटीन के इस विघटन से हानिकारक प्रभाव हो सकता है। जैसे कुपोषण और अपशिष्ट उत्पादों का अधिक से अधिक उत्पादन होना। इसलिए सी. के. डी. के रोगियों के लिए कैलोरी की गणना करना महत्वपूर्ण है, साथ ही वर्तमान वजन को ध्यान में रखना चाहिए।
कार्बोहाइड्रेट-
कार्बोहाइड्रेट शरीर के लिए कैलोरी का प्राथमिक स्त्रोत है। गेहूँ, दाल, चावल, आलू, फल, सब्जी, शक्कर, मधु, केक, बिस्कुट, मिठाई और पेय पदार्थ से कार्बोहाइड्रेट मिलता है। इसलिए मधुमेह और मोटापे से ग्रस्त मरीज को कार्बोहाइड्रेट का सीमित मात्रा में सेवन करना चाहिए। अच्छा हो यदि मरीज चोकर युक्त गेहूँ, बिना पोलिश किया गया चावल, जैसे जटिल कार्बोहाइड्रेट का उपयोग करे क्योंकि इससे फाइबर (रेशयुक्त) आहार मिलता है। यह शरीर के लिए लाभदायक होता है। कार्बोहाइड्रेट के लिए इन खाघ पदार्थों का एक बड़ा हिस्सा आहार में होना चाहिए। विशेष रूप से मधुमेह के रोगियों में अन्य सभी साधारण चीनी युक्त पदार्थों का कुल 20% से अधिक का सेवन नहीं होना चाहिए। जिन मरीजों में मधुमेह नहीं हैं वे अपने आहार में कैलोरी की मात्रा उन प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों से ले सकते हैं जिसमें कार्बोहाइड्रेट है, जैसे फल, केक, कुकीज, जेली, मधु सीमित मात्रा में चाकलेट, बादाम, केला, मिठाई आदि।
फैट/वसा -
वसा शरीर के लिए कैलोरी का महत्वपूर्ण स्त्रोत है। प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट की तुलना में वसा दुगनी मात्रा में कैलोरी प्रदान करती है। असंतृप्त या अच्छी वसा, के कुछ स्त्रोत है जैतून के तेल, मूंगफली का तेल, कनोला तेल, कुसुम तेल, मछली और बादाम का तेल आदि। संतृप्त या बुरी वसा के कुछ स्त्रोत है लाल मांस, अंडा, दूध्र, मक्खन, गहि, पनीर, और चर्बी की तुलना में बेहतर है। सी. के. डी. के मरीज को अपने आहार में संतृप्त या बुरी वसा और कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम रखनी चाहिए क्योंकि यह ह्रदय रोग पैदा कर सकती है।
असंतृप्त वसा (Unsaturated) -
इस दौरान मोनोअनसेचुरेटेड और पॉली अनसेचुरेटेड के अनुपात को ध्यान में रखना जरुरी है। ज्यादा मात्रा में ओमेगा 6 पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड (वसा अम्ल) लेने और ज्यादा ओमेगा 6 : ओमेगा 3 का अनुपात भी हानिकारक होता है, जबकि कम मात्रा का ओमेगा 6 : ओमेगा 3 का अनुपात लाभकारी प्रभाव डालता है। एकल तेल के उपयोग के बजाय अलग-अलग वनस्पति तेल का उपयोग करने से उस उद्देश्य को प्राप्त करना संभव है। आलू के चिप्स, डोनट्स, व्यवसाहिक तौर पर तैयार कुकीज और केक जैसे वसा के खाघ पदार्थ संभावित हानिकारक है और उनका कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए या उपयोग में लाने से बचना चाहिए।
शरीर के उतकों की मरम्मत और रख रखाव के लिए प्रोटीन आवश्यक है। यह संक्रमण से लड़ने और घाव भरने में भी सहायता करता है। सी. के. डी. के रोगी जो डायालिसिस पर नहीं हैं उन्हें 20.8 gm/ kg शरीर के वजन/दिन के हिसाब से प्रोटीन लेना चाहिए। यह किडनी के कार्यों में गिरावट की दर और किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत को आगे टाल देता है। प्रोटीन पर तीव्र प्रतिबंध से बचना चाहिए, क्योंकि इससे कुपोषण का खतरा हो सकता है।
सी. के. डी. के मरीज में अपर्याप्त भूख का होना आम बात हैं। अपर्याप्त भूख और प्रोटीन सख्त प्रतिबंध, दोनों के कारण रोगी में कुपोषण, वजन घटना, शरीर में उर्जा की कमी और शरीर में प्रतिरोधक क्षमता में कमी हो जाती है, जो भविष्य में मृत्यु के खतरे को बढ़ा सकता है। वे प्रोटीन जिनमें जैविक मूल्यों की मात्रा ज्यादा होती हैं जैसे पशु प्रोटीन (मांस, अंडा, मछली) ऐसे खाघ पदार्थों को प्राथमिकता दी जाती है। सी. के. डी. मरीज को उच्च प्रोटीन आहार जैसे अटकिन्स आहार (Atkins Diet) से परहेज करना चाहिए। इसी तरह उन प्रोटीन की खुराक एवं वे दवाइयाँ जो मांसपेशियों के विकास के लिए इस्तेमाल की जाती हैं उनसे परहेज करना चाहिए और उनका सेवन चिकित्सक या आहार विशेषज्ञ की सलाह पर ही करना चाहिए। किन्तु यदि एक बार मरीज डायलिसिस पर चला जाता हैं तो प्रोटीन की मात्रा में 1.0-1.2 ग्राम प्रतिकिलो शरीर का वजन प्रतिदिन के हिसाब से बढ़ा देना चाहिए जिससे इस प्रक्रिया के दौरान जो प्रोटीन में आती है उसकी भरपाई हो सके।
किडनी फेल्योर के मरीजों को पानी या अन्य पेय पदार्थ ( द्रव ) लेने में सावधानी क्यों जरुरी हैं ?
किडनी की कार्यक्षमता कम होने के साथ साथ अधिकतर मरीजों में पेशाब कि मात्रा भी कम होने लगती हैं। इस अवस्था में अगर पानी का खुलकर प्रयोग किया जाये, तो शरीर में पानी की मात्रा बढ़ने से सूजन और साँस लेने की तकलीफ हो सकती हैं, जो ज्यादा बढ़ने से प्राणघातक भी हो सकती हैं
शरीर में पानी की मात्रा बढ़ गई हैं, यह कैसे जाना जा सकता हैं?
सूजन आना, पेट फूलना, साँस चढ़ना, खून का दबाव बढ़ना, कम समय में वजन में वृद्धि होना इत्यादि लक्षणों की मदद से शरीर में पानी की मात्रा बढ़ गई हैं, यह जाना जा सकता हैं ।
किडनी फेल्योर के मरीजों को कितना पानी लेना चाहिए?
किडनी फेल्योर के मरीजों को कितना पानी लेना हैं , यह मरीज को होनेवाली पेशाब और शरीर में आई सूजन को ध्यान में रखते हुए तय किया जाता है। जिस मरीज को पेशाब पूरी मात्रा में होता है, एवं शरीर में सूजन भी नहीं आ रही हो , तो ऐसे मरीजों को उनकी इच्छा के अनुसार पानी - पय पदार्थ की छूट दी जाती है ।
जिन मरीजों को पेशाब कम मात्रा में होता हो, साथ ही शरीर में सूजन भी आ रही हो, ऐसे मरीजों को पानी कम लेने की सलाह दी जाती हैं । सामान्यतः 24 घंटे में होनेवाले कुल पेशाब के मात्रा के बराबर पानी लेने की छूट देने से सूजन को बढ़ने से रोका जा सकता है।
सी. के. डी. के रोगियों को क्यों अपने दैनिक वजन का रिकार्ड बना कर रखना चाहिए?
रोगियों को अपने शरीर के तरल पदार्थ की मात्रा पर नजर रखने के लिए और तरल पदार्थ के लाभ या नुकसान का पता लगाने के लिए अपने दैनिक वजन का एक रिकार्ड रखना चाहिए। जब तरल पदार्थ के सेवन के बारे में दिए गए निर्देशों का सख्ती से पालन किया जाता है तब शरीर का वजन लगातार सही बना रहता है। अचानक वजन में वृध्दि रोगी को चेतावनी है की द्रव पर अधिक प्रतिबंध की आवश्यकता है। आमतौर पर वजन का घटना, तरल पदार्थ पर प्रतिबंध और अधिक पेशाब निष्कासन का संयुक्त प्रभाव होता है।
पानी कम मात्रा में लेने के लिए सहायक उपाय:
सी. के. डी. के रोगी को तरल पदार्थों के सेवन को नियंत्रित करने के लिए क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
तरल पदार्थ की कमी से बचने के लिए तरल पदार्थ की मात्रा दर्ज करनी चाहिए और डॉक्टर की सलाह के अनुसार उसका पालन करना चाहिए। हर सी. के. डी. के मरीज के लिए तरल पदार्थ की मात्रा भिन्न-भिन्न हो सकती है और यह प्रत्येक रोग के पेशाब उत्पादन और तरल पदार्थ की स्थिति के आधार पर तय की जाती है।
मरीज नापकर उचित मात्रा में ही पानी/तरल पदार्थ ले सके इसके लिये कौन सी पध्दति अपनाने की सलाह दी जाती है?
मरीज को जितना पानी लेने की सलाह दी गई हो, उतना पानी एक जग में रोज भर लेना चाहिए।
जितनी मात्रा में मरीज कप, गिलास या कटोरी में पानी पिए उतना ही पानी जग में से उसी बर्तन की सहायता से निकालकर फेंक देना चाहिए।
दूसरे दिन फिर माप के अनुसार जग में पानी भर कर उतनी ही मात्रा में पानी लेने की छूट दी जाती है।
इस प्रकार मरीज सरलता से डॉक्टर द्वारा बताई गई मात्रा में पानी और पेय पदार्थ ले सकता है।
किडनी फेल्योर के मरीजों को आहार में कम मात्रा में नमक (सोडियम) लेने की सलाह क्यों दी जाती है?
शरीर में सोडियम (नमक) पानी को और खून के दबाव को उचित मात्रा में कायम रखने में सहायक होता है। शरीर में सोडियम की उचित मात्रा का नियमन किडनी करती है। जब किडनी की कार्यक्षमता में कमी होती है, तब शरीर से, किडनी द्वारा ज्यादा सोडियम निकलना बंद हो जाता है और इसलिए शरीर में सोडियम की मात्रा बढ़ने लगती है।
शरीर में ज्यादा सोडियम के कारण होनेवाली समस्याओं में प्यास ज्यादा लगना, सूजन बढ़ना, साँस फूलना, खून का दबाव बढ़ना इत्यादि का समावेश होता है। इन समस्याओं को रोकने अथवा कम करने के लिए किडनी फेल्योर के मरीजों को नमक का उपयोग कम करना अनिवार्य है।
सोडियम और नमक में क्या अंतर है?
सोडियम और नमक दोनों को नियमित रूप से समानार्थ शब्द के रूप से इस्तेमाल किया जाता हैं। साधारण नमक या टेबल नमक सोडियम क्लोराइड है और इसमें 40 प्रतिशत सोडियम रहता है। हमारे आहार में सोडियम का प्रमुख स्त्रोत नमक है। लेकिन नमक, सोडियम का एकमात्र स्त्रोत नहीं है। उपर वर्णित कई खाघ पदार्थों में सोडियम शामिल होता है पर वे स्वाद में खारे नहीं होते है। सोडियम इन यौगिकों में छुपा रहता है।
आहार में कितनी मात्रा में नमक लेना चाहिए?
अपने देश में सामन्य व्यक्ति के आहार में पुरे दिन के लिये जानेवाले नमक की मात्रा 6 से 8 ग्राम तक होती है। किडनी फेल्योर के मरीजों को, डॉक्टर की सलाह के अनुसार नमक लेना चाहिए। अधिकांश उच्च रक्तचाप और सूजन वाले किडनी फेल्योर के मरीजों को रोज 3 ग्राम नमक लेने की सलाह दी जाती है।
किस आहार में नमक (सोडियम) की मात्रा ज्यादा होती है?
ज्यादा नमक (सोडियम) युक्त वाले आहार का विवरण
खाने में सोडियम की मात्रा कम करने के उपाय:
प्रतिदिन भोजन में नमक का कम प्रयोग करना तथा साथ ही भोजन में नमक उपर से नहीं छिड़कना चाहिये। यघपि श्रेष्ठ पध्दति तो बिना नमक के खाना बनाना है। ऐसे खाने में मरीज डॉक्टर की सुचना अनुसार मात्रा में ही नमक अलग से डाले। इस विधि से निश्चित रूप से निर्धारित मात्रा में नमक लिया जा सकता है।
किडनी फेल्योर के मरीजों को सामान्यतः आहार में कम पोटैशियम लेने की सलाह क्यों दी जाती है?
शरीर हृदय और स्नायु के उचित रूप से कार्य के लिए पोटैशियम की सामान्य मात्रा जरुरी होती है। किडनी फेल्योर के मरीजों में खून में पोटैशियम बढ़ने का खतरा रहता है। क्रोनिक किडनी डिजीज के मरीज के खून में से किडनी द्वारा पौटेशियम को हटाना अपर्याप्त हो सकता है और इससे आगे चलकर खून में पौटेशियम की मात्रा बढ़ सकती है। इस परिस्थिति को "हाइपरकेलेमिया" कहते हैं। हीमोडायलिसिस की तुलना में वे मरीज जो पेरिटोनियल डायलिसिस के दौरे से गुजर रहे हैं उन्हें हाइपरकेलेमिया का खतरा कम रहता है। दोनों समूहों में खतरा अलग-अलग होता है क्योंकि पेरिटोनियल डायलिसिस की प्रक्रिया लगातार होती हैं जबकि हीमोडायलिसिस रुक रुक कर होता है।
खून में पोटैशियम की ज्यादा मात्रा हृदय और शरीर के स्नायुओं की कार्यक्षमता पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है। पोटैशियम की मात्रा ज्यादा बढ़ने से होनेवाले जानलेवा खतरों में ह्रदय की गति घटते-घटते एकाएक रुक जाना और फेफड़ों के स्नायु काम नहीं कर सकने के कारण साँस का बंद हो जाना है।
शरीर में पोटैशियम की मात्रा बढ़ने की समस्या जानलेवा साबित हो सकती है, फिर भी इसके कोई विशेष लक्षण नहीं दिखाई देते हैं। इसलिए इसे 'साइलेन्ट किलर' कहते हैं।
खून में सामान्यतः कितना पोटैशियम होता है? यह मात्रा कितनी बढ़ने पर चिंताजनक होती है?
सामान्यतः शरीर में पोटैशियम की मात्रा 3.5 से 5.0 mEq/L होती है। जब यह मात्रा 5 से 6 mEq/L हो जाये तो खाने पीने में सतर्कता जरुरी हो जाती है। जब यह 6.5 mEq/L से ज्यादा बढ़ती है, तब यह भयसूचक होती है और जब पोटैशियम की मात्रा 7 mEq/L से ज्यादा हो जाए, तो यह किसी भी समय जानलेवा हो सकती है।
पोटैशियम की मात्रा के अनुसार खाघ पदार्थ का वर्गीकरण?
किडनी फेल्योर के मरीजों में, खून में पोटैशियम नहीं बढ़े, इसके लिए डॉक्टरों की सुचना के अनुसार आहार लेना चाहिए। पोटैशियम की मात्रा को ध्यान में रखते हुए खाघ पदार्थ का वर्गीकरण तीन भाग में किया गया है। ज्यादा, मध्यम और कम पोटैशियम वाले खाघ पदार्थ।
सामान्य रूप से ज्यादा पोटैशियम वाले खाघ पदार्थ पर निषेध, मध्यम पोटैशियमवाले खाघ पदार्थ मर्यादित मात्रा में और कम पोटैशियमवाले खाघ पदार्थ पर्याप्त मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है। 100 ग्राम खाघ पदार्थ में पोटैशियम की मात्रा के आधार पर ज्यादा, मध्यम और कम पोटैशियम वाले आहार का वर्गीकरण नीचे किया गया है:
समूह - 1: अधिक पोटैशियम वाले आहार
समूह - 2. मध्यम पोटैशियम आहार
समूह - 3. कम पोटैशियम आहार
भोजन में पौटेशियम कम करने के लिए व्यवहारिक सुझाव?
साग-सब्जी में पाया जानेवाला पोटैशियम किस प्रकार कम किया जा सकता है?
इस तरह से बनाए गए खाने में पोटैशियम के साथ-साथ विटामिन्स भी नष्ट हो जाते हैं, इसलिए डॉक्टर की सलाह लेकर विटामिन की गोली लेना जरुरी है।
1. फॉस्फोरस कम लेना किडनी फेल्योर के मरीजों को फॉस्फोरस वाला आहार क्यों कम लेना चाहिए?
किस आहार में ज्यादा फॉस्फोरस होने के कारण उसे कम लेना चाहिए या नहीं लेना चाहिए?
ज्यादा फॉस्फोरस वाले आहार का विवरण इस प्रकार है:
कम भूख लगने के कारण सी. के. डी. के रोगी आमतौर पर विटामिन की अपर्याप्त आपूर्ति की वजह से पीड़ित रहते हैं। आहार पर एक प्रतिबंध रहता है ताकि किडनी की बीमारी न बढ़े। डायलिसिस के दौरान कुछ विटामिन्स विशेष रूप से पानी में घुलनशील विटामिन B, विटामिन C, और फोलिक एसिड लुप्त हो जाते हैं। अपर्याप्त सेवन एवं इन विटामिनों के नुकसान की भरपाई करने के लिए सी. के. डी. रोगियों को पानी में घुलनशील विटामिन्स और तत्वों के पूरक की आवश्यकता होती है।
सी. के. डी. के मरीजों के लिए उच्च फाइबर का सेवन फायदेमंद है। इसलिए रोगियों को ताजी सब्जी और फल जिसमें विटामिन और फाइबर की मात्रा अधिक हो, लेने की सलाह दी जाती है। पर उन फल और सब्जियों से जिनमें ज्यादा मात्रा में पौटेशियम हो, परहेज रखना चाहिए।
दैनिक आहार की रचना
किडनी फेल्योर के मरीजों को प्रतिदिन किस प्रकार का और कितनी मात्रा में आहार एवं पानी लेना चाहिए, यह चार्ट नेफ्रोलॉजिस्ट की सूचना के अनुसार डायटीशियन द्वारा तैयार किया जाता है। परन्तु, आहार के लिए सामान्य सूचना इस प्रकार है:
1. पानी और तरल पदार्थ :
डॉक्टर द्वारा दी गई सुचना के अनुसार इतनी ही मात्रा में पेय पदार्थ लेना चाहिए। रोज वजन करके चार्ट रखना चाहिये। यदि वजन में एकाएक बढ़ोतरी होने लगे, तो समझना चाहिए की ज्यादा पानी लिया गया है।
2. कार्बोहाइड्रेटस:
शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैलोरी मिले उसके लिए अनाज एवं दालों के साथ (यदि डायाबिटीज नहीं हो, तो) चीनी अथवा ग्लूकोज की अधिक मात्रा वाले आहार का उपयोग किया जा सकता है।
3. प्रोटीन :
प्रोटीन मुख्यतः दूध, दलहन, अनाज, अण्डा, मुर्गी में ज्यादा मात्रा में पाया जाता है। जब डायालिसिस की जरूरत नहीं हो, उस अवस्था के किडनी फेल्योर के मरीजों को थोड़ा कम प्रोटीन (0.8 ग्राम/किलोग्राम शरीर के वजन के बराबर) लेने की सलाह दी जाती है। जबकि नियमित हीमोडायालिसिस एवं सी.ऐ.पी.डी. (C.A.P.D) कराने वाले मरीजों में ज्यादा प्रोटीन लेना अत्यंत आवश्यक होता है। सी.ऐ.पी.डी. का द्रव जब पेट से बहार निकलता है तभी उसी द्रव के साथ प्रोटीन निकल जाता है, जिससे यदि भोजन में ज्यादा प्रोटीन नहीं दिया जाये, तो शरीर में प्रोटीन कम हो जाता है, जो हानिकारक होता है।
4. चर्बीवाले पदार्थ (वसायुक्त पदार्थ):
चर्बीवाले पदार्थों को कम लेना चाहिए। घी, मक्खन इत्यादि खाने में कम लेना चाहिए। परन्तु इनको बिलकुल बंद कर देना भी हानिकारक है। तेलों में सामान्यतः मूंगफली का तेल या सोयाबीन का तेल दोनों शरीर के लिए फायदेमंद हैं, फिर भी उन्हें कम मात्रा में लेने की सलाह दी जाती है।
5. नमक:
अधिकांश मरीजों को नमक कम लेने की सलाह दी जाती है। उपर से नमक नहीं छिड़कना चाहिये। खाने का सोडा - बेकिंग पाउडर वाली वस्तुएं कम लेनी चाहिए अथवा नहीं लेना चाहिए। नमक के बदले सेंधा नमक और लोन (कम सोडियम वालानमक - low sodium salt) कम लेना चाहिए या नहीं लेना चाहिए।
6. अनाज:
अनाज में चावल या उससे बने पौआ (चिउड़ा), मुरी (फरही) जैसी चीजों का उपयोग करना चाहिए। हर रोज एक ही अनाज लेने की जगह गेहूं, चावल, पौआ, साबूदाना, सूजी, मैदा, ताजा मक्का, कार्नफ्लेक्स इत्यादि चीजें ली जाती सकती हैं। ज्वार, मकई तथा बाजार कम लेना चाहिए।
7. दालें :
अलग-अलग तरह की दालें सही मात्रा में ली जा सकती हैं, जिससे खाने में विविधता बनी रहती है। दाल के साथ पानी की मात्रा कम लेनी चाहिए। जहाँ तक हो सके, दाल गाढ़ी लेनी चाहिए। दाल की मात्रा डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही लेनी चाहिए। दालों में से पोटैशियम कम करने के लिए उसे ज्यादा पानी से धोने के बाद गरम पानी में भिगो कर उस पानी को फेक देना चाहिए। ज्यादा पानी में दाल को उबालने के बाद पानी को फेंक कर स्वादानुसार बनाना चाहिए। दाल और चावल के स्थान पर उनसे बनी खिचडी, डोसा वगैरह भी खाये जा सकते हैं।
8. साग-सब्जी :
पूर्व में बताये अनुसार कम पोटैशियमवाली साग-सब्जी बिना किसी परेशानी के उपयोग की जा सकती हैं। ज्यादा पोटैशियम वाली साग-सब्जी पूर्व में बताये अनुसार पोटैशियम की मात्रा में ही बनाई जानी चाहिए तथा स्वाद के लिए दाल सब्जी में नींबू निचोड़ा जा सकता है।
9. फल :
कम पोटैशियमवाले फल जैसे सेब, पपीता, अमरुद, बेर, वगैरह दिन में एक बार से ज्यादा नहीं खाना चाहिए। डायालिसिस वाले दिन डायालिसिस से पहले कोई भी एक फल खाया जा सकता है। नारियल का पानी या फलों का रस नहीं लेना चाहिए।
10. दूध और उससे बनी वस्तुएं:
हर रोज 300 से 350 मिली लीटर दूध या दूध से बनी अन्य चीजें जैसे खीर, आइसक्रीम, दही, मट्ठा इत्यादि लिया जा सकता है। साथ ही पानी कम लेने के निर्देश को ध्यान में रखते हुए मट्ठा कम मात्रा में लेना चाहिए।
11. शीतलपेय:
पेप्सी, फेंटा, फ्रूटी जैसे शीतल पेय नहीं लेने चाहिए। फलों का रस एवं नारियल का पानी भी नहीं लेना चाहिए।
12. सूखामेवा :
सूखा मेवा, मूंगफली के दाने, तिल, हरा या सूखा नारियल नहीं लेना चाहिए।
स्त्रोत: किडनी एजुकेशन फाउंडेशन
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020
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