बच्चा जब छोटा हो, तब रात में उसका बिस्तर गीला हो जाना स्वाभविक है। परन्तु बच्चे की उम्र बढ़ने के बाद भी रात्रि में बिस्तर गीला हो जाए, तो वह बच्चे और उसके माता-पिता के लिए संकोच एवं चिन्ता का विषय हो जाता है। सौभाग्य से अधिकांश बच्चों में यह समस्या (रात में बिस्तर गीला होने की) किडनी के किसी रोग के कारण नहीं होती है।
जब चिकित्सक को संरचनात्मक समस्याओं का संदेह हो तब जाँच केवल चयनित बच्चों पर करनी चाहिए। प्रायः सबसे ज्यादा किये जाने वाले परीक्षण हैं, पेशाब और रक्त में ग्लूकोज की जाँच, रीढ़ की हड्डी का एक्सरे, अल्ट्रासाउंड परीक्षण, किडनी या मूत्राशय के अन्य इमेजिंग परीक्षण आदि।
बच्चों का रात में अनजाने में ही बिस्तर गीला होना कोई बीमारी नहीं है।
यह तकलीफ कोई रोग नहीं है और नाही बच्चा जानबूझकर बिस्तर गीला करता है। इसलिए बच्चे को डराना-धमकाना एवं उसपर चीखना-चिल्लाना छोड़कर, इस समस्या के उपचार का प्रारंभ सहानुभूतिपूर्वक किया जाता है।
1. समझाना और प्रोत्साहित करना:
बच्चे को इस विषय में उचित जानकारी देना अत्यंत आवश्यक है। रात को अनजाने में ही बिस्तर गीला हो जाना कोई चिंताजनक समस्या नहीं है और यह जरूर ठीक हो जाएगा - इस प्रकार बच्चे को समझाने से मानसिक तनाव कम होता है और इस समस्या को शीघ्र हल करने में सहायता मिलती है। इस समस्या की चर्चा कर बच्चे को डराना-धमकाना या बुरा भला नहीं कहना चाहिए। जिस रात बच्चा बिस्तर गीला न करे, उस दिन बच्चे के प्रयास की प्रशंसा करना तथा इसके लिए कोई छोटा- मोटा उपहार देना समस्या का समाधान करने में प्रोत्साहन देता है।
2. प्रवाही लेने और पेशाब जाने की आदत में परिवर्तन :
बिस्तर गीला करने की समस्या के निवारण के लिए प्रारंभिक उपचार में शिक्षा एवं प्रेरक चिकित्सा शामिल हैं। अगर बिस्तर गीला करने की आदत में कोई बदलाव नहीं होता है तो एलार्म सिस्टम और दवाओं द्वारा इलाज की कोशिश की जा सकती है।
शाम 6 बजे के बाद प्रवाही कम मात्रा में लेना और कैफीनवाले पेय (चाय, कॉफ़ी इत्यादि ) शाम के बाद नहीं लेना चाहिए।
उम्र बढ़ने के साथ सहानुभूति और प्रोत्साहन से इस समस्या का समाधान हो जाता है।
3. मूत्राशय का प्रशिक्षण :
4. एलार्म सिस्टम :
पेशाब होने पर नीकर गीला हो तबी उसके साथ जोड़ी गई घंटी टनटना उठे, ऐसा एलार्म सिस्टम विकसित देशों में उपलब्ध है। इससे पेशाब होते ही एलार्म सिस्टम की चेतावनी से बच्चा पेशाब रोक लेता है। इस प्रकार के प्रशिक्षण से समस्या का शीघ्र हल हो सकता है। इस प्रकार के उपकरण का उपयोग सामान्यतः सात साल से अधिक उम्र के बच्चों के लिए किया जाता हैं।
शाम के बाद पानी कम लेना, रात में समय से पेशाब कराना यह बिस्तर गीला होने की समस्या का महत्वपूर्ण उपचार है।
5. दवाइँ द्वारा उपचार:
बिस्तर गीला करने से रोकने के लिए दवाओं का इस्तेमाल एक अंतिम प्रयास है। इनका उपयोग सात साल और उसके ऊपर के बच्चों के लिए होता है। हालांकि ये दवाइयाँ असरदार होती हैं पर यह बिस्तर गीला करने से रोकने का स्थायी उपाय नहीं है। ये एक अल्पकालीन उपाय प्रदान करते हैं और इसका उपयोग अस्थायी तोर पर किया जाता है। जब दवाइयाँ बंद हो जाती हैं तब बिस्तर गीला करना पुनः शुरू हो जाता है। स्थायी तोर पर बिस्तर गीला करने से रोकने के लिए अलार्म सिस्टम, दवाओं की अपेक्षा ज्यादा प्रभावशाली होता है।
रात को बिस्तर गीला होने की समस्या के लिए इस्तेमाल की जानेवाली दवाइयों में मुख्यतः इमिप्रेमिन और डेस्मोप्रेसिन का समावेश होता है। इन दवाइयों का उपयोग ऊपर की गई चर्चानुसार उपचार के साथ ही किया जाता है। इमिप्रेमिन नामक दवा का प्रयोग सात साल से ज्यादा उम्रवाले बच्चों में ही किया जाता है। यह दवा मूत्राशय के स्नायुओं को शिथिल बना देती है, जिससे मूत्राशय में ज्यादा पेशाब रह सकता है। इसके उपरांत यह दवा पेशाब न उतरने देने के लिए जिम्मेदार स्नायुओं को संकुचित कर पेशाब होने से रोकती है। यह दवा डॉक्टरों की निगरानी में तीन से छः महीने के लिए दी जाती है।
डेस्मोप्रेसिन के नाम से जानेवाली यह दवा स्प्रे तथा गोली के रूप में बाजार में उपलब्ध है। इसका प्रयोग करने से रात में पेशाब कम मात्रा में बनता है। जिन बच्चों में रात में ज्यादा मात्रा में पेशाब बनता है, उनके लिए यह दवा बहुत ही उपयोगी है। यह दवा रात में बिस्तर गीला होने से रोकने की एक अचूक दवा है, परन्तु बहुत महँगी होने के कारण प्रत्येक बच्चे के माता-पिता इसका खर्च वहन नहीं कर सकते हैं।
बच्चो जिन्हें बिस्तर गीला करने की समस्या है उन्हें डॉक्टर से तुरंत संपर्क स्थापित करना चाहिए अगर -
स्त्रोत: किडनी एजुकेशन फाउंडेशन
अंतिम बार संशोधित : 2/3/2023
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