जलांतक (अलर्क रोग )
जलांतक किसी पागल या गुस्से वाले उग्र पशु-कुत्ते, बिल्ली, लोमड़ी, भेड़िया, सियार या गीदर के काटने से होता है|
चमगादड़ जैसे पशु-पक्षियों के काटने से भी यह गंभीर बीमारी हो सकती है|
लक्षण
पशु-पक्षी में :
- वह अजीब तरह का व्यवहार करता है, उदास, वेचैन और चिडचिडा हो जाता है
- मुहं से झाग निकलती है, वह कुछ खा-पी नहीं सकता है
- वह कभी-कभी पागल हो जाता है, रास्ते में किसी को भी काट सकता है
- पशु दस दिन के अन्दर ही मर जाता है
लोगों में :
- काटी गयी जगह पर पीड़ा और झनझनाहट होती है
- साँस की गति ठीक नहीं रहती, व्यक्ति रोने की कोशिश करता है
- शुरू में वह पानी पीने से डरता है, बाद में पानी देखने पर ही डर लगता है
- खाना-पानी निगलने में तकलीफ होती है
- मुहं से चिपचिपी और मोती लार टपकती है
- व्यक्ति चौकस होकर फिर सुस्त हो जाता है, बीच-बीच में उसे बहुत गुस्सा भी आता है| जब मृत्यु निकट आती है तो दौरा और लकवा हो जाता है|
यह ज्यादा अच्छा होगा कि काटे गये व्यक्ति के लार पेशाब या पसीने के नजदीक न जाएँ क्योकि आपको भी छूत लग सकती है|
अगर यह शक हो कि काटने वाले पशु कि जलांतक था तो :
- पशु को बांध कर रखें
- अगर पशु को जलांतक होगा तो वह पन्द्रह दिनों में ही उपर दिए गये लक्षण दिखाएगा या मर जाएगा
- कटे गए घाव से निकले लार को पानी, साबुन और हाइड्रोजन पराक्सैद से साफ करें| यह बहुत जरूरी है| घाव को कभी भी बंद करने कि कोशिश न करें|
- घाव को स्पिरिट से धोना चाहिए और टिंचर लगाना चाहिए|
- उसे टेटनस का टीका तुरंत लगवा दें|
- अगर जानवर पन्द्रह दिनों में मर जाता है तो अस्पताल में रोगी को ले जाएँ|
बचाव
-ऐसे किसी भी पशु को जिसमें जलांतक के लक्षण हो मार देना चाहिए और जमीन में गाढ़ देना चाहिए |
-पालतू कुते-बिल्ली को जलांतक के टीके लगवाएं|
-बच्चों को पशुओं से दूर रखें|
टेटनस
पशुओं और मनुष्यों के मल में या मिटटी में पलने वाला एक जीवाणु
यह जीवाणु जब घाव के रास्ते शारीर में पहुँच जाता है तो टेटनस हो जाता है|
टेटनस होता कैसे है ?
-पशुओं के काटने से
- चाकू के घाव से
- बन्दूक कि गोली लगने से
- गन्दे सुई से कान खोदने या इन्जेक्सन लेने से
- कंटीली लोहे कि तार से खुरचने पर
- घाव पर गोबर लगाने से
- काँटी या कांच से बने घाव से भी हो सकता है |
जिन व्यक्तियों में टेटनस न होने देने वाले टीके नहीं लगवाएं हैं और समय – समय पर बूस्टर डोज नहीं लिया है उन्हें भी टेटनस हो सकता है|
छोटे बच्चों को होने वाले टेटनस के कारण
-ऐसी किसी धारदार चीज से नाल-नाभी काटने पर जिसे स्प्रिट से नहीं धोया गया या उबले पानी में नहीं धोया गया है|
- जब नाभी काटने के बाद उसपर गोबर रख दिया जाता है|
लक्षण
- एक तरह क छुतहा घाव जो दिखता नहीं है
- निगलने में कठिनाई
- जबड़ा कड़ा हो जाता है
- गर्दन और बदन के दूसरे अंग अकड़ जाते हैं
- बच्चे लगातार रोते हैं, वे दूध भी निगल नहीं पाते|
उपचार
टेटनस एक खतरनाक बीमारी है, लक्षण देखते ही डाक्टर को दिखाएँ
- व्यक्ति को अन्धेरे शांत जगह में लिटा दें|
- घाव कि जगह को साबुन से धोएँ
- घाव में अगर कुछ फंसा हो तो उसे साफ चीज से बाहर निकाल दें
बचाव
- समय-समय पर टीका लगवाएं
- कटने पर तुरत टेटनस का इंजेक्सन लें
- बच्चे के नाभी कटने के लिए उबाले गए ब्लेड का ही इस्तेमाल करें|
तनिका शोथ (मेंजैएतिस )
तनिका शोध दिमाग कि बहुत ही खतरनाक बीमारी है जो बच्चों को अधिक होती है इस बीमारी का कारण है – फफ्न्दी, वायरस और बैक्टीरिया| यह रोग खसरा,काली खांसी, कान की छूत जैसी बीमारियों के गिर जाने से भी होती है जिन माताओं को तपेदिक होता है उनके बच्चों जीवन के शुरुआत में तनिका शोध तपेदिक (टी.बी.) हो सकता है|
लक्षण
- बुखार, तेज सिर दर्द
- अकड़ी हुई गर्दन
- बच्चा बहुत बीमार दिखता है
- कमर भी अकड़ जाती है
- सिर का तालू ऊपर की ओर निकल आता है
- उल्टियाँ भी होती हैं
- वह चिढचिड़ा हो जाता है
- वह कुछ भी खाना पीना नहीं चाहता है
- कभी-कभी दौरें भी पड़ते हैं
- शरीर बिगड़ जाती है, बच्चा बेहोश हो जाता है
- यह बीमारी शरू में धीरे-धीरे होती है|
उपचार
- अगर ज्यादा बुखार हो तो बुखार कम करने वाली गोली एस्प्रिन दें
-डाक्टर की सलह से अम्पिसिलिन की सुई लगवाएं|
बचाव
टी.बी.तपेदिक से बचने के लिए बी.सी.जी. के सभी टिकें समय-समय पर लगवाएं|
मलेरिया
मलेरिया मच्छरों के काटने से होता है| मच्छर मलेरिया के रोगी को काटता है तो खून के साथ-साथ मलेरिया के कीटाणु भी चूस लेता| वही मच्छर जब स्वस्थ व्यक्ति की काटता है तो उसे भी मलेरिया हो जाता है|
लक्षण
- बुखार हर दूसरे या तीसरे दिन चढ़ता है और कई घंटो तक टिका रहता है, शुरू में हर रोज बुखार हो सकता है|
- इलाज शुरू होने के पहले खून की जाँच करा लेनी चाहिए|
- ज्यादा दिन तक मलेरिया बुखार खिंच जाए तो खून की कमी हो जाती है, मलेरिया लाल खून के कणों को नष्ट करता है|
- तिल्ली बढ़ जाती है और दर्द होता है|
- लीवर (यकृत ) भी बढ़ जाता है, दर्द होता है| पीलिया भी सकता है|
- सबसे खतरनाक और जानलेवा मलेरिया दिमागी-मलेरिया होता है|
- दिमागी मलेरिया में व्यक्ति को तेज बुखार आता है,ठण्ड लगती है और पसीना निकलता है|
- ऐंठन और बेहोशी की हालत में तुरत अस्पताल ले जाएँ नहीं तो व्यक्ति की मौत भी हो सकती है|
उपचार
- यदि आपको मलेरिया होने का संदेह है या बार-बार बुखार हो जाता है, तो खून की जाँच करवाएं
- अगर आप ऐसी जगह में रहते हैं जहाँ मलेरिया एक आम बीमारी है तो बार बार बुखार होने पर मलेरिया का उपचार करें |
- अगर आप क्लोरोक्विन लेने से ठीक हो जाते हैं , लेकिन दुबारा बुखार चढ़ जाता है तो आप दूसरी दवा के लिए स्वास्थ्य केंद्र से सलह लें|
- अगर मलेरिया होने पर दौरे भी पढते हैं तो अस्पताल में इलाज के लिए जाएँ|
- जल्दी ही मलेरिया से बचने वाली सुई लगवाएं|
बचाव : बचाव बहुत जरुरी, जहाँ मच्छर न हो वहीं सोएं, मुसहरी का इस्तेमाल करें|
- बदन पर सरसों का तेल लगावें, इससे मच्छर नहीं काटते
- मच्छर मारने वाली दवा का छिड़काव करावें
- मच्छर जमें पानी में अंडा देते हैं और वहीं पालते हैं
- आस-पड़ोस के गडडों में पानी नहीं जमा होने दें
- मलेरिया से बचने वाली गोली का बराबर इस्तेमाल करें|
टाइफाइड या मियादी बुखार
- दूषित पानी और भोजन से भी यह रोग होता है|
- अक्सर यह महामारी का रूप ले लेता है|
लक्षण
- शुरुआत में सर्दी- जुकाम
- सिर दर्द और गला खराब होए जाता है|
- शरीर में कमजोरी आ जाती
- बुखार थोड़ा-थोड़ा रोज बढ़ता है
- बुखार के मुकाबले नब्ज बहुत धीमी होती है
- हर घंटे पर बुखार थर्मामीटर से नापें
- कई बार उल्टियाँ होती हैं, दस्त लगते हैं या कब्ज हो जाता है
- नाक से खून भी निकल सकता है|
दूसरे हफते में
- तेज बुखार और धीमी नब्ज हो जाती है
- बदन पर गुलाबी दाने निकल आते हैं
- कमजोरी बढ़ जाती है, वजन में कमी भी हो जाती है
- बदन में पानी की कमी रहती है
तीसरे हफ्ते में
- अगर कोई और समस्या न आ जाए तो रोगी ठीक होने लगता है
- इसी समय यह रोग खतरनाक भी हो सकता है
- आंतों से मल के रास्ते खून का बहाव होता है और रोगी की मौत हो जाती है|
इलाज
- डाक्टरी सहायता अवश्य लें
- बुखार को ठंडे पानी से गीली पट्टियों से कम करें
- पीने के लिए पानी, शरबत खूब दें
- पौष्टिक भोजन दें
- जब तक पूरी तरह ठीक नहीं हो जाता रोगी तबतक बिस्तर पर आराम करें |
- सबसे जरूरी है कि आपके पीने का पानी कहाँ से आता है चापाकल कि गहराई कम से कम सिक्सटी फिट जरूर हो, और वह आपके शौचालय से सिक्सटी फिट कि दूरी पर गढा हो|
फील पांव (हाथी पांव)
यह रोग छुतहा है| यह कृमि द्वारा पैदा होता है| यह मच्छरों द्वारा फैलाया जाता है|
लक्षण
- बुखार, कपकपी और सर्दी
- चमड़ी पर दर्द देने वाले चकत्ते निकल आते हैं, खासकर बाहों और टांगों पर
- शरीर के नीचे वाले हिस्से में सूजन हो जाता है
- जिन अंगों पर रोग का असर होता है वे बराबर के लिए बढ़ जाते हैं, जैसे कि टांगे, अंडकोष और शिशन (जनेन्द्रिय)|
बचाव : मलेरिया रोग से बचने के लिए सभी काम पफिलपांव रोग से बचने के लिए जरूरी है|
हैजा
लक्षण
- हैजा रोग दूषित भोजन तथा पीने के पानी से होता है
- बिना दर्द के रोगी को लगातार पानी जैसा दस्त होता है
- उल्टी भी हो सकती है
- दस्तों के शुरुआत के बाद व्यक्ति प्यासा हो जाता है
- बदन में कमजोरी आ जाती है, बदन में पानी की कमी भी हो जाती है
- खड़े होने पर चक्कर आते हैं
- दिल की धडकन तेज हो जाती है
- चमड़ी खुश्क हो जाती है| उनमें सिलवटें पड़ने लगती है
- मांस पेशियों में एंठन होने लगती है
- बाद में नब्ज धीमी हो जाती या बंद हो जाती है और रोगी की मौत हो जाती है|
उपचार
- हैजा एक जानलेवा खतरनाक बीमारी है
- खराब हालत में डाक्टर के पास जाना जरूरी होता है
- रोगी को दिन में थोड़ी-थोड़ी देर बाद शरीर में पानी को कमी का उपचार करना चाहिए
- उसे ओ.आर.एस. का घोल या नमक – चीनी का घोल देते रहना चाहिए
- उसे पौष्टिक आहार दें – डाल, दलिया, शरबत, पतली खिचड़ी, साग-सब्जी
- रोगी के लिए आराम करने के लिए ठीक इन्तजाम करें, बिस्तर के पास ही साफ बर्तन रखें, ताकि वह मल मूत्र, उल्टी कर सकें| इन बरतनों की सफाई तुरन्त होनी चाहिए|
बचाव :
- गांव में किसी को भी हैजा हो तो स्वास्थ्य अधिकारी और पंचायत को तुरंत सुचना दें| हैजा को महामारी का रूप लेने में देर नहीं लगती है|
- हैजा के रोगी को ऐसे कमरे में रखें जहाँ मक्खी न हो|
- हैजा के रोगी को छूने के बाद या उसके मल मूत्र के बरतन को छूने के बाद तुरत साबुन से हाथ धोएँ|
- घर के सभी लोगों को उबाल कर पानी पिलाएं
- खाने-पीने की चीजों को ढक कर रखें|
- बाहर की दुकान से खाने पीने की चीजे नहीं खाएं|
- स्त्रोत: संसर्ग, ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान