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यौन जनित बीमारी

एड्स

एच.आई.वी./ एड्स क्या है?

एड्स-एच.आई.वी. नामक विषाणु से होता है। संक्रमण के लगभग 12 सप्ताह  बाद ही रक्त की जाँच से ज्ञात होता है कि यह विषाणु शरीर में प्रवेश कर चुका है, ऐसे व्यक्ति को एच.आई.वी. पॉजिटिव कहते हैं। एच.आई.वी. पॉजिटिव व्यक्ति कई वर्षो (6 से 10 वर्ष) तक सामान्य प्रतीत होता है और सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है, लेकिन दूसरों को बीमारी फैलाने में सक्षम होता है।

यह विषाणु मुख्यतः शरीर को बाहरी रोगों से सुरक्षा प्रदान करने वाले रक्त में मौजूद टी कोशिकाओं (सेल्स) व मस्तिष्क की कोशिकाओं को प्रभावित करता है और धीरे-धीरे उन्हें नष्ट करता रहता है। कुछ वर्षो बाद (6 से 10 वर्ष) यह स्थिति हो जाती है कि शरीर आम रोगों के कीटाणुओं से अपना बचाव नहीं कर पाता और तरह-तरह का संक्रमण (इन्फेक्शन) से ग्रसित होने लगता है, इस अवस्था को एड्स कहते हैं।

एड्स का खतरा किसके लिए

  • एक से अधिक लोगों से यौन संबंध रखने वाला व्यक्ति।
  • वेश्यावृति करने वालों से यौन सम्पर्क रखने वाला व्यक्ति।
  • नशीली दवाईयां इन्जेकशन के द्वारा लेने वाला व्यक्ति।
  • यौन रोगों से पीड़ित व्यक्ति।
  • पिता/माता के एच.आई.वी. संक्रमण के पश्चात पैदा होने वाले बच्चें।
  • बिना जांच किया हुआ रक्त ग्रहण करने वाला व्यक्ति।

एड्स रोग किन कारणो से होता है ?

  • एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध से।
  • एच.आई.वी. संक्रमित सिरिंज व सूई का दूसरो के द्वारा प्रयोग करने से।
  • एच.आई.वी. संक्रमित मां से शिशु को जन्म से पूर्व, प्रसव के समय या प्रसव के शीघ्र बाद।
  • एच.आई.वी. संक्रमित अंग प्रत्यारोपण से |

एड्स से बचाव

  • जीवन-साथी के अलावा किसी अन्य से यौन संबंध नहीं रखें।
  • यौन संबंध के समय निरोध(कण्डोम) का प्रयोग करें।
  • मादक औषधियों के आदी व्यक्ति के द्वारा उपयोग में ली गई सिरिंज व सूई का प्रयोग न करें।
  • एड्स पीड़ित महिलाएं गर्भधारण न करें, क्योंकि उनसे पैदा होने वाले शिशु को यह रोग लग सकता है।
  • रक्त की आवश्यकता होने पर अनजान व्यक्ति का रक्त न लें, और सुरक्षित रक्त के लिए एच.आई.वी. जांच किया रक्त ही ग्रहण करें।
  • डिस्पोजेबल सिरिन्ज एवं सूई तथा अन्य चिकित्सकीय उपकरणों का 20 मिनट पानी में उबालकर जीवाणुरहित करके ही उपयोग में लावें, तथा दूसरे व्यक्ति का प्रयोग में लिया हुआ ब्लेड/पत्ती काम में ना लावें।

एच.आई.वी. संक्रमण पश्चात लक्षण

एच.आई.वी. पॉजिटिव व्यक्ति में 7 से 10 साल बाद विभिन्न बीमारिंयों के लक्षण पैदा हो जाते हैं जिनमें ये लक्षण प्रमुख रूप से दिखाई पडते हैः

  • गले या बगल में सूजन भरी गिल्टियों का हो जाना।
  • लगातार कई-कई हफ्ते अतिसार घटते जाना।
  • लगातार कई-कई हफ्ते बुखार रहना।
  • हफ्ते खांसी रहना।
  • अकारण वजन घटते जाना।
  • मुँह में घाव हो जाना।
  • त्वचा पर दर्द भरे और खुजली वाले दोदरे/चकते हो जाना।

उपरोक्त सभी लक्षण अन्य सामान्य रोगों,  जिनका इलाज हो सकता है,  के भी हो सकते हैं।

किसी व्यक्ति को देखने से एच.आई.वी. संक्रमण का पता  नहीं लग सकता- जब तक कि रक्त की जाँच न की जायें।

एड्स निम्न तरीकों से नहीं फैलता है:-

  • एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति के साथ सामान्य संबंधो से, जैसे हाथ मिलाने,  एक साथ भोजन करने,  एक ही घड़े का पानी पीने,  एक ही बिस्तर और कपड़ों के प्रयोग, एक ही कमरे अथवा घर में रहने,  एक ही शौचालय, स्नानघर प्रयोग में लेने से, बच्चों के साथ खेलने से यह रोग नहीं फैलता है। मच्छरों/खटमलों के काटने से यह रोग नहीं फैलता है।

प्रमुख संदेश:-

  • सुरक्षित यौन संबंध के लिए निरोध का उपयोग करें।
  • हमेशा जीवाणुरहित अथवा डिस्पोजेबल सिरिंज व सूई ही उपयोग में लावें।
  • एच.वाई.वी. संक्रमित महिला गर्भधारण न करें।
  • एच.आई.वी. संक्रमित व्यक्ति को प्यार दें- दुत्कारे नहीं |

एच आई वी व एड्स जानकारी एवं सच्चाई

सुनीता का डर

रमेश का परिवार पेशे से किसान है। उसकी शादी पांच महीने पहले सुनीता से हुई थी। वह अपनी छोटी सी जमीन पर सब्जी उपजा कर जीवन यापन करता था। पर शादी के बाद आमदनी के पैसे कम पड़ने लगे। रमेश ने दसवीं तक की पढ़ाई की थी । मोटर चलाने का काम भी सीख लिया था। सो उसने  शहर में काम ढूंढ़ने का मन बनाया।

एक दिन रमेश खुशी- खुशी घर आया। उसने बताया कि उसे ट्रक चलाने की नौकरी मिल गई है। अब वह रोज शहर चला जाता। खेत का काम सुनीता ने संभाल लिया।
इधर कुछ दिनों से रमेश देर से घर लौटता। कभी-कभी तो सप्ताह लग जाते। उसे ट्रक लेकर  शहर से बाहर जाना पड़ता था। इसी बीच सुनीता गर्भवती हुई। खबर सुनकर रमेश बहुत खुश हुआ। परंतु सुनीता चिंतित थी। उसने एक जानलेवा बीमारी ‘एड्स’ के बारे में सुना। उसने सुना कि इसे आदमी अपने साथ बाहर से लाते हैं। यौन संबंध के दौरान अपनी पत्नियों को संक्रमण दे देते हैं।

एक दिन शहर से लौटने पर रमेश ने सुनीता को चिंतित देखा। पूछने पर एड्स के प्रति अपना डर बताया। रमेश ने उसे विश्वास दिलाया कि डरने की जरूरत नहीं है। क्योंकि वह किसी गलत काम में शामिल नहीं रहा है। सुनीता ने उससे पूछा कि एड्स क्या है ?  रमेश ने  उसे विस्तार से एड्स के बारे में बतलाया।

एड्स, एच.आई.वी के कारण होता है। एच.आई.वी एक विषाणु या वायरस है। यह शरीर में बीमारी से लड़ने की ताकत कम कर देता है। इस कारण इंसान कई तरह की बीमारियों से घिर जाता है।

A

एक्वायर्ड

बाहर से प्राप्त किया हुआ

 

I

आई

इम्यूनो

प्रतिरक्षा या बीमारी से बचाने वाली ताकत

 

D

डी

डिफिसियेंसी

कम

 

S

एस

सिंड्रोम

रोग /लक्षणों का समूह

 

 

एच.आई.वी कैसे फैलता है

  1. संक्रमित व्यक्ति से असुरक्षित यौन संबंध यानी संभोग के कारण। स्त्री और पुरुष दोनों ही अपने साथी को यह संक्रमण दे सकते हैं।
  2. संक्रमित सीरिंजों एवं सूई के प्रयोग से। वे लोग, जो सूइयों का इस्तेमाल ड्रग लेने में करते हैं, उन्हें एड्स का खतरा ज्यादा होता है। यदि किसी सिरिंज और सुइयों का प्रयोग किसी एच.आई.वी मौजूद व्यक्ति में किया जाता है और उसे बिना उबाले या साफ किये जब दूसरे व्यक्ति में किया जाता है तो एच.आई.वी विषाणु उसमें भी प्रवेश कर सकते है।
  3. संक्रमित रक्त या रक्त पदार्थ को शरीर में चढ़ाने से। बिना जांच किये गये खून शरीर में चढ़ाने से एच.आई.वी के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है ।
  4. एच.आई.वी संक्रमित गर्भवती से गर्भ के शिशु को यह संक्रमण हो सकता है। हालांकि इस संभावना को कम किया जा सकता है। एड्स स्त्री, पुरुष, नौजवान, बच्चे किसी को भी हो सकता है। जो लोग जोखिम वाले व्यवहार (ड्रग लेना, एक से ज्यादा औरत से यौन संबंध आदि) में लिप्त हैं, उन्हें एड्स होने की संभावना अधिक होती है।

इनसे एच.आई वी और एड्स नहीं फैलता है

  • साथ रहने यान घूमने-फिरने से
  • हाथ मिलाने से
  • खांसने या छींकने से
  • साथ खाने या पीने से
  • साथ खेलने से
  • मच्छर के काटने से

एच.आई.वी एवं एड्स के लक्षण

एच.आई.वी संक्रमण के बाद एड्स की दशा आने में 6 से 10 वर्ष लग सकते हैं। इसके कुछ प्रमुख लक्षण है :

  • एक महीने में 10 प्रतिशत तक वजन का घटना।
  • एक महीने  से ऊपर लगातार या कुछ समय के अंतराल में दस्त होना।
  • एक महीने  से ऊपर लगातार या कुछ समय के अंतराल पर बुखार का आना।

इसके अलावा लगातार खांसी, मुंह और गले में छाले, ग्रंथियों में सूजन आदि भी लक्षण हो सकते हैं। ऐसे में खून की जांच अवश्य करानी चाहिए। खून की जांच द्वारा एच.आई.वी का पता लगाया जा सकता है।

एच.आई.वी की जाँच कहाँ कराएं
यह  जांच सभी सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों में स्थित स्वैच्छिक जांच एवं परामर्श केन्द्रों में होती है।
यह  सरल जांच मात्र दस रुपये में की जाती है। जांच के साथ मुफ्त सलाह भी दी जाती है।
जांच के परिणाम बिल्कुल गोपनीय रखे जाते हैं।

निम्न लोगों को एच.आई.वी की जाँच अवश्य करानी चाहिए-

  • सूई से ड्रग लेने वाले लोग
  • एक से ज्यादा साथी के साथ यौन संबंध बनाने वाले लोग
  • व्यावसायिक यौनकर्मी
  • जिन्हें यौन संक्रमित बीमारी हो
  • एच.आई.वी संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध रखने वाले
  • एड्स संबंधित बीमारी के लक्षण देखने पर

एच.आई.वी के साथ जी रहे व्यक्ति

  • एकदम स्वस्थ दिख सकते हैं।
  • उन्हें अपने संक्रमण की जानकारी नहीं भी हो सकती है।
  • संक्रमित व्यक्ति लंबे समय तक जी सकते हैं।
  • जोखिम भरे व्यवहार से दूसरों को संक्रमण दे सकते हैं।

एच.आई.वी एवं एड्स से कैसे बचें

  • शादी से पहले यौन संबंध न बनाएं।
  • अपने जीवन-साथी के प्रति वफादार रहें। यानी यौन संबंध सिर्फ  पति-पत्नी के बीच हों।
  • यदि आपको संदेह हो कि आपके साथी को एच.आई.वी या एड्स है तो कंडोम का इस्तेमाल करें।

हमारी भूमिका क्या हो

  • इस संक्रमण की पूरी जानकारी लें। दूसरों को जानकारी देकर एच.आई.वी एवं एड्स के प्रति शिक्षित करें।
  • इसके लिए समुदाय को उपलब्ध कराई जा रही सेवाओं की पहचान करें। साथ ही, सेवाओं को लेने हेतु उन्हें प्रोत्साहित करें।
  • एच.आई.वी संक्रमित व्यक्ति को वही प्यार, सम्मान और सहयोग दें जिसके हम और आप हकदार हैं।

सूचना प्रदाता-
जनसंख्या एवं विकास शिक्षा प्रकोष्ठ
राज्य संसाधन केंद्र, आद्री
219/ सी , रोड न. 2, अशोक नगर,
रांची- 834002 (झारखंड)
दूरभाष संख्या : 0651-2245084; फैक्स : 0651-2241509
ई-मेल: srcjharkhand@yahoo.co.in

सिफलिस

सिफलिस क्या है ?

सिफलिस यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) है जो ट्रेपोनेमा पल्लिडम नामक जीवाणु से होता है।

लोगों को सिफलिस की बीमारी किस प्रकार लगती है?
सिफलिस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को लगती है। यदि एक व्यक्ति उस व्यक्ति के सीधे संपर्क में आता है जिसे सिफलिस की बीमारी है तो उसे सिफलिस लग सकता है।  गर्भवती महिला से यह बीमारी उसके गर्भ में रहने वाले बच्चे को लग सकता है।सिफलिस शौचालय के बैठने के स्थान, दरवाजा के मूठ, तैरने के तालाब, गर्म टब, नहाने के टब, कपडा अदला-बदली करके पहने या खाने के बर्तन की साझेदारी से नहीं लगती।

वयस्कों में इसके क्या चिह्न या लक्षण होते हैं ?

सिफलिस से पीड़ित कई व्यक्तियों में कई वर्षों तक कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं।

प्राथमिक स्तर

सिफलिस में सबसे पहले एक या कई फुंसियां दिखाई पड़ती हैं।  सिफलिस संक्रमण और पहले लक्षण में 10 से 90 (औसतन 21 दिन) दिन लग जाते हैं। यह फुंसी सख्त, गोल, छोटा और बिना दर्द वाला होता है।  यह उस स्थान पर होता है जहां से सिफलिस ने शरीर में प्रवेश किया है।  यह 3 से 6 सप्ताह तक रहता है और बिना उपचार के ठीक हो जाता है तथापि यदि पर्याप्त उपचार नहीं किया जाता तो संक्रमण दूसरे स्तर पर चला जाता है।

दूसरा स्तर

दूसरे स्तर की विशेषता है कि त्वचा में दोदरा (रैश) हो जाते हैं और घाव में झिल्ली पड़ जाती है। दोदरे में सामान्यतः खुजली नहीं होती। हथेली और पांव के तालुओं पर हुआ ददोरा खुरदरा, लाल या लाल भूरे रंग का होता है तथापि दिखने में अन्य प्रकार के दोदरे, शरीर के अन्य भागों में भी पाये जा सकते हैं जो कभी-कभी दूसरी बीमारी में हुए दोदरों की तरह होता है। दोदरों के अतिरिक्त माध्यमिक सिफलिस में बुखार, लसिका ग्रंथि का सूजना, गले की खराश, कहीं-कहीं से बाल का झड़ना, सिरदर्द, वजन कम होना, मांस पेशियों में दर्द और थकावट के लक्षण भी दिखाई पड़ते हैं।

अंतिम स्तर

सिफलिस का अव्यक्त (छुपा) स्तर तब शुरू होता है जब माध्यमिक स्तर के लक्षण दिखाई नहीं पड़ते। सिफलिस के अंतिम स्तर में यह मस्तिष्क, स्नायु, आंख, रक्त वाहिका, जिगर, अस्थि और जोड़ जैसे भीतरी इंद्रियों को खराब कर देते हैं। यह क्षति कई वर्षों के बाद दिखाई पड़ती है। सिफलिस के अंतिम स्तर के लक्षणों में मांस पेशियों के संचालन में समन्वय में कठिनाई, पक्षाघात, सुन्नता, धीरे धीरे आंख की रोशनी जाना और यादाश्त चले जाना (डेमेनशिया) शामिल हैं। ये इतने भयंकर होते हैं कि इससे मृत्यु भी हो सकती है।

एक गर्भवती महिला और उसके बच्चे पर सिफलिस किस प्रकार प्रभाव डालता है ?

यह इस पर निर्भर करता है कि गर्भवती महिला कितने दिनों से इस रोग से प्रभावित हैं। हो सकता है कि महिला मृत प्रसव (बच्चे का मरा हुआ जन्म लेना) करे या जन्म के बाद तुरंत बच्चे की मृत्यु हो जाए। संक्रमित बच्चे में बीमारी के कोई संकेत या लक्षण न भी दिखाई दे सकते हैं। यदि तुरंत उपचार नहीं  किया गया हो तो बच्चे को कुछ ही सप्ताह में गंभीर परिणाम  भुगतना पड़ सकता है। जिस बच्चे का उपचार न किया गया हो उसका विकास रुक सकता है, बीमारी का दौरा पड़ सकता है या फिर उसकी मृत्यु हो सकती है।

सिफलिस और एचआईवी को बीच क्या संबंध है ?

सिफलिस के कारण दर्द भरे जनेन्द्रिय {रति कर्कट (यौन संबंधी एक प्रकार का ज्वर)} में यदि संभोग किया जाए तो एचआईवी संक्रमण होने के अवसर अधिक होते हैं।  सिफलिस के कारण एचआईवी संक्रमण होने का जोखिम 2 से 5 गुना अधिक है।

क्या सिफलिस बार-बार होता है ?

एक बार सिफलिस हो जाने पर यह जरूरी नहीं है कि यह बीमारी फिर न हो। सफलतापूर्वक उपचार के बावजूद व्यक्तियों में इसका संक्रमण फिर से हो सकता है।

सिफलिस की रोकथाम किस प्रकार की जा सकती है ?

इस बीमारी से बचने का सबसे पक्का तरीका है कि संभोग न किया जाए। शराब व ऩशे की गोलियां आदि न लेने से भी सिफलिस को रोका जा सकता है क्योंकि ये चीजे जोखिम भरे संभोग की ओर हमें ले जाते हैं।

क्लैमिडिया

क्लैमिडिया क्या है ?
क्लैमिडिया एक सामान्य यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) है जो क्लैमिडिया ट्राकोमोटिस जीवाणु से होता है और यह महिला के प्रजनन इंद्रियों को क्षति पहुंचाता है।

व्यक्तियों को क्लैमिडिया किस प्रकार होता है ?
क्लैमिडिया योनिक, गुदा या मुख मैथुन से संचारित हो सकता है। क्लैमिडिया संक्रमित मां से उसके बच्चे में योनि से जन्म लेते समय लग सकता है। यौनिक सक्रिय व्यक्ति में क्लैमिडिया संक्रमित हो सकता है।

क्लैमिडिया के लक्षण क्या-क्या हैं ?
महिलाओं को ग्रीवा(सर्विक्स) और मूत्र मार्ग में सबसे पहले यह रोग संक्रमित करता है। जिस महिला में यह रोग पाया जाता है उसके योनि से असामान्य रूप से स्राव(डिस्चार्ज) हो सकता है या पेशाब करते समय जलन हो सकती है। जब संक्रमण ग्रीवा(सर्विक्स) से फैलोपियन ट्यूब (अंडाशय से गर्भाशय तक अंडों को ले जाने वाला ट्यूब) तक फैलता है, तो भी किसी-किसी महिला में इसके न तो कोई संकेत पाए जाते हैं और न ही कोई लक्षण दिखाई देते हैं; किसी-किसी को पेट और कमर में दर्द होता है, मिचली आती है, बुखार होता है, संभोग के समय दर्द होता है या मासिक धर्म के बीच में खून निकलता है।
जिन पुरुषों को यह बीमारी होती है उनके लिंग से स्राव हो सकता है या पेशाब करते समय जलन हो सकती है।  पुरुषों को लिंग के रंध्र (ओपनिंग) के आसपास जलन या खुजली हो सकती है।

क्लैमिडिया का यदि उपचार न किया जाए तो उसके परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं ?
यदि उपचार न किया गया तो क्लैमिडिया के संक्रमण से गंभीर प्रजनन और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं आ सकती है जो कम अवधि से लेकर लंबी अवधि के भी हो सकते हैं। महिलाओं का यदि उपचार न किया गया तो संक्रमण गर्भाशय से होते हुए फैलोपियन ट्यूब तक फैल सकता है जिससे श्रोणि जलन की बीमारी(पीआईडी) हो सकती है। क्लैमिडिया से संक्रमित महिला में यदि उपचार न किया जाए तो एचआईवी से संक्रमित होने के अवसर 5 गुना अधिक बढ़ जाते हैं जबकि पुरुषों में इसके अनुपात में जटिलताएं बहुत कम हैं।

क्लैमिडिया की रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
यौन संचारित बीमारी की रोकथाम का सबसे अच्छा उपाय है कि संभोग न किया जाए या फिर ऐसे साथी के साथ आपसी एक संगी संबंध रखा जाए जिसे यह बीमारी नहीं है।

सुजाक (गानोरिआ)

सुजाक (गानोरिआ) क्या है ?
सुजाक एक यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) है। सुजाक नीसेरिया गानोरिआ नामक जीवाणु से होता है जो महिला तथा पुरुषों में प्रजनन मार्ग के गर्म तथा गीले क्षेत्र में आसानी और बड़ी तेजी से बढ़ती है।  इसके जीवाणु मुंह, गला, आंख तथा गुदा में भी बढ़ते हैं।

व्यक्तियों को सुजाक (गानोरिआ) की बीमारी किस प्रकार लगती है ?
सुजाक लिंग, योनि, मुंह या गुदा के संपर्क से फैल सकता है। सुजाक प्रसव के दौरान मां से बच्चे को भी लग सकती है।

सुजाक के संकेत और लक्षण क्या-क्या है ?
किसी भी यौन सक्रिय व्यक्ति में सुजाक की बीमारी हो सकती है। जबकि कई पुरुषों में सुजाक के कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ते तथा कुछ पुरुषों में संक्रमण के बाद दो से पांच दिनों के भीतर कुछ संकेत या लक्षण दिखाई पड़ते हैं। कभी कभी लक्षण दिखाई देने में 30 दिन भी लग जाते हैं।  इनके लक्षण हैं- पेशाब करते समय जलन, लिंग से सफेद, पीला या हरा स्राव। कभी-कभी सुजाक वाले व्यक्ति को अंडग्रंथि में दर्द होता है या वह सूज जाता है। महिलाओं में सुजाक के लक्षण काफी कम होते हैं। आरंभ में महिला को पेशाब करते समय दर्द या जलन होती है, योनि से अधिक मात्रा में स्राव निकलता है या मासिक धर्म के बीच योनि से खून निकलता है।

सुजाक गर्भवती महिला और उसके बच्चे को किस प्रकार प्रभावित करता है ?
यदि गर्भवती महिला को सुजाक है तो बच्चे को भी सुजाक (गानोरिया) हो सकता है क्योंकि बच्चा प्रसव के दौरान जन्म नलिका(बर्थ कैनल) से गुजरता है।  इससे बच्चा अंधा हो सकता है, उसके जोड़ों में संक्रमण हो सकता है या बच्चे को रक्त का ऐसा संक्रमण हो सकता हो जिससे उसके जीवन को खतरा हो सकता है। गर्भवती महिला को जैसे ही पता चले कि उसे सुजाक(गानोरिया) है तो उसका उपचार कराया जाना चाहिए जिससे इस प्रकार की जटिलताओं को कम किया जा सके। गर्भवती महिला को चाहिए कि वे स्वास्थ्य कार्यकर्ता से परामर्श करके सही परीक्षण, जांच और आवश्यक उपचार करवाए।

सुजाक (गानोरिया) की रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
इस बीमारी से बचने का सबसे पक्का तरीका है कि संभोग न किया जाए  या फिर ऐसे साथी के साथ आपसी एक संगी संबंध रखा जाए जिसे यह बीमारी नहीं है।

यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) के साथ गर्भधारण

क्या गर्भवती महिला को यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) हो सकती है ?

हां, गर्भवती महिलाओं को भी उसी तरह की यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) लग सकती है जैसे कि बिना गर्भ वाली महिलाओं को।

यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) गर्भवती महिला और उसके बच्चे को किस प्रकार प्रभावित करती है ?

गर्भवती महिलाओं के लिए यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) के परिणाम उसी प्रकार हो सकते हैx जैसे कि बिना गर्भ वाली महिलाओं के। यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) से ग्रीवा(सर्विक्स) और अन्य कैंसर हो सकता है, लंबी अवधि के हेपटाइटिस, श्रोणि(पेल्विक) की जलन वाली बीमारी, बंध्यता और अन्य कोई बीमारी हो सकती है।  यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) से पीड़ित कई महिलाओं में इसके कोई संकेत या लक्षण भी नहीं पाये जाते हैं।
यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) से पीड़ित गर्भवती महिला को समय-पूर्व प्रसव, गर्भाशय में बच्चे को घेरी हुई झिल्ली का समय-पूर्व फटना और प्रसव के बाद मूत्र मार्ग में संक्रमण हो सकता है। यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) बच्चे को जन्म से पूर्व, जन्म के दौरान या जन्म के बाद संक्रमित कर सकती है।  कुछ यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) (जैसे कि सिफलिस) प्लेसेंटा के पार जाकर गर्भाशय (पेट) में ही बच्चे को संक्रमित कर देती है।  अन्य यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) {जैसे सुजाक (गानोरिया), क्लैमिडिया, हेपटाइटिस बी और योनि त्वचा रोग} प्रसव के दौरान मां से बच्चे को लग सकती है क्योंकि बच्चा जन्म-नलिका से गुजरता है। एचआईवी, प्लेसेंटा  को गर्भकाल के दौरान पार करके जन्म की प्रक्रिया के दौरान बच्चे को संक्रमित कर सकती है। इसके अतिरिक्त अधिकांश अन्य यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) के विपरीत स्तनपान के दौरान भी बच्चा इससे प्रभावित हो सकता है। 
यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) के अन्य हानिकारक प्रभाव हैं- मृत प्रसव (बच्चा मरा हुआ जन्म ले), बच्चे का वजन काफी कम हो (पांच पाउंड से कम), नेत्र शोथ (कन्जेक्टीवाइटिस)(नेत्र संक्रमण), निमोनिया, नवजात शिशु में रक्त पूर्ति दोष (बच्चे की रक्त धारा में संक्रमण), तंत्रकीय क्षति(मस्तिष्क क्षति या शरीर के विभिन्न अंगों के बीच समन्वय न होना), अंधापन, बहरापन, गंभीर प्रकार का हेपटाइटिस, मस्तिष्क आवरण बीमारी, लंबी अवधि वाले जिगर की बीमारी और सिरोसिस।

क्या गर्भवती महिला की यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) की जांच की जानी चाहिए ?

यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) के उपचार में यह कहा जाता है कि गर्भवती महिला जब बच्चे के जन्म से पूर्व पहली जांच के लिए आए तो उसका यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) की निम्नलिखित जांच भी की जानी चाहिएः

  • क्लैमिडिया
  • सुजाक(गानोरिया)
  • हेपेटाइटिस बी
  • हेपेटाइटिस सी
  • एचआईवी
  • सिफलिस

क्या गर्भधारण के दौरान यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) का उपचार किया जा सकता है?

क्लैमिडिया, सुजाक (गानोरिया), सिफलिस, ट्राइकोमोनस और जैविक योनि (बीवी) का उपचार किया जा सकता है तथा एंटीबायोटिक से गर्भधारण के दौरान इसे ठीक भी किया जा सकता है। योनि त्वचा रोग और एचआईवी जैसे वायरल यौन संचारित बीमारी(एसटीडी) को ठीक नहीं किया जा सकता लेकिन एंटीवायरल दवाइयों से गर्भावती महिला में इसके लक्षण कम किए जा सकते हैं। जिन महिलाओं में प्रसव के समय योनि त्वचा रोग का घाव  रहता है, उनका सिजेरियन प्रसव (सी-सेक्शन) कराना ठीक होता है ताकि नवजात शिशु को संक्रमण से बचाया जा सके। एचआईवी से पीड़ित कुछ महिलाओं में भी सी-सेक्शन एक विकल्प है। हेपटाइटिस बी वाली महिलाएं गर्भधारण के दौरान हेपेटाइटिस बी का इंजेक्श नहीं ले सकती हैं।

गर्भवती महिला संक्रमण से अपना बचाव किस प्रकार कर सकती है?

यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि संभोग न किया जाए या फिर ऐसे साथी के साथ आपसी एक संगी संबंध रखा जाए जिसे यह बीमारी नहीं है।

श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी)

श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) क्या है ?
श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) एक सामान्य शब्द है जो गर्भाशय (बच्चेदानी), फैलोपियन ट्यूब (अंडाशय से गर्भाशय तक अंडों को ले जाने वाला ट्यूब) और अन्य प्रजनन इंद्रियों के संक्रमण से संबंधित है।

महिलाओं को श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) कैसे होती है ?
श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) तब होती है जब जीवाणु महिला की जननेद्रिय या ग्रीवा(सर्विक्स) से जननेद्रिय अंग में ऊपर की ओर प्रवेश करती है। बहुत से अलग-अलग अवयवों से श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) होती है किंतु अनेक मामले सुजाक (गानोरिया) और क्लैमिडिया से संबंधित हैं और दोनों ही जीवाणु यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) नहीं हैं। कामेन्द्रियों में लिप्त महिलाओं को अपने प्रजनन वर्ष के दौरान अत्यंत खतरा होता है और जिनकी आयु 25 वर्ष से कम है, उनको 25 वर्ष से अधिक वालों से अधिक खतरा होता है और उनमें श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) विकसित हो सकती है। इसका कारण यह होता है कि बीस वर्ष से कम आयु की लड़कियों और युवतियों का ग्रीवा(सर्विक्स) पूरी तरह परिपक्व नहीं होता है और वे यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) के लिए संवेदनशील होती हैं जो कि श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) से संबद्ध होती हैं।

श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) के संकेत और लक्षण क्या होते हैं ?
श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) के लक्षण गंभीर से गंभीरतम हो सकते हैं। जब श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी), क्लैमिडिया संबंधी संक्रमण से उत्पन्न होती है तो महिला को बहुत हल्के लक्षणों अथवा न के बराबर लक्षणों का अनुभव हो सकता है किन्तु उसकी प्रजनन शक्ति अंगो की खराबी का गंभीर खतरा होता है। जिन महिलाओं को श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) के लक्षण प्रतीत होते हैं उनको सामान्यतः पेट के निचले भाग में दर्द होता है।  अन्य लक्षण हैं- स्राव, जिसमें बदबू आ सकती है, दर्द भरा संभोग, पेशाब करते समय दर्द होना और मासिक धर्म के दौरान अनियमित रक्तस्राव होना।

श्रोणि जलन बीमारी (पीआईडी) को कैसे रोका जा सकता है ?
यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) से बचने का सबसे पक्का तरीका है कि संभोग न किया जाए या फिर ऐसे साथी के साथ आपसी एक संगी संबंध रखा जाए जिसे यह बीमारी नहीं है।

योनि त्वचा रोग (हर्पिस)

योनि त्वचा रोग क्या है ?
योनि त्वचा रोग काम क्रिया से फैलने वाली बीमारी {यौन संचारित बीमारी (एसटीडी)} है जो कि हर्पिस सिम्प्लेक्स नामक वायरस प्रकार - 1 (एच एस वी-1) और टाइप - 2 (एच एस वी-2) से पैदा होता है।

व्यक्तियों को योनि त्वचा रोग कैसे होता है ?
सामान्यतया किसी व्यक्ति को काम क्रिया के दौरान एच एस वी-2 संक्रमण तभी हो सकता है जबकि वह ऐसे व्यक्ति के साथ संपर्क करे जो योनि एचएसवी-2 से पीड़ित है। यह किसी ऐसे व्यक्ति से भी हो सकता है जो संक्रमण से प्रभावित हो और उसमें कोई दर्द न हो। साथ ही, उसे यह भी मालूम न हो कि वह संक्रमण से पीड़ित है।

योनि त्वचा रोग के संकेत और लक्षण क्या होते हैं ?
एचएसवी-2 से पीड़ित अधिकांश व्यक्तियों को अपने संक्रमण की जानकारी ही नहीं होती है। वायरस संप्रेषण को 2 सप्ताह बाद ही पहला प्रकोप होता है और संकेत दिखाई पड़ते हैं। वे विचित्र रूप में दो से चार सप्ताह में ठीक हो जाते हैं लेकिन जननांग या गुदा में या उसके आसपास एक या दो फफोले रह जाते हैं। फफोले फूट जाते हैं और नरम फुंसिया रह जाती हैं जिन्हें ठीक होने में दो से चार सप्ताह लग जाते हैं। ऐसा पहली बार होता है। विचित्र रूप से दूसरा रोग फैलता दिखाई दे सकता है जो कि पहले रोग से कई सप्ताह या महीनों के बाद दिखाई देता है किंतु यह पहले की अपेक्षा कम गंभीर और कम अवधि का होता है। भले ही संक्रमण शरीर में लंबी अवधि के लिए बना रहे किंतु कुछ वर्षों की अवधि के दौरान फैलने वाले रोगों में कमी आ जाती है। अन्य संकेत और लक्षण फ्लू के लक्षणों की तरह होते हैं, जिनमें बुखार और सूजी ग्रंथियां शामिल हैं।

क्या इस त्वचा रोग का इलाज है ?
ऐसा कोई इलाज नहीं है जिससे कि त्वचा रोग का उपचार किया जा सके, किंतु एन्टी वायरस दवाइयों के प्रयोग से दवाई प्रयोग की अवधि के दौरान इसे फैलने से रोका जा सकता है। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन निरोधात्मक उपाय करने से लाक्षणिक त्वचा रोग से साथी को बचाया जा सकता है।

त्वचा रोग की रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) से बचने का सबसे पक्का तरीका है कि संभोग के समय कंडोम का प्रयोग करे या फिर ऐसे साथी के साथ आपसी एक संगी संबंध रखा जाए जिसे यह बीमारी नहीं है।

स्रोत: जनसंख्या एवं विकास शिक्षा प्रकोष्ठ, राज्य संसाधन केंद्र, आद्री, 219/ सी , रोड न. 2, अशोक नगर, रांची- 834002 (झारखंड)

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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