चिकनगुनिया ये अजीब नाम एक बीमारी का है। यह बीमारी मच्छरों के कारण फैलती है। चिकनगुनिया याने झुका हुआ आदमी। इस बीमारी में जोडों के दर्द से आदमी टेढा-मेढा होता है। इसलिये इसका ऐसा नाम पड़ा है।
चिकनगुनिया एक विषाणुजन्य बुखार है। ये विषाणु ईडस और कभी कभी क्युलेक्स नामक मच्छरों से फैलते है। इनमें से ईडस से अधिक। ये ईडस मच्छर घर और इर्दगिर्द जमा पानी में बढते है। मच्छर काटने के ४-७ दिनों में लक्षण नजर आते है।
ठंड लगाकर बुखार, सिरदर्द, मध्यम या अधिक बुखार चलता है। कभी कभी बारीक फुंसियाँ आती है। इस बुखार में हाथ, पाव, पीठ और जोडों मे बहुत दर्द रहता है। कुछ लोगों की आँखे लाल दिखती है। बगल, जांघ या गर्दन में गांठ सी आती है। इसकी बारीक फसियॉं हर हफ्ते आती जाती रहती है। इस बीमारी में जोडोंमें सूजनके साथ अकडन और दर्द होता है। हाथ पैरोंकी अंगुलियॉं, कलाई, कोहनी, कंधा, पीठ की हड्डी, जॉंघे, घुटने, आदि सभी जोडों में दर्द और सूजन होती है। हलचल मुश्किल और ददनाक होती है। जोडों में दर्द महीनों तक रहता है। कभी कभी दर्द सालों साल भी रहता है। लेकिन इस बीमारी में बुखार से रोगी मरता नही है। कभी कभी बीमारी से उल्टी में कालासा रंग आता है या नाक से खून निकलता है।
रक्तपरिक्षण से बीमारी का निश्चित निदान हो सकता है। इसके लिये एलिझा, पी.सी.आर. आदि विषाणुदर्शक परिक्षण है। रोग फैलने की जानपदिक स्थिती में इस परिक्षण की आवश्यकता नही होती। क्योंकी रोग आसानी से पहचाना जा सकता है। आवश्यकता होने पर सरकार की ओर से परिक्षण हो सकते है।
इस बीमारी के लिये दवा उपलब्ध नहीं है। सामान्यत: यह बीमारी कुछ हप्तों में अपने आप ठीक होती है। दवा के रूप में एस्पिरिनके अलावा कोई भी तापशामक या वेदनाशामक दवा काफी है। एस्पिरिन या स्टेरॉईड ना ले। इससे बीमारी बढती है।
इस बीमारी में मच्छर नियंत्रण महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। यह मच्छर घर में और आस पास के खाली डिब्बे, गुलदस्ते, हौज, एअर कूलर का ट्रे, फालतू टायर्स, मटके, फूटी बोतलें आदि में जमा पानी में पलते है। हर हफ्ते ये जमा पानी निकाले और फालतू चीज़ों का सफया करे। मच्छर घर में ना घुसे इसलिये खिडकियों-दरवाजों पर जालियॉं लगायें, सोते समय मच्छरदानियॉं खासकर मच्छरनाशक मच्छरदानी, मच्छर रोधक धुआँ, अगरबत्ती आदि हरसंभव उपाय से मच्छरों को दूर रखे। पायरेथ्रम आदि कीटनाशकोंके फव्वारेके उपयोगसे मच्छर नियंत्रित होते है। इस हेतु प्रति हेक्टर २५० मि.ली. रसायन का उपयोग करते है। हर फव्वारे के बाद १० दिन बाद फिर से फव्वारा मारे। इन फव्वारों से कई हफ्तोंतक ईडस-मच्छर बिलकुल कम होते है। डेंग्युमें भी यही उपाय करे। चिकनगुनियाके लिये कोई प्रतिबंधक टिका उपलब्ध नही है।
मच्छरप्रतिबंध उपायों का पडोसियों के साथ एकत्रित उपाय करे। इस बीमारी में सलाईन-इंजेक्श नका कोई लाभ नही होता। केवल बुखार की गोलियॉं काफी है। आयुर्वेदिक या होमिओपॅथीक ईलाज करके देखे। इस बुखारमें कालीसी उल्टी या नाकसे खून निकलनेपर तुरंत वैद्यकीय सलाह ले।
स्त्रोत: भारत स्वास्थ्य www.bharatswasthya.net
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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