अँग्रेज़ी में प्रज्ज्वलन को इनफ्लेमेशन कहते हैं। और इस शब्द का शाब्दिक अर्थ है गर्मी और आग। पर विकृति रोग विज्ञान में इसे खास तरह से इस्तेमाल किया जाता है। किसी ऊतक पर किन्हीं कीटाणुओं, चोट, जलने, विषैली वस्तु, अवांछित पदार्थों या एलर्जी का हमला होने पर परिणाम स्वरूप प्रज्ज्वलन हो जाता है।
शरीर का रक्षा तंत्र और हमलावरों के बीच लडाई के कारण स्थानिय और शरीर में व्यापक बदलाव होते है। इसका नतीजा अंतत: इस पर निर्भर करता है कि कौन ज़्यादा ताकतवर है। अगर शरीर हमलावरों पर काबू पा लेता है तो इससे बहुत जल्दी सब ठीक हो जाता है। परन्तु अगर रोगाणु/कीटाणु शरीर के रक्षा तंत्र पर काबु पा लेते है तो उससे उसे बीमारी हो जाती है। एक तीसरी सम्भावना है लम्बे समय तक चलने वाली लड़ाई।
आगजनित जख्मों से संक्रमण प्रवेशित होते है| इसके कारण इससे चिरकारी (लंबी अवधी) की बीमारी हो जाती है। कई सारे कारको पर निर्भर करता है कि चिरकारी स्थानिय या व्यापक होगी।
शरीर पर हमला करने वालों (रोगाणुओं/ विषैले तत्व /एलर्जी कारक) और शरीर के रक्षा तंत्र के बीच की लड़ाई के परिणामस्वरूप होने वाले बदलावों को प्रज्ज्वलन कहते हैं। इसमें अच्छे और बुरे दोनों असर शामिल होते हैं। इसके ज़रूरी अवयव हैं
मवाद
प्रज्ज्वलन से अक्सर मवाद बन जाती है। यह असल में मरी हुई कोशिकाएँ रिसने वाला द्रव्य और रोगाणु होते हैं। लेकिन सिर्फ कुछ ही तरह के रोगाणु पीप पैदा करते हैं (इन्हें पूयजन्य रोगाणु कहते हैं)।
धीरे-धीरे हमला करने वाले कारक
कुछ रोगाणुओं से चिरकारी (लम्बी अवधी का प्रज्ज्वलन होता है। कोढ़, तपेदिक, सिफलिस और कुछ फफूँद ऐसे कुछ रोगाणुओं के उदाहरण हैं जिनसे चिरकारी शोथ होता है।
स्थानीय प्रज्ज्वलन के अलावा कुछ रोगाणुओं से पूरे शरीर पर असर हो सकता है। ये विषैले तत्व पैदा करने वाले जर्म, रोगाणुओं और प्रतिजन प्रतिपिण्डों के जोड़ों के शरीर में घूमने और कुछ रसद्रव्य से होता है। इससे शरीर के तापमन( बुखार) हो सकता है, साँस और दिल की धड़कन बढ़ सकती है। इन विषैले तत्व के कारण व्यक्ति बीमार, उसके चलते सिरदर्द और अवसादन महसूस होता है।
शोध यानि प्रज्ज्वलन प्रकिया के बाद सूजन, उष्णता, लाली, दबाने से दर्द और दर्द कम हो जाते हैं। ऊतक अपने सामान्य कार्य शुरू कर देते हैं।
आरोग्य संयोजी ऊतकों के कारण होता है, जोकि खराब हुए ऊतकों की जगह लेते हैं। निरोगण की प्रक्रिया में लम्बा समय लगता है। संयोजी ऊतक समय के साथ सिकुड़ जाते हैं और उनकी जगह धाव का निशान बाकी रह जाता है। यह प्रक्रिया लगभग पेड़ों में हुए कुल्हाडी के घाव भरने के बाद गठान बनने जैसी होती है।
पैर में सर्पविष के कारण व्रण अगर कोई चोट त्वचा पर हो तो आप प्रज्ज्वलन और आरोग्य की प्रक्रिया देख सकते हैं। शरीर के भीतर भी इसी तरह से प्रज्ज्वलन और आरोग्य की प्रकिया होती है। । भीतरी प्रज्ज्वलन के अन्दरुनी निशान को अगर किसी कारण से ऑपरेशन करना पडता है तो ऑपरेशन के दौरान देखा जा सकता हैं।
कुछ निशानों में समय के साथ कैलिशयम जमा हो जाता है। इसलिए ये एक्स-रे में दिखाई दे जाते हैं - जैसे कि फेफड़ों में तपेदिक (टीबी) के पुराने ठीक हुए निशान।
प्रज्ज्वलन की प्रक्रिया से यह पता चल जाता है कि क्यों कुछ बीमारियाँ जल्दी ठीक हो जाती हैं और अन्य लम्बे-लम्बे समय तक चलती रहती हैं (चिरकारी)। इसका एक कारण तो रोगाणु ही होता है। कुछ रोगाणु धीरे-धीरे बढ़ते हैं और इसलिए इनसे होने वाला प्रज्ज्वलन एक चिरकारी प्रक्रिया होती है (उदाहरण के लिये कोढ़ ओर तपेदिक)। परन्तु प्लेग निमोनिया और आम जुकाम जैसे रोगों के कीटाणु बड़ी तेज़ी से बढ़ते हैं। इसलिए इनमें प्रज्ज्वलन की शीघ्र प्रतिक्रिया होती है। इस कारण से ये बीमारियाँ शीघ्र प्रकोपी बीमारियाँ होती हैं।
प्रज्ज्वलन, आरोग्य में मदद शरीर प्रज्ज्वलन के द्वारा ही किसी हमले से लड़ना सीखता है। प्रज्ज्वलन शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को असली मुठभेड़ों के ज़रिए प्रशिक्षित करता है। शोथ एक बहुत उपयोगी प्राकृतिक प्रक्रिया है जो हमें कीटाणुओं से लड़ने में मदद करती हैं। एक हद तक शोथ एक वॉंछनीय प्रक्रिया है। यह समझने बिना स्टीरॉएड एंटी प्रज्ज्वलन दवाओं का बहुत दुरुपयोग बहुत आम है।
स्त्रोत: भारत स्वास्थ्य
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