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भौतिक रोगाणुनाशक

परिचय

  • वर्गीकरण सुखी गर्मी - जलाना, गर्म और सुखी हवा
  • नम गर्मी - उबालना, वाष्प से निर्जीवीकरण विकिरण

गर्मी

उबालना,धूप में सुखाना, भाप(वाष्प) देना और जलाना आदि अग्नि के प्रयोग स रोगाणुओं को मारने के तरीके हैं। खासतौर पर पानी, दूध और चिकित्सीय और शल्य चिकित्सीय उपकरणों के लिए उबालने का तरीका इस्तेमाल होता है। बैक्टीरिया के बीजाणु और वायरस भी को मारने के लिए कम से कम 15 मिनट तक उबालना जरूरी होता है। धूप में सुखाने का तरीका मुख्यत: खाने, कपड़े और घर की चीज़ों के लिए इस्तेमाल होता है। सोलर कुकर की मदद से सरलतापूर्वक प्राप्य धूप की उर्जा का इस्तेमाल रुई की पटि्टयों, काटन पेड आदि के संक्रमण लिए हो सकता है। यह सूखी गर्मी का उदाहरण है।

भाप (वाष्प) से गर्म करना, नमी वाली गर्मी का उदाहरण है। आमतौर पर भाप (वाष्प) दबाव के साथ किया जाता है जिससे गर्म भाप चीज़ों को भेदती चली जाती है। इसके लिए साधरण प्रेशर कुकर इस्तेमाल किया जा सकता है। एक बार पूरी भाप बनना शुरू होने के बाद प्रेशर कुकर को करीब 30 मिनट तक आँच पर चढ़े रहने दें। इससे पटि्टयों, शल्य चिकित्सा के उपकरणों आदि का निर्जीवाणुकरण पूरी तरह से हो जाता है। डॉक्टर 10 किलोग्राम/ घन सेन्टीमीटर तक दाबव बनाने वाले भाप विसंक्रामक (ऑटोक्लेब) का इस्तेमाल करते हैं। इसमें प्रेशर कुकर के मुकाबले बहुत कम समय लगता है।

जलाने का तरीका आमतौर पर कचरे में फैंकने वाली चीज़ों के लिए होता है जैसे कि तपेदिक के बीमार का कफ, इस्तेमाल हो चुकी पटि्टयॉं आदि। रसायनिक रोगाणुनाशकनिर्जीवाणुकरण और विसंक्रमण दोनों के लिए ही कई तरह के रसायनीक कीटनाशक द्रव्य या (एंटीसेप्टिक) का इस्तेमाल होता हैं। परन्तु रोगाणुनाशन के लिए हमें इन रसायनों का धोल बनाना होता है।

रसायनिक रोगाणुनाशक वर्गीकरण

  • तरल - फिनाईल,के्साल, एल्कोहल,फार्मलिनऔर क्लोरिन
  • ठोस - ब्लीजिंग पाउडर, चुना
  • गैस – फोर्मेल्डिहाइड, एथिलिन ऑक्साइड

डैटोल (कार्बोलिक एसिड) फीनोलस , चूना, प्रबल अम्ल (जैसे सल्फयूरिक अम्ल नाईट्रिक अम्ल) , आयोडीन, क्लोरिन, और परिवर्तित स्पिरिट आदि विभिन्न प्रकार के रसायनीक द्रव्य इस काम के लिए उपलब्ध हैं। प्रबल फीनाल और अम्लों का इस्तेमाल चिकित्सीय उपकरणों जैसे कैंची, सुई आदि पर से रोगाणुओं को मारने के लिए अकसर किया जाता है। क्लोरीन मुख्यत: पीने के पानी को कीटाणु रहित करने के लिए इस्तेमाल होता है। जब हमें मनुष्य का मलमूत्र को कीटाणुरहित करना होता है तो इसके लिए चूने का इस्तेमाल होता है। उदाहरण के लिये हैजा रोगीयों के मलमुत्र वाले स्थान पर उपयोग किया जाता है। क्योंकि  विसंक्रमण में त्वचा शामिल है, इसलिये पतले धोल वाला रसायनिक पदार्थ जैसे डेटोल (कार्बोलिक एसिड) फीनोलस, आयोडीन, और परिवर्तित स्पिरिट का उपयो्ग करना चाहिये। डिब्बे के उपर धोल बनाने का तरीके लिखा होता है।

गामा किरणें

गामा किरणें ज़्यादातर शल्य औजार और उपकरण, पर के रोगाणुओं को तुरन्त मार देती हैं। इसलिए इनका इस्तेमाल चिकित्सीय उपकरणों को रोगाणु रहित करने के लिए किया जाता है। अगर बड़े स्तर पर इस्तेमाल हो तो यह बहुत ही असरकारक तरीका है और काफी सस्ता भी पड़ता है।

रोगनिवारक या जीवाणुनाशक (एंटीबायोटिक) औषधियॉ

यह संक्रमण रोगो पर नियंत्रण या ठीक करने का जीवनदायी इलाज है तथा सूक्ष्म जीवाणुओं से लड़ने का एक महत्वपूर्ण हथियार। परन्तु हमें इन औषधियों को बहुत सोच समझकर, तर्कसंगत और असरदार तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए।

 

स्त्रोत: भारत स्वास्थ्य

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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