टीकाकरण मानव को संक्रामक रोगों से बचाने का सबसे प्रभावशाली तरीका है। हर देश की अपनी टीकाकरण नीति होती है जो कि उसके समूचे स्वास्थ्य कार्यक्रम का अंग होती है।
भारत में राष्ट्रीय कार्यक्रम का उद्देश्य सभी शिशुओं को छः जानलेवा बीमारियों तपेदिक, पोलियो, गलघोंटू, काली खांसी, टिटनेस और खसरे से सुरक्षा प्रदान करता है। शिशु को खसरे के टीके के साथ विटामिन ए ड्रॉप्स भी ली जाती है। 2002-2003 से देश के कुछ चुने हुए शहरों में हैपेटाइटिस बी के टीके को भी इस कार्यक्रम में शामिल कर लिया गया है।
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत एक वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को छः जानलेवा बीमारियों से बचाने के लिये उनका टीकाकरण किया जाता है। इस टीकाकरण कार्यक्रम में सभी गर्भवती महिलाओं को टिटनेस से बचाव के टीके लगाना भी शामिल है।
गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान जल्दी से जल्दी टिटनेस टॉक्साइड(टीटी) के दो टीके लगाये जाने चाहिए। इन टीकों को टीटी1 और टीटी2 कहा जाता है। इन दोनों टीकों के बीच चार सप्ताह का अन्तर रखना आवश्यक है। यदि गर्भवती महिला पिछले तीन वर्ष में टीटी के दो टीके लगवा चुकी है तो उसे इस गर्भावस्था के दौरान केवल बूस्टर टीटी टीका ही लगवाना चाहिए।
जी हॉं, टीटी का टीका मॉ ओर बच्चे को टिटनेस की बीमारी से बचाता है। भारत में नवजात शिशुओं की मौत का एक प्रमुख कारण जन्म के समय टिटनेस का संक्रमण होना है। इसलिए अगर गर्भवती महिला टीकाकरण के लिये देर से भी नाम दर्ज कराये तो भी उसे टीटी के टीके लगाए जाने चाहिए। किन्तु टीटी2 (या बूस्टर टीका) टीका प्रसव की अनुमानित तारीख से कम से कम चार सप्ताह पहले दिया जाना चाहिए। ताकि उसे उसका पूरा लाभ मिल सके।
टीकाकरण कार्यक्रम के अनुसार अस्पताल या किसी संस्थान में जन्म लेने वाले सभी शिशुओं को जन्म लेते ही या अस्पताल छोडने से पहले बीसीजी का टीका, पोलियों की जीरो खुराक और हैपेटाइटिस बी का टीका लगा दिया जाना चाहिए किसी अस्पताल या संस्थान में जन्म लेने वाले शिशुओं को डीटीपी का पहला टीका, पोलियो की पहली खुराक, हैपेटाइटिस बी का पहला टीका और बीसीजी का टीका डेढ माह (6 सप्ताह) का होने पर दिया जाता है। ढाई महीने (10 सप्ताह) का होने पर शिशु को डीपीटी का दूसरा टीका, पोलियो की दूसरी खुराक और हैपेटाइटिस बी का टीका देना जरूरी है।
साढे तीन महीने (14 सप्ताह) का होने पर डीपीटी का तीसरा टीका, पोलियो की तीसरी खुराक और हैपेटाइटिस बी का तीसरा टीका देना जरूरी है। अन्त में नौवें महीने (270दिन) के तुरन्त बाद और एक वर्ष की उम्र पूरी होने से पहले शिशु सम्पूर्ण सुरक्षा के लिये हर हालत में खसरे का टीका लगवाना चाहिए। खसरे के टीके के साथ-साथ विटामिन ए की पहली खुराक भी दी जानी चाहिए। विटामिन ए की दूसरी खुराक 16 - 24 महीने का होने पर दी जानी चाहिए। विटामिन ए की बाकी तीन खुराके तीन साल 6 महीने के अन्तराल पर दी जानी चाहिए। बच्चे को विटामिन ए की कुल पॉंच खुराके दी जानी चाहिए।
जी हॉं, खांसी-जुकाम, दस्त रोग और कुपोषण जैसी आम तकलीफें टीकाकरण में रूकावट नहीं डालती कुपोषण के शिकार बच्चें को तो टीके लगवाना और भी जरूरी है क्योंकि उसके बीमार पडने की आशंका अधिक रहती है कुपोषित बच्चे अगर टीकाकरण की सुरक्षा के बिना इन बीमारियों के शिकार होते हैं तो उनकी मौत अक्सर हो जाती है इसलिए शिशु अगर बीमार भी हो तो उसक टीके लगवाने के लिए जरूर ले जाना चाहिए।
हैपेटाइटिस एक प्रकार का संक्रमण है और हैपेटाइटिस बी रोगाणु ( एचबीवी) के कारण जिगर में सूजन आ जाती है। यह रोगाणु संक्रमित व्यक्ति के खून और शरीर से निकलने वाले दूसरे द्रवों में पाया जाता है। यह रोगाणु जिगर पर हमला करता है और आखिरकार जिगर के प्राइमरी कैन्सर की वजह से रोगी की मौत भी हो सकती है। यह संक्रमण शैशव से लेकर बूढापे तक कभी भी हो सकता है और यह इस बात पर निर्भर है कि रोगाणु कब कितना सम्पर्क होता है। टीके लगाकर संरक्षण हैपटाइटिस बी से बचाव का सर्वोतम उपाय है।
बिलकुल ठीक संक्रमण किसी भी उम्र में हो सकता है। बडी उम्र के चिरकालिक रोग होने जिगर का कैंसर होने की सम्भावना कम रहती है, लेकिन गंभीर हैपेटाइटिस होने की सम्भावना ज्यादा होती है इसलिए किशोरों और वयस्को को पहले से टीके नहीं लगे हैं तो अब टीके लगवाने चाहिए हैपटाइटिस बी के टीकों की कुल तीन खुराक होती है 0, 1, और 6 माह पर यानी अगर पहली खुराक आज ली है तो दूसरी खुराक उसके एक महिने बाद और तीसरी खुराक ,पहली खुराक के छः महिने बाद ली जानी चाहिए शिशुओं को यह टीका डीपीटी की तीन प्राथमिक खुराकों (6, 10, 14 सप्ताह) के साथ ही लगाया जाता है।
हैपेटाइटिस बी का टीका पूरी तरह सुरक्षित और एचबीवी रोगाणु संक्रमण तथा उसके गंभीर प्रभावों से बचने के लिए बेहद प्रभावकारी है। यह टीका लम्बे समय तक लिए सुरक्षा प्रदान करता है। कुछ मामलों में कुछ अन्य प्रभाव हो सकते हैं, जैसे सुई लगने की जगह सूजन, सिरदर्द, चिडचिडापन और बुखार।
बच्चें को दस्त रोग होने पर भी पोलियो की खुराक अवश्य पिलाऍं क्योंकि यह पूरा न सही थोडा-बहुत संरक्षण तो देगी ही अधिकतम प्रभाव के लिये बच्चे के दस्तरोग से ठीक होते ही जल्दी से जल्दी पोलियो की एक और खुराक पिलानी चाहिए।
नहीं, यह सही नहीं है। पोलियो की खुराक पिलवाने के बाद बच्चें को मां का दूध पिलाया जा सकता है और पिलाना ही चाहिए मां का दूध सर्वोतम पोषण होता है और उसे हर समय दिया जाना चाहिए।
जी हॉं, हमारे पास टीके की प्रभाविकता मापने के लिए असरदार तरीका है टीका कितना प्रभावकारी होगा यह उसकी प्रबलता पर निर्भर है। बहुत अधिक गर्मी में रखे रहने से टीका बेअसर हो जाता है। सन् 2000 से देश में वैक्सीन वॉयल मॉनिटर (वीवीएम) इस्तेमाल किये जा रहे हैं। जिसका रासायनिक तत्व गर्मी पाते ही रंग बदल देता है। पोलियो के टीके की हर शीशी पर वीवीएम चिपका होता है। वीवीएम का रंग बता देता है कि टीके की प्रबलता कितनी है ओर बच्चे को उसे पिलानी चाहिए या नहीं।
जी हॉं, अगर बच्चें को टीके लगवाने के लिये देर से लाया जाये तो भी उसे सभी टीकों की पूरी खुराक दी जानी चाहिए। अच्छा यही होगा कि बच्चें को निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार टीके लगवाये जाये और एक वर्ष की उम्र से पहले ही सभी टीके लगा दिये जाएं।
अगर बच्चे को नौ उम्र के पहले लाया जाये तो उसे पहली बार में ही बीसीजी, डीपीटी-1,ओपीवी-1 यानी पोलियो की पहली खुराक और हैपेटाइटिस बी-1 का टीका दिया जाना चाहिए। उसके एक माह के बाद बच्चें को डीपीटी-2, ओपीवी-2 यानी पोलियो की दूसरी खुराक और हैपेटाइटिस बी-2 का टीका दिया जाना चाहिए। उसके एक महीने बाद तीसरी बार में डीपीटी-3 ओपीवी-3 यानी पोलियो की तीसरी खुराक और हैपेटाइटिस बी-3 का टीका दिया जाना चाहिए। इस दौरान बच्चा अगर नौ माह का हो जाये तो उसे डीपीटी, ओपीवी और हैपेटाइटिस बी के टीका के साथ-साथ खसरे का टीका भी लगवा देना चाहिए।
नौ माह से अधिक उम्र के बच्चे को पहली बार में ही खसरे, डीपीटी-1, ओपीवी-1 और हैपटाइटिस बी-1 और बीसीजी का टीके एक साथ दे दिये जाने चाहिए। अगर माता-पिता एक साथ चार टीके लगवाने को तैयार न हो तो सबसे पहले खसरे से बचाव का टीका लगवाये, उसके बाद हैपेटाटिस बी ओर फिर डीपीटी इसका कारण यह है कि नौ माह की उम्र के बाद बच्चे को खसरा रोग होने की आशंका बेहद अधिक रहती है। इसलिए बच्चे को खसरे से सुरक्षा प्रदान करना सबसे पहले जरूरी है।
नहीं चिन्ता की कोई बात नहीं है। बीसीजी का टीका लगने के बाद अक्सर ऐसा होता है। बीसीजी का टीका लगने के चार से छः सप्ताह के बाद टीके वाली जगह पर एक छोटा सा छाला हो जाता है। बाद में यह छाला फटने पर इसमें से सफेद पानी निकल सकता है टीका लगने के करीब 10 - 12 सप्ताह बाद यह छाला सूख जाता है और निशान छोड जाता है। अगर छाला सूखे ओर उसमें से पानी निकलता रहे तो डॉक्टर की सलाह लें। अगर टीका लगने के 4 - 6 सप्ताह बाद भी छाला न पडे तो इसका मतलब है कि टीका बेअसर है तुरन्त अपने स्वास्थ्य कार्यकर्ता की सलाह लें।
डीटीपी का टीका लगने के बाद सुई लगने की जगह सूजन बहुत ही कम मामलों में होती है ऐसा तभी होता है जब सुई तथा सिंरिज को इस्तेमाल करने से पूर्व अच्छी तरह से 20 मिनट तक उबाला न गया हो टीकाकरण कार्यक्रम में टीका लगाने के लिये साफ की गई सिरिंज और सुईयां इस्तेमाल की जाती है। अब टीके की सुरक्षा सुनिश्चित के कई तरीके उपलब्ध हैं।
राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में कांच की दोबार इस्तेमाल होने वाली सिरिंज की जगह ऑटो-डिसएबल सिरिंज इस्तेमाल की जाने लगी है। यह सिरिंज एक बार इस्तेमाल करने के बाद लॉक हो जाती है। इसलिये इसके दोबारा इस्तेमाल करने की सम्भावना नहीं रहती है। फिलहाल हैपेटाइटिस बी के टीके लगाने के साथ शिशुओं को सभी टीके लगाने में एसी सिरिंजों का इस्तेमाल होने लगा है और दसवीं पंचवर्षीय योजना तक तो देश में सभी टीके एसी सिरिंजो से लगाये जायेगें।
डीपीटी का टीका लगने के बाद उस जगह शिशु को दर्द हो सकता है और बुखार भी हो सकता है ऐसे में शिशु को पेरासिटामोल 500 मिलीग्राम की एक चौथाई गोली देनी चाहिए
खसरे के टीका लगने के बाद खसरे जैसे दाने उभर सकते हैं। ऐसा होना सामान्य बात है और यह इस बात का संकेत है कि टीके असर कर रहे हैं, किन्तु अगर बच्चे को तेज बुखार हो या बेहोशी आने लगे तो तुरन्त डॉक्टर की सलाह लें।
जी हां, खसरे का टीका सभी शिशुओं को अवश्य लगाया जाना चाहिए क्योंकि जरूरी नहीं की हर बुखार या दाने खसरे का संकेत हो अगर बच्चे को पहले से दाने निकलने के साथ बुखार आया हो तो भी उसे खसरे का टीका लगवाना चाहिए। ताकि उसे खसरे के संक्रमण से पूरी सुरक्षा मिल सके खसरे के टीके के साथ- साथ विटामिन ए की पहली खुराक भी निश्चित रूप से देनी चाहिए। विटामिन ए हर प्रकार के संक्रमण से शिशु की सुरक्षा करता है।
बिलकुल ठीक टीका न लगा हो तो करीब हर बच्चें को खसरा निकलता ही है। लेकिन इस रोग को लेकर लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए हो सकता है कि बच्चे का बुखार खत्म हो जाये और दाने भी गायब हो जाये, उसके 2 या 3 महीने बाद खसरे के विपरीत प्रभाव उभर सकते हैं।
खसरा निकलने के बाद बच्चे को ब्रांकाइटिस या निमोनिया जैसी श्वास की तकलीफ या दस्त की शिकायत हो सकती है। बच्चे की दृष्टि भी जा सकती है। इसलिए खसरे के टीके के साथ विटामिन ए की खुराक देना जरूरी है क्योंकि बच्चे को दृष्टिहीनता तथा अन्य संक्रमणों में यह सुरक्षा करता है। कुछ मामलों में खसरे के संक्रमण से मस्तिष्क को भी क्षति पहुंच सकती है। कुपोषित बच्चों में ऐसी तकलीफे अधिक आम और गंभीर होती है। हमारे देश में कुपोषण आम समस्या है। इसलिये हर बच्चे को खसरे का टीका लगवाना जरूरी है।
नहीं, देर होने से कोई खास फर्क नहीं पडता है। फिर भी निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार टीकें लगवाते रहना ओर जल्दी से जल्दी सभी टीके लगवाना आवश्यक है। दोबार टीके लगवाने की जरूरत नहीं है।
टीके की दूसरी और तीसरी खुराक बच्चे की पूर्ण सुरक्षा के लिये अत्यन्त आवश्यक है।
टीकाकरण कार्यक्रम में हम में से हर एक की भूमिका है हम सभी इस काम में मदद कर सकते हैं:-
स्त्रोत: स्वास्थ्य विभाग, झारखण्ड सरकार
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस पृष्ठ में अस्थि में कर्क रोग (बोन कैंसर) कैसे ह...
इस पृष्ठ में फिटनेस और तंदुरुस्ती के मायने और अहमि...
इस लेख में रक्ताल्पता (अनीमिया) की विस्तृत जानकार...
इस भाग में देश की महिलाओं की स्थिति, विशेषकर समाज ...