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सामान्य बीमारी

सिरदर्द

सिरदर्द प्रायः सभी व्यक्ति सिरदर्द से पीड़ित होता है और कुछ लोग इससे काफी असुविधा महसूस करते हैं। लेकिन अधिकांश लोगों में यह अस्थायी लक्षण होती है। सामान्यतौर पर सिरदर्द अस्थायी होते हैं और अपने-आप ठीक हो जाते हैं। हालांकि यदि दर्द असहनीय हो, तो अपने चिकित्सक से संपर्क करने में संकोच न करें। चिकित्सक को तेज, रूक-रूक कर आनेवाले और बुखार के साथ सिरदर्द की जांच करनी चाहिए।

सिरदर्द कब गंभीर होता है?

सभी सिरदर्द को चिकित्सकीय इलाज की जरूरत नहीं होती। कुछ सिरदर्द भोजन या मांसपेशियों के तनाव से पैदा होते हैं और घर में ही उनका इलाज किया जा सकता है। अन्य सिरदर्द किसी गंभीर बीमारी के संकेत हैं और उनमें जल्द से जल्द चिकित्सकीय सहायता की जरूरत होती है। यदि आप सिरदर्द के निम्नलिखित लक्षण पायें, तो आप तत्काल आपातकालीन चिकित्सकीय परामर्श लें :

  • तेज और अचानक शुरू हुआ सिरदर्द, जो तेजी से बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के पैदा हुआ हो,
  • सिरदर्द के साथ बेहोशी, उलझन, आपकी दृष्टि में बदलाव या अन्य संबंधित शारीरिक कमजोरी,
  • सिरदर्द के साथ गरदन का अकड़ना और बुखार।

यदि आपको सिरदर्द के निम्नलिखित लक्षण का अनुभव हो, तो आपको चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए:

  • ऐसा सिरदर्द, जो आपको नींद से जगा दे,
  • सिरदर्द के समय या प्रकृति में अस्वाभाविक बदलाव,
  • यदि आप अपने सिरदर्द की प्रकृति के बारे में निश्चित नहीं हैं, तो अपने चिकित्सक से संपर्क कर चिकित्सकीय परामर्श लेना अच्छा है।

तनाव व अधकपारी (माइग्रेन) सिरदर्द के प्रकार हैं। अधकपारी और समग्र सिरदर्द नाड़ियों के सिरदर्द के प्रकार हैं। शारीरिक थकान, नाड़ियों के दर्द को बढ़ा देता है। सिर के चारों तरफ की रक्त नलिकाएं और ऊतक मुलायम हो जाते हैं या उनमें सूजन आ जाती है, जिससे आपका सिर, दर्द से ग्रस्त हो जाता है। क्लस्टर सिरदर्द अधकपारी से कम सामान्य है और यह नाड़ियों के सिरदर्द का सबसे सामान्य प्रकार है। क्लस्टर सिरदर्द कम अंतराल पर कई बार पैदा होता है। कभी-कभी यह कई सप्ताह या महीनों तक रहता है। क्लस्टर सिरदर्द पुरुषों में अधिक होता है और काफी तकलीफदेह होता है।

पहचान

अधिकांश सिरदर्द गंभीर स्थिति के कारण पैदा नहीं होते और उनका इलाज दवा दुकानों में उपलब्ध दवाओं से ही किया जा सकता है। अधकपारी और सिर में अन्य प्रकार के गंभीर दर्द का इलाज नुस्खे के इलाज और चिकित्सक की निगरानी में ही हो सकता है।

सिरदर्द संबंधी और जानकारी

तनाव से उत्पन्न सिरदर्द

  • सिरदर्द का सबसे सामान्य प्रकार तनाव या मांसपेशियों में सिकुड़न के कारण सिरदर्द है। ऐसे दर्द अक्सर तनाव की लंबी अवधि से संबंधित होते हैं।
  • तनाव के कारण सिरदर्द अक्सर स्थिर और धीमा होता है तथा इसे सिर के अगले हिस्से, माथे या गरदन के पिछले हिस्से में महसूस किया जाता है।
  • तनाव सिरदर्द में लोग अक्सर शिकायत करते हैं कि उनके सिर को किसी रस्सी से कड़ाई से बांध दिया गया है।
  • हालांकि तनाव सिरदर्द लंबी अवधि तक बना रह सकता है, तनावपूर्ण अवधि खत्म होने के साथ ही गायब भी हो जाता है।
  • तनाव सिरदर्द आमतौर पर किसी अन्य शिकायत के साथ संबद्ध नहीं होता और इसमें दर्द के पूर्व लक्षण भी नहीं होते, जैसा कि आमतौर पर अधकपारी में देखा जाता है। सिरदर्द के 90 प्रतिशत मामले में तनाव सिरदर्द ही होता है।

जुकाम या नजला (साइनस) से उत्पन्न सिरदर्द

जुकाम या नजला सिरदर्द, जुकाम संक्रमण या एलर्जी का परिणाम है। अक्सर सर्दी या फ्लू के कारण साइनस के रास्ते या आपकी नाक के ऊपर और पीछे स्थित हवा के स्थान में सूजन के कारण साइनस सिरदर्द पैदा होता है। जुकाम या नजला जम जाने या संक्रमित होने पर दबाव बढ़ता है, जिससे आपके सिर में दर्द होने लगता है। दर्द आमतौर पर तेज तथा लगातार होता है। यह सुबह में शुरू होता है और आपके नीचे झुकने पर असहनीय हो जाता है।

साइनस से उत्पन्न सिरदर्द के सामान्य लक्षण

  • आंखों के चारों तरफ, गाल के ऊपर और सिर के अगले हिस्से में दबाव और दर्द
  • ऊपरी दांत में दर्द का अनुभव
  • बुखार और ठंड लगना
  • चेहरे में सूजन
  • साइनस सिरदर्द में चेहरे का दर्द दूर करने के लिए गर्म और बर्फ, दोनों का सामान्य रूप से उपयोग किया जाता है।

अधकपारी (माइग्रेन) से उत्पन्न सिरदर्द

अधकपारी से उत्पन्न सिरदर्द हर व्यक्ति में अलग-अलग होता है, लेकिन इसे आमतौर पर सिर के एक या दोनों हिस्सों में तेज दर्द से परिभाषित किया जाता है। इसके साथ कभी-कभी दूसरे लक्षण भी पैदा होते हैं। इसमें जी मिचलाना और उल्टी करना, रोशनी के प्रति संवेदनशीलता और दृष्टि-दोष, सुस्ती, बुखार और ठंड लगना शामिल है।

माइग्रेन के सामान्य लक्षण

  • दर्द से पहले दृष्टि दोष
  • सिर के एक तरफ धीमा से लेकर तेज रूक-रूक कर दर्द
  • जी मिचलाना या उल्टी
  • रोशनी और आवाज के प्रति संवेदनशीलता

अधकपारी शुरू होने के कई कारण हो सकते हैं, जो व्यक्ति से व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं। कुछ लोग शराब, चॉकलेट, पुरानी खमीर, प्रसंस्कृत मांस और कैफीन जैसे सामान्य खाद्य पदार्थों के प्रति प्रतिक्रिया कर सकते हैं। कैफीन और अल्कोहल के सेवन से भी सिरदर्द हो सकता है।

नोट: यदि आपको तेज या खराब सिरदर्द हो, तो अपने लक्षणों, सिरदर्द की गंभीरता और आपने उसका सामना कैसे किया आदि बातों का रिकॉर्ड रखें। चिकित्सक के पास अपने साथ वह रिकॉर्ड भी ले जायें।

दमा

दमा क्या है

दमा एक गंभीर बीमारी है, जो आपकी श्वास नलिकाओं को प्रभावित करती है। श्वास नलिकाएं आपके फेफड़े से हवा को अंदर-बाहर करती हैं। यदि आपको दमा है, तो इन नलिकाओं की भीतरी दीवार में सूजन होता है। यह सूजन नलिकाओं को बेहद संवेदनशील बना देता है और किसी भी बेचैन करनेवाली चीज के स्पर्श से यह तीखी प्रतिक्रिया करता है। जब नलिकाएं प्रतिक्रिया करती हैं, तो उनमें संकुचन होता है और उस स्थिति में आपके फेफड़े में हवा की कम मात्रा जाती है। इससे खांसी, नाक बजना, छाती का कड़ा होना, रात और सुबह में सांस लेने में तकलीफ आदि जैसे लक्षण पैदा होते हैं। दमा को ठीक नहीं किया जा सकता, लेकिन इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है, ताकि दमे से पीड़ित व्यक्ति सामान्य जीवन व्यतीत कर सके। दमे का दौरा पड़ने से श्वास नलिकाएं पूरी तरह बंद हो सकती हैं, जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को आक्सीजन की आपूर्ति बंद हो सकती है। यह चिकित्सकीय रूप से आपात स्थिति है। दमे के दौरे से मरीज की मौत भी हो सकती है।

इसलिए यदि आपको दमा है, तो आप नियमित रूप से चिकित्सक से मिलते रहें। आपके लिए इस पर नियंत्रण पाने के उपाय जानना भी जरूरी है। आपका चिकित्सक आपको दवाएं देगा, ताकि बीमारी नियंत्रण में रह सके।

कारण

आपके लिए यह जानना जरूरी है कि किन चीजों से आपका दमा उभरता है। इसके अलावा अन्य कारणों की भी जानकारी आपको होनी चाहिए। कुछ लोगों को व्यायाम करने या विषाणु का संक्रमण होने पर ही दमा का दौरा पड़ता है।

दमा उभरने के कुछ लक्षण हैं-

  • जानवरों से (जानवरों की त्वचा, बाल, पंख या रोयें से)
  • दीमक (घरों में पाये जाते हैं)
  • तिलचट्टे
  • पेड़ और घास के पराग कण
  • धूलकण
  • सिगरेट का धुआं
  • वायु प्रदूषण
  • ठंडी हवा या मौसमी बदलाव
  • पेंट या रसोई की तीखी गंध
  • सुगंधित उत्पाद
  • मजबूत भावनात्मक मनोभाव (जैसे रोना या लगातार हंसना) और तनाव
  • एस्पिरीन और अन्य दवाएं
  • खाद्य पदार्थों में सल्फाइट (सूखे फल) या पेय (शराब)
  • गैस्ट्रो इसोफीगल रीफ्लक्स
  • विशेष रसायन या धूल जैसे अवयव
  • संक्रमण
  • पारिवारिक इतिहास
  • तंबाकू के धुएं से भरे माहौल में रहनेवाले शिशुओं को दमा होने का खतरा होता है। यदि गर्भावस्था के दौरान कोई महिला तंबाकू के धुएं के बीच रहती है, तो उसके बच्चे को दमा होने का खतरा होता है।
  • मोटापे से भी दमा हो सकता है। अन्य समस्याएं भी हो सकती हैं।

लक्षण

  • छींक आना
  • सामान्यतया अचानक शुरू होता है
  • किस्तों मे आता है
  • रात या अहले सुबह बहुत तेज होता है
  • ठंडी जगहों पर या व्यायाम करने से या भीषण गर्मी में तीखा होता है
  • दवाओं के उपयोग से ठीक होता है, क्योंकि इससे नलिकाएं खुलती हैं
  • बलगम के साथ या बगैर खांसी होती है
  • सांस फूलना, जो व्यायाम या किसी गतिविधि के साथ तेज होती है

शरीर के अंदर खिंचाव (सांस लेने के साथ रीढ़ के पास त्वचा का खिंचाव)

घेंघा रोग अवटुग्रंथि (थायराइड)

अवटुग्रंथि (थायराइड) एक छोटी सी ग्रंथि होती है जो तितली के आकार की निचले गर्दन के बीच में होती है। इसका मूल काम होता है कि शरीर के उपापचय (मेटाबोलिज्म) (कोशिकाओं की दर जिससे वह जीवित रहने के लिए आवश्यक कार्य कर सकता हो) को नियंत्रित करे। उपापचय (मेटाबोलिज़्म) को नियंत्रित करने के लिए अवटुग्रंथि (थायराइड) हार्मोन बनाता है जो शरीर के कोशिकाओं को यह बताता है कि कितनी उर्जा का उपयोग किया जाना है। यदि अवटुग्रंथि (थायराइड) सही तरीके से काम करे तो संतोषजनक दर पर शरीर के उपापचय (मेटाबोलिज़म) के कार्य के लिए आवश्यक हार्मोन की सही मात्रा बनी रहेगी। जैसे-जैसे हार्मोन का उपयोग होता रहता है, अवटुग्रंथि (थायराइड) उसकी प्रतिस्थापना करता रहता है। अवटुग्रंथि, रक्त की धारा में हार्मोन की मात्रा को पिट्यूटरी ग्रंथि को संचालित करके नियंत्रित करता है। जब मस्तिष्क के नीचे खोपड़ी के बीच में स्थित पिट्यूटरी ग्रंथि को यह पता चलता है कि अवटुग्रंथि हार्मोन की कमी हुई है या उसकी मात्रा अधिक है तो वह अपने हार्मोन (टीएसएच) को समायोजित करता है और अवटुग्रंथि को बताता है कि क्या करना है।

अवटुग्रंथि बीमारी के क्या कारण है?

अवटुग्रंथि बीमारी के कई कारण हैं।

हाइपोथाइराडिज़्म के कारण निम्नलिखित हैं-

  • थाइरोडिटिस में अवटुग्रंथि सूज जाती है। इससे हार्मोन आवश्यकता से कम बनता है।
  • हशिमोटो का थाइरोडिटिस असंक्राम्य (इम्यून) प्रणाली की बीमारी है जिसमें दर्द नहीं होता। यह वंशानुगत बीमारी है।
  • पोस्टपरटम थाइरोडिटिस प्रसव के बाद 5 से 9 प्रतिशत महिलाओं को होती है।
  • आयोडीन की कमी एक ऐसी समस्या है जो विश्व में लगभग एक करोड़ लोगों को है। अवटुग्रंथि आयोडिन का उपयोग हार्मोन बनाने के लिए करता है।
  • अकार्य अवटुग्रंथि 4000 में एक नवजात शिशु को होता है। यदि इस समस्या का समाधान न किया गया हो तो बच्चा शारीरिक और मानसिक रूप से पिछड़ सकता है।

हाइपरथाइराडिज़्म के कारण निम्नलिखित हैं-

  • ग्रेव बीमारी में पूरा अवटुग्रंथि अति सक्रिय हो जाता है और अधिक हार्मोन बनाने लगता है।
  • नोड्यूल्स अवटुग्रंथि में भी अति सक्रिय हो जाता है।
  • थाइरोडिटिस एक ऐसी बीमारी है जिसमें दर्द हो भी सकता है या नहीं भी हो सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि अवटुग्रंथि(थाइराड) में ही रखे गए हार्मोन निर्मुक्त हो जाए जिससे कुछ सप्ताह या महीनों के लिए हाइपरथारोडिज़्म की बीमारी हो जाए। दर्दरहित थाईरोडिटिस अक्सर प्रसव के बाद महिला में पाया जाता है।
  • अत्यधिक आयोडिन कई औषधियों में पाया जाता है जिससे किसी-किसी में अवटुग्रंथि या तो बहुत अधिक या फिर बहुत कम हार्मोन बनाने लगता है।

हाइपोथायरोडिज़्म और हाइपरथायरोडिज़्म के लक्षण क्या-क्या है?

हाइपोथायरोडिज़्म के निम्नलिखित लक्षण है:

  • थकावट
  • अक्सर और अधिक मासिक-धर्म
  • स्मरणशक्ति में कमी
  • वजन बढ़ना
  • सूखी और रूखी त्वचा और बाल
  • कर्कश वाणी
  • सर्दी को सह नहीं पाना

हाइपरथायरोडिज़्म के निम्नलिखित लक्षण है:

  • चिड़-चिड़ापन/अधैर्यता
  • मांस-पेशियों में कमजोरी/कंपकपीं
  • मासिक-धर्म अक्सर न होना या बहुत कम होना
  • वजन घटना
  • नींद ठीक से न आना
  • अवटुग्रंथि का बढ़ जाना
  • आंख की समस्या या आंख में जलन
  • गर्मी के प्रति संवेदनशीलता

यदि अवटुग्रंथि की बीमारी जल्दी पकड़ में आ जाती है तो लक्षण दिखाई देने से पहले उपचार से यह ठीक हो सकता है। अवटुग्रंथि जीवन भर रहता है। ध्यानपूर्वक इसके प्रबंधन से अवटुग्रंथि (थाइराड) से पीड़ित व्यक्ति अपना जीवन स्वस्थ और सामान्य रूप से जी सकते हैं।

घुटनों का दर्द

कारणः

घुटनों का दर्द निम्नलिखित कारणों से हो सकता हैः

  • आर्थराइटिस- लूपस जैसा- रीयूमेटाइड, आस्टियोआर्थराइटिस और गाउट सहित अथवा संबंधित ऊतक विकार
  • बरसाइटिस- घुटने पर बार-बार दबाव से सूजन (जैसे लंबे समय के लिए घुटने के बल बैठना, घुटने का अधिक उपयोग करना अथवा घुटने में चोट)
  • टेन्टीनाइटिस- आपके घुटने में सामने की ओर दर्द जो सीढ़ियों अथवा चढ़ाव पर चढ़ते और उतरते समय बढ़ जाता है। यह धावकों, स्कॉयर और साइकिल चलाने वालों को होता है।
  • बेकर्स सिस्ट- घुटने के पीछे पानी से भरा सूजन जिसके साथ आर्थराइटिस जैसे अन्य कारणों से सूजन भी हो सकती है। यदि सिस्ट फट जाती है तो आपके घुटने के पीछे का दर्द नीचे आपकी पिंडली तक जा सकता है।
  • घिसा हुआ कार्टिलेज (उपास्थि)(मेनिस्कस टियर)- घुटने के जोड़ के अंदर की ओर अथवा बाहर की ओर दर्द पैदा कर सकता है।
  • घिसा हुआ लिगमेंट (ए सी एल टियर)- घुटने में दर्द और अस्थायित्व उत्पन्न कर सकता है।
  • झटका लगना अथवा मोच- अचानक अथवा अप्राकृतिक ढंग से मुड़ जाने के कारण लिगमेंट में मामूली चोट
  • जानुफलक (नीकैप) का विस्थापन
  • जोड़ में संक्रमण
  • घुटने की चोट- आपके घुटने में रक्त स्राव हो सकता है जिससे दर्द अधिक होता है
  • श्रोणि विकार- दर्द उत्पन्न कर सकता है जो घुटने में महसूस होता है। उदाहरण के लिए इलियोटिबियल बैंड सिंड्रोम एक ऐसी चोट है जो आपके श्रोणि से आपके घुटने के बाहर तक जाती है।

घर में देखभाल

  • घुटने के दर्द के कई कारण है, विशेषकर जो अति उपयोग अथवा शारीरिक क्रिया से संबंधित है। यदि आप स्वयं इसकी देखभाल करें तो इसके अच्छे परिणाम निकलते हैं।
  • आराम करें और ऐसे कार्यों से बचे जो दर्द बढ़ा देते हैं, विशेष रूप से वजन उठाने वाले कार्य
  • बर्फ लगाएं। पहले इसे प्रत्येक घंटे 15 मिनट लगाएं। पहले दिन के बाद प्रतिदिन कम से कम 4 बार लगाएं।
  • किसी भी प्रकार की सूजन को कम करने के लिए अपने घुटने को यथा संभव ऊपर उठा कर रखें।
  • कोई ऐसा बैंडेज अथवा एलास्टिक स्लीव पहनकर घुटने को धीरे धीरे दबाएं। ये दोनों वस्तुएं लगभग सभी दवाइयों की दुकानों पर मिलती है। यह सूजन को कम कर सकता है और सहारा भी देता है।
  • अपने घुटनों के नीचे अथवा बीच में एक तकिया रखकर सोएं।

रक्त चाप

रक्त नलिका की भित्ती पर परिचरण रक्त के दबाव को रक्त चाप कहते हैं। धमनियां वह नलिका है जो पंप करने वाले हृदय से रक्त को शरीर के सभी ऊतकों (टिशू) और इंद्रियों तक ले जाते हैं। हृदय, रक्त को धमनियों में पंप करके धमनियों में रक्त प्रवाह को विनियमित करता है और इसपर लगने वाले दबाव को ही रक्तचाप कहते हैं।

परंपरा के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्तचाप, सिस्टोलिक/डायास्टोलिक रक्तचाप के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। जैसे कि 120/80। सिस्टोलिक अर्थात ऊपर का नंबर धमनियों में दाब को दर्शाता है। इसमें हृदय की मांसपेशियां संकुचित होकर धमनियों में रक्त को पंप करती हैं। डायालोस्टिक रक्त चाप अर्थात नीचे वाला नंबर धमनियों में उस दाब को दर्शाता है जब संकुचन के बाद हृदय की मांस पेशियां शिथिल हो जाती है। रक्तचाप हमेशा उस समय अधिक होता है जब हृदय पंप कर रहा होता है बनिस्बत जब वह शिथिल होता है।

निम्न रक्तचाप क्या है?

निम्न रक्तचाप (हाइपरटेंशन) वह दाब है जिससे धमनियों और नसों में रक्त का प्रवाह कम होने के लक्षण या संकेत दिखाई देते हैं। जब रक्त का प्रवाह कफी कम होता हो तो मस्तिष्क, हृदय तथा गुर्दे जैसे महत्वपूर्ण इंद्रियों में ऑक्सीजन और पौष्टिक पदार्थ नहीं पहुंच पाते जिससे ये इंद्रियां सामान्य रूप से काम नहीं कर पाती और इससे यह स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकती है।

उच्च रक्तचाप के विपरीत, निम्न रक्तचाप की पहचान मूलतः लक्षण और संकेत से होती है, न कि विशिष्ट दाब नंबर के। किसी-किसी का रक्तचाप 90/50 होता है लेकिन उसमें निम्न रक्त चाप के कोई लक्षण दिखाई नहीं पड़ते हैं और इसलिए उन्हें निम्न रक्तचाप नहीं होता तथापि ऐसे व्यक्तियों में जिनका रक्तचाप उच्च है और उनका रक्तचाप यदि 100/60 तक गिर जाता है तो उनमें निम्न रक्तचाप के लक्षण दिखाई देने लगते हैं।

यदि किसी को निम्न रक्तचाप के कारण चक्कर आता हो या मितली आती हो या खड़े होने पर बेहोश होकर गिर पड़ता हो तो उसे आर्थोस्टेटिक उच्च रक्तचाप कहते हैं। खड़े होने पर निम्न दाब के कारण होने वाले प्रभाव को सामान्य व्यक्ति शीघ्र ही काबू में कर लेता है। लेकिन जब पर्याप्त रक्तचाप के कारण चक्रीय धमनी (कोरोनरी आर्टेरी)( वह धमनी जो हृदय के मांस पेशियों को रक्त की आपूर्ति करती है) में रक्त की आपूर्ति नहीं होती है तो व्यक्ति को सीने में दर्द हो सकता है या दिल का दौरा पड़ सकता है। जब गुर्दों में अपर्याप्त मात्रा में खून की आपूर्ति होती है तो गुर्दे शरीर से यूरिया और क्रिएटाइन जैसे अपशिष्टों (वेस्ट) को निकाल नहीं पाते जिससे रक्त में इनकी मात्रा अधिक हो जाती है। आघात (शॉक) एक ऐसी स्थिति है जिससे जीवन को खतरा हो सकता है। निम्न रक्तचाप की स्थिति में गुर्दे, हृदय, फेफड़े तथा मस्तिष्क तेजी से खराब होने लगते हैं।

उच्च रक्तचाप क्या है?

130/80 से ऊपर का रक्तचाप, उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन कहलाता है। इसका अर्थ है कि धमनियों में उच्च चाप (तनाव) है। उच्च रक्तचाप का अर्थ यह नहीं है कि अत्यधिक भावनात्मक तनाव हो। भावनात्मक तनाव व दबाव अस्थायी तौर पर रक्त के दाब को बढ़ा देते हैं। सामान्यतः रक्तचाप 120/80 से कम होनी चाहिए और 120/80 तथा 139/89 के बीच का रक्त का दबाव पूर्व उच्च रक्तचाप (प्री हाइपरटेंशन) कहलाता है और 140/90 या उससे अधिक का रक्तचाप उच्च समझा जाता है।

उच्च रक्तचाप से हृदय रोग, गुर्दे की बीमारी, धमनियों का सख्त हो जाने, आंखे खराब होने और मस्तिष्क खराब होने का जोखिम बढ़ जाता है। उच्च रक्त चाप का निदान महत्वपूर्ण है जिससे रक्त चाप को सामान्य करके जटिलताओं को रोकने का प्रयास संभव हो।

एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति का सिस्टोलिक रक्तचाप पारा के 90 और 120 मिलिमीटर के बीच होता है। सामान्य डायालोस्टिक रक्तचाप पारा के 60 से 80 मि.मि. के बीच होता है। वर्तमान दिशा-निर्देशों के अनुसार सामान्य रक्तचाप 120/80 होना चाहिए।

मोटापा

मोटापा के कारण

  • मोटापा और शरीर का वजन बढ़ना ऊर्जा के सेवन और ऊर्जा के उपयोग के बीच असंतुलन के कारण होता है।
  • अधिक चर्बीयुक्त आहार का सेवन करना भी मोटापा का कारण है।
  • कम व्यायाम करना और स्थिर जीवन-यापन मोटापे का प्रमुख कारण है।
  • असंतुलित व्यवहार औऱ मानसिक तनाव की वजह से लोग ज्यादा भोजन करने लगते हैं, जो मोटापा का कारण बनता है।
  • शारीरिक क्रियाओं के सही ढंग से नहीं होने पर भी शरीर में चर्बी जमा होने लगती है।
  • बाल्यावस्था और युवावस्था के समय का मोटापा व्यस्क होने पर भी रह सकता है।

शरीर का उचित वजन

एक युवा व्यक्ति के शरीर का अपेक्षित वजन उसकी लंबाई के अनुसार होना चाहिए, जिससे कि उसका शारीरिक गठन अनुकूल लगे। शरीर के वजन को मापने के लिए सबसे साधारण उपाय है बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआइ) और यह शरीर के व्यक्ति की लंबाई को दुगुना कर उसमें वजन किलोग्राम से भाग देकर निकाला जाता है।

बीएमआई
< 18.5 : अस्वस्थ
18.5-23 : साधारण
23.1-30 : ज्यादा वजन
> 30 : मोटापा

वजन कम करने के लिए लिये उपभोग की जानेवाली खाद्य पदार्थों में यह ध्यान रखना चाहिए कि उनमें प्रोटीन की मात्रा अधिक हो और चर्बी तथा कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम।

मोटापा कैसे घटायें

  • तला खाना कम खायें
  • ज्यादा से ज्यादा फल और सब्जी खायें।
  • रेशायुक्त खाद्य पदार्थ का सेवन अधिक से अधिक करें जैसे अनाज, चना और अंकुरित चना।
  • शरीर के वजन को संतुलित रखने के लिए रोजाना कसरत करें।
  • धीरे, परंतु लगातार वजन को कम करें।
  • ज्यादा उपवास से शारीरिक नुकसान हो सकता है।
  • शारीरिक क्षमता को संतुलित रखने के लिए विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए।
  • थोड़-थोड़े अंतराल पर थोड़ा-थोड़ा खाना खायें।
  • भोजन में चीनी, चर्बीयुक्त खाद्य पदार्थ और अल्कोहल कम लें।
  • कम चर्बी वाले दूध का सेवन करें।

जुकाम

जुकाम कैसे फैलता है?

जुकाम छुआ-छूत की बीमारी है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति को जुकाम है और यदि वह छींकता है या अपने नाक को पकड़ने के बाद दूसरे को छूता है तो उस व्यक्ति को भी जुकाम हो जाता है जिसके सामने छींका गया है या जिसे पकड़ा है। इसके अतिरिक्त जुकाम के वायरस पेन, पुस्तक और कॉफी के कप में कई घंटे तक रहते हैं और इस प्रकार के वस्तुओं से भी यह फैल सकता है। खांसी और छींक वास्तव में इसके फैलने के प्रमुख कारण है।

क्या सर्दी में बाहर निकलने पर जुकाम लग सकता है?

सर्दी में बाहर निकलने पर जुकाम लगने की आशंका बहुत कम है। जुकाम सामान्यतः उस व्यक्ति के संपर्क में आने पर लगता है जिसे जुकाम हो। तापमान से इसका इतना असर नहीं पड़ता।

मधुमेह

मधुमेह होने पर शरीर में भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करने की सामान्य प्रक्रिया तथा होने वाले अन्य परिवर्तनों का विवरण नीचे दिया जा रहा है-

भोजन का ग्लूकोज में परिवर्तित होनाः हम जो भोजन करते हैं वह पेट में जाकर एक प्रकार के ईंधन में बदलता है जिसे ग्लूकोज कहते हैं। यह एक प्रकार की शर्करा होती है। ग्लूकोज रक्त धारा में मिलता है और शरीर की लाखों कोशिकाओं में पहुंचता है। ग्लूकोज कोशिकाओं में मिलता हैः अग्नाशय(पेनक्रियाज) वह अंग है जो रसायन उत्पन्न करता है और इस रसायन को इनसुलिन कहते हैं। इनसुलिन भी रक्तधारा में मिलता है और कोशिकाओं तक जाता है। ग्लूकोज से मिलकर ही यह कोशिकाओं तक जा सकता है। कोशिकाएं ग्लूकोज को ऊर्जा में बदलती हैः शरीर को ऊर्जा देने के लिए कोशिकाएं ग्लूकोज को उपापचित (जलाती) करती है। मधुमेह होने पर होने वाले परिवर्तन इस प्रकार हैं: मधुमेह होने पर शरीर को भोजन से ऊर्जा प्राप्त करने में कठिनाई होती है। भोजन ग्लूकोज में बदलता हैः पेट फिर भी भोजन को ग्लूकोज में बदलता रहता है। ग्लूकोज रक्त धारा में जाता है। किन्तु अधिकांश ग्लूकोज कोशिकाओं में नही जा पाते जिसके कारण इस प्रकार हैं:

  1. इनसुलिन की मात्रा कम हो सकती है।
  2. इनसुलिन की मात्रा अपर्याप्त हो सकती है किन्तु इससे रिसेप्टरों को खोला नहीं जा सकता है।
  3. पूरे ग्लूकोज को ग्रहण कर सकने के लिए रिसेप्टरों की संख्या कम हो सकती है।

कोशिकाएं ऊर्जा पैदा नहीं कर सकती हैः

अधिकांश ग्लूकोज रक्तधारा में ही बना रहता है। यही हायपर ग्लाईसीमिआ (उच्च रक्त ग्लूकोज या उच्च रक्त शर्करा) कहलाती है। कोशिकाओं में पर्याप्त ग्लूकोज न होने के कारण कोशिकाएं उतनी ऊर्जा नहीं बना पाती जिससे शरीर सुचारू रूप से चल सके।

मधुमेह के लक्षणः

मधुमेह के मरीजों को तरह-तरह के अनुभव होते हैं। कुछेक इस प्रकार हैं:

  • बार-बार पेशाब आते रहना (रात के समय भी)
  • त्वचा में खुजली
  • धुंधला दिखना
  • थकान और कमजोरी महसूस करना
  • पैरों में सुन्न या टनटनाहट होना
  • प्यास अधिक लगना
  • कटान/घाव भरने में समय लगना
  • हमेशा भूख महसूस करना
  • वजन कम होना
  • त्वचा में संक्रमण होना

हमें रक्त शर्करा पर नियंत्रण क्यों रखना चाहिए ?

  • उच्च रक्त ग्लूकोज अधिक समय के बाद विषैला हो जाता है।
  • अधिक समय के बाद उच्च ग्लूकोज, रक्त नलिकाओं, गुर्दे, आंखों और स्नायुओं को खराब कर देता है जिससे जटिलताएं पैदा होती है और शरीर के प्रमुख अंगों में स्थायी खराबी आ जाती है।
  • स्नायु की समस्याओं से पैरों अथवा शरीर के अन्य भागों की संवेदना चली जा सकती है। रक्त नलिकाओं की बीमारी से दिल का दौरा पड़ सकता है, पक्षाघात और संचरण की समस्याएं पैदा हो सकती है।
  • आंखों की समस्याओं में आंखों की रक्त नलिकाओं की खराबी (रेटीनोपैथी), आंखों पर दबाव (ग्लूकोमा) और आंखों के लेंस पर बदली छाना (मोतियाबिंद)
  • गुर्दे की बीमारी (नैफ्रोपैथी) का कारण, गुर्दा रक्त में से अपशिष्ट पदार्थ की सफाई करना बंद कर देती है। उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) से हृदय को रक्त पंप करने में कठिनाई होती है।

उच्च रक्तचाप के विषय में और अधिक जानकारीः

हृदय धड़कने से रक्त नलिकाओं में रक्त पंप होता है और उनमें दबाव पैदा होता है। किसी व्यक्ति के स्वस्थ होने पर रक्त नलिकाएं मांसल और लचीली होती है। जब हृदय उनमें से रक्त संचार करता है तो वे फैलती है। सामान्य स्थितियों में हृदय प्रति मिनट 60 से 80 की गति से धड़कता है। हृदय की प्रत्येक धड़कन के साथ रक्त चाप बढ़ता है तथा धड़कनों के बीच हृदय शिथिल होने पर यह घटता है। प्रत्येक मिनट पर आसन, व्यायाम या सोने की स्थिति में रक्त चाप घट-बढ़ सकता है किंतु एक अधेड़ व्यक्ति के लिए यह 130/80 एम एम एचजी से सामान्यतः कम ही होना चाहिए। इस रक्त चाप से कुछ भी ऊपर उच्च माना जाएगा।

उच्च रक्त चाप के सामान्यतः कोई लक्षण नहीं होते हैं; वास्तव में बहुत से लोगों को सालों साल रक्त चाप बना रहता है किंतु उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं हो पाती है। इससे तनाव, हतोत्साह अथवा अति संवेदनशीलता से कोई संबंध नहीं होता है। आप शांत, विश्रान्त व्यक्ति हो सकते हैं तथा फिर भी आपको रक्तचाप हो सकता है। उच्च रक्तचाप पर नियंत्रण न करने से पक्षाघात, दिल का दौरा, संकुलन हृदय गति रुकना या गुर्दे खराब हो सकते हैं। ये सभी प्राण घातक हैं। यही कारण है कि उच्च रक्तचाप को "निष्क्रिय प्राणघातक" कहा जाता है।

कोलेस्ट्रोल के विषय में और अधिक जानकारीः

शरीर में उच्च कोलेस्ट्रोल का स्तर होने से दिल का दौरा पड़ने का का खतरा चार गुना बढ़ जाता है। रक्तधारा में अधिक कोलेस्ट्रोल होने से धमनियों की परतो पर प्लेक (मोटी सख्त जमा) जमा हो जाती है। कोलेस्ट्रोल या प्लेक पैदा होने से धमनियां मोटी, कड़ी और कम लचीली हो जाती है जिसमें कि हृदय के लिए रक्त संचारण धीमा और कभी-कभी रूक जाता है। जब रक्त संचार रुकता है तो छाती में दर्द अथवा कंठशूल हो सकता है। जब हृदय के लिए रक्त संचार अत्यंत कम अथवा बिल्कुल बंद हो जाता है तो इसका परिणाम दिल का दौड़ा पड़ने में होता है। उच्च रक्त चाप और उच्च कोलेस्ट्रोल के अतिरिक्त यदि मधुमेह भी हो तो पक्षाघात और दिल के दौरे का खतरा 16 गुना बढ़ जाता है।

मधुमेह का प्रबंधन

मधुमेह होने के कारण पैदा होने वाली जटिलताओं की रोकथाम के लिए नियमित आहार, व्यायाम, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, सफाई और संभावित इनसुलिन इंजेक्शन अथवा खाने वाली दवाइयों (डॉक्टर के सुझाव के अनुसार) का सेवन आदि कुछ तरीके हैं। व्यायामः व्यायाम से रक्त शर्करा स्तर कम होता है तथा ग्लूकोज का उपयोग करने के लिए शारीरिक क्षमता पैदा होती है। प्रतिघंटा 6 कि.मी की गति से चलने पर 30 मिनट में 135 कैलोरी समाप्त होती है जबकि साइकिल चलाने से लगभग 200 कैलोरी समाप्त होती है। मधुमेह में त्वचा की देख-भालः मधुमेह के मरीजों को त्वचा की देखभाल करना अत्यावश्यक है। भारी मात्रा में ग्लूकोज से उनमें कीटाणु और फफूंदी लगने की संभावना बढ़ जाती है। चूंकि रक्त संचार बहुत कम होता है अतः शरीर में हानिकारक कीटाणुओं से बचने की क्षमता न के बराबर होती है। शरीर की सुरक्षात्मक कोशिकाएं हानिकारक कीटाणुओं को खत्म करने में असमर्थ होती है। उच्च ग्लूकोज की मात्रा से निर्जलीकरण(डी-हाइड्रेशन) होता है जिससे त्वचा सूखी हो जाती है तथा खुजली होने लगती है।

शरीर की नियमित जांच करें तथा निम्नलिखित में से कोई भी बाते पाये जाने पर डॉक्टर से संपर्क करें

  • त्वचा का रंग, कांति या मोटाई में परिवर्तन
  • कोई चोट या फफोले
  • कीटाणु संक्रमण के प्रारंभिक चिह्न जैसे कि लालीपन, सूजन, फोड़ा या छूने से त्वचा गरम हो
  • उरुमूल, योनि या गुदा मार्ग, बगलों या स्तनों के नीचे तथा अंगुलियों के बीच खुजलाहट हो, जिससे फफूंदी संक्रमण की संभावना का संकेत मिलता है
  • न भरने वाला घाव

त्वचा की सही देखभाल के लिए नुस्खेः

  • हल्के साबुन या हल्के गरम पानी से नियमित स्नान
  • अधिक गर्म पानी से न नहाएं
  • नहाने के बाद शरीर को भली प्रकार पोछें तथा त्वचा की सिलवटों वाले स्थान पर विशेष ध्यान दें। वहां पर अधिक नमी जमा होने की संभावना होती है। जैसा कि बगलों, उरुमूल तथा उंगलियों के बीच। इन जगहों पर अधिक नमी से फफूंदी संक्रमण की अधिकाधिक संभावना होती है।
  • त्वचा सूखी न होने दें। जब आप सूखी, खुजलीदार त्वचा को रगड़ते हैं तो आप कीटाणुओं के लिए द्वार खोल देते हैं।
  • पर्याप्त तरल पदार्थों को लें जिससे कि त्वचा पानीदार बनी रहे।

घावों की देखभालः

समय-समय पर कटने या कतरने को टाला नहीं जा सकता है। मधुमेह की बीमारी वाले व्यक्तियों को मामूली घावों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि संक्रमण से बचा जा सके। मामूली कटने और छिलने का भी सीधे उपचार करना चाहिएः

  • यथाशीघ्र साबुन और गरम पानी से धो डालना चाहिए
  • आयोडिन युक्त अलकोहाल या प्रतिरोधी द्रवों को न लगाएं क्योंकि उनसे त्वचा में जलन पैदा होती है
  • केवल डॉक्टरी सलाह के आधार पर ही प्रतिरोधी क्रीमों का प्रयोग करें
  • विसंक्रमित कपड़ा पट्टी या गाज से बांध कर जगह को सुरक्षित करें। जैसे कि बैंड एड्स

निम्नलिखित मामलों में डॉक्टर से संपर्क करें:

  • यदि बहुत अधिक कट या जल गया हो
  • त्वचा पर कहीं पर भी ऐसा लालीपन, सुजन, मवाद या दर्द हो जिससे कीटाणु संक्रमण की आशंका हो
  • रिंगवर्म, जननेंद्रिय में खुजली या फफूंदी संक्रमण के कोई अन्य लक्षण

मधुमेह होने पर पैरों की देखभालः

मधुमेह की बीमारी में आपके रक्त में ग्लूकोज के उच्च स्तर के कारण स्नायु खराब होने से संवेदनशीलता जाती रहती है। पैरों की देखभाल के कुछ साधारण उपाय इस प्रकार है:

पैरों की नियमित जांच करें:

  • पर्याप्त रोशनी में प्रतिदिन पैरों की नजदीकी जांच करें। देखें कि कहीं कटान और कतरन, त्वचा में कटाव, कड़ापन, फफोले, लाल धब्बे और सूजन तो नहीं है। उंगलियों के नीचे और उनके बीच देखना न भूलें।
  • पैरों की नियमित सफाई करें:पैरों को हल्के साबुन से और गरम पानी से प्रतिदिन साफ करें।
  • पैरों की उंगलियों के नाखूनों को नियमित काटते रहें
  • पैरों की सुरक्षा के लिए जूते पहने

मधुमेह संबंधी आहार

यह आहार भी एक स्वरस्थक व्यहक्ति के सामान्य आहार की तरह ही है, ताकि रोगी की पोषण संबंधी पोषण आवश्यकता को पूरी की जा सके एवं उसका उचित उपचार किया जा सके। इस आहार में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कुछ कम है लेकिन भोजन संबंधी अन्य सिद्धांतो के अनुसार उचित मात्रा में है।

मधुमेह संबंधी समस्त आहार के लिए निम्नलिखित खाद्य पदार्थो से बचा जाना चाहिए:

  • जड़ एवं कंद
  • मिठाइयाँ, पुडिंग और चॉकलेट
  • तला हुआ भोजन
  • सूखे मेवे
  • चीनी
  • केला, चीकू, सीताफल आदि जैसे फल

आहार नमूना

खाद्य सामग्री

शाकाहारीभोजन
(ग्राम में)

मांसाहारी भोजन(ग्राम में)

अनाज

२००

२५०

दालें

६०

२०

हरी पत्तेदार सब्जियाँ

२००

२००

फल

२००

२००

दूध (डेयरी का)

४००

२००

तेल

२०

२०

मछली/ चिकन-बगैर त्वचा का

-

१००

अन्य सब्जियाँ

२००

२००

ये आहार आपको निम्न चीजें उपलब्ध कराता है-

कैलोरी

१६००

प्रोटीन

६५ ग्राम

वसा

४० ग्राम

कार्बोहाइड्रेट

२४५ ग्राम

वितरण

शाकाहारी

मांसाहारी

बेड टी, कॉफी या चाय

१ कप

१ कप

नाश्ता
मक्खन के साथ टोस्ट
कॉफी या चाय

 

१ कप

१ कप

 

१ कप

१ कप

दोपहर का भोजन
चावल
साम्भर
हरी पत्तेदार सब्जी
दही
टमाटर या खट्टे फल का अचार

 

२ कटोरी
१ कटोरी
१ कटोरी
१/२ कटोरी

१ टुकड़ा

 

२ कटोरी
१ कटोरी
१ कटोरी
१/२ कटोरी

१ टुकड़ा

चाय या कॉफी

उपमा

१ कप

३/४ कटोरी

१ कप

१ कटोरी

रात का भोजन
फुलका

 

 

दाल

१ कटोरी

-

दही

१/२ कटोरी

-

मछली/चिकन

-

२ टुकड़े

शोरबे के साथ अन्य सब्जियाँ

१ कटोरी

१ कटोरी

भुना हुआ पापड़

टमाटर या ककड़ी

सोने से पहले दूध

१ कप

१ कप

बाल झरना

बाल झड़ना क्या है ?

बालों का झड़ना हल्के से लेकर गंजा होने तक का हो सकता है। बाल गिरने के कई अलग-अलग कारण है। चिकित्सा विज्ञान के आधार पर बालों का झड़ना कई प्रकार के हो सकते हैं, जिनमें ये भी सम्मिलित हैं:

  • लंबी बीमारी, बड़ी शल्य क्रिया अथवा गंभीर संक्रमण जैसे बड़े शारीरिक तनाव से दो या तीन महीने के बाद बालों का झड़ना एक सामान्य प्रक्रिया है। हार्मोन स्तर में आकस्मिक बदलाव के बाद भी यह हो सकता है, विशेषकर स्त्रियों में शिशु को जन्म देने के बाद यह हो सकता है। साधारण तरीके से बाल झड़ते रहते हैं किन्तु गंजापन दिखाई नहीं देता है।
  • औषध के गौण प्रभावः बालों का झड़ना कुछेक औषधियों के खाने के कारण हो सकता है और यह अचानक पूरे सिर पर प्रभावी हो सकता है।
  • चिकित्सकीय बीमारी के लक्षणः बालों का झड़ना चिकित्सा बीमारी का लक्षण हो सकता है जैसे कि अवटुग्रंथि(थाइरॉयड) विकृति, सेक्स हार्मोन में असंतुलन या गंभीर पोषाहार समस्या विशेषकर प्रोटीन, लौह, जस्ता या बायोटीन की कमी। यह कमी खान-पान में परहेज करने वालों और जिन महिलाओं को मासिक धर्म में बहुत ज्यादा रक्त स्राव होता है उनमें यह आम है।
  • सिर की त्वचा (खोपड़ी)- इसमें फफूंद-खोपड़ी में जब विशेष प्रकार की फफूंद से संक्रमण हो जाता है तो बीच बीच में बाल झड़ने लगते हैं। बच्चों में आमतौर पर बीच-बीच के बाल झड़ने का संक्रमण पाया जाता है।

वंशानुगत गंजापन- पुरुषों में जिस प्रकार बाल झड़ते रहते हैं अर्थात मांग से बालों का झड़ना और/या सिर के ऊपर से बालों का झड़ना, उसी प्रकार इसमें भी पुरुषों के बाल झड़ते हैं। इस प्रकार बालों का झड़ना आम है और यह किसी भी समय यहां तक कि किशोरावस्था में भी आरंभ हो सकता है। इसके मुख्यतः तीन कारण हैं-वंशानुगत गंजापन, पुरुष हार्मोन और बढ़ती हुई आयु। महिलाओं में, सिर के आगे के भाग को छोड़कर पूरे हिस्से के बाल झड़ने लगते हैं।

लक्षणः

सामान्यतः हमारे लगभग 50 से 100 बाल हर दिन झड़ते हैं। यदि इससे ज्यादा बाल झड़ते हैं, तो यह चिंता का विषय है। यह भी देखा जा सकता है कि बाल पतले होने लगते है और एक या अधिक जगह पर गंजापन आ जाता है।

रोकथामः

तनाव कम कर, उचित आहार लेकर, बाल संवारने की उचित तकनीक अपनाकर और यदि संभव हो तो बालों को झड़ने से रोकनेवाली दवाइयों का उपयोग कर बालों के झड़ने की समस्या को रोका जा सकता है। फफूंद संक्रमण की वजह से बालों को झड़ने की समस्या को बालों की सफाई पर ध्यान देकर, दूसरों के ब्रश, कंघी, टोपी आदि का उपयोग न कर बचा जा सकता है। दवाइयों की सहायता से वंशानुगत गंजेपन के कुछ मामलों को रोका जा सकता है।

परजीवी (पैरासीटिक) कृमि संक्रमण

इसे नेमाटोड संक्रमण भी कहते हैं।

विवरण

  • परजीवी (पैरासाइट्स) वह कीटाणु है जो व्यक्ति में प्रवेश करके बाहर या भीतर (ऊतकों या इंद्रियों से) जुड़ जाती है और सारे पोषक तत्व को चूस लेती है। कुछ परजीवी अर्थात कृमि अंततः कमजोर पड़कर व्यक्ति में बीमारी फैलाते हैं।
  • कृमि (गोल कृमि) लंबे, आवरणहीन और बिना हड्डी वाले होते हैं। इनके बच्चे अंडे या कृमि कोष से डिंभक (लारवल) (सेता हुआ नया कृमि) के रूप में बढ़ते हुए त्वचा, मांसपेशियां, फेफड़ा या आंत(आंत या पाचन मार्ग) के उस ऊतक (टिशू) में कृमि के रूप बढ़ते जाते हैं जिसे वे संक्रमित करते हैं।

लक्षणः

  • कृमि के लक्षण उसके रहने के स्थान पर निर्भर करते हैं।
  • कोई लक्षण नहीं होता है या नगण्य होता है।
  • लक्षण एकाएक दिखने लगते हैं या कभी-कभी लक्षण दिखाई देने में 20 वर्षों से ज्यादा का समय लग जाता है।
  • एक बार में पूरी तरह निकल जाते हैं या मल में थोड़ा-थोड़ा करके निकलते हैं।
  • पाचन मार्ग (पेट, आंत, जठर, वृहदांत्र और मलाशय) आंत की कृमियों से मिलकर पेट दर्द, कमजोरी, डायरिया, भूख न लगना, वजन कम होना, उल्टी, अरक्तता, कुपोषण जैसे विटामिन (बी 12), खनिज(लौह), वसा और प्रोटीन की कमी को जन्म देती है. मलद्वार और योनि के आसपास खुजली, नींद न आना, बिस्तर में पेशाब और पेट दर्द पिनकृमि के संक्रमण के लक्षण हैं।
  • त्वचा-उभार, पीव लिए हुए फफोले, चेहरे पर बहुत ज्यादा सूजन, विशेषकर आंखों के आसपास
  • एलर्जी संबंधी प्रतिक्रिया-त्वचा लाल हो जाना, त्वचा में खुजली और मलद्वार के चारों ओर खुजली
  • जठर फ्लूकः बढ़ी हुई नाजुक जठर, ज्वर, पेट दर्द, डायरिया, त्वचा पीला पड़ना
  • लसिका युक्त-सूजे हुए हाथी के पाव जैसे या अंडग्रंथि।

कारणः

  1. ऊतक नेमाटोड्स या गोल कृमि
  2. आंतीय कृमि
  3. अस्करियासिस (गोल कृमि)- असकरियासिस कृमि के मल में इसके अंडे पाए जाते हैं जो प्रदूषित मृदा/सब्जियों के माध्यम से मनुष्य के भीतर अनजाने में ही चला जाता है। ये कृमि मनुष्य के अंतड़ियों में बढ़ते जाते हैं और रक्त के माध्यम से फेफड़ों आदि जैसे शरीर के अन्य भागों में चले जाते हैं। ये 40 से.मी. तक बढ़ सकते हैं।
  4. टेप कृमिः
  5. यह कृमि कई भागों में विभक्त होती है। ये पाचन मार्ग में पहुंचकर व्यक्ति के पोषक तत्व को चूसती है
  6. फिलारियासिसः
  7. विभिन्न समूहों की कृमि जो त्वचा और लसिका ऊतकों में पहुंच जाती है।

जोखिम कारक

  • मलीय संदूषित जल
  • अस्वास्थ्यकर स्थितियां
  • मांस या मछली को कच्चा या बिना पकाये खाना
  • पशुओं को अस्वास्थ्यकर वातावरण में पालना
  • कीड़ों व चूहों से संदूषण
  • रोगी और कमजोर व्यक्ति
  • अधिक मच्छरों व मक्खियों का होना
  • खेल के मैदान जहां बच्चे मिट्टी के संपर्क में आते हों और वहां कुछ खाते हों।

सामान्य उपचार -

  • तरल पदार्थ
  • आराम
  • परिवार के सभी सदस्यों का परीक्षण और उपचार
  • उपचार पूरा होने तक अंडर वियर, कपड़े, चादर आदि को गर्म पानी से धोना

हाथ धोते रहना, बिना पकाया व कच्चा आहार न लेना, फल व सब्जियों को अच्छी तरह धोना और पानी को उबाल कर पीना।

निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन)

निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन ) क्या है?
'शरीर से अत्यधिक मात्रा में तरल पदार्थ समाप्त हो जाना' निर्जलीकरण(डी-हाइड्रेशन) कहलाता है। हमारे शरीर को कार्य करने के लिए निर्धारित मात्रा में कम से कम 8 गिलास के बराबर (एक लीटर या सवा लीटर) तरल पदार्थ शरीर के लिए आवश्यक होता है जो व्यक्ति के कार्य करने की क्षमता और आयु पर निर्भर करता है। परंतु अधिक कार्यशील व्यक्ति को इससे दो या तीन गुना अधिक तरल पदार्थ की आवश्यकता होती है। हम जो तरल पदार्थ लेते हैं, वह उस तरल पदार्थ का स्थान ले लेती है जो हमारे शारीरिक कार्य को करने के लिए आवश्यक होता है। यदि हम, हमारे शरीर की आवश्यकता से कम तरल पदार्थ लेते हैं, तब निर्जलीकरण(डी-हाइड्रेशन) हो जाता है।

निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन ) क्यों होता है?
अंतड़ियों में यदि दहन हो रहा हो या उसे नुकसान पहुंच रहा हो अथवा कीटाणु या वायरस के जमा होने की वजह से अंतड़ियां अवशोषण करने की क्षमता से अधिक तरल पदार्थ उत्पन्न कर रहा हो तब आंत के मार्ग में अधिक तरल पदार्थ निकल जाता है जिससे निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) होता है। पेय के रूप में तरल पदार्थ कम मात्र में लेने का कारण भूख न लगना या मिचली होना हो सकता है।

निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन ) के क्या लक्षण हैं?
निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) का विश्वसनीय लक्षण कुछ ही दिनों में वजन का तेजी से कम होना है (कुछ मामलों में कुछ घंटो में)। 10 प्रतिशत से अधिक वजन तेजी से कम होना गंभीर लक्षण माना जाता है। इन लक्षणों को वास्तविक बीमारी से अलग करके देखना काफी मुश्किल काम है। सामान्यतः निर्जलीकरण(डी-हाइड्रेशन) के निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैं। अधिक प्यास लगना, मुंह सूखना, कमजोरी व चक्कर आना (विशेषकर जब व्यक्ति खड़ा होता है) मूत्र का गाढ़ा होना या कम पेशाब आना। अत्यधिक निर्जलीकरण (डी-हाइड्रेशन) शरीर का रसायन ही बदल देता है। इसमें गुर्दे खराब हो जाते हैं और ये जीवन के लिए घातक हो सकते हैं।

कब्ज

कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है। सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। (एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है।

लक्षण
पेट में दर्द होना या सूजन हो जाना

कारण

  • कम रेशायुक्त भोजन का सेवन करना
  • शरीर में पानी का कम होना
  • कम चलना या काम करना
  • कुछ दवाओं का सेवन करना
  • बड़ी आंत में घाव या चोट के कारण यानि बड़ी आंत में कैंसर
  • थॉयरायड का कम बनना
  • कैल्सियम और पोटैशियम की कम मात्रा
  • मधुमेह के रोगियों में पाचन संबंधी समस्या
  • कंपवाद (पार्किंसन बीमारी)

साधारण उपाय

  • रेशायुक्त भोजन का अत्यधित सेवन करना, जैसे साबूत अनाज
  • ताजा फल और सब्जियों का अत्यधिक सेवन करना
  • पर्याप्त मात्रा में पानी पीना

ज्यादा समस्या आने पर चिकित्सक से सलाह लेना चाहिए।

कब्ज क्या है ?
कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है। सामान्य आवृति और अमाशय की गति व्यक्ति विशेष पर निर्भर करती है। (एक सप्ताह में 3 से 12 बार मल निष्कासन की प्रक्रिया सामान्य मानी जाती है।

लक्षण
पेट में दर्द होना या सूजन हो जाना

कारण

  • कम रेशायुक्त भोजन का सेवन करना
  • शरीर में पानी का कम होना
  • कम चलना या काम करना
  • कुछ दवाओं का सेवन करना
  • बड़ी आंत में घाव या चोट के कारण यानि बड़ी आंत में कैंसर
  • थॉयरायड का कम बनना
  • कैल्सियम और पोटैशियम की कम मात्रा
  • मधुमेह के रोगियों में पाचन संबंधी समस्या
  • कंपवाद (पार्किंसन बीमारी)

साधारण उपाय

  • रेशायुक्त भोजन का अत्यधित सेवन करना, जैसे साबूत अनाज
  • ताजा फल और सब्जियों का अत्यधिक सेवन करना
  • पर्याप्त मात्रा में पानी पीना

ज्यादा समस्या आने पर चिकित्सक से सलाह लेना चाहिए

ज्‍वर (बुखार)

मनुष्य के शरीर का सामान्‍य तापमान 37 डिग्री.से. या 98.6 फैरेनहाइट होता है। जब शरीर का तापमान इस सामान्‍य स्‍तर से ऊपर हो जाता है तो यह स्थिति ज्‍वर या बुखार कहलाती है। ज्‍वर कोई रोग नहीं है। यह केवल रोग का एक लक्षण है। किसी भी प्रकार के संक्रमण की यह शरीर द्वारा दी गई प्रतिक्रिया है। बढ़ता हुआ ज्‍वर रोग की गंभीरता के स्‍तर की ओर संकेत करता है।

कारण
निम्‍नलिखित रोग ज्‍वर का कारण हो सकते है-
1.  मलेरिया
2.  टायफॉयड
3.  तपेदिक (टी.बी.)
4.  गठिया रोग से संबंधित ज्‍वर
5.  खसरा
6.  कनफेड़े
7.  श्‍वसन संबंधी संक्रमण जैसे न्‍युमोनिया एवं सर्दी, खाँसी, टॉन्सिल, ब्रॉंन्‍कायटिस
आदि।
8. मूत्रतंत्र संक्रमण (यूरिनरी ट्रॅक्‍ट इन्‍फेक्‍शन)

साधारण ज्‍वर के लक्षण:

  • शरीर का तापमान 37.5 डि.से. या 100 फैरेनहाइट से अधिक
  • सिरदर्द
  • ठंड लगना
  • जोड़ों में दर्द
  • भूख में कमी
  • कब्‍ज होना
  • भूख कम होना एवं थकान

इसे पालन करने के सरल उपाय

  • रोगी को अच्‍छे हवादार कमरे में रखना चाहिये
  • बहुत सारे द्रव पदार्थ पीने को दें
  • स्‍वच्‍छ एवं मुलायम वस्‍त्र पहनाऍं
  • पर्याप्‍त विश्राम आवश्‍यक
  • यदि ज्‍वर 39.5 डिग्री से. या 103.0 फैरेनहाइट से अधिक हो या फिर 48 घंटों से अधिक समय हो गया हो तो डॉक्‍टर से परामर्श लें

ज्‍वर के दौरान लिये जानेवाले खाद्य पदार्थ-

  • खूब सारा स्‍वच्‍छ एवं उबला हुआ पानी
  • शरीर को पर्याप्‍त कैलोरिज देने के लिये, ग्‍लूकोज, आरोग्‍यवर्धक पेय (हेल्‍थ ड्रिंक्‍स), फलों का रस आदि लेने की सलाह दी जाती है।
  • आसानी से पचनेवाला खाना जैसे चावल की कांजी, साबूदाने की कांजी, जौ का पानी आदि देना चाहिये।
  • दूध, रोटी एवं डबलरोटी (ब्रेड)
  • माँस, अंडे, मक्‍खन, दही एवं तेल में पकाये गये खाद्य पदार्थ न दें

जई (ओटस्)

  • जई में वसा एवं नमक की मात्रा कम होती है; वे प्राकृतिक लौह तत्व का अच्‍छा स्रोत है। कैल्शियम का भी उत्तम स्रोत होने के कारण, जई हृदय, अस्थि एवं नाखूनों के लिये आदर्श हैं।
  • ये घुलनशील रेशे (फायबर) का सर्वोत्तम स्रोत हैं। खाने के लिए दी जई के आधा कप पके हुये भोजन में लगभग 4 ग्राम विस्‍कस सोल्‍यूबल फायबर (बीटा ग्‍लूकोन) होता है। यह रेशा रक्‍त में से LDL कोलॅस्‍ट्रॉल को कम करता है, जो कि तथाकथित रूप से ‘’बैड’’ कोलेस्‍ट्रॉल कहलाता है।
  • जई अतिरिक्‍त वसा को शोषित कर लेते हैं एवं उन्‍हें हमारे पाचनतंत्र के माध्‍यम से बाहर कर देते हैं। इसीलिये ये कब्‍ज का इलाज उच्‍च घुलनशील रेशे की मदद से करते हैं एवं गैस्‍ट्रोइंटस्‍टाइनल क्रियाकलापों का नियमन करने में सहायक होते हैं।
  • जई से युक्‍त आहार रक्‍त शर्करा स्‍तर को भी स्थिर रखने में मदद करता है।
  • जई नाड़ी-तंत्र के विकारों में भी सहायक है।
  • जई महिलाओं में रजोनिवृत्ति से संबधित ओवरी एवं गर्भाशय संबंधी समस्‍याओं के निवारण में मदद करता है।
  • जई में कुछ अद्वितीय वसा अम्‍ल (फैटी एसिड्स) एवं ऐन्‍टी ऑक्सिडेन्‍टस् होते हैं जो विटामिन ई के साथ एकत्रित होकर कोशिका क्षति की रोकथाम करता है एवं कर्करोग कैंसर के खतरा को कम करता है।

अल्सर

पाचन पथ के अस्तर पर घाव अल्सर हैं। अल्सर अधिकतर ड्यूडेनम (आंत का पहला भाग) में होता है। दूसरा सबसे आम भाग पेट है (आमाशय अल्सर)।

अल्सर के क्या कारण हैं?

  • जीवाणु का एक प्रकार हेलिकोबैक्‍टर पाइलोरी कई अल्सरों का कारण है।
  • अम्‍ल तथा पेट द्वारा बनाये गये अन्य रस पाचन पथ के अस्तर को जलाकर अल्सर होने में योगदान कर सकते हैं। यह तब होता है जब शरीर बहुत ज्यादा अम्ल बनाता है या पाचन पथ का अस्तर किसी वज़ह से क्षतिग्रस्त हो जाए।
  • व्यक्ति में शारीरिक या भावनात्मक तनाव पहले से ही उपस्थित अल्सर को बढ़ा सकते हैं।
  • अल्सर कुछ दवाओं के निरंतर प्रयोग, जैसे दर्द निवारक दवाओं के कारण भी हो सकता है।

अल्सर के संभावित लक्षण

  • जब आप खाते या पीते हैं तो बेहतर महसूस करते है तथा फिर 1 या 2 घंटे बाद स्थिति बदतर (ड्यूडेनल अल्सर) हो जाती है
  • जब आप खाते या पीते हैं तो अच्छा महसूस नहीं करते (पेट का अल्सर)
  • पेट दर्द जो रात में होता है
  • पेट में  भारीपन, फूला हुआ, जलन या हल्का दर्द महसूस हो
  • वमन
  • अनपेक्षित रूप से वजन का घटना

प्रबंधन के लिए सरल नुस्खे

  • धूम्रपान न करें
  • प्रदाहनाशी दवाओं से बचें जब तक एक चिकित्सक द्वारा न दी जाए
  • कैफीन तथा शराब से बचें
  • मसालेदार भोजन से बचें यदि वे जलन पैदा करते हैं।

आपके अल्सर की बिगड़ती हालत के चेतावनी संकेत

  • आपको रक्त वमन हो
  • आप घंटों या दिनों पहले खाये भोजन का वमन करें ।
  • आपको असामान्य रूप से कमजोरी या चक्कर महसूस हो।
  • आपके मल में रक्त हो (रक्त आपके मल को काला या राल की तरह बना सकता हैं।)
  • आपको हमेशा मतली हो या लगातार वमन हो
  • आपको अचानक तेज दर्द हो
  • आपका वजन लगातार घट रहा हो
  • दवाई लेने पर भी आपका दर्द दूर नहीं होता हो।
  • आपका दर्द पीठ तक पहुंचे।

तंबाकू सेवन के दुष्परिणाम

तम्बाकू मुंह, गले, फेफड़ों, पेट, गुर्दे, मूत्राशय आदि जैसे शरीर के विभिन्न भागों के कैंसर के लिए जिम्मेदार होता है।

सहायक तथ्य

  • विश्व में मुंह में होने वाले कैंसर के सबसे अधिक मामले भारत में होते हैं, जो तंबाकू की वजह से उत्पन्न होती है।
  • भारत में, कैंसर के लिए तम्बाकू का योगदान पुरुषों तथा महिलाओं में क्रमश: 56.4 प्रतिशत तथा 44.9 प्रतिशत होती है।
  • 90 प्रतिशत से अधिक फेफड़ों के कैंसर तथा फेफड़ों की अन्य बीमारियों का कारण धूम्रपान है।
  • तम्बाकू की वजह से हृदय एवं धमनियों के रोग, हृदयघात (दिल का दौरा), सीने में दर्द, अचानक हृदयगति रूकने से (कार्डिएक) मृत्यु, स्ट्रोक (दिमागी नस फटना), परिधीय संवहनी रोग (पैरों का गैंग्रीन) होते हैं।

सहायक तथ्य

  • भारत में फेफड़ों की 82 प्रतिशत अवरोधी बीमारी धूम्रपान की वजह से होती है।
  • तम्बाकू परोक्ष रूप से फेफड़ों में होने वाले क्षय रोग (टी.बी) का कारण है। कभी-कभी धूम्रपान करने वालों में टीबी का खतरा 3 गुना अधिक व्याप्त होताहै। जितना अधिक धूम्रपान किया जाता है,सिगरेट या बीड़ी, उतनी अधिक टी.बी, धूम्रपान करने वालों के बीच व्याप्त है।
  • धूम्रपान/तंबाकू अचानक रक्तचाप बढ़ा देता है एवं हृदय के रक्त का प्रवाह कम कर देता है।
  • वह पैरों को भी रक्त का प्रवाह कम कर देता है जिससे पैरों के मांस में सड़न पैदा कर सकता है।
  • तम्बाकू संपूर्ण शरीर की धमनियों की परत को नुकसान पहुँचाती है।
  • धूम्रपान बच्चों तथा परिवार के अन्य सदस्यों के लिए स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं (अपरोक्ष धूम्रपान) उत्पन्न करता है। धूम्रपान न करने वाला व्यक्ति यदि धूम्रपान (दो पैकेट प्रतिदिन) करने वाले व्यक्ति के साथ रहता है तो वह मूत्र निकोटीन के स्तर के अनुसार तीन सिगरेट के समतुल्य निष्क्रिय धूम्रपान करता है।
  • यह भी पाया गया है कि धूम्रपान / तंबाकू का सेवन मधुमेह का खतरा बढ़ा देता है।
  • तम्बाकू रक्त में अच्छा कोलेस्ट्रॉल कम कर देती है।
  • धूम्रपान करने वालों /तंबाकू का सेवन करने वालों में,धूम्रपान न करने वालों की तुलना में हृदय रोग तथा पक्षाघात होने की 2 से 3 गुना अधिक संभावना होती है।
  • प्रति 8 सेकंड में तंबाकू से संबंधित रोग से 'एक' मृत्यु होती है।

सहायक तथ्य

  • भारत में तंबाकू जनित रोग से होने वाली मृत्यु की कुल संख्या 8-9 लाख प्रति वर्ष के बीच होने की संभावना है।
  • तम्बाकू से बचना एक किशोर/किशोरी के जीवनकाल में 20 वर्ष जोड़ देता है।
  • तम्बाकू का उपयोग करने वाले किशोरों/किशोरियों में से आधे की मृत्यु अंततः उससे होती है (लगभग एक चौथाई मध्य आयु में तथा एक चौथाई बुढ़ापे में)
  • यह अनुमान लगाया गया है कि किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में प्रति वर्ष तंबाकू जनित रोगों से होने वाली मृत्यु की संख्या में सबसे तेज से वृद्धि हो रही है।
  • धूम्रपान / तंबाकू पुरुषों तथा महिलाओं में प्रतिकूल प्रभावों का कारण है

सहायक तथ्य

  • इसके सेवन से पुरुषों में नपुंसकता का कारण उत्पन्न हो सकता है।
  • धूम्रपान / तंबाकू का सेवन महिलाओं में एस्ट्रोजन का स्तर कम कर देता है। रजोनिवृत्ति समय से पूर्व हो जाती है।
  • धूम्रपान / तंबाकू का सेवन शारीरिक गतिविधि की क्षमता तथा शारीरिक सहनशीलता को कम कर देता है।
  • धूम्रपान करने तथा गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करने वाली महिलाओं को स्ट्रोक का अत्यधिक खतरा होता है।
  • जो गर्भवती महिलाएँ धूम्रपान करती हैं उनके बच्चा का समय से पूर्व नष्ट होने, जन्म के समय उसके बच्चे का वजन औसत के कम होने या विकासात्मक समस्याओं वाले बच्चे पैदा होने की या नवजात शिशुओं की मृत्यु ( बिस्तर पर अचानक अस्पष्टीकृत मृत्यु) की अधिक संभावना होती है।

तम्बाकू छोड़ने के लाभ

तम्बाकू छोड़ने के भौतिक लाभ:

  1. आपमें कैंसर और हृदय रोग का खतरा कम हो जाएगा।
  2. आपके हृदय पर तनाव कम हो जाएगा।
  3. आपके प्रियजनों को आपके धूम्रपान से नुकसान नहीं होगा।
  4. आपकी धूम्रपान जनित खाँसी (लगातार रहने वाली खांसी तथा बलगम) गायब होने की संभावना है।
  5. आपके दाँत अधिक सफेद तथा चमकदार हो जाएंगें।

तम्बाकू छोड़ने के सामाजिक लाभ:

  1. आप नियंत्रक होगें - अब सिगरेट आपको नियंत्रित नहीं करेगी।
  2. आपकी अपनी आत्म-छवि तथा आत्मविश्वास बेहतर हो जाएंगा।
  3. इसके बाद तथा भविष्य में आप अपने बच्चों के लिये एक स्वस्थ पालक (पिता/माता) होगें।
  4. आपके पास अन्य चीजों पर खर्च करने के लिए अधिक धन होगा।

यह आदत छोड़ने के लिये लिए कभी भी देर नहीं होती

  • मध्य आयु में कैंसर या अन्य गंभीर बीमारी होने से पहले धूम्रपान / तंबाकू छोड़ना भविष्य में तंबाकू से मृत्यु के गंभीर खतरे को टाल देता है।
  • कम आयु में धूम्रपान बंद कर देने के लाभ और अधिक है।
  • एक बार जब आप तम्बाकू छोड दें तो दिल के दौरे का खतरा 3 वर्षों में सामान्यीकृत होकर एक धूम्रपान का सेवन न करने वालों के बराबर हो जाता है।

धूम्रपान / तंबाकू छोड़ने के युक्तियां

  1. ऐशट्रे, सिगरेट, पान, ज़र्दा छुपाकर आखों तथा मन से दूर रखें। यह एक आसान परंतु मददगार
  2. सिगरेट, पान, तथा ज़र्दा आसानी से उपलब्ध न होने दें। सिगरेट, पान तथा ज़र्दा ऐसे स्थान पर रखें जहाँ से आपको लेने के लिये कड़ी मेहनत करनी पडें। उदाहरण के लिये, घर के अन्य कमरे में, वे जगह जहाँ आप बहुधा नहीं जाते हैं, आलमारी में ताले में बंद कर रखना आदि।
  3. धूम्रपान करने के लिए या पान/ज़र्दा खाने को उकसाने वाले कारणों को पहचाने तथा उनको दूर करने का प्रयास करें। क्या आपके साथी धूम्रपान करते हैं या पान/ज़र्दा खाते है? शुरुआत में धूम्रपान करने वालों या पान/ज़र्दा खाने वालों से दूर रहने की कोशिश करें या तब दूर रहें जब वे धूम्रपान करें या पान/ज़र्दा खाएं।
  4. मुंह में कुछ रखने की कोशिश करें जैसे- च्यूइंगम, चॉकलेट, पिपरमिंट, लॉज़ेंजेस आदि एवं गहरी सांस लेने का प्रयास करें।
  5. जब भी आपको तलब लगे तब खड़े होकर या बैठकर गहरी साँस लें। एक ग्लास पानी पीना तथा व्यायाम करना भी तलब को कम करने में मदद करता है।
  6. जब आपको तम्बाकू लेने की इच्छा हो तब अपने बच्चों तथा उनके भविष्य के बारे में सोचें कि तंबाकू से होने वाली खतरनाक बीमारी का उनपर क्या असर होगा।
  7. आदत खत्म करने के लिये एक तिथि निर्धारित करें।
  8. किसी सहयोगी की तलाश करें।
  9. सिगरेट/ पान /ज़र्दा के बगैर अपने पहले दिन की योजना बनाएं।
  10. जब आपको धूम्रपान/ तम्बाकू की तलब लगें तब यह 4 चीजें करें:
    • कुछ और करें
    • अगली सिगरेट के धूम्रपान / तंबाकू के सेवन में विलम्ब करें
    • गहरी साँस लें
    • पानी पियें
  11. स्वयं के लिये सकारात्मक बातों का प्रयोग करें
  12. अपने आप को पुरस्कृत करें
    • प्रतिदिन सुकूनदायक तकनीक का प्रयोग करें (योग, चलना, ध्यान, नृत्य, संगीत आदि)
    • कैफीन और अल्कोहल के सेवन को सीमित करें
    • इसके अलावा, सक्रिय बनें एवं स्वस्थ आहार खायें।

अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020



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