(एनआरएचएम के तहत बाल स्वास्थ्य जांच और शुरूआती उपचार सेवाएं)
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम एक नई पहल है जिसका उद्देश्य 0 से 18 वर्ष के 27 करोड़ से भी अधिक बच्चों में चार प्रकार की परेशानियों की जांच करना है। इन परेशानियों में जन्म के समय किसी प्रकार के विकार, बीमारी, कमी और विकलांगता सहित विकास में रूकावट की जांच शामिल है।
भारत जैसे विशाल देश में एक बड़ी आबादी के लिए स्वस्थ और गतिशील भविष्य तथा एक ऐसे विकसित समाज का सृजन बेहद महत्वपूर्ण है जो समूचे विश्व के साथ तालमेल स्थापित कर सके। ऐसे स्वस्थ और विकासशील समाज के स्वप्न को सभी स्तरों पर सिलसिलेवार प्रयासों और पहलों के जरिए प्राप्त किया जा सकता है। बाल स्वास्थ्य देखभाल की शुरूआती पहचान और उपचार इसके लिए सबसे अधिक व्यावहारिक पहल अथवा समाधान हो सकते है।
वार्षिक तौर पर देश में जन्म लेने वाले 100 बच्चों में से 6-7 जन्म संबंधी विकार से ग्रस्त होते हैं। भारतीय संदर्भ में यह वार्षिक तौर पर 1.7 मिलियन जन्म संबंधी विकारों का परिचायक है यानि सभी नवजातों में से 9.6 प्रतिशत की मृत्यु इसके कारण होती है। पोषण संबंधी विभिन्न कमियों की वजह से विद्यालय जाने से पूर्व अवस्था के 4 से 70 प्रतिशत बच्चे विभिन्न प्रकार के विकारों से ग्रस्त होते हैं। शुरूआती बालपन में विकासात्मक अवरोध भी बच्चों में पाया जाता है। यदि इन पर समय रहते काबू नहीं पाया गया तो यह स्थायी विकलांगता का रूप धारण कर सकती है।
बच्चों में कुछ प्रकार के रोग समूह बेहद आम है जैसे दाँत, हृदय संबंधी अथवा श्वसन संबंधी रोग। यदि इनकी शुरूआती पहचान कर ली जायें तो उपचार संभव है। इन परेशानियों की शुरूआती जांच और उपचार से रोग को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। जिससे अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत नहीं आती और बच्चों के विद्यालय जाने में सुधार होता है।
बाल स्वास्थ्य जांच और शुरूआती उपचार सेवाओं से दीर्घकालीन रूप से आर्थिक लाभ भी सामने आते है। समय रहते उपचार से मरीज की स्थिति और अधिक नहीं बिगड़ती और साथ ही गरीबों और हाशिए पर खड़े वर्ग को इलाज की जांच में अधिक व्यय नहीं करना पड़ता।
जन्म संबंधी विकार
प्रति वर्ष लगभग 26 मिलियन की वृद्धिरत विशाल जनसंख्या में से विश्वभर में भारत में जन्म संबंधी विकारों से ग्रस्त बच्चों की संख्या सर्वाधिक है। वर्षभर में अनुमानत: 1.7 मिलियन बच्चों में जन्म संबंधी विसंगति प्राप्त होती है। नेशनल नियोनेटोलॉजी फोरम के अध्ययन के अनुसार मृत जन्में बच्चों में मृत्युदर (9.9 प्रतिशत) का दूसरा सबसे सामान्य कारण है और नवजात मृत्युदर का चौथा सबसे सामान्य कारण है।
कमियां
साक्ष्यों द्वारा यह बात सामने आई है कि पांच वर्ष तक की आयु के लगभग आधे (48 प्रतिशत) बच्चे अनुवांशिक तौर पर कुपोषण का शिकार है। संख्या के लिहाज से पांच वर्ष तक के लगभग 47 मिलियन बच्चे कमजोर हैं, 43 प्रतिशत का वज़न अपनी आयु से कम है। पांच वर्ष की आयु के कम के 6 प्रतिशत से भी ज्यादा बच्चे कुपोषण से भारी मात्रा में प्रभावित है। लौह तत्व की कमी के कारण 5 वर्ष की आयु तक के लगभग 70 प्रतिशत बच्चे अनीमिया के शिकार है। पिछले एक दशक से इसमें कुछ अधिक परिवर्तन नहीं आया है।
बीमारियां
विभिन्न सर्वेंक्षणों से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार स्कूल जाने वाले भारतीय विद्यार्थियों में 50-60 प्रतिशत बच्चों में दांतों से संबंधित बीमारियां है। 5-9 वर्ष के विद्यार्थियों में से प्रत्येक हजार में 1.5 और 10-14 आयु वर्ग में प्रति हजार 0.13 से 1.1 बच्चे हृदय रोग से पीडि़त है। इसके अलावा 4.75 प्रतिशत बच्चे दमा सहित श्वसन संबंधी विभिन्न बीमारियों से पीडि़त है।
विकास संबंधी देरी और विकलांगता
गरीबी, कमजोर स्वास्थ्य और पोषण तथा सम्पूर्ण् आहार में कमी की वजह से वैश्विक स्तर पर लगभग 200 मिलियन बच्चे पहले 5 वर्षों में समग्र विकास नहीं कर पाते। 5 वर्ष के कम आयु के बच्चों में विकास संबंधी यह अवरोध उनके कमजोर विकास का संकेतक है।
एनआरएचएम के तहत बाल स्वास्थ्य जांच और शुरूआती उपचार सेवाओं के अंतर्गत जल्द जांच और नि:शुल्क उपचार के लिए 30 स्वास्थ्य परिस्थितियों की पहचान की गई है। इसके लिए कुछ राज्यों/संघ शासित प्रदेशों की भौगोलिक स्थितियों में हाइपो-थाइरोडिज्म, सिकल सेल एनीमिया और वीटा थैलेसिमिया के अत्याधिक प्रसार को आधार बनाया गया है तथा परीक्षण और विशेषीकृत सहयोग सुविधाओं को उपलब्ध कराया गया है। ऐसे राज्य और संघ शासित प्रदेश इसे अपनी योजनाओं के तहत शामिल कर सकते है।
स्वास्थ्य केंद्रों पर नवजातों की जांच-इसके तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में खासतौर पर एएनएम चिकित्सा अधिकारियों द्वारा संस्थागत प्रसव में जन्म संबंधी विकारों की पहचान शामिल है। प्रसव के निर्धारित सभी स्थानों पर मौजूदा स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को विकारों की पहचान, रिपोर्ट दर्ज करने और जिला अस्पतालों में जिला प्रारंभिक उपचार केन्द्रों में जन्म संबंधी विकारों की जांच के लिए रेफर करने के लिए प्रशिक्षित किया जायेगा।
जन्म दोष के लिए समुदाय आधारित नवजात शिशुओं की जांच (आयु 0-6 हफ्ते)
प्रत्यायित सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताएं (आशा) घरों में जाकर नवजात शिशुओं के देखरेख के दौरान घरों और अस्पतालों में जन्मे 6 हफ्ते तक के शिशुओं की जांच कर सकेंगी। आशा कार्यकताओं को जन्म दोष की कुल जांच के लिए सामान्य उपकरणों के साथ प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त आशा कार्यकर्ताएं बच्चों की देखरेख करने वालों को स्वास्थ्य दल से उनकी जांच के लिए स्थानीय आंगनवाड़ी आने के लिए तैयार करेंगी।
मोबाइल स्वास्थ्य दल द्वारा जांच कार्यक्रम के बेहतर परिणाम सुनिश्चि करने के लिए आशा कार्यकर्ता विशेष रूप से जन्म के दौरान कम वज़न वाले, सामान्य से कम वज़न वाले बच्चों और तबेदिक, एचआईवी जैसे चिरकालिक बीमारियों का सामना करे रहे बच्चों का आकलन करेंगी।
कार्यक्रम की निगरानी के लिए राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर नोडल कार्यालय को चिन्हित किया जाएगा। शिशु स्वास्थ्य जांच संबंधी सभी गतिविधियों और सेवाओं के लिए ब्लॉक, एक केंद्र के रूप में कार्य करेगा।
दौरे के दौरान जांच किए गए हर बच्चे के लिए ब्लॉक स्वास्थ्य दल 'शिशु स्वास्थ्य जांच कार्ड' भरेंगे। सभी स्तरों पर स्वास्थ्य देखरेख उपलब्ध कराने वाले नवजात शिशुओं की जांच करेंगे और रेफरल की ज़रूरत होने पर इसी कार्ड को भरेंगे। इन शिशुओं को माता और शिशु पहचान प्रणाली (एमसीटीएस) से विशिष्ट पहचान संख्या जारी की जानी चाहिए। आशा कार्यकर्ताओं के घरों में दौरे करने पर शिशुओं के जन्म दोष का पता लगने पर उन्हें आगे के इलाज के लिए डीएस/डीईआईसी में रेफर किया जाना चाहिए।
शिशु स्वास्थ्य जांच और प्रारंभिक स्तर की सेवाओं के कार्यान्यन के लिए कदम
स्कूल, आगंनवाड़ी केंद्रों, आशा कार्यकर्ताओं, उपयुक्त प्राधिकारियों, विद्यार्थियों, माता-पिता और स्थानीय सरकार को पहले ही ब्लॉक मोबाइल दलों के दौरों के कार्यक्रम के बारे में सूचित करना चाहिए ताकि आवश्यक तैयारी की जा सके।
स्त्रोत
अंतिम बार संशोधित : 3/5/2020
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