अच्छे स्वास्थ्य के लिए उचित पोषण आवश्यक है। एच. आई.वी. संक्रमण संयुक्त रूप से कुपोषण को बढ़ावा देता है, भूख, भोजन के शोषण और चयापचय पर प्रभाव डाल कर। कुपोषण के कारण अवसरवादी संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही एच आई वी को एड्स का रूप धारण करने में बढ़ावा मिलता है, रोग बढावा मिलता है, रोग बढ़ता है और दैनिक जीवन प्रत्याश तथा उत्पत्ति एवं संरक्षा की योग्यता में गिरावट आती है। अतः शीघ्र हस्तक्षेप करने से और पौष्टिक आवश्यकताओं पर ध्यान देने से दीर्घकालीन लाभ प्राप्त हो सकता है। एच. आई.वी. संक्रमित व्यक्तियों की पौषणिक और खाद्य सम्बंधी जरूरतें अलग होती है क्योंकि इन्हें अवसरवादी संक्रमण की ओर अपनी प्रतिरक्षिता को बलवान बनाना पड़ता है। उचित पोषण केवल पर्याप्त भोजन की उपलब्धि पर निर्भर नहीं करता है। परन्तु स्वास्थ्य के लिए लाभदायक खाद्य पदार्थों की जानकारी अतिआवश्यक है। अतः पोषण शिक्षा एवं सलाह दोनों ही एच. आई.वी. सक्रंमित व्यक्तियों के इलाज और देख-रेख के अटूट हिस्से हैं।
एच आई वी एवं एड्स से पारंपरिक लोकोपकारी प्रतिमानों को चुनौती दे रहा है और कई देशों के विकास में यह महामारी बाधा डाल रही है। यह केवल घरेलू खाद्य प्रदार्थ और पोषण को प्रभावित नहीं करता परंतु इसका कुप्रभाव राष्ट्र के विकास पर भी देखा जा सकता है। एच आई वी एवं एड्स से प्रभावित व्यक्तियों को इलाज एवं पोषण दोनों की आवश्यकता होती है। डब्लयू एफ पी, एच आई वी से प्रभावित देशों में राष्ट्रीय सरकारों, गैरसरकारी संस्थानों, समाज के हित में काम करती संस्थाएँ एवं अन्य दाता एजेंसियों के संग एच आई वी एवं एड्स से प्रभावित परिवारों की आवश्यकताओं को पहचान रक उनके लिए उचित एवं प्रभावशाली नीतियों का निर्माण करता है। डब्लयू एफ पी द्वारा एच आई वी एवं एड्स की गतिविधियों 38 देशों में आयोजित है जो 9 करोड़ लोगों तक पहुँच रही है।
भारत में एच आई वी का प्रचलन अन्य देशों के मुकाबले कम हैं, परंतु यहाँ कमजोर पौषणिक स्थिति होने के कारण एच. आई.वी. सक्रंमित व्यक्तियों को अधिक खतरा है। एच. आई.वी. संक्रमित व्यक्तियों के लिए अच्छा एवं स्वस्थ जीवन व्यतीत करना आवश्यक है। इसका मतलब उन्हें पौष्टिक भोजन ग्रहण करना चाहिए क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक प्रणाली को संक्रमणों का सामना करने के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है। परंतु शरीर में प्रोटीन, वसा एवं कार्बोज के उत्तम उपयोग के लिए उचित मात्रा में विटामिन एवं खनिज लवण भी ग्रहण करने चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र की एक उक्त एजेंसी होते हुए एच आई वी पोषण संबंधी मामलों पर तकनीकी सलाह प्रदान करते हुए डब्लयू एफ पी ने एच आई वी के लिए उपभोकता अनुकूल परामर्श उपकरणों की जरूरतों को समझा जो एच. आई.वी. संक्रमित व्यक्तियों की पौषणिक जरूरतों को उन तक पहुँचाने की सक्रिय होगी। डब्लयू एफ पी ने राष्ट्रीय एड्स संगठन (नाको) के साथ मिलकर पोषण एवं दैनिक आहार की देखरेख पर एक विस्तृत मार्गदर्शिका का निर्माण किया है जो राष्ट्रीय चिकित्सा केन्द्र एवं चलित एच. आई.वी कार्यक्रमों में गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा काम करते सलाहकार और न्यूट्रिशनिस्ट के लिए मद्दगार सिद्ध होगी।
एच आई वी सक्रंमित व्यक्ति को सलाह देते समय सलाहकार को समझना चाहिए कि हर व्यक्ति को पौष्टिक आवश्यकता तथा पोषण संबंधी समस्याएँ भिन्न हो सकती हैं। अतः भोजन सम्बधी सलाह उनकी निजी आवश्यकताओं पर निर्भर होनी चाहिए । इसलिए सलाहकार को उस व्यक्ति की आवश्यकताओं और स्थिति के अनुसार ही उसे सलाह देनी चाहिये। इस पुस्तक में दी गई सारी जानकारी सभी एच आई वी सक्रंमित व्यक्तियों के लिए शायद जरूरी नहीं हो।
जब किसी व्यक्ति को पहली बार अपने एच आई वी स्तर का ज्ञान होता है तो वह उसके लिए मानसिक तनावपूर्ण स्थिति होती है। उस समय दी गई सलाह शायद उस पर कोई प्रभाव न करे। परंतु यह अत्यंत आवश्यक है कि जल्दी ही उसे पोषण सम्बधी सलाह दी जाए जिससे कि वह अपने खान-पान तथा पोषण स्तर में सुधार ला सके।
एच आई वी सक्रंमित व्यक्ति को अपने पोषण सम्बधित स्थिति की पूरी जिम्मेवादी स्वयं उठानी चाहिये।
इसका उद्धेश्य सलाहकारों को पोषण के मूल सिद्धांतो से परिचित कराना है।
सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि अच्छा पोषण क्या है ? पोषण वह विज्ञान है जो यह ज्ञात कराता है कि किस प्रकार ग्रहण किया हुआ आहार शरीर के निर्माण, वृद्धि एवं पुनरूत्पादन के उपयोग में आता है। अच्छा स्वास्थ्य वह दशा है जिसमें शारीर को सही प्रकार का भोजन व पौष्टिक तत्व मिलते हैं शरीर को तदरूस्त बनाए रखने, यथोचित शारीरिक कार्य करने, वृद्धि एवं शरीर की प्रतिपूर्ती के लिए।
भोजन विभिन्न पौष्टिक तत्वों का मिश्रण है जैसे कि कार्बोज, प्रोटीन, वसा, जल, विटामिन एवं खनिज लवण। शरीर में इन पौष्टिक तत्वों का विशेष कार्य है जो पोषण स्तर ओर स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायता करते हैं। शरीर को यह पौष्टिक तत्व विभिन्न मात्रा में चाहिए होते हैं। अधिक मात्रा की आवश्यकता वाले पौष्टिक तत्व जैसे कि कार्बोज, प्रोटीन एवं कैल्सियम, और पौष्टिक तत्व जो बहुत कम मात्र में शरीर के लिए जरूरह होते है जैसे कि विटामिन ए, बी, सी, लौह, कई खनिज लवण जैसे कि आयोडीन, कौपर, जिन्क, सिलनियम अथवा मैगनिशियम अल्प मात्रा में ही शरीर को सुचारू रूप से रखने में बहुत आवश्यक होते हैं। इन्हें सूक्ष्म मात्रिक तत्व कहा जाता है।
पौष्टिक आहार की आवश्यकता
पौष्टिक आहार
शरीर को विभिन्न पौष्टिक तत्वों की जरूरतें विभिन्न कारणों पर निर्भर करती हैं, जैसे आयु, लिंग, शारीरिक कार्य, बीमारी आदि। पौष्टिक एवं संतुलित आहार वह है जो शरीर को सभी पौष्टिक तत्च शारीरिक आवश्यकताओं के अनुसार उचित मात्रा में प्रदान करे। इसी कारण एक वर्ग के लोगों के लिए बनाया संतुलित आहार दूसरे वर्ग के लोगों के लिए संतुलित नहीं कहलाएगा क्योंकि उनकी शारीरिक जरूरतें भिन्न होगी। उदाहरणतः, एक आठ वर्ष के बच्चे के लिए जो आहार संतुलित होगा, वह ऐ 25 वर्षीय महिला या एक गर्भवती महिला के लिए संतुलित नहीं होगा।
अतः पौष्टिक आहार विभिन्न खाद्य पदार्थों को पर्याप्त मात्रा में सम्मिलित कर बनाया जाता है। खाद्य पदार्थों को तीन मुख्य वर्गों में बाँटा जा सकता हैः-
ध्यान दें, जल खाद्य पदार्थ न होकर कर भी पौष्टिक आहार का एक महत्वपूर्ण अंग है।
शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाले खाद्य पदार्थ हैं - कार्बोज एवं वसा युक्त पदार्थ। छिलके वाले अनाज व दालें, श्वेतसारी सब्जियाँ व फल जैसे कि आलू, कचालू, केला, आम जैसे काप्लेक्स कार्बोज पौष्टिक आहार में अधिक मात्रा में होती है और सरल कार्बोज जैसे गुड़ व चीनी की मात्रा कम होती है। अनाज जैसे कि गेंहूँ, चावल, जौ, मक्का, रागी, इत्यादि आहार का मुख्य भाग होना चाहिए परंतु इन्हें अन्य खाद्य पदार्थ जैसे दालें, फल व सब्जियों के साथ ग्रहण करना चाहिए।
वसा शरीर को ऊर्जा देने वाला मुख्य तत्व है। कई विटामिन (जैसे कि विटामिन ए, डी, ई, के) पूर्ण अवशोषण के लिए वसा का भोजन में होना बहुत आवश्यक है। पर्याप्त मात्रा में वसा का होना लाभदायक होता है परंतु भोजन में वसा के अत्याधिक उपयोग से बचना चाहिए। हमें अपने भोजन में विभिन्न प्रकार के तेल एवं वसा का उपयोग करना चाहिए, जैसा कि-
शरीर वृद्धि एवं तन्तु उत्पादन के लिए प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ आवश्यक होते हैं| प्रोटीन की आवश्यकता सबसे अधिक ऐसी अवस्थाओं में होती है जिनमें शारीरिक वृद्धि हो रही है, जैसे- शिशु अवस्था, किशोरावस्था व गर्भावस्था। प्रोटीन हमारे शारीर में बचाव कार्य भी करता है। प्रोटीन की कमी से शारीरिक एवं मांसपेशियों की कमजोरी रोग व बीमारियों हो सकती है एवं बच्चों में शारीरिक वृद्धि रोक लग सकती है। अतः स्वस्थ व रोब मुक्त शरीर के लिए भोजन में प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए। प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थ हैं- दालें, दूध और दूध से बने पदार्थ, अण्डा, माँस, मछली, मुर्गी, मुँगफली आदि।
शरीर को बीमारियों एवं रोगों से सुरक्षित रखने वाले पदार्थ होते हैं- विटामिन व खनिज लवण युक्त। यह खाद्य पदार्थ कई सूक्ष्म पौष्टिक तत्वों की कमियों से होने वाली बीमारियों जैसे खून की कमी से बचाते हैं। ताजे फल व सब्जियाँ मुखयतः हरे पत्ते वाली सब्जियाँ, पीले, नांरगी व जामनी रंग के फल इन तत्वों के अच्छे साधन हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के परामर्श हेतु दिन के भोजन में कम से पाँच भिन्न प्रकार की फल व सब्जियाँ खानी चाहिए।
जल हमारे शरीर के लिए महत्वपूर्ण पौष्टिक तत्व है जो शरीर में विभिन्न मुख्य कार्य करता है। मनुष्य को प्रतिदिन कम से कम आठ गिलास पानी पीने का प्रयास करना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि पानी को पीने से पहले, उसे दस मिनट तक उबालें, छानें और फिर ग्रहण करें। जल को उसके मूल रूप में ही ग्रहण करने के अतिरिक्त, फलों के रस, सूप, नींबू पानी, लस्सी नारियल पानी और दूध के रूप में भी ग्रहण किया जा सकता है। चाय और काफी का प्रयोग अत्याधिक मात्रा में न करें।
ध्यान रहे कि पौष्टिक आहार तभी बनेगा जब दिन के हा भोजन में हर खाद्य वर्ग से एक या उससे अधिक खाद्य पदार्थ शामिल होंगे, जैसे कि चावल व तेल शरीर को ऊर्जा देने वाले वर्ग से, दालें शरीर को वृद्धि कराने वाले वर्ग से एवं फल व सब्जियाँ शरीर को बीमारियों से बचाने वाले वर्ग से। यह सुनने में शायद कठिन लगे परन्तु यह सब तत्व हमें साधारण व्यंजनों से प्राप्त हो सकते हैं। उदाहरण हेतु -
अतः हम यह कह सकते हैं कि सभी पौष्टिक तत्वों का साधन संतुलित आहार है। सेहत बनाने वाली गोलियाँ जैसे कि मल्टी विटामिन तभी लें जब शरीर में इन तत्वों का अवशोषण या उपयोग सुचारू रूप से न हो रहा हो। तथा इन गोलियों का सेवन डॉक्टर के कहने पर ही करना चाहिए।
कौन-सा आहार किस मात्रा में ग्रहण करना चाहिए ? कौन खाद्य पदार्थ भरपूर मात्रा में खाने चाहिए। इसमें शामिल हैं छिलके वाले अनाज, चावल, रोटी, डबल रोटी, दलिया, उपमा इत्यादि। दूसरा भाग प्रोटीन, विटामिन एवं फोक देने वाले खाद्य पदार्थो को दर्शाता है। इनमें शामिल हैं दालें जैसे कि सोयाबीन, राजमा, साबुत मूँग दाल तथा मूँगफली, बदाम इत्यादि। तीसरा भाग फल व सब्जियों से बना है जो शरीर को खनिज लवण, विटामिन, प्रतिउपचायक पदार्थ और फोक प्रदान करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के परामर्श हेतु पाँच फल व सब्जियों प्रतिदिन खानी चाहिए। दूध व दूध से बने पदार्थ और पाश्विक पदार्थों का सेवन संतुलित मात्रा में ही करना चाहिए कि हम अपने भोजन में वसा एवं कोलेस्ट्रोल की मात्रा अधिक होती है| हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि हम अपने भोजन में वसा रहित या सपरेटा दूध एवं कम वसा वाले पाश्विक पदार्थ (मुर्गी, मछली) का सेवन करें। अंतिम भाग चीनी और वसा पदार्थों को दर्शाता है जिनका सेवन कम से कम मात्रा में करना चाहिए।
पौष्टिक आहार में फल, सब्जियों, छिलके वाले अनाज व दालों की मात्रा भरपूर होती है और साथ ही वसा - रहित प्रोटीन साधन भी होते हैं ।
वयस्क पुरूष/महिला के लिए संतुलित आहार (भागों की संख्या)
खाद्य वर्ग |
ग्राम /भाग |
भाग/मात्रा |
साधारण श्रम श्रेणी |
मध्यम श्रम श्रणी |
भारी श्रम श्रेणी |
|||
|
|
|
पुरूष |
महिला |
पुरूष |
महिला |
पुरूष |
म्हिला |
अनाज/ मिल टस |
30 |
1 मध्यम रोटी या 1 डबल रोटी या 1 कटोरी दाल |
14 |
10 |
16 |
12 |
23 |
16 |
दूध |
100 |
1/2 ग्लास दूध या 1 कटोरी दही या 1 पीस पनीर |
|
3 |
3 |
3 |
3 |
3 |
दालें |
30 |
1 कटारी |
2 |
2 |
3 |
25 |
3 |
3 |
सब्जियाँ जड वाली हरी पत्तेदार अन्य |
100 100
100
|
1 कटोरी 1 कटोरी
1 कटोरी |
2 1
1 |
1 1
1 |
2 1
1 |
1 1
1 |
2 1
1 |
2 1
1 |
फल |
100 |
1 मध्यम |
1 |
1 |
1 |
1 |
1 |
1 |
चीनी |
5 |
1 छोटा चम्मच |
5 |
4 |
8 |
5 |
11 |
9 |
वसा व तेल |
5 |
1 छोटा चम्मच |
4 |
4 |
7 |
6 |
11 |
8 |
मांसाहारी व्यक्तियों के लिए दाल के 1 भाग के स्थान पर 1 अण्डा या 40 ग्राम मुर्गी/मीट/मछली दी जा सकती है।
विभिन्न आयु वर्गों के लिए संतुलित आहार की तालिकाएँ 1 व 2 में दी गई हैं जो नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ न्यूट्रीशन (1998) द्वारा प्रमाणित हैं। यह तालिकाएँ विभिन्न खाद्य पदार्थों की उचित मात्रा दर्शाते हैं जो विभिन्न उम्र के व्प्यतियों (वयस्क बच्चे व किशोरियों) के पौष्टिक तत्वों की दैनिक आवश्यकताओं को पूरी करने के लिए उचित हैं। खाद्य पदार्थ का एक भाग एक सविंग के बराबर होता है जैसे कि 30 ग्राम अनाज - एक रोटी या एक डबल रोटी के बराबर है, 30 ग्राम कच्ची दाल-एक कटोरी पकी हुई दाल के बराबर है, और 100 ग्राम ताजे फल या सब्जी आम तौर पर एक कटोरी पकी हुई सब्जी या एक मध्यम केला या सेब के बराबर है। एक सामान्य वयस्क पुरूष/महिला के लिए विभिन्न खाद्य पदार्थों का एक भाग का अनुमान तालिका 3 में दिया गया है।
दी गई तालिकाएँ विभिन्न वर्गों के लिए आहार का अयोजन करने में दिशा प्रदान करती हैं। इनके अतिक्ति आहार आयोजन करते समय कई और कारणों को भी महत्व देने की आवश्यकता होती है जैसे कि समय, आयकर, वस्तुओं की उपलब्धी जैसे खाद्य पदार्थ, साफ पानी, आदि। इसके अतिरिक्त बीमारी, शारीरिक अवस्था, अथव कई अन्य सामाजिक कारण जैसे कि कार्यशैली, रहन-सहन तथा परिवारगण का भी ध्यान करना पड़ता है।
शिशु, बच्चों एवं किशोरियों के लिए संतुलित आहार (भागों की संख्या )
खाद्य वर्ग |
ग्राम /भाग |
भाग/मात्रा |
आयु (वर्ष) |
|||||||
|
|
|
शिशु 6-12 महीने |
1-3 |
4-6 |
7-9 |
10-12 लड़कियाँ |
1.-12 लड़के |
13-18 लड़कियाँ |
13-18 लड़के |
अनाज / मिलिटस |
30 |
1 मध्यम रोटी या 1 डबल रोटी या 1 कटोरी चावल |
1.5 |
4 |
7 |
9 |
9 |
11 |
10 |
14 |
दालें |
30 |
1 कटोरी |
0.5 |
1 |
1.5 |
2 |
2 |
2 |
2 |
2 |
दूध |
100 |
1/2 ग्लास दूध या 1 कटोरी दही या 1 टुकड़ा पनीर |
5 |
5 |
5 |
5 |
5 |
5 |
5 |
5 |
सब्जियाँ जड़ वाली हरी पत्तेदार अन्य |
100 100
100
|
1 कटोरी 1 कटोरी
1 कटोरी |
5 0.25
0.25 |
5 0.25
0.25 |
1 0.25
0.25 |
1 1
1 |
1 1
1 |
1 1
1 |
1 1
1 |
2 1
1 |
फल |
100 |
1 मध्यम |
1 |
1 |
1 |
1 |
1 |
1 |
1 |
1 |
चीनी |
5 |
1 छोटा चम्मच |
5 |
5 |
6 |
6 |
6 |
7 |
6 |
7 |
वसा व तेल |
5 |
1 छोटा चम्मच |
2 |
4 |
5 |
5 |
5 |
5 |
5 |
5 |
मांसाहारी व्यक्तियों के लिए दाल के 1 भाग के स्थान पर 1 अण्डा या 40 ग्राम मुर्गी/मीट /मछली दी जा सकती है।
वयस्क पुरूष/महिला के लिए विभिन्न खाद्य पदार्थों का एक भाग
खाद्य पदार्थ |
व्यंजन |
घरेलू नाप-तोल |
कच्चे पदार्थ की मात्रा (भोज्य भाग) |
अनाज
|
चपाती, परांठा, पूरी उबले चावल, पुलाव दलिया
सैंडविच |
4-5 1 पूरी प्लेट 1 कटोरा
2 स्लाइस |
100-120 ग्राम 100-120 ग्राम 20 ग्राम
60 ग्राम |
दालें
|
दाल
तरी वाली दाल |
1 कटोरी
1 कटोरी |
30 ग्राम
30-50 ग्राम |
दूध व दूध के पदार्थ
|
दूध दही पनीर तरीवाला |
1 ग्लास 1 कटोरी 1 कटोरी |
250 मि.ली. 100 ग्राम 60-80 ग्राम |
सब्जियाँ
अन्य सब्जियाँ |
साग सूखी सब्जी सूखी सब्जी |
1 कटोरी 1 कटोरी 1 कटोरी |
100-150 ग्राम 90-120 ग्राम 100-125 ग्राम |
फल
|
फल फल |
1 मध्यम 1 छोटी प्लेट |
100 ग्राम 200-300 ग्राम |
मांस /मुर्गी/मछली
|
उबला, तला तरी वाला |
1 1 कटोरी |
50 ग्राम 80-100 ग्राम |
यहाँ पर एच आई वी सक्रंमित व्यक्तियों के उचित पोषण की जानकारी दी गयी है |
एच आई वी शरीर को रोगों से लड़ने कि क्षमता को क्षीण कर देता है। कई सालों तक एच आई वी का कुप्रभाव नहीं देखा जा सकता परन्तु पोषण पर इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से शुरूआती दिनों से ही होने लगता है। एच आई वी सक्रंमित के कारण शरीर में ऊर्जा, प्रोटीन एवं अन्य विटामिन और खनिज लवण जैसे कि विटामिन सी, लौह, जिन्क, सिलिनियम अथवा मैगनिश्यिम की जरूरतें बढ़ जाती हैं।
एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक प्रणाली के कमजोर हो जाने के कारण अन्य संक्रमण कण कमजोर हुए शरीर पर धावा बोल देते हैं। टयूबरक्युलोसिस, निमोनिया, दस्त एवं मुँह में थ्रश वो अवसरवादी संक्रमण हैं जो शरीर को न केवल गंभीर नुकसान पहुँचाते हैं किन्तु शरीर पौष्टिक तत्वों की जरूरतों को बढ़ाते हैं और अंत में पोषण स्तर को और कमजोर करते हैं।
एच आई वी एवं एड्स और पोषण के बीच एक अनैतिक चक्र को दर्शाता हैं एच आई वी रोग प्रतिरोधक प्रणाली को क्षीण कर शरीर को अन्य संक्रमणों की चपेट में ले लेता है। इन अन्य संक्रमण एवं एच आई वी से लड़ने के लिए शरीर की ऊर्जा एवं अन्य पौष्टिक तत्वों की जरूरतें बढ़ जाती है। यदि इन जरूरतों की पूर्ति न की जाए तो व्यक्ति कुपोषण का शिकार जो जाता है।
कुपोषण शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को गंभीर नुकसान पहुँचा कर एच आई वी का दुःप्रभाव बढ़ाता है और शरीर को एड्स की तरफ अग्रसर करता है। अतः यह कहा जा सकता है कि कुपोषण एच आई वी संक्रमण को बढ़ावा देता है अथवा इस संक्रमण का नतीजा भी है।
अतः पौष्टिक आहार एच आई वी एवं एड्स संचालन में एक अहम भूमिका निभाता है क्योंकि यह न केवल ऊर्जा की बचत करता है, यह रोग प्रतिरोधक प्रणाली को बलवान बनाता है एवं अवसरवादी संक्रमण से भी रक्षा करता है।
पौष्टिक आहार एच आई वी सक्रंमित व्यक्तियों के जीवन में सुधार ला सकता है।
एच आई वी सक्रंमित व्यक्तियों में कुपोषण
एच आई वी से सक्रंमित व्यक्तियों में कुपोषण के विभिन्न कारण हो सकते हैं। ऊर्जा के व्यर्थ में वृद्धि कर शरीर एच आई वी सक्रंमित के प्रति अपनी प्रतिक्रिया देता है। इसके अलावा भूख में कमी, उबकाई आना, उल्टी होना अथवा पौष्टिक तत्वों के ग्रहण में कमी, वजन घटना एवं माँसपेशियों की कमजोरी कुपोषण के प्रमुख कारण है। शरीर के इस घाटे की भरपाई करना नामुमकिन हो जाता है क्योंकि इस अवस्था में शरीर प्रोटीन को आवश्यक मात्रा में नहीं बना पाता। वजन का दस प्रतिशत से अधिक घटना एवं हार्मोनल बदलाव होना माँसपेशियों को और कमजोर बना देता है। हडि्डयों को कमजोर कर आस्टयोपोरोसिस की अवस्था तक भी ले जाता है। लिपोडिस्ट्रोफ्री यानी संचित किए हुए वसा को शरीर में दुबारा से वितरण करना भी इन व्यक्तियों में देखा जाता है। इन व्यक्तियों का शरीर माँसपेशियों के कीमत पर वसा को बचाता है। वसा का उप अवशोषण एच आई वी व्यक्तियों में अधिकतर देख जाता है।
मस्तिष्क कठिनाईयाँ जैसे कि कमजोरी, उदासी एवं मनोम्रंश (डिमेनशिया)भोजन ग्रहण में बाधा डालते है। अतः कुपोषण की ओर ले जाते हैं। अरक्तक अवस्था यानी खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा 10 ग्राम /डेसीलीटर से कम होना, अकसर एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों में देखी गई है। यह अवस्था लौह, फोलिक एसिड अथवा विटामिन बी 12 जैसे पौष्टिक तत्वों की कमी के कारण भी हो सकती है।
कई दवाईयाँ जो एच आई वी सक्रंमण को प्रभाव को कम करने के लिए बनाई गई है, वह शरीर में कई पोषण संबधी विध्न भी ला सकती हैं जैसे कि उबकाई, उल्टियाँ, रक्त में ग्लूकोस की कमी, अरक्तक अवस्था, विद्युत-अपघटय का असुन्लन, परीफरल न्यूरोपैथी इत्यादि।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि एच आई वी से सक्रंमित व्यक्तियों को कुपोषण का खतरा अधिक है क्योंकिः
एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों में कुपोषण का प्रकटीकरण निम्न से देखा जा सकता है -
बच्चों में शरीर की वृद्धि न होना कुपोषण का एक लक्षण हो सकता है।
एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों के पौष्टिक स्वास्थ्य का परीक्षण
एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों को यदि उचित मात्रा में ऊर्जा न प्रदान की जाए जो उनका शरीर माँसपेशियों को तोड़, काम करने के लिए अनिवार्य ऊर्जा बना लेता है। इससे इन व्यक्त्यिों के वजन एवं माँस-पेशियों में कमी आ जाती है।
घटता वजन बिगड़ते पौषणिक स्वास्थ्य का सबसे बड़ा संकेतक है। इसलिए एच आई वी व्यक्तियों के वजन का नियमित रूप से ध्यान रखना जरूरी है। इन व्यक्तियों में बॉडी माँस इन्डेक्स (बी एम आई) की जाँच उनके स्वास्थ्य का अच्छा संकेतक है।
सलाहकार को विटामिन एवं खनिज लवण की कमी से होने वाले अन्य लक्षण जैसे कि हाथ व नाखूनों का पीला पड़ना (अरक्तक अवस्था), जोड़ों का दर्द (कैलशियम एवं विटामिन डी),चर्म बदलाव (बी ग्रुप विटामिन, विटामिन ए अथवा ई), दृष्टि की समस्या (विटामिन ए) का ध्यान रखना चाहिए। लक्षणों के पाए जाने पर डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
वजन का नियमित रूप से अवलोकन एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों के लिए आवश्यक है।
कई बार एच आई वी सक्रंमण से प्रभावित व्यक्तियों में ऐसा भी देखा गया है कि उचित मात्रा में भोजन ग्रहण करना एवं किसी और लक्षण के न दिखने के बावजूद इनमें वजन घटने की शिकायत रहती है। इस कारण एच आई वी सक्रंमण से चयापचयी दर में बढ़ौती है जिसकी वजह से शरीर की ऊर्जा एवं अन्य पौष्टिक तत्चों की आवश्यकता बढ़ जाती है। अतः पहले जैसे मात्रा में भोजन ग्रहण करने पर भी प्रभावित व्यक्ति में वजन घट सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि जैसे ही व्यक्ति को यह पता चले कि वह एच आई वी पॉजिटिव है उसे भोजन की मात्रा बढ़ा लेनी चाहिए। यह प्रक्रिया शरीर के संग्रह को बढ़ाएगी जो इस वायरस से आने वाले समय में लड़ने में मददगार होगी।
एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों को अपने वजन का नियमित रूप से अवलोकन एवं अभिलेखन करना चाहिए। जिन व्यक्तियों का वजन स्थिर हो उन्हें अपना वजन तीन महीने में एक बार अवश्य करवाना चाहिए। जिन व्यक्तियों का वजन घट रहा हो उन्हें हर महीने वजन का अभिलेखन करना चाहिए या जब वे ए आर टी सेन्टर जाएँ।
बॉडी मास इंडेक्स (बी एम आई)
बी एम आई का परिकलन करें:
बी एम आई राशि 18.5-24.9 के.जी / (मी)2 के बीच सामान्य श्रेणी में आती है। एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति की बी एम आई 25 के जी / (मी)2 से थोड़ा अधिक हो तो बेहतर होगा क्योंकि उसके बीमारी तथा उसके लक्षण से क्षेलने की क्षमता बढ़ जाती है। नोमोग्राम से भी बी.एम.आई निकाला जा सकता है।
क्षयकारी लक्षण समिष्ट
बाजू के ऊपरी मध्य हिस्से की परिधि में कमी होना भी कुपोषण एक एक लक्षण हैं। शरीर के इस भाग में कमी वजन घटने से भी पहले आ सकती है। अतः बाजू के ऊपरी मध्य हिस्से की जाँच पौषणिक खतरे को जल्द पहचानने में सहायक हो सकती है।
एच आई वी एवं एड्स में अच्छे पोषण के मूल सिद्धांत
एच आई वी सक्रंमण के शुरूआती दिनों से ही अच्छा पोषण आवश्यक होता है-
एच आई वी के विभिन्न चरणों में पौषणिक देख-रेख
संतुलित आहार एवं नियमित रूप से शारीरिक कसरत एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों के पूर्ण स्वास्थ्य, वजन नियमित रखने में एवं पोषण स्तर को उत्तम बनाए रखने में सहकारी होते हैं। एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों को अच्छे पोषण के मूलसिद्धातों को हमेशा ध्यान में रख कर अपनी रोजाना जिन्दगी में अपनाना चाहिए।
एच आई वी सक्रंमित व्यक्तियों को अपने भोजन की मात्रा एवं गुण को शरीर की बढ़ी हुई माँगों के अनुसार बढ़ा लेना चाहिए। शुरूआती दिनों से ही यानि एच आई वी सक्रंमण का ज्ञात होते ही, अपने भोजन के प्रति व्यक्ति को जागरूक हो जाना चाहिए, चाहे सक्रंमण से संबंधी कोई लक्षण हो या न हो। जमा किए गए पौष्टिक तत्वों अच्छी पौषणिक स्थिति बनाए रखने एवं एच आई वी संबंधी प्रकटीकरणों से जूझने की क्षमता प्रदान करेंगे।
वजन घटना और क्षयकारी एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों में मुखय समस्याएँ देखी जाती हैं। वजन में कम से कम दस प्रतिशत की गिरावट से क्षयकारी की स्थिति उत्पन्न होती है। वजन घटने से शरीर में कमजोरी, रोग प्रतिरोधक प्रणाली में कमजोरी तथा बीमारी व्यक्ति बीमारी के कुप्रभाव से बच सकते हैं तथा अच्छी जिन्दगी व्यतीत कर सकते हैं।
एच आई वी से प्रभावित व्यक्तियों में वजन घटने के कारण हैः-
चयापचयी बदलाव- क्योंकि शरीर लगातार एच आई वी सक्रंमण से जूझता है, इस वजह से चयापचयी कार्यों में वृद्धि होती है जिससे आधारिक चयापयची दर बढ़ता हैं। अतः इससे शरीर में ऊर्जा की आवश्सकताएँ बढ़ जाती हैं। एच आई वी द्वारा हुए चयापचयी बदलाव के कारण शरीर पौष्टिक तत्वों का उत्तम उपयोग करने में असमर्थ रहता है जिससे शरीर पौष्टिक तत्वों को खो देता है।
अतः उपलक्षणिक एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों को अपने वजन की सलामती को अपना लक्षय बनाना चाहिए। लक्षणिक एच आई वी व्यक्तियों को अपना वजन बढ़ाने और शरीर की माँसपेशियों के भण्डार को बनाने का प्रयत्न करना चाहिए। इसके लिए उन्हें अपने भोजन की मात्रा में वृद्धि लानी चाहिए।
उपलक्षणिक चरण में पौषणिक देख-रेख
एच आई वी सक्रंमण के लक्षण हैं चयापचयी दर का बढ़ना, ऊर्जा की आवश्यकताओं का बढ़ना एवं पौष्टिक तत्वों का रिक्तीकरण। जैसे यह संक्रमण शरीर में बढ़ता है वैसे -वैसे इन लक्षणों की गंभीरता भी बढ़ती है जिससे अत्यंत वजन में कमी और क्षयकारी आती है। एच आई वी का प्रभाव पौषणिक स्थिति पर संक्रमण के शुरूआती दिनों से ही होता है। दुष्प्रभाव व्यक्ति को एच आई वी सक्रंमण बारे में पता लगने से भी पहले शुरू हो जाता है। अधिकतर यह देखा गया है कि एच आई वी सक्रंमण से प्रभावित व्यक्ति पहले से ही कुपोषण का शिकार होता है जो संक्रमण के बाद रोग प्रतिशोधक प्रणाली को नष्ट कर देता है। अतःएच आई वी से प्रभावित व्यक्तियों को अपनी ऊर्जा और अन्य पौष्टिक तत्वों ग्रहण करने की मात्रा जल्द से जल्द बढ़ा लेनी चाहिए।
उपलक्षणिक एच आई वी पॉजिटिव वयस्कों को अपनी रोजाना ऊर्जा की मात्रा में 10 प्रतिशत या अंदाजन 200-300 किलो कैलोरी की बढ़त करनी चाहिए, अपने माँसपेशियों को बनाए रखने एवं वजन और शारीरिक क्रम को बल प्रदान करने के लिए। अतः इन व्यक्तियों को अपने दैनिक आहार में एक समय का भोजन बढ़ाना चाहिए या अपने हर आहार में खाद्य पदार्थ की मात्रा में वृद्धि करनी चाहिए।
शारीरिक वृद्धि में बाधा एच आई वी से प्रभावित बच्चों में अकसर देखी जाती है। वजन घटने के शिकार हुए बच्चों को अपनी दैनिक ऊजा की मात्रा को 50-100 प्रतिशत से बढ़ाना चाहिए यानि जो वो पहले खा रहे थे उससे डेढ़ –दो गुणा खाएँ। अतः इन बच्चों के पहले के मुकाबले 3 दैनिक आहार से साथ, 1-3 लघु आहार अथवा हल्के फुल्के पदार्थ और भी देने चाहिए। अधिकतर खाए जाने वाले खाद्य पदार्थों की ऊर्जा मात्रा नीचे दी गई है। यह सूची भोजन की मात्रा बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के सम्मिश्रण बनाने में सहायक होगी।
कार्बोज एवं वसा भोजन में ऊर्जा के मुख्य स्त्रोत है। एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति के लिए अपनी रोजाना खुराक में छिलके वाले अनाज एवं मिलिटस (जैसे कि बाजरा, गेंहूँ एवं ज्वार) कार्बोज के स़्त्रोत के रूप में लेने चाहिए क्योंकि यह शरीर को न केवल फोक बल्कि अन्य विटामिन एवं खनिज लवण प्रदान करते हैं। कबज, डिसलिपिडीमिया, मधुमेह एवं हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों के लिए भोजन में फोक की मात्रा की मात्रा बढ़ाने से लाभ होता है। एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों को भी अपने दैनिक आहार में चीनी एवं मीठी चीजों की मात्रा को कम रखना चाहिए, क्योंकि यह शरीर को केवल ऊर्जा प्रदान करती है। इससे शरीर को किसी और पौष्टिक तत्व का लाभ नहीं मिलता। बेहतर होगा अगर चीनी की जगह गुड़ का प्रयोग किया जाए क्योंकि गुड़ रक्त बढ़ाता है।
एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों के भेजन में वसा की मात्रा को बढ़ाने का प्रमाण अभी तक नहीं मिल पाया है। बल्कि वयस्कों और बच्चों में एच.आई.वी के हर चरण पर वसा का उपशोषण पाया जाता है। वसा का शरीर में पूर्ण रूप से अवशोषण पाया जाता है। वसा का शरीर में पूर्ण रूप से अवशोषण न होने के कारण वसा में घुलने वाले विटामिन (विटामिन ए एवं ई) का उपयोग भी पूर्ण नहीं हो पाता। अतः खाद्य वसा को प्रतिदन 40 ग्राम या दिनभर की ऊर्जा के 20 प्रतिशत भाग से अधिक ग्रहण नहीं करना चाहिए। आहार में कोलेस्टरोल की मात्रा भी 200 मि. ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसके लिए अण्डा, चर्बी वाला माँस, अथवा माँस जैसे कि कलेजी अथवा वसा युक्त दूध का सेवन संतुलित मात्रा में ही करना चाहिए। वयस्क व्यक्ति के लिए सप्ताह में दो अण्डे, दो बार मछली या मुर्गी और एक बार कलेजी इत्यादि, ग्रहण करना उचित रहेगा। आहार में केवल वसा की मात्रा ही नहीं बल्कि यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि विभिन्न प्रकार के वसा साधनों का उत्तम मिश्रण हो जैसे कि वनस्पति तेल, मक्खन, दूध एवं अण्डा।
भारतीय आहार में अनुशांसित वसा सम्मिश्रण (1:1)
प्रोटीन की आवश्यकता वजन पर निर्भर करती है। स्वस्थ्य वयस्कों को प्रतिदिन एक ग्राम प्रोटीन / किलो वजन की जरूरत होती है तन्तुओं को टूटने से बचाने के लिए। अलक्षणिक एच आई वी व्यक्तियों की प्रोटीन की आवश्यकताएँ एक स्वस्थ्य वयस्क के समान होती है। दैनिक आहार में दो भाग दूध, माँस, दालें अथवा सोयाबीन, मुँगफली, खजूर आदि को शामिल करने की कोशिश करनी चाहिए। अधिकतर ए आर टी पर एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों में कोलेस्टरोल एवं ट्राईग्लीस्राइड की मात्रा रक्त में बढ़ जाती है जिसके कारण उन्हें अपने भोजन में वसा युक्त दूध, चर्बी युक्त माँस एवं अण्डों की मात्रा कम करनी चाहिए। इन व्यक्तियों के लिए लाभदायक प्रोटीन स्त्रोत हैं बेचर्बी का माँस जैसे मुर्गी, मछली, वसा रहित दूध एवं दालें।
बताए गए संतुलित आहार के द्वारा विटामिन एवं खनिज लवण की दिखें तो प्रभावित व्यक्तियों को सॅप्लिमेन्ट लेने चाहिए। विटामिन सी, ई एवं बी कॉम्पलेक्स के सॅप्लिमेन्टस क्षयकारी से बचाने में लाभदायक सिद्ध हुए हैं।
प्रतिउपचायक पौष्टिक तत्व जैसे कि विटामिन सी, ई बीटा- कैरोटीन, सिलिनयम एवं जिन्क कोशाणुओं को उपचयी क्षती एवं रोग प्रतिरोधक प्रणाली को बचाते है। कई खाद्य पदार्थ जैसे कि लहसुन एवं चरी चाय पत्ती इन प्रतिउपचायक तत्वों से भरपूर हैं। इन खाद्य पदार्थो। का सेवन उत्तम मात्रा में करना चाहिए। विभिन्न पौष्टिक तत्वों से प्रचुर खाद्य पदार्थों की सूची दी गई है।
उपयुक्त शारीरिक वजन एवं शरीर को क्रियाशील बनाए रखने के लिए जल का अधिक से अधिक सेवन करें। उबला पानी, फलों का रस, सुप एवं दूध जल के अच्छे साधन हैं। प्रतिदिन 8 गिलास जल पीने की कोशिश करनी चाहिए।
पौष्टिक तत्वों से प्रचुर खाद्य पदार्थ
पौष्टिक तत्व |
खाद्य पदार्थ
|
कार्य |
प्रोटीन |
माँस, मछली, मुर्गी, अण्डे, दूध एवं इसके पदार्थ, दालें, सोयाबीन अथवा गिरीयाँ जैसे मुँगफली, बादाम |
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कार्बोज |
गेंहूँ का आटा, दलिया, चावल, डबल रोटी, ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, आलू कचालू, चीनी, गुड़ शहद |
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वसा |
तेल,घी, मक्खन, क्रीम, वनस्पती, मेवे, चर्बी युक्त माँस, अण्डा, वसा युक्त दूध |
ऊर्जा प्रदान करना |
रेशा |
छिलके वाले अनाज, साबुत दालें, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, मटर, फलियाँ कमल, ककड़ी अनानास, नाशपति |
कब्ज, हृदय रोग एवं मधुमय से बचाव |
विटामिन ए |
कलेजी,अण्डा, वसा युक्त दूध, चीच, मक्खन, पाल्म तेल, गाजर, कद्दू हरी पत्तेदार सब्जियाँ जैसे कि पालक, चौलाई, सरसों, आम, पपीता |
बीमारियों से लड़ने की क्षमता का बढ़ाना।
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विटामिन बी 1 (थाएमीन) |
छिलके वाले अनाज, कलेजी, मछली, मुर्गी, अण्डे, दालें, गिरियाँ और बीज, सोयाबीन, अंकुरित दालें, यीस्ट |
स्नायु-तंत्र को क्रियाशील बनाए रखना |
विटामिन बी 2 (राइबोप्लविन) |
दूध, दही, अण्डे, कलेजी माँस, हरी पत्तेदार सब्जियाँ जैसे पालक, चौलाई, सरसों |
चर्म शाक्ति प्रदान करना। |
विटामिन बी 3 (नायसिन) |
दूध, दही, अण्डे, माँस, मुर्गी, मछली, छिलके वाले अनाज, आलू, सोयाबीन, मूँगफली, बीज हरी पत्तेदार सब्जियाँ जैसे पालक, चौलाई, सरसों |
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विटामिन 6 |
मछली, मुर्गी, सीप मछली जैसे तिल, तेल युक्त बीज, केला, आलू सोयाबीन मुँगफली, बादाम |
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विटामिन बी 12 |
माँस, मुर्गी, मछली अण्डे, दूध कलेजी, चीज |
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फोलिक ऐसिड |
क्रेला, हरे पत्तेदार सब्जियाँ जैसे कि पालक, सरसों, दालें मूँगफली, तेल युक्त बीज, मछली, सुअर का गोस्त |
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विटामिन सी |
अमरूद, आँवला, संतरे, नींबू, बंद गोभी, टमाटर, शिमला मिर्च, हरी मिर्ची |
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विटामिन ई |
हरी पत्तेदार सब्जियाँ, वनस्पति वसा, गेंहूँ का अंकुर, छिलके वाले अनाज, मक्खन, करेला, अण्डे का पीला भाग गिरीया जैसे कि मूँगफली और बीज |
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कैलशियम |
दूध, दही, चीज, रागी हरी पत्तेदार सब्जियाँ, मछली की हड्डी |
|
लौह |
चर्बी वाला माँस, छिलके वाले अनाज, चिड़वा, सोयाबीन |
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आयोडीन |
समुन्द्र प्राणी, आयेडाइजड नमक |
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जिन्क |
माँस, मछली, मुर्गी, छिलके वाले अनाज, दालें, मूँगफली, दूध, चीज, दही, सब्जियाँ |
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सिलिनयम |
छिलके पत्तेदार सब्जियाँ जैसे कि पालक, पालक, फलीयाँ, गिरियाँ बीज, छिलके वाले अनाज, |
|
जैसे कि पहले भी बताया है कि एच आई वी संक्रमण के दौरान शरीर में ऊर्जा एवं अन्य पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है। शुरूआत में ऊर्जा की आवश्यकता केवल 10 प्रतिशत बढ़ती है परन्तु जैसे जैसे यह संक्रमण बढ़ता है, ऊर्जा की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। अतः एच आई वी पॉजिटिव व्यक्तियों को संक्रमण का पता लगते ही भोजन ग्रहण करने की मात्रा बढ़ा लेनी चाहिए। भोजन की मात्रा व्यक्ति की उम्र, अवस्था, लक्षण एवं रहन -सहन पर निर्भर करेगी। पहले संक्रमित व्यक्ति की भोजन की मात्रा जाँचनी चाहिए और फिर लिखित उपचार के बारे में बताना चाहिए। भोजन की मात्रा बढ़ाने के लिए दिनभर में एक आहार बढ़ाया जा सकता है। हर आहार में खाद्य पदार्थों की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है या पौष्टिक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को ग्रहण किया जा सकता है। कोई भी खाद्य पदार्थ या आहार जो कई पौष्टिक तत्व उच्च मात्र में प्रदान करे उसे पौष्टिक तत्वों से सघन आहार कहा जाता है। गिरीदार फल पौष्टिक तत्वों सघन होते हैं। क्योंकि यह ऊर्जा के अलावा कई अन्य पौष्टिक तत्व मात्रा में प्रदान करते हैं। इसी तरह पनीर और दाल से बनी रोटी, साधारण रोटी से ज्यादा पौष्टिक होती है।
कैलोरी गणक
खाद्य पदार्थ |
घरेलू नाप-तौल |
कैलोरी (किलो क्लोरी )
|
चापाती (गेंहूँ आटा) |
1 माध्यम |
80 – 90 |
परांठा |
1 माध्यम |
125 – 150 |
पूरी |
1 छोटी |
80 – 100 |
उबले चावल |
1 प्लेट |
340 – 360 |
सब्जियों का पुलाव |
1 प्लेट |
450 – 500 |
नींबू चावल (लेमन राइस) चावल |
1 प्लेट |
550 – 600 |
दही चावल (कर्ड राइस) |
1 प्लेट |
400 – 450 |
इडली |
4 |
230 – 300 |
खिचड़ी |
1 प्लेट |
400 – 425 |
मसाला डोसा |
1 |
240 – 270 |
रवा डोसा |
1 |
340 – 360 |
प्याज - टमाटर उत्पम्म |
1 |
450 – 480 |
उपमा |
1 प्लेट |
520 – 570 |
पोहा |
1 प्लेट |
450 – 500 |
चवल खीर (पायासम) |
1 कटोरा |
300 – 330 |
सूजी हलवा |
1 कटोरा |
350 – 400 |
सूजी - नारियल लडडू |
2 टुकड़े |
340 – 360 |
डबल रोटी |
1 पीस |
70 |
टमाटर सैंडविच |
2 पीस |
230 – 300 |
बिस्कुट (नमकीन) |
4 |
110 – 115 |
बिस्कुट (मीठे) |
3 |
140 – 160 |
कॉनप्लेक्स दूध क साथ |
1 कटोरा |
200 – 220 |
उबला अण्डा |
1 कटोरी |
85 – 90 |
दाल |
1 कटोरी |
100 – 160 |
रसम |
1 कटोरी |
70 – 80 |
सांभर |
1 कटोरी |
200 – 240 |
अवियल |
1 कटोरी |
150 – 160 |
सूखी सब्जी |
1 कटोरी |
75 – 100 |
दही |
1 कटोरी |
75 – 100 |
दही - वढ़ा |
2 |
150 – 200 |
मसाला बढ़ा |
2 |
175 – 200 |
लस्सी (मीठी) |
1 गिलास |
100 – 125 |
लस्सी (नमकीन) |
1 गिलास |
60 - 80 |
चाय |
1 प्याला |
50 – 100 |
दूध |
1 गिलास |
190 -250 |
सेव |
1 मध्यम |
50 – 75 |
केला |
1 मध्यम |
110 – 130 |
चीनी |
1 छोटा चम्मच |
20 |
तेल |
1 छोटा चम्मच |
45 |
प्रतिदिन आहार में 200-300 किलोकैलोरी बढ़ाने के लिए, 2 चपाती (60 ग्राम अनाज)अथवा 1 गिलास (200 मिलिलीटर) दूध अधिक खाना चहिए, अन्यथा 1 कटोरी दाल (30 ग्राम) और एक छोटी प्लेट चावल (60 ग्राम) ज्यादा लेने चाहिए। सहूलियत के लिए, अधिकतर खाए जाने वाले खाद्य पदार्थों में किलोकैलोरी की मात्रा तालिका में दी गई है।
एक खाद्य पदार्थ में कई पदार्थ मिलाएँ जैसे कि सब्जी और दाल से बनी रोटी, अंकुरित दाल एवं सब्जियों से बना उपमा या पोहा|
लक्षणिक स्थिति में पौषणिक देख-रेख
एच आई वी संक्रमित व्यक्तियों में अन्य रोगों के लक्षण दिखने पर भोजन में ऊर्जा की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए, क्योंकि ऐसी स्थिति में तन्तुओं का टूटना बढ़ जाता है। बुखार एवं दस्त जैसे लक्षण शरीर की पौषणिक जरूरत को बढ़ा देते हैं। ऊर्जा कि आवश्यकता 20-30 प्रतिशत या 400 -600 किलो कैलोरी बढ़ जाती है, शरीर की माँसपेशियाँ बनाए रखने एवं शरीर को क्रियाशील बनाए रखने के लिए। सरल भाषा में इसका मतलब है दैनिक भोजन को एक तिहाई या एक चौथाई से बढ़ा देना। गंभीर बीमारी या संक्रमण के बाद, कैलोरी ग्रहण करने कि मात्रा 20-50 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिए। यह प्रक्रिया गंभीर बीमारियों के दौरान जैसे कि भूख न लगना, उबकाई आना, दस्त, बुखार इत्यादि में निभाना मुशिकल हो जाती है। इसलिए उचित भोजन ग्रहण करने के लिए कुछ विशेष कदम उठाने चाहिए।
बढ़ी हुई ऊर्जा की माँग के लिए, एच आई वी संक्रमित व्यक्तियों को अपने भोजन में ऊर्जा की मात्रा बढ़ानी चाहिए। यदि दस्त न रूकें या शरीर में कोलेस्ट्रोल और ट्राईग्लीस्राइड की मात्रा बढ़ जाए तो, इन व्यक्तियों को अपने भोजन में वसा की मात्रा को कम करना चाहिए। अण्डे के पीले भाग, चर्बी वाला माँस, घी और मक्खन का सेवन भी कम कर देना चाहिए। वसा युक्त दूध के स्थान पर टोन्ड दूध का प्रयोग करा चाहिए। लक्षणिक व्यक्तियों को प्रोटीन की मात्रा स्वस्थ्य वयस्क या अलक्षणिक व्यक्तियों के समान ही चाहिए यानि 1 ग्राम /प्रति किलो / प्रतिदिन (यह विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रमाणित है।)लक्षणिक व्यक्तियों में प्रोटीन की आवश्यकता बढ़ सकती है शरीर की माँसपेशियों को स्वस्थ्य बनाए रखने के लिए। परन्तु प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा भी नहीं बढ़ानी चाहिए क्योंकि इसका सीधा बुरा प्रभाव गुर्दों पर पड़ सकता है। अतः 1.2 -2.0 ग्राम प्रति किलो प्रतिदिन प्रोटीन की मात्रा इन व्यक्तियों के लिए प्रमाणित है। यह मात्रा खाद्य पदार्थों से प्राप्त करनी चाहिए, दवाईयों से नहीं। वसा रहित दूध, बेचर्बी माँस, दालें सोयाबीन और गिरीयों से प्राप्त करनी चाहिए।
गिरते वजन कि रोकथाम
यदि किसी व्यक्ति का वजन गिर रहा है हो, तो वजन गिरने के कारण को पहचानना चाहिए, जैसे कि उपसंक्रमण ताकि उसे प्रर्याप्त इलाज दे सकें। वजन को गिरने से बचाना चाहिए क्योंकि इस अवस्थ को रोकना मुश्किल हो सकता है।
एक महीने में वजन में अनैच्छिक 6-7किलो कि गिरावट, दो महीने से अधिक वजन में लगातार गिरावट और बी एम आई का 18.5 से कम या 30 किलोग्राम/ (मीटर)2 से अधिक होने पर उपयुक्त कारवाही करें।
वजन में गिरावट को रोकने के लिए कुछ सुझाव-
आहार ग्रहण करने की मात्रा को बढ़ाने के लिए कुछ सुझाव -
केवल खाद्य पदार्थो की मात्रा बढ़ाने से वजन गिरने की रोकथाम नहीं होगी क्योंकि यह शरीर में चर्बी को बढ़ाते हैं और माँसपेशियों को तन्दरूस्त बनाने में असमर्थ होते है। माँसपेशियों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए जरूरी है कि खाद्य पदार्थ की मात्रा को बढ़ाने के साथ हल्की कसरत भी करें ।
शारीरिक कार्य
एच आई वी व्यक्तियों को शारीरिक तौर से सक्रिय रहना चाहिए। हल्के फुल्के घरेलू काम एवं कसरत करने से शरीर और माँसपेशियों स्वस्थ बने रहते हैं। यह करने से लिपोडिस्ट्रोफी के असर को भी कम किया जा सकता है । शारीरिक कार्य करने से कब्ज होने से भी बचा जा सकता है।
अनचाहे वसा से छुटकारा
एच आई वी संक्रमित व्यक्तियों को अपने दैनिक कार्यों में हल्के- फुल्के शारीरिक काम जरूर करने चाहिए। परंतु उन्हें भारी या थकाने वाले कार्यो से बचना चाहिए। सैर करना, साईकल चलाना, तैरना जैसी हल्की-फुल्की करना इन व्यक्तियों के लिए लाभदायक सिद्ध होंगी।
कसरत को अपनी रोजाना जिन्दगी में ढालने के लिए कुछ सुझावः
अलक्षणिक गर्भावस्था एवं स्तन-काल के दौरान महिलाओं की पौषणिक देख रेख
गर्भावस्था महिलाओं के लिए नाजुक समय होता है क्योंकि इस दौरान ऊर्जा, विटामिन एवं खनिज लवण की आवश्यकता बढ जाती है, परंतु इनके द्वारा ग्रहण किए पौष्टिक तत्वों की मात्रा प्रमाणित मात्रा से कम होती हैं।
आई सी एम आर ने गर्भावस्था में 300 किलो कैलोरी ज्यादा एवं स्तन-काल के पहले 6 महीने में 400 किलो कैलोरी अधिक ग्रहण करने की सलाह दी है। यही सलाह एच आई वी संक्रमित महिलओं को भी दी गई है। पंरतु एच आई वी पॉजिटिव महिलाओं को शारीर में एच आई वी संक्रमण के कारण बढ़ी आवश्यकताओं को ध्यान रखते हुए, अपने भोजन की मात्रा ज्यादा बढ़ा लेनी चाहिए। अतः एच आई वी पॉजिटिव महिला को सामान्य गर्भवती महिला से अधिक भोजन खाना चाहिए। उन्हें प्रतिदिन एक मुखय आहार और अन्य हल्के फुल्के खाद्य पदार्थों का सेवन ज्यादा करना चाहिए।
गर्भावस्था एवं स्तनकाल के दौरान एच आई वी पॉजिटिव महिला के द्वारा ग्रहण किए सूक्षम पौष्टिक तत्वों की मात्रा सामान्य गर्भावस्था के लिए दिए गए परामर्श के समान होनी चाहिए।गर्भ में उचित शिशु निर्माण के लिए सभी गर्भवती महिलाओं को खाने में लौह तत्व ओर फोलेट की मात्रा बढ़ा लेनी चाहिए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गर्भावस्था के पहले 6 महीने में प्रतिदिन 400 माइक्रोग्राम फोलेट एवं 60 मिली ग्राम लौह तत्व गोली खाने की सलाह खून की कमी से बचने के लिए दी है और गंभीर अरक्तक से बचने के लिए गोली दिन में दो बार खाने की सलाह दी है। यह गोलियाँ आँगनवाड़ी एवं स्वास्थ्य सेवाओं में बाँटी जाती है। फोलेट हरी पत्तेदार सब्जियों, खट्टे फल, सूखी फलियों, मटर, करेला एवं यीस्ट में पाया जाता है।
विटामिन बी, सी और ई (विटामिन ए नहीं) से बनी मल्टीविटामिन गोलियाँ एच आई वी का स्तनदान द्वारा संचारण की रोकथाम में सहायक होती हैं। यह कमजोर रोग प्रतिरोध प्रणाली और कमजोर पौषणिक स्थिति वाली महिलाओं के लिए अत्यंत सहायक होती है। प्रतिउपचायक तत्व जैसे कि विटामिन ई गर्भवस्था के अंतिम चरण या स्तनकाल के शुरूआती दिनों में खाने से स्तनशोध से रक्षा करता है।
एच आई वी संक्रमित महिलाओं को गर्भावस्था एवं स्तनकाल में विटामिन ए का सेवन आवश्यकता से अधिक नहीं करना चाहिए क्योंकि विश्व संगठन के मुताबिक विटामिन ए माँ से बच्चे को होने वाले संक्रमण का प्रसार करता है। सूक्षम पौष्टिक तत्वों से पूर्ण खाद्य पदार्थ कैलोरी एवं अन्य पौष्टिक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरी करने का अच्छा साधन है। विटामिन ए की कमी वाले स्थानों पर बच्चे के जन्म के बाद, छः सप्ताहों के भीतर एक भारी विटामिन ए की खुराक महिला को देनी चाहिए।
लक्षणिक गर्भावस्था एवं स्तनकाल के दौरान महिलाओं की पौषणिक देख रेख
ऊपर लिखित सलाहों के अलावा लक्षणिक एच आई वी पॉजिटिव महिला को एक सामान्य गर्भवती के लिए प्रमाणित ऊर्जा ग्रहण करनी चाहिए। गंभीर बीमारी या संक्रमण के बाद महिला के ऊर्जा ग्रहण करने की मात्रा को 20-50 प्रतिशत बढ़ा देनी चाहिए, जो वजन को बढ़ाने में मदद करेगा। गर्भ में शिशु क निर्माण के लिए एवं स्तनपान के दिनों में दूध की उपयुक्त मात्रा के लिए एच आई वी पॉजिटिव गर्भवती महिला की प्रोटीन की आवश्यकता भी अधिक होगी।
किसी भी एच आई वी पॉजिटिव व्यक्ति को पौषणिक सलाह देते समय उन्हें यह बताना बहुत जरूरी है कि इस संक्रमण का पता लगते ही भोजन खाने की मात्रा को बढ़ा लेना चाहिए। जितनी जल्दी पौष्टिक तत्वों का सेवन होगा इस संक्रमण के कुप्रभावों को उतनी देर तक टाले जाने में मदद मिलेगी। पोषण की सलाह पूरे परिवार वालों को और संक्रमित व्यक्तियों का खयाल रखने वालों को भी देनी चाहिए क्योंकि भोजन और खाद्य पदार्थ संबंधी निर्णय अकसर परिवार के सभी लोग मिलकर ही लेते है।
बच्चों के उचित शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए अच्छा पोषण आवश्यक है। एच आई वी संक्रमण का बच्चों की रोग प्रतिरोधक प्रणाली पर अधिक प्रभाव पड़ता है। एच आई वी से प्रभावित बच्चों में अक्सर कुपोषण पाया जाता है जो उनके पूर्ण विकास में बाधा डालता है। कुपोषण के कई कारण हैं जैसे कि भोजन कम मात्रा में ग्रहण करना, पौष्टिक तत्वों का शरीर में पूर्ण अवशोषण न होना एवं उनके शारीरिक उपयोग में बाधा आना। कुपोषण को जल्द पहचानने के लिए, माता-पिता एवं देखरेख वालों को बच्चों के वजन और लम्बाई के बदलावों पर करीबी नजर रखनी चाहिए। वजन में किसी भी कारण गिरावट आने को गंभीरता से लें। यदि बच्चा उचित रूप से लम्बाई में न बढ़ रहा हो, यह उसके वजन में गिरावट आ रही तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
एच आई वी संक्रमित माताओं के शिशु
एच आई वी संक्रमित माताओं के शिशुओं में जन्म के समय कम वजन के हाने की शिकायत (2.5 किलोग्राम से कम) अधिक हो सकती है उन बच्चों के मुकाबले जो एच आई वी नेगेटिव माताओं के हों। जैसे जैसे ये बच्चे बड़े होंगे इनमें वृद्धि संबंधी बाधाएँ और कुपोषण की समस्याएँ आएँगी अथवा इन बच्चों में मृत्यु का भी अधिक खतरा होगा। माता की गिरती सेहत का प्रभाव भी शिशु पर पड़ेगा जो उनमें कुपोषण के खतरे को और बढ़ाएगा। अतः एच आई वी संक्रमित माताओं के शिशुओं की देख-रेख एवं सहायता की अधिक आवश्यकता होती है। इसमें एच आई वी संक्रमित माताओं के शिशुओं एवं बच्चों, एच आई वी प्रभावित बच्चों एवं कुपोषण के शिकार हुए एच आई वी बच्चों के पौषणिक देख-रेख के मूल सिद्धांतों की चर्चा की गयी है |
एच आई वी नेगेटिव माताओं एवं उन माताओं के शिशु और बच्चों जिनको अपने एच आई वी स्टेट्स का ज्ञान न हो।
शिशु के उचित स्तनपान के लिए माता के एच आई वी स्टेट्स का ज्ञान होना आवश्यक है। जीवन के शुरूआती समय में शिशुओं को मात्र स्तनपान कई संक्रमणों से रक्षा करता है जैसे कि दस्त। जिन माताओं को एच आई वी संक्रमण हो सकता है पंरतु जिन्हें अपने एच आई वी स्टेट्स का ज्ञान नहीं है उन्हें शिशु को जीवन के पहले 6 महीने तक केवल अपना दूध पिलाना चाहिए।
माँ का दूध शिशु के लिए पूर्ण आहार है
शिशु के पहले 6 महीने की सभी पौष्टिक तत्वों एवंज जल की आवश्यकताओं के लिए माँ का दूध पूर्ण होता है। यह बच्चों की कई संक्रमण से रक्षा करता है। माँ का दूध बच्चों के लिए पूर्ण आहार होता है और इससे बच्चों को कोई एलर्जी या पेट की तकलीफ नहीं होती। स्तनपान माता को दोबारा गर्भवती होने से भी बचाता है।
एच आई वी पॉजिटिव माताओं के शिशु एवं बच्चे
निम्न दो तरीकों से एच आई वी संक्रमित माता अपने शिशु को एच आई वी संक्रमण से सुरक्षित रख सकती हैः
यही दो प्रक्रियाएँ एच आई वी पॉजिटिव शिशु के लिए उपयोग में लाई जा सकती है।
केवल स्तनपान का मतलब शिशु को केवल माँ का दूध देना है। इस प्रणाली में शिशु को कोई भी और खाद्य पदार्थ जैसे कि जल, फलों का रस, दलिया या कोई और खाना देना वर्जित है। 6 महीने तक शिशु को केवल माँ का दूध ही पिलाना चाहिए। एच आई वी पॉजिटिव माताएँ यदि केवल स्तनपान का प्रयोग करें तो बच्चे की संक्रमण से रक्षा की जा सकती है। परंतु, स्तनपान माँ के शरीर पर अधिक प्रभाव डालता है। जिससे उसे अन्य संक्रमण का खतरा हो सकता है।
रिपलेस्मेंट आहार मतलब बच्चे को माँ का दूध न देकर कोई और खाद्य पदार्थ या खाद्य पदार्थों का मिश्रण देना जैसे कि बच्चों का भोजन, गाय का दूध इत्यादि। इन खाद्य पदार्थों को ध्यान से सोचकर, प्रणाली बनानी चाहिए ताकि यह बच्चों की सभी पौषणिक आवश्यकताओं को पूर्ण करें।
मिश्रित आहार में शिशु को माँ के दूध के साथ-साथ खाद्य पदार्थ भी दिए जाते हैं जैसे कि जल, बाजारी भोजन, गाय या किसी और पशु का दूध, चावल, दलिया इत्यादि। यह प्रणाली एच आई वी पॉजिटिव माताओं को नही अपनानी चाहिए क्योंकि यह शिशु में संक्रमण का खतरा बढ़ा सकती है।
अन्य तरीके भी अपनाएँ जा सकते हैं जैसे कि स्तन दूध को उबालकर बच्चे को देना (ताकि एच आई वी संक्रमण नष्ट हो जाए) अथवा किसी और एच आई वी नैगेटिव धात्री महिला का दूध को देना।
एच आई वी पॉजिटिव माताओं को शिशु को स्तनपान करना चाहती है तो यह प्रक्रिया 6 महीने से अधिक नहीं करनी चाहिए। बच्चे को एच आई वी संक्रमण से बचाने के लिए माता को अपने स्तन स्वस्थ रखने चाहिए और बच्चे के मुँह में छालों का भी अधिक ध्यान रखना चाहिए। एच आई वी पॉजिटिव माताओं के लिए स्तनपान का तरीका एच आई वी नैगेटिव माताओं के समान होता है। 6 महीने तक शिशु केवल माँ का दूध देना चाहिए। इस दौरान शिशु को कोई भी खाद्य पदार्थ, फलों का रस, दूध या चाय नहीं देनी चाहिए।
जो एच आई वी पॉजिटिव महिलाएँ स्तनपान न कर रहीं हो वह शिशुओं को केवल रिपलेस्मेंट आहार दें। या आहार बाजारी शिशु आहार हो सकते हैं या घर में भी पशु दूध तैयार किए जा सकते हैं। रिपलेसमेंट आहार माँ से बच्चे को होने वाले संक्रमण को रोकता है और माँ के शरीर में पौष्टिक तत्वों के संग्रह को भी कम नहीं करता परंतु इससे बच्चे को एच आई वी के अलावा और संक्रमण होने का खतरा अधिक होता है। रिपलेसमेंट आहार एच आई वी पॉजिटिव माता के शिशु के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकता है जब वह स्वीकार्य, संभव, समर्थक, कायम एवं सुरक्षित हो।
रिपलेसमेंट आहार को निम्नलिखित स्थितियों में नहीं अपनाना चाहिएः
रिपलेसमेंट आहार के लिए तर्क (ए. एफ. ए. एस. एसः अक्सेप्टेबल, फीजेबल, अफोडेबल, ससटेनेबल अथवा सेफ)
माँ से बच्चे को होने वाला एच आई वी संक्रमण
यदि एच आई वी पॉजिटिव माताएँ अपने बच्चों को केवल स्तनपान करें तो संक्रमण होने के खतरा कम होता है परंतु निम्न स्थितियाँ संक्रमण के खतरे को बढ़ा देती हैः-
(क) माँ में एच आई वी संक्रमण की गंभीरता - यदि माँ को एच आई वी संक्रमण प्राप्त किए ज्यादा समय नहीं हुआ है या संक्रमण एड्स का रूप ले चुका हो तो बच्चे को संक्रमण होने के संभावना बढ़ जाती है क्योंकि संक्रमण के शुरूआती एवं अंतिम दिनों में वाइरस की मात्रा रक्त एवं अन्य शारीरिक द्रवों जैसे कि स्तन में बढ़ जाती है।
(ख) यौन संबंधी अथवा अन्य संक्रमण - यौन सम्बंधी एवं अन्य संक्रमण स्तनपान के द्वारा एच आई वी का प्रसार बढ़ा सकते हैं।
(ग) मिश्रित आहार- स्तनपान के संग जल, गौ दूध, बने आहार या अन्य पदार्थ देने से स्तनपान द्वारा दी गई सुरक्षा में कमी आती है। स्तन दूध के अलावा दिए गए द्रव, शिशु के पेट एवं आंतों को नुकसान पहुँचा सकते हैं, जिससे एच आई वी संक्रमण शिशु के शरीर में आसानी से प्रवेश कर सकेगा।
(घ) स्तनपान की अवधि - जितने लम्बे समय तक स्तनपान दिया जाएगा, शिशु उतने लम्बे समय तक संक्रमण के नजदीक रहेगा। जिससे शिशु को एच आई वी संक्रमित होने की संभावना बढ़ जाएगी। अतः एच आई वी पॉजिटिव महिलाओं को शिशु के 6 महीने के होने पर स्तनपान तुरंत रोक देना चाहिए। परंतु अपनी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए माता को स्तनपान की अवधि निश्चित करनी चाहिए।
(च) शिशु को थ्रश या मुँह के छाले होना - यदि शिशु थ्रश या मुँह के छाले हों तो वाइरस मुँह की चमड़ी या जबान द्वारा शिशु के शिशु के शरीर में आसानी से प्रवेश कर सकता है।
(छ) स्वस्थ स्तन न होना, निपुल में दरारें, स्तन में सूजन या स्तनशोथः - यदि माँ शिशु को समय पर स्तनपान न करे, या शिशु की आवश्यकता अनुसार उसे स्तन दूध न पिलाए या स्तनपान करते समय बच्चे को ठीक से न पकड़ें, यह सब कारण निपुल को नुकसान पहुँचा सकते हैं या स्तन में सूजापन ला सकते हैं। इन कारणों से एच आई वी वाइरस आसानी से शिशु के शरीर में प्रवेश कर सकता है।
स्तनपान द्वारा बच्चे को एच आई वी वाइरस से सुरक्ष प्रदान करने के लिए एच आई वी पॉजिटिव माताएँ निम्न बातों का खयाल रखें-
स्तनपान का प्रारंभ करना
स्तनपान कराते समय माता को ध्यान रखना चाहिए कि शिशु को ठीक से स्तन के करीब पकड़ा हो। शिशु को गर्दन और पीठ से सहारा देकर, शरीर के साथ, स्तन की ओर मुँह कर के पकड़ना चाहिए। शिशु का मुँह खुला और ठोडी माँ के स्तन पर होनी चाहिए। जब भी शिशु को भूख लगे माता को उसे अपना दूध पिलाना चाहिए, दिन में एवं रात में भी। 6 महीने से छोटी उम्र के शिशु को 10-12 बार स्तनपान कराना चाहिए। छः महीने से बड़े शिशुओं को 6-8 बार दिन में स्तनपान कराना चाहिए।
यदि एच आई वी पॉजिटिव माता को स्तन पर किसी प्रकार की दरारें, फोड़े या कोई पीब दिखे तो तुरंत इलाज करवाना चाहिए। यदि स्तन में किसी प्रकार की सुजन हो तो शिशु को ज्यादा से ज्यादा स्तनपान करवाना चाहिए, यह देखने के लिए यदि सूजन इस प्रक्रिया से कम हो जाए। यदि स्तन पर लाल निशान आ जाए या उनमें से ताप उठे तो तुरंत चिकित्सक से सम्पर्क करें। इस स्थिति में स्तन दूध को नकार देना चाहिए और प्रभावित स्तन से शिशु को दूध नहीं पिलाना चाहिए। एसी स्थिति में माता अपने दूसरे स्तन से शिशु को दूध पिला सकती है। यदि दोनों स्तनों में कोई शिकायत हो तो जल्द से जल्द चिकित्सक से संपर्क करें। इस स्थिति में स्तनपान को रोक करा शिशु को रिपलेसमेंट आहार या स्तन दूध को गर्म करके शिशु को दें जब तक स्तन स्वस्थ न हो जाए।
रिप्लेसमेंट आहार
यदि माता शिशु को स्तनपान न कराना चाहे तो उसे अपनी परिस्थितियों के अनुसार रिपलेसमेंट आहार को चुनना चाहिए। यह चुनाव बाजारी शिशु आहार या पशु दूध या फिर दोनों में से किया जा सकता है। जो भी चुनाव हो उसे शिशु को लगातार 6 महीने तक देना चाहिए।
बाजारी शिशु आहार
बाजार में उपलब्ध हर आहार को भिन्न तरीके से तैया किया जाता है। आहार को तैयार करने से पहले उसके डिब्बे पर लिखित निर्देश को अच्छी से पढ़ लेना चाहिए। यदि आहार को ठीक से न बनाया जाए तो शिशु बीमार या कुपोषण का शिकार हो सकता है। आहार को निर्धारित धाराओं के अनुसार बनाना चाहिए, अपनी सहुलियत के अनुसार नहीं। डब्बों में चम्मच सहूलियत के लिए दिये जाते हैं ताकि आहार बनाने में कठिनाई न हो। उनके उपयोग से पॉउडर एवंज जल को आराम से नापा जा सकता है। पानी को आहार में मिलान से पहले दस मिनट तक उबाल लें। बच्चे को खिलाते समय ही आहार को बनाएँ क्योंकि बनाकर रखा हुआ आहार खराब हो जाता है| आहार को बनाकर थरमस में न रखें।
घर में तैयार किया पशु दूध -शिशु को माँ के दूध के आलावा कई अन्य पशुओं का दूध भी दिया जा सकता है जैसे कि गाय, भेड़, बकरी, भैंस, वसा युक्त दूध, वसर युक्त दूध का पॉउडर एवं इवापोरेटिड दूध। वसा रहित दूध का प्रयोग शिशु आहार बनाने के लिए कभी नहीं करना चाहिए।
छः महीने से छोटे शिशुओं को पशु दूध को पचाने में मुश्किल आ सकती है। ऐसी स्थिति में दूध को घर में बदलाव लाने के बाद ही शिशु को देना चाहिए। उबालने के बाद वसा युक्त दूध पर से मिलाई उतार लें। चीनी बाद में मिलाएँ। जैसे- जैसे शिशु की उम्र बढ़ेगी शिशु पचाना आसान हो जाएगा। पशु दूध में खनिज लवण जैसे कि लौह की कमी हो सकती है इसलिए शिशु को विटामिन और खनिज लवण सपलीमेंट दिये जा सकते हैं। चम्मच या कटोरी का प्रयोग करे क्योंकि बोतल से दूध पिलाने से संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है।
सम्पूरक आहार
शिशु के छः महीने के होने पर स्तनपान रोक देना चाहिए और दो साल तक किसी और पशु का दूध देना चाहिए। पशु दूध या बाजारी फॉरमुला दूध के साथ धीरे-धीरे अर्द्ध ठोस पदार्थ भी देने चाहिए जैसे कि अनाज का दलिया, खिचड़ी, सूजी खीर, केला और दूध का मिश्रण, चावल-दही इत्यादि।
शिशुओं के लिए सम्पूरक आहार
खाद्य पदार्थ
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प्रकार |
मात्रा |
पशु का दूध |
अगर शिशु को पचाने में कठिनाई हो तो मलाई उतार के दें। |
50 मि ली से शुय करे और धीरे-धीरे बढ़ाएँ |
फल |
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1-2 छोटे चम्मच से शुरू कर, 30-50 मिलीलीटर तक बढ़ाएँ| 1-2 छोटे चम्मच से शुरू कर, 1 छोटा केला दें। |
सब्जियाँ |
कच्चा या पका, छोटे टुकड़ों में |
1-2 छोटे चम्मच से शुरू कर, 50 मिलीलीटर तक बढ़ाएँ। थोड़ी मात्रा से शुरू कर, धीरे-धीरे बढ़ाएँ।
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श्वेतसारी सब्जियाँ |
उबला, मसला आलू को दूध, मक्खन या दही के साथ |
1-2 छोटे चम्मच से शुरू कर, 40-50 ग्राम या 1 आलू तक बढ़ाएँ।
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अनाज और दालें |
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2 चम्मच अनाज को एक कप दूध या पानी में पकाएँ थोड़ी मात्रा से शुरू कर, धीरे-धीरे बढ़ाएँ।
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अंडा |
उबला हुआ |
1 /2 छोटा चम्मच अंडे के पीले से शुरू कर, 1 अंडे का पीली दें। पूरा अंडा धीरे-धीरे दें। |
मीट /मछली / मुर्गी |
अच्छी तरह पका हुआ और मसला हुआ |
थोड़ी मात्रा से शुरू कर, धीरे-धीरे बढ़ाएँ।
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उपरोक्त सारणी में खाद्य पदार्थों की सूची दी गई है जो शिशुओं को 12 महीने तक दिए जा सकते हैं। नर्म, मसला हुआ या शोरबा जैसे पदार्थ शिशुओं को दिए जा सकते हैं। नर्म, मसला हुआ या शोरबा जैसे पदार्थ शिशुओं को दिए जा सकते हैं जैसे कि अनाज दलिया, खिचड़ी, मसला हुआ केला और दूध, नरम पकी हुई दाल और सब्जियाँ, चावल, पोहा और दही। भोजन को द्रव या कम ठोस रखना चाहिए और जैसे -जैसे बच्चे की उम्र बढ़क तो पदार्थ को धीरे-धीरे ठोस किया जा सकता है। खाद्य पदार्थ को पका कर छोटे-छोटे हिस्सों में कांटें। 12 से 24 महीने की उम्र में बच्चा वयस्क को दिए जाने वाला भोजन खा सकता है परंतु वह मसालेदार नहीं होना चाहिए। जैसे-जैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है उनके खाने की मात्रा एवं किस्म बढ़ाई जानी चाहिए ताकि शरीर की आवश्यकता अनुसार पौष्टिक तत्वों को प्रदान किया जा सके। जब बच्चा भोजन खाना शुरू करे, उसे दिन में दो बार 1-2 छोटे चम्मच भोजन के देने चाहिए और धीरे-धीरे मात्रा को बढ़ाना चाहिए। 6 से 8 महीने की उम्र में बच्चे को 2-3 आहार दूध के साथ देने चाहिए। यदि दूध उपलब्ध न हो तो दिन में 5 आहार देने चाहिए। ध्यान रखना चाहिए कि भोजन बनाने वाले बरतन साफ हो और जल सुरक्षित हो।
बड़ी उम्र के एच आई वी संक्रमित बच्चे
छः महीने की उम्र से बड़े बच्चों को विशेष पौषणिक देख-रेख की आवश्यकता होती है। एच आई वी संक्रमित बच्चों की ऊर्जा, प्रोटीन एवं सुक्ष्म पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता बढ़ जाती है और इन बच्चों को वृद्धि मे भी बाधा आ सकती है। भूख न लगने, स्तनपान न कर पाने, भोजन निगलने की मुश्किलों एवं उबकाई आने के कारण बच्चे कुपोषण के शिकार भी हो सकते हैं। इनमें बचपन की बीमरियाँ जैसे कि दस्त, साँस सम्बंधी समस्याएँ एवं मलेरिया भी अधिकतर देखी जा सकती हैं। अतः इन बच्चों में मृत्यु का भी खतरा बना रहता है।
माँ को अपने एच आई वी पॉजिटिव बच्चे की विशेष देख रेख करने का प्रोत्साहन देने के साथ-साथ इन बच्चों की वृद्धि पर भी लगातार नजर रखना भी जरूरी होता है। शारीरिक वृद्धि में किसी भी प्रकार की बाधा को तुरंत जाँचना चाहिए और साथ ही माँ प्रतिरक्षण और विटामिन ए की खुराक देनेी चाहिए।
एच आई वी प्रभावित बच्चों की पौष्टिक आवश्यकताएँ बढ़ जाती है इसलिए उनके आहार को ध्यानपूर्वक बनाना चाहिए जिससे वह उपयुक्त मात्रा में भोजन ग्रहण कर सकें।
उचित भोजन ग्रहण करवाने के लिए कुछ सुझाव-
एच आई वी पॉजिटिव माताओं के पाँच साल के छोटे बच्चों को विटामिन ए खुराक 4-6 महीने तक जरूर दें। 6 महीने 50,000 आई0यू0, 6-11 महीने तक 1, 00,000 आई0यू0 एवं 12 महीने के बाद 1,00,000 आई0यू0 खुराक दें।
गंभीर कुपोषण के शिकार बच्चों में सामान्य बच्चों से 5 गुणा अधिक मृम्यु होने की आशंका होती है। यह बच्चे परंपरागत पौषणिक देखरेख नहीं ले पाते और यह स्वस्थ होने में भी लम्बा समय लेते हैं। इन बच्चों को ऊर्जा एवं अन्य पौष्टिक तत्व अत्याधिक मात्रा में दिए जाने चाहिए जिससे यह जल्दी स्वस्थ हो सकें।
जिन माताओं के बच्चों की शारीरिक वृद्धि उचित रूप से न हो रही हो, उन माताओं को वृद्धि जाँच एवं चिकित्सा लेने के लिए प्रोत्साहन करना चाहिए ताकि उनके बच्चे कुपोषण शिकार न हो सकें।
गंभीर कुपोषण के शिकार हुए बच्चों के प्रति उचित व्यवहार
कुपोषण से ग्रस्त बच्चों की स्थिति में सुधर , इलाज शुरू होने के 48 घटें के बाद ही होता है। इसलिए बच्चे के वजन में बढ़ौती भी उसके बाद ही दिखाई देती है। बच्चे के ठीक हो जाने और अस्पताल से छुट्टुी मिलने पर माता को नियमित चिकित्सा एवं वृद्धि जाँच करवाने की सलाह देनी चाहिए ताकि बच्चे को समय पर प्रतिरक्षण एवं विटामिन ए की खुराक मिल सके। माता को लगातार ऊर्जा एवं अन्य पौष्टिक तत्वों से सघन खाद्य पदार्थ बच्चे को देने चाहिए।
एच आई वी से संक्रमित व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक प्रणाली कमजोर हो जाती है। इसलिए इनमें अन्य संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है। अगर खाद्य पदार्थों को सफाई से न पकाया या रखा जाए तो यह खाद्य पदार्थ संक्रमण का साधन बन जाते हैं | अस्वच्छ खाद्य तथा जल के सूक्ष्म जीवाणु से होने वाले संक्रमण से बचने के लिए इनका सही प्रंबध करना बहुत आवश्यक है।
एच आई वी से संक्रमित व्यक्ति को केवल पका हुआ भोजन ही ग्रहण करना चाहिए क्योंकि उन्हें भोजन द्वारा फैलाने वाले रोग जैसे कि सालमोनेला संक्रमण होने की अधिक संभावना होती है। यह संक्रमण जान लेवा भी हो सकता है। इस कारण से एच आई वी से संक्रमित व्यक्तियों को पका हुआ भोजन ही ग्रहण करना चाहिए। कच्चे, अधपके या ठंडे खाद्य पदार्थ का सेवन इन व्यक्तियों के लिए उचित नहीं है।
सार्वजनिक साफ-सफाई रखने के नियम
भोजन पकाने, परोसने और संग्रह करने के नियम
भोजन को दूषित होने से बचाने के लिए उसका सही प्रबंध करना अनिवार्य है। उचित खाद्य संग्रह सें खाद्य पदार्थ,खराब नहीं होते और न ही उनमें पौष्टिक तत्व नष्ट होते हैं। खाद्य पदाथो के स्वच्छ प्रबंध के कुछ नियम नीचे दिये गये हैं
भोजन ग्रहण करने के नियम
भोजन अगर अस्वच्छ वातावरण में पकाया या ग्रहण किया जाए तो वह दूषित हो जाता है और संक्रमण का साधन बनाजाता है। आमतौर पर भोजन द्वारा फैलाने वाले संक्रमण हैं दस्त, टाइफाइड और इन्फेक्टिव हेपेटाईटस। एच आई वी संक्रमित व्यक्ति की रोग प्रतिरोध प्रणाली संक्रमण के कारण पहले से ही कमजोर होती है। इसलिए अन्य संक्रमण होने की आशंका इनमें अधिक होती है। भोजन आरोग्य तरीके से पकाना और परोसना बहुत आवश्यक है।
जल का संग्रह
जल संग्रह का मुखय साधन है। पीने के पानी को 10 मिनट तक उबाले तथा छाने। उबले हुए पानी को साफ ढके हुए बर्तन में रखे। बर्तन को सप्ताह में कम से कम एक बार साफ करें। बर्तन के अन्दर हाथ या कटोरी प्रयोग न करें। नल के सहित बर्तन का प्रयोग ज्यादा उचित रहेगा।
अस्वच्छ खाद्य पदार्थ और जल से होने वाले संक्रमण में आमतौर पर उल्टी और दस्त के लक्षण दिखाई देते हैं। इनसे भोजन ग्रहण करने की मात्रा कम हो जाती है और संक्रमित व्यक्ति के पोषण स्तर पर कुप्रभाव पड़ता है। अतः एच आई वी संक्रमित व्यक्ति के लिए दूषित खाद्य पदार्थों से होने वाले संक्रमण से बचना अत्याधिक आवश्यक है।
अपना पानी पीने का गिलास अलग रखें। जहाँ तक हो सके घर से बाहर जाने पर अपना गिलास साथ लें।
एच आई वी संक्रमित व्यक्ति, इस रोग के दौरान, विभिन्न लक्षणों का अनुभव कर सकते हैं। इन लक्षणों से उनके आहार और साथ ही पोषण स्तर पर प्रभाव पड़ सकता है। कई बार, दो या उसे अधिक लक्षण भी एक साथ प्रकट हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में उचित खाद्य पदार्थों का चयन ध्यान से करना चाहिये। भिन्न-भिन्न खाद्य पदार्थों का असर हर व्यक्ति पर अलग होता है, इसलिए उन्हें केवल उन खाद्य पदार्थों को ग्रहध करना चाहिए जो उन्हें नुकसानदेह न हो।
जिन व्यक्तियों में एच आई वी संक्रमण बढ़ा हुआ हो, उनमें अवसरवादी संक्रमण होने की संभावना भी बढ़ जाती है क्योंकि उनका प्रतिरक्षक तंत्र कमजोर होता है। उन व्यक्तियों की रोब प्रतिरोधक प्रणाली अन्य रोगों से लड़ने की क्षमता खो देती है। अवसरवादी संक्रमण उन जीवाणु से होते हैं जो कि स्वस्छ प्रतिरक्षक तंत्र वाले मनुष्य में संक्रमण उत्पन्न नहीं करते लेकिन एच आई वी संक्रमित व्यक्ति में रोग प्रकट करते हैं। एच आई वी संक्रमित व्यक्तियों में अवसरवादी संक्रमण कई प्रकार के जीवाणुओं द्वारा हो सकते हैं जैसे कि फंगस, पैरासाइट्स, वायरस या बैक्टीरिया। आमतौर पर देखे गए एच आई वी सम्बन्धित अवसरवादी संक्रमण और रोग हैं थ्रश, टी बी, निमोनिया, हरपीस और कैंसर। यहाँ पर ऐसे कुछ लक्षण और अवसरवादी संक्रमण जैसे कि भूख न लगना, बुखार, दस्त, थ्रश आदि तथा उनके पोषणिक देखरेख का वर्णन किया गया है।
भूख न लगना
वमन की इच्छा और उल्टी
वमन की इच्छा से भूख कम लगती है। इसके कई कारण हो सकते हैं- संक्रमण, तनाव, दवा या खाद्य पदार्थ सम्बन्धित या भूख से । वमन की इच्छा को कम करने के लिए कई दवाईयों का प्रयोग किया जाता है। इनकी जानकारी स्वास्थ्य सेविका से मिल सकती है। उल्टी आने पर, शरीर से पानी निकल जाता है और र्निजलीकरण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस स्थिति में जल और लवण की कमी को पूर्ण करना अत्यंत आवश्यक है।
वमन की इच्छा की समस्या के लिए कुछ आहार सम्बंधी सुझाव-
भोजन के स्वाद में बदलाव
थ्रश
एच आई वी संक्रमित व्यक्तियों में थ्रश, एक फगंल संक्रमण, आमतौर पर देखा जाता है। मुँह के अंदर, जुबान, अंतड़ियों आदि पर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं। इनसे मुँह पकना, भोजन खाने में असुविधा, भूख में कमी, स्वाद में बदलाव आदि लक्षण महसूस होते हैं। कई दवाईयाँ खाने से भी स्वाद में बदलाव महसूस होता है।
एच आई वी संक्रमित व्यक्तियों में मुँह पकना आम देख जाता है। खाना कठिन हो जाता है और इसके कारण भोजन की मात्रा भी कम हो जाती है। कुछ आहार संम्बधी सुझाव हैं:-
अगर मुँह में थ्रश हो
दस्त
दिन में तीन या अधिक पानी युक्त मल करने की स्थिति को दस्त कहते हैं। एच आई वी संक्रमित व्यक्तियों में दस्त की शिकायत आम देखी जाती है। इसके कई कारण हो सकते हैं - संक्रमण, दवा के कुप्रभाव या अंतड़ियों में बदलाव। अस्वच्छ भोजन से भी दस्त हो सकते हैं। दस्त की गंभीरता उसके कारणों पर निर्भर होती है। साथ ही हर व्यक्ति में अनेक खाद्य पदार्थों की सहनशीलता भी अलग हो सकती है। दस्त से शरीर में जल और लवण निकल जाते हैं और र्निजलीकरण और कमजोरी के लक्षण दिखाई देते हैं। शिशुओं में यह स्थिति जान लेवा भी हो सकती है अगर इसका समय पर इलाज न किया जाए।
अधिकतर दस्त के मरीजों का इलाज घर पर ही हो सकता है। परंतु अगर दस्त तीन दिन से अधिक हो या मल में खून हो या बुखार का लक्षण हो तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लेना अनिवार्य है। समय पर इलाज न होने से, र्निजलीकरण होने की संभावना होती है। अतः दस्त के रोगियों को अधिक पेय पदार्थ ग्रहण करने को कहा जाता है। हर दिन कम से कम आठ गिलास पेय पदार्थ खासतौर पर ओ आर एस पानी, पीना चाहिए। अन्य पेय पदार्थ जैसे कि फलों का रस आदि भी लेने से शाक्ति के साथ खोए हुए खनिज लवण भी प्राप्त होते हैं।
स्वास्थ्य केन्द्र में प्राप्त ओरल रिहाईड्रेशन के पैकेट से घोल बनाएँ। पैकेट पर दिये गये घोल बनाने की विधि को अपनाएँ। स्वच्छ जल का प्रयोग करें और सफाई से बनाएँ।
कब्ज
अगर भारीपन या फूलापन महसूस होता है तो भोजन के साथ पानी न लें। खाद्य पदार्थ जैसे कि बंदगोभी, बीन्स, प्याज, अंकुरित दाल या ठंडे गैस युक्त पेय पदार्थ न ग्रहण करें । थोड़े समय के लिये चीनी और चीनी से बने खाद्य पदार्थ न लें ।
बुखार
ट्यूबरक्युलोसिस (तपेदिक )
ट्यूबरक्युलोसिस (टी बी) और निमोनिया शरीर के चयापचयी दर को बढ़ाते हैं। इससे ऊर्जा और पौष्टिक तत्वों की आवश्यकता भी बढ़ जाती हैं। इन बिमारियों में बुखार एक आम लक्षण है, जिससे ऊर्जा की आवश्यकता भी बढ़ जाती है। इसलिए अवसरवादी संक्रमण से ग्रस्त व्यक्तियों को 20 से 30 प्रतिशत अधिक ऊर्जा या 400 से 600 किलो कैलोरी अधिक ग्रहण करनी चाहिये। बल की पुर्नप्राप्ति के दौरान 20 से 50 प्रतिशत ऊर्जा को भोजन में बढ़ाएँ। यानि की दिन में कम से कम दो बार अधिक भोजन खाएँ।
ऊर्जा प्रदान करने के लिए, कार्बोज युक्त खाद्य पदार्थ जैसे कि अनाज और जड़वाली सब्जियों का प्रयोग अधिक करें। इसलिए रोटी और चावल अधिक खाएँ। वसा और तेल से भी ऊर्जा से भी मिलती है लेकिन इन्हें बहुत अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए क्यों कि डिसलिपिडिमिया होने की संभावना अधिक होती है। प्रोटीन के अच्छे साधन भी आहार से सम्मिलित करने आवश्यक है, वजन को बढ़ाने के लिए। इसलिए दूध, अंडा, मीट, मुर्गी, दालें दिन के भोजन में सम्मिलित करें।
ऊर्जा अधिक ग्रहण करने से विटामिन और खनिज लवण की आवश्यकता भी बढ़ जाती है खासतौर पर विटामिन बी, लौह और विटामिन सी की । यह पौष्टिक तत्व शरीर के प्रतिरक्षक तंत्र को तेज करते हैं। फल और सब्जियों के सेवन से यह पौष्टिक तत्व प्राप्त होते है।
एच आई वी संक्रमित व्यक्तियों को अधिक तरल पदार्थ लेने चाहिये। पानी को कम से कम दस मिनट तक उबाल कर छान कर पीयें। टी बी और अन्य अवसरवादी संक्रमण के लिये दी गई दवा से कई कुप्रभाव देखे जाते हैं, जैसे कि भूख न लगना, वमन की इच्छा, उल्टी, दस्त और भोजन निगलने में असुविधा। इन लक्षणों के लिए कुछ आहार संम्बधी सुझावों का वर्णन पहले किया गया है।
जैसे आपको ज्ञान है, पौष्टिक आहार एच आई वी संक्रमित व्यक्ति के लिए लाभदायक है। क्योंकि वह :-
उचित पोषण उन व्यक्तियों के लिए महत्वपूर्ण है जो एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ए आर टी) पर हों। उचित पोषण, ए आर टी की क्षमता को बढ़ाता है और ए आर टी से होनेवाले स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं को संभालने में सहयोग करता है। दवाइयों की स्वीकार्यता में भी यह सहायता करता है।
ए आर टी प्राप्त करनेवाले व्यक्तियों के लिए कोई विशेष आहार नहीं दिया जाता। अन्य एच आई वी संक्रमित व्यक्तियों की तरह उन्हें भी संतुलित आहार ग्रहण करना चाहिए। इस आहार में ऊर्जा प्राप्त करने वाले, शरीर की बढ़ौती करने वाले और शरीर रक्षक खाद्य पदार्थ सम्मिलित होने चाहिए|
ए आर टी और खाद्य पदार्थों के परस्पर सम्बंध से रक्त में दवाईयों के स्तर पर प्रभाव पड़ सकता है इससे कुछ कुप्रभाव होने की संभावना अधिक हो जाती है। इन कुप्रभावों के कारण, व्यक्ति दवाईयों के नियम को पूरी तरह मान नहीं पाता। ए आर टी के साथ कई खाद्य पदार्थो के सेवन से ए आर टी के कुप्रभाव और अधिक हो जाते हैं तथा दवाइयों का असर भी कम हो जाता है। कई ए आर वी से पौष्टिक तत्वों की उपलब्धि, शोषण तथा प्रयोग पर असर पड़ता है। अतः भोजन का आयोजन करते समय ऐसे खाद्य पदार्थ चुने जो कि दवाइयों के कुप्रभाव को कम करे और उनके असर को बढ़ाएँ।
हर एच आई वी संक्रमित व्यक्ति जो, एच आई वी संबधित दवा ग्रहण कर रहा हो, को कुछ नियम मानने चाहिएः
उचित आहार के आयोजन करने से पहले यह जानना बहुत आवश्यक है कि वह व्यक्ति किस तरह की एंटीरेलेवायरल थेरेपी पर है क्योंकि विभिन्न दवाईयों के विभिन्न कुप्रभाव होते हैं। आमतौर पर आर वी जो दी जा रही है वह हैः
नेवीरापिन (200 मि.ग्रा.)
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दवाईयों तथा खाद्य पदार्थों के परस्पर सम्बंध को ध्यान में रखते हुए, कुछ भोजन सम्बंधी नियम ध्यान में रखने आवश्यक हैं। दवाईयों को केवल भोजन के बाद ही ग्रहण करें-सुबह या रात को। स्टावुडीन, लैमीवुडीन और नेवीरापिन का जोड़ आमतौर पर दिया जा रहा है। जिडोवुडीन को वसा युक्त भोजन के साथ नहीं ग्रहण करना चाहिए। अगर इससे वमन की इच्छा या पेट में दर्द हो तो इस दवाई को कम वसा वाले भोजन जैसे ब्रेकफास्ट और /या रात्रि के भोजन के साथ के साथ लें। एफविरेन्ज को वसा युक्त भोजन के साथ नहीं ग्रहण करना चाहिये। भोजन के साथ लेने पर, उस भोजन में वसा या तेल की मात्रा कम होनी चाहिये। रात को सोने से पहले, यह दवाई खानी चाहिये। गर्भवती महिलाओं को यह दवाई नहीं दी जाती है।
ए आर वी के कुप्रभाव
दवा के कुप्रभाव के कारण कई बार उपचार में बाधा आ जाती है। इसलिए इन समस्याओं को शीघ्र संभालना अति आवश्यक होता है। उचित पोषण का प्रबंध इनके कुप्रभावों को कम करने से बहुत योगदान देता है। इससे भोजन की मात्रा में बढ़ौती होती है, साथ ही वजन को घटने में रोक लगाती है और पोषण स्तर में बढ़ौती आती है। अधिकतर कुप्रभाव में समय से सुधार आता है। ए आर वी के कुछ कुप्रभाव की जानकारी नीचे दी गई है।
ए आर वी के कुप्रभाव
एड्स संबंधित दवा |
कुप्रभाव |
जिडोवुडीन |
भूख न लगना, रक्तक्षीणता, वमन की इच्छा, उल्टी, थकावट, कब्ज, बुखार, सिर दर्द, नींद न आना, मांसपेशियों में दर्द, स्वाद में परिवर्तन और वजन बढ़ना |
नेवीरापिन |
वमन की इच्छा, उल्टी, बुखार, सिर दर्द, त्वचा रोग,थकावट, पेट दर्द, आलस्य, वजन घटना, जिगर पर हानि |
एफाविरेन्ज |
रक्त में वसा की मात्रा का बढ़ना, वमन की इच्छा, उल्टी, दस्त, भूख न लगना, पेट फूलना, चक्कर आना त्वचा रोग |
लैमीवुडीन |
वमन की इच्छा, उल्टी, दस्त, ठंड लगना और बुखार , भूख न लगना, पेट में दर्द, सिर दर्द, रक्तक्षीणता, त्वचा रोग। |
इस्टावोदीन |
वमन की इच्छा, उल्टी, दस्त, ठंड लगना और बुखार , भूख न लगना, पेट में दर्द, सिर दर्द, रक्तक्षीणता, त्वचा रोग। |
कुछ भोजन सम्बंधी सुझाव जो कि भूख न लगना, स्वाद परिवर्तन वमन की इच्छा, उल्टी, बुखार और कब्ज जैसे लक्षणों को कम करने में सहायता करते हैं |
जरूरी नहीं है कि सारे लक्षण ए आर वी या अन्य दवाईयों के कारण हो। कुछ लक्षण एच आई वी संक्रमण या अवसरवादी संक्रमण के कारण भी हो सकते हैं। जैसे कि दस्त का कारण जीवाणु द्वारा संक्रमण हो सकता है। ऐसी स्थिति में पोषण का आयोजन तो वही रहेगा परंतु चिकित्सा उस संक्रमण की करी जाएगी। पोषण का सही आयोजन इन लक्षणों का इलाज नहीं है, यह केवल इनके पोषण स्तर पर कुप्रभाव को कम करता है |
लम्बे समय तक ए आर टी लेने से चयापचयी समस्याएँ
ए आर टी सम्बंधी समस्याएँ उपचार के दौरान उत्पन्न हो सकती है। यह चयापचयी समस्याएँ है- लिपोडिस्ट्रोफी, डिसलिपिडीमिया, रक्त में कोलोस्ट्रोल और ट्राईग्लिसराईड की बढ़ौती, इन्स्यूलिन रेस्सिटेन्स और हडि्डयों के रोग। यह समस्याएँ पुरूषों, महिलाओं तथा बच्चों में उत्पन्न हो सकती है। इनसे हृदय रोग, मधुरोग और ओस्टियोपोरोसिस के होने की संभावना अधिक हो जाती है।
लिपोडिस्ट्रोफी
लिपोडिस्ट्रोफी में शरीर में वसा के संग्रह, शरीर के आकार और चयापचय में बदलाव आ जाता है। जो एच आई वी संक्रमित व्यक्ति ए आर वी लम्बे समय तक ले रहे हो, उनमें यह समस्या देखी जाती है। लिपोडिस्ट्रोफी में शरीर के कई स्थानों पर वसा के संग्रह बढ़ जाते हैं, खासतौर पर गर्दन के पीछे (बफैलोस हंप) और पेट के आसपास। महिलाओं मे स्तन का नाप भी बढ़ जाता है| ।इन व्यक्तियों में शरीर के अन्य शारीरिक बदलाव उनके दैनिक क्रियाएँ जैसे कि चलना, सोना और साँस लेने पर असर करती है। हाल मे किया गया अध्ययन से दिखाया गया है कि उचित वजन, एरोबिक व्यायाम और वसा और कार्बोज एवं अधिक रेशे वाला आहार, पेट के आसपास वसा को एकत्रित होने से बचाता है। अन्य लक्षणों पर आहार और व्यायामक का कोई असर नहीं देखा गया है। अतः लिपोडिस्ट्राफी से ग्रस्त व्यक्ति:-
डिसलिपिडिमिया और हृदय रोग
एच आई वी संक्रमित व्यक्तियों में लिपोडिस्ट्रोफी के साथ एक और चयापचयी समस्या उत्पन्न होती है- डिसलिडिमिया या रक्त में कोलेस्ट्रोल और ट्राइग्लिसेराइट की मात्रा का अधिक होना। जिनको डिसलिपिडिमिया और हृदय रोग की शिकायत हो उन्हें अपने दैनिक जीवन में बदलाव लाना चाहिए जिससे कि उनके रक्त में वसा की मात्रा नियंत्रित हो। शराब और सिगरेट का सेवन उन्हें नही करना चाहिये। इन व्यक्तियों के लिए पोषण सम्बंधी नियम, लिपोडिस्ट्रोफी से ग्रस्त व्यक्तियों के समान है।
इन्स्युलिन रेसिसटेन्स औ मधुमेह रोग
हडि्डयों से सम्बन्धित रोग
अतः अच्छा पोषण अगर जल्दी ही शुरू किया जाए, एच आई वी संक्रमित व्यक्तियों के जीवन के स्तर में बढ़ौती ला सकता है। अच्छा पोषण स्तर एच आई वी की समस्या और साथ ही उपचार के कुप्रभाव को झेलने की क्षमता को बढ़ाता है।
स्रोत :
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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