बीन्स एक ऐसी सब्ज़ी है जो कि अमेरिकन, मेक्सिकन, चाईनीज़, जापानी, उत्तरी व दक्षिणी भारतीय, यूरोपियन प्रायद्वीप लोगों के भोजन में सामान्यतः मिलती है।
बीन्स हरे रंग की फलियां होती हैं। आप इन्हें पैक में, ताजा या सूखा हुआ भी खरीद सकते हैं। पोषण से भरपूर बींस में प्रोटीन तथा घुलनशील फाइबर प्रचुर मात्रा में होता है तथा साथ ही साथ वसा कम होता है। बीन्स वसा से मुक्त होने के कारण मानव स्वास्थ्य के लिए आवश्यक पोषक तत्वों का अच्छा स्त्रोत होता है विशेष रूप से विटामिन्स तथा खनिज का। जब भी सामान्य पोषक आहार लिया जाता है जिसमें बीन्स का उपयोग किया गया हो तो यह हृदय के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है तथा यह वजन को नियंत्रित करने में भी सहायक होता है।
आप सलाद लें या स्टाटर्स, सूप से लेकर बर्गर टिक्की तक हर जगह बीन्स (फलियाँ) किसी न किसी रूप में आपको नज़र आ जाएँगी। सूखी व हरी दोनों ही प्रकार की बीन्स भोजन का एक आवश्यक व पौष्टिक हिस्सा हैं। होम्योपेथिक दवाओं में भी बीन्स बहुत काम आती है।
बीन्स की हरी पौध सब्जी के रूप में खायी जाती है तथा सुखा कर इसे राजमा, लोबिया इत्यादि के रूप में खाया जाता है। अमेरिका तथा अफ्रीका के कुछ भाग में तो बीन्स को प्रोटीन का मुख्य स्रोत माना जाता है। हरी बीन्स या सामान्य भाषा में फ्रेंच बीन्स में मुख्यत: पानी, प्रोटीन, कुछ मात्रा में वसा तथा कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, विटामिन सी आदि तरह के मिनरल और विटामिन मौजूद होते हैं। राइबोफ्लेविन को विटामिन बी२ के नाम से ज़्यादा जाना जाता है, विटामिन बी२ शरीर की कोशिकीय प्रक्रियाओं के लिए बहुत ही आवश्यक घटक है। बीन्स विटामिन बी२ का मुख्य स्रोत होते हैं। प्रति सौ ग्राम फ्रेंच बीन्स से तकरीबन २६ कैलोरी मिलती है। राजमा में यही सब ज़्यादा मात्रा में पाया जाता है इसलिए प्रति सौ ग्राम राजमा से ३४७ कैलोरी मिलती है। बीन्स सोल्युबल फाईबर का अच्छा स्रोत होते हैं और इस कारण ह्रदय रोगियों के लिए बहुत ही फ़ायदेमंद हैं। ऐसा माना जाता है कि एक कप पका हुआ बीन्स रोज़ खाने से रक्त में कोलेस्टेरोल की मात्रा ६ हफ्ते में १० प्रतिशत कम हो सकती है और इससे ह्रदयाघात का खतरा भी ४० प्रतिशत तक कम हो सकता है। बीन्स में सोडियम की मात्रा कम तथा पोटेशियम, कैल्सियम व मेग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है और लवणों का इस प्रकार का समन्वय सेहत के लिए लाभदायक है। इससे रक्तचाप नहीं बढ़ता तथा ह्रदयाघात का खतरा टल सकता है।
होम्योपेथिक दवाओं में भी बीन्स बहुत काम आती है। ताज़ी बीन्स का उपयोग रूमेटिक, आर्थराइटिस तथा मूत्र मली में तकलीफ़ की दवाई बनाने के लिए किया जाता है। बीन्स में एन्टीआक्सीडेंट की मात्रा भी काफी होती है। एन्टीआक्सीडेंट शरीर में कोशिकाओं की मरम्मत के लिए अच्छा माना जाता है। इसलिए इसका सेवन करने से केंसर की सम्भावना कम हो जाती है। बीन्स में फाईटोइस्ट्रोजन की मात्रा होने से ऐसा माना जाता है कि इससे स्तन केंसर का खतरा भी कम हो सकता है।
हरी सब्ज़ियाँ खाना सेहत के लिए बहुत फ़ायदेमंद है, छोटी-सी बीन्स शरीर के लिए बड़े ही फ़ायदे की चीज़ है। ये शरीर के लिए एक तरह से शक्तिस्रोत का काम करती हैं। फलियों में फाईबर तथा पानी की मात्रा काफी ज़्यादा होता है और कैलोरी की मात्रा काफी कम। बस हरी बीन्स ख़रीदते हुए ध्यान रखें कि ये पीली तथा मुरझाई हुई न हो तथा यह भी याद रखें कि बीन्स को धोकर फ्रिज में न रखें इससे इसके मिनरल खत्म होने लगते हैं। जब भी बीन्स का उपयोग करना चाहें, उसे फ्रिज से निकाल कर तुरंत अच्छी तरह से धोकर काम में लें।
वजन घटाने के तमाम प्रयासों से हार मान चुके हैं, तो हरी सब्जी बीन्स का सहारा लें। बीन्स से बने उत्पादों का सेवन करके आप अपना मोटापा घटा सकते हैं। बीन्स का इस्तेमाल आप किसी भी तरह कर सकते हैं। वजन नियंत्रित करना-बीन्स में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है, प्रति ( कप में 10 ग्राम। मोटे या आवश्यकता से अधिक वजन वाले लोग जो कम कैलोरी, उच्च प्रोटीन, उच्च फाइबर युक्त आहार लेते हैं, उनका वजन उन लोगों की तुलना में कम होता है जो नियमित तौर पर नियंत्रित मात्रा में कैलोरी, उच्च कार्बोहाइड्रेट और कम फैट वाला आहार लेते हैं।पोषक तत्त्वों से भरपूर-फल तथा सब्जियों की तरह बीन्स भी पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ है इसका अर्थ यह है कि इसमें शरीर की प्रक्रिया के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्त्व उपस्थित होते हैं तथा साथ ही साथ इसमें कैलोरी भी कम होती है। साथ ही साथ कॉपर आयरन के साथ मिलकर लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद करता है। इसके अलावा कॉपर रक्तप्रवाह, प्रतिरक्षा प्रणाली, तथा हड्डियों को स्वस्थ तथा संतुलित रखता है। फास्फोरस तथा मैग्नीशियम शक्तिशाली हड्डियों के लिए आवश्यक हैं तथा मैग्नीशियम के साथ पौटेशियम रक्त के दबाव के स्तर को नियंत्रित रखता है।आपके पेट को भरा रखता है-इसमें प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है, जिसके कारण यह एक ऐसा स्नैक है जो आपके पेट को भरा रखता है जिससे आप खाने की और आकर्षित नहीं होते।
हृदय के स्वास्थ्य को अच्छा रखना-इसमें प्रचुर मात्रा में पोषक तत्त्व होते हैं जो हृदय के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। इसके अलावा बीन्स में घुलनशील फाइबर होते हैं। घुलनशील फाइबर युक्त आहार आपके शरीर में ब्लड शुगर तथा साथ ही साथ कोलेस्ट्रोल के स्तर को भी बढ़ाते हैं।
बीन्स का 'ग्लाइसेमिक इन्डेक्स' कम होता है इसका अभिप्राय यह है कि जिस तरह से अन्य भोज्य पदार्थों से रक्त में शक्कर का स्तर बढ़ जाता है, बीन्स खाने के बाद ऐसा नहीं होता। बीन्स में मौजूद फाइबर रक्त में शक्कर का स्तर बनाए रखने में मदद करते हैं। और बीन्स की इस ख़ासियत की वजह से मधुमेह के रोगियों को बीन्स खाने की सलाह देते हैं। ऐसे उदाहरण भी हैं कि बीन्स का ज़ूस शरीर में इन्सुलिन के उत्पादन को बढ़ावा देता है। इस वजह से जिन्हें मधुमेह है या मधुमेह का खतरा है उनके लिये बीन्स खाना बहुत लाभदायक है। बीन्स का ज़ूस उत्तेजक ( स्टिम्युलेंट) होता है इसकी इसी प्रकृति के कारण यह उन लोगों को बहुत फ़ायदा करता है जो लंबी बीमारी से जूझ रहे हैं या जो बीमारी पश्चात पूर्ण स्वास्थ्य लाभ चाहते हैं। बीन्स का १५० मिली ज़ूस हर रोज़ पीना आपके इस उद्देश्य को भली-भाँति पूरा कर देगा। फ्रेंच बीन्स किडनी से संबंधित बीमारियों में भी काफी फ़ायदेमंद है। किडनी में पथरी की समस्या हो तब आप यह नुस्खा अपनाएँ। आप ६० ग्राम बीन्स की पौध लेकर इसे चार लीटर पानी में चार घंटे तक उबाल लें। फिर इसके पानी को कपड़े से छान लें और छने हुए पानी को करीब आठ घंटे तक ठंडा होने के लिए रख दें। अब इसे फिर से छान लें पर ध्यान रखें कि इस बार इस पानी को बिना हिलाए छानना है। इसे दिन में दो-दो घंटे से पीयें, यह नियम एक हफ्ते तक दोहराएँ। इसके परिणाम आशानुरूप मिलेंगे।
बींस नट्स व अनाज का नियमित सेवन करने से व्यक्तियों में कैंसर होने की संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं|
पिछले दिनों किये गये एक नवीनतम शोध में यूनिवर्सिटी कालेज लंदन (यूसीएल) के विशिषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला कि बींस नट्स व अनाज का नियमित सेवन करने से व्यक्तियों में कैंसर होने की संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं। इसका मतलब यह है कि यदि कोई भी व्यक्ति प्रचुर मात्रा में नियमित रूप से बीन्स, नट्स जैसे खाद्य पदार्थों को खाता है तो उसमें कैंसर की संभावनाएं बिल्कुल न के बराबर रहती है।
इस ताजे-तरीन अध्ययन द्वारा यूनिवर्सिटी कालेज, लंदन के वैज्ञानिकों ने पाया कि बीन्स नट्स, अनाज में इनोस्टिल पनट किसफास्फेट नाम का तत्व पाया जाता है जो ट्यमूर को पनपने से रोकता है। चूंकि जब व्यक्ति बीन्स व नट्स जैसे खाद्य पदार्थों को खाता है तो उसके पाचन के दौरान ही यह तत्व निकलकर शरीर के आंतरिक अंगों में घुलता है जो कैंसर ट्यूमर जैसी घातक व बेहद खर्चीली बीमारियों को होने से बचाता है।
दरअसल हमारे देश में, वैसे भी अभी कैंसर-जैसी भयावह बीमारियों का पक्का इलाज कराना बहुत ही कम संभव है। इसके कई कारण हैं। पहला दवाओं की अनुपलब्धता के अलावा दवाएं बेहद खर्चीली है। इसके अलावा पर्याप्त संख्या में आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं की कमी भी है।
इस नूतन शोध के बल पर विशेषज्ञों का मानना है कि बीन्स, नट्स व अनाज में पाये जाने वाले महत्वपूर्ण तत्व इनोस्टिल पनट किस्फास्फेट के प्रयोग द्वारा कैंसर जैसे गंभीर रोग से लड़ने में नयी दवाओं व थैरेपी के विकास में किया जा सकेगा, अर्थात् यदि उपलब्ध हों तो बीन्स व नट्स नियमित रूप से प्रचुर मात्रा में खाये अन्यथा इसी में मिलने वाले तत्व से बनने वाली दवाएं भी आने वाले दिनों में दवा मार्केट में उपलब्ध हो जायेंगी।
बहरहाल इस नवीनतम शोध से लोगों मैं कैंसर के प्रति जागरुक रहने कैंसर से बचाव के लिये बीन्स व नट्स जैसी खाद्य सामग्रियों का सेवन करते रहने के लिये प्रेरणा मिलेगी। कुल मिलाकर आज भी कैंसर न कहीं किसी न किसी रूप में आम आदमी के लिए लाइलाज माना जा सकता है, अत: जरूरत है प्रतिरोधक खान-पान की ताकि सस्ते व थोड़े से ध्यानाकर्षण व सक्रियता के जरिये इससे बचा जा सके।
कैल्शियम हड्डियों तथा दांतों दोनों के विकास तथा प्रबंधन दोनों के लिए आवश्यक है। इसके अलावा जब हृदय के कार्य की बात आती है तो उसके लिए यह एक आवश्यक पोषक तत्त्व है।
स्रोत: आयुर्वेद, अभिव्यक्ति।
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
इस भाग में अस्पताल जाने की स्थितियों में किन बातों...
इस भाग में वैशाली जिले की राजापाकड़ प्रखंड की महिल...
इस भाग में अधिक फसलोत्पादन के लिए लवणग्रस्त मृदा स...
इस पृष्ठ में अदरक की वैज्ञानिक खेती की विस्तृत जान...