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फ्लोरोसिस के कारण और प्रभाव

फ्लोरोसिस का क्या कारण  है

1. फ्लोरोसिस रोग शरीर में (अ) फ्लोराइड, (ब) फ्लोरीन एवं/अथवा (स) हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल के अतिरेक मात्रा में प्रवेश के कारण होता है।

2. फ्लोराइड अधिकांशतः पीने के पानी एवं भोजन के माध्यम से शरीर में प्रवेश करता है।

3. फ्लोरीन एवं हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल औद्योगिक-स्थलों से श्वसन/अंतर्ग्रहण के माध्यम से भी शरीर में प्रविष्ट हो सकते हैं, जहां पर ये रसायन प्रयोग में लाए जाते हैं और कार्य करने वाले व्यक्ति कार्य के दौरान इनके संपर्क में आते हैं।

4. फ्लोरीन एवं फ्लोराइड, फ्लोरीडेटेड दंत उत्पादों (फ्लोरीडेटेड टूथपेस्ट, माउथ रिन्सेज, गोलियां) तथा फ्लोरीनयुक्त दवाओं के प्रयोग से भी शरीर में प्रविष्ट हो सकता है।

शरीर में फ्लोराइड के प्रवेश के विभिन्न स्रोतों को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक है कि किसी रोगी की विगत समय की जानकारी प्राप्त करने के समय कुछ विशेष तथ्यों को सुनिश्चित कर लिया जाए:

1. पेयजल का स्रोत: हैण्डपंपों, ट्यूबवेलों एवं खुले कुओं से लिया गया उपचारविहीन भूमिगत जल की जानकारी अभिलिखित की जाए तथा पेयजल की जानकारी एकत्र की जाए एवं फ्लोराइड की जाँच की जाए।

2. रोगी का व्यवसाय: क्या वह पुरुष/महिला किसी औद्योगिक प्रतिष्ठान (संगठित/असंगठित क्षेत्र/कुटीर उद्योग) में कार्य करता है।

3. आदतें/व्यसन: क्या किसी विशिष्ट कारण से कोई विशेष दवा (उदाहरणार्थ

(1) अवसादरोधी यानी एण्टीडिप्रेसेण्टस

(2) ओटोस्कलेरोसिस के लिए अथवा

(3) ओस्टियोपोरोसिस के लिए सोडियम फ्लोराइड

(4) कोलेस्ट्रॉल-रोधी दवाएँ आदि) लम्बे समय से लेने की आदत हो।

4. भोजन संबंधी आदतें/व्यसन: क्या खाने में कुछ खास चीजों/पेय-पदार्थों के आदी हैं, जैसे-

(1) रॉक साल्ट (काला नामक) डालकर बनाए गए स्नेक्स, अचार या अन्य कोई ऐसी चीजें

(2) काली चाय (बिना दूध की)/नींबू डली चाय, सुपारी/तम्बाकू चबाना आदि।

यदि उच्च फ्लोराइड के उपर्युक्त स्रोतों (1-4) का सेवन किया जाता है तो शारीरिक द्रवों एवं पेयजल में फ्लोराइड का परीक्षण करके इसका पता लगाया जा सकता है।

स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव क्या हैं

फ्लोरोसिस रोग तीन रूपों में होता है:

1. दाँत संबंधी फ्लोरोसिस दंत फ्लोरोसिस बच्चों के साथ स्थाई दाँतों को प्रभावित करता है, जिसमें 8 वर्ष की आयु के बाद बच्चों के दाँतों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाले विवर्णता (Discoloration) आ जाती है।

2. अ-कंकालीय फ्लोरोसिस अ-कंकालीय फ्लोरोसिस इसका शरीर के सभी कोमल तंतुओं, अंगों एवं प्रणालियों पर अवश्य प्रभाव पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य संबंधी विभिन्न प्रकार की शिकायतें होती हैं।

3. कंकालीय फ्लोरोसिस कंकालीय फ्लोरोसिस यह शरीर की अस्थियों एवं जोड़ों को प्रभावित करता है, जैसे - (1) गर्दन (2) पीठ (3) पृष्ठ भाग (4) कंधे एवं (5) घुटनों के जोड़।

फ्लोरोसिस के सभी 3 रूपों में चिकित्सक/दंत चिकित्सक को विभेदकारी रोग निदान करना आवश्यक होता है, क्योंकि शिकायतें अन्य रोगों के लक्षणों से मिलती-जुलती हो सकती हैं। इस भाग में केवल दंत फ्लोरोसिस पर चर्चा की गई है। दाँत संबंधी अन्य विकृतियों से दंत फ्लोरोसिस के विभेदकारी रोगी निदान के बारे में भी विचार किया गया है।

दंत फ्लोरोसिस का ब्यौरा

नीचे दी गई जानकारी दंत-चिकित्सक के अलावा बाल रोग चिकित्सक, अंतःस्राव विशेषज्ञ (एंडोक्रायनोलॉजिस्ट) एवं जठरांत्र विशेषज्ञ के लिए मूल्यवान होगी। किसी रोगी के दाँतों को देखने केवल किसी दंत-चिकित्सक का ही कार्य नहीं माना जाना चाहिए। दाँतों की विवर्णता (Discoloration), डॉक्टर को बच्चे के दांतों को देखना चाहिए, वह रोगी की बीमारी के बारे में संदेह करने/उसके सार्थक निदान पर पहुंचने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी है।

1. दंत फ्लोरोसिस किसी बच्चे के दाँतों पर प्रभाव डालता है, किसी वयस्क व्यक्ति के नहीं। किसी वयस्क व्यक्ति में दंत फ्लोरोसिस दिख सकता है और इसका अर्थ होगा कि वह पुरुष/महिला अपने शुरुआती बचपन में उच्च फ्लोराइड के संपर्क में रहा था/थी।

2. दाँतों के कीटाणु प्रारंभिक विकास की अवस्थाओं के दौरान एम्ब्रियों में विकसित होते हैं। यदि माता, भाग-1 में उल्लिखित उच्च फ्लोराइड के स्रोतों में से किसी के संपर्क में हो, तो बच्चे में दंत फ्लोरोसिस का विकास हो जाएगा और एनेमेल की सतह पर नंगी आंखों से विवर्णता (Discoloration) दिखाई देगी। दाँतों पर विवर्णता 8 वर्ष और उससे अधिक आयु होने पर स्थाई दाँतों पर बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई देगी।

3. दंत फ्लोरोसिस में विवर्णता (Discoloration) एनेमेल की सतह पर दिखाई देती है।

दंत फ्लोरोसिस की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं। विवर्णता (Discoloration) जैसे कि:

आड़ी रेखाएं (कभी भी खड़ी नहीं होतीं) दाँत देखने में चाक जैसे सफेद रंग के दिखाई देंगे विवर्णता रेखाओं या बिंदुओं में दिखती है। मसूड़ों से दूर एनेमेल सतह पर दाँतों में जोड़े से दिखती हैं (कभी भी एक दाँत में नहीं) विवर्णता निम्न प्रकार से देखी जा सकती है:

  • सफेद दाँतों पर सफेद धब्बे
  • सफेद दाँतों पर पीला रंग (धब्बे या धारियाँ)
  • सफेद / पीले दाँतों पर भूरा रंग (धब्बे या धारियाँ)
  • सफेद / पीले दाँतों पर काला रंग (धब्बे या धारियाँ)

दंत फ्लोरोसिस की विविध प्रोफाइलों को निम्नलिखित 5 चित्रों में दर्शाया गया है:

  • सामान्य दाँत
  • प्रथम श्रेणी
  • द्वितीय श्रेणी
  • तृतीय श्रेणी
  • चतुर्थ श्रेणी

दाँत की अंतःसंरचना को क्षति:

दाँतों का रंग उड़ने या खराब होने यानी विवर्णता के अलावा, दाँतों की अंतःसंरचना में दरारों व फटने के अतिरिक्त दाँतों में गड्ढे और छिद्र हो जाते हैं। ये परिवर्तन प्रारंभिक अवस्थाओं में नंगी आंखों से दिखाई नहीं देती हैं। परंतु किसी सूक्ष्मदर्शी को उच्च आवर्धन (Higher Magnification) में रखकर दाँतों की अंतःसंरचना को हुई क्षति को देखा जा सकता है। यह स्थापित हो गया है कि संरचना संबंधी ये विकृतियाँ फ्लोराइड के जमाव के कारण होती हैं, जिसके बाद कैल्शियम का क्षरण होता है। निर्धारित कोलेजन मेट्रिक्स संरचात्मक एवं जैव-रासायनिक दृष्टि से दोषपूर्ण होता है जिसके परिणामस्वरूप अल्प-खनिजन (हाइपोमिनरलाइजेशन) होता है। इस प्रकार, दाँत बहुत कमजोर हो जाता है और उसमें से खिपची या चिप निकल जाती है।

दंत क्षरण से दंत फ्लोरोसिस का विभेदकारी निदान

1. दंत-क्षरण बैक्टीरियाजनित विकार है।

2. दंत-क्षरण दाँतों की विवर्णता यानी दाँतों के प्राकृतिक रंग के खराब होने के रूप में भी अभिव्यक्त होती है, किंतु दंत फ्लोरोसिस में ऐसा नहीं होता, दंत-क्षरण में विवर्णता भूरे रंग की और बिना किसी सुनिश्चित आकार के हो सकती है।

3. दंत फ्लोरोसिस के विपरीत, दंत-क्षरण में दाँतों में अंदर खाली जगह अर्थात केविटी बन जाती है, जिन्हें खाली आँखों से भी देखा जा सकता है। बैक्टीरिया द्वारा जो अम्ल (एसिड) बनाए जाते हैं, वह दाँतों को चबा डालेगा; बाद में केवल दाँतों की जगह का खाली स्थान बचा रहेगा। दंत-क्षरण में जो केविटीज दो दाँतों के बीच में अथवा क्राउन के आधार के पास, मंसूड़ों से लगकर जहां टूथ ब्रश नहीं पहुँचता है और भोजन के कण वहां जमा हो जाते हैं, जिससे बैक्टीरिया जनन-क्रिया करते हैं और अम्ल बनाते हैं।

4. दाँतों का एक प्रारूपी सैट जिसमें दंत-क्षरण को दिखाया गया है, विशेष टीप: केविटीज को ठीक करने में दाँतों की बहुत थोड़ी भूमिका होती है, इसके अलावा कि यह बैक्टीरिया मार सकता है, ताकि अम्ल का निर्माण न हो। यही फ्लोराइड टिश्यू एन्जाइम्स को अधिक नुकसान पहुँचाता है और इस तरह उनकी सतह को रोगग्रस्त बनाता है। दंत-क्षरण की रोकथाम के लिए फ्लोराइड को प्रयोग करना पुराने समय की और नैतिक दृष्टि से गलत धारणा है।

गंदे दाँतों से ‘दंत फ्लोरोसिस’ का विभेदकारी रोग निदान

1. गंदे दातों में सभी रंगों की विवर्णता (Discoloration) होगी, किंतु विवर्णता मसूढ़ों के साथ-साथ होगी, दाँतों के एनेमेल की सतह पर नहीं।

2. दंत चिकित्सक द्वारा गंदे दाँतों की सफाई कर पॉलिश किया जा सकता है।

3. जबकि नीचे के जबड़े के दाँतों में मसूढ़ों के साथ-साथ विवर्णता (Discoloration) है जो गंदे दाँतों की वजह से है, जिसे किसी दंत चिकित्सक द्वारा साफ किया जा सकता है।

स्त्रोत: इंडिया वॉटर पोर्टल

अंतिम बार संशोधित : 6/8/2019



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