मूत्र द्वार के नीचे एक बड़ा द्वार योनि के खोल तक जाता है। योनि द्वार एक पतली झिल्ली से ढंका रहता है जिसे श्लेष्मा झिल्ली (नाज़ुक, गुलाबी त्चचा जैसी झिल्ली) कहते हैं। लड़कियों में इस झिल्ली में एक या ज्यादा छेद होते हैं जिनसे आतर्व बहाव बाहर आता है। योनिच्छेद खेलने (जैसे भागने या कूदने) आदि से भी फट सकता है। उंगलियों से हस्तमैथुन जो कि एकदम सामान्य और आम क्रिया है, से भी यह फट सकता है। नहीं तो योनिच्छेद पहली बार संभोग के समय फटता है। हायमन के फटने से थोड़ा सा खून निकलता है। यौन शिक्षा में यह सब ज़रूर बताया जाना चाहिए। इससे कुँवारेपन के बारे में फालतू के डर और भ्रमों से बचा जा सकता है।
लघु भगोष्ठ में दो श्लेष्मा स्त्रावित करने वाली ग्रंथियाँ होती हैं। इनसे बहने वाले श्लेष्मा चिेकनाई युक्त द्रव्य से यौन क्रिया के दौरान योनि में चिकनापन हो जाता है जो महिला को संभोग क्रिया और बच्चे के जन्म के समय रगड के कारण फटने से बचाती है। इन ग्रंथियों को बारथोलिन ग्रंथियाँ कहते हैं और कोई संक्रमण रोग होने पर इन्हें आसानी से महसूस किया जा सकता है। कभी कभी इन ग्रंथियों में फोड़े भी हो जाते हैं।
बच्चे के जन्म के समय भग योनिच्छेद के पास किसी भी दिशा में फट सकता है। ऐसी चोटें घड़ी में सुई के कॉटे की समय की दिशा 4,5,6,7 और 8 बजे पर हो सकती हैं। ये चोटें भग और पेरिनियम की मॉस पेशियों को भी फाड़ देती हैं। पहले बच्चे के जन्म के समय डॉक्टर योनि के द्वार को घड़ी के 5 या 7 के आकार में काट कर बड़ा करना बेहतर समझते हैं। इसे भगछेदन कहते हैं।
आंतरिक जनन अंग की शुरूवात योनि मार्गसे होती है,असल में यह एक नली जैसा रास्ता है जिसका एक सिरा अंदर से एक नाजुक गुलाबी झिल्ली से ढंका रहता है। श्रोणी के निचले भाग में पेशियों की एक चादर में योनि स्थित होती है। योनि का यह रास्ता इसके द्वार से लेकर दंसरी तरफ गर्भाशय के मुख यानि गर्भाशयग्रीवा तक जाता है। यह रास्ता ढीला ढाला और फूला हुआ होता है। और बच्चे के जन्म के समय ज़रूरत के अनुसार इसके लम्बाई और चौडाई में यानी आकार व आकृति में बदलाव संभव है। योनि दीवार में स्थित अनेकों ग्रंथियों,कोशिकाओं में से निकला चिपचिपा पदार्थ इसे नमी युक्त बनाये रख्ताहै जो कि, संभोग और बच्चे के जन्म के समय लाभकारी होता है।
प्रजनन की उम्र तक इस का वातावरण अम्लीय होता है जो इसे संक्रमण से बचाता है| योनि के रास्ते के पीछे गुदा होती है (यानि कि बड़ी आंत का आखरी भाग)। सामने की ओर पेशाब की थैली और मूत्रमार्ग होता है।
गर्भाशय मुट्ठी के आकार का होता है और इसकी आकृति लंबे से अमरूद जैसी होती है। इसमें अंदर काफी सारी जगह होती है। गर्भाशय का गर्भाशयग्रीवा योनि में जा कर खुलती है। बच्चे के जन्म की प्रक्रिया के अलावा यह द्वार काफी छोटा होता है। जब तक किसी महिला का बच्चा या गर्भपात नहीं हुआ होता, गर्भाशयग्रीवा का द्वार या मुख काफी छोटा सा होता है। बच्चे के जन्म पश्चात यह फिर से ये सिर्फ इतना बड़ा हो जाता है कि छोटी उंगली का सिरा इसमें से जा सकता है।
गर्भाशय मुख्यत तीन भागो से बना होता है पहला बाहरी आवरण जो गर्भाशय को ढांक कर रखती है इसे पैरिमिट्रियम कहते है। दुसरा गर्भाशय की मॉस पेशियॉ जिसे मायोमिर्टियम कहते है ।इसकी सकुचन क्रिया गर्भवति महिला को प्रसव के समय शिशु के जन्म में मदद करती है। तिसरी और भीतरी एंडोमिट्रियम जो कोशिकाओ, रक्त वाहिनियो और ग्रंथी की परत होती है तथा हर माहवारी पर नये सिरे से बनती है। अगर महिला गर्भवति हो जाये तो यही परत शिशु को 9 महिने तक पोषण देने का कार्य करती है।
हर महीने एक अण्डाणु पूरा बनता है और सीधी या उल्टि तरफ वाली डिंब ग्रंथि में से (बारी बारी से) बाहर निकलता है। अंड – टयूब अंडे को अपने अंदर ले लेती हैं और अगर इसे निषेचित करने के लिए इस समय में शुक्राणु उपलब्ध हैं तो इस अंडे का निषेचन हो सकता है। अगर ऐसा हो जाए तो निषेचित अण्डाणु अपने को कोख में निरोपित कर लेता है।
डिंब ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित हारमोनों से महिलाओं में स्त्रीवत् गुण आते हैं। जैसे कि जननेद्रियों और स्तनों की वृध्दि, पतली आवाज़ और शरीर के आकार में गोलाई (वसा के कारण) और शरीर पर बालों का आना । हारमोन पूरी जिंदगी काम करते हैं। परन्तु ये प्रजनन की उम्र (13 से 45 साल) तक सबसे ज्यादा सक्रिय होते हैं। अगर किसी बिमारी के कारण डिंब ग्रंथियाँ निकाल देनी पड़ें तो उस महिला में कुछ पुरुषों वाले गुण आने लगते हैं जैसे मोटी आवाज़ और चेहरे पर बाल होना। इसका इलाज महिला हारमोनों से हो सकता है। डिंब ग्रंथियाँ पीयूषिका ग्रंथि से मिले रासायनिक संकेतों के अनुसार काम करती हैं।
स्त्रोत: भारत स्वास्थ्य
अंतिम बार संशोधित : 1/7/2020
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