रजोनिवृत्ति किसी भी महिला के जीवन में घटने वाली एक स्वभाविक घटना है| रजोनिवृत्ति का अर्थ है- डिम्बग्रन्थियों के कार्य में कमी के कारण मासिक धर्म का स्थायी रूप से रूक जाना| यह स्थिति डिम्ब ग्रंथियों द्वारा हार्मोनों – एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टोजन के उत्पादन में कमी आने का परिणाम होती है| अपने आप में रजोनिवृत्ति लगातार बारह महीनों तक मसकी धर्म न होने के बाद किसी महिला के जीवन में आया केवल एक दिन है, और इसके किसी भी अन्य जीव वैज्ञानिक अथवा शरीर क्रिया वैज्ञानिक कारण की पहचान नहीं की जा सकती है|
आप रजोनिवृत्ति के लिए अपने को निम्न प्रकार से तैयार कर सकती हैं
1. रजोनिवृत्ति के बारे में यह जानकारी एकत्र करके कि-
2. रजोनिवृत्ति को एक स्वभाविक घटना मान कर|
उक्त सभी बिंदूओं पर इस पुस्तिका में विचार किया गया है और आशा की जाती है कि आपके सभी प्रश्नों के उत्तर इसमें मिल जायेंगे|
रजोनिवृत्ति को बेहतर ढंग से समझने के लिए आइए सबसे पहले महिला के जननागों और मासिक धर्म चक्र को संक्षेप में समझें|
(वल्वा अथवा बाहरी योनि)
क) योनिद्वार
ख) गर्भाशय
ग) फेलोपियन यानी डिम्बवाही (गर्भाशय की) नली
घ) ओवरी यानी डिम्ब ग्रन्थियां
मैमोरी गलैंड्स यानी स्तन महिला प्रजनन तंत्र के सहायक अंग हैं| जन्म से ले कर रजोनिवृत्ति तक महिला के प्रजनन तंत्र में बहुत से परिवर्तन होते हैं|
गर्भाशय मासिक धर्म, गर्भधारण और शिशु जन्म के लिए महिला के शरीर में बना आन्तरिक जनन अंग है|
गर्भाशय के ऊपरी दो- तिहाई हिस्से को मुख्य भाग कहते हैं जहाँ डिम्बवाही नालियाँ दोनों ओर से जुड़ी होती हैं| गर्भाशय के निचले, गर्भाशय नलिकाओं वाले एक – तिहाई भाग को सर्विक्स अथवा गर्भाशय की गर्दन कहते हैं ( भारतीय महिलाओं में सर्विक्स का कैंसर सर्वाधिक आम घातक रोग है जिसकी नियमित वार्षिक जाँच द्वारा और समान्यत: पेप सिम्यर नाम से ज्ञात एक सामान्य परीक्षण द्वारा रोकथाम की जा सकती है)
डिम्बग्रंथियों महिला की यौन ग्रंथियों के जोड़ा है| इनका काम यौन हार्मोन और ओवम यानी डिम्ब (अंडे) बनाना है|
डिम्ब ग्रंथियों से निकलने वाले यौन हार्मोन क्या हैं?
डिम्ब ग्रंथियों से निकलने वाले यौन हार्मोन निम्नलिखित हैं
क) एस्ट्रोजन
ख) प्रोजेस्ट्रोन
ग) एंड्रोजन
(डिम्ब ग्रंथियां थोड़ी – सी मात्रा में दो पुरूष हार्मोन, टेस्टोस्टेरोन और एंड्रोस्टेनेडीयन भी बनाती हैं)|
एस्ट्रोजन का पूर्ण शरीरिक प्रभाव बालिका के यौन परिपक्वता से युक्त महिला बनने में देखा जा सकता है| एस्ट्रोजन जननांगों के विकास में योगदान करता है अरु विकसित होने पर जननांगों को प्रजनन हेतु चक्रीय रूप से सक्रिय कर्ट है| एस्ट्रोजन सभी गौण यौन विशेषताओं के विकास में भी मदद करता है (जैसे कि स्तनों का विकास)| वह त्वचा को कोमल, मुलायम और कसी हुए बनाए रखता है और अस्थि पंजर (हड्डियों), संवहन (वैस्क्यूलर) प्रभाव, तंत्रिका तंत्र, सेल्यूलर प्रभाव, आदि की ताकत को बनाए रखता है| एस्ट्रोजन योनि के अस्त्र को मोटा करने और उसके अम्लीय वातावरण में मदद करता है| यह योनिद्वार को रोग संक्रमण से बचाता है|
जब डिम्ब ग्रंथियों डिम्ब या अंडे को मुक्त करने के लिए पर्याप्त हार्मोन पैदा नहीं कर पातीं या माहवारी का रक्त और ऊतक (टिशूज) तैयार नहीं कर पातीं तो डिम्बों का उत्पादन और माहवारी दोनों रूक जाते हैं| मासिक धर्म समाप्त होने के बाद कुछ डिम्ब ग्रन्थियां थोड़ी मात्रा में एस्ट्रोजन पैदा करती रहती हैं|
माहवारी योनि से होने वाले मासिक रक्तस्राव है जो औसतन 28 दिन के अंतर के बाद एस्ट्रोजन – प्रोजेस्ट्रोन द्वारा तैयार किए गए गर्भाशय अस्तर से निकलता है| यह प्रक्रिया प्रथम माहवारी (मेनार्ची) से लेकर रजोनिवृत्ति तक पूरे प्रजनन काल में जारी रहता है| मासिक धर्म का चक्र माहवारी के साथ शुरू होता है और इस चक्र के आरंभ में जा कर रूकता है|माहवारी की समूची क्रियाविधि हार्मोन- नियंत्रण पर निर्भर करती है| यह मुख्यत: हैपोथालेमस और अग्रवर्ती सीटूएटरी (जो मस्तिष्क में स्थित होती है) तथा डिम्ब ग्रंथियों से होता है| थायराइड और अधिवृक्क (अर्डिनाल) कोर्टेक्स (प्रंतास्था) अप्रत्यक्ष रूप से इस क्रियाविधि पर प्रभाव डालते हैं|
नियमित मासिक धर्म चक्र से लेकर मासिक धर्म के रूक जाने तक का सफर एकाएक खत्म हो जाए| ऐसा बिरले ही मामलों में होता है| ज्यादातर महिलाओं को पता छाल जाता है कि रजोनिवृत्ति का वक्त नजदीक आ गया है| माहवारी के चक्र में बदलाव आने के साथ ही वे यह समझ लेती हैं| माहवारी में बदलाव का मतलब है कि वह नियमित न हो कर कभी-कभी हो| या फिर काफी देर के बाद हो या खून चकतों के साथ काफी भारी मात्रा में हो|
रजोनिवृत्ति से जुड़े विभिन्न प्रमुख पहलुओं को दर्शाने वाले विभिन्न शब्द/शब्द – समूह इस प्रकार हैं:
1. स्वभाविक मेनोपॉज अर्थात रजोनिवृत्ति का अर्थ है डिम्ब ग्रंथियों के कार्य में कमी की वजह से माहवारी का स्थायी रूप से समाप्त हो जाना|
यह माना जाता है कि स्वभाविक रजोनिवृत्ति लगातार बारह महीनों तक मासिक धर्म न होने के बाद होती है और इसका कोई अन्य स्पष्ट रोग वैज्ञानिक अथवा शरीरिकक्रिया वैज्ञानिक कारण नहीं होता|
2. पेरिमेनोपौज अर्थात रजोनिवृत्ति से तत्काल पहले की अवधि (जब रजोनिवृत्ति के नजदीक आने के लक्षण शुरू होते हैं) और रजोनिवृत्ति के बाद का एक वर्ष|
3. मेनोपॉज ट्रांजीशन अर्थात रजोनिवृत्ति संक्रमण अंतिम माहवारी की अवधि से पहले की अवधि को कहते हैं जब मासिक धर्म चक्र की अस्थिरता अक्सर बढ़ जाती है| संक्रमण का यह दौर औसतन 3 से 4 वर्ष तक का रहता है|
4. सर्जिकल मेनोपॉज अथवा अभिप्रेरित रजोनिवृत्ति का अर्थ है दोनों डिम्ब ग्रंथियों (गर्भाशय हटाने के साथ या उसके बिना) को शल्य चिकित्सा द्वारा निकाल देने या केमोथैरोपी अथवा रेडिएशन से डिम्ब ग्रंथियों के कार्य में चिकित्सा – हस्तक्षेप करने के बाद माहवारी समाप्त होना|
5. सिंपल (सरल) हिस्टेरेटामी (यानी गर्भाशय को हटाना)- इसमें केवल गर्भाशय को या एक डिम्ब ग्रंथि को हटाया जाता है|
6. पोस्ट मेनोपॉज यानी रजोनिवृत्ति- के बाद का समय| इसे अंतिम माहवारी के अवधि के बाद की अवधि के रूप में परिभाषित किया जाता है चाहे रजोनिवृत्ति प्रेरित हो या स्वभाविक हो|
7. प्रीमेच्योर मेनोपॉज अर्थात समय से पहले रजोनिवृत्ति- आदर्शत: तो समय से पहले रजोनिवृत्ति को ऐसी रजोनिवृत्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है जो औसत अनुमानित रजोनिवृत्ति की आयु से कम आयु में होती है| उदाहरण के लिए, विकाशील देशों में 40 वर्ष के आयु में रजोनिवृत्ति की आयु मान लिया जाता है| जिन महिलाओं को इस पहले रजोनिवृत्ति हो जाए उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें समय से पहले रजोनिवृत्ति (प्रीमेच्योर मेनोपॉज) हो गई है|
रजोनिवृत्ति की आयु भौगोलिक, नस्लीय, पोषण संबंधी और अन्य कारणों से अलग-अलग महिलाओं में अलग-अलग हो सकती है|
भारत और अन्य विकासशील देशों में रजोनिवृत्ति की औसत आयु 45 से 50 वर्ष के बीच होती है|
जो महिलाओं धूम्रपान करती हैं, जिन्होने कभी गर्भधारण नहीं किया और जो निम्न सामाजिक – आर्थिक पृष्ठभूमि से आती हैं,| उनकी रजोनिवृत्ति कम आयु में होने की संभावना रहती है| हाल में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि जिन महिलाओं की माहवारी का चक्र 26 दिन से कम का होता है उनकी रजोनिवृत्ति अधिक लम्बे माहवारी चक्र वाली महिलाओं की तुलना में 1.4 वर्ष पहले हो जाती है रजोनिवृत्ति की अधिक आयु का सम्बद्ध दीर्घ आयु से जोड़ा जा सकता है| अधिकतर रिपोर्ट यह दर्शाती हैं कि विकसित देशों की महिलाओं से विकाशील देशों की महिलाओं की आयु प्रथम माहवारी के समय अधिक तथा रजोनिवृत्ति के समय कम होती है|
डिम्ब ग्रंथियों के काम न करने की वजह से रजोनिवृत्ति के समय महिला में अनेक परिवर्तन आते हैं|
डिम्ब ग्रंथियों के मंद पड़ने से काफी पहले ही एस्ट्रोजन उत्पादन के वैकल्पिक स्रोत शरीर के वसायुक्त हिस्सों में और एडरिनल (अधिवृक्क) ग्रंथियों में काम करने लगते हैं| जब डिम्बग्रंथियों से प्राप्त होने वाले एस्ट्रोजन की मात्रा कम होने लगती है तो हमारी एडरिनल ग्रंथिया धीरे-धीरे उनका दायित्व पूरा करने लगती हैं और रजोनिवृत्ति के बाद एस्ट्रोजन का प्रमुख स्रोत बन जाती हैं | यह कार्य हमारे रक्त और वसायुक्त ऊतकों में एंड्रोस्टेनेडीयन नमक स्राव एस्ट्रोजन ( एक गैर – डिम्ब ग्रंथि प्रकार का एस्ट्रोजन) में बदल कर किया जाता है| कसरत से बदलाव की यह प्रक्रिया तेज होती है और हम पर्याप्त कसरत और आराम के साथ स्वस्थ आहार (पर्याप्त विटामिन बी और सी सहित) ले कर एडरिनल ग्रंथि के काम को आसान बना सकते हैं|
ये बदलाव क्रमिक रूप से और गूपचूप तरीके से होते हैं तथा अलग- अलग व्यक्तियों को अलग-अलग हो सकते हैं| ये बदलाव मुख्य रूप से एस्ट्रोजन की कमी की वजह से होते हैं|
रजोनिवृत्ति से अनेक लक्षणों का संबंध जोड़ा जाता है| डिम्ब ग्रंथि के कार्य की क्षति से होने वाले लक्षणों और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया से होने वाले या प्रौढ़ जीवन के वर्षों के सामाजिक – वातावरणगत तनावों से पैदा होने वाले लक्षणों के बीच अक्सर कम ही भेद किया जाता है| उम्र बढ़ने से प्रभावों और रजोनिवृत्ति के प्रभावों के बीच भेद करना तो खास तौर पर कठिन है|
रजोनिवृत्ति एक भूत ही निजी किस्म का अनुभव है| रजोनिवृत्ति के सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं:
हॉट फ्लश यानी अचानक उत्तापन और उत्तेजना और रात को पसीने से तरबदर हो जाना- ये शरीर की ताप-नियमनकारी प्रणाली में आने वाले विध्न हैं जो रजोनिवृत्ति की विशेषता हैं|
उत्तापन या उत्तेजना में चेहरे, गर्दन और छाती में अचानक गर्मी महसूस होने लगती है| इसका संबंध त्वचा के फैले हुए या चकत्तेदार रूप में लाला होने, अत्यधिक पसीना पसीना आने और अक्सर धडकन बढ़ जाने, चिडचिडापन और सिरदर्द से है| शुरू में शरीर के ऊपरी भाग में गर्मी महसूस होती है और फिर वह पूरे शरीर के ऊपर से नीचे तक फ़ैल जाती है| इस उत्तेजना का संबंध शारीरिक बेचैनी से है और यह लगभग 3 मिनट तक रहती है|
जो महिलाएं दोनों डिम्ब ग्रंथियों को शल्य चिकित्सा द्वारा निकलवा कर उत्प्रेरित रजोनिवृत्ति प्राप्त करती हैं,उनमें स्वभाविक रजोनिवृत्ति वाली महिलाओं की तुलना में यह उत्तेजना अह्दिक गंभीर और तीव्र होती है|
ये वैसोमीटर यानी वाहिका – प्रेरक संबंधी लक्षण हार्मोनों से संबंधित हैं और कुछ सप्ताहों से ले कर कुछ वर्षों तक बीच-बीच में हो सकते हैं|
अधिकतर महिलाओं में रजोनिवृत्ति की ओर बढ़ने का पहल संकेत होता है – मासिक धर्म के चक्र में बदलाव आना| रजोनिवृत्ति की ओर बढ़ने के दौरान मासिक धर्म के रूप में बदलाव आता है| खून का निकलना अनियमित हो जाता है जिसका कारण हार्मोन स्तर में होने वाले उतार-चढ़ाव होते हैं| कुछ महिलाओं की माहवारी अचानक रूक जाती है| कुछ महिलाओं को माहवारी पहले से अधिक बार होने लगती है, कुछ अन्य महिलाओं को बीच-बीच में मासिक धर्म नहीं होता या काफी देर के बाद होता है, कुछ महिलाओं के मामले में माहवारी की अवधि छोटी हो जाती है, और खून भी कम निकलता है या फिर थक्कों के साथ काफी गाढ़ा खून निकलता है| इस तरह का उतार-चढ़ाव रजोनिवृत्ति से पूर्व एक वर्ष या उससे भी अधिक समय तक आते रह सकते हैं| पर इस अवधि में खून बहने और किसी संभावित रूप से गंभीर वहज से खून बहने के बीच अंतर करना जरूरी है| इसलिए रजोनिवृत्ति से तत्काल पहले की अवधि में महिला के लिए जाँच कराना जरूरी है ताकि खून बहने के अगर कोई रोग- संबंधी कारण हों तो उनका पता लगाया जा सके|
प्रौढ़ आयु की, अनियमित मासिक धर्म वाली महिलाओं को गर्भधारण का खतरा तब तक बना रहता है, जब तक कि उन्हें औसतन 24 महीने तक मासिक धर्म न हो|
रजोनिवृत्ति के एक वर्ष बाद योनि से खून निकलने को उत्तर – रजोनिवृत्ति रक्तस्राव कहते हैं| इस रक्तस्राव के अनेक कैंसरकारी और गैर – कैंसरकारी कारण हो सकते हैं|
रजोनिवृत्ति के बाद योनि से खून बहने के महत्वपूर्ण असाध्य (कैंसरकारी) कारण इस प्रकार हैं-
अत: रजोनिवृत्ति के एक वर्ष बाद योनि से किसी भी प्रकार का रक्तस्राव हो तो उसकी पूरी जाँच जरूरी है – यह जानने के लिए कि वह घातक तो नहीं है|
इसके लिए निम्न प्रकार की जांचें की जाती हैं:
एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और टेस्टस्टेशेन हार्मोनों का स्तर निम्न हो जाने के कारण कुछ महिलाओं की यौन दिलचस्पी कम हो जाती है| योनि के सूखेपन और अल्प संवहन के कारण, तथा बाद में योनि अस्तर के पतला हो जाने और योनि की क्षीणता की वजह से संभोग के दौरान दर्द होता है|
बढ़ती उम्र की महिलाओं में मूत्र संबंधी समस्याएँ समान्य बात हैं और वे रजोनिवृत्ति से तत्काल पहले के चरण में सामने आ सकती हैं| पेशाब जोर से आना, बार- बार आना, पेशाब रोकने में कठिनाई, आदि जैसे लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं| एस्ट्रोजन की कमी से मूत्र – पथ संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है|
कुछ अनेक बार उल्लिखित लक्षण हैं- अवसाद अथवा डिप्रेशन, स्नायविक तनाव, धड़कन, तेज होना, सिरदर्द, चिडचिडापन, अनिद्रा, ऊर्जा का अभाव, तरल अवरोधन (फ्ल्यूइड रिटेंशन), पीठ दर्द, ध्यान न लगना चक्कर आना आदि|
जीवन की तनावपूर्ण घटनाएँ बार- बार विषादपूर्ण मन: स्थितियों को जन्म देते हैं और प्रौढावस्था में ऐसी घटनाएँ घटती रहती हैं|
स्रोत : वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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