हम नारायणपुर में पानी से भरे जोहड़ के किनारे खड़े थे। मानसून के मौसम के लंबे समय बाद यह अप्रैल के महीने में एक गर्म दिन था, , जब कई छोटे जल संचयन संरचनाएं खाली हो जाती हैं। लेकिन यह जोहड़ नारायणपुर के निवासियों को साल भर मीठा पानी प्रदान कर रहा था। नारायणपुर हरियाणा में रेवाड़ी जिले में एक गांव है, जहां भूजल मुख्य रूप से खारा है और पीने योग्य नहीं है। कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी, रेवाड़ी द्वारा किए गए जल गुणवत्ता परीक्षणों से पता चला है कि केवल 24% ट्यूब-वेल अच्छी गुणवत्ता के हैं और शेष पानी लवणता और सोडियम की बदलती मात्रा के साथ प्रभावित है।
नारायणपुर में जीर्ण जोहड़ की मरम्मत करने हेतु खुद को जोश से भरने के लिए गाँव नारायणपुर की मुट्ठीभर महिलाओं ने एक नारा अपनाया, जोहड़ है तो गांव है। "आमतौर पर हमें पानी की एक बूंद के लिए घंटों इंतज़ार करना पड़ता था और गर्मी के दिनों में हमें एक मटका भर मीठे पानी के लिए कई दिनों तक इंतज़ार करना पड़ता था, और अंत में एक बहुत लम्बे इंतजार के बाद हम हैंडपम्प व कुएं से खारे पानी का उपयोग करने के लिए मजबूर होते थे,” पुराने दिनों को याद करते हुए ललिता ने कहा।
गांव को मीठे पानी के लिए बाहर के पानी पर निर्भर होना पड़ता था क्योंकि वह पर्याप्त रूप से गांव के भीतर नहीं था। पानी के लिए इंतज़ार और दर-दर की ठोकरें खाकर महिलाएं तंग आ चुकी थीं। जब किरण और कुछ अन्य महिलाओं ने यह काम शुरू किया, तो वे अकेली थीं। हौसला हारे बिना उन्होंने जोहड़ की खुदाई और समतलीकरण का श्रमसाध्य कार्य खुद अपने हाथों में लिया। अंत में, गांव की अन्य महिलाएं भी उनके साथ इस काम में शामिल हो गईं। इस काम को पूरा करने में उन्हें पूरे 5 महीने लग गए।
हरियाणा में रेवाड़ी जिले में 225 परिवारों के एक गांव नारायणपुर में वर्षा में कमी तथा और भूजल स्तर गिरावट तेजी से देखी गई है। वास्तव में केन्द्रीय भूमि जल प्राधिकरण द्वारा रेवाड़ी जिले के अधिकांश हिस्से को अत्यधिक दोहन किए जाने वाले क्षेत्र के के रूप में निर्दिष्ट किया गया है।
हरियाणा का पेयजल आपूर्ति विभाग नारायणपुर के लिए पीने के पानी की आपूर्ति पड़ोसी गांव पुनिस्का से करता था। 2007 में पानी की गंभीर कमी के चलते पुनिस्का के लोगों ने नारायणपुर के साथ अपना पानी साझा करने से इन्कार करने पर विवश कर दिया। कुछ वर्षों के लिए, पानी के आपूर्ति विभाग ने टैंकरों के माध्यम से पानी प्रदान किया। लेकिन, पानी की आपूर्ति अनियमित व अपर्याप्त थी। कुछ परिवारों ने पीने का पानी खरीदना शुरू कर दिया। इस मोड़ पर, गांव की कुछ महिलाओं ने उस पुराने तालाब को पुनर्जीवित करने के बारे में सोचा जो पाइपलाइन द्वारा 1990 में शुरू की गई पानी की आपूर्ति से पहले पीने के पानी का स्रोत हुआ करता था। तब से तालाब या जोहड़ चलन में नहीं था।
इस परियोजना के लिए मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए महिलाओं ने ग्रामीण पहल और प्रगति के लिए सामाजिक केन्द्र (SCRIA) से संपर्क किया। SCRIA सहमत हो गया और उसने महिलाओं को गांव से वित्त का कुछ हिस्सा जुटाने को कहा। गांव ने 31950/- रुपये का योगदान दिया और SCRIA जोहड़ का पुनरुद्धार करने के लिए बाकी की रकम का योगदान करने के लिए सहमत हो गया। महिलाएं स्वयं हार्डवेयर की दुकानों पर सामग्री खरीदने गईं और उन्होंने परियोजना का उद्देश्य समझाया तथा कीमत कम करने के लिए सौदेबाजी की। उन्होंने श्रमदान के माध्यम से भी लागत के कुछ हिस्से का भुगतान किया। कुल लागत रु. 73,950 आई तथा SCRIA ने मार्च 2009 में पूर्ण हुई परियोजना के लिए शेष रुपये 42,000 का योगदान दिया।
पुराने जराक्रांत जोहड़ से मीठे पानी से भरे तालाब की यात्रा आसान नहीं थी। प्रारंभिक दिनों में, महिलाओं का एक छोटा समूह हर सुबह अपने घरों को छोड़, पैसे इकट्ठे करने और गांव के व्यवसायियों से रियायत पर निर्माण सामग्री इकट्ठी करने के लिए निकल पड़ती थीं। गांव के पुरुष हंसी-ठट्ठा करते थे और उनका मज़ाक उड़ाते थे। महिलाओं दृढ़ संकल्प थीं और नवीकरण साइट पर पूरे दिन परिश्रम करती थीं। उनके दृढ़ संकल्प को देखकर गांव की अन्य महिलाएं भी उनमें शामिल हो गईं।
जोहड़ से पानी दो ट्यूबवेल के माध्यम से पहुँचता है। इनमें से एक पाइपलाइन के माध्यम से खारा पानी प्रदान करता है जो पानी की एक मौजूदा पाइपलाइन के साथ जोड़ी गई है। मीठा पानी के खड्डे से पानी पाइपलाइन के माध्यम से नहीं वितरित किया जाता है। लोगों को नलकूप तक आना पड़ता है और पीने तथा खाना पकाने के लिए केवल दो से तीन बर्तन पानी प्रति घर के हिसाब से ले जाते हैं। गांव की सरपंच अनीता ने बताया कि ऐसा मीठे पानी के स्रोत की स्थिरता को बनाए रखने जानबूझकर किया गया था। चूंकि गांव की सभी महिलाएं निश्चित घंटों के दौरान जल स्रोत पर इकट्ठी होती हैं, कोई भी अधिक पानी नहीं ले जा सकता है। इसके अलावा, चूंकि पानी को सिर पर ढोकर ले जाना होता है और जोहड़ लगभग 800 मीटर की दूरी पर स्थित है, 2-3 बर्तन से अधिक पानी ले जाना आसान काम नहीं है।
गांव की महिलाओं द्वारा लिए गए इस निर्णय का आज दो साल बाद भी पालन किया जाता है। "गांव में मीठा पानी भगवान का एक आशीर्वाद है। हम इसका हमारे मंदिर की तरह आदर करेंगे”, गांव की एक बुज़ुर्ग महिला ने कहा।
जोहड़ में पानी साल भर रहता है और सभी जरूरतों के लिए गांव को पानी उपलब्ध कराता है। इसके बाद जोहड़ के समीप ही गांव ने एक स्कूल में एक और वर्षा जल संचयन प्रणाली का निर्माण किया। स्कूल की छत और अन्य जगहों से पानी छाना जाता है और जलसंचय के हिस्से को पुनः भरा जाता है। चूंकि यह जोहड़ के बहुत निकट है, यह पुनर्भरण जोहड़ में जल स्तर बनाए रखने में मदद करता है। गांव ने पानी की अत्यधिक मांग करने वाली धान की फसल नहीं लगाने का भी निर्णय लिया।
यह गांव अब पड़ोसी गांवों के लिए एक आदर्श गांव बन गया है। धीरे-धीरे लेकिन लगातार परिवर्तन आसपास के गांवों में देखा जा सकता है।
स्त्रोत
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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