बायोगैस ऊर्जा का एक ऐसा स्रोत है, जिसका बारंबार इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका उपयोग घरेलू तथा कृषि कार्यों के लिए भी किया जा सकता है।
इसका मुख्य घटक हाइड्रो-कार्बन है, जो ज्वलनशील है और जिसे जलाने पर ताप और ऊर्जा मिलती है। बायोगैस का उत्पादन एक जैव-रासायनिक प्रक्रिया द्वारा होता है, जिसके तहत कुछ विशेष प्रकार के बैक्टीरिया जैविक कचरे को उपयोगी बायोगैस में बदला जाता है। चूंकि इस उपयोगी गैस का उत्पादन जैविक प्रक्रिया (बायोलॉजिकल प्रॉसेस) द्वारा होता है, इसलिए इसे जैविक गैस (बायोगैस) कहते हैं। मिथेन गैस बायोगैस का मुख्य घटक है।
बायोगैस निर्माण की प्रक्रिया उल्टी होती है और यह दो चरणों में पूरी होती है। इन दो चरणों को क्रमश: अम्ल निर्माण स्तर और मिथेन निर्माण स्तर कहा जाता है। प्रथम स्तर में गोबर में मौजूद अम्ल निर्माण करनेवाले बैक्टीरिया के समूह द्वारा कचरे में मौजूद बायो डिग्रेडेबल कॉम्प्लेक्स ऑर्गेनिक कंपाउंड को सक्रिय किया जाता है। चूंकि ऑर्गेनिक एसिड इस स्तर पर मुख्य उत्पाद होते हैं, इसलिए इसे एसिड फॉर्मिंग स्तर कहा जाता है। दूसरे स्तर में मिथेनोजेनिक बैक्टीरिया को मिथेन गैस बनाने के लिए ऑर्गेनिक एसिड के ऊपर सक्रिय किया जाता है।
बायोगैस उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे पदार्थ
हालांकि जानवरों के गोबर को बायो गैस प्लांट के लिए मुख्य कच्चा पदार्थ माना जाता है, लेकिन इसके अलावा मल,मुर्गियों की बीट और कृषि जन्य कचरे का भी इस्तेमाल किया जाता है।
बायोगैस के दो मुख्य मॉडल हैं : फिक्स्ड डोम (स्थायी गुंबद) टाइप और फ्लोटिंग ड्रम (तैरता हुआ ड्रम) टाइप
उपर्युक्त दोनों मॉडल के निम्नलिखित भाग होते हैं :
1) डाइजेस्टर : यह एक प्रकार का टैंक है, जहां विभिन्न तरह की रासायनिक प्रतिक्रिया होती है। यह अंशत: या पूर्णत: भूमिगत होता है। यह सामान्यत: सिलेंडर के आकार का होता है और ईंट-गारे का बना होता है।
2) गैसहोल्डर : डाइजेस्टर में निर्मित गैस निकल कर यहीं जमा होता है। इसके उपर से पाइपलाइन के माध्यम से गैस चूल्हे के बर्नर तक ले जायी जाती है।
3) स्लरीमिक्सिंगटैंक : इसी टैंक में गोबर को पानी के साथ मिला कर पाइप के जरिये डाइजेस्टर में भेजा जाता है।
4) आउटलेटटैंकऔरस्लरीपिट : सामान्यत: फिक्स्ड डोम टाइप में ही इसकी व्यवस्था रहती है, जहां से स्लरी को सीधे स्लरी पिट में ले जाया जाता है। फ्लोटिंग ड्रम प्लांट में इसमें कचरों को सुखा कर सीधे इस्तेमाल के लिए खेतों में ले जाया जाता है।
जगहकाचुनाव: जगह का चुनाव करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :
कच्चेपदार्थोंकीउपलब्धता : कच्चे पदार्थों की उपलब्धता पर ही बायो गैस संयंत्र का आकार निर्भर करता है। यह माना जाता है कि जानवर से प्रतिदिन 10 किलो गोबर मिलता है। गोबर से औसतन 40 लीटर किलो गैस का उत्पादन होता है। अत: 3 घन मीटर बायोगैस उत्पादन के लिए 75 किग्रा गोबर की आवश्यकता पड़ेगी, जिसके लिए कम से कम चार जानवरों की जरूरत पड़ेगी।
विभिन्न उत्पादों से अधिकतम औसत बायोगैस उत्पादन
* गोबर से औसत 40 लीटर किग्रा बायो गैस प्राप्त किया जा सकता है, जबकि ताप नियंत्रण की कोई व्यवस्था संयंत्र में न हो। 1 घन मीटर गैस = 1000 लीटर |
औसत गोबर की प्राप्ति
नोट: स्वतंत्र रूप से चरनेवाले जानवरों से तालिका में दिये गये मात्रा से 50 प्रतिशत तक प्राप्त किया जा सकता है। |
विभिन्न आकार के बायोगैस संयंत्र के लिए जानवरों की आवश्यकता
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सामान्यतया इस्तेमाल किये जानेवाले ईंधनों का ताप मापदंड
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बायोगैस की आवश्यकता
|
बायोगैस स्लरी के पोषक तत्वों की जानकारी
|
N |
P2O5 |
K2O |
बायोगैस स्लरी |
1.4 |
0.8 |
1.0 |
फार्म यार्ड मेन्यूर |
0.5 |
0.2 |
0.5 |
टाउन कम्पोस्ट |
1.5 |
1.0 |
1.5 |
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के परिसर में विभिन्न कैंटीन की रसोई में उत्पन्न अपशिष्ट के पर्यावरण के अनुकूल निपटान के लिए नर्सरी में रसोईघर के अपशिष्ट पर आधारित के बायोगैस संयंत्र स्थापित किया गया है। यह आशा की गई है कि इन कैंटीनों में उत्पन्न समस्त अपशिष्ट को यह संयंत्र प्रसंस्कृत कर सकता है।
बायोगैस संयंत्र के निम्नलिखित भाग हैं:
प्रक्रिया
भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में बायोगैस संयंत्र के पारंपरिक डिजाइन में ये दो महत्वपूर्ण संशोधन किए गए हैं :
प्रीडाइजेस्टर टैंक में उच्च तापमान बनाए रखा जाता है। प्रीडाइजेस्टर टैंक में गर्म पानी के साथ अपशिष्ट मिश्रण और 55-60oC की रेंज में तापमान बनाए रखने से थर्मोफाइल्स का विकास सुनिश्चित होता है। गर्म पानी की आपूर्ति एक सौर हीटर से की जाती है। यहां तक कि सूरज की एक घंटे प्रति धूप दिन भर गर्म पानी बनाए रखने के लिए पर्याप्त है।
ठोस अपशिष्ट पर आधारित बायोगैस संयंत्र के सुचारू संचालन में एक और महत्वपूर्ण पहलू है कारगर ढंग से संयंत्र को चोकिंग से बचाना। यह चोकिंग मोटे बायोमास के कारण हो सकती है जो पचाने में सूक्ष्मजीवों के लिए दुर्गम हो सकता है। ऐसी समस्या के लिए तार्किक समाधान है ठोस अपशिष्ट क ओस्लरी में बदलना जो माइक्रोबियल क्रिया के लिए सुलभ होती है। ठोस अपशिष्ट को स्लरी में बदलने के लिए एक उच्च शक्ति के मिक्सर का उपयोग कर इस उद्देश्य को प्राप्त किया जा सकता है।
प्रीडाइजेस्टर टैंक के बाद स्लरी मुख्य टैंक में प्रवेश करती है जहां मीथेनोकॉकस समूह के आर्कीबैक्टीरिया के एक संघ द्वारा मुख्य रूप से इसका एनैरोबिक डीग्रेडेशन होता है। ये जीवाणु जुगाली करनेवाला जानवरों (पशु) के भोजनप्रणाली में स्वाभाविक रूप से मौजूद होते हैं। वे मुख्य रूप से स्लरी में मौज़ूद सेल्युलोज़िक पदार्थों से मीथेन का उत्पादन करते हैं।
बगैर पचे हुए लिग्नोसेल्युलोज़िक तथा हेमिसेल्युलोज़िक पदार्थ सेटलिंग टैंक में भेजे जाते हैं। लगभग एक महीने के उच्च गुणवत्ता वाली खाद सेटलिंग टैंक से बाहर निकाली जा सकती है। खाद में कोई गंध नहीं होती है। जैविक सामग्री उच्च होती है और यह मिट्टी में प्रजनन के लिए जिम्मेदार धरण की गुणवत्ता में सुधार कर सकती है।
जैसे-जैसे गैस मुख्य टैंक में उत्पन्न होती है, गुंबद धीरे-धीरे ऊपर उठता है। यह अधिकतम 8 फीट अधिकतम ऊंचाई तक पहुँचता है जिसमें गैस की के 35 m3 समाती है। यह गैस मीथेन (70-75%), कार्बनडाइऑक्साइड (10-15%) और जल वाष्प (5-10%) का मिश्रण होती है। इसे जीआइ पाइपलाइन के माध्यम से लैम्प-पोस्ट तक ले जाया जाता है। पाइपलाइन में कंडेंस्ड जल वाष्प के लिए ड्रेन प्रदान किए जाते हैं। यह गैस नीली लौ के साथ जलती है और इसे खाना पकाने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
इस संयंत्र में उत्पान गैस, संयंत्र के आसपास रोशनी के लिए प्रयुक्त की जाती है। इस गैस का अन्य उपयोग एक कैंटीन में हो सकता है। उत्पन्न खाद उच्च गुणवत्ता की होती है और खेतों में इस्तेमाल की जा सकती है।
इस बायोगैस संयंत्र की सफलता बहुत हद तक रसोई घर के कचरे के उचित अलगाव पर निर्भर करती है। संयंत्र के कुशल संचालन में बाधा उत्पन्न कर सकने वाली सामग्री हैं नारियल के आवरण व कॉयर, अंडे के छिलके, प्याज के छिलके, हड्डियों और प्लास्टिक के टुकड़े। बर्तन, चम्मच आदि जैसे स्टील के बर्तन कैंटीन के अपशिष्ट के बैग में होने की संभावना रहती है। जबकि हड्डियां, छिलके और और बर्तन मिक्सर को नुकसान पहुंचा सकते हैं, प्याज के छिलके, कॉयर और प्लास्टिक प्रीडाइजेस्टर व मुख्य टैंक में माइक्रोबियल संघ और मुख्य पाचन टैंक पर हानिकारक प्रभाव डाल सकते हैं जो संयंत्र के लिए विनाशकारी हो सकता है।
स्रोत : http://www.dae.gov.in/ni/ninov02/biogas.htm
शक्ति-सुरभि रसोई घर के अपशिष्ट पर आधारित बायोगैस संयंत्र है। यह एक पारंपरिक बायोगैस संयंत्र के समान सिद्धांतों पर काम करता है, लेकिन इसे शहरी जरूरतों के अनुरूप संशोधित किया गया है। यूनिट में अपशिष्ट का एक इनलेट फ़ीड पाइप होता है, एक डाइजेस्टर, गैस होल्डर, पानी का जैकेट, एक गैस वितरण प्रणाली और एक आउटलेट पाइप भी मौजूद होता है। यह विवेकानंद केंद्र, प्राकृतिक संसाधन विकास परियोजना, कन्याकुमारी, तमिलनाडु द्वारा विकसित किया गया है।
यह इकाई किस तरह से एक पारंपरिक बायोगैस संयंत्र का बेहतर विकल्प होने का दावा करती है?
प्रदर्शन
यह इकाई जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को नियंत्रित करने तथा ग्रीन हाउस गैसों को नियंत्रित करने में भी मदद करती है तथा इकाई से निकलने वाला डाइजेस्टेड घोल एक अच्छे कार्बनिक खाद का काम करता है।
स्रोत: http://www.hindu.com
अंतिम बार संशोधित : 2/27/2020
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