बायोमास आधारित विद्युत का निर्माण
प्रौद्योगिकी
इन बायोमास सामग्रियों से बिजली पैदा करने की तकनीक पारंपरिक ताप विद्युत निर्माण जैसी ही होती है। बायोमास को बॉयलर में जलाया जाता है जिससे भाप पैदा होता है, जो बिजली पैदा करने के लिए एक टर्बो अल्टरनेटर को चलाता है।
लाभ
इन परियोजनाओं को बिजली की माँग के आधार पर डिजायन किया जा सकता है, क्योंकि बायोमास को संचित किया जा सकता है और माँग के अनुसार उसका प्रयोग किया जा सकता है। इन परियोजनाओं के उपकरण भी कोयला आधारित ताप विद्युत परियोजना जैसे ही होते हैं, इनके लिए किसी तरह की उन्नत तकनीक की जरूरत नहीं होती। ग्रामीण क्षेत्रों से निकटता के कारण ये प्रोजेक्ट वहाँ की विद्युत आपूर्ति की गुणवत्ता को बढ़ा सकते हैं। एक ही संयंत्र में कई तरह के बायोमास सामग्रियों का उपयोग किया जा सकता है, जिससे संचालन में लचीलापन आता है।
लागत
बायोमास ऊर्जा परियोजना के लिए उपयुक्त लागत 3 करोड़ रुपये/मेगावाट से 4 करोड़ रुपये/मेगावाट है। बिजली उत्पादन की लागत बायोमास की लागत, प्लांट की भार वहन क्षमता और रूपांतरण की क्षमता पर निर्भर करती है।
स्रोत : बायोमास बुकलेट (नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार)
बायोमास गैसीकरण क्या है?
बायोमास गैसीकरण ठोस का, तापीय-रासायनिक विधि से, दहन योग्य गैस मिश्रण (प्रोड्यूसर गैस) में रूपांतरण है। इस विधि में आंशिक दहन के लिए वायु की मात्रा पूर्ण दहन के लिए आवश्यक मात्रा से कम कर दी जाती है। उत्पन्न गैस का संघटन निम्न होता है:
ऊर्जा मानः 1000 से 1200 किलो कैलोरी प्रति वर्ग मीटर
बायोमास का गैसीकरण क्यों?
वर्त्तमान डीजल जेनरेटर सेट के आंशिक रूप से भी विस्थापन किया जाए उससे भी बड़ी आर्थिक बचत की जा सकती है।
किस प्रकार का बायोमास गैसीकृत हो सकता है?
सबसे सामान्य रूप से उपलब्ध गैसीकारक में लकड़ी तथा लकड़ी वाले बायोमास का प्रयोग किया जाता है। कई अन्य गैर-लकड़ी वाले बायोमास सामग्रियों का भी गैसीकरण किया जा सकता है। हालांकि ऐसी सामग्रियों के लिए गैसीकारकों को विशेष रूप से डिजायन किये जाने की आवश्यकता होती है और बायोमास को कई स्थितियों में संघनित किया जाना पड़ सकता है।
गैसीकारक कैसे कार्य करता है?
गैसीकारक ‘अपड्राफ्ट’ या ‘डाउनड्राफ्ट’ प्रकार के होते हैं। डाउनड्राफ्ट प्रकार के गैसीकारक में इंधन तथा वायु सह-धारा के रूप में बहते हैं। जबकि अपड्राफ्ट गैसीकारक में इंधन तथा वायु विपरीत धारा के रूप में बहते हैं। हालांकि मूल प्रतिक्रिया क्षेत्र समान ही होता है।
रिएक्टर में इंधन ऊपर से डाला जाता है। इंधन जैसे ही नीचे आता है इसे सुखाया तथा इसकापायरोलाइसिस किया जाता है। ऑक्सीकरण क्षेत्र में हवा को रिएक्टर में झोंका जाता है। पाइरोलाइसिस उत्पाद तथा ठोस बायोमास के आंशिक दहन के जरिये तापमान 1100 °सें तक पहुँच जाता है। इससे भारी हाइड्रोकार्बन तथा टार को तोड़ने में मदद मिलती है। ये उत्पाद नीचे की ओर जाते हैं और अवकरण क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, जहाँ लाल-गर्म चारकोल पर भाप तथा कार्बन डाइऑक्साइड की प्रतिक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न गैस का निर्माण होता है। इंजन में भेजने से पहले इस गर्म और बदबूदार गैस को शीतक, क्लीनर्स तथा फिल्टर से होकर गुजारा जाता है।
उत्पन्न गैस से क्या किया जा सकता है?
स्वच्छ उत्पन्न गैस का प्रयोग विद्युत ऊर्जा के निर्माण में दोहरे आइसी इंजन (जहाँ डीजल तेल को 60 से 80 प्रतिशत की सीमा तक विस्थापित किया जाता है) या 100% गैस-दहन स्पार्क, प्रज्वलन इंजन के जरिये किया जा सकता है। उत्पन्न गैस का प्रयोग छोटे बॉयलरों, गर्म वायु-जेनरेटरों, ड्रायर आदि में ताप पैदा करने में प्रयुक्त कई पारंपरिक ऊर्जा रूपों की जगह पर किया जा सकता है।
आदर्श क्षमता
बायोमास गैसीकारक आधारित प्रणालियों को कुछ किलोवाट से लेकर मेगावाट तक बिजली के निर्माण के लिए डिजायन किया जा रहा है। तापन कार्य के लिए तेल खपत की वर्तमान ऊपरी सीमा 200 से 300 किलोग्राम प्रति घंटे की है।
लागत
बायोमास गैसीकारक विद्युत निर्माण प्रणाली की आदर्श लागत 4 से 5 करोड़ रुपये/एम.डब्ल्यूई है।
विद्युत निर्माण की लागत बायोमास की लागत, प्लांट की वहन क्षमता आदि जैसे कारकों पर निर्भर करती है, और इसकी अनुमानित लागत 2.50 से 3.50 रुपये/ किलोवाट के बीच है।
तापीय प्रयोगों के लिए प्रमुख अनुमानित लागत प्रति 1 मिलियन किलो कैलोरी क्षमता के लिए 0.5 से 0.7 करोड़ रुपया है।
स्रोत : बायोमास बुकलेट (नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार)
प्रौद्योगिकी
सरल शब्दों में सह-उत्पादन ऐसी प्रक्रिया है जिसके जरिये एक इंधन से क्रमिक रूप में ऊर्जा के कई रूपों का उत्पादन किया जाता है। भाप तथा विद्युत के सह-उत्पादन से प्रसंस्करण उद्योग में इंधन के कुल उपयोग की क्षमता बढ़ जाती है। सह-निर्माण के लिए न्यूनतम आवश्यकता है ताप और विद्युत की एक अनुकूल अनुपात में साथ आपूर्ति किया जाना, जो कि चीनी उद्योग में अच्छी तरह से होता है। विद्युत उत्पादन के दौरान निम्न तापमान हौज में बड़ी मात्रा में ताप निकलती है। सामान्य विद्युत उत्पादन प्लांट में ताप का यह विमोचन संघनित्र में होता है, जहाँ ताप की 70 प्रतिशत मात्रा वायुमंडल में मुक्त कर दी जाती है। सह-निर्माण विधि में हालांकि यह ताप बर्बाद नहीं होता है और उसका उपयोग तापन प्रक्रिया में किया जाता है।
उपकरण
इस परियोजना के लिए आवश्यक प्रमुख उपकरणों में उच्च दाब वाला खोई-दहित बॉयलर, स्टीम टर्बाइन तथा ग्रिड एंटर फेजिंग प्रणाली की जरूरत होती है। ये सभी उपकरण स्थानीय स्तर निर्मित किये जाते हैं। इस प्रकार इंधन के उपयोग की कुल क्षमता 60 प्रतिशत तक बढ़ाई जा सकती है या कुछ स्थितियों में इससे भी ज्यादा। सह-उत्पादन प्लांट की क्षमता कुछ किलोवाट से लेकर कई मेगावाट तक होती है। साथ ही, ताप विद्युत की क्षमता एक सौ किलोवाट थर्मल से कई मेगावाट थर्मल तक होती है।
लागत
चीनी मिलों में संस्थापित खोई आधारित सह-उत्पादन प्रणाली की लागत 3-4 करोड़ रुपये/मेगावाट के बीच है। यह देखा गया है कि एक आदर्श चीनी मिल, जिसकी औसत पेराई अवधि 160 दिनों की हो, सह-उत्पादन के जरिए अतिरिक्त बिजली निर्माण में निवेश लंबे समय के लिए लाभदायक साबित होता है।
क्षमता
सह-उत्पादन प्लांट की क्षमता 3500 मेगावाट अनुमानित की गई है, जो देश के वर्तमान चालू चीनी मिलों से अतिरिक्त विद्युत का निर्माण है।
स्रोत: बायोमास बुकलेट (नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, भारत सरकार)
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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