जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) को औपचारिक रूप से 30 जून 2008 को लागू किया गया। यह उन साधनों की पहचान करता है जो विकास के लक्ष्य को प्रोत्साहित करते हैं, साथ ही, जलवायु परिवर्तन पर विमर्श के लाभों को प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत करता है। राष्ट्रीय कार्य योजना के कोर के रूप में आठ राष्ट्रीय मिशन हैं। वे जलवायु परिवर्तन, अनुकूलन तथा न्यूनीकरण, ऊर्जा दक्षता एवं प्रकृतिक संसाधन संरक्षण की समझ को बढावा देने पर केंद्रित हैं।
आठ मिशन हैं:
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना के अंतर्गत राष्ट्रीय सौर मिशन को अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना गया है। इस मिशन का उद्देश्य देश में कुल ऊर्जा उत्पादन में सौर ऊर्जा के अंश के साथ अन्य नवीकरणीय साधनों की संभावना को भी बढ़ाना है। यह मिशन शोध एवं विकास कार्यक्रम को आरंभ करने की भी माँग करता है जो अंतरराष्ट्रीय सहयोग को साथ लेकर अधिक लागत-प्रभावी, सुस्थिर एवं सुविधाजनक सौर ऊर्जा तंत्रों की संभावना की तलाश करता है।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना ने शहरी क्षेत्रों, उद्योगों तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में सौर ऊर्जा के सभी निम्न तापमान (<150° सेंटीग्रेड) वाले अनुप्रयोगों के लिए 80% राशि तथा मध्यम तापमान (150° सेंटीग्रेड से 250° सेंटीग्रेड) के अनुप्रयोगों हेतु 60% राशि उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसे हासिल करने के लिए समय-सीमा वर्ष 2017 तक 11वें एवं 12वें पंचवर्षीय योजनाओं की अवधि तय की गई है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण अनुप्रयोगों को सरकारी-निजी भागीदारी के तहत लागू किया जाना है।
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना ने वर्ष 2017 तक एकीकृत साधनों से 1000 मेगावाट/वर्ष फोटोवोल्टेइक उत्पादन का लक्ष्य रखा है। साथ ही, 1000 मेगावाट की संकेंद्रित सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता प्राप्त करने का भी लक्ष्य है।
भारत सरकार ने ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने हेतु पहले से ही कई उपायों को अपनाया है। इनके अतिरिक्त जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य-योजना के उद्देश्यों में शामिल हैं:
इस मिशन का लक्ष्य निवास को अधिक सुस्थिर बनाना है। इसके लिए तीन सूत्री अभिगम पर जोर दिया गया है:
राष्ट्रीय जल मिशन का लक्ष्य जल संरक्षण, जल की बर्बादी कम करना तथा एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन के द्वारा जल का अधिक न्यायोचित वितरण करना है। राष्ट्रीय जल मिशन, जल के उपयोग में 20% तक दक्षता बढ़ाने हेतु एक ढाँचा का निर्माण करेगा। यह वर्षाजल एवं नदी प्रवाह की विषमता से निबटने हेतु सतही एवं भूगर्भीय जल के भंडारण, वर्षाजल संचयन तथा स्प्रिंकलर अथवा ड्रिप सिंचाई जैसी अधिक दक्ष सिंचाई व्यवस्था की सिफारिश करता है।
इस कार्यक्रम में शामिल है- स्थानीय समुदाय, विशेषकर पंचायतों का पारिस्थितिक संसाधनों के प्रबंधन हेतु सशक्तीकरण करना। यह राष्ट्रीय पर्यावरण नीति, 2006 में वर्णित निम्नलिखित उपायों की पुष्टि करता है:
इस मिशन का लक्ष्य कार्बन सिंक जैसे पारिस्थितिकीय सेवाओं को बढ़ावा देना। यह 60 लाख हेक्टेयर भूमि में वनरोपण के लिए प्रधानमंत्री का हरित भारत अभियान का हिस्सा है ताकि देश में वन आवरण को 23% से बढ़ाकर 33% करना है। इसका कार्यान्वयन राज्यों के वन विभाग द्वारा संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के माध्यम से ऊसर वन भूमि पर किया जाना है। ये समितियाँ समुदायों द्वारा सीधी कार्यवाही को प्रोत्साहित करेंगी।
इसका लक्ष्य फसलों की नई किस्म, खासकर जो तापमान वृद्धि सहन कर सकें, उसकी पहचान कर तथा वैकल्पिक फसल स्वरूप द्वारा भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक लचीला बनाना है। इसे किसानों के पारंपरिक ज्ञान तथा व्यावहारिक विधियों, सूचना प्रौद्योगिकी एवं जैव तकनीकी के साथ-साथ नवीन ऋण तथा बीमा व्यवस्था द्वारा समर्थित किया जाना है।
यह मिशन, शोध तथा तकनीकी विकास के विभिन्न क्रियाविधियों द्वारा सहभागिता हेतु वैश्विक समुदाय के साथ कार्य करने पर बल देता है। इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन से संबंधित समर्पित संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों के नेटवर्क तथा जलवायु-शोध कोष द्वारा समर्थित इसके स्वयं का शोध एजेंडा होगा। यह मिशन, अनुकूलन तथा न्यूनीकरण हेतु नवीन तकनीकियों के विकास के लिए निजी क्षेत्र के उपक्रमों को भी प्रोत्साहित करेगा।
इन 8 राष्ट्रीय मिशन को संबद्ध मंत्रालयों द्वारा संस्थाकृत किया जाना है तथा इसे अंतर-क्षेत्रक समूहों द्वारा संगठित किया जाएगा जिनमें संबद्ध मंत्रालयों के अलावा शामिल हैं- वित्त मंत्रालय, योजना आयोग, उद्योग जगत एवं अकादमियों के विशेषज्ञ तथा नागरिक समाज।
स्त्रोत : पीएमइंडिया
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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