पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने पिछले तीन वर्षों के दौरान हरित मार्ग के माध्यम से सतत विकास अर्जित करने की दिशा में कई कदम उठाए गए हैं।
राष्ट्रीय वन नीति के उद्देश्यों के अनुरूप एमओईएफसीसी ने वन आच्छादन को बढ़ाकर भौगोलिक क्षेत्र के 33 प्रतिशत तक करने के लिए रूपरेखा बनाई है। हरित भारत मिशन का लक्ष्य वन गुणवत्ता तथा 5 मिलियन हेक्टेयर को कवर करने के वार्षिक लक्ष्य के साथ बंजर भूमि का पुनर्वनीकरण करना है।
घटते वन आच्छादन की समस्या पर विचार करने तथा विकास उद्देश्यों के लिए काटे गए वनों की क्षतिपूर्ति के लिए 2016 में संसद में क्षतिपूर्ति वनीकरण विधेयक पारित किया गया जिसे कि 42,000 करोड़ रूपये का उपयोग किया जा सके। इस निधि का संग्रह उन वनों से प्राप्त वसूलियों से किया गया था जिनका उपयोग गैर वन उद्देश्यों के लिए किया गया था।
यह एक पारदर्शी तरीके से वनों के संरक्षण, बेहतरी के लिए निधियों के उपयोग को सुगम बनाता है। केंद्र सरकार ने विभिन्न वन कार्यकलापों को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना के साथ अभिसरित करने के लिए कदम उठाए हैं। इससे देश के जनजातीय बहुत अंदरुनी वन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष रोजगार के 15 करोड़ श्रम दिवसों का सृजन होगा।
इन कार्यक्रमों का कार्यान्वयन लोगों की सहभागिता, विशेष रूप से संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रमों एवं ग्राम वन समितियों या वन सुरक्षा समितियों के द्वारा किया जाएगा।
चूंकि देश शहरीकृत हो रहा है, केंद्र सरकार ने नगर वन उद्यान योजना नामक शहरी वन सृजन करने की एक नवीन योजना आरंभ की है। न्यूनतम 15 हेक्टेयर वनों का शहरों में सृजन किया जाएगा। इससे मनोरंजन संबंधी आवश्यकताओं की भी पूर्ति होगी तथा वाहनों के प्रदूषण से वायु को शुद्ध करने के द्वारा फेफड़ों में शुद्ध हवा की आपूर्ति होगी। इसे विद्यालय पौधशाला योजना से भी जोड़ा गया है जिसका उद्देश्य छात्रों एवं प्रकृति के बीच एक स्थायी रिश्ते का भी निर्माण करना है।
राष्ट्रीय उद्दयानों एवं वन जीवन अभ्यारण्यों के संरक्षित क्षेत्र जैव विविधता के संरक्षण एवं वन जीवन के निवास की सुरक्षा में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इन सरंक्षित क्षेत्रों पर दबाव को कम करने के लिए, 275 पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों (ईएसजेड) को मंजूरी दी गई है तथा इसी के अनुरूप नीति को कार्यान्वित करने के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है।
भारत को व्यापक स्तर पर जलवायु परिवर्तन के प्रकोप का सामना करना पड़ रहा है। 2017 में मार्च के महीने के दौरान सामान्य से अधिक तापमान के कारण उग्र मौसम स्थितियों एवं जल की भारी कमी के कारण खाद्य उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
जलवायु परिवर्तन के मुख्य वाहकों में से एक फॉसिल र्इंधन ऊर्जा स्रोतों के बढ़ते उपयोगों के कारण कार्बन का उत्सर्जन है। ऐसा अनुमान है कि अगर तापमान में 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो देश को जीडीपी के 1.7 प्रतिशत हिस्से से हाथ धोना पड़ सकता है। इस रुझान को रोकने के लिए भारत ने स्वेच्छा से 2030 तक अपनी जीडीपी की कार्बन उर्त्सजन तीव्रता में 33 से 35 प्रतिशत तक की कमी लाने पर सहमति जताई है, जो कि 2005 का स्तर है।
2 अक्टूबर, 2015 को गांधी जयंती पर भारत के राष्ट्रीय रूप से प्रतिबद्ध योगदान (आईएनडीसी) को लॉंच करते हुए प्रधानमंत्री ने जलवायु परिवर्तन की ‘असुविधाजनक सच्चाई’ से निपटने के लिए एक ‘सुविधाजनक कदम’ उठाने की अपील की थी।
भारत को अपने सबसे निर्धन समूहों तक पहुंचने के लिए विकास की मांगों को पूरा करने तथा निम्न कार्बन उर्त्सजन मार्ग का अनुसरण करने की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ता है। इसे अर्जित करने के लिए इसे निर्वहनीय जीवन शैलियों तथा जलवायु न्याय का सहारा लेना पड़ता है, जिससे कि यह निर्बल समूहों के हितों की रक्षा कर सके।
इस लक्ष्य तक पहुंचने का रोड मैप क्या है ? एक निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था के लिए अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादित की जाने वाले तथा उपयोग में लाई जाने वाली ऊर्जा के तरीके में अमूल-चूल बदलाव की आवश्यकता होगी। आईएनडीसी ने गैर फॉसिल ईंधन आधारित स्रोतों से बिजली की 40 प्रतिशत क्षमता के उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है। 3500 मिलियन रूपये या 56 मिलियन डॉलर के ‘राष्ट्रीय अनुकूलन फंड’ के गठन से कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लक्ष्य को अर्जित करने के लिए विविध पहलों के जरिये नवीकरण ऊर्जा की दिशा में नीतियां आरंभ की जाएंगी। मुख्य फोकस पवन, स्वास्थ्य, जल पर अतिरिक्त मिशनों तथा टिकाऊ कृषि पर मिशनों की फिर से रूपरेखा बनाने के साथ राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन का कार्रवाई (एनएपीसीसी) के तहत राष्ट्रीय मिशनों पर फिर से विचार करने पर है।
जहां नीतियों का जोर स्वच्छ एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की दिशा में है, इसमें ऊर्जा दक्षता अपशिष्ट से संपदा के संवर्धन, हरित परिवहन एवं वन आच्छादन में बढ़ोतरी के जरिये कार्बन सिंक को बढ़ाने पर भी बल दिया गया है।
एनएपीसीसी के तहत हरित भारत मिशन 2030 तक 10 मिलियन हेक्टेयर में पौध रोपण की योजना कार्यान्वित कर रहा है। इससे 2.5 बिलियन टन तक अतिरिक्त कार्बन सिंकों का सृजन होगा।
जलवायु परिवर्तन के लिए एक राष्ट्रीय अनुकूलन फंड की स्थापना की गई है जिससे कि अनुकूलन की लागत की पूर्ति के लिए राज्य स्तरीय कार्यकलापों की सहायता की जा सके। अनुकूलन कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने के लिए 16 राज्यों के लिए 331 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है।
नदी प्रणालियों के संरक्षण के लिए कदम उठाने हेतु राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजनाओं (एनआरसीपी) को आरंभ किया गया है, जिनका उद्देश्य प्रदूषित नदियों की सफाई करना है। नदियों में प्रदूषण स्तरों को नियंत्रित करने के लिए राज्य सरकारों तथा स्थानीय निकायों, स्वतंत्र पेशेवर निकायों एवं स्वतंत्र परियोजना निर्देशकों के बीच समझौतों के एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया है।
पंजाब में सतलज, घग्घर नदियों में प्रदूषण उपचार संयंत्रों की स्थापना में 50 प्रतिशत से अधिक लक्ष्य हासिल कर लिया गया है। गुजरात में साबरमती संरक्षण परियोजना चरण-II आरंभ की गई है। एमओईएफसीसी सिक्किम एवं नगालैंड के पहाड़ी राज्यों समेत भारत में विभिन्न राज्यों में एनआरसीपी कार्यान्वित कर रहा है।
पूर्वोत्तर भारत में सबानसारी, तवांग, बिछोम एवं सियांग हेतु विकास परियोजनाओं के सहायता मूल्यांकन के लिए नदी बेसिन संचयी प्रभाव विश्लेषण एवं ढुलाई क्षमता अध्ययन किए गए।
दलदली भूमि पारिस्थितकी प्रणाली जल को शुद्ध करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। भारत भर में 40 बड़ी दलदली भूमियों के लिए 13.43 करोड़ रुपये की लागत से प्रबंधन कार्य योजनाएं आरंभ की गई हैं।
इन कदमों के अतिरिक्त, एमओईएफसीसी ने देश में सृजित किए जा रहे विभिन्न प्रकार के गैर जैव नष्ट किए जाने योग्य अपशिष्टों के निपटान के लिए ठोस, प्लास्टिक, जैवचिकित्सा एवं ई अवशिष्ट प्रबंधन के लिए नियमों को अधिसूचित किया है।
वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य नुकसानों के बारे में आम लोगों को अवगत कराने के लिए एक पारदर्शी प्रणाली सृजित कराने के लिए 16 नगरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक आरंभ की गई है। यह प्रतिदिन के आधार पर वास्तविक समय में वायु प्रदूषण के स्तर को ईंगित करता है। इस डाटा के साथ नागरिक शहरों में वायु गुणवत्ता की निगरानी कर सकते हैं।
एमओईएफसीसी ने वृक्ष रोपण, जलसंरक्षण एवं निम्न कार्बन जीवन शैली पर जागरुकता एवं ठोस अवशिष्ट प्रबंधन में 11 लाख युवाओं को प्रतिभागी बनाया है।
भारत नई पीढ़ी के प्रशीतकों एवं संबंधित निर्वहनीय प्रौद्योगिकियों, जो ओजोन स्तर को नुकसान पहुंचाती है, के विकास में घरेलू नवोन्वमेषण उपलब्ध कराने के जरिये एचएफसी से दूर हटने के साथ आगे बढ़ रहा है।
मंत्रालय ने अंतरिक्ष विभाग के साथ ‘भारत का मरुस्थलीकरण एवं भूमि अवकर्षण मानचित्र’ का विकास किया है। यह 2005 से 2013 तक विभिन्न राज्यों में वर्तमान भूमि उपयोग, एवं भूमि अवकर्षण की तीव्रता पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराता है। यह समेकित आंकड़ा देश में भविष्य के भूमि उपयोग के लिए आधार उपलब्ध कराएगा।
स्त्रोत: पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार
लेखन: पांडुरंग हेगड़े
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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