आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा एक बुनियादी आवश्यकता है। राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र – कृषि, उद्योग, परिवहन, वाणिज्यिक एवं घरेलू को ऊर्जा के इनपुट की जरूरत होती है। स्वतंत्रता के बाद कार्यान्वित आर्थिक विकास योजनाओं के लिए बढ़ती मात्रा में ऊर्जा आवश्यक हो गई है। परिणामस्वरूप, देश भर में सभी रूपों में ऊर्जा के उपभोग लगातार वृद्धि हो रही है।
ऊर्जा के बढ़ते उद्योग के परिणामस्वरूप जीवाश्म ईंधनों कोयला एवं तेल एवं गैस पर देश की निर्भरता बढ़ गई है। तेल एवं गैस की बढ़ती कीमतों एवं भविष्य में इनकी संभावित कमी से ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा के बारे में चिंता पैदा हो गई है जबकि ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा हमारी आर्थिक प्रगति को बनाए रखने के लिए आवश्यक है। जीवाश्म ईंधनों के बढ़ते प्रयोग से स्थानीय एवं वैश्विक दोनों को पर्यावरण संबंधी समस्याएं पैदा होती है। इस पृष्ठभूमि में ऊर्जा विकास का एक स्थायी रास्ता तैयार करना देश के लिए तत्काल आवश्यक है। ऊर्जा संरक्षण को बढ़ावा देना और अक्षय ऊर्जा स्रोतों का बढ़ते उपयोग, स्थायी ऊर्जा के जुड़वां घटक है।
अपरंपरागत ऊर्जा स्रोत मंत्रालय देश में विभिन्न अक्षय ऊर्जा स्रोतों के विकास एवं उपयोग के लिए व्यापक कार्यक्रम कार्यान्वित कर रहा है। पिछली तिमाही शताब्दी के दौरान किए गए प्रयासों के परिणामस्वरूप कई प्रौद्योगिकियॉं एवं युक्तियां विकसित की गई है तथा ये वाणिज्यिक रूप से उपलब्ध हो गए हैं।
देश में 80000 मेगावाट अक्षय ऊर्जा आधारित ग्रिड संबद्ध विद्युत (पावर) उत्पा्दन की संभावना का अनुमान लगाया गया है जबकि अब तक केवल लगभग 6000 मेगावाट संस्थापित क्षमता को ही साकार किया गया है। इस प्रकार विद्युत (पावर) उत्पादन के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों के दोहन का व्यापक अवसर है। अक्षय ऊर्जा आधारित विद्युत (पावर) उत्पादन क्षमता इस समय देश में सभी क्षेत्रों से विद्युत उत्पा्दन हेतु कुल संस्थापित क्षमता का 5 प्रतिशत है। देश का लक्ष्य यह है कि वर्ष 2012 तक स्थापित की जाने वाली संस्थापित क्षमता का लगभग 10 प्रतिशत अक्षय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त हो।
भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास संस्था सीमित (इरेडा) एक मिनी रत्न (श्रेणी-I), भारत सरकार का प्रतिष्ठान जो नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कम्पनी है । इरेडा सार्वजनिक लिमिटेड सरकारी कम्पनी है जिसे वर्ष 1987 में गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्था के रूप में “नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों और ऊर्जा दक्षता / संरक्षण से संबंधित परियोजनाओं (प्रोजेक्ट) को लगाने हेतु बढ़ावा देने, विकसित करने और वित्तीय सहायता देने के लिए स्थापित की गई जिसका उद्देश्य शाश्वत ऊर्जा” है । इरेडा को कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 4’ए’ के अधीन ‘’सार्वजनिक वित्तीय संस्थान’’ के रूप में अधिसूचित किया गया है तथा भारतीय रिजर्व बैंक में गैर बैंकिंग (एनएफबीसी) के रूप में पंजीकृत किया गया है।
‘’सतत विकास के लिए अक्षय स्रोतों, ऊर्जा दक्षता एवं पर्यावरणीय प्रौद्योगिकियों से ऊर्जा उत्पादन में स्व-सतत निवेश को बढ़ावा देने और वित्तीपोषण के लिए अग्रणी, भागदार हितैषी एवं प्रतियोगी संस्था होना है।‘’
इरेडा का लक्ष्य ‘’शाश्वत ऊर्जा’’ है
इरेडा के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित है:-
गुणवत्ता नीति
इरेडा अपने उपभोक्ताओं को पूर्णसंतुष्टि एवं पारदर्शिता प्रदान करने के लिए दक्ष प्रणाली एवं क्रियाओं के जरिए अक्षय ऊर्जा एवं ऊर्जा दक्षता/संरक्षण में अभिनव वित्त पोषण प्रदान करने के लिए एक अग्रणी संगठन के रूप में अपनी स्थिति कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध है। इरेडा गुणवत्ताक प्रबंधन प्रणाली के जरिए अपने उपभोक्ताकओं को दी जानेवाली सेवाओं के गुणवत्ता में लगातार सुधार के लिए प्रयास करेगी।
गुणवत्ता उद्देश्य
1. उपभोक्ता की पूर्ण संतुष्टि के लिए प्रयास करना।
2. क्षमता में निरंतर उन्नयन और कर्मचारियों के पेशेवर कौशलों में सुधार।
3. उपभोक्ताओं को प्रदान की जाने वाली सेवाओं की दक्षता में सुधार।
4. प्रणालियों, प्रक्रियाओं एवं सेवाओं में निरंतर सुधार।
5. सभी संबंधित इरेडा के मिशन को प्राप्त करने के लिए पूरी निष्ठा एवं समर्पण से गुणवत्ता नीति एवं गुणवत्ता उद्देश्यों को कार्यान्वित करना।
उपलब्ध प्रौद्योगिकियां
सामान्य लघु जल परियोजनाएं (एसएचपी) जल के उपयोग या सिंचाई प्रयोजनों के लिए निर्मित की जाती है।लघु जल परियोजना में हाइड्रो टरबाइन का कार्य जल की पोटेंशियल ऊर्जा को टरबाइन रनर की मेकनिकल गतिज ऊर्जा में परिवर्तित करना है जो बाद में जेनरेटर द्वारा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है।
लघु जल परियोजनाओं को मुख्यतया निम्न्लिखित दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
पहाड़ी धाराओं पर लघु जल परियोजनाएं
तीक्ष्ण ढलान वाली लघु जल धाराएं पहाडि़यों में उपलब्ध होती हैं; जो लघु निस्साररियों से मध्यम एवं उच्च शीर्ष परियोजनाओं के निर्माण में सहायक होती हैं। ये योजनाएं सामान्यतया डायवर्जन ढांचे के अंतर्ग्रहण (इनटेक) भाग में स्थित शीर्ष (हेड) रेग्यू्लेटर के जरिए जल प्रवाहों को विचलित करने के लिए लघु डायवर्जन ढांचे के साथ नदी के प्रकार का विस्तार है। जल संचालक प्रणाली में सामान्यतया एक डायवर्जन और शीर्ष (हेड) रेग्यूालेटर, पावर चैनल, डिसिल्टिंग बेसिन, फोरबे, पेनस्टा क, पावर हाउस और टेल रेस, जो पावर हाउस से धारा तक होता है, शामिल होगा।
नहर (केनाल) फॉल्स/बांध पर लघु जल परियोजनाएं
अपेक्षाकृत अधिक किन्तु सुनिश्चित निस्सासरियों को ले जाने वाले सिंचाई नहरों में उनके मार्ग में कई फॉल्स होते हैं। निम्न शीर्षों का उपयोग करने वाली लघु जल परियोजनाएं ऐसे फाल्सर पर बनाई जा सकती हैं। जल भंडार एवं नहर की निचली धारा में जल स्तर में अंतर का उपयोग करने के लिए बांध, बराज या इसी प्रकार के ढांचे की निचली धारा में भी लघु जल परियोजनाएं अवस्थित की जा सकती हैं। फॉल ढांचे के पास जल प्रवाहों को बायपास करने के लिए बायपास चैनलों में पावर हाउस बनाया जाता है। बायपास चैनल मुख्य चैनल से समुचित रूप से जुडा होता है।
लघु जल परियोजनाओं के लिए टरबाइन का प्रकार
टरबाइन का प्रकार |
शीर्ष (हेड) का वर्ग |
वृहत/मध्यम सेट्स के लिए रेंज (एम) |
लघु सेट्स के लिए हेड रेंज (एम) |
पेट्रोल (इम्पल्स) |
उच्च शीर्ष |
300 मी. से अधिक |
150 मी. से अधिक |
फ्रेंकसिस (रियक्शन) |
मध्यम शीर्ष |
30 से 500 मी. |
20 से 200 मी. |
कपलान (एक्शियल प्रवाह) |
निम्न शीर्ष |
3से 40 मी. |
3से 25 मी. |
वर्गीकरण
परियेाजना की क्षमता के आधार पर लघु जल परियोजना को निम्नलिखित रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है
प्रकार |
कुल क्षमता |
सूक्ष्म (माइक्रो) |
100 किलोवाट तक |
मिनी |
2000 किलोवाट तक |
लघु |
25000 किलोवाट तक |
विद्युत क्षमता का आकलन
निम्नुलिखित सूत्र का उपयोग करके विद्युत क्षमता का आकलन किया जा सकता है जहां
पी = 9.81 क्यूग x एच x एन
पी = किलोवाट में विद्युत
क्यून = प्रति सेकेंड क्यूतबिक मी. में निस्सागरण या क्यू,मेक्स
एच = मीटर में नेट हेड
एन = समग्र यूनिट दक्षता
इस क्षेत्र में उपलब्ध प्रोत्सांहन
एमएनईएस लघु जल (हाइड्रो) प्रोत्साहन योजनाएं
वित्तीय सहायता के लिए योजना, नई लघु पनबिजली (SHP) निजी, सहकारी, संयुक्त क्षेत्र आदि में 25 मेगावाट क्षमता तक की परियोजनाओं के स्थापित करने के लिए :
योजना क्षेत्र |
1 मेगावाट से 25 मेगावाट तक |
पूर्वोत्तर क्षेत्र, सिक्किम, जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश एवं उत्तरांचल (विशेष श्रेणी के राज्य) |
परियोजना लागत का 45 प्रतिशत, 2.25 करोड़ रुपए तक सीमित +प्रति मेगावाट 37.50 लाख रुपए |
मैदानी एवं सभी अन्य राज्यों के अन्य क्षेत्र |
परियोजना के अनुसार, 1.5 करोड़ रुपये पर मेगावाट सीमित 5 करोड़ रुपये तक |
अधिसूचित पहाड़ी क्षेत्रों का अर्थ राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों से हैं जिनको विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अधिसूचित/समर्पित किया गया हो।
प्रस्ताव में निम्नलिखित दस्तावेज शामिल किए जाने होते हैं।
सब्सिडी जारी करना
डेवलपर, वित्तीय संस्थान (एफआई) के माध्यम से पारंपरिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय को परियोजना के सफल रूप से पूरा होने का कार्यनिष्पादन गारंटी जांच के पूरा होने, एएचईसी, आईआईटी रूड़की द्वारा परियोजना की जांच एवं कार्यनिष्पादन प्रमाणपत्र तथा वाणिज्यिक उत्पादन के शुरू होने के बारे में सूचित करेगा। डेवलपर वाणिज्यिक उत्पापदन शुरू होने के बाद से उस समय तक जब तक कि परियोजना में डीपीआर में की गई परिकल्पना अनुसार संगत महीनों में उत्पादन की मात्रा का 80 प्रतिशत का लक्ष्य कम से कम तीन लगातार महीने में प्राप्त नहीं कर लिया जाता है। डेवलपर ऊर्जा उत्पादन का प्रमाण भी प्रस्तुत करेगा जैसे कि ऊर्जा की खरीद/हीलिंग के बारे में एसईबी से प्रमाणपत्र I
बायोमास-ऊर्जा के एक वैकल्पिक स्रोत के रूप में
चूंकि बायोमास प्राकृतिक संसाधनों जैसे कि भूमि, जल, हवा एवं सूर्य की ऊर्जा का उत्पाद है इसलिए यह ऊर्जा के एक वैकल्पिक भरोसेमंद एवं अक्षय स्रोत के रूप में आशा की किरण प्रदान करता है। बायोमास एक आर्गेनिक चीज है जो स्थलीय एवं समुद्री दोनों पादपों एवं उनके व्युात्पान्नोंग से बनता है। पादप सामग्री प्रकाश संश्लेपषण (फोटो सिन्थेतसिस) के दौरान पर्यावरण के कार्बन डाइआक्सा्इड को चीनी (सुगर) में परिवर्तन के लिए सूर्य की ऊर्जा का प्रयोग करती है। बायोमास के दहन से ऊर्जा रिलीज होती है क्योंरकि चीनी पुन: कार्बन डाइआक्साइड में परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार कम समय में ऊर्जा उत्पन्न होती है और रिलीज होती है जिससे बायोमास अक्षय ऊर्जा का एक स्रोत बन गया है। यद्यपि पर्यावरण के कार्बन डाइआक्साइड से जीवाश्म ईधन भी व्युत्पन्न् किया जाता है। तथापि, इसमें अधिक समय लग जाता है – बायोमास के मामले में कुछ वर्षों की तुलना में कई मिलियन वर्ष। इस समय विश्व भर में कुल ऊर्जा आपूर्ति में बायोमास का हिस्सा 14 प्रतिशत है और इस ऊर्जा का 38 प्रतिशत विकासशील देशों में मुख्य रूप से देश के ग्रामीण एवं पारंपरिक स्रोतों में, उपयोग किया जाता है।
बायोमास की संभावना
भारत उष्णी कटिबंधीय क्षेत्र है जिसमें सूर्य की रोशनी एवं वर्षा सुलभ है और इस प्रकार बायोमास उत्पांदन के लिए आदर्श वातावरण मिलता है। इसके साथ ही कृषि की वृहत संभावना भी ऊर्जा की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए व्यापक कृषि अपशिष्टृ उपलब्ध कराती है। प्रत्येवक वर्ष लगभग 460 मिलियन टन कृषि अपशिष्ट के अनुमानित उत्पादन बायोमास लगभग 260 मिलियन टन तक कोयले को सम्पूकरित करने की क्षमता रखता है। इसके परिणामस्वरूप प्रत्येाक वर्ष लगभग 250 बिलियन रु. की बचत हो सकती है।
बायोमास ऊर्जा सह उत्पादन
विभिन्न प्रकार के कृषि क्षेत्र/औद्योगिक अवशिष्ट
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बायोमास विद्युत सह-उत्पादन के लिए वित्तीय प्रोत्साहन
बायोमास आधारित विद्युत उत्पादन के लिए राज्य सरकार/ उपयोग नीतियों एवं प्रोत्साहनों का सिंहावलोकन
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प्रौद्योगिकी
क) सामान्य
सौर ऊर्जा पृथ्वी पर सबसे प्रचुर मात्रा और सबसे स्व्च्छ ऊर्जा संसाधन है । सौर ऊर्जा की मात्रा एक घण्टेी में पृथ्वीे की सतह पर पड़ती है यह लगभग एक वर्ष में सभी मानवीय गतिविधियों द्वारा अपेक्षित सौर ऊर्जा के मात्रा के रूप में है । सौर ऊर्जा को मुख्यष रूप से तीन तरीकों से प्रयोग किया जा सकता है पहला – पीवी सेलों के माध्य म से सूर्य के प्रकाश को सीधे विद्युत में परिवर्तन करना, और अन्यू दो सूर्य प्रकाश को सौर शक्ति् (सीएसपी) का संकेंद्रण करके हीटिंग और कूलिंग (एसएचसी) के लिए सौर थर्मल संग्रहण करना ।
भारत प्रचुर मात्रा में सौर ऊर्जा से सम्पएन्न) है जिससे 5,000 ट्रिलियन किलोवाट स्वच्छ ऊर्जा उत्पापदन करने की क्षमता है । देश में एक वर्ष में लगभग 300 दिन धूप पड़ती है और सौर का आतपन प्रतिदिन 4-7 किलोवाट घंटा प्रति मीटर है । यदि इस ऊर्जा का दक्षतापूर्ण तरीके से दोहन किया जाए तो इससे आसानीपूर्वक हमारे ऊर्जा की कमी को दूर किया जा सकता है तथा इससे कार्बन उत्सर्जन भी नहीं होगी । भारत के कई राज्यों ने इसे मान्यता दिए और सौर ऊर्जा संभावना को रेखांकित किया तथा अन्यो राज्यों को भी अपने बढ़ते ऊर्जा जरूरतों के साथ स्वजच्छ और स्थायी सौर ऊर्जा की पूर्ति के लिए लाइन में खड़ा है । निकट भविष्य में सौर ऊर्जा भारत के ऊर्जा की मांग को पूरा करने में अहम भूमिका निभाएगी ।
ख) सोलर पीवी टेक्नोकलॉजी
सोलर फोटोवॉल्टेकक (पीवी) सेल सोलर लाइट को सीधे विद्युत में परिणत करती है । फोटोवॉल्टेॉक वस्तुत: प्रकाश-विद्युत के रूप में परिणत कर सकती है ।
क्रिस्ट्लीय सिलिकॉन
क्रिस्टीटल सिलिकॉन (सी-एसआई) सोलर पीवी मॉड्यूल्स के लिए एक सबसे प्राचीनतम टेक्नोटलॉजी है । सी-एसआई मॉड्यूल्स मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभक्तस है :-
i) एकल क्रिस्टा्लाइन (एससी-एसआई),
ii) मल्टीर – क्रिस्टानलाइन (एमसी-एसआई)
थिन फिल्मे
क्रिस्टललीय सिलिकॉन की तुलना में थिन फिल्मा अपेक्षाकृत नवीनतम टेक्नोयलॉजी है । ये निम्न्लिखित तीन मुख्यि श्रेणी में विभाजित है :-
i) एमोर्फेरस(ए - एसआई) और माइक्रोमोर्फ सिलिकॉन (ए-एसआई/यूसी-एसआई)
ii) कैडमियम – टेल्लूराइड (सीडीटीई)
iii) कॉपर – इंडियम – डिजेलेनाइड (सीआईएस) और कॉपर इंडियम – गलियम
डिजेलेनाइड (सीआईजीएस) उभरते टेक्नोललॉजी इंकॉमपास एडवान्स् थिन फिल्मह और ऑर्गनिक सेल है । परवर्ती मारकेट भाया नाइक एप्लि केशन में इंटर करने के संबंध में है ।
कॉन्सेंट्रेटॉर टेक्नोलॉजी (सीपीवी)
कॉन्सेंट्रेटॉर सिस्टोम में प्रयोग होता है जोकि सोलर रेडिमेशन को एक लघु उच्च क्षमता सेल में फोकस करता है । सीपीवी टेक्नोलॉजी को वर्तमान में पायलट अनुप्रयोगों में परीक्षण की जा रही है । नॉवल पीवी संकल्प्नाओं का लक्ष्य अल्ट्रा –हाई इफेंसेंसी सोलर सेलों से एडवान्स मटेरियल और न्यू कन्वोर्सजन संकल्पना और प्रोसेस हासिल करना है । ये फिलहाल मौलिक रिसार्च का विषय है ।
ग) सोलर थर्मल – टेक्नोलॉजी
सोलर एनेर्जी को प्रत्यक्ष तौर पर प्रयोग के लिए हीटिंग के लिए एक हीट स्रोत के रूप में तथा टरबाइन के माध्यम से विद्युत उत्परन्न करने के लिए स्टीम उत्पन्न करने के लिए प्रयोग किया जाता है ।
कॉसेंट्रेटिंग सोलर एनेर्जी सिस्टदम को सोलर थर्मल पावर प्लांट में प्रयोग करने के लिए टेक्नो्लॉजी के प्रकार :-
I) पारावॉलिक ट्रॉ
पैराबोला सूर्य से आने वाली रेडियेशन को फोकस करने की सम्पत्ति है तथा यह फोकस करती है । इस सिद्धांत पर कार्यरत पैराबोलिक शेप का रेखीय कॉन्सेंट्रेटॉर को उच्च परावर्तन सामग्री के कोट किए जाते हैं और इसे सूर्य की स्थिोति की ओर कोणीय मूवमेंट में मोड़ा जा सकता है और आनेवाले सोलर रेडियेशन को लम्बेक- लाइन रिसिविंग अबसोर्बर ट्यूब में संकेन्द्रित किए जा सकते हैं । शोषित सोलर एनेर्जी को ट्रांसफर करने के लिए प्रवाही द्रव का प्रयोग किया जाता है जोकि पाइप से एक्सचेंजर या परम्परागत कवर्सन सिस्टकम ट्रांसफर किया जाता है । पैराबोलिक नली सिस्टम विसरित रेडियेशन का प्रयोग नहीं कर सकता है किन्तु ये प्रत्यक्ष बीम सूर्यप्रकाश को ही केवल प्रयोग करता है तथा सूर्य की ओर फोकस करने के लिए ट्रैकिंग सिस्टम को रखना पड़ता है तथा ये उच्च प्रत्यक्ष सोलर रेडियेशन क्षेत्र के लिए सबसे अच्छा है ।
दिन के दौरान अधिकतम सिस्ट़म या तो ईस्टत – वेस्टस या नोर्थ – साऊथ सिंगल एक्सिस ट्रैकिंग के साथ उन्मुख हैं ।
ii) सोलर टॉवर (सेन्ट्रल रिसिविंग सिस्टम)
सेट्रल रिसीवर सिस्टम को हेलियोस्टाट्स में डबल एक्सिोस मेकानिज्मर के माध्यम से दिगंश और कई हेलियोस्टिट्स उन्मुखी गोलाकार टॉवर से परावर्तित सूर्य प्रकाश को इलेवेशन एंगल के माध्यम से सूर्य को ट्रैक किया जाता है तथा इसे एक सेंट्रल रिसीवर स्थिूत अडॉप्टव टॉवर की ओर संकेन्द्रित किया जाता है । इस टेक्नोतलॉजी की विशेषता है कि ऑप्टिपकल के माध्यम से यह सोलर एनेर्जी को बहुत ही दक्षतापूर्ण तरीके से स्थान्त रित करती है तथा उच्चास्तरीय संकेन्द्रित सूर्यप्रकाश को सेंट्रल रिसीवर यूनिट में, एनेर्जी इनपुट के रूप में पावर कवर्सन सिस्ट्म में पहुंचता है । इलेजंट डिजाइन संकल्पयना और हाई कसंट्रेशन और हाई इफेसेंसी के भावी प्रोस्पेक्ट के बावजूद, इस सेंट्रल रिसीवर टेक्नोसलॉजी को आगामी अप स्केलिंग करने के लिए अत्यधिक विकसित करने की जरूरत है । इसका मुख्य आकर्षण उच्चस्तरीय कंसेंट्रेट सोलर रेडियेशन के माध्यम से उत्पन्न उच्ची प्रोसेस तापमान के प्रोस्पेक्ट बनावट के द्वारा किसी भी पावर कंवर्सजन सिस्टम के टॉपिंग साइकल के लिए एनेर्जी आपूर्ति करना तथा मॉडर्न पावर कंवर्सजन सिस्टम के मांग को पूरा करने के लिए एनेर्जी स्टॉरेज सिस्ट्म को प्रभावी ढंग से आपूर्ति करने के लिए समर्थ होना ।
अनेक प्रकार के रिसीवर हीट ट्रांसफर मीडिया जोकि पानी/स्ट्रीम, तरल सोडियम, ढलवां नमक, परिवेशी वायु, तेल इत्यारदि को सफलतापूर्वक उपयोग किए जा रहे हैं ।
सोलर टॉवर प्लांरट हाई कंवर्सजन इफेसेंसी के लिए अच्छा दीर्घावधि प्रत्याशित है तथा वृहद सोलर क्षमता या सोलर शेयर के लिए उच्च तापमान के उपयोग द्वारा बहुत क्षमतापूर्ण एनेर्जी स्टॉ रेज सिस्टम के प्रयोग के लिए भी है ।
iii) लिनीयर फ्रेसनेल
लिनीयर फ्रेसनेल टेक्नो लॉजी का प्रयोग लम्बे फ्लैट या थोड़ा घुमावदार दर्पणों में सूर्यप्रकाश को एक लिनीयर रिसीवर स्थिनत परावर्तक के एक सामान्य फोकल पोइंट पर होता है । रिसीबर उपर्युक्त प्रतिक्षेपक के समान्तर चलता है और ट्यूब में पानी उबलने के लिए हीट इकट्ठा करता है तथा पावर स्टीम टरबाइन के लिए उच्च दबाव वाष्प या स्टीम उत्पन्नं करता है । (पानी/ प्रत्येक्ष वाष्प उत्पादन, ताप एक्सीचेंजर की आवश्यक ता नहीं) प्रतिक्षेपक फ्रेसनेल लेंस इफेक्ट का प्रयोग करता है, जोकि एक वृहद अपेक्चनर और लघु फोकल लेंप के साथ कॉन्सेंट्रेटिंग प्रतिबिंब के लिए नियत करता है । यह प्लांट की लागत को कम करता है, क्योंकि दबाया हुआ कांच पैराबोलिक प्रतिक्षेपक आमतौर पर अपेक्षाकृत अधिक महंगा है । अत: ऑप्टियकल इफेसेंसी और क्रियाशील तापमान अन्ये सीएसपी संकल्पाना से न्यूकनतम माना जाता है, क्योंकि नम वाष्प् अवस्था इस टेक्नोलॉजी के लिए विचारणीय होगी । प्रदर्शन प्लांट को विकसित करके एक वृहदतर, व्यावसायिक परियोजनाओं के रूप में शीर्षस्तर की हो रही है । रिसीवर स्थिर होती है और अत्याधिक द्रव युग्मन की आवश्यषकताएं नहीं होती हैं । (नली और वर्तन में) दर्पण भी रिसीवर का सहारा नहीं लेती है, अत: इसकी संरचना भी बहुत ही सरल होती है । जब उपयुक्त निशानी रणनीति का प्रयोग किए जाते हैं (दर्पण का निशाना दिन के विभिन्न समयों में विभिन्न रिसीवरों पर हो) तब यह उपलब्ध भूखण्डद क्षेत्र में दर्पणों को एक सघन पैकिंग के लिए नियत कर सकता है ।
ईंधन सेल्स संबंधी बुनियादी बातें
ईंधन सेल्स एक युक्ति है जिसमें इलेक्ट्रोमैकनिकल प्रक्रिया से विद्युत पैदा करने के लिए हाइड्रोजन (या हाइड्रोजन की प्रचुरता वाला ईंधन) और आक्सीजन का प्रयोग किया जाता है। यदि शुद्ध हाइड्रोजन का प्रयोग ईंधन के रूप में किया जाता है तो ईंधन सेल्स से बायप्रोडक्ट के रूप में केवल ऊष्मा एवं जल उत्सर्जित होता है। कई प्रकार के ईंधन सेल्स विकसित किए जा रहे हैं तथा उनके कई प्रकार के संभावित अनुप्रयोग हैं। ईंधन सेल्स का विकास यात्री वाहनों, वाणिज्यिक भवनों, घरों एवं यहां तक कि छोटी युक्तियों जैसे कि लेपटाप, कम्प्यूटर को विद्युत (पावर) प्रदान करने के लिए किया जाता रहा है।
कई विद्युत संयत्रों एवं यात्री वाहनों में इस समय प्रयुक्त होने वाली पारंपरिक दहन आधारित प्रौद्योगिकियों की तुलना में ईंधन सेल्स के कई फायदें हैं। ये बहुत कम मात्रा में ग्रीन हाउस गैस जो कि वैश्विक तापन (ग्लोबल वर्मिंग) के लिए जिम्मेदार हैं, पैदा करते हैं और कुहरा एवं स्वास्थ्य समस्याएं पैदा करने वाले वायु प्रदूषक तत्व पैदा करते हैं।
ईंधन सेल्स, दहन आधारित प्रौद्योगिकियों की तुलना में अधिक सक्षम होते हैं तथा उनको विद्युत प्रदान करने के लिए प्रयुक्त हाइड्रोजन कई प्रकार के स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है जिसमें, जीवाश्म ईंधन, अक्षय ऊर्जा और नाभिकीय ऊर्जा शामिल है। चूंकि ईंधन घरेलू उपलब्ध संसाधनों से पैदा किया जा सकता है इसलिए विदेशों के तेल पर हमारी निर्भरता कम करके राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने की संभावना ईंधन सेल्स में है।
यद्यपि ईंधन सेल्स के कई संभावित लाभ हैं, तथापि, उपभोक्ताओं के लिए ईंधन सेल्स को सफल, प्रतिस्पर्धात्मक विकल्प बनाने के लिए कई तकनीकी एवं अन्य प्रकार की चुनौतियों से निपटना चाहिए। इनमें लागत, स्थायित्व, ईंधन भंडारण एवं प्रतिदान विषय एवं सार्वजनिक स्वीकार्यता शामिल है।
ईंधन सेल्स किस प्रकार कार्य करते हैं
ईंधन सेल्स के घटक एवं कार्य
ईंधन सेल्स एक युक्ति है जिसमें इलेक्ट्रोमेकेनिकल प्रक्रिया से विद्युत पैदा करने के लिए हाइड्रोजन (या हाइड्रोजन की प्रचुरता वाला ईंधन) एवं ऑक्सीजन का प्रयोग किया जाता है। एकल ईंधन सेल में दो पतले इलेक्ट्रोड्स (एक छिद्रयुक्त एनोड एवं कैथोड) के बीच दबा हुआ एक इलेक्ट्रोलाइट रहता है। यद्यपि विभिन्न प्रकार के ईंधन सेल होते हैं तथापि, सभी एक समान सिद्धांत पर काम करते हैं।
ईंधन सेल्स द्वारा पैदा की गई विद्युत की मात्रा कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे कि ईंधन सेल्स का प्रकार, ईंधन सेल्स का आकार, तापमान जिस पर यह चलता है और दबाव जिस पर गैसों की आपूर्ति सेल को की जाती है। फिर भी, एकल ईंधन सेल केवल छोटे अनुप्रयोगों के लिए पर्याप्त विद्युत सेलों को श्रेणीबद्ध तरीके से ईंधन सेल स्टैक जोड़ा जाता है। एक टाइपिकल ईंधन सेल स्टैक में कई सौ ईंधन सेल होते हैं।
प्रत्यक्ष हाईड्रोजन ईंधन सेल केवल उत्सर्जन के रूप में शुद्ध जल पैदा करते हैं। यह जल जल वाष्प के रूप में मिलता है। आंतरिक दहन इंजिनों की तुलना में ईंधन सेल्स कम जल वाष्प निकालता है और विद्युत की मात्रा समान रहती है।
ईंधन
अधिकतर ईंधन सेल्स प्रणालियों में शुद्ध हाइड्रोजन गैस ईंधन का प्रयोग किया जाता है जिसका संपीडित (कम्प्रेस्ड) गैस के रूप में ऑनबोर्ड स्टोर किया जाता है। चूंकि हाइड्रोजन गैस का ऊर्जा घनत्व कम होता है इसलिए पारंपरिक ईंधनों जैसे कि गैसोलाइन की तरह विद्युत (पावर) की मात्रा सृजित करने के लिए पर्याप्त हाइड्रोजन को स्टोर रखना कठिन हैद्य। यह ऐसे ईंधन सेल्स वाहनों के लिए प्रमुख समस्या है जिसके लिए प्रतिस्पर्धात्मक गेसोलाइन वाहन बनने के लिए दुबारा ईंधन भरने तक 300-400 माइल का ड्राविंग रैंज रखना आवश्यक होता है। उच्च-दबाव टैंक एवं अन्य प्रोद्योगिकियां विकसित की जा रही है जिनसे यात्री कारों के लिए छोटे टेंकों में हाइड्रोजन की अधिक मात्रा रखी जा सकेगी।
ऑन बोर्ड स्टोरेज समस्याओं के अतिरिक्त, उपभोक्ताओं कोद्रव्य ईंधन प्रदान करने के लिए हमारे मौजूदा अवसंरचना का उपयोग गैसीय हाइड्रोजन के लिए किया जा सकता है। नई सुविधाएं एवं वितरण (डिलीवरी) प्रणालियां निर्मित की जानी चाहिए जिसके लिए पर्याप्त समय एवं संसाधनों की आवश्यकता होगी। वृहत स्तर पर तैनाती के लिए अत्यधिक लागत होगी।
हाइड्रोजन प्रचुरता वाला ईंधन
ईंधन सेल्स प्रणालियों में हाइड्रोजन की प्रचुरता वाले ईंधनों जैसे कि मिथेनाल, प्राकृतिक गैस, गेसोलाइन या गैसीकृत कोयले के ईंधन का प्रयोग किया जा सकता है। कई ईंधन सेल्स प्रणालियों में, इन ईंधनों को ऑनबोर्ड ‘रिफार्मर’ के माध्यम से गुजारा जाता है जो ईंधन से हाइड्रोजन ले लेते हैं। ऑनबोर्ड रिफार्मिंग के कई लाभ हैं।
हाइड्रोजन की प्रचुरता वाले ईंधनों के कई नुकसान भी हैं।
उच्च-ताप ईंधन सेल्स प्रणालियां ईंधन सेल्स के भीतर ही ईंधन का रिफार्म कर सकते हैं – यह प्रक्रिया आंतरिक रिफार्मिंग कहलाती है – ऑनबोर्ड रिफार्मर एवं उनकी संबद्ध लागत की आवश्यकता को दूर करती है, तथापि, इसमें ऑनबोर्ड रिफार्मिंग की ही तरह कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जित नहीं होता है। इसके अतिरिक्त गैसीय ईंधन में अशुद्धियों से सेल की क्षमता कम हो सकती है।
ईंधन सेल प्रणालियां
ईंधन सेल प्रणालियों की रूप रेखा (डिजाइन) बहुत जटिल होती है जो कि ईंधन सेल्स के प्रकार एवं अनुप्रयोग के आधार पर भिन्न-भिन्न हो सकती है। तथापि, अधिकतर ईंधन सेल प्रणालियों में चार मौलिक घटक होते हैं।
1. ईंधन प्रोसेसर
2. ऊर्जा परिवर्तन करने वाली युक्ति (ईंधन सेल या ईंधन सेल स्टैक)
3. धारा परिवर्तक
4. ऊष्मा रिकवरी प्रणाली (विशेष रूप से स्थिर अनुप्रयोगों के लिए प्रयुक्त उच्च ताप ईंधन सेल
प्रणालियों में प्रयोग में लाई जाती है)
यद्यपि, उनकी चर्चा यहां नहीं की गई है, तथापि, अधिकतर ईंधन सेल प्रणालियों में ईंधन सेल की आद्रता नियंत्रित करने के लिए अन्य घटक एवं उप प्रणालियां शामिल हैं।
ईंधन प्रोसेसर
ईंधन सेल प्रणाली का पहला घटक ईंधन प्रोसेसर है। ईंधन प्रोसेसर ईंधन को उस रूप में परिवर्तित कर देता है जो ईंधन सेल द्वारा प्रयोग लायक हो जाता है। यदि हाइड्रोजन को प्रणाली में दिया जाता है तो प्रोसेसर की आवश्यकता नहीं हो सकती है या इसकी आवश्यकता केवल हाइड्रोजन गैस से अशुद्धताओं को हटाने के लिए किया जा सकता है।
यदि प्रणाली को विद्युत (पावर) हाइड्रोजन की प्रचुरता वाले ईंधन जैसे कि मिथेनाल, प्राकृतिक गैस, गेसालाइन या गैसीकृत कोयला से मिलता है तो हाइड्रोकार्बन को ‘’रिफार्मेंट’’ नामक हाइड्रोजन एवं कार्बन घटक के गैस मिश्रण में परिवर्तित करने के लिए एक रिफार्मर की विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है। कई मामलों में रिफार्मेट को उसके बाद, ईंधन सेल स्टैक में भेजने से पहले अशुद्धियां जैसे कि कार्बन डाइआक्साइड या सल्फर दूर करने के लिए दूसरे रियेक्टर में भेजा जाता है। इससे गैस की अशुद्धियां ईंधन सेल उत्प्रेरक से नहीं मिल पाती (बाइंडिंग) है। यह बाइंडिंग प्रक्रिया ’प्वाइजनिंग’ भी कहलाती है क्योंकि यह ईंधन सेल की क्षमता एवं स्थायित्व (लाइफ एक्सपेक्टेंसी) को कम करता है।
कुछ ईंधन सेल जैसे कि मोल्टन कोर्बोनेट एवं ठोस आक्साइड ईंधन सेल उच्च तापमान पर चलते हैं जिससे ईंधन का ईंधन सेल में ही रिफार्म किया जा सकता है। यह आंतरिक रिफार्मिंग कहलाता है। ईंधन सेल, जो आंतरिक रिफार्मिंग का प्रयोग करते हैं, को अभी भी बिना रिफार्म किए गए र्इंधन से अशुद्धियां हटाने के लिए ट्रैप की आवश्यकता है। इससे पहले कि वह ईंधन सेल में पहुंचे।
आंतरिक एवं बाह्य दोनों रिफार्मिंग में कार्बन डाइआक्साइड निकलता है किन्तु इसकी मात्रा आंतरिक दहन इंजिनों, जो कि गैसोलाइन से चलने वाले वाहनों में प्रयुक्त होते है, द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा से कम होती है।
ऊर्जा परिवर्तन युक्ति – ईंधन सेल स्टैक
ईंधन सेल स्टैक ऊर्जा परिवर्तन करने वाली युक्ति है। यह रासायनिक प्रतिक्रियाओं, जो ईंधन सेल में होती है, से प्रत्यक्ष धारा (डीसी) के रूप में विद्युत पैदा करती है। ईंधन सेल और ईंधन सेल स्टैक को ईंधन सेल घटकों एवं कार्य के अंतर्गत कवर किया जाता है।
करेंट इनवर्टर एवं कंडिशनर
करेंट इनवर्टर एवं कंडिशनर का प्रयोजन ईंधन सेल की विद्युत धारा को अनुप्रयोग की विद्युत आवश्यकताओं के अनुकूल बनाना है, चाहे यह साधारण विद्युत मोटर हो या जटिल उपयोग वाला ग्रिड।
ईंधन सेल प्रत्यक्ष धारा (डी सी) के रूप में विद्युत पैदा करते हैं। प्रत्यक्ष धारा सर्किट में विद्युत केवल एक ही दिशा में प्रवाहित होती है। आपके घर एवं कार्य स्थान में विद्युत एकान्तर धारा (ए सी) के रूप में होती है जो एकान्तर चक्रों में दोनों और प्रवाहित होती है। यदि ईंधन सेल का प्रयोग ए सी का उपयोग करके उपकरण को चलाने के लिए किया जाता है तो प्रत्यक्ष धारा को एकांतर धारा (ए सी) में परिवर्तित किया जाना होगा।
एकांतर धारा एवं प्रत्यक्ष धारा दोनों की कंडिशनिंग की जानी चाहिए। पावर कंडिशनिंग में धारा प्रवाह (एम्पीयर), वोल्टेज, आवृति एवं विद्युत धारा की अन्य विशेषताएं शामिल हैं जिसका प्रयोग अनुप्रयोग की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किया जाता है। परिवर्तन एवं कंडिशनिंग से प्रणाली की क्षमता में मामूली, लगभग 2 से 6 प्रतिशत की कमी आती है।
ऊष्मा रिकवरी प्रणाली
ईंधन सेल प्रणाली का प्रयोग मुख्यतया ऊष्मा सृजित करने के लिए किया जाता है। तथापि, चूंकि ऊष्मा की काफी मात्रा कुछ ईंधन सेल प्रणालियों – विशेषकर जो उच्च तापमान पर चलती हैं जैसे कि गैस आक्साइड एवं मोल्टन कार्बोनेट प्रणालियों का उपयोग वाष्प या गर्म जल पैदा करने के लिए किया जा सकता है या इससे गैस टरबाइन या अन्य प्रौद्योगिकी के जरिए विद्युत में परिवर्तित किया जाता है। इससे प्रणालियों की समग्र ऊर्जा दक्षता बढ़ती है।
ईंधन सेल के प्रकार
ईंधन सेल मुख्यतया इलेक्ट्रोलाइट के उस प्रकार द्वारा वर्गीकृत होते हैं जो वे प्रयोग में लाते हैं। यह उस रसायनिक रिएक्टर के प्रकार, जो सेल में होता है, आवश्यक उत्प्रेरक के प्रकार, तापमान रेंज जिसमें सेल चलता है, आवश्यक ईंधन एवं अन्य कारकों को निर्धारित करता है। ये विशेषताएं बाद में उन अनुप्रयोगों को प्रभावित करती हैं जिनके लिए ये सेल्स उपयुक्त हैं। कई प्रकार के ईंधन सेल्स को इस समय विकसित किया जा रहा है। प्रत्येक के अपने लाभ अपनी सीमाएं एवं संभावित अनुप्रयोग हैं। सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रकारों में कुछ निम्नलिखित शामिल हैं :
पृष्ठभूमि
आज के चिंता के प्रमुख मुद्दे पर्यावरण एवं ऊर्जा संरक्षण हैं। भारत में महानगरों में आटोमोबाइल के कारण प्रदूषण स्तरों में खतरनाक रूप से हो रही व़द्धि और क्षय हो रहे तेल संसाधनों के संरक्षण की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ये मुद्दे अधिक महत्वपूर्ण हैं। इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) के प्रयोग की आवश्यकता को अच्छी तरह स्वीकारा गया है। इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बैटरी चालित वाहनों (इलेक्ट्रिक वाहनों) का प्रयोग शुरू करना है जो शून्य उत्सर्जन के कारण प्रदूषण रहित, पर्यावरण हितैषी है। पारंपरिक कारों के विपरीत, जो आंतरिक दहन इंजिनों को विद्युत प्रदान करने (पावर) के लिए पेट्रोलियम ईंजनों का प्रयोग करते हैं, इलेक्ट्रिक कार प्रत्यक्ष धारा (करेंट) इलेक्ट्रिक मोटर द्वारा चलता है जिसको रिचार्जेबल बैटरी पैक से पावर मिलता है। इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग आज विशिष्ट अनुप्रयोगों अर्थात औद्योगिक, मनोरंजन, सड़क परिवहनों में बड़ी संख्या में किया जाता है।
योजना के उद्देश्य
प्रत्याशित डेवलपर्स को वित्तीय एवं तकनीकी सहायता प्रदान करके पेट्रोल/डीजल से चलने वाले वाहनों के विकल्प के रूप में बैटरी से चलने वाले वाहनों के विकास एवं वाणिज्यीकरण को बढ़ावा, सहायता, गति देना।
सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरिणक लाभ
बैटरी से चलने वाले वाहनों को चलना न केवल प्रदूषण रहित है बल्कि पर्यावरण हितैषी भी है और इससे कई लाभ मिलते हैं जैसे कि –
विकास संबंधी कार्यकलाप
बीडीए योजना के अंतर्गत अवसंरचना ऋण
नल में शामिल किए जाने के बाद अवसंरचना ऋण हेतु बीडीए पात्र हैं।
बीडीए योजना के अंतर्गत ऋण लेने के लिए निम्नलिखित दस्तावेज जमा किए जाने होते हैं।
1. पिछले तीन वर्षों की वार्षिक रिपोर्ट
2. संगम ज्ञापन एवं संगम अनुच्छेद
3. खरीदे जाने के लिए प्रस्तावित सामग्री की सूची और साथ ही कोटेशन की मूल प्रति
4. नए वित्तीय मार्गनिर्देशों के अनुसार प्रतिभूति के प्रकार को दर्शाएं, जो आपने देने का वचन दिया हो
बीडीए योजना के अंतर्गत अवसंरचना ऋण के लिए प्रतिभूति मैट्रिक्स
अनुसूचित बैंक से गारंटी या डिमांड वचन पत्र; योजना के अंतर्गत इरेडा के ऋण से एवं बीडीए की स्वयं की निधियों से अर्जित चल संपत्तियों का आडमान/प्रवर्तकों/प्रवर्तक निदेशकों एवं प्रवर्तक कंपनियों द्वारा गारंटियां (राज्य नोडल एजेंसियों/गैर सरकारी संगठनों/ट्रस्ट पर लागू नहीं) और मूल ऋण राशि एवं ब्याज की वापसी अदायगी की समय सारणी के अनुसार पोस्ट डेटेड चेक जमा करना या ऋण एवं ब्याज की सीमा तक इरेडा के पक्ष में एफ डी आर का रेहन या डिमांड वचन पत्र; ऋण के लिए प्रतिभूति के रूप में एवं इसके जरिए ऋणी के स्वामित्व वाली अचल संपत्तियों का बंधक/प्रवर्तकों/प्रवर्तक निदेशकों एवं प्रवर्तक कंपनियों द्वारा गारंटियां (राज्य नोडल एजेंसियों/गैर सरकारी संगठनों/ट्रस्ट पर लागू नहीं) और मूल ऋण राशि एवं ब्याज की वापसी अदायगी की समय सारणी के अनुसार पोस्ट डेटेड चेक जमा करना।
1. इरेडा केवल ऊर्जा दक्षता/संरक्षण एवं अन्य एन आर एस ई क्षेत्रों के संवर्धन से संबंधित कार्यकलाप करने के लिए अवसंरचना संबंधी सुविधाएं प्रदान करने हेतु बीडीए करार पर हस्ताक्षर करने के शीघ्र बाद उत्तम बीडीए को 3 लाख रु. से अनधिक अग्रिम अदायगी करेगी। अग्रिम अदायगी करार के नवीनीकरण किए जाने तक वैध होगी और अवसंरचना ऋण लेने के समय प्रभावी होगी।
2. कम्प्यूटर, जेरॉक्स मशीन, फैक्स एवं पुस्तकालयों की पुस्तकों जैसी पात्र सामग्री की खरीद के लिए 5 प्रतिशत प्रति वर्ष की मामूली ब्याज दर लागू दर पर ब्याज कर पर यह राशि प्रदान की जाती है। अग्रिम अदायगी/ब्याज सहित ऋण की वसूली देय ब्याज के साथ छह समान वार्षिक किस्तों में की जाएगी, नियत तिथि प्रत्येक वर्ष 31 दिसम्बर होगी। पूर्वोत्तर क्षेत्रों एवं सिक्किम के लिए अग्रिम अदायगी पर ब्याज की दर शून्य प्रतिशत होगी। अन्य औपचारिकताएं उसी प्रकार रहेंगी।
3. बीडीए के दिए गए अग्रिम को अनुसूचित बैंक की बैंक गारंटी की प्रतिभूति द्वारा प्रतिभू किया जाएगा या डिमांड वचन पत्र; योजना के अंतर्गत इरेडा के ऋण से एवं बीडीए की स्वयं की निधियों से अर्जित चल संपत्तियों का आडमान/प्रवर्तकों/प्रवर्तक निदेशकों एवं प्रवर्तक कंपनियों द्वारा गारंटियां (राज्य नोडल एजेंसियों/गैर सरकारी संगठनों/ट्रस्ट पर लागू नहीं) और मूल ऋण राशि एवं ब्याज की वापसी अदायगी की समय सारणी के अनुसार पोस्ट डेटेड चेक जमा करना या ऋण एवं ब्याज की सीमा तक इरेडा के पक्ष में एफ डी आर का रेहन या डिमांड वचन पत्र; ऋण के लिए प्रतिभूति के रूप में एवं इसके जरिए ऋणी के स्वामित्व वाली अचल संपत्तियों का बंधक/प्रवर्तकों/प्रवर्तक निदेशकों एवं प्रवर्तक कंपनियों द्वारा गारंटियां (राज्य नोडल एजेंसियों/गैर सरकारी संगठनों/ट्रस्ट पर लागू नहीं) और मूल ऋण राशि एवं ब्याज की वापसी अदायगी की समय सारणी के अनुसार पोस्ट डेटेड चेक जमा करना।
4. अग्रिम की वापसी अदायगी और/या उस पर ब्याज की अदायगी में चूक की स्थिति में बीडीए को चूक के समाधान किए जाने तक प्रति वर्ष 2.5 प्रतिशत की दर से परिसमाप्त हानि अदा करना होगा।
5. इरेडा से लिए गए अग्रिम की वापसी अदायगी के लिए बीडीए द्वारा पूर्ण रूप से अग्रिम लिए जाने की तिथि से दो वर्ष की अवधि तक ऋण स्थगन अवधि प्रदान की जाएगी। 2 वर्ष ऋण स्थगन की अवधि के पूरा हाने के बाद शीघ्र पड़ने वाली नियत तिथि से वापसी अदायगी शुरू हो जाएगी।
6. पात्रता : ऋण केवल उत्तम बीडीए को दिया जाना चाहिए।
पृष्ठभूमि
इरेडा ने उन संगठनों के लिए अक्षय ऊर्जा/ऊर्जा दक्षता अम्ब्रेला वित्तपोषण योजना शुरू की है जिनका ऐसे व्यक्तिगत/रिटेल ग्राहकों; जो इरेडा की वैधानिक पात्रता को पूरा नहीं करते हैं और व्यापक ग्रामीण/अर्ध शहरी क्षेत्रों में फैले हुए हैं, की सेवा करने के लिए अच्छा नेटवर्क मौजूद है।
उद्देश्य
1. उपयुक्त माइक्रो वित्तपोषण नेटवर्क विकसित करके ग्राहक/प्रयोक्ता आधार बढ़ाकर इरेडा के ऋण प्रदान करने के मौजूदा कार्य को सहायता देना।
2. इरेडा के सूक्ष्म वित्तपोषण कार्य क्षमता को सुगम बनाना।
पात्रता
राज्य वित्त निगम (एस एफ सी), औद्योगिक विकास निगम (आई डी सी) तकनीकी परामर्शी संगठन (टी सी ओ), गैर बैाकिंग वित्तीय कंपनियां (एन बी एफ सी) राज्य नोडल एजेंसियां (एस एन ए), व्यवसाय विकास सहयोगी (बी डी ए), अनुसूचित बैंक एवं गैर सरकारी संगठन (एन जी ओ), जो अन्यथा इरेउा से ऋण लेने के लिए वैधानिक रूप से पात्र हैं और वित्तपोषण संबंधी मार्गनिर्देशों में दिए गए अन्य पात्रता मापदंडों को पूरा करते हैं।
ऋण देने के निबंधन एवं शर्तें
लाइन आफ क्रेडिट : न्यूनतम 25 लाख रु. और अधिकतम 1 करोड़ रु.
इस योजना के लिए लागू वित्तपोषण मानदंड नीचे तालिका में दिए गए हैं :
आवेदक की प्रक्रिया
पात्र आवेदक व्यवसाय योजना एवं अन्य संलग्नकों के साथ इरेडा के विहित प्रपत्र में आवेदन जमा करेगा। लाइन ऑफ क्रेडिट के लिए आवेदनों का इरेडा द्वारा विहित मानदण्डों के आधार पर मूल्यांकन किया जाएगा। इरेडा आवेदन की समीक्षा करेगी और योग्यता मानदण्डों के आधार पर लाइन ऑफ क्रेडिट स्वीकृत करेगी या उपयुक्त नहीं पाये जाने पर आवेदन को अस्वीकृत करेगी।
प्रतिभूति
1. अनुसूचित बैंक की बैंक गारंटी/एफ डी आर का रेहन
2. राज्य सरकार गारंटी
3. ‘‘एएए’’ या समकक्ष रेटिंग वाले अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों की बिना शर्त एवं अपरिवर्तनीय गारंटी
4. प्रत्येक तिमाही के अंत में परिपक्व होने वाले अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक की सावधिक जमा प्राप्तियां जो मूल धन एवं ब्याज की तिमाही किस्त के बराबर हो।
रियायत/छूट/प्रावधान
1. फ्रांट इंड फी, निरीक्षण प्रभार, वैधानिक प्रभार (वसूली के लिए प्रोद्भूत से भिन्न), नामिती निदेशकों पर व्यय इस योजना के लिए लागू नहीं है।
2. अधिक ब्यौरे के लिए इरेडा के वित्तपोषण मार्गनिर्देशों को देखें।
संवितरण
1. इरेडा ऋण करार के हस्ताक्षर एवं प्रतिभूति सृजन के बाद मोबिलाइजेशन अग्रिम के रूप में 50 प्रतिशत लाइन आफ क्रेडिट संवितरित करेगी।
2. शेष 50 प्रतिशत का संवितरण पहले ही जारी किए गए मोबिलाइजेशन अग्रिम के समुचित उपयोग के प्रमाण के बाद किया जाएगा।
ऋण देने से संबंधित निबंधन एवं शर्तें
ऋणी द्वारा घोषित किया जाना
विशेष शर्तें
यदि ऋणी मोबिलाइजेशन अग्रिम के संवितरण की तिथि से 12 महीने की अवधि के भीतर कोई व्यवसाय नहीं करता है (मोबिलाइजेशन अग्रिम के उपयोग का प्रमाण इरेडा को नहीं देता है (तो स्वीकृत लाइन आफ क्रेडिट स्वत: रद्द हो जाएगी। उस स्थिति में इरेडा से लिए गए मोबिलाइजेशन ऋण और साथ ही ब्याज का रिफंड उक्त एक वर्ष की समाप्ति के 30 दिनों के भीतर किया जाएगा।
बाजार विकास सहायता
योजना के बारे में
अक्षय ऊर्जा एवं ऊर्जा दक्षता/संरक्षण उत्पादों एवं युक्तियों (डिवायस) के प्रभावी विपणन (मार्केटिंग) की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की गई है। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए इरेडा ने अक्षय ऊर्जा एवं ऊर्जा दक्षता/संरक्षण प्रौद्योगिकियों, प्रणालियों एवं उत्पादों एवं युक्तियों (डिवायस) के विनिर्माताओं/मध्यस्थों एवं आपूर्तिकर्ताओं को सहायता प्रदान करने के लिए योजना शुरू की है ताकि वे भारत एवं विदेश दोनों में अपने उत्पादों के लिए प्रभावी मांग पैदा करने हेतु विभिन्न साधनों के जरिए अपने उत्पादों को बढ़ावा दे सकें।
सामान्य पात्रता शर्तें
क. इस योजना के अंतर्गत निम्नलिखित के लिए सहायता उपलब्ध है :
1. अक्षय ऊर्जा एवं ऊर्जा दक्षता/संरक्षण प्रणालियों एवं युक्तियों (डिवायस) के विनिर्माता
2. इरेडा के प्राधिकृत/पैनल में शामिल मध्यस्थ
3. अक्षय ऊर्जा एवं ऊर्जा दक्षता/संरक्षण प्रणालियों एवं युक्तियों (डिवायस) के प्राधिकृत आपूर्तिकर्ता/वितरक
ख. अन्य पात्रता मानदंड इरेडा के वित्तपोषण मार्गनिर्देशों के अनुसार
सहायता का प्रयोजन
निम्नलिखित के लिए पात्र व्यय को पूरा करने के लिए ऋण सहायता ली जा सकती है :
1. इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया में विज्ञापन।
2. आडियो, विडियो एवं प्रिंट सामग्री सहित प्रचार – प्रसार संबंधी तैयार करना।
3. प्रदर्शनियों/कायर्शालाओं/सेमिनारों/व्यावसायिक बैठकों/जागरूकता अभियानों को प्रायोजित करना एवं उनमें भाग लेना।
4. प्रदर्शन/मल्टी-मीडिया प्रस्तुति के प्रयोजनों के लिए सीडी रॉम आदि जैसे साफ्टवेयर विकसित एवं तैयार करना।
रियायत/छूट/प्रावधान
1. सभी रियायतें/छूट इस शर्त पर उपलब्ध होंगे कि ऋणी, ऋण एवं ब्याज की किस्तें नियत तिथि को या उससे पहले अदा कर दें। यह बैंक गारंटी/एफडीआर का रेहन या ‘एएए’ या समकक्ष रेटिंग वाले अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों की बिना शर्त एवं अपरिवर्तनीय गारंटी प्रदान करने के बारे में लागू नहीं होगा।
2. यदि ऋणी बैंक गारंटी की प्रतिभूति/एफडीआर का रेहन या ‘एएए’ या समकक्ष रेटिंग वाले अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों की बिना शर्त एवं अपरिवर्तनीय गारंटी प्रस्तुत कर देता है तो ब्याज की दर 1.00 प्रतिशत कम कर दी जाएगी।
3. ब्याज एवं ऋण किस्त की वापसी अदायगी समय पर करने के लिए ब्याज दर में .50 प्रतिशत की छूट दी जाएगी।
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, महिलाओं, पूर्व सैनिकों एवं विकलांग श्रेणियों के उद्यमियों के लिए विशेष रियायत।
उपरोक्त श्रेणियों के उद्यमियों के लिए विभिन्न रियायतें उपलब्ध है। अधिक जानकारी के लिए इरेडा के वित्तपोषण मार्गनिर्देशों को देखें।
प्रतिभूति मापदंड
1. अनुसूचित बैंक की बैंक गारंटी/एफ डी आर का रेहन
2. राज्य सरकार गारंटी
3. ‘‘एएए’’ या समकक्ष रेटिंग वाले अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों की बिना शर्त एवं अपरिवर्तनीय गारंटी
4. प्रत्येक तिमाही के अंत में परिपक्व होने वाले अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक की सावधिक जमा प्राप्तियां जो मूल धन एवं ब्याज की तिमाही किस्त के बराबर हो।
रियायत/छूट/प्रावधान
1. नए ऋणियों के लिए (इरेडा/के साथ/से डीलिंग/ऋण नहीं लेने वाले) : अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक की बैंक गारंटी/एफडीआर का रेहन या
‘एएए’या समकक्ष रेटिंग वाले अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों की बिना शर्त एवं अपरिवर्तनीय गारंटी।
2. मौजूदा ऋणियों के लिए: अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक की बैंक गारंटी/एफडीआर का रेहन या
‘एएए’या समकक्ष रेटिंग वाले अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों की बिना शर्त एवं अपरिवर्तनीय गारंटी।
या
डिमांड वचन पत्र, मौजूदा ऋण (ऋणों) के लिए इरेडा को पहले ही प्रभारित चल परिसंपत्तियों का अडमान, अविल्लंगमित चल परिसंपत्तियों, यदि कोई हों, का आडमान; मौजूदा ऋण (ऋणों) के लिए इरेडा को पहले ही प्रभारित अचल परिसंपत्तियों का बंधक, प्रवर्तकों/प्रवर्तक निदेशकों एवं प्रवर्तक कंपनियों द्वारा गारंटी; और मूल ऋण राशि एवं ब्याज की वापसी अदायगी समय-सारणी के अनुसार पोस्ट डेटेड चेकों को जमा करना।
नोट
1. हानि/संचित हानि वाले ऋणी या व्यक्तिगत/भागीदारी वाले प्रतिष्ठानों के मामले में केवल बैंक गारंटी/एफडीआर का रेहन ही स्वीकार किया जाएगा।
2. कृपया ध्यान रखें कि प्रतिभूतियों का उपर्युक्त समूह केवल न्यूनतम है तथा इरेडा, जोखिम बोध, उद्योग की प्रकृति एवं आवेदक की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए अलग-अलग मामले में भिन्न-भिन्न अतिरिक्त प्रतिभूतियां नियत कर सकती है।
योजना के बारे में
अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत मंत्रालय और इरेडा ने वास्तविक प्रयोक्ताओं (इंड यूजर्स) पर विशेष ध्यान देते हुए विभिन्न मीडिया के जरिए अक्षय ऊर्जा उत्पादों एवं सेवाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए गहन उपाय शुरू किए हैं। इन निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप विशेषकर रिटेल क्षेत्र में इन उत्पादों के लिए व्यापक बाजार सृजित हो गया है। इरेडा ऐसे अक्षय ऊर्जा उत्पादों एवं युक्तियों (डिवायस) के लिए रिटेल आउटलेट्स के बारे में बहुत प्रश्न पूछे जा रहे हैं।
यद्यपि अक्षय ऊर्जा प्रणालियों के कई जाने-माने विनिर्माता हैं जो देश के विभिन्न स्थानों में अवस्थित हैं तथापि, वे मुख्यता संस्थागत या बड़े खरीददारों को ही सेवाएं प्रदान कर रहे हैं और व्यक्तिगत उपभोक्ताओं ने उनके द्वारा उपेक्षित महसूस किया है। इरेडा ने ‘’ऊर्जा केन्द्रों’’ की स्थापना में प्राइवेट क्षेत्र की आवश्यकता महसूस की जो न केवल सभी अक्षय ऊर्जा/ऊर्जा दक्षता उत्पादों एवं सेवाओं को बेच सकते हैं बल्कि बिक्री के बाद रख-रखाव भी कर सकते हैं। इस प्रकार इरेडा ने वर्ष 1998-99 के दौरान एक प्रायोगिक योजना शुरू की जिसे रिटेल उपभोक्ता क्षेत्र की सेवा के लिए देश भर में ऐसे ऊर्जा केन्द्रों की स्थापना के लिए वर्ष 1999-2000 से नियमित योजना में परिवर्तित कर दिया गया।
इस योजना के अंतर्गत वित्तपोषित ऊर्जा केन्द्रों को अपने साइनबोर्ड आदि पर इरेडा का नाम/लोगो का प्रयोग करने की अनुमति है।
योजना के उद्देश्य
ऊर्जा केन्द्र निम्नलिखित उपलब्ध करा सकते हैं :
सामान्य पात्रता शर्तें
इरेडा निम्नलिखित मदों के लिए निधियां प्रदान करती है :
रियायतें
इरेडा योजना की शर्तें
ऊर्जा केन्द्र की अवस्थिति |
ब्याज दर (प्रतिवर्ष) का प्रतिशत |
ऋण स्थगन अवधि सहित वापसी अदायगी अवधि (अधिकतम) |
इरेडा द्वारा अवधिक ऋण की सीमा |
ए 1 एवं ए शहर |
12.5 |
7 |
50 लाख रु. तक |
बी 1 एवं बी 2 शहर |
12.00 |
7 |
30 लाख रु. तक |
अन्य शहर एवं जिला/खंड/मंडल/तहसील मुख्यालय |
11.50 |
7 |
20 लाख रु. तक |
रियायत/छूट/प्रावधान
अनुसूचित जाति/अनूसूचित जनजाति, महिलाओं, पूर्व सैनिकों एवं विकलांग श्रेणियों तथा जम्मू कश्मीर, सिक्किम सहित पूर्वोत्तर राज्य, मुहानों एवं नव सृजित राज्यों से संबंधित उद्यमियों के लिए विशेष रियायत। उपरोक्त श्रेणियों के उद्यमियेां के लिए विभिन्न रियायतें उपलब्ध हैं।
ऊर्जा दक्षता एवं संरक्षण (डीएसएम सहित)
प्रौद्योगिकी
ऊर्जा दक्षता उपायों के प्रकार
ऊर्जा दक्षता/संरक्षणकी संभावना
भारत में व्यापक स्तर पर ऊर्जा की बर्बादी होती है (प्रति यूनिट ऊर्जा घनत्व सकल घरेलू उत्पाद का) जापान की तुलना में 3.7 गुना एवं अमेरिका की तुलना में 1.5 गुना है।)
निम्नलिखित तालिका में अंतर्राष्ट्रीय खपत स्तरों की तुलना में कुछ क्षेत्रों के लिए ऊर्जा खपत का पता चलता है।
क्षेत्र |
भारतीय परिदृश्य |
विश्व परिदृश्य |
एल्यूमीनियम |
14.55 जी कैल/टन |
12.35 जी कैल/टन |
स्टील |
8 से 9.55 जी कैल/टन |
4.0 जी कैल/टन |
सीमेंट |
1.0 जी कैल/टन |
0.8 जी कैल/टन |
इसके साथ ही भारतीय परिदृश्य में उद्योग में विशिष्ट ऊर्जा खपत के व्यापक बैडविड्द की विशेषता पायी जाती है जिससे यह पता चलता है कि विशिष्ट ऊर्जा खपत बहुत कम स्तर (पुरानी एवं जीर्ण प्रौद्योगिकियों वाले संयंत्रों में) से लेकर लगभग विश्व मानक के स्तर तक (अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों एवं सर्वोत्तम कार्य पद्धतियों वाले संयंत्रों में) होती है। प्रतिशत के रूप में भारत में ऊर्जा बचत की संभावना नीचे दी गई है।
औद्योगिक क्षेत्र |
|
लोहा एवं स्टील |
10% |
उर्वरक |
15% |
वस्त्र |
25% |
सीमेंट |
15% |
क्लोर-अलकली |
15% |
पल्प एवं पेपर |
25% |
एल्युमिनियम |
10% |
चीनी |
20% |
पेट्रोरसायन |
15% |
ग्लास एवं सेरामिक |
20% |
रिफाइनरी |
10% |
परिवहन क्षेत्र |
|
माल की अवाजाही |
80% प्रति टन किमी (यदि माल सड़क से रेल की ओर ले जाया जाता है) |
शहरी परिवहन |
बचत किए गए प्रत्येक 1 टन पेट्रोल के लिए 0.33 टन एचएसडी की आवश्यकता होती है (बचत 67%) |
घरेलू/वाणिज्यिक क्षेत्र |
|
लाइटनिंग (सीएफएल बनाम फिलामेंट लैम्प) |
76% |
कृषि क्षेत्र |
|
सक्षम पम्पसेट |
30% |
इस संभावना को वास्तविक रूप में साकार करना ऊर्जा उत्पादों एवं वास्तविक उपयोग (एंड-यूज) उपकरण/युक्तियों दोनों के लिए मूल्यन सहित नीतियों पर और ऊर्जा क्षेत्र में होने वाले संस्थागत प्रभारों पर निर्भर करेगा। उच्च ऊर्जा लागत भारतीय उद्योग के लिए विशेषकर विश्व व्यापार संगठन के उपरांत, चिंता का कारण है जिसमें उनको विश्व भर में प्रतिस्पर्धा करना होता है और बाजार में बने रहेने के लिए अपनी इनपुट लागत में कटौती करनी पड़ती है।
नई क्षमतावर्धन की तुलना में मांग पक्ष प्रबंधन का लाभ
इरेडा द्वारा पहचाने गए टाइपिकल ऊर्जा दक्ष उपकरणों/उपायों निम्नलिखित हैं
उपरोक्त सूची केवल संकेतात्मक है और ऊर्जा बचत में सहयोग देने वाले किसी भी उपकरण/युक्ति/प्रणाली के वित्तपोषण पर इरेडा विचार करेगी।
उपलब्ध प्रोत्साहन
राज्य/केन्द्र सरकार द्वारा दिए गए प्रोत्साहन
भारत सरकार ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिए विशिष्ट उर्जा दक्षता उपकरण पर पहले वर्ष में 80 प्रतिशत मूल्यह्रास और अधिसूचित ऊर्जा संरक्षण उपरकण पर रियायती उत्पाद शुल्क एवं सीमा शुल्क प्रदान करती है। कुछ राज्य सरकारें आईपीपी मोड के अंतर्गत विद्युत उत्पादन परियोजनाओं के लिए करावकाश एवं ऊर्जा आडिट करने हेतु वित्तीय सहायता भी प्रदान करती है। इन प्रोत्साहनों के बारे में अधिक जानकारी के लिए संबंधित सरकारी एजेंसियों से संपर्क किया जा सकता है।
निम्नलिखित मदें शामिल नहीं की गई हैं।
एक तरफ आर्थिक विकास एवं औद्योगिकीकरण के परिप्रेक्ष्य में नए एवं अक्षय ऊर्जा स्रोतों और ऊर्जा दक्षता की संभावना एवं महत्व एवं दूसरी तरफ ऊर्जा के नए एवं अक्षय स्रोतों की प्रौद्योगिकियों एवं ऊर्जा दक्षता के वाणिज्यिकरण के लिए महिला उद्यमियों की भूमिका को स्वीकार करते हुए इरेडा ने ऊर्जा के नए एवं अक्षय स्रोत एवं ऊर्जा दक्षता के माध्यम से महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु व्यापक कार्यक्रम शुरू किए हैं। इस संबंध में इरेडा ने निम्नलिखित मौलिक उद्देश्यों से एक योजना शुरू की है :
* महिला उद्यमियों को ऋण देने की अपनी शर्तों में रियायत देकर आवधिक ऋण देना।
* नए एवं अक्षय ऊर्जा स्रोत एवं ऊर्जा दक्षता क्षेत्र में महिलाओं में उद्यमी क्षमता पैदा करना।
* महिलाओं के माध्यम से नीचले स्तर पर नए एवं अक्षय ऊर्जा स्रोत एवं ऊर्जा दक्षता प्रौद्योगिकियों का प्रचार-प्रसार करना।
* एक सक्षम विकल्प के रूप में नए एवं अक्षय ऊर्जा स्रोत के बारे में जागरूकता पैदा करना और नए एवं अक्षय ऊर्जा स्रोत आंदोलन को स्थायी, जनसमूह आधारित एवं निरंतर रखना।
योजना के उद्देश्य
नए एवं अक्षय ऊर्जा एवं ऊर्जा दक्षता/संरक्षण क्षेत्रों में परियोजनाएं स्थापित करने के लिए महिला उद्यमियों को रियायत देकर नम्य (सॉफ्ट) शर्तों पर आवधिक ऋण देना।
ऋण सहायता के लिए पात्र नए एवं अक्षय ऊर्जा स्रोत परियोजनाएं
महिला उद्यमियों के लिए रियायत (केवल 25 लाख रु. तक की लागत वाली परियोजनाओं के लिए लागू)
पूर्वोत्तर राज्यों एवं सिक्किम, उत्तरांचल, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, जम्मू व कश्मीर, जनजाति क्षेत्रों, मुहानों सहित द्वीपों एवं रेगिस्तानी क्षेत्रों में स्थापित की जाने वाली परियेाजनाओं के लिए अतिरिक्त रियायत, यदि कोई हो, भी उपलब्ध है।
केन्द्रीय एवं राज्य सरकार का प्रोत्साहन
स्रोत: भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास संस्थान समिति
अंतिम बार संशोधित : 2/22/2023
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