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घरेलु हिंसा से महिलाओं का बचाव अधिनियम 2005

पीड़ित व्‍यक्ति

  • क्‍या नाबालिग इस कानून के अंतर्गत राहत का हकदार है?

हां, कानून के अंतर्गत बच्‍चे की परिभाषा के अनुसार नाबालिग भी 'घरेलू संबंध' की परिभाषा की परिधि में आते हैं। पीडब्‍ल्‍यूडीवीए की धारा 2 (बी) के अंतर्गत कोई भी व्‍यक्ति, जोकि 18 वर्ष से कम आयु का है, बच्‍चा परिभाषित होता है। इसमें कोई भी गोद लिया हुआ बच्‍चा, सौतेला बच्‍चा या पाला-पोषा हुआ बच्‍चा है।

  • क्‍या एक नाबालिग लड़का इस कानून के अंतर्गत लाभ का आवेदन कर सकता है?

मां अपने नाबालिग बच्‍चे (चाहे लड़का हो या लड़की) की ओर से आवेदन कर सकती है। ऐसे मामलों में जहां मां न्‍यायालय से अपने लिए राहत मांगती है, पीडब्‍ल्‍यूडीवीए के अंतर्गत बच्‍चों को भी सह-आवेदक के रूप में शामिल किया जा सकता है। न्‍यायालय उचित समय पर अभिभावक या बच्‍चे का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए किसी व्‍यक्ति को नियुक्‍त कर सकता है।

  • 'घरेलू संबंध (धारा-2एफ) की परिभाषा में इस्‍तेमाल अभिव्‍यक्ति' विवाह की तरह का संबंध का अर्थ क्‍या है?

विवाह की तरह के संबंध का तात्‍पर्य वैसे संबंधों से है जिसमें दो व्‍यक्तियों के बीच किसी कानून के अंतर्गत विवाह की पवित्रता भाव से विवाह नहीं हुआ हो, फिर भी दोनों पक्ष दुनिया की निगाह में एक दूसरे को दंपत्ति दिखाते हैं और उनके संबंध में स्थिरता और निरंतरता है। ऐसे संबंध को समान कानून विवाह के रूप में भी जाना जाता है।

  1. ऐसे संबंध के साक्ष्‍य होंगे : एक समान नाम का उपयोग, समान राशन कार्ड, एक पता आदि।
  2. दक्षिण अफ्रीका के इथेल रोबिन्‍स वुमेन्‍स लिगल सेंटर ट्रस्‍ट बनाम रिचर्ड गोर्डन वोल्‍कास आदि (केस नम्‍बर 7178/03, दक्षिण अफ्रीका उच्‍च न्‍यायालय, केप प्रांत) मामले को देखना लाभकारी होगा। इस मामले में यह तय करने के लिए विचार किया गया कि क्‍या कोई संबंध विवाह की तरह का संबंध है। निष्‍कर्ष पर पहुंचने के लिए निम्‍न तथ्‍यों पर गौर किया गया :
  • साझी गृहस्‍थी के प्रति पक्षों की प्रतिबद्धता
  • महत्‍वपूर्ण अवधि तक साथ-साथ रहना
  • पक्षों के बीच वित्‍तीय तथा अन्‍य निर्भरता का अस्तित्‍व। इसमें गृहस्‍थी के संदर्भ में महत्‍वपूर्ण पारस्‍परिक वित्‍तीय प्रबंध शामिल है।
  • संबंध से बच्‍चों का अस्तित्‍व
  • गृहस्‍थी तथा बच्‍चों की देख-भाल में दोनों पक्षों की भूमिका
  • विवाह की तरह संबंधों पर भारतीय मुकदमें-
  • बद्रीप्रसाद एआईआर 1978एससी1557 मामले में उच्‍चतम न्‍यायालय ने व्‍यवस्‍था दी कि पति-पत्‍नी की तरह लम्‍बी अवधि तक एक साथ रहने से विवाह के पक्ष में मजबूत धारणा बनती है।
  • सुमित्रा देवी (1985) 1 एससीसी 637 में उच्‍चतम न्‍यायालय ने कहा कि प्रासंगिक तथ्‍य जैसे- कितने समय से दोनों पक्ष साथ-साथ रह रहे हैं, क्‍या समाज उन्‍हें पति और पत्‍नी के रूप में मान्‍यता देता है आदि बातों पर यह तय करते समय विचार करना आवश्‍यक है कि संबंध विवाह की तरह का लगता है।
  • विवाह की तरह के संबंध में निम्‍न श्रेणी की महिलाएं आती हैं –
  • महिलाएं जिनका विवाह अवैध है या कानून के तहत अवैध हो सकता है के मामले में विवाह की कानूनी अवैधता के अतिरिक्‍त वह बाकी सभी मानकों को पूरा करती हैं।
  • वैसी महिलाएं जो विवाह किए बिना दाम्‍पत्‍य संबंध में साझी गृहस्‍थी में रह रही हैं।
  • समान कानून विवाह – जब दंपति वर्षों से साथ-साथ रह रहे हैं और बाहर की दुनिया को पति-पत्‍नी बता चुके हैं।
  • क्‍या अभिव्‍यक्ति 'विवाह की तरह के संबंध' विवाह के बराबर है?

कानून सभी महिलाओं, चाहे वह बहन हो, मां हो, पत्‍नी हो या साझी गृहस्‍थी में सहभागी के रूप में साथ-साथ रह रहे हों, की सुरक्षा का प्रावधान करता है। सुरक्षा प्रदान करने तक कानून विवाहित और अविवाहित का फर्क नहीं करता, लेकिन कानून कहीं भी यह नहीं कहता कि एक अवैध विवाह वैध है। कानून हिंसा से सुरक्षा देता है, साझी गृहस्‍थी में रहने का अधिकार प्रदान करता है और बच्‍चों की अल्‍पकालिक संरक्षा प्रदान करता है। लेकिन पुरूष की संपत्ति के उत्‍तराधिकार या बच्‍चे की वैधता के लिए देश के सामान्‍य कानून और पक्षों की वैयक्तिक कानूनों पर भरोसा करना होगा।

प्रतिवादी

  • महिला किसके विरूद्ध शिकायत कर सकती है?

महिला हिंसा का अपराध (धारा-2(क्‍यू) किसी भी वयस्‍क पुरूष के विरूद्ध शिकायत दर्ज करा सकती है। ऐसे मामलों में जब महिला विवाहित है और विवाह की तरह संबंध में रह रही है, तो वह हिंसा, अपराध करने वाले पति/पुरूष के पुरूष या महिला संबंधियों के विरूद्ध भी शिकायत दर्ज करा सकती है। पीडब्‍ल्‍यूडीवीए में भारतीय दंड संहिता की धारा-498ए के अंतर्गत धारा-2(क्‍यू) शामिल किया गया। इससे क्रूरता के लिए पति के संबंधियों, चाहे वह पुरूष या महिला हो, के खिलाफ मुकदमा चलाना संभव है। ऐसे उदाहरणों में सास, ससुर, ननद आदि आते हैं।

  • धारा 2 (क्‍यू) के तहत संबंधियों की परिभाषा में कौन आते हैं?

पीडब्‍ल्‍यूडीवीए में संबंधी शब्‍द परिभाषित नहीं किया गया है। इसलिए इसका सामान्‍य अर्थ निकालना होगा। संबंधियों के उदाहरण पिता, माता, बहन, चाचा, ताऊ और प्रतिवादी का भाई अनुच्‍छेद 2(क्‍यू) में संबंधी के रूप में शामिल किये जा सकते हैं। अनुच्‍छेद 498ए संबंधी शब्‍द का इस्‍तेमाल करता है, जोकि परिभाषित नहीं है। इस तरह संबंधी शब्‍द का सामान्‍य अर्थ में महिला संबंधी भी शामिल होंगी।

  • क्‍या एक पत्‍नी अपने पति के महिला संबंधियों जैसे सास, ननद के विरूद्ध शिकायत दर्ज करा सकती है?

हां, पति के महिला संबंधियों के विरूद्ध आदेश जारी किये जा सकते हैं। लेकिन अनुच्‍छेद 19(1) के प्रावधान के अनुसार महिला संबंधी के विरूद्ध बेदखली की छूट नहीं दी जा सकती। अनुच्‍छेद 19(1) की राय में अनुच्‍छेद 19 (1 बी) के तहत प्रतिवादी (महिला) को साझी गृहस्‍थी से हटाने का आदेश पारित करने का निर्देश नहीं देता।
पीडि़त महिला अपने पति के पुरूष संबंधियों या अन्‍य पुरूष साथियों के विरूद्ध सुरक्षा प्राप्‍त कर सकती है। भरण-पोषण भत्‍ता (मौद्रिक सहायता के लिए आदेशों के तहत) वही व्‍यक्ति प्राप्‍त कर सकते हैं, जो अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के दायरे में आते हैं।

  • क्‍या एक सास अपनी बहू के विरूद्ध राहत के लिए आवेदन कर सकती है?

नहीं, सांस बहू के विरूद्ध आवेदन नहीं कर सकती (अनुच्‍छेद 2 (क्‍यू), लेकिन पुत्र और बहू के हाथों हिंसा झेल रही सास अपने बेटे और बहू के विरूद्ध, बेटे द्वारा किये गये हिंसा अपराध में बढ़ावा देने के लिए, आवेदन दायर कर सकती है। लेकिन सास साझी गृहस्‍थी से बहू की बेदखली की मांग नहीं कर सकती।

घरेलू दुर्घटना रिपोर्ट

  • घरेलू दुर्घटना रिपोर्ट (डीआईआर) क्‍या है?

पीडब्‍ल्‍यूडीवीए के फार्म 1 में डीआईआर का प्रारूप दिया गया है।पीड़ितमहिला इसका इस्‍तेमाल संरक्षा अधिकारी और सेवा प्रदाता के समक्ष घरेलू हिंसा का मामला दर्ज कराने के लिए कर सकती है। यह इस तथ्‍य का रिकॉर्ड होता है कि हिंसा की घटना की रिपोर्ट की गई है, यह एनसीआर (गैर दंडनीय अपराध रिपोर्ट) की तरह है। इसे संरक्षा अधिकारी या पंजीकृत सेवा प्रदाता द्वारा करना पड़ता है और हस्‍ताक्षर करना पड़ता है। यह सार्वजनिक दस्‍तावेज है।

  • डीआईआर कैसे रिकॉर्ड किया जाता है ?

डीआईआर को महिला के सच्‍चे बयान को विश्‍वास रूप में रिकॉर्ड किया जाता है। इसका अर्थ यह है कि सभी तरह की शिकायतें पीडब्‍ल्‍यूडीवीए के दायरे में पक्षपात रहित रूप में दर्ज की जानी चाहिए।
अगर कोई महिला अपनी पीड़ा नहीं बता पाती, तब संरक्षा अधिकारी उसे बाद में डीआईआर भरने के लिए बुला सकते हैं। संरक्षा अधिकारी महिला के आगमन संबंधी ब्‍योरों का दैनिक डायरी रखेंगे।

  • डीआईआर रिकॉर्ड होने के बाद क्‍या किया जाता है?

संरक्षा अधिकारी डीआईआर को मजिस्‍ट्रेट को अग्रसारित करते हैं। डीआईआर की एक प्रति क्षेत्राधिकार में आने वाले थाने के प्रभारी को अग्रसारित की जाएगी।
यदि महिला चाहे तो सेवा प्रदाता डीआईआर को संरक्षा अधिकारी तथा मजिस्‍ट्रेट को भेज सकता है। ऐसे मामलों में न्‍यायालय में दाखिल आवेदन के साथ डीआईआर संलग्‍न होना चाहिए।

  • डीआईआर प्राप्ति पर मजिस्‍ट्रेट को क्‍या करना चाहिए ?

मजिस्‍ट्रेट रिकॉर्ड रखने के लिए डीआईआर सुरक्षित रखेंगे।पीड़ितमहिला द्वारा दाखिल किसी मामले में इसको भेजा जा सकता है। इसका इस्‍तेमाल वैसे मामलों में भी हो सकता है, जो मामला संरक्षा अधिकारी की सहायता से दायर हो और डीआईआर बाद में दिया जाए।

  • क्‍या पीड़ित महिला या उसके वकील द्वारा डीआईआर भरा जा सकता है?

नहीं, संरक्षा अधिकारी या पंजीकृत सेवा प्रदाता फार्म-1 में डीआईआर भरेंगे और इस पर दोनों में से एक का हस्‍ताक्षर होगा। चूंकि डीआईआर सार्वजनिक दस्‍तावेज है, इसलिए इसे कोई सरकारी अधिकारी ही भरेगा। अनुच्‍छेद 30 पीडब्‍ल्‍यूडीवीए के अंतर्गत अपने कार्यों के संपादन में सभी संरक्षा अधिकारियों और सेवा प्रदाताओं को लोक सेवक मानता है।

  • क्‍या पीड़ित महिला डीआईआर के बिना आवेदन भर सकती है?

हां,पीड़ितमहिला राहत के लिए डीआईआर भरे बिना आवेदन दे सकती है।

  • जहां महिला राहत के लिए आवेदन करती है, वहां मजिस्‍ट्रेट को केस दर्ज हो जाने के बाद डीआईआर की मांग करनी चाहिए?

न्‍यायालय में आवेदन देते समय डीआईआर की कोई आवश्‍यकता नहीं है, क्‍योंकि डीआईआर का चरण और उद्देश्‍य (हिंसा, घटना की रिकार्डिंग) अस्तित्‍व में नहीं रहता। एक बार न्‍यायालय में आवेदन दाखिल किये जाने के बाद मजिस्‍ट्रेट संरक्षा अधिकारी को घर का दौरा करने का आदेश दे सकता है या नियम 10 (1) के अंतर्गत परिस्थिति के अनुसार रिपोर्ट का आदेश दे सकता है।

  • क्‍या संरक्षा अधिकारी डीआईआर रिपोर्ट दर्ज करने के लिए घर जा सकता है?

नहीं, संरक्षा अधिकारी न्‍यायालय के आदेश के बिना घर का दौरा नहीं कर सकता।

धन राहत के आदेश/मुआवजा आदेश

  • घरेलू हिंसा से महिलाओं के बचाव अधिनियम, 2005 अंतर्गत गुजारे भत्ते का दावा करने का कौन पात्र है?

आपराधिक प्रक्रिया संहिंता (सीआरपीसी) की धारा 125 के अंतर्गत व्यक्तियों की सभी श्रेणियां इस कानून के अंतर्गत गुजारे भत्ते का दावा करने की पात्र हैं। इनमें पत्नी, अवयस्क बच्चे भले ही वे वैध हों या अवैध, शारीरिक या मानसिक असमान्यता या चोट से पीड़ित वयस्क बच्चे और माता शामिल हैं। अपने निजी कानून के अंतर्गत अन्य पात्र भी दावा कर सकते हैं।

  • धन राहत की राशि की गणना किस प्रकार की जाती है?

अधिनियम की धारा 20 के अंतर्गत- धन राहत की राशि पर्याप्त, समुचित और वाजिब तथा पीड़ित महिला के पहले के जीवन स्तर के अनुरूप स्तर के अनुसार होनी चाहिए। धन राहत की राशि की गणना करते हुए अदालतें गुजारे भत्ते के कानून के अंतर्गत निर्धारित मानकों का पालन करेंगी।

[एचएएमए की धारा 23(2)] न्यायालय को दिये जाने वाले गुजारे भत्ते की राशि तय करते हुए निम्नलिखित कारकों पर विचार करना होगा।

  • दम्पति का सामाजिक स्तर, इसमें पति की आय और दम्पति का जीवन स्तर शामिल है।
  • पत्नी की वाजिब जरूरतें; इसमें उसकी भोजन, वस्त्र, आवास और चिकित्सा व्यय का न्यूनतम शामिल है।
  • पत्नी की सम्पति और आय, यदि कोई हो, का मूल्य।
  • एचएएमए के अंतर्गत पति से गुजारा भत्ता प्राप्त करने के व्यक्तियों की संख्या; इसमें पत्नी, बच्चों उनके अभिभावक और विधवा बहू शामिल हैं।
  • क्या धन राहत एकमुश्त राशि हो सकती है या मासिक किश्तों में होनी चाहिए?
  • क्या धन राहत मासिक भुगतान है या यह एकमुश्त भुगतान के रूप में होगी, यह पीड़ित महिला की मांग और न्यायालय के विवेक पर निर्भर करेगा। घरेलू हिंसा से बचाव अधिनियम, 2005 के अंतर्गत धारा 20(3) के तहत मासिक भुगतान या एक मुश्त राशि स्वीकृत की जा सकती है।
  • अगर किसी महिला को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत या गुजारे भत्ते के किसी अन्य मुकदमे में कोई आदेश मिला है या कोई गुजारा भत्ते का आदेश मिला है तो क्या वह घरेलू हिंसा से बचाव अधिनियम, 2005 के तहत प्रवर्तन का आवेदन कर सकती है?
  • इस कानून के अंतर्गत धारा 125 के आदेश के प्रर्वतन के लिए अनुरोध करने का कोई लाभ नहीं है लेकिन धारा 125 के आदेश के उल्लंघन को आर्थिक दुरुपयोग के आधार पर घरेलू हिंसा माना जा सकता है।
  • धारा 12(2) के प्रावधान का क्या अर्थ है? कैसे अलग किए गए भाग की गणना की जाएगी?

धारा 12(2) के प्रावधान में कहा गया कि जब किसी पीड़ित व्यक्ति के पक्ष में कोई अदालत मुआवजे और क्षति की कोई राशि की डिक्री का आदेश देती है तो अधिनियम के अंतर्गत मजिस्ट्रेट द्वारा आदेश के अनुरुप भुगतान की गई या भुगतान की जाने वाली राशि ऐसी डिक्री के अंतर्गत भुगतान की जाने वाली राशि के बदले अलग कर दी जाएगी और शेष राशि, यदि पृथक किए जाने के बाद शेष बची, के लिए डिक्री लागू की जाएगी। आदेश दिए जाने के बाद राशि में से सीआरपीसी की धारा 125 या एचएएमए या किसी अन्य कानून के प्रावधानों के अनुरूप राशि कम कर दी जाएगी।

  • क्या कोई मुस्लिम महिला घरेलू हिंसा से महिलाओं के बचाव अधिनियम, 2005 के अंतर्गत धन राहत के आदेश का अनुरोध कर सकती है?

कोई मुस्लिम महिला जिसने तलाक नहीं लिया हो वह इस अधिनियम के अंतर्गत धन राहत की मांग कर सकती है। अगर वह तलाकशुदा है तो उसके अधिकार मुस्लिम महिला (तलाक के अधिकारों की रक्षा) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत तय किए जाएंगे और उसे सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत कानून का सहारा लेना होगा (देखें डेनियल लतीफ बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [(2001)7 एससीसी 740]
कोई मुस्लिम महिला अपने पुत्र के लिए धन राहत के आदेश के लिए आवेदन कर सकती है।

अदालत कैसे यह सुनिश्चित करेगा कि प्रतिवादी के पास राहत और मुआवजे के भुगतान करने के साधन नहीं होने पर किस तरह धन राहत और मुआवजे, वैकल्पिक आवास के आदेश लागू किया जाएं?

उच्चतम न्यायालय ने लीलावती बनाम स्टेट ऑफ उत्तर प्रदेश [1982 (1) एससीसी437] में राय दी है कि यदि कोई व्यक्ति स्वस्थ और स्वस्थ शरीर का है तो उसके पास अपनी पत्नी, बच्चों और अभिभावकों को मदद देने के अवश्य साधन होने चाहिए। न्यायालय सीआरपीसी की धारा 125(3) के अंतर्गत कार्रवाई शुरू कर सकता है और प्रतिवादी की गिरफ्तारी भी की जा सकती है अगर वह धारा 125 के अंतर्गत के आदेश पर भुगतान नहीं करता।

  • धन राहत का आदेश का पालन नहीं किए जाने के मामलों में क्या प्रक्रिया अपनायी जाएगी?

नियम 6(5) में प्रावधान है कि घरेलू हिंसा से महिलाओं के बचाव अधिनियम, 2005 के अंतर्गत सभी आदेशों को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत निर्धारित तरीके से लागू किया जाएगा।
नियम 10(ई) में प्रावधान है कि मजिस्ट्रेट द्वारा लिखित में निर्देश दिए जाने पर संरक्षण अधिकारी अधिनियम के अंतर्गत मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित तरीके से न्यायालय के आदेश को लागू करने में मदद देगा। ऐसा करने के लिए धारा 12, 18, 19, 20, 21, 23 के अंतर्गत आदेश शामिल हैं।
घरेलू हिंसा से महिलाओं के बचाव अधिनियम, 2005 के अंतर्गत आदेशों के पालन की कार्रवाई सीआरपीसी की धारा 125(3) के अंतर्गत शुरू की जा सकती है। मजिस्ट्रेट देय राशि प्राप्त करने के लिए जुर्माना वसूलने के लिए निर्धारित तरीके के अनुरूप वारंट जारी कर सकता है और किसी व्यक्ति को मासिक राशि के किसी भाग या पूरी राशि के लिए या धनराहत के आदेश में वर्णित किसी अन्य राशि के लिए जेल भी भेज सकता है।
समुचित मामलों में न्यायालय प्रतिवादी के नियोक्ता को पीड़ित व्यक्ति को इस अधिनियम की धारा 20(6) के अंतर्गत सीधे भुगतान का निर्देश दे सकता है, इसके लिए सम्पति कुर्क आदि भी की जा सकती है।
मजिस्ट्रेट जब संरक्षण आदेश के साथ धन राहत का आदेश देता है तो आदेश का पालन नहीं किए जाने का मतलब अधिनयम की धारा 31 के अंतर्गत कानून का उल्लंघन होगा। सदैव किसी अन्य राहत के साथ संरक्षण आदेश का अनुरोध करने की सलाह दी जाती है।
धारा 20(4) के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को धन राहत के आदेश की प्रति पुलिस को भेजनी होगी।

  • पुलिस को आदेश का पालन कराने का अधिकार नहीं दिया गया तो ऐसे में आदेश लागू कैसे किया जाएगा?

पुलिस को जब आदेश दिया जाता है तो पीड़ित व्यक्ति को आदेश के पालन में पुलिस को सहायता देने का निर्देश का आदेश मांगना चाहिए।यदि ऐसा निर्देश नहीं दिया जाता तो घरेलू हिंसा का रिकार्ड पुलिस के पास रखा जाना जरूरी है ताकि पुलिस के पास मामले का इतिहास रहे और वह आवश्यकता पड़ने पर सहायता दे सकें। जब कोई संरक्षण आदेश धन राहत के आदेश के संयोजन में दिया जाता है तो संरक्षण आदेश का उल्लंघन संज्ञेय अपराध होता है और धारा 31 के अंतर्गत पुलिस के पास शिकायत दर्ज कराई जा सकती है।

देखरेख आदेश

  • क्या कोई महिला इस आदेश के अंतर्गत बच्चों की देखरेख के लिए अपने पास रखने का अनुरोध कर सकती है?

जी हां अधिनियम की धारा 21 के अंतर्गत ऐसा किया जा सकता है। यह ध्यान रखना चाहिए कि देखरेख के आदेश के लिए आवेदन या संरक्षण या अन्य आदेशों के अलावा किया जाना चाहिए। इसका अर्थ है कि घरेलू हिंसा होने की स्थिति में महिला अगर संरक्षण आदेश आदि चाहती है तो वह अस्थाई देखरेख के आदेश के लिए आवेदन कर सकती है।
मजिस्ट्रेट केवल बच्चों की अस्थाई देखरेख के आदेश दे सकता है। इससे किसी अन्य पक्ष को किसी समुचित मंच पर बच्चों की स्थाई देखरेख या संयुक्त देखरेख का अनुरोध करने से रोका नहीं जा सकेगा।
अगर बच्चों की देखरेख के बारे में किसी न्यायालय में मामला लंबित है तो उसी न्यायालय में बच्चों के अस्थाई देखरेख का आवेदन दिया जा सकता है।

  • न्यायालय किस तरह बच्चों के श्रेष्ठ हित का फैसला करेगा?

अस्थाई देखरेख के आवेदन पर फैसला करते समय बच्चों के श्रेष्ठ हितों या बच्चों के कल्याण को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए। रोजी जैकब बनाम जैकब चक्रामाकल में उच्चतम न्यायालय ने संरक्षक नियुक्त करने के मामले पर विचार करते हुए राय दी कि
"अवयस्क का कल्याण क्या होगा इसका विचार करते हुए न्यायालय को नाबालिग की आयु, लिंग और धर्म, प्रस्तावित संरक्षक की क्षमता और चरित्र तथा नाबालिग के साथ उस व्यक्ति की निकटता को ध्यान में रखना चाहिए"
बच्चे के कल्याण का फैसला केवल भौतिक आराम के पहलू के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। मैकग्राथ (इनफेंट्स) (1983) एक अध्याय 143, अनुमति से उल्लेखित, धनवंति जोशी बनाम माधव उंडे (1998)1 एससीसी 112 में यह व्यवस्था दी गई है कि
"बच्चे का कल्याण का आकलन केवल धन या केवल भौतिक आराम के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। 'कल्याण' शब्द का अर्थ व्यापक भाव के अनुरूप किया जाना चाहिए।
नैतिक और धार्मिक कल्याण पर भौतिक कल्याण पर विचार किया जाना चाहिए। स्नेह के संबंधों को दरकिनार नहीं किया जा सकता।"
वाकर बनाम वाकर-6 1981 न्यू जी रिसेन्ट लॉ 257
"कल्याण एक व्यापक शब्द है। इसमें भौतिक कल्याण शामिल है जिसमें एक घर और आरामदायक जीनव स्तर तथा अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त देखभाल और निजी गौरव की भावना समाहित है। हालांकि भौतिक आधारों का भी स्थान है लेकिन वे गौंण हैं। देखभाल और मार्गदर्शन की समझबूझ, करूणामय संबंधों की गर्माहट भी बच्चे के अपने चरित्र, व्यक्तित्व और प्रतिभा के विकास के लिए आवश्यक हैं।"

प्रवर्तन

  • पीड़ित महिला के साथ बातचीत करने से प्रतिवादी को रोकने के आदेश को कैसे लागू किया जाएगा?

अगर बातचीत फोन से है तो इसका रिकार्ड रखा जाएगा और पीड़ित व्यक्ति को कॉलर आईडी लगाने की सलाह दी जा सकती है। अगर ई-मेल से संपर्क किया जाता है तो इसका रिकार्ड रखा जा सकता है तो इसे प्रमाण के तौर पर न्यायालय में पेश किया जा सकता है। अगर प्रतिवादी पीड़ित व्यक्ति को उसके कार्यालय या घर में मिलने जाता है तो पीड़ित व्यक्ति को तुरंत पुलिस बुलानी चाहिए ताकि आदेश का उल्लंघन कर प्रतिवादी को गिरफ्तार किया जा सके।
नियम 10(ई): मजिस्ट्रेट द्वारा अगर ऐसा करने का निर्देश दिया गया है तो वह अधिनियम के अंतर्गत मजिस्ट्रेट द्वारा निर्धारित तरीके से कार्रवाई के आदेश लागू करने में मदद देगा इसमें धारा 12, 18, 19, 20, 21, 23 के आदेश शामिल हैं।
संरक्षण अधिकारी को प्रतिवादी द्वारा किए गए संपर्क या बातचीत के बारे में सूचित किया जाए या उससे संपर्क किया जाए ताकि इस अधिनियम के अंतर्गत निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार तत्काल कार्रवाई की जा सके।
धारा 19(4) के अंतर्गत शांति बनाए रखने का बॉन्ड भी भरा जाना चाहिए (और आगे घरेलू हिंसा रोकने के लिए)। पीड़ित महिला  के बचाव के लिए पुलिस मदद ली जा सकती है। इस कानून के अंतर्गत किसी आदेश को लागू कराने के लिए भी वह पुलिस मदद ले सकती है।

  • निवास के आदेश के उल्लंघन को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है?

मजिस्ट्रेट धारा 19(3) के तहत प्रतिवादी को भविष्य में घरेलू हिंसा रोकने के लिए बॉन्ड भरने का आदेश दे सकता है जिसमें निवास के आदेश के प्रावधान हैं। धारा 19 के अंतर्गत किसी उल्लंघन को सीआरपीसी के अध्याय 8 में निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप निपटा जाएगा। अतः बॉन्ड की शर्तों के उल्लंघन पर गिरफ्तार किया जा सकता है।

स्त्रोत: पीआईबी एवंं लायर्स क्‍लेक्टिव वुमेन्‍स राइट्स इनिशिएटिव

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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