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सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय का कार्यक्रम

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय का कार्यक्रम

  1. भूमिका
  2. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय की प्रमुख पहलें
    1. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 का प्रख्यापन
    2. खादी और ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम, 1956
    3. प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम
    4. सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए प्रापण नीति
    5. सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) संबंधी कार्यबल
    6. सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) की चौथी अखिल भारतीय गणना
    7. सूक्ष्म और लघु उद्यम क्षेत्र के लिए बढ़ाया गया ऋण प्रवाह
    8. ऋण गारंटी स्कीम
    9. राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धा कार्यक्रम
    10. सूक्ष्म और लघु उद्यम क्लस्टर विकास कार्यक्रम (एमएसई-सीडीपी)
    11. सूक्ष्म और लघु उद्यम - क्लस्टर विकास कार्यक्रम के घटकों के अंतर्गत प्रगति
    12. प्रौद्योगिकी केंद्र पद्धति कार्यक्रम (टी सी एस पी)
    13. ऋण संबद्ध पूंजी सब्सिडी स्कीम
    14. उद्यमिता और कौशल विकास
    15. राजीव गांधी उद्यमी मित्र योजना
    16. कार्यनिष्पादन तथा क्रेडिट रेटिंग स्कीम
    17. राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एनएसआईसी)
    18. खादी सुधार विकास कार्यक्रम (केआरडीपी)
    19. बाजार विकास सहायता (एमडीए) स्कीम
    20. खादी कारीगरों के वर्कशेड स्कीम
    21. खादी उद्योग और कारीगरों की उत्पादकता एवं प्रतिस्पर्धात्म्कता बढ़ाने के लिए स्कीम
    22. परंपरागत उद्योगों के पुनर्सृजन के लिए निधि स्कीम (स्फूर्ति)
    23. महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान (एमगिरी)
    24. सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) के लिए राष्ट्रीय बोर्ड

भूमिका

भारत में सूक्ष्म,लघु व मध्यम उद्योग सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र में पिछले पांच दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बेहद जीवंत और गतिशील क्षेत्र के रूप में उभरा है। एमएसएमई बड़े उद्योगों की तुलना में अपेक्षाकृत कम पूंजी लागत में बड़े रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं बल्कि राष्ट्रीय आय और धन की अधिक समान वितरण सुनिश्चित करने, क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने, जिससे ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगीकरण में मदद करते हैं। एमएसएमई के सहायक इकाइयों के रूप में बड़े उद्योगों के पूरक हैं और यह क्षेत्र देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए काफी योगदान देता है।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र में पिछले पांच दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बेहद जीवंत और गतिशील क्षेत्र के रूप में उभरा है। एमएसएमई बड़े उद्योगों की तुलना में अपेक्षाकृत कम पूंजी लागत में बड़े रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं बल्कि राष्ट्रीय आय और धन की अधिक समान वितरण सुनिश्चित करने, क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने, जिससे ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के औद्योगीकरण में मदद करते हैं। एमएसएमई के सहायक इकाइयों के रूप में बड़े उद्योगों के पूरक हैं और यह क्षेत्र देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए काफी योगदान देता है।

एमएसएमई और लघु एवं मध्यम उद्यम (एसएमई) डिवीजन और कृषि एवं ग्रामीण उद्योग (एआरआई) डिवीजन नामक दो प्रभागों हो रही है। एसएमई डिवीजन प्रशासन, सतर्कता और राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एनएसआईसी) लिमिटेड, एक सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम और तीन स्वायत्त राष्ट्रीय स्तर उद्यमिता विकास / प्रशिक्षण प्रवर्तनों के प्रशासनिक देखरेख का काम है, अंतर-बातों के साथ, आवंटित किया जाता है। डिवीजन भी दूसरों के बीच में, प्रशिक्षण संस्थान के लिए प्रदर्शन और क्रेडिट रेटिंग और सहायता से संबंधित योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार है। प्रदर्शन की निगरानी और मूल्यांकन प्रणाली (पी एम ई एस) के तहत कैबिनेट सचिवालय द्वारा 2009 में शुरू के रूप में एसएमई प्रभाग परिणाम- फ्रेमवर्क डाक्यूमेंट (आरएफडी) की तैयारी और निगरानी के लिए जिम्मेदार है। कृषि विभाग ने दो सांविधिक निकायों अर्थात के प्रशासन के बाद लग रहा है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी), कॉयर बोर्ड और एक नव निर्मित संगठन ग्रामीण औद्योगीकरण के लिए महात्मा गांधी संस्थान (एमजीआईआरआई) कहा जाता है। यह भी प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।

एमएसएमई के लिए बुनियादी ढांचे और समर्थन सेवाएं प्रदान करने के लिए नीतियां और विभिन्न कार्यक्रमों योजनाओं का क्रियान्वयन इसकी संबद्ध कार्यालय, विकास आयुक्त (010 डीसी (एमएसएमई)), राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एनएसआईसी), खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी)के नाम से कार्यालय के माध्यम से किया जाता है; कॉयर बोर्ड, और तीन प्रशिक्षण संस्थानों अर्थात सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एनआई-एमएसएमई), हैदराबाद के लिए उद्यमिता एवं लघु व्यवसाय विकास (एनआईईएसबीयूडी), नोएडा, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ के लिए राष्ट्रीय संस्थान, उद्यमिता के भारतीय संस्थान (झूठ), गुवाहाटी और ग्रामीण औद्योगिकीकरण के लिए महात्मा गांधी संस्थान , वर्धा सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत सोसायटी।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम के लिए राष्ट्रीय बोर्ड सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 और उसके अधीन बनाए गए नियमों के तहत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। यह मौजूदा नीतियों और कार्यक्रमों की समीक्षा और एमएसएमई के विकास के लिए नीतियों और कार्यक्रमों को तैयार करने में सरकार को सिफारिशें करने, एमएसएमई के संवर्धन और विकास को प्रभावित करने वाले कारकों की परख होती है।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय की प्रमुख पहलें

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 का प्रख्यापन

हाल के वर्षों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय की पहल,सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 का प्रख्यापन  एक महत्वपूर्ण नीतिगत पहल में सरकार ने 'सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006' विनियमित किया है जिसका उद्देश्य  सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) के संवर्धन एवं विकास को सरल एवं सुविधाजनक बनाना और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाना है। 2 अक्तूबर, 2006 से लागू हुए इस अधिनियम ने इस क्षेत्र की दीर्घावधि मांग को पूरा कर दिया। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की परिभाषाओं को कानूनी मजबूती प्रदान करने के अलावा इस अधिनियम में इन उद्यमों के विलंबित भुगतान से संबंधित दंडात्मक प्रावधान भी शामिल  है|

खादी और ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम, 1956

खादी और ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम, 1956 को पणधारियों के सभी खंडों के साथ क्षेत्र स्तरीय औपचारिक एवं ढाँचागत परामर्शों के साथ-साथ आयोग के  प्रचालनों में व्यावसायिकताओं को सरल एवं सुविधाजनक बनाने के लिए कई नई विशेषताएं पुरःस्थापित करते हुए वर्ष, 2006 में व्यापक रूप से संशोधित  किया गया है| नया आयोग भी गठित किया गया है|

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम

नवम्बर, 2011 में एक स्कीम को पूर्व की पीएमआरवाई और आरईजीपी स्कीमों को विलय करके अगस्त, 2008 में 'प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी)' नामक एक राष्ट्र स्तरीय ऋण संबंद्ध सब्सिडी स्कीम शुरू की गयी| इस कार्यक्रम के अंतर्गत सेवा क्षेत्र में 10 लाख रुपए तक और विनिर्माण क्षेत्र में 25 लाख रुपए तक के लागत वाले सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना हेतु वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई जाती है। यह वित्तीय सहायता ग्रामीण क्षेत्रों में परियोजना लागत की 25 प्रतिशत सब्सिडी (कमजोर वर्गो सहित विशेष श्रेणी के लिए 35 प्रतिशत ) उपलब्ध कराई जाती है जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 15 प्रतिशत (कमजोर वर्गो सहित विशेष  श्रेणी के लिए 25 प्रतिशत ) उपलब्ध कराई जाती है।

वर्ष 2012-13 के दौरान, मार्जिन मनी सब्सिडी के रूप में 1078.61 करोड़ रुपए का उपयोग करते हुए 56997 मामलों में संवितरण किया गया। अनुमानित रोजगार सृजन 4.28 लाख व्यक्ति हैं। 1380 करोड़ रुपए की मार्जिन मनी सब्सिडी सहित 1418.28 करोड़ रुपए की राशि बजट अनुमान 2013-14 में उपलब्ध कराई गई है।

सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए प्रापण नीति

सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए एक सार्वजनिक प्रापण नीति मार्च, 2012 में अधिसूचित  की  गई थी।  इस नीति में विचार  किया गया है कि  प्रत्येक  केन्द्रीय मंत्रालय/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम तीन वर्ष की अवधि में सूक्ष्म और लघु उद्यमों से कुल वार्षिक क्रय के  न्यूनतम 25 प्रतिशत  के उद्देश्य  की प्राप्ति के साथ सूक्ष्म और लघु क्षेत्र से प्रापण के लिए वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करेगा। इसमें से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के उद्यमियों के स्वामित्व वाले सूक्ष्म और लघु उद्यमों से प्रापण के लिए 4 प्रतिशत  अभिनिर्धारित किया जाएगा। यह नीति सरकारी क्रय में सूक्ष्म और लघु उद्यमों द्वारा भागीदारी बढ़ाकर विपणन पहुंच और प्रतिस्पर्धा में सुधार करके तथा सूक्ष्म और लघु उद्यमों और बड़े उद्यमों के बीच संबंधो को प्रोत्साहित करके सूक्ष्म और लघु उद्यमों के संवर्धन में सहायता करेगी।

सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) संबंधी कार्यबल

माननीय प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में एक कार्यबल सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) क्षेत्र में मुद्‌दों के समाधान के लिए गठित किया गया। इस कार्यबल ने अपनी रिपोर्ट में पूर्वोत्तर और जम्मू एवं कद्गमीर में ऋण, विपणन, श्रम, पुनर्वास और निर्गम नीति, अवसंरचना, प्रौद्योगिकी, कौशल  विकास, कराधान एवं सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) विकास के क्षेत्रों हेतु सिफरिशों की हैं। बहुत सी सिफरिशों को कार्यान्वित कर दिया गया है। माननीय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) पर एक परिषद विस्तृत नीतिगत मार्ग-निर्देशों  निर्धारित करने और सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) क्षेत्र के विकास की समीक्षा करने के लिए गठित की गई है। कार्यबल की सिफरिशों के समय पर एवं शीघ्र कार्यान्वयन को सुनिश्चित  करने तथा सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) संबंधी प्रधानमंत्री परिषद के निर्णयों पर अनुवर्ती कार्रवाई हेतु माननीय प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में एक संचालन समूह भी गठित किया गया है।

सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) की चौथी अखिल भारतीय गणना

मई, 2008 में शुरू की गई सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) की चौथी अखिल भारतीय गणना (2006-07) 2011-12 के दौरान जारी की गई। परिणाम में प्रकट हुआ कि वर्ष 2006-07 में 36.2 करोड़ सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) हैं जो 80 करोड़ से अधिक व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराते हैं |यह सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) विकास अधिनियम, 2006 के अधिनियमन के बाद पहली गणना है और उसमें पहली बार मध्यम उद्यमों को भी शामिल किया गया है।

सूक्ष्म और लघु उद्यम क्षेत्र के लिए बढ़ाया गया ऋण प्रवाह

सूक्ष्म और लघु उद्यम क्षेत्र के लिए ऋण के वितरण की मजबूती के लिए सरकार ने 5 वर्ष की अवधि में इस क्षेत्र के ऋण प्रवाह को दुगुना करने के लिए अगस्त, 2005 में लघु और मध्यम उद्यमों (एसएमई) के लिए ऋण बढ़ाने हेतु एक नीतिगत पैकेज' की घोषणा की थी। इसके फलस्वरूप ऋण प्रवाह में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है, मार्च, 2007 के अंत में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) के बकाया ऋण में 1,02,550 करोड़ रुपए से मार्च,2010 के अंत में 2,78,398 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है। इसे मार्च, 2012 के अंत में 3,96,343 करोड़ रुपए और बढ़ा दिया गया है। सरकार द्वारा सतत मॉनीटरिंग और प्रयासों से नीतिगत पैकेज में निर्धारित 20 प्रतिशत  से अधिक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से (पीएसबी)सूक्ष्म और लघु उद्यम क्षेत्र के ऋण प्रवाह ने क्रमशः वर्ष 2007-08, वर्ष 2008-09 और 2009-10 के दौरान 47.4 प्रतिशत , 26.6 प्रतिशत  और 45.4 प्रतिशत  की वृद्धि दर्ज की है। वर्ष 2011-12 और 2012-13 के दौरान ऋण वृद्धि क्रमशः 5 प्रतिशत  और 25 प्रतिशत रही है|

ऋण गारंटी स्कीम

सरकार ने उन सूक्ष्म और लघु उद्यमों को राहत उपलब्ध कराने के लिए एक ऋण गारंटी निधि की स्थापना की है जो अपने उद्यमों के विकास के लिए ऋण प्राप्त करने के लिए संपार्श्विक  प्रतिभूति प्रतिज्ञा को पूरा करने में असमर्थ रहते हैं। उपलब्ध कराया गया गारंटी कवर 50 लाख रुपए से अधिक और 100 लाख रुपए तक के ऋण प्रदर्शन  के 50 प्रतिशत  पर एक रूप गारंटी के साथ 50 लाख रुपए तक (सूक्ष्म उद्यमों को उपलब्ध कराए गए 5 लाख रुपए तक के ऋण के लिए 85 प्रतिशत , महिलाओं के स्वामित्व/प्रचालित सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए और पूर्वोत्तर क्षेत्र के सभी ऋणों के लिए 80 प्रतिशत ) के ऋण प्रवाह के लिए 75 प्रतिशत  है। स्वीकृत ऋण सुविधा की 1.0 प्रतिशत  प्रतिवर्ष के एक सामासिक सभी वार्षिक गारंटी शुल्क (5 लाख रुपए तक ऋण सुविधा हेतु 0.75 प्रतिशत  और 5 लाख रुपए से अधिक तथा 100 लाख रुपए तक महिला, सूक्ष्म उद्यमों तथा सिक्किम सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र की इकाइयों के लिए 100 लाख रुपए तक 0.85 प्रतिशत ) अब प्रभारित किया जा रहा हैं |इसके फलस्वरूप स्कीम बैंकरों की आरंभिक मनाही से पार पाने के लिए सक्षम हो गई है और धीरे-धीरे स्वीकार्यता का लाभ मिल रहा है। इसके अतिरिक्त, मार्च, 2014 के अंत में जागरूकता बढ़ाने के प्रयासों से 14,19,807 प्रस्तावों की कवरेज कर ली गई है (70026.28 करोड़ रुपए की स्वीकृत ऋण राशि  हेतु गारंटी कवर)। सरकार स्कीम की कवरेज बढ़ाने के लिए सम्पूर्ण देश  में स्कीम की जागरूकता और बढ़ाने के लिए सघन प्रयास कर रही है।

राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धा कार्यक्रम

एक स्वस्थ दर पर लघु क्षेत्र की वृद्धि सुनिश्चित  करना राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के साथ-साथ विनिर्माण क्षेत्र के समग्र विकास के लिए महत्वपूर्ण है|इसके लिए लघु उद्योग क्षेत्र को प्रतिस्पर्धी बनाना है। 2005-06 के बजट में सरकार ने लघु और मध्यम उद्यमों(एसएमई) को प्रतिस्पर्धी बनाने में सहायता करने के लिए विशेष  रूप से राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा कार्यक्रम बनाने की घोषणा की थी। तदनुसार, राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धा परिषद (एनएमसीपी) ने पंचवर्षीय राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धा कार्यक्रम (एनएमसीपी) को अंतिम रूप दे दिया है।

राष्ट्रीय विनिर्माण  प्रतिस्पर्धा  कार्यक्रम  (एनएमसीपी)  भारतीय विनिर्माण क्षेत्र  की प्रतिस्पर्धा बढ़ाने की आवश्यकताओं  को उजागर करता है। इसका अपनी मानव पूँजी और प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग की तुलना में उत्पादकता के मापन द्वारा निर्धारण किया जाता है।राष्ट्रीय विनिर्माण  प्रतिस्पर्धा  कार्यक्रम  (एनएमसीपी)  भारतीय सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) में वैश्विक  प्रतिस्पर्धा के विकास के लिए सरकार का नोडल कार्यक्रम है। कार्यक्रम को वर्ष 2007-08 में आरंभ किया गया था। कार्यक्रम का उद्देश्य निम्नलिखित स्कीमों के माध्यम से सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) क्षेत्र की सम्पूर्ण मूल्य श्रृंखला  में वृद्धि करना हैः-

  1. सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) के लिए लीन विनिर्माण प्रतिस्पर्धा स्कीम;
  2. सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) क्षेत्र में सूचना और संचार औजार (आईसीटी) का संवर्धन;
  3. सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) के लिए प्रौद्योगिकी और गुणवत्ता उन्नयन सहायता;
  4. सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) के लिए डिजाइन क्लीनिक स्कीम;
  5. गुणवत्ता प्रबंधन मानक (क्यूएमएस) और गुणवत्ता प्रौद्योगिकी औजारों के माध्यम से प्रतिस्पर्धा बनाने के लिए विनिर्माण क्षेत्र को सक्षम करना;
  6. सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) के लिए विपणन सहायता और प्रौद्योगिकी उन्नयन स्कीम; तथा
  7. बौद्धिक संपदा अधिकारों पर जागरूकता निर्माण के       लिए राष्ट्रीय  अभियान;(आईपीआर)
  8. इनक्यूबेटरों के माध्यम से लघु और मध्यम उद्यम के उद्यमीय (क्यूएमएसक्यूटीटी) एवं प्रबंधकीय विकास हेतु सहायता;
  9. बाजार विकास सहायता (एमडीए) स्कीम के अधीन बारकोड;

सूक्ष्म और लघु उद्यम क्लस्टर विकास कार्यक्रम (एमएसई-सीडीपी)

सूक्ष्म  और लघु  उद्यम-क्लस्टर विकास  कार्यक्रम  (एमएसई-सीडीपी)  को  सॉफ्ट इंटरवेंशनों (यथा क्षमता निर्माण, विपणन विकास, निर्यात संवर्धन, कौशल  विकास, प्रौद्योगिकी उन्नयन, कार्यशाला , सेमिनार प्रशिक्षण , अध्ययन दौरा, प्रदर्शनी  दौरा आदि आयोजित करना), हार्ड इंटरवेंशनों (सामान्य सुविधा केन्द्रों की स्थापना) तथा अवसंरचना विकास (सूक्ष्म, लघु और उद्यमों के नए/विद्यमान औद्योगिक क्षेत्रों/क्लस्टरों में अवसंरचनात्मक सुविधाओं का सृजन/उन्नयन करना) के माध्यम से क्लस्टरों में सूक्ष्म और लघु उद्यमों के समग्र एवं एकीकृत विकास के लिए कार्यान्वित किया जा रहा है। इस स्कीम के तहत निम्नलिखित कार्यों के लिए सहायता दी जाती हैः-

  • भारत सरकार (जीऔरआई) के अधिकतम 2.50 लाख रुपए के अनुदान (सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालयों के लिए 1.00 लाख रुपए) से नैदानिक रिपोर्ट तैयार करना।
  • प्रति क्लस्टर 25.00 लाख रुपए की अधिकतम परियोजना लागत की स्वीकृत राशि  के भारत सरकार के 75 प्रतिशत  अनुदान से सॉफ्ट इंटरवेंशन पूर्वोत्तर तथा पर्वतीय राज्यों में स्थित 50 प्रतिशत  से अधिक
    • (क) सूक्ष्म/ग्राम,
    • (ख) महिला स्वामित्व वाली
    • (ग) अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति इकाइयों वाले क्लस्टरों के लिए भारत सरकार का अनुदान 90 प्रतिशत  होगा।
  • तकनीकी  रूप से व्यवहार्य तथा वित्तीय रूप से सक्षम परियोजना रिपोर्ट को तैयार करने के लिए भारत सरकार के अधिकतम 5 लाख रुपए के अनुदान के साथ विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर)।
  • वास्तविक संपत्तियों के रूप में हार्ड इंटरवेंशन जैसे महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं के लिए मशीनरी  एवं उपकरण के साथ सामान्य सुविधा केंद्र, अनुसंधान और विकास, परीक्षण, आदि भारत सरकार अधिकतम 15 करोड़ रुपए की परियोजना लागत का 70 प्रतिशत  तक अनुदान से हार्ड इंटरवेंशन 50 प्रतिशत  से अधिक पूर्वोत्तर एवं पहाड़ी राज्यों, क्लस्टरों में
    • (क) सूक्ष्म/ग्राम,
    • (ख) महिला स्वामित्व
    • (ग) अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति इकाइयों हेतु सरकारी अनुदान 90 प्रतिशत  होगा।
  • भूमि की लागत छोड़कर, 10.00 करोड़ रुपये की परियोजना लागत के 60 प्रतिशत  तक की भारत सरकार के अनुदान से अवसंरचना विकास। पूर्वोत्तर तथा पर्वतीय राज्यों, औद्योगिक क्षेत्रों/सम्पदाओं में 50 प्रतिशत  से अधिक (क) सूक्ष्म (ख) महिला स्वामित्ववाली (ग) अ.जा./अ.ज.जा. इकाइयों के साथ परियोजनाओं के लिए भारत सरकार का अनुदान 80 प्रतिशत  होगा।
  • भारत सरकार की सहायता परियोजना लागत की 40 प्रतिशत की दर से महिला स्वामित्ववाले सूक्ष्म और लघु उद्यमों के उत्पादों के प्रदर्शन  एवं बिक्री के लिए केन्द्रीय स्थानों पर प्रदर्शनी  केंद्र स्थापित करने के लिए महिला उद्यमी संघों को भी मिलेगी।

सूक्ष्म और लघु उद्यम - क्लस्टर विकास कार्यक्रम के घटकों के अंतर्गत प्रगति

देश  के 28 राज्यों और 1 संघ राज्य क्षेत्र में फैले विभिन्न क्लस्टरों में नैदानिक अध्ययन  सॉफ्ट मध्यस्थताएं तथा हार्ड मध्यस्थताएं (सी एफ सी) के लिए कार्यक्रम के तहत अब तक कुल 921 मध्यस्थताएं शुरू की गई हैं। इसके अतिरिक्त,  स्कीम के तहत अवसंरचना विकास के लिए 170 परियोजनाएं शुरू की गई हैं।

प्रौद्योगिकी केंद्र पद्धति कार्यक्रम (टी सी एस पी)

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय, भारत सरकार ने देश  भर में फैले पूर्व में औजार कक्षों (10) के रूप में जाने गए 18 प्रौद्योगिकी केंद्रों तथा प्रौद्योगिकी विकास केंद्रों (8) को स्थापित  किया है। प्रौद्योगिकी  केंद्रों  का प्राथमिक केंद्र बिन्दु विद्यालय से स्नातक अभियंताओं के भिन्न - भिन्न स्तरों पर युवाओं के तकनीकी कौशल विकास के लिए अवसर प्रदान कर उन्नत प्रौद्योगिकी तथा तकनीकी सलाहकार सहयोग और कुशल जनशक्ति की पहुँच के माध्यम से देश  में सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) विशेष  रूप से उद्योग को सहायता प्रदान करना है। प्रौद्योगिकी केंद्रों के हाल के मूल्यांकन अध्ययन ने उन्हें और जगहों पर दोहराने के लिए सक्त आवश्यकता  अनुभव की है। विनिर्माण क्षेत्र पर जोर देने के लिए इन केंद्रों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए सरकार विश्व बैंक के वित्त पोषण से 2200 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) प्रौद्योगिकी केंद्रों के नेटवर्क का उन्नयन करने तथा विस्तार करने के लिए विचार कर रही है।

इस उद्देश्य  को प्राप्त करने के लिए, सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) मंत्रालय, भारत सरकार प्रौद्योगिकी केंद्र पद्धति कार्यक्रम (टी सी एस पी) के तहत 15 प्रौद्योगिकी केंद्रों (टी सी)  को स्थापित करने तथा विद्यमान प्रौद्योगिकी केंद्रों का उन्नयन करने और आधुनिकीकरण करने की प्रक्रिया में है।

उक्त कार्यक्रम से वित्तीय रूप से संपोषणीय प्रौद्योगिकी केंद्रों की पद्धतियों के माध्यम से प्रौद्योगिकी तथा व्यापार सलाहकार सेवाओं को उन्नत पहुँच प्रदान कर भारत में मूल विनिर्माण उद्योगों में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ)) की प्रतिस्पर्धा उन्नत करना प्रत्याशित  है। प्रस्तावित कार्यक्रम राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर कार्यनिष्पादन अच्छी तरह प्रौद्योगिकी से करने के लिए केंद्रों तथा उद्योग क्षेत्र की तकनीकी क्षमता को मजबूत करेगा।

ऋण संबद्ध पूंजी सब्सिडी स्कीम

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय सूक्ष्म और लघु उद्यमों (सूक्ष्म और लघु उद्यमों) के प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिए एक एक स्कीम, अर्थात्‌ ऋण संबद्ध सब्सिडी स्कीम (सी एल सी एस एस) चला रहा है। स्कीम का उद्देश्य  संयंत्र और मशीनरी  खरीदने के लिए 15 प्रतिशत  पूंजी सब्सिडी (अधिकतम 15.00 लाख रुपये तक सीमित) सूक्ष्म और लघु उद्यमों के प्रौद्योगिकी उन्नयन हेतु सहायता देना है। स्कीम के तहत सब्सिडी की गणना के लिए पात्र ऋण की अधिकतम सीमा 100.00 लाख रुपये है। वर्तमान में, 51 सुस्थापित तथा उन्नत प्रौद्योगिकियों/उप क्षेत्रों को स्कीम के तहत अनुमोदित किया गया है। स्कीम के प्रभावी एवं पारदर्शी  कार्यान्वयन के लिए मंत्रालय ने नोडल बैंकों द्वारा सब्सिडी दावों को ऑनलाइन दर्ज करने के लिए दिनांक 01.10.2013  से ऑनलाइन एप्लीकेशन और ट्रैकिंग सिस्टम प्रारंभ किया है। स्कीम के प्रारंभ से ही 28,287 इकाइयों ने 31.03.2014 तक 1,619,33 करोड़ रुपये की सब्सिडी का लाभ उठाया है।

उद्यमिता और कौशल विकास

आज के तेजी से बढ़ते आर्थिक और औद्योगिक परिदृश्य  में, प्रौद्योगिकी पूर्व से भी कहीं ज्यादा अनिवार्य हो गई है। इसके विकास एवं समावेशन राष्ट्र के समग्र आर्थिक विकास के मूल अवयव हैं। यह भारत जैसे विकासशील देशों के संदर्भ में भी अधिक संगत है जहाँ प्रौद्योगिकीय विकास और रोजगार सृजन एक साथ करने होते हैं। इस प्रकार सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) मंत्रालय, जिसके पास सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) विकास के लिए समस्त अधिदेश  है, वह उद्योग द्वारा कुशल जनशक्ति की आवश्यकता  पूरा करने के लिए युवाओं में उद्यमिता तथा कौशल  विकास का संवर्धन करने के लिए बहुत से कार्यक्रम चलाता रहा है। ये कार्यक्रम विकास आयुक्त(सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ)) कार्यालय, खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी), राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एनएसआईसी), कयर बोर्ड तथा मंत्रालय के अधीनस्थ बहुत से दूसरे संगठनों के कार्यालय के अधीन राष्ट्रव्यापी स्थापना नेटवर्क के माध्यम से संचालित किए जाते हैं| मंत्रालय के विभिन्न संगठनों द्वारा आयोजित प्रशिक्षण  कार्यक्रम वर्तमान में आधुनिक उद्योगों के बहुत कुशल व्यक्तियों की आवश्यकता को पूरा करने हेतु विकास आयुक्त,(सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ)) कार्यालय के प्रौद्योगिकी केंद्रों द्वारा उच्च टेक प्रशिक्षण  कार्यक्रमों यथा परम्परागत विनिर्माण, सीएडी/सीएएम, और टूल डिजाइन, सीएनसी, मेकाट्रॉनिक्स आदि को बहुत हद तक समाज के निम्न स्तर के लिए परम्परागत/ग्रामीण उद्योग आधारित कार्यक्रमों को कवर करते हुए उनकी आवश्यकतानुसार समाज के सभी स्तरों को पूरा करते हैं। अन्य कार्यक्रमों के अतिरिक्त, लाखों रोजगार सृजन कर प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी) के अंतर्गत देश में बेरोजगार युवाओं के उद्यमिता पर प्रशिक्षण  तथा ऋण पर सब्सिडी देकर स्व-उद्यमिता का संवर्धन कर रहा है। प्रौद्योगिकी केंद्रों (औजार कक्ष) के माध्यम से सुप्रशिक्षित, कुशल  तथा अभिनव जनशक्ति उत्पन्न कर उद्योग को एकीकृत हल करने के लिए अपने प्रयासों में विश्व  बैंक की सहायता से 15 नए औजार कक्षों की स्थापना के संबंध में वित्त मंत्री के फरवरी, 2013 के अपने बजट अभिभाषण की घोषणा मंत्रालय द्वारा प्राप्त मील के पत्थरों में से एक है।प्रशिक्षण   गुणवत्ता  को सुधारने  के लिए ठीक समय पर ऑनलाइल  मॉनीटरिंग, पाठ्‌यक्रम का मानकीकरण, कार्यशाला ओं का उन्नयन तथा कार्यशाला  आधारित पाठ्‌यक्रमों पर केंद्र बिन्दु जैसी कार्य नीतियां मंत्रालय द्वारा अपनाई गई हैं। इस मंत्रालय के विभिन्न संगठनों द्वारा आयोजित उद्यमिता/कौशल विकास कार्यक्रमों के माध्यम से लगभग 16.87 लाख व्यक्तियों को ग्यारहवीं योजना अवधि के दौरान प्रशिक्षित  किया गया। मंत्रालय ने बाहरवीं योजना अवधि के दौरान मंत्रालय के अधीनस्थ विभिन्न संगठनों द्वारा कार्यान्वित की जा रही विभिन्न स्कीमों के माध्यम से 42.65 लाख व्यक्तियों को प्रशिक्षित  करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

राजीव गांधी उद्यमी मित्र योजना

स्कीम का उद्देश्य  उन संभाव्य प्रथम पीढ़ी के उद्यमियों को पथ प्रदर्शन  के माध्यम से नए सूक्ष्म और लघु उद्यमों को संवर्धित करना तथा स्थापित करना है जिन्होंनें  पहले ही निम्नतम दो सप्ताह की अवधि का उद्यमिता विकास कार्यक्रम(इडीपी)/कौशल विकास कार्यक्रम (एसडीपी)/उद्यमिता-सह-कौशल विकास कार्यक्रम (ईएसडीपी) पूरा कर लिया है अथवा औद्योगिक प्रशिक्षण  संस्थानों से व्यावसायिक प्रशिक्षण  प्राप्त (वीटी) कर लिया है। पथ-प्रदर्शन  के मुख्य  उद्देश्यों  में विभिन्न प्रक्रियात्मक तथा कानूनी बाधाओं को डील करने तथा उन विभिन्न औपचारिकताओं को पूरा करने में संभाव्य उद्यमियों को मार्गदर्शन  करना तथा सुविधा प्रदान करना है जो उद्यमों को सफलतापूर्वक स्थापित करने तथा चलाने के लिए और आवश्यक  अनुपालनों की अपेक्षा के लिए विभिन्न नियामक एजेंसियों के उत्पीड़न से बचाना है। यह विभिन्न ईडीपी/एसडीपी/ईएसडी/ईएसडीपी/वीटी के अंतर्गत प्रशिक्षित संभाव्य उद्यमियों के समानुपात को अपने उद्यम लगाने में न केवल बढ़ाएगा बल्कि इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि यह नव स्थापित उद्यमों की उत्तरजीविता/सफलता दर को भी बढ़ाएगा।

इस स्कीम के घटक के रूप में मंत्रालय ने 1800-180-6763  निःशुल्क संख्या  वाला एमएसएमई कॉल सेंटर (उद्यमी हेल्पलाइन के रूप में ज्ञात) शुरू किया है। उद्यमी हेल्पलाइन, अन्य बातों के साथ-साथ उद्यम स्थापित करने, सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) संवर्धन के लिए की जा रही विभिन्न स्कीमों, बैंकों से ऋण लेने तथा विस्तृत सूचना प्राप्त करने के लिए कार्यान्वित और संपर्कों हेतु बुनियादी सूचना उपलब्ध कराता है।

कार्यनिष्पादन तथा क्रेडिट रेटिंग स्कीम

क्रेडिट रेटिंग की आवश्यकता  पर सूक्ष्म और लघु उद्यम क्षेत्र को सुग्राही बनाने तथा अपनी क्रेडिट अपेक्षाओं के लिए उच्चतर रेटिंग अर्जित करने के लिए उन्हें योग्य बनाते हुए अच्छा वित्तीय टै्रक रिकॉर्ड को कायम रखने के लिए सरकार ने अप्रैल ,2005 में 'परफॉरमैंस तथा क्रेडिट रेटिंग स्कीम' प्रारंभ की थी। स्कीम का कार्यान्वयन राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम(एनएसआईसी) के माध्यम से होता है। विख्यात  रेटिंग एजेंसियों को राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम द्वारा सूचीबद्ध किया गया है जिनमें से सूक्ष्म और लघु उद्यम रेटिंग प्राप्त करने के लिए स्वयं द्वारा नियोजित किए जाने हेतु एक का चयन कर सकते हैं। सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) मंत्रालय 40,000/-रुपये की अधिकतम सीमा के अधीन रेटिंग एजेंसी द्वारा प्रभारित शुल्क का 75 प्रतिशत  का शेयर करके रेटिंग लागत की सब्सिडी देता है।

राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम (एनएसआईसी)

राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड (एनएसआईसी) सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम(सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ)) मंत्रालय के अधीन आईएसऔर 9001:2008 प्रमाणित भारत सरकार का एक उद्यम है। राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड देश  में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों से संबंधित लघु उद्योग तथा उद्योग के विकास को संवर्धित करने, सहायता देने और पालन-पोषण करने संबंधी अपने मिशन  की पूर्ति के लिए कार्य करता आ रहा है। पाँच दशक की संक्रांति, वृद्धि तथा विकास की अवधि के दौरान राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लिमिटेड ने देश तथा विदेश  में आधुनिकीकरण प्रौद्योगिकी के उन्नयन, गुणवत्ता जागरुकता को संवर्धित कर बड़े मध्यम उद्यमों के साथ मजबूत लिंकेज तथा लघु उद्यमों से निर्यात परियोजना एवं उत्पाद बढ़ाकर अपनी ताकत साबित कर दी है।राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम देश  में कार्यालय तथा तकनीकी केंद्र के देश व्यापी नेटवर्क के माध्यम से प्रचालन करता है। अफ्रीकी देशोंमें संचालन का प्रबंध करने के लिए राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम जोहांसबर्ग, दक्षिण अफ्रीका में स्थित अपने कार्यालय से प्रचालन करता है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम प्रशिक्षण  सह इन्क्युबेसन केंद्र तथा बड़े व्यवसायी राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम लघु उद्यमों की प्रतिस्पर्धी तथा लाभप्रद स्थिति के लिए विशेष  रूप से अनुकूल बनाई गई स्कीमों से सहायता कर अपने मिशन  को आगे बढ़ाता है। उक्त स्कीमों में विपणन सहायता, केडिट सहायता, प्रौद्योगिकी सहायता तथा अन्य सहायता सेवा प्रदान करना शामिल है।

खादी सुधार विकास कार्यक्रम (केआरडीपी)

खादी की संपोषणीयता बढ़ाने, कारीगर कल्याण बढ़ाने, सरकारी अनुदानों पर न्यूनतर निर्भरता करने के साथ ही कत्तिनों एवं बुनकरों के लिए आय और रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने से परम्परागत खादी क्षेत्र को पुनः सक्रिय करने तथा सुधार करने के उद्देश्य  से एक खादी सुधार और विकास कार्यक्रम को सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) मंत्रालय द्वारा खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी), एशियन विकास बैंक (एडीबी), आर्थिक कार्य विभाग (डीईए) तथा मैसर्स प्राइस वाटरहाउस कूपर्स (पीडब्ल्यूसी) के परामर्द्गा से तैयार किया गया था। इस कार्यक्रम में चिह्नित सुधारों को करने के लिए इच्छुक 300 चयनित खादी संस्थानों में कार्यान्वित किए जाने का प्रस्ताव है। आर्थिक कार्य विभाग ने एशियन विकास बैंक से 717 करोड़ (लगभग) रुपये के बराबर 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर खादी और ग्रामोद्योग आयोग को अनुदान के रूप में 36 महीने की अवधि में चार बार में दिए जाने के लिए प्रबंध किया है। कार्यविधिक औपचारिकताएं पूरी करने तथा आवश्यक  करार पर हस्ताक्षर करने और एशियन विकास बैंक द्वारा घोषणा करने के पद्गचात्‌ 96 करोड़ रुपये प्रथम बार में खादी और ग्रामोद्योग आयोग को फरवरी, 2010 में जारी किए गए। 'खादी मार्क', खादी की प्रामाणिकता स्थापित करने के चिह्‌न का शुभारंभ खादी सुधार विकास कार्यक्रम के तहत सितम्बर, 2013 में किया गया।

बाजार विकास सहायता (एमडीए) स्कीम

यह स्कीम 01.04.2010 से चलाई गई तथा इसमें खादी एवं पॉलीवस्त्र के उत्पादन मूल्य पर 20 प्रतिशत  की दर से वित्तीय सहायता पर विचार किया जाता है जिसमें कारीगरों, उत्पादन करने वाली संस्थाओं और बेचने वाली संस्थाओं की 25:30:45 के अनुपात में हिस्सेदारी होगी। विगत कुछ दशकों  के दौरान गठित कई समितियों की सिफरिशों के आधार पर एवं विगत में कई पायलट परियोजनाएं चलाने के बाद स्कीम शुरू की गई है। इसकी आवश्यकता  इसलिए उत्पन्न हुई क्योंकि खादी उत्पादन बाजार मांग और कार्य निष्पादन के आधार पर नहीं था तथा रिबेट पद्धति कत्तिनों एवं बुनकरों के लाभ के लिए नहीं थी। खादी और ग्रामोद्योग आयोग रिबेट के विनियंत्रण के लिए अपने अधिकांश  संसाधनों का उपयोग नहीं कर पाया और इस क्षेत्र के विकास के बारे में अपनी शेष जिम्मेदारियों का निर्वहन नहीं कर पाया। विपणन विकास सहायता में असंतुलन को ठीक करना एवं बिक्री केंद्रों के नवीनीकरण, विक्रेता प्रशिक्षण, बिक्री का कम्प्यूटरीकरण, डिजाइन सुधार, प्रचार, ग्राहकों को छूट, उन्नत उपकरण उत्पादन, कारीगरों को प्रशिक्षण  एवं क्षमता निर्माण जैसे विपणन अवसंरचना सुधार के लिए नवीन उपाय शुरू करने हेतु खादी संस्थाओं को नम्यता एवं स्वतंत्रता उपलब्ध कराना है ताकि खादी न केवल छूट के लिए ग्राहकों को आकर्षित कर सके बल्कि अपनी डिजाइन, गुणवत्ता और अपील की औरर भी आकर्षित करेगी। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि पहली बार विपणन विकास सहायता के 25 प्रतिशत  के निद्गिचत शेयर कत्तिनों एवं बुनकरों के लिए निर्धारित किए गए हैं जो सम्पूर्ण खादी श्रृंखला के कार्यक्रमों में अहम भूमिका प्रदान करेंगे। 126.94 करोड़ की राशि  विपणन विकास सहायता के लिए वर्ष 2013-14 के दारैान खादी और ग्रामोद्योग आयोग को जारी की गई है।

खादी कारीगरों के वर्कशेड स्कीम

इस स्कीम के अंतर्गत बेहतर कार्य वातावरण के लिए खादी कारीगरों हेतु वर्कशेड निर्माण के लिए सहायता उपलब्ध कराई जाती है। वर्कशेड की स्थापना के लिए 8.23 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता वर्ष 2013-14 में 4444 कारीगरों को उपलब्ध कराई गई है|

खादी उद्योग और कारीगरों की उत्पादकता एवं प्रतिस्पर्धात्म्कता बढ़ाने के लिए स्कीम

इस स्कीम का उद्देश्य  200 'ए'+एवं 'ए' श्रेणी की खादी संस्थाओं को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना है जिनमें से 50 संस्थाएं ऐसी होंगी जिनका प्रबंधन विशेष रूप से अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से संबंधित लाभार्थियों द्वारा किया जाता है, की पुरानी एवं अप्रयुक्त मशीनरी  एवं उपकरणों के प्रतिस्थापन द्वारा अधिक बाजारू एवं लाभकारी उत्पादन के साथ प्रतिस्पर्धी बनाना है।

2007-08 से कार्यान्वित की जा रही स्कीम के अंतर्गत सहायता पुराने रटों/करघों के प्रतिस्थापन और वर्कशेड निर्माण के लिए कत्तिनों एवं अतिलघु घरेलू क्षेत्र को उपलब्ध कराई जाती है जिससे कि कामगारों की उत्पादन एवं आय में वृद्धि हो सके। मंत्रालय द्वारा जारी किए गए अनुदानों का वर्षवार ब्योरा और ग्यारहवीं योजना के दौरान सहायता प्राप्त इकाइयां नीचे दी गई हैं:-

वित्तीय वर्ष

सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ)मंत्रालय

से प्राप्त अनुदान

बैंकों   को जारी अनुदान सहायता

प्राप्त इकाइयों की संख्या

 

करोड़ रु. में

करोड़ रु. में

करोड़ रु. में

2007-08

9.00

8.80

669

2008-09

21.30

19.90

1389

2009-10

9.73

9.73

706

2010-11

14.03

13.91

1200

2011-12

10.00

2.04

170

2012-13

7.48

7.60

976

2013-14

6.59

6.10

207

कुल

78.13

68.08

5317

परंपरागत उद्योगों के पुनर्सृजन के लिए निधि स्कीम (स्फूर्ति)

यह स्कीम उद्योगों को अत्यधिक उत्पादक एवं प्रतिस्पर्धी बनाने तथा ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने के विचार से खादी, ग्रामोद्योग और कयर क्षेत्रों में पहचाने गए क्लस्टरों संबंधी परंपरागत उद्योगों के पुनर्सृजन के लिए 2005 में शुरू की गई थी। इस स्कीम का उद्देश्य  खादी, ग्राम एवं कयर क्षेत्रों में परंपरागत उद्योगों के एकीकृत क्लस्टर आधारित विकास के पुनर्सृजन, महत्वपूर्ण, सतत और प्रतिकृति मॉडल स्थापित करना है।

अभी तक 96 कलस्टर (खादी-29, ग्रामोद्योग-47 और कयर-20) स्फूर्ति के अधीन विकसित किया गया।

महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगीकरण संस्थान (एमगिरी)

एक राष्ट्र स्तरीय संस्थान नामतः एमगिरी को खादी और ग्रामोद्योग क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास कार्यकलापों के सुदृढ़ीकरण के लिए आईआईटी दिल्ली के सहयोग से जमना लाल बजाज केन्द्रीय अनुसंधान संस्थान का पुनरूद्धार करके सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम,1860 के अधीन वर्धा,महाराष्ट्र में सोसाइटी के रूप में स्थापित किया गया है|इस संस्थान के मुख्य  उद्देश्य  निम्नलिखित हैं:-

  • सतत रूप से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए ग्रामीण औद्योगीकरण बढ़ाना ताकि केवीआई क्षेत्र मुख्य  धारा के साथ सहस्थापित हो।
  • ग्राम स्वराज के लिए व्यवसायियों एवं विशेषज्ञों को आकर्षित करना।
  • परंपरागत कारीगरों को सशक्त करना।
  • पायलट अध्ययन/क्षेत्रीय जांचों के माध्यम से नया परिवर्तन लाना।
  • स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर वैकल्पिक प्रौद्योगिकी हेतु अनुसंधान और विकास।

सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) के लिए राष्ट्रीय बोर्ड

सरकार ने सूक्ष्म, लघु मध्यम उद्यमों के लिए पहली बार एक सांविधिक राष्ट्रीय सूक्ष्म, और मध्यम उद्यम बोर्ड की  स्थापना की जिससे कि इस क्षेत्र के सशक्त  विकास को गति देने के उद्देश्य  से नीति बनाने वाले, बैंकरों, व्यापार संघ एवं अन्यों के साथ सूक्ष्म लघु व मध्यम उद्यम(सूलमउ) के भिन्न-भिन्न उपक्षेत्रों के प्रतिनिधियों को साथ लाया जा सके। बोर्ड को हाल ही में 27 मई,2013 को पुनगर्ठित किया गया है। राष्ट्रीय बोर्ड के विचार और निर्देश अत्यधिक प्रतिस्पर्धी और स्वावलंबी बनाने  के लिए इस क्षेत्र को मार्गदर्शन एवं उद्यम विकास को दिशा  देते हैं।

 प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना

स्रोत :भारत सरकार का सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय

अंतिम बार संशोधित : 3/4/2020



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