लघु/कुटीर उद्योग के संदर्भ में प्रमुख क्षेत्र हैं रस्सी, चटाई, कागज, रेशमी एवं सूती वस्त्र, लाख उद्योग, कत्था उद्योग, पाल उद्योग, बीड़ी एवं बीड़ी में पड़ने वाला मसाला, हस्तशिल्प, खाने वाला मसाला, मोमबत्ती, अगरबत्ती नील, साबुन, शहद, चमड़ा उद्योग, गोंद, उद्योग इत्यादि। बीज व्यवसाय, सब्जी व्यवसाय, बांस की खेती, रेशम की कीड़े की खेती, मशरूम की खेती इत्यादि। सागवान, शीशम, साल, सखुवा, जैसे कीमती एवं उपयोगी वृक्षों को अपने जमीन में लगाकर उसको उचित समय में बेचने का व्यवसाय।
झारखण्ड में लघु वनोपजों की पर्याप्तता एवं उसके उपयोगों को ध्यान रखते हुए स्वरोजगार के लिए अत्यंत ही लाभदायक क्षेत्र है यह सम्प्रति इस क्षेत्र में मुख्य रूप से करंज, सवाई घास, गोंद राल, महुवा फूल, इमली, रामतिल बीज, चिर्रोंजी, बाबबूटी, लाख, महुली, महुली चाप, अनोला, जोंगी, हुना, हरा, साल बीज, कुशुम, तेंदू पत्ता, पलास इत्यादि है। इन उपलब्ध वनोपजों से निर्मित उत्पादों का रोजगार करना अधिक लाभदायक होता है।
मत्स्य व्यवसाय, मुर्गी पालन, बकरी-बकरा, बत्तख पालन, दूध डेयरी व्यवसाय, सरकार द्वारा जंगलों के उत्पादों एवं खनिज संस्थान के संदर्भ में ठेकेदारी इत्यादि। रिक्शा, टेम्पो, ट्रेक्टर इत्यादि व्यावसायिक दृष्टि से चलाना। उपरोक्त क्षेत्रों के अतिरिक्त और भी बहुत से क्षेत्र हैं जिसमें स्वरोजगार किया जा सकता है।
स्वरोजगार करने के लिए जो सबसे बड़ी चीज है वह है पूँजी एवं रोजगार करने की क्षमता एवं ज्ञान। दोनों की उपलब्धता झारखण्ड में अन्य राज्यों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक है। सरकार के पास इतने स्रोत संस्थान एवं प्रावधान है कि वह स्वरोजगार करने के लिए बेरोजगारों एवं उपयुक्त पात्रों को पूँजी उपलब्ध करने में पूर्णत: समर्थ है व वह ऐसा कर भी रही है। सरकारी नीतियाँ भी स्वरोजगारन्मुखी योजनाओं के लिए अत्यंत सकारात्मक है। विगत पचास वर्ष में यह सिद्ध हो चुका है कि बेरोजगारी की बाढ़ को रोकने के लिए स्वरोजगार करने हेतु लोगों को प्रोत्साहित एवं सहायता प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है। इस संदर्भ में ट्राईसेम, त्वाकारा, लघु एवं कुटीर उद्योग से संबंधित अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। स्वरोजगार अपनाने के लिए सरकारी तौर पर मुख्यत: दो स्तर पर कार्यक्रम किए जा रहे हैं। प्रथम: रोजगार करने के लिए उपयुक्त पात्र बनाने हेतु लोगों को प्रशिक्षित करना। द्वितीय उचित पात्रों को रोजगार करने के लिए पूँजी को उपलब्ध करवाने हेतु व्यवस्था करना। इस प्रकार स्वरोजगार करने के लिए उचित सहायता सरकारी तौर पर भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। खासकर झारखण्ड सरकार की घोषणाएं एवं लगभग एक वर्ष के क्रियाकलापों से ही इस बात की पुष्टि होती है। दूसरी ओर स्वयं–सेवी संस्थाएँ एवं गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका अत्यंत प्रभावी है। यथा रामकृष्ण मिशन जो की मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन, दुग्ध उत्पादक इत्यादि के क्षेत्र में व्यक्ति को स्वरोजगार हेतु मार्गदर्शन एवं सहयोग देने के लिए कार्यरत है। झारखण्ड स्थित कृषि ग्राम विकास केंद्र, रूक्का, प्रदान, विकास मैत्री, विकास भारती, ग्रामीण विकास ट्रस्ट, जेवियर समाज सेवा संस्थान का उद्यमिता विकास केन्द्र आदि सैकड़ों स्वयं- सेवी संस्थान झारखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में लोगों को स्वरोजगारन्मुखी कार्य करने के लिए विभिन्न प्रकार से सहायता प्रदान कर रही है। वर्तमान परिदृश्य में जरूरत इस बात की है, कि सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा चलायी जा रही विकास योजनाओं का समुचित लाभ उठाकर स्वरोजगार को अपनाएं।
स्रोत : जेवियर समाज सेवा संस्थान. राँची
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