ग्रामीण विकास विभाग स्व-रोजगार एवं मजदूरी रोजगार के सृजन, ग्रामीण निर्धनों के लिए आवास एवं सिंचाई परिसम्पत्ति के प्रावधान, निराश्रितों को सामाजिक सहायता एवं ग्रामीण सड़कों हेतु स्कीमों का कार्यान्वयन करता है। इसके अतिरिक्त, विभाग डीआरडीए प्रशासन को सुदृढ़ करने हेतु सहायता, पंचायती राज संस्थान, प्रशिक्षण एवं अनुसंधान, मानव संसाधन विकास, स्वैच्छिक कार्यवाही का विकास आदि कार्य भी करता है।
ग्रामीण विकास विभाग के प्रमुख कार्यक्रम हैं – प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई), ग्रामीण आवास (आरएच), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई), राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) और राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी)।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) ऐसा मांग आधारित मजदूरी रोजगार कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य अकुशल शारीरिक श्रम करने इच्छुक वयस्क सदस्यों वाले प्रत्येक ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों के मजदूरी रोजगार की गारंटी देकर आजीविका सुरक्षा बढ़ाना है।
इस योजना के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं:
ग्रामीण क्षेत्रों में मांग के अनुसार प्रत्येक परिवार को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का अकुशल मजदूरी कार्य उपलब्ध कराना, जिससे निर्धारित गुणवत्ता और स्थायित्व वाली उपयोगी परिसंपत्तियों का निर्माण हो।
इस कार्यक्रम की प्रमुख उपलब्धियां इस प्रकार हैं :
वर्ष 2006 में इस कार्यक्रम की शुरूआत से अब तक सीधे ग्रामीण कामगार परिवारों को मजदूरी भुगतान के रूप में 1,63,754.41 करोड़ रूपए की राशि वितरित की गई है। 1,657.45 करोड़ श्रम दिवसों के रोजगार का सृजन हुआ है।
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आबंटन और कवरेज की दृष्टि से एनआरएलएम मंत्रालय का दूसरा सबसे बड़ा कार्यक्रम है और इसका उद्देश्य वर्ष 2021-22 तक 8-10 करोड़ गरीब ग्रामीण परिवारों को स्व-सहायता समूहों और गांवों तथा इससे ऊपर के स्तरों के संघों में संगठित करके लाभान्वित करना है। एनआरएलएम में भागीदारीपूर्ण प्रक्रियाओं के माध्यम से और ग्राम सभा के अनुमोदन से निर्धारित किए गए समाज के गरीब और कमजोर वर्गों की पर्याप्त कवरेज सुनिश्चित की जाती है। पंचायती राज संस्थाओं के साथ गहन तालमेल इस कार्यक्रम की अहम विशेषता है।
वर्ष 2013-14 के दौरान आजीविका-एनआरएलएम के अंतर्गत सभी अपेक्षाओं की पूर्ति, कार्यान्वयन संरचना की स्थापना, उन्हें व्यापक प्रारंभिक प्रशिक्षण और क्षमता विकास सहायता प्रदान करके उनका सुदृढ़ीकरण करके एनआरएलएम शुरू करने में राज्य मिशनों की सहायता करने पर जोर दिया गया।
मार्च, 2014 तक 27 राज्यों और पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्र में एनआरएलएम शुरू कर दिया है और एसआरएलएम स्थापित कर दिए हैं। वर्ष 2012-13 के दौरान शुरू किए गए संसाधन ब्लॉकों ने सामुदायिक संस्थाओं और सामाजिक पूंजी के सृजन की गुणवत्ता के संदर्भ में प्रभावी परिणाम दर्शाए हैं।
एनआरएलएम ने विकलांग व्यक्तियों, बुजुर्गों, अत्यधिक कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी), बंधुआ मजदूरों, मैला ढ़ोने वालों, अनैतिक मानव व्यापार पीड़ितों जैसे समाज के सर्वाधिक उपेक्षित और कमजोर समुदायों तक लाभ पहुंचाने वाली विशेष कार्यनीतियां तैयार करने तथा प्रायोगिक परियोजनाओं पर जोर दिया है। इस वर्ष के दौरान मानव संसाधन नियमावली, वित्तीय प्रबंधन नियमावली के अंगीकरण के माध्यम से तथा ब्याज सब्सिडी कार्यक्रम शुरू करके संस्थागत प्रणालियों के सुदृढ़ीकरण पर जोर दिया गया। आजीविका की सहायता से लगभग 1.58 लाख युवाओं ने अपने उद्यम स्थापित कर लिए हैं। 24.5 लाख महिला किसानों को भी सहायता दी गई है।
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आजीविका कौशल भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की कौशल और रोजगार परक पहल है। आजीविका कौशल राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम)- आजीविका का एक घटक है। यह घटक ग्रामीण गरीबों को आय के विविध स्रोत उपलब्ध कराने की जरूरत पूरी करने तथा ग्रामीण युवाओं की व्यावसायिक आकांक्षाओं की पूर्ति करने के लिए तैयार किया गया है।
इसका उद्देश्य गरीब ग्रामीण युवाओं के कौशलों का विकास करके उन्हें न्यूनतम मजदूरी या उससे अधिक दरों पर नियमित मासिक मजदूरी वाले रोजगार दिलाना है। इस कार्यक्रम में ग्रामीण युवाओं की कौशल विकास और उन्हें औपचारिक क्षेत्र में रोजगार दिलाने पर जोर दिया जाता है। वर्ष 2013-14 में 5 लाख ग्रामीण युवाओं के कौशल विकास का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जिनमें से 2,08,843 युवाओं को मार्च, 2014 तक प्रशिक्षित किया गया और 1,39,076 को रोजगार दिलाया गया।
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केंद्रीय मंत्रिमंडल ने दिनांक 03 सितंबर, 2013 को आयोजित अपनी बैठक में भारत ग्रामीण आजीविका फाउंडेशन (बीआरएलएफ) नामक एक स्वतंत्र पंजीकृत सोसायटी स्थापित करने का निर्णय लिया था। फाउंडेशन का गठन, एक ओर सरकार और दूसरी ओर निजी क्षेत्र की परोपकारी संस्थाओं, निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (कॉर्पोरेट क्षेत्र के सामाजिक दायित्व के अंतर्गत) के बीच साझेदारी के रूप में किया गया है।
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राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका संवर्धन सोसायटी (एनआरएलपीएस) की स्थापना एक स्वायत्त एवं स्वतंत्र निकाय के रूप में जुलाई 2013 में की गई। एनआरएलपीएस एनआरएलएम के विभिन्न स्तरों पर मुख्य/अग्रणी तकनीकी सहायता एजेंसी के रूप में कार्य करती है। सोसायटी का मुख्य उद्देश्य कार्यक्रम की आयोजना, कार्यान्वयन और निगरानी में राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एसआरएलएम) का सतत क्षमता निर्माण करना है। यह एसआरएलएम के लिए ज्ञान संसाधन केंद्र के रूप में भी कार्य करती है।
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हालांकि संविधान में राष्ट्रीय राजमार्गों को छोड़ कर अन्य सड़कें राज्य सूची में हैं, फिर भी राज्यों को सहायता देने के लिए भारत सरकार ने गरीबी उपशमन कार्यनीति के अंतर्गत केंद्रीय प्रायोजित योजना के रूप में 25 दिसंबर, 2000 को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की शुरूआत की थी। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य कोर नेटवर्क में शामिल तथा सड़क मार्गों से न जुड़ी 500 गावों तथा उससे अधिक (2001 की जनगणना) जनसंख्या वाली सभी पात्र बसावटों को बारहमासी सड़कों से जोड़ना है। पर्वतीय राज्यों (पूर्वोत्तर, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर तथा उत्तराखंड), मरुभूमि क्षेत्रों (मरुभूमि विकास कार्यक्रम में यथानिर्धारित), जनजातीय (अनुसूचीV) क्षेत्रों तथा पिछड़े जिलों (गृह मंत्रालय और योजना आयोग द्वारा निर्धारित) में 250 तथा उससे अधिक की जनसंख्या (जनगणना 2001 के अनुसार) वाली बसावटों को सड़क मार्गों से जोड़ने का उद्देश्य है। इस कार्यक्रम में एक बारहमासी सड़क-संपर्क की परिकल्पना की गई है। अब देश में ऐसी सड़कों का लगभग 4,04,000 कि.मी. का नेटवर्क निर्मितकिया गया है।
खेत से सीधे बाजार तक सड़क संपर्क की सुनिश्चितता की दृष्टि से इस कार्यक्रम में वर्तमान थ्रू रूटों और प्रमुख ग्रामीण संपर्कों के विनिर्दिष्ट मानकों के अनुसार उन्नयन का प्रावधान है, हालांकि यह केंद्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत नहीं आता है। पीएमजीएसवाई।। के अंतर्गत 50,000 पात्र परियोजनाओं में से 10,725 परियोजनाएं मंजूर की गई हैं। दिनांक 31 मार्च, 2014 तक 97,838 बसावटों को सड़कों से जोड़ा गया है। 2,48,919 कि.मी. के नए सड़क संपर्कों का निर्माण कर लिया गया है।
ग्रामीण सड़कों की महत्ता का अंदाजा सड़क निर्माण अथवा निर्माण के शीघ्र पश्चात नहीं लगाया जा सकता। कुछ वर्षों के उपरांत ही विशेष रूप से जब यातायात की आवाजाही बढ़ती है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में बाजार तक पहुंच का पूरा दोहन किया जाता है तब सड़कों के लाभ का पूरा पता चलता है। ग्रामीण सड़कों के नियमित रखरखाव से ही सामाजिक-आर्थिक विकास का पूरा लाभ प्राप्त होता है और गरीबी कम होती है।
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मंत्रालय के गरीबी उपशमन के प्रयासों की व्यापक कार्यनीति के अंतर्गत ग्रामीण विकास मंत्रालय की इंदिरा आवास योजना (आईएवाई) नामक प्रमुख योजना शुरूआत से ही बेघर या अपर्याप्त आवासीय सुविधाओं वाले बीपीएल परिवारों को सुरक्षित और टिकाऊ आश्रय के निर्माण के लिए सहयाता देती रही है।
‘सभी के लिए आश्रय’ की मंत्रालय की प्रतिबद्धता को तब और रफ्तार मिली, जब भारत ने जून, 1999 में मानव बस्ती संबंधी इस्तांबुल घोषणा पर हस्ताक्षर करके यह स्वीकार किया कि सुरक्षित स्वास्थ्यवर्धक आश्रय तथा आधारभूत सेवाओं की उपलब्धता व्यक्ति के शारीरिक, मनौवैज्ञानिक, सामाजिक और आर्थिक कल्याण के लिए बेहद जरूरी हैं। पर्यावास दृष्टिकोण का उद्देश्य सभी, विशेषकर वंचित शहरी और ग्रामीण गरीबों के लिए अवसंरचना, सुरक्षित पेयजल, स्वच्छता, बिजली इत्यादि जैसी आधारभूत सुविधाओं की पहुंच बढ़ाने वाले प्रयासों के माध्यम से पर्याप्त आश्रय सुनिश्चित करना है।
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि ग्रामीण आवास उपेक्षितों के लिए किया जाने वाला प्रमुख गरीबी उपशमन उपाय है, केंद्र सरकार सभी के लिए आश्रय उपलब्ध कराने के प्रयासों के तहत इंदिरा आवास योजना चला रही है। मकान केवल आश्रय और निवास स्थान नहीं होता बल्कि यह एक ऐसी संपत्ति है, जिससे आजीविका के साधन उपलबध होते हैं और जो सामाजिक स्थिति का प्रतीक होने के साथ-साथ सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का एक रूप भी होता है। वर्ष 2013-14 में 13.73 लाख मकानों का निर्माण किया गया।
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वर्ष 2013-14 में मनरेगा के अंतर्गत महिला कामगारों की भागीदारी 53 प्रतिशत थी, जबकि सांविधिक न्यूनतम आवश्यकता 33 प्रतिशत है। एनआरएलएम के सभी लाभ केवल ग्रामीण गरीब महिलाओं के लिए हैं। एनआरएलएम के महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना नामक उपघटक का उद्देश्य महिला किसानों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने के उद्देश्य से उन महिलाओं हेतु स्थायी आजीविका के अवसर सृजित करना है। आजीविका कौशल के अंतर्गत 33 प्रतिशत प्रत्याशी महिलाएं होनी चाहिएं। इंदिरा आवास योजना के दिशा-निर्देशों के अनुसार आईएवाई मकानों का आवंटन विधवा/अविवाहित/पति से अलग रह रही महिला के मामले को छोड़कर अन्य सभी मामलों में पति और पत्नी के संयुक्त नाम से किया जाना चाहिए। राज्य चाहें तो इन मकानों का आवंटन केवल महिलाओं के नाम पर भी कर सकते हैं। एनएसएपी की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत बीपीएल श्रेणी के विधवाओं और वृद्ध महिलाओं को सहायता दी जाती है। महिलाओं के लाभार्थ कम से कम 30 प्रतिशत योजनागत संसाधनों का निर्धारण करने के लिए ग्रामीण विकास विभाग ने जेंडर बजट प्रकोष्ठ की स्थापना कर दी है।
सभी के लिए विशेषकर लाभवंचित समूहों के व्यक्तियों के लिए समान अवसर किसी भी विकास संबंधी पहल का एक अनिवार्य घटक है। ग्रामीण विकास मंत्रालय का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी को कम करना है। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति सहित समाज के सर्वाधिक लाभवंचित वर्गों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह मंत्रालय विशेष रोजगार सृजन कार्यक्रमों के माध्यम से विभिन्न योजनाओं/कार्यक्रमों को क्रियान्वित कर रहा है। मंत्रालय ने इस संबंध में दिशानिर्देशों में विशेष प्रावधान किए हैं। तदनुसार,आईएवाई और एनआरएलएम के अंतर्गत अनुसूचित जाति उप-योजना (एससीएसपी) और जनजातीय उप-योजना (टीएसपी) के लिए निधियां निर्धारित की गई हैं।
आजीविका में, कम से कम 50% महिला लाभार्थी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति से तथा 15%महिला लाभार्थी अल्पसंख्यक समुदायों से होंगी। इसके अलावा, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका परियोजना (एनआरएलपी) के अंतर्गत संसाधनों के व्यापक उपयोग के लिए ऐसे 13 राज्यों का चयन किया गया है जहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति सहित ग्रामीण निर्धनों की आबादी काफी अधिक है। एसजीएसवाई के अंतर्गत, स्व-सहायता समूहों के लगभग 86 लाख अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति सदस्यों को आर्थिक कार्यकलाप करने के लिए सहायता प्रदान की गई थी। एनआरएलएम के हिस्से के रूप में, स्व-सहायता समूहों में मुख्य रूप से 5.16 लाख अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के तथा 50,000 अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को प्रोत्साहित किया गया था। कौशल विकास के अंतर्गत, अनुसूचित जाति के 2.21 लाख, अनुसूचित जनजाति के 1.04 लाख और अल्पसंख्यक समुदाय के 54136 ग्रामीण युवा सदस्यों को प्रशिक्षण दिया गया था।
इंदिरा आवास योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए कम से कम 60%तथा अल्पसंख्यक समुदायों के लिए 15% निधियों का उपयोग किया जाना अपेक्षित है। वर्ष 2013-14 में, स्वीकृत किए गए कुल 18.66 लाख मकानों में से 6.89 लाख मकान अनुसूचित जाति के लिए, 5.20 लाख मकान अनुसूचित जनजाति के लिए और 2.36 लाख मकान अल्पसंख्यक समुदायों के लिए मंजूर किए गए हैं। वर्ष 2013-14 के दौरान 10151.99 करोड़ रु. के कुल व्यय में से 6296.52 करोड़ रु. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए तथा 1270.13 करोड़ रु. अल्पसंख्यक समुदायों के लिए खर्च किए गए हैं।
मनरेगा योजना के अंतर्गत, वर्तमान वर्ष के दौरान सृजित किए गए रोजगार के कुल 126.36 करोड़ श्रमदिवसों में से अनुसूचित जाति के लिए 29.65 करोड़ श्रमदिवस (23%) और अनुसूचित जनजाति के लिए 19.53 करोड़ श्रमदिवस (15%) सृजित किए गए थे।
हालांकि 73वें संविधान संशोधन अधिनियम (1992) में ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) की स्थापना के व्यापक विधिक – संवैधानिक फ्रेम वर्क का प्रावधान किया गया है, लेकिन सही मायने में विभिन्न राज्यों में इस अधिनियम के कार्यान्वयन में अंतर रहा है। इस अंतर के परिणामस्वरूप अलग-अलग क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर एक ही जैसी संस्थागत संरचनाओं की संस्थागत क्षमताओं में अंतर था। विशेषकर जिन क्षेत्रों में इन संस्थाओं को सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं की प्रदायगी में प्रमुख भूमिका दी गई, उन क्षेत्रों में विकास संबंधी परिणामों में अंतर आने का कारण भी कुछ हद तक यह अंतर ही है। केंद्र द्वारा प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) के उद्देश्य और प्रचालन दिशा-निर्देश तो एक समान हैं लेकिन उनके कार्यान्वयन के परिणाम विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग हैं।
ग्रामीण विकास मंत्रालय की सभी योजनाओं में पूर्वोत्तर के विशेष श्रेणी वाले 8 राज्यों पर विशेष जोर दिया गया है। केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों के बजट (सकल बजटीय सहायता) का 10 प्रतिशत निर्धारित करने और केंद्रीय संसाधनों का व्यपगत न हो सकने वाला पूल तैयार किए जाने का लाभ हाल के वर्षों में प्राप्त हुआ है। वर्ष 2013-14 के दौरान मनरेगा के अंतर्गत केंद्र सरकार के हिस्से के रूप में पूर्वोत्तर राज्यों को 2801.49 करोड रुपए रिलीज किए गए, जबकि जबकि एनआरएलएम के अंतर्गत 228.20 करोड़ रुपए (संशोधित अनुमान) आवंटित किए गए, जिसमें से 110.87 करोड़ रुपए रिलीज किए गए। वर्ष 2013-14 के दौरान पीएमजीएसवाई के अंतर्गत पूर्वोत्तर राज्यों को 353.31 करोड़ रुपए रिलीज किए गए। एनएसएपी के अंतर्गत सर्वव्यापी कवरेज की परिकल्पना की गई थी और प्रत्येक राज्यों को निधियों का आवंटन लाभार्थियों की अनुमानित संख्या के आधार पर किया गया।
वर्ष 2013-14 के दौरान 82 समेकित कार्य योजना (आईएपी) जिलों में मनरेगा के अंतर्गत 86.07 लाख परिवारों को रोजगार मिला; 4039.50 लाख श्रम दिवसों का सृजन हुआ और 702196.12 लाख रुपए खर्च किए गए। समेकित कार्ययोजना जिलों में योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए इस योजना के प्रावधानों में कई छूट दी गई हैं। लक्षित 88 समेकित कार्ययोजना जिलों में 56,257 बसावटों को पीएमजीएसवाई के अंतर्गत सड़क से जोड़े जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस लक्ष्य में से अब तक 41.379 बसावटें स्वीकृत की गई हैं और 24,057 बसावटें (स्वीकृत बसावटों का 58 प्रतिशत) सड़कों से जोड़ी गई हैं। इसी प्रकार वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित 82 जिलों को भी दुर्गम क्षेत्रों की श्रेणी में शामिल किया गया है और इन जिलों में आईएवाई लाभार्थियों को एक मकान के निर्माण के लिए 75 हजार रुपए की बढ़ी हुई सहायता दी जाती है। वामपंथी उग्रवाद से सर्वाधिक प्रभावित 27 जिलों में युवाओं को प्रशिक्षण और रोजगार दिलाने के लिए आजीविका कौशल के अंतर्गत रोशनी नामक विशेष पहल 7 जून, 2013 को शुरू की गई। एनआरएलएम में आईएपी जिलों को लाभान्वित करने को प्राथमिकता दी गई है। अब तक कई आईएपी जिले एनआरएलएम गहन जिले भी हैं। 88 आईएपी जिलों में से 53 जिले पहले से ही एनआरएलएम की गहन कवरेज में शामिल हैं।
जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष पहल के अंतर्गत 223 करोड़ रुपए रिलीज किए गए हैं तथा 5186.66 कि.मी. लंबाई वाले 962 सड़क कार्यों का निर्माण कार्य संपन्न किया गया। आजीविका कौशल के अंतर्गत हिमायत कौशल विकास की विशेष योजना है। ग्रामीण विकास का उद्देश्य 5 वर्षों की अवधि (2011-12 से 2016-17 तक) में जम्मू और कश्मीर के एक लाख युवाओं को प्रशिक्षण प्रदान करके संगठित क्षेत्रों में रोजगार दिलाना है। आशा है कि एनआरएलएम में उम्मीद कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य सरकार 5 वर्षों की अवधि में लगभग 9लाख महिलाओं को लाभान्वित करेगी। ये महिलाएं दो तिहाई ग्रामीण परिवारों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस कार्यक्रम में राज्य के 22 जिलों के 143 ब्लॉकों में सभी 3292 ग्राम पंचायतों की 9 लाख महिलाओं को लाभान्वित किया जाएगा।
अच्छी पारिस्थितिकीय प्रणालियां ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों, विशेषकर उपेक्षित समुदायों के लिए कृषि आधारित आजीविकाओं तथा पेयजल, स्वच्छता और स्वास्थ्य देखरेख जैसी आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता बढ़ाने में सहायक होती हैं। प्राकृतिक संसाधनों में निवेश से समुदायों को जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने और उनमें प्राकृतिक आपदाओं को सहने की क्षमता विकसित करने में भी मदद मिलती है।
यह ग्रामीण विकास मंत्रालय की कार्यनीति में एक बड़ा बदलाव है। स्थायी गरीबी उपशमन के लक्ष्य की प्राप्ति में योगदान की क्षमताओं का उपयोग करने तथा प्राकृतिक संसाधनों के किफायती उपयोग के लिए मंत्रालय निम्नलिखित पर ध्यान दे रहा है :
जल निकायों और जलाशयों सहित पारिस्थितिकीय प्रणालियों की गुणवत्ता और वहन क्षमता बढ़ाना तथा प्राकृतिक संसाधनों के क्षय की रोकथाम करना ;
प्राकृतिक संसाधनों के स्थाई उपयोग पर आधारित स्थायी आजीविकाओं को बढ़ावा देना;
पारिस्थितिकीय प्रणालियों की क्षमता बढ़ाना ताकि विनाशकारी मौसमी परिस्थितियों में कमी आए तथा जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटा जा सके
ऊर्जा, सामग्री, प्राकृतिक संसाधनों के किफायती उपयोग और नवीकरणीय सामग्री के अधिक प्रयोग के माध्यम से विभिन्न कार्यकलापों के पारिस्थितिकीय तंत्र पर पड़ने वाले प्रभावों की रोकथाम करना।
हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2009-10 से 2011-12 के बीच के एक वर्ष के दौरान ग्रामीण मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय (एमपीसीई) 5.5 प्रतिशत की तेज रफ्तार से बढ़ा (एनएसएसओ-2012)। हालांकि औसत ग्रामीण एमपीसीई शहरी औसत से लगभग आधी रही, लेकिन ग्रामीण आय और व्यय में वृद्धि ग्रामीण गरीबी अनुपात में भारी कमी दर्शाती है। यह अनुपात मात्र 2 वर्षों में 34 प्रतिशत से घटकर 26 प्रतिशत से भी कम हो गया है। क्रय शक्ति बढ़ने के परिणामस्वरूप ग्रामीण बाजार अब बाकी बचे सामान का खुदरा बाजार नहीं रह गए हैं। विशेष रूप से ग्रामीण मांग की पूर्ति के लिए उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं। ग्रामीण भारत अब अपनी उपस्थिति का अहसास करा रहा है। इसके अतिरिक्त बड़े गांव भी शहरी केंद्रों से जुड़े सक्रिय विकास केंद्रों के रूप में तेजी से उभर रहे हैं।
स्त्रोत: पत्र सूचना कार्यालय, सुरेंद्र गुप्ता, अवर सचिव, ग्रामीण विकास
अंतिम बार संशोधित : 2/21/2020
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