सम्मान के साथ जीने का अधिकार जीवन के अधिकार में शामिल हैं, जिसे भारत का संविधान हर नागरिक के लिए सुनिश्चित करता है। मानव होने की स्वाभाविक गरिमा तथा महिलाओं को किसी भी प्रकार की हिंसा से बचाने के लिए भारत अंतर्राष्ट्रीय कानूनों तथा घोषणाओं जैसे यूनिवर्सल डिक्लेरेशन ऑफ ह्युमैन राइट (UDHR) तथा महिलाओं के खिलाफ होने वाले सभी प्रकार की हिंसाओं के उन्मूलन पर आयोजित सम्मेलन (CEDAW), का एक हिस्सा बना है। इसके अलावा अपराध के शिकार तथा शक्ति के दुरुपयोग के शिकार हेतु यूएन के न्याय का मौलिक सिद्धांत, 1985 शिकार व्यक्तियों के सम्मान तथा आपराधिक न्याय प्रणाली के जरिए उनकी शिकायत की त्वरित कार्रवाई, क्षतिपूर्ति तथा सहायता सेवा को आवश्यकता मानता है।
बलात्कार महिलाओं के खिलाफ होने वाला सर्वाधिक हिंसक कानून है, जो न केवल उनकी शारीरिक अखंडता को नष्ट करता है, बल्कि व्यक्तिगत व सामाजिक संबंधों के उनकी विकास की क्षमता को बाधित कर उनके जीवन व जीविका को प्रभावित करता है। बलात्कार की शिकार महिला को मानसिक तथा मनोवैज्ञानिक संत्रास से गुजरना पड़ता है, जिस पर कार्रवाई करने की गहरी आवश्यकता होती है, ताकि वह महिला एक गरिमापूर्ण व सार्थक जीवन जी सके।
जहां ऐसे जघन्य अपराध को अंजाम देने वाले अपराधियों को दंड देना आवश्यक होता है, वहीं पीड़ित महिला को गरिमा तथा आत्मविश्वास के साथ जीने में मदद करने की आवश्यकता होती है। यही वह सुरक्षात्मक न्याय है जिसे ऐसी घटनाओं को झेलने वाली महिलाओं के न्याय का आधार बनाया जाए और उसे वित्तीय क्षतिपूर्ति के साथ-साथ परामर्श, आश्रय, मेडिकल तथा कानूनी सहायता भी प्रदान की जाए। ऐसा करने के दौरान पीड़ित महिला द्वारा झेली जाने वाली पीड़ा, परेशनी तथा सदमा और बलात्कार के कारण गर्भ ठहरने तथा इन सभी पर आने वाले खर्चों को ध्यान में रखना दिल्ली घरेलू वर्किंग महिला फोरम बनाम भारतीय संघ तथा अन्य की लिखित याचिका में माननीय सर्वोच्च न्यायालय राष्ट्रीय महिला आयोग को निर्देश दिया कि वे ऐसी योजना की शुरुआत करे जिससे बलात्कार की शिकार महिला की परेशानियों समाप्त किया जा सके। इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने विचार व्यक्त किया कि संविधान की धारा 38(1) में निहित निशा-निर्देशक सिद्धांतों के संदर्भ में एक आपराधिक सदमा क्षतिपूर्ति बोर्ड का गठन आवश्यक हो जाता है, क्योंकि पीड़ित महिला मानसिक परिताप के अलावा गंभीर वित्तीय हानि भी झेलती हैं और कुछ मामलों में तो वे इतने सदमे में चली जाती हैं कि अपनी नौकरी जारी नहीं रख पाती हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्युरो के आंकड़े दर्शाते हैं कि देश में बलात्कार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। वर्ष 2008 में ऐसे 21,467 मामले देखने को मिले, जो पिछले साल की तुलना में 3.5% अधिक थी।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973(CrPC), की धारा 357 के तहत, अदालत अपराध पीड़ित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति प्रदान कर सकती है, जिसमें बलात्कार का अपराध भी शामिल है। वर्ष 2009 में CrPC में एक नई धारा 357A जोड़ी गई, जो राज्य सरकार को केंद्र सरकार के साथ मिलकर पीड़ितों के लिए क्षतिपूर्ति के लिए योजनाओं का आरंभ करने का निर्देश दिया गया।
इस संदर्भ में, बलात्कार पीड़िता को सुरक्षात्मक न्याय की योजना के तहत वित्तीय सहायता तथा अन्य सहायक सेवायों की एक योजना को मूर्त रूप दिया गया है। हालांकि बलात्कार से उपजी मानसिक तथा शारीरिक हानि को किसी भी आर्थिक सहायता द्वारा पूरित नहीं की जा सकती, पर इस योजना का मकसद ऐसी पीड़ितों को मदद देना है ताकि वे अपने सदमे से बाहर आकर अपनी तत्काल एवं लंबे समय की जरूरतों की पूर्ति कर सकें।
इस योजना का क्रियांवयन वर्ष 1995 में राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा किया गया था। उसके बाद इस मुद्दे पर भारत सरकार के उचित प्राधिकार में विचार किया गया, जिसने बलात्कार की शिकार महिला को क्षतिपूर्ति राशि प्रदान करने के दिशा निर्देश बनाए। इसने पीड़ित को अंतरिम तथा अंतिम क्षतिपूर्ति प्रदान करने की अनुशंसा की, जिसके लिए जिला स्तरीय समितियां तथा एक अपराध आघात क्षतिपूर्ति बोर्ड का गठन किया गया।
इन दिशा निर्देशों के मद्देनजर योजना का पुनः ड्राफ्ट बनाया गया। ड्राफ्ट की योजना पर एनजीओ, वकीलों तथा कार्यकर्ताओं के साथ सघन परामर्श किया गया। विभिन्न प्रतिभागियों के साथ गहन चर्चा के बाद ड्राफ्ट योजना पर आखिरकार 7 मार्च 2010 को महिला तथा बाल कल्याण मंत्रालय द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम ‘बलात्कार पीड़ित के न्याय, राहत तथा पुनर्वास का राष्ट्रीय परामर्श’ में एक चर्चा हुई। इस राष्ट्रीय परामर्श में न्यायपालिका, राष्ट्रीय तथा राज्य कानूनी सेवा प्राधिकार, पुलिस अधिकारी, एनजीओ तथा कार्यकर्ता इत्यादि शामिल हुए। इस सम्मेलन में ऐसी योजना की आवश्यकता पर बल दिया गया, जो पीड़िता की सहायता करे तथा उसकी गरिमा को पुनः वापस करे। कई सलाह भी दी गई, जिन्हें इस योजना में शामिल किया गया।
हालांकि यह योजना एक प्रभावित महिला को धारा 357 के तहत राहत पाने तथा CrPC की धारा 357A में आवेदन करने से नहीं रोकती।
पीड़ित महिला को सुरक्षात्मक न्याय सुनिश्चित करने के लिए इस योजना के निम्न उद्देश्य हैं:
1) बलात्कार की शिकार महिला के लिए वित्तीय सहायता; तथा
2) आश्रय, परामर्श, मेडिकल सहायता, कानूनी सहायता जैसी सहायता सेवाएं,
पीड़िता की जरूरत के आधार पर शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण।
(i) यह योजना बलात्कार की शिकार महिला/अल्प वयस्क बालिका शामिल हैं, जिन्हें हम इससे आगे ‘पीड़ित महिला’ के रूप सूचित करेंगे।
(ii) इस योजना के उद्देश्य के लिए “बलात्कार” का अर्थ होगा:
महिला के साथ की जाने वाली ऐसी यौनक्रियाएं निम्न में से किसी एक के तहत आती हैं:
पहला:- उसकी मर्जी के खिलाफ।
दूसरा:- बिना उसकी इज़ाजत के;
तीसरा:- उसकी इजाजत से, जब उसे जान की धमकी या हानि पहुंचाने का डर दिखाया गया हो।
चौथा:- उसकी इजाजत से, जब पुरुष को पता है कि वह उसका पति नहीं है, उसे महिला ने अपनी सहमति इसलिए दी है कि वह मानती है कि वह मर्द या उस मर्द के साथ वह कानूनी रूप से शादी के बंधन में बंध सकती है।
पांचवां:- उसकी सहमति से, जब मर्द द्वारा बेहोशी, विषाक्तता या दवा की खुराक के प्रभाव की हालत में सहमति ली गई हो, अथवा किसी अन्य पदार्थ के खाने से उपजे नशे की हालत में महिला ने अनजाने में ऐसा किया हो।
व्याख्या: - बलात्कार का अपराध साबित करने के लिए भेदन यौन क्रिया पर्याप्त है।
(iii) “आवेदक” में शामिल हैं पीड़ित महिला या उसकी कानूनी वारिस (परिणामतः यदि महिला की मौत हो जाती है, तो उस स्थिति में), साथ ही अल्पवयस्क लड़की/मानसिक रुग्ण/ मंदबुद्धि लड़की की ओर आवेदन करने वाले व्यक्ति जैसा कि इस योजना के पारा 6 (i) (b) में उल्लेख किया गया है।
(iv) ‘स्टेट बोर्ड’, जहां भी उल्लेख किया गया हो, ऐसे बोर्ड केंद्र शासित प्रदेशों में शामिल हैं।
योजना के तहत पीड़ित महिला को वित्तीय सहायता तथा सुरक्षात्मक सहायता/सेवाएं लेने का अधिकार है, जो इस योजना के पारा 8 में उल्लेख किए मुताबिक अधिकतम 2 लाख रु होगा। इस योजना के तहत मिलने वाली सहायता उन मामलों के लिए होगी, जिनमें योजना आरंभ होने की तिथि पर या उसके बाद एफआइआर दर्ज हुए हों।
(क) जिला अपराध आघात राहत तथा पुनर्वास बोर्ड
हर जिले में एक जिला अपराध आघात राहत तथा पुनर्वास बोर्ड (यहां से आगे इसे ‘जिला बोर्ड’ के रूप में उल्लेख किया जाएगा।) की जाएगी जिसके पास उस जिले में प्राप्त सहायता के लिए आवेदनों को निपटने का विशेष अधिकार होगा।
संगठन
जिला मजिस्ट्रेट / उपायुक्त /जिला कलेक्टर बोर्ड के अध्यक्ष होंगे।
बोर्ड में निम्नानुसार 5 अन्य सदस्य भी होंगे:
1. पुलिस अधीक्षक
2. सिविल सर्जन /जिला मेडिकल /स्वास्थ्य अधिकारी या जिस भी नाम से वह जाना जाता हो;
3. जिला कानूनी सेवा प्राधिकार का एक प्रतिनिधि, जो महिला ही हो;
4. एक प्रख्यात महिला विशेषज्ञ जिन्हें जिला में महिला तथा बच्चों के मामलों का अनुभव हो, और उनका चयन बोर्ड के अध्यक्ष द्वारा किया जाएगा;
5. जिमा महिला तथा बाल विकास/सामाजिक कल्याण अधिकारी, जो बोर्ड का सचिव होगा।
यह बोर्ड जिला या कई जिलों के लिए गठित बाल कल्याण समिति का एक प्रतिनिधि का चयन करेगा।
नामित सदस्य का कार्यकाल तीन सालों का होगा, जहां उसे एक साल का विस्तार दिया जा सकता है।
जिला बोर्ड की शक्ति
(1) योजना के तहत यह बोर्ड दावों का निर्णय लेगा तथा वित्तीय सहायता प्रदान करेगा और साथ ही पीड़िता को शारीरिक नुकसान, भावनात्मक सदमा से उबरने और सुरक्षा के लिए आवश्यक सेवाओं को उपलब्ध कराने का आदेश देगा।
(2) बोर्ड के पास इसके कार्यों को संपन्न करने के लिए साक्ष्य के रिकॉर्डिंग तथा सम्मन भेजने का अधिकार रहेगा।
जिला बोर्ड के कार्य
जिला बोर्ड निम्न कार्यों को संपन्न करेगा:
1) दावों की सुनवाई तथा वित्तीय सहायता और सहायक सेवाएं, (जैसा मामला हो) जो इस योजना के तहत वर्णित विधियों के अनुरूप होंगी।;
2) पीड़ित महिला के लिए मनोवैज्ञानिक, मेडिकल तथा कानूनी सहायता की व्यवस्था करना;
3) पीड़िता के लिए परामर्श सहायता की व्यवस्था करना, जिसमें महिला के शादीशुदा होने की स्थिति में उसके पति को परामर्श देना;
4) पीड़ित महिला के लिए आवश्यकतानुसार आश्रय की व्यवस्था करना;
5) पीड़ित महिला के लिए चालू योजनाओं/कार्यक्रमों के तहत शिक्षा या व्यावसायिक/प्रॉफेशनल प्रशिक्षण (जैसा मामला हो) की व्यवस्था करना;
6) समय-समय पर जांच की प्रगति की समीक्षा करना;
7) यदि पीड़ित महिला द्वारा आवेदन दिया जाए तो अनुसंधान अधिकारी को बदलने की अनुशंसा करना;
8) पीड़ित महिला को आवश्यक होने पर सुरक्षा प्रदान करने के लिए उचित प्राधिकार उपलब्ध करवाने के लिए निर्देश देना;
9) सहायक सेवाएं, शिक्षा तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण के दौरान पीड़ित महिला की पहचान को सार्वजनिक किसे जाने से बचाना;
10) अपने निर्णयों की प्रगति की समीक्षा तथा निगरानी करना;
11) ऐसा अन्य कार्य संपन्न करना जो बोर्ड द्वारा किया जाना आवश्यक हो, अथवा जो राज्य/राष्ट्रीय बोर्ड द्वारा निर्देशित किया गया हो।
(ख) राज्य अपराध आघात राहत तथा पुनर्वास बोर्ड
हरेक राज्य/कें. शा. प्रदेश में एक राज्य अपराध आघात राहत तथा पुनर्वास बोर्ड (यहां से आगे इसे ‘राज्य बोर्ड’ के रूप में उल्लेख किया जाएगा) की स्थापना की जाएगी, जिसकी जिला बोर्डो के कार्यों की निगरानी तथा समन्वयन की प्राथमिक जिम्मेदारी होगी।
संगठन
मुख्य सचिव/सचिव, महिला तथा बाल कल्याण विभाग या सामाजिक कल्याण विभाग, इस बोर्ड के अध्यक्ष होंगे।
राज्य/ कें. शा. प्रदेश में निम्नानुसार अन्य 7 सदस्य भी शामिल होंगे:
1. गृह विभाग के प्रतिनिधि;
2. स्वास्थ्य विभाग के प्रतिनिधि या एक सरकारी मेडिकल कॉलेज का एक प्रख्यात डॉक्टर, जिसे बलात्कार के मामलों से निपटने का अनुभव हो,जिसे स्वास्थ्य विभाग द्वारा नामित किया जाएगा;
3. कानून विभाग का प्रतिनिधि;
4. राज्य कानून सेवा प्राधिकार का प्रतिनिधि जो एक महिला ही होगा;
5. दो प्रख्यात महिला जिन्हें राज्य में महिला तथा बच्चों से जुड़े मामलों का अनुभव हो, जिन्हें बोर्ड के अध्यक्ष द्वारा नामित किया जाएगा;
6. निदेशक, महिला तथा बाल विकास या सामाजिक कल्याण विभाग, जो बोर्ड का सदस्य सचिव होगा।
नामित सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष का होगा, जिसे एक साल और बढ़ाया जा सकता है।
राज्य बोर्ड के कार्य
राज्य बोर्ड निम्न कार्य संपन्न करेंगे:
1. राज्य के जिला बोर्डों के बीच समंवयन तथा निगरानी;
2. अपनी ओर से जांच करना अथवा किसी पीड़ित महिला या उसकी ओर से किसी व्यक्ति द्वारा दायर याचिका की जांच करना, जिसमें बलात्कार का इलजाम लगाया गया हो; और मामले को जिला बोर्ड को हस्तांतरित करना।
3. योजना या इसके क्रियांवयन से जुड़ी शिकायत की जांच करना;
4. निम्न बिंदुओं के संदर्भ में जिला बोर्ड के फैसले के विरुद्ध अपील करना:
- योजना के तहत दायर किसी आवेदन की अस्वीकृति
- अंतरिम या अंतिम सहायता में देरी;
- सहायक सेवाओं के रूप में अपर्याप्तता या सहायता की मात्रा में कमी;
- राज्य बोर्ड द्वारा सही पाए जाने पर किसी पीड़ित महिला द्वारा दायर आवेदन से जुड़े किसी मामले की सुनवाई;
5. क्षतिपूर्ति की राशि को 1 लाख रु. तक बढ़ाना, जो संपूर्ण सहायता की स्थिति में अधिकतम 3 लाख रु. तक हो सकती है, जो जिला बोर्ड से प्राप्र निर्देश पर योजना के पारा 11 के तहत आएगा।
6. महिला तथा बाल विकाल मंत्रालय द्वारा प्राप्त फंड तथा राज्या द्वारा प्राप्त किसी अन्य फंड को जिला बोर्डों के बीच वितरित करना।
(ग) राष्ट्रीय अपराध आघात राहत तथा पुनर्वास बोर्ड
योजना के संचालन की संपूर्ण जिम्मेदारी के साथ एक राष्ट्रीय अपराध आघात राहत तथा पुनर्वास बोर्ड (यहां से आगे इसे ‘राष्ट्रीय बोर्ड’ के रूप में उल्लेख किया जाएगा) की स्थापना की जाएगी।
संगठन
सचिव /अतिरिक्त सचिव, महिला तथा बाल विकास मंत्रालय इस बोर्ड का अध्यक्ष होगा।
राष्ट्रीय बोर्ड में निम्नानुसार 7 सदस्य शामिल होंगे: -
1. महा-निदेशक, केंद्र सरकार स्वास्थ्य सेवा या उसका कोई प्रतिनिधि;
2. भारत सरकार के कानूनी मामला विभाग का कोई एक अधिकारी जो कम से कम संयुक्त सचिव स्तर का हो;
3. राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकार का एक प्रतिनिधि, जो एक महिला ही होगी;
4. राष्ट्रीय महिला आयोग का एक प्रतिनिधि;
5. दो प्रख्यात महिलाएं जिन्हें महिला तथा बच्चों की समस्या से निपटने का अनुभव हो, जिनका मनोनयन बोर्ड के अध्यक्ष द्वारा किया जाएगा; तथा
6. संयुक्त सचिव (महिला कल्याण)- महिला तथा बाल विकास मंत्रालय, जो राष्ट्रीय बोर्ड का सदस्य सचिव होगा।
राष्ट्रीय बोर्ड के मनोनीत सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्ष का होगा जिसे एक और कार्यकाल तक बढ़ाया जा सकता है।
राष्ट्रीय बोर्ड के कार्य
1) राष्ट्रीय बोर्ड योजना का संचालन करेगा तथा इस आशय से इस योजना के तहत गठित राज्य तथा जिला बोर्डों के कार्यों का समंवयन एवं निगरानी करेगा;
2) अपनी ओर से जांच करना या किसी पीड़ित महिला अथवा उसके ओर से किसी व्यक्ति द्वारा दायर याचिका की जांच करना जिसमें बलात्कार का आरोप लगाया गया हो और मामले को उचित जिला या राज्य बोर्ड के पास भेजना;
3) इस योजना या इससे क्रियांवयन से जुड़ी शिकायत की जांच करना;
4) महिला तथा बाल विकास मंत्रालय को राज्य सरकार/कें शा. प्र./किसी अन्य एजेंसी को इस योजना या इसके क्रियांवयन से जुड़े किसी मामले पर सलाह/दिशा-निर्देश जारी करना;
5) समय-समय पर इस योजना के तहत प्राप्त होने वाली सहायता तथा भुगतान राशि की मात्रा की समीक्षा करना तथा केंद्र सरकार को परामर्श देना;
6) योजना के संचालन के लिए फंड/बजट की आवश्यकता का आकलन करना;
7) पीड़ित महिला की क्षतिपूर्ति तथा उनके आत्म- सम्मान तथा गरिमा की पुनर्बहाली के मामले की समीक्षा तथा सलाह देना;
(i) कौन आवेदन कर सकते हैं और कहां आवेदन कर सकते हैं:
क) इस योजना के तहत पीड़ित महिला या उसकी तरफ से अन्य व्यक्ति/संगठन/विभाग/ आयोग वित्तीय तथा सहायक सेवाओं के लिए आवेदन एफआइआर दर्ज करने के 60 दिनों के भीतर प्रस्तुत कर सकता है;
ख) जब पीड़िता निम्नांकित हो:
- एक अल्पवयस्क, तो उसके माता-पिता/अभिभावक द्वारा आवेदन किया जा सकता है;
- मानसिक स्वस्थ्य अधिनियम के तहत यदि मानसिक रुग्ण या मानसिक विकलांग हो, तो वह व्यक्ति जिसके पास वह रहती है, अथवा संस्थान का अधिकृत मेडिकल अधिकारी आवेदन प्रस्तुत कर सकता है:;
(i) पीड़िता की मृत्यु की स्थिति में उसका कानूनी वारिस;
(ii) आवेदन जहां 60 दिनों के बाद प्रस्तुत किया जाता है, वहां बोर्ड यह देखेगा कि क्या देरी जायज थी या नहीं।
आवेदन कैसे करें:
(iii) ज्यों ही बलात्कार की कोई घटना घटती है, उसकी एफआइआर दर्ज की जानी चाहिए। पीड़िता की मेडिकल जल्द से जल्द की जानी चाहिए;
(iv) संबंधित थाने का SHO, SP/DCP के जरिए एफआइअर को 72 घंटे में मेडिकल रिपोर्ट, IO द्वारा किए प्राथमिक अनुसंधान रिपोर्ट कि जिला बोर्ड को भेजेगा;
(v) संबंधित थाने के SHO द्वारा भेजी गई रिपोर्ट/दस्तावेज उपबंध (i) तथा(vi) के तहत पीड़िता द्वारा जिला बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत होने तक साक्ष्य के रूप में रखे जाएंगे;
(vi) आवेदन उपबंध (i) के तहत, पीड़िता या उसके कानूनी वारिस द्वारा परिशिष्ट – I में वर्णित प्रारूप में मृत्यु प्रमाण पत्र के साथ प्रस्तुत किया जाएगा;
(vii) आवेदन जब एफआइआर दर्ज करने के 50 दिनों के बाद प्रस्तुत किया जाता है, तब पीड़िता या उसका कानूनी वारिस परिशिष्ट- II में दर्शाए प्रारूप में निम्नांकित प्रपत्र के साथ आवेदन प्रस्तुत करेगा:
- थाने में दर्ज FIR;
- मेडिकल रिपोर्ट;
- जहां आवश्यक हो वहां मृत्यु प्रमाण पत्र;
(viii) यदि मामले के तहत पुलिस से जिला बोर्ड को आवश्यक दस्तावेज प्राप्त नहीं होता या महिला कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाती, या किसी अन्य कारण से जो उसके वश में न हो तो, जिला बोर्ड उचित अधिकारी से उपबंध (iv) के तहत इसकी मांग कर सकता है;
1) चूंकि इस योजना का उद्देश्य बलवर्धक न्याय दिलाना है, इसलिए वित्तीय सहायता तथा सहायक सेवाओं को प्रदान करने के लिए काफी सरल, त्वरित तथा दक्ष प्रक्रिया अपनाई जाएगी। योजना के तहत आने वाले आवेदनों पर विचार करते समय यह जिला बोर्ड के लिए हमेशा ही एक दिशा-निर्देशक सिद्धांत रहेगा। सामान्यतः पार 6 के तहत आवेदन मिलने पर और इस बात से संतुष्ट हो जाने पर कि प्रत्यक्ष रूप से मामला बनता है, तो बोर्ड एक अंतरिम वित्तीय सहायता तथा अन्य सहायक सेवाओं के लिए आदेश जारी करेगा। हालांकि उस स्थिति में जहां बोर्ड को यह लगे कि आवेदक/पीड़िता तथा अन्य पक्षों के आवेदन की जांच की जाने की आवश्यकता है, तब यह मामले की जांच करने, साक्ष्य को रिकॉर्ड करने तथा स्वीकृति के बाद ही अंतरिम वित्तीय सहायता व अन्य सहायक सेवाओं के लिए आदेश जारी कर सकता है, अन्यथा आवेदक
2) किसी भी आवेदन को आवेदक/पीड़िता को एक अवसर दिये बगैर और बिना किसी लिखित कारण के खारिज नहीं किया जा सकता है।
3) बोर्ड के सामने होने वाली कार्रवाई के स्थान तथा समय के बारे में आवेदक को पूर्व सूचना दी जाएगी;
4) बोर्ड के पास यह अधिकार होगा कि वह किसी रिकॉर्ड/दस्तावेज की मांग करे तथा आवेदन के बारे में अंतिम फैसला लेने से पूर्व किसी व्यक्ति की जांच करे।
5) बोर्ड अपना निर्णय इसे उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर लेगा;
6) बोर्ड की कार्यवाही कैमरा के समक्ष होगी तथा पीड़िता की पहचान किसी भी स्थिति में गोपनीय रखी जाएगी;
7) बैठक के लिए कोरम पूरा करने के लिए सभी सदस्यों की कम से कम आधी संख्या होनी ही चाहिए।
8) बोर्ड की कार्रवाई को प्रिंट, प्रकाशित, प्रसारित या किसी सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुत नहीं की जा सकती है।
(क) अंतरिम सहायता
(1) पारा 7 में वर्णित विधि के मुताबिक संतुष्ट होने के बाद जिला बोर्ड पीड़िता को 15 दिनों के भीतर रु. 20,000/- की राशि प्रदान करने का आदेश देगा और किसी भी स्थिति में यह आवेदन प्राप्ति तिथि से 3 हफ्ते से अधिक नहीं हो सकता;
(2) पीड़िता की जरूरत और उसकी शारीरिक हानि और मानसिक आघात का आकलन करने के बाद बोर्ड योजना के पारा 5(A)(iii) के अनुसार आवश्यक सहायक सेवाओं की आपूर्ति का आदेश जारी करेगा। ऐसा करते हुए केंद्र या राज्य सरकार के पास मौजूद इस योजना के तहत उपलब्ध सुविधाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है।
(3) बोर्ड ऐसी सहायक सेवाओं पर व्यय के रूप में अधिकतम रु. 50,000/- खर्च कर सकता है।
(ख) अंतिम सहायता
(1) मामले की सुनवाई में अपनी गवाही देने की तिथि एक महीने के भीतर या उन मामले में आवेदन प्राप्ति तिथि से 1 साल के भीतर, जहां साक्ष्य का रिकॉर्डिंग उसके अनियंत्रित कारणों से विलम्बित होता है, (जो पहले हो) बोर्ड शेष राशि रु 1.30 के भुगतान का आदेश जारी करेगा।
(2) ऐसी स्थिति में जहां अंतिम सहायता मामले की कार्यवाही में पीड़िता के साक्ष्य को दर्ज किए जाने से पूर्व दी जाती है, बोर्ड ऐसा करने के कारण को लिखित रूप से दर्ज करेगा;
(3) बोर्ड द्वारा दिए जाने वाली वित्तीय सहायता तथा सहायक सेवाओं के लिए रु 2 लाख से अधिक व्यव नहीं किया जाएगा, हालांकि उपबंध 11 इसका अपवाद होगा, जहां राहत राशि को बढ़ाकर रु.3 लाख की जाती है।
जब बलात्कार के बाद पीड़िता की मृत्यु हो जाती है, तब पूरी तरह से संतुष्ट हो जाने पर बोर्ड पीड़िता के कानूनी वारिस, जिसमें उसके अल्प वयस्क बच्चे भी शामिल हैं, के लिए निम्न सहायता उपलब्ध कराएगा:
(1) रु. 1 लाख, यदि परिवार में अनुपार्जक सदस्य थी;
(2) रु. 2 लाख, यदि पीड़िता परिवार की एक कमाऊ सदस्य थी।
बोर्ड के आदेश पर अंतरिम या अंतिम वित्तीय सहायता को आवेदन में दिए बैंक खाते में तुरंत जमा कराया जाएगा। जहां तक संभव हो यह राशि इलेक्ट्रॉनिक रूप से हस्तांतरित की जाए ताकि पीड़िता की मदद दक्ष और त्वरित रूप से की जा सके;
ऐसी स्थिति में जहां पीड़िता एक अल्पवयस्क बालिका है, तब बोर्ड द्वारा फंड के सही इस्तेमाल के बारे में संतुष्ट हो जाने पर सहायता राशि उसके माता-पिता या अभिभावक को दी जाएगी।
पीड़िता को दी जाने वाली वित्तीय सहायता तथा सहायक सेवाओं के निर्धारण के दौरान जिला बोर्ड को निम्न बिंदुओं को ध्यान में रखना होगा:
(1) पीड़िता द्वारा झेली जाने वाली शारीरिक चोट का प्रकार तथा उसकी गंभीरता और उस पर आने वाला खर्च या वह खर्च जो उसके मेडिकल उपचार या मनोवैज्ञानिक परामर्श पर किए जाने की संभावना हो।
(2) बलात्कार के बार गर्भ ठहरने की स्थिति में होने वाले खर्च, जिसमें गर्भपात भी शामिल है।
(3) पीड़ित महिला की उम्र तथा वित्तीय स्थिति ताकि उसकी शिक्षा या व्यावसायिक प्रशिक्षण का निर्धारण किया जा सके।
(4) अनार्थिक हानि, जैसे मानसिक या भावनात्मक सदमा या पीड़िता द्वारा झेला गया अपमान।
(5) ऐसे मामलों में जहां पीड़ित महिला अपराध की घटना, एफआइआर दर्ज किए जाने वाले स्थान/ कानूनी कार्रवाई किए जाने वाले स्थान की बजाए अन्य स्थान पर रहती है, तो ऐसे में उसके वैकल्पिक समायोजन में हुआ व्यय।
(6) बोर्ड इस बात को ध्यान में रखेगा कि पीड़ित महिला एक अल्पवयस्क या मानसिक रूप से अपंग महिला है, ऐसी स्थिति में उसे अधिक आर्थिक सहायता दी जाएगी और योजना के पारा 10 के तहत विशेष सहायता प्रदान की जाएगी;
(7) बोर्ड जहां तक संभव होगा केंद्र तथा राज्य सरकार की योजनाओं तथा सुविधाओं का इस्तेमाल करेगा, साथ ही सरकार द्वारा पूर्ण या आंशिक सहायता प्राप्त संगठनों की मदद लेगा।
कुछ मामलों में तथा जिला बोर्ड द्वारा अनुशंसित पीड़ित महिलाओं की संवेदनशीलता और विशेष जरूरतों के मद्देनजर, जिला बोर्ड के परामर्श के साथ राज्य बोर्ड के पास 1 लाख रु. की अतिरिक्त राशि प्रदान करने का अधिकार रहेगा, जो निम्न स्थितियों में अधिकतम 3 लाख रु. तक जा सकती है:
(1)पीड़िता एक नाबालिक बालिका हो, जिसे विशेष उपचार तथा देखभाल की जरूरत हो;
(2) पीड़िता मानसिक रूप से अपंग हो जिसे विशेष उपचार तथा देखभाल की आवश्यकता हो;
(3) पीड़िता बलात्कार के परिणाम स्वरूप किसी STD से पीड़ित हो, जिसमें HIV/AIDS भी शामिल है।;
(4)बलात्कार के बाद पीड़िता गर्भवती हो गई हो;
(5) जहां पीड़िता द्वारा गंभीर शारीरिक तथा मानसिक समस्या झेलनी पड़ती हो;
(6) बोर्ड द्वारा उपयुक्त पाया गया कोई अन्य आधार;
बोर्ड किसी ऐसे आवेदन को अस्वीकार कर सकता है, जहां उसे निम्न बातों पर विचार करना पड़े:-
(i) आवेदक बिना किसी विलम्ब के पुलिस या किसी अन्य एजेंसी अथवा किसी अन्य प्राधिकार को घटना के बारे में सूचित करने में असफल रहे;
(ii) आवेदक अपने आवेदन के संबंध में बोर्ड को कोई उल्लेखनीय सहायता देने में असफल रहती/रहता है;
(iii) जहां घटना की शिकायत/एफआइआर इतनी देर से दर्ज करवाई जाती है कि मामले के तथ्य की जांच असंभव हो जाए;
(iv)जहां आवेदक आपराधिक शिकायत दर्ज करने के बाद कार्रवाई के दौरान पलट जाए और मामले की कार्रवाई को मदद न दे;
(v) मामला यदि मनगढ़ंत हो और वह जांच किए जाने योग्य तथ्य पर आधारित न हो;
(vi) आवेदक की सत्यता पर संदेह हो, जैसे कि विनती के मामले में जो जांच किए जाने योग्य तथ्य पर आधारित न हो;
(vii) जहां 16 वर्ष की लड़की को भगाने का मामला हो और वहां बलात्कार न हुआ हो। बोर्ड तुरंत मामले को अस्वीकार नहीं कर सकता है, बल्कि किसी सहायता राशि के आबंटन से पहले वह सुनवाई के नतीजे की प्रतीक्षा करेगा;
ऊपर सुझाए किसी भी आधार पर आवेदन की अस्वीकृति होने पर किसी महिला पर CrPC की धारा 357 तथा 357A के तहत न्यायालय का दरवाजा खटखटाने पर कोई रोक नहीं लगती।
इस योजना के तहत दी जाने वाली सहायक सेवाओं के संबंध में किसी शिकायत की सुनवाई के लिए पीड़ित महिला जिला बोर्ड के समक्ष जा सकती है।
जहां शिकायत जिला या राज्य बोर्ड के व्यवहार से जुड़ी हो, पीड़ित महिला या उसका कानूनी वारिस राज्य या राष्ट्रीय बोर्ड में जा सकता है।
(i) महिला तथा बाल विकास मंत्रालय इस योजना के संचालन के लिए राज्य सरकार को वित्तीय सहायता की राशि प्रदान करेगा, जो राष्ट्रीय बोर्ड की अनुशंसा पर होगा;
(ii) तब राज्य सरकार उस फंड को आवश्यकतानुसार जिला बोर्डों को आबंटित करेगी;
(iii) बजटीय आबंटन का इस्तेमाल निम्न के लिए किया जाएगा:-
1) इस योजना के तहत सहायता लागत;
2) राष्ट्रीय, राज्य तथा जिला अपराध राहत तथा पुनर्वास बोर्ड के सदस्यों को शुल्क तथा टी ए /डी ए ;
इस योजना के क्रियांवयन तथा व्यव विवरण की त्रैमासिक रिपोर्ट जिला बोर्डों द्वारा राज्य बोर्डों को भेजा जाएगा। राज्य बोर्ड एक समग्र त्रैमासिक रिपोर्ट राष्ट्रीय बोर्ड को भेजेगा। महिला तथा बाल विकास मंत्रालय सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं से जुड़े उचित संस्थानों/संगठनों के जरिए सावधिक प्रभाव मूल्यांकरन करवाएगा। ऐसे सावधिक मूल्यांकन के दौरान पीड़ित महिला की पहचान की गोपनीयता बरतने का ध्यान रखा जाएगा।
केंद्र, राज्य तथा जिला बोर्ड सही खाता तथा अन्य आवश्यक रिकॉर्ड का संचालन करेंगे तथा खाते का एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेंगे जिसमें आय तथा व्यय विवरण और बैलेंसशीट शामिल होंगे। ये खाते C एंड AG द्वारा ऑडिट किए जाएंगे।
परिशिष्ट -I
प्रारूप [पारा 6(i), उपबंध (c) के तहत]
[जहां आवेदन 60 दिनों के भीतर भरा जाता है]
(प्रारूप भरने से पहले इस योजना के तहत के प्रावधानों को विशेषकर पारा 6 तथा 8 को सावधानीपूर्वक पढ़ा जाना चाहिए)
1.पीड़ित महिला का नाम:
2. पीड़िता की आयु :
3. माता-पिता के नाम:
4. पता :
5. घटना की तिथि तथा समय:
6. घटना का स्थान:
7. आवेदक का नाम तथा विवरण:
(आवेदन यदि पीड़ित महिला की ओर से या उसकी मृत्यु पर सौंपा जाता है)
पिता का नाम:
माता का नाम:
8.पीड़िता से संबंध (कानूनी वारिस या कोई अन्य, उल्लेख करें):
9. क्या FIR दर्ज किया गया था? :
यदि ‘नहीं’, तो कारण बताएं।
10. क्या मेडिकल जांच की गई थी?:
11. मृत्यु प्रमाणपत्र साथ लगाएं (जहां आवेदन कानूनी वारिस द्वारा भजा जाता है):
12. योजना के तहत आवेदन सौंपने में हुई देरी का कारण;
13. बैंक के खाते का विवरण:
तिथि
आवेदक का हस्ताक्षर
परिशिष्ट -II
प्रारूप [पारा 6(i), उपबंध (a) तथा (b)]
[जहां आवेदन 60 दिनों के भीतर सौंपा गया हो]
(प्रारूप भरने से पहले इस योजना के तहत आने वाले प्रावधानों को विशेषकर पारा 6 तथा 8 को सावधानीपूर्वक पढ़ा जाना चाहिए)
1.पीड़ित महिला का नाम:
2. पीड़िता की आयु :
3. माता-पिता के नाम:
पिता का नाम:
माता का नाम:
4. पता :
5. घटना की तिथि तथा समय:
6. घटना का स्थान:
7. आवेदक का नाम तथा विवरण:
(आवेदन यदि पीड़ित महिला की ओर से या उसकी मृत्यु पर सौंपा जाता है)
8.पीड़िता से संबंध (कानूनी वारिस या कोई अन्य, उल्लेख करें):
9. क्या FIR दर्ज किया गया था? :
यदि ‘हां’, तो उसकी एक प्रति संलग्न करें।
यदि ‘नहीं’, तो कारण बताएं।
10. क्या मेडिकल जांच की गई थी?: यदि हां तो उसकी एक प्रति संलग्न करें।
11. मृत्यु प्रमाणपत्र साथ लगाएं (जहां आवेदन कानूनी वारिस द्वारा भजा जाता है):
12. बैंक के खाते का विवरण:
तिथि
आवेदक का हस्ताक्षर
स्रोत: ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान, रांची
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