सहकारिता एक आन्दोलन है। आन्दोलन सहअस्तित्व का, आन्दोलन सहकर्म का, आन्दोलन सहयोग का, आन्दोलन सहभाग का, आन्दोलन सामूहिक जिम्मेदारी का, आन्दोलन सामूहिक बहुमुखी विकास का एवं आन्दोलन गरीबी तथा बेरोजगारी उन्मूलन का।
इस प्रकार सहकारिता व्यक्ति के लिए जीने हेतु जीवन शैली है, जीने की रीति एवं नीति है इसे जीवन प्रबंध भी कह सकते हैं। सब एक के लिए व एक सबके लिए अर्थात समष्टि व्यष्टि के लिए एवं व्यष्टि समष्टि के लिए इसका मौलिक आधार है। इससे एक होकर साथ-साथ चलने एवं जीने की भावना का विकास होता है।
किसी भी समाज एवं देश यहां तक कि व्यक्ति विकास में भी महिलाओं कि अहम भूमिका एवं सहयोग होता है। व्यक्ति की उत्पत्ति भी बिना महिला के असम्भव है। सहयोग,सहकर्म एवं सहअस्तित्व का प्रथम पाठशाला परिवार है। परिवार का मेरुदंड महिलाएं हैं जो सहकारिता पर टिकी हुई हैं अत: जब तक महिलाओं का सक्रिय सहयोग प्राप्त नहीं होगा, सहकारिता आन्दोलन की सफलता दिवा-स्वप्न ही बना रहेगी। सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं का सक्रिय सहयोग से न सिर्फ समाज एवं देश का ही विकास होगा बल्कि महिला समाज का सर्वागीण उत्थान के साथ-साथ सहकारिता आन्दोलन को भी शक्ति, गति एवं दिशा प्रदान की जा सकती है।
भारतीय समाज में महिलाओं की सूझबूझ, कर्तव्य परायणता, ईमानदारी, त्याग, बलिदान, बहादुरी, प्रशासनिक क्षमता, संगठनात्मक क्षमता, परिश्रम करने कि क्षमता हर क्षेत्र में प्रमाणित हो चुकी है। किसी भी क्षेत्र में महिलाओं कि अक्षमता को आंकना बेईमानी होती।
विश्लेषकों का कहना है कि भारत में सहकारिता असफल हुआ है। इसका मुख्य कारण है भारतीय सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं के सक्रिय सहयोग का अभाव। इस क्षेत्र में महिलाओं कि भूमिका बिलकुल ही असंतोषप्रद है। भारत में जितने भी प्रकार की सहकारी समितियाँ बनी हैं उनमें महिलाओं की सहकारी समितियाँ लगभग २% ही हैं। जबकि महिलओं की आबादी लगभग ५०% है। इससे सिद्ध होता है कि सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं की भागीदारी लगभग नगण्य सा या बिलकुल ही कम है। यह एक प्रमुख कारण है कि महिलाओं की स्थिति आज दयनीय बनी हुई है। वे दूसरे दर्जे का नागरिक बनने के लिए मजबूर हैं। आज देश के कुल श्रमशक्ति का एक तिहाई श्रमशक्ति महिलाओं का माना जाता है। लेकिन तब भी उसकी आर्थिक एवं सामाजिक हालात पुरुषों की तुलना में निम्न स्तर की है। यद्यपि ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में महिलाएं कुटीर उद्योग, कृषि कार्य, डेयरी, पशुपालन, मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन, मधुमक्खी, बागवानी, दैनिक श्रमिक, बनोत्पाद प्रोसेसिंग कार्य, सूअर पालन आदि अनेक प्रकार के कार्यों में लगी हैं, परन्तु उनकी संख्या एवं आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है जिसका प्रमुख कारण निम्नांकित हैं-
विशेषज्ञों का कहना है कि सहकारिता को निश्चित रूप से सफल बनाना है। बेरोजगारी एवं गरीबी दूर करने हेतु तथा समाज को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने हेतु सहकारिता के समान कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता। देश एवं समाज तथा महिलाओं की आर्थिक सामाजिक स्थिति के उत्थान हेतु सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना आवश्यक है। पुरुषों के साथ महिलाओं को भी जीवन के हर क्षेत्र में समानता का अधिकार देना समय की पुकार है। किसी भी देश का विकास सिर्फ पुरुषों के सहयोग से ही होना सम्भव नहीं है। पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं का सहयोग आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है, अन्यथा विकास अधूरा ही होगा।
आज दुनिया के जितने भी विकसित देश जैसे जापान, जर्मनी, अमेरिका,इंगलैंड, डेनमार्क आदि हैं, वहाँ के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में महिलओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वहां के सहकारी आन्दोलन में महिलाओं की सक्रियता से सिर्फ देश एवं समाज का ही नहीं बल्कि वहाँ की महिलाएँ भी आत्मनिर्भर होती जा रही हैं।
हमारे देश कि महिलाओं में भी वे सभी क्षमता हैं जो विदेशों की महिलाओं में है। सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं कि भागीदारी बढ़ाना अत्यावश्यक है। इसके लिए निम्नांकित प्रयास किया जाना अपेक्षित है :-
इस प्रकार सहकारी समितियों के माध्यम से महिलाओं में निर्णय लेने की क्षमता का विकास सम्भव हो सकेगा। नेतृत्व की शक्ति, नियोजन तथा सहकारिता सेवाओं तक पहुचंने का अवसर महिलाओं को प्राप्त हो सकेगा।
सहकारी समिति के माध्यम से उनकी श्रम शक्ति, उत्पादन क्षमता एवं योग्यता का बेहतर ढंग से उपयोग करके उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाया जाना संभव हो सकेगा।
महिला सहकारी समितियों को राज्य सरकार द्वारा आयोजन मद में वित्तीय सहायता दिए जाने का प्रावधान है। स्वावलम्बी सहकारी समितियों को अनुदान एवं ऋण के रूप में वित्तीय सहायता देने का प्रावधान है। बिहार एवं ओडिसा सहकारिता समिति अधिनियम १९३५ के तहत निबंधित महिला सहकारी समितियों को सरकार द्वारा हिस्सा पूँजी, ऋण एवं अनुदान (तीनों रूप) के रूप में वित्तीय सहायता देने का प्रावधान है। किन्तु इसके लिए आवश्यक है कि समिति एक वर्ष से सफलता पूर्वक कार्यरत हो तथा समिति लाभ में हो।
प्राथमिक महिला समितियों को केन्द्रीय योजना अंतर्गत एक लाख रुपए वित्तीय सहायता देने का प्रावधान है जिसमे पुरानी अर्थात बिहार सहकारी अधिनियम १९३५ के आधार पर निबंधित समिति को ४० हजार रुपए हिस्सा पूँजी राशि, ४० हजार रुपये कार्यशील पूँजी एवं २० हजार रुपये अनुदान के रूप में तथा बिहार स्वावलम्बी अधिनियम १९९६ के आधार पर निबंधित प्राथमिक महिला समितियों को ८० हजार रुपये कार्यशील पूँजी कि रूप में तथा २० हजार रुपये अनुदान के रूप में देने का प्रावधान है। केन्द्रीय योजना के तहत वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाली समिति को योजना के अनुरूप वांछित सहायता राशि एवं कार्यशील पूँजी का २५ प्रतिशत राशि समिति स्तर से एकत्रित करनी होगी।
सहकारी क्षेत्र में महिलाओं कि भागीदारी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वर्तमान सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं का सहयोग, सक्रीय भागीदारी आवश्यक तो है परन्तु महिलाओं के समक्ष उक्त परिस्थितियों के कारण कुछ बाधाएं एवं लिमिटेशन भी हैं। इन्हें दूर करने के लिए महिलाओं को स्वयं भी आगे आना होगा। जागरूक एवं जुझारू बनना होगा। उन्हें अपने सामाजिक, आर्थिक विकास में आने वाली रूकावटों के कारणों को खुली नजर से पहचानना होगा तथा उसे दूर करने के लिए संघर्ष करना होगा। महिलाओं को अपनी अन्दर में छिपी शक्ति को पहचानना होगा तथा यह स्वयंबोध का विकास करना होगा कि वह किसी भी हालत में पुरुषों से कम नहीं हैं। उसे यह समझना होगा कि वे साहसी, समझदार एवं हर कार्य को करने के लिए सक्षम एवं स्वतंत्र है। वह अपने आप पर निर्भर है। इस प्रकार जब तक महिलाएँ स्वयं आगे आकर सहकारी आन्दोलन में सक्रीय भाग नहीं लेंगी टब तक महिलाओं के सम्पूर्ण सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं व्यक्तित्व का विकास कि कल्पना अधूरी ही रह जाएगी।
स्त्रोत: हलचल, ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान,रांची,झारखंड।
अंतिम बार संशोधित : 3/15/2023
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