অসমীয়া   বাংলা   बोड़ो   डोगरी   ગુજરાતી   ಕನ್ನಡ   كأشُر   कोंकणी   संथाली   মনিপুরি   नेपाली   ଓରିୟା   ਪੰਜਾਬੀ   संस्कृत   தமிழ்  తెలుగు   ردو

सहकारिता क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका

परिचय

सहकारिता एक आन्दोलन है। आन्दोलन सहअस्तित्व का, आन्दोलन सहकर्म का, आन्दोलन सहयोग का, आन्दोलन सहभाग का, आन्दोलन सामूहिक जिम्मेदारी का, आन्दोलन सामूहिक बहुमुखी विकास का एवं आन्दोलन गरीबी तथा बेरोजगारी उन्मूलन का।

इस प्रकार सहकारिता व्यक्ति के लिए जीने हेतु जीवन शैली है, जीने की रीति एवं नीति है इसे जीवन प्रबंध भी कह सकते हैं। सब एक के लिए व एक सबके लिए अर्थात समष्टि व्यष्टि के लिए एवं व्यष्टि समष्टि के लिए इसका मौलिक आधार है।  इससे एक होकर साथ-साथ चलने एवं जीने की भावना का विकास होता है।

महिलाओं की भूमिका

किसी भी समाज एवं देश यहां तक कि व्यक्ति विकास में भी महिलाओं कि अहम भूमिका एवं सहयोग होता है। व्यक्ति की उत्पत्ति भी बिना महिला के असम्भव है। सहयोग,सहकर्म एवं सहअस्तित्व का प्रथम पाठशाला परिवार है। परिवार का मेरुदंड महिलाएं हैं जो सहकारिता पर टिकी हुई हैं अत: जब तक महिलाओं का सक्रिय सहयोग प्राप्त नहीं होगा, सहकारिता आन्दोलन की सफलता दिवा-स्वप्न ही बना रहेगी। सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं का सक्रिय सहयोग से न सिर्फ समाज एवं देश का ही विकास होगा बल्कि महिला समाज का सर्वागीण उत्थान के साथ-साथ सहकारिता आन्दोलन को भी शक्ति, गति एवं दिशा प्रदान की जा सकती है।

भारतीय समाज में महिलाओं की सूझबूझ, कर्तव्य परायणता, ईमानदारी, त्याग, बलिदान, बहादुरी, प्रशासनिक क्षमता, संगठनात्मक क्षमता, परिश्रम करने कि क्षमता हर क्षेत्र में प्रमाणित हो चुकी है। किसी भी क्षेत्र में महिलाओं कि अक्षमता को आंकना बेईमानी होती।

विश्लेषकों का कहना है कि भारत में सहकारिता असफल हुआ है। इसका मुख्य कारण है भारतीय सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं के सक्रिय सहयोग का अभाव। इस क्षेत्र में महिलाओं कि भूमिका बिलकुल ही असंतोषप्रद है।  भारत में जितने भी प्रकार की सहकारी समितियाँ बनी हैं उनमें महिलाओं की सहकारी समितियाँ लगभग २% ही हैं।  जबकि महिलओं की आबादी लगभग ५०% है। इससे सिद्ध होता है कि सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं की भागीदारी लगभग नगण्य सा या बिलकुल ही कम है। यह एक प्रमुख कारण है कि महिलाओं  की स्थिति आज दयनीय बनी हुई है। वे दूसरे दर्जे का नागरिक बनने के लिए मजबूर हैं। आज देश के कुल श्रमशक्ति का एक तिहाई श्रमशक्ति महिलाओं  का माना जाता है। लेकिन तब भी उसकी आर्थिक एवं सामाजिक हालात पुरुषों की तुलना में निम्न स्तर की है। यद्यपि ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में महिलाएं कुटीर उद्योग, कृषि कार्य, डेयरी, पशुपालन, मत्स्य पालन, कुक्कुट पालन, मधुमक्खी, बागवानी, दैनिक श्रमिक, बनोत्पाद प्रोसेसिंग कार्य, सूअर पालन आदि अनेक प्रकार के कार्यों में लगी हैं, परन्तु उनकी संख्या एवं आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है जिसका प्रमुख कारण निम्नांकित हैं-

  1. महिलाओं में शिक्षा एवं साक्षरता का अभाव।
  2. ग्रामीण महिलाओं में पर्दा प्रथा का होना।
  3. सम्पति के अधिग्रहण में महिलाओं के उत्तराधिकार पुरुषों की तुलना में कम।
  4. महिलाओं से सम्बन्धित समाज में स्थित सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्थिति
  5. महिलाओं की स्थिति को पुरुषों की तुलना में निम्न स्तर का समझा जाना एवं पुरुषों के ऊपर आश्रित बनकर रहने की मनोदशा
  6. समाज में महिलाओं की स्वतंत्रा का अभाव।
  7. महिलाओं  के पोषण एवं स्वास्थ्य सुधार के प्रति उदासीनता
  8. समाज में नीति-निर्धारण कार्यों में महिलाओं की भूमिका का अभाव।
  9. जागरूकता की कमी।
  10. महिलाओं में सहकारिता आन्दोलन में भाग लेने से होने वाले लाभ की जानकारी या सहकारिता ज्ञान का अभाव।
  11. अपने बारे में कम सोचने एवं बोलने की आदत।
  12. महिलाओं में सहकारी ज्ञान एवं लाभ के प्रचार तथा उनके प्रोत्साहन का अभाव।
  13. नेतृत्व का अभाव।

विशेषज्ञों का कहना है कि सहकारिता को निश्चित रूप से सफल बनाना है।  बेरोजगारी एवं गरीबी दूर करने हेतु तथा समाज को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने हेतु सहकारिता के समान कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता। देश एवं समाज तथा महिलाओं की आर्थिक सामाजिक स्थिति के उत्थान हेतु सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना आवश्यक है। पुरुषों के साथ महिलाओं को भी जीवन के हर क्षेत्र में समानता का अधिकार देना समय की पुकार है। किसी भी देश का विकास सिर्फ पुरुषों के सहयोग से ही होना सम्भव नहीं है। पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं का सहयोग आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है, अन्यथा विकास अधूरा ही होगा।

आज दुनिया के जितने भी विकसित देश जैसे जापान, जर्मनी, अमेरिका,इंगलैंड, डेनमार्क आदि हैं, वहाँ के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में महिलओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वहां के सहकारी आन्दोलन में महिलाओं की सक्रियता से सिर्फ देश एवं समाज का ही नहीं बल्कि वहाँ की महिलाएँ भी आत्मनिर्भर होती जा रही हैं।

महिला सहकारिता आंदोलन

हमारे देश कि महिलाओं में भी वे सभी क्षमता हैं जो विदेशों की महिलाओं में है। सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं कि भागीदारी बढ़ाना अत्यावश्यक है।  इसके लिए निम्नांकित प्रयास किया जाना अपेक्षित है :-

  1. सभी शैक्षणिक संस्थाओं में सहकारी शिक्षा का प्रावधान किया जाए जिससे पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं में भी सहकारिता ज्ञान एवं भावना का विकास होगा।
  2. विभिन्न प्रकार कि सहकारी समितियों में महिलाओं को अधिक प्रतिनिधित्व दिया जाए।
  3. बाजारों में प्राथमिकता के आधार पर सहकारी दूकानें आवंटित किया जाए।
  4. महिला सहकारी बैंक तथा साख समितियाँ गठित किया जाए एवं ऋण प्रक्रिया सरल बनाया जाए।
  5. महिला सहकारिता प्रशिक्षण केन्द्र खोला जाए जिसमें महिलाओं को अलग से सहकारी शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था हो।  सहकारी शिक्षा से ही महिलाओं को सहकारी सुविधा एवं सरकार द्वारा की जा रही अन्य सुविधाओं का वास्तविक लाभ उन्हें प्राप्त हो सकेगा।
  6. महिलाओं को सहकारी शिक्षा एवं सहकारी प्रबंध कि जानकारी देने हेतु सहकारी प्रशिक्षण केन्द्रों को पर्याप्त वित्त प्रदान किया जाए ताकि महिलाओं को प्रशिक्षित करने हेतु गहन प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किया जा सकें।
  7. सहकारिता में महिलाओं कि भागीदारी बढ़ाने हेतु तथा इसमें आनेवाली समस्याओं को निदान हेतु सहकारी प्रशिक्षण केन्द्र, सहकारी समिति एवं अन्य केन्द्रीय तथा शीर्ष सहकारी संस्थान स्तर पर महिलाओं का सम्मेलन, सेमिनार एवं कार्यशाला आयोजित की जाएं।
  8. सहकारी समितियों में महिलाओं को अधिक-से-अधिक रोजगार का प्रावधान उपलब्ध कराकर उनके सामाजिक एवं आर्थिक स्तर को बढ़ाया जा सकता है।
  9. महिला निरीक्षकों की नियुक्ति करके उन्हें महिला सहकारिता के विकास कार्य में लगाया जाए।
  10. सम्पत्ति, जमीन,मकान आदि सभी चल एवं अचल सम्पत्ति में महिलाओं को पुरुषों की तरह समान अधिकार प्रदान किया जाए।
  11. सहकारिता आन्दोलन में महिलाओं की भागीदारी अत्यन्त आवश्यक है परन्तु व्यावहारिक रूप से ऐसा करना, कहने की तुलना में थोड़ा कठिन है क्योंकि वर्तमान स्तिथि में महिलाएँ राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक रूप से दबी हुई हैं, पिछड़ी हुई हैं। सामाजिक,आर्थिक एवं राजनैतिक रूप से महिलाओं के दबे होने एवं पिछड़ने के कारणों को निष्पक्ष रूप से ढूँढना होगा। सहकारिता क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने में आने वाली बाधाओं तथा समस्याओं एवं जटिलताओं की खोज गहराई से करना होगी तथा उन बाधाओं एवं समस्याओं को दूर करने हेतु अगर आवश्यक हुआ तो सम्यक विधान बनाना चाहिए।
  12. महिलाओं में जागरूकता लाना करना आवश्यक है।  इसके लिए अपेक्षित प्रयास कि आवश्यकता है।  आधारहीन पारम्परिक प्रथाओं, परम्पराओं आदि की खामियों से उन्हें अवगत एवं जागरूक बनाना आवश्यक है।
  13. महिला समितियों को सरकार द्वारा बित्तीय सहायता प्रदान किया जाय।

इस प्रकार सहकारी समितियों के माध्यम से महिलाओं में निर्णय लेने की क्षमता का विकास सम्भव हो सकेगा।  नेतृत्व की शक्ति, नियोजन तथा सहकारिता सेवाओं तक पहुचंने का अवसर महिलाओं को प्राप्त हो सकेगा।

सहकारी समिति के माध्यम से उनकी श्रम शक्ति, उत्पादन क्षमता एवं योग्यता का बेहतर ढंग से उपयोग करके उनके जीवन स्तर को ऊपर उठाया जाना संभव हो सकेगा।

महिला सहकारी समितियों को राज्य सरकार द्वारा आयोजन मद में वित्तीय सहायता दिए जाने का प्रावधान है। स्वावलम्बी सहकारी समितियों को अनुदान एवं ऋण के रूप में वित्तीय सहायता देने का प्रावधान है। बिहार एवं ओडिसा सहकारिता समिति अधिनियम १९३५ के तहत निबंधित महिला सहकारी समितियों को सरकार द्वारा हिस्सा पूँजी, ऋण एवं अनुदान (तीनों रूप) के रूप में वित्तीय सहायता देने का प्रावधान है। किन्तु इसके लिए आवश्यक है कि समिति एक वर्ष से सफलता पूर्वक कार्यरत हो तथा समिति लाभ में हो।

केन्द्रीय सहायता

प्राथमिक महिला समितियों को केन्द्रीय योजना अंतर्गत एक लाख रुपए वित्तीय सहायता देने का प्रावधान है जिसमे पुरानी अर्थात बिहार सहकारी अधिनियम १९३५ के आधार पर निबंधित समिति को ४० हजार रुपए हिस्सा पूँजी राशि, ४० हजार रुपये कार्यशील पूँजी एवं २० हजार रुपये अनुदान के रूप में तथा बिहार स्वावलम्बी अधिनियम १९९६ के आधार पर निबंधित प्राथमिक महिला समितियों को ८० हजार रुपये कार्यशील पूँजी कि रूप में तथा २० हजार रुपये अनुदान के रूप में देने का प्रावधान है। केन्द्रीय योजना के तहत वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाली समिति को योजना के अनुरूप वांछित सहायता राशि एवं कार्यशील पूँजी का २५ प्रतिशत राशि समिति स्तर से एकत्रित करनी होगी।

सहकारी क्षेत्र में महिलाओं कि भागीदारी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वर्तमान सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक परिवेश में विभिन्न परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं का सहयोग, सक्रीय भागीदारी आवश्यक तो है परन्तु महिलाओं के समक्ष उक्त परिस्थितियों के कारण कुछ बाधाएं एवं लिमिटेशन भी हैं। इन्हें दूर करने के लिए महिलाओं को स्वयं भी आगे आना होगा। जागरूक एवं जुझारू बनना होगा। उन्हें अपने सामाजिक, आर्थिक विकास में आने वाली रूकावटों के कारणों को खुली नजर से पहचानना होगा तथा उसे दूर करने के लिए संघर्ष करना होगा।  महिलाओं को अपनी अन्दर में छिपी शक्ति को पहचानना होगा तथा यह स्वयंबोध का विकास करना होगा कि वह किसी भी हालत में पुरुषों से कम नहीं हैं।  उसे यह समझना होगा कि वे साहसी, समझदार एवं हर कार्य को करने के लिए सक्षम एवं स्वतंत्र है।  वह अपने आप पर निर्भर है।  इस प्रकार जब तक महिलाएँ स्वयं आगे आकर सहकारी आन्दोलन में सक्रीय भाग नहीं लेंगी टब तक महिलाओं के सम्पूर्ण सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं व्यक्तित्व का विकास कि कल्पना अधूरी ही रह जाएगी।

स्त्रोत: हलचल, ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान,रांची,झारखंड।

अंतिम बार संशोधित : 3/15/2023



© C–DAC.All content appearing on the vikaspedia portal is through collaborative effort of vikaspedia and its partners.We encourage you to use and share the content in a respectful and fair manner. Please leave all source links intact and adhere to applicable copyright and intellectual property guidelines and laws.
English to Hindi Transliterate