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ग्राम पंचायत और पशु पालन समिति की भूमिका

ग्राम पंचायत की गतिविधियाँ

पिछले अध्यायों में हमें पशु पालन से संबंधित जानकारी मिली। वैज्ञानिक पशु पालन को प्रोत्साहित करने के लिए ग्राम पंचायत ग्राम की पशु पालन समिति के सहयोग से निम्नलिखित गतिविधियाँ प्रारंभ कर सकती हैं:

  • आम चरागाह भूमि को फिर से जीवंत करने के लिए विकास, प्रबंधन और विनियामक उपाय।
  • फसल अवशेषों की बिक्री को विनियमित करना, चारा बैंको की शुरुआत, बाहरी एजेंसियों के साथ समझौते से सूखे के दौरान चारे की व्यवस्था ।
  • निजी, राजस्व और वन भूमि में चारा प्रजाति के वृक्षों के रोपण को बढ़ावा देना।
  • चारा फसलों के बारे में जागरूकता फैलाना ।
  • समय पर टीकाकरण और डीवार्मिग करना और पशुओं के स्वास्थ्य की पर्याप्त देखभाल के लिए सभी परिवारों की पहुंच सुनिश्चित करना।
  • राज्य प्रजनन नीति के अनुसार (एक समयबबद्ध ढंग से) नस्ल सुधार को बढ़ावा देना ।
  • पशुजन्य रोगों के बारे में जागरूकता फैलाना ।
  • खाद के उपायों को बढ़ावा देना और सार्वजनिक स्थानों में उचित स्वच्छता और सफाई सुनिश्चित करना।
  • पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल की जरूरत, प्रजनन, और बांझपन के कारणों के बारे में जागरूकता फैलाना ।
  • दुग्ध सहकारी समितियों के सहायता और सुनिश्चित करना कि ग्राम पंचायत से आपूर्ति किया गया दूध मिलावट से मुक्त है ।
  • घरेलू पोषण, चारे की फोर्टीफिकेशन विधि और अन्य उपायों को बढ़ावा देना ।
  • वैज्ञानिक बकरी पालन, मुर्गी पालन, मछली पालन और सुअर पालन को बढ़ावा देना ।
  • पशुधन बीमा शुरू करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना और बढ़ावा देना ।
  • पशुपालन के लिए बैंक संपर्क को बढ़ावा देना ।
  • पशु बाजारों और मेलों की सुविधा ।

पशु पालन समिति को उपरोक्त गतिविधियों की शुरुआत और एक ग्राम पंचायत पशुधन सुधार योजना (एलआईपी) विकसित करने का कार्य सौंपा जा सकता है । लोगों और पशुपालन विभाग के साथ चर्चो के आधार पर अगले चार साल के लिए पशुधन सुधार योजना में निम्न लक्ष्य सम्मलित किए जा सकते हैं:

  • गायों और भैंसों का नस्ल सुधार ।
  • बकरियों का नस्ल सुधार ।
  • सभी पशुओं को बीमा कवर के अंतर्गत लाना ।
  • सभी पशुओं का 100 प्रतिशत टीकाकरण, डीवर्मिग और पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल।
  • प्रत्येक घर में पर्याप्त कंपोस्टींग सुनिश्चित करना ।
  • सुनिश्चित करना किपोषण और खनिज पदार्थ की कमी के कारण कोई नुकसान न हो ।
  • डेयरी, मुर्गी पालन, बकरी पालन, मछली पालन और सुअर पालन आजीविका गतिविधि प्रारंभ करने में रूचि रखने वाले सभी परिवारों को प्रशिक्षण, वित्तीय सहयोग और विभागीय सहायता प्रदान कराना ।
  • डेयरी सहकारिता का सुदृढ़ीकरण और मिलावट के प्रति शून्य सहनशीलता ।
  • डेयरी सहकारी संघ के माध्यम से (बाड़े की स्वच्छता सहित) स्वच्छ दूध सुनिश्चित करना।
  • विभिन्न विभागों के साथ अभिसरण ।
  • पैरा श्रमिकों के रूप में पशुपालन पर (महिलाओं सहित) मानव संसाधन का क्षमता निर्माण ।

योजना एवं गतिविधियाँ

योजना को लागू करने के लिए निम्नलिखित गतिविधियाँ आरंभ की जा सकती है:

संवेदीकरण और जागरूकता

पशुओं के प्रबंधन में वैज्ञानिक पद्धतियों के बारे में जागरूकता और जानकारी को पैदा करने, विशेष रूप से टीकाकरण और पर्याप्त पशु स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने में ग्राम पंचायत की महत्वपूर्ण भूमिका है ।

इसके लिए मवेशी/भेड़/बकरी/मुर्गी/सूअरों में महामारी, मौसन जिसमें बीमारी होती है, टीका और टीकाकरण कार्यक्रम की उपलब्धता इत्यादि के बारे में बताते हुए पोस्टर/चार्ट तैयार किए जा सकते हैं और उन्हें ग्राम पंचायत परिसर में लगाया जा सकता है ।

इन चार्ट को स्थानीय पशु पालन अधिकारियों की मदद से तैयार किया जा सकता है। पशुधन सुधार/पशु पालन समिति स्वयं सहायता समूहों के साथ, समुदाय आधारित संगठनो (सीबीओ) और गैर-सरकारी संगठनो (एनजीओ) को भी जागरूकता उत्पन्न करने की जिम्मेदारी दी जा सकती है ।

पशुपालन विभाग के साथ समन्वयन में कार्य करना

किसी भी ग्राम पंचायत में पशु पालन आजीविकाओं पर पहल की सफलता इस पर निर्भर करती है कि ग्राम पंचायत पशु चिकित्सा विभाग के साथ कितनी अच्छी तरह समन्वय करता है। प्रत्येक ग्राम पंचायत पशु पालन विभाग की सेवाओं का उपयोग, योजनाओं तक पहुंच, जागरूकता उत्पन्न करने से लेकर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण इत्यादि तक प्रत्येक परिवार की पहुंच सुनिश्चित कर सकती है ।

विभिन्न विभागों एवं संगठनों के साथ अभिसरण

ऊपर चर्चा की गई गतिविधियों के लिए ग्राम पंचायत को डेयरी सहकारी समितियों, कृषि विभाग और ब्लॉक एवं जिला पंचायतों सहित विभिन्न विभागों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता होगी । ग्राम पंचायत को कृत्रिम गर्भाधान (एआई) की सुविधा के लिए सेवा प्रदाताओं से संपर्क स्थापित करने की भी आवश्यकता होगी। नाड़ेप गड्ढ़े कीड़ा खाद गड्ढ़े और बाड़ों के निर्माण की गतिविधियों को मनरेगा के अंतर्गत किया जा सकता है ।

पशु पालन समिति का गठन और एक वार्षिक कार्य योजना का विकास

ग्राम पंचायत को स्वयं पशुपालन गतिविधियों के दैनिक कार्यान्वयन करने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह ग्राम पंचायत की विभिन्न जिम्मेदारियों में से केवल एक है । इसके लिए ग्राम पंचायत को एक पशु पालन समिति के गठन, समिति द्वारा की गई गतिविधियों की एक कार्य योजना और समीक्षा एवं निगरानी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए । ग्राम पंचायत को यह देखना चाहिए कि समिति यह सुनिश्चित करती है:

  • टीकाकरण और डीवर्मिग कैलेंडर का कार्यान्वयन ।
  • नस्ल सुधार योजना का कार्यान्वयन और पालन ।
  • दुग्ध सहकारी संघ के काम की समीक्षा ।
  • दुग्ध में हो रही मिलावट की जाँच ।
  • आवश्यक परिश्रम उपायों का कार्यान्वयन ।
  • पशु शेड में और आम जगहों पर स्वच्छता और सफाई सुनिश्चित करना ।
  • पशुजन्य रोगों की पहचान और उनके रोकथाम और नियंत्रण के लिए उपाय करना ।
  • आवारा पशुओं की समस्या का समाधान उपलब्ध कराना ।
  • चरागाह भूमि पर चराई और प्रबंधन के नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करना।
  • पूरे वर्ष और विशेष रूप से सूखे के दौरान चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • नस्ल सुधार नीति के अनुसार बकरों, बैल और कृत्रिम गर्भाधान की व्यवस्था ।
  • आपदाओं के दौरान शवों को हटाने के लिए स्वयंसेवकों की उपलब्धता सुनिश्चित करना ।
  • महिलाओं सहित पशु पालकों का प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण ।
  • जानवरों के लिए पीने के पानी के विभिन्न स्रोतों के संदूषण की रोकथाम ।
  • संचारी रोगों की सूचना देना और उपचार ।
  • पशुधन से जुड़े कोई भी अन्य कार्य/गतिविधियाँ ।

वैज्ञानिक पशुपालन को प्रोत्साहित कर ग्राम पंचायत उनके क्षेत्र में परिवारों की आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव ला सकती है ।

दुधिया में प्रतिवर्तन

सिर्फ चार साल में दुधिया ग्राम पंचायत के परिवारों के भाग्य में एक विशाल प्रतिवर्तन हुआ था। पशुधन की संख्या उतनी ही है, लेकिन नस्ल सुधार की सफल पहल, पर्याप्त पशु स्वास्थ्य देखभाल और टीकाकरण, उचित स्वच्छता और प्रबंधन के साथ उत्पादकता में वृद्धि हुई है और इसने रुग्णता और मृत्यु दर से होने वाले घाटे को कम कर दिया है । ग्राम पंचायत में प्रत्येक घर के पास अपने खाद का उपचार करने के लिए कीड़े खाद गढ़े या नाड़ेप गड्ढे हैं जिसे उपचार के बाद खेतों में प्रयोग किया जाता है । 44 घरों में, बायो-गैस संयंत्र भी स्थापित किया गया है। उसी का घोल उर्वरक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है ।

यह महसूस किया गया कि इस बदलाव में, महिलाओं, खासकर स्वयं सहायता समूहों के साथ जुड़ी महिलाओं ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके धीमे और सतत प्रयासों ने पशुओं की खरीद और उनके रखरखाव के लिए ऋण उपलब्ध कराया। उन्होंने सुनिश्चित कर दिया कि ग्राम पंचायत में किसी भी संकट की स्थिति में किसी भी घर से एक भी पशु न बेचा जाए । प्रशिक्षण प्रदान किए जाने (सुश्री आशा किरण और श्री किशन द्वारा उठाए गए विभिन्न बैठकों में) के कुछ ही महीनों के भीतर वे आपस में जानकारी साझा करने लगीं थी । हर समूह से एक सदस्य ने पशु चिकित्सा अस्पताल का दौरा किया और यह सुनिश्चित किया कि सीखने की प्रक्रिया को जारी रखा जाए । नतीजतन, रुग्णता और मृत्यु दर से होने वाला घाटा कम हो गया। दूध में मिलावट अतीत की बात है और अब ग्रामीणों को दूध के लिए एक अच्छी कीमत मिलती है । सभी परिवार अपना दूध सहकारी डेयरी को बेचते हैं । ग्राम पंचायत में बिक्री के लिए औसत दैनिक दुग्ध उत्पादन 100 लीटर से 1200 लीटर बढ़ गया है और पशुपालन से उनकी आय चौगुनी हो गई है । कहा जाता है कृषि और पशुपालन के कायाकल्प से आय की वृद्धि अगले चुनाव में सभी सदस्यों के फिर से चुने जाने का मुख्य कारण था । वास्तव में चुनाव निर्विरोध रहा था ।

स्रोत: पंचायती राज मंत्रालय, भारत सरकार

अंतिम बार संशोधित : 2/22/2020



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